Amaranth Farming: चौलाई (रामदाना) एक बहुउद्देशीय धान्य फसल है, जिसकी पत्तियों से लेकर तना और दाना सभी भाग उपयोग में लाए जाते हैं। सब्जी और दानों के लिए चौलाई की अलग – अलग प्रजातियां उपलब्ध हैं। जन- जातीय क्षेत्रों में चौलाई एवं गेहूं के आटे से बनी रोटी को एक पूर्ण आहार माना जाता है। इसके दानों को फुलाकर इससे कई तरह के खाद्य पदार्थ विशेष रूप से लड्डू बनाना अधिक प्रचलित है।
चौलाई से कई प्रकार के बेकरी खाद्य पदार्थ जैसे बिस्कुट, पेस्ट्री, केक आदि बनाये जाते हैं। विश्वभर में चौलाई को एक अल्प प्रयुक्त फसल के रूप में उगाया जाता है, भारत में इसकी खेती जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तथा गुजरात से लेकर उत्तर-पूर्वी भारत तक की जाती है। उत्तर-पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में चौलाई की खेती अधिक प्रचलित है। चौलाई (Amaranth) पर्वतीय क्षेत्रों की प्रमुख नकदी फसल है, जिसको रामदाना, चूआ तथा मार्सा के नाम से जाना जाता है।
मध्य में ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी खेती काफी प्रचलित है। पर्वतीय क्षेत्रों में असिंचित पथरीली मिट्टी जिनमें उर्वरा की कमी, अधिक अम्लीयता तथा अनिश्चितकालीन वर्षा से उत्पन्न सूखे के कारण अधिकांश फसलें या तो उगती नहीं या अधिक उपज नहीं देती हैं। चौलाई की फसल विशेष गुणों तथा सूखा सहन करने की अपार क्षमता के कारण अधिक उपज देती है। इस लेख में चौलाई (Amaranth) की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
चौलाई की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of Amarnath)
चौलाई की खेती के लिए ऊंचाई कोई गंभीर सीमा नहीं है, क्योंकि इसे समुद्र तल से लेकर 3000 मीटर की ऊंचाई तक संतोषजनक रूप से उगाया जा सकता है। चौलाई के बीजों का अंकुरण 16 डिग्री सेल्सियस से 35 डिग्री सेल्सियस के तापमान रेंज में अच्छा देखा गया है।
एक बार जब पौधे की वृद्धि अच्छी तरह से चल रही होती है, तो यह फसल तीव्र सूखे और अजैविक तनाव की स्थिति का सामना कर सकती है। इसलिए चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation) उष्ण कटिबंधिय इलाकों से लेकर उच्च हिमालय छेत्रों तक की जा सकती है।
चौलाई की खेती के लिए मिट्टी का चयन (Selection of soil for amaranth cultivation)
चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation) आमतौर पर सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। लेकिन अच्छी उपज के लिए उचित जलनिकास वाली बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। फसल की अच्छी बढवार और विकास के लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के मध्य होना अच्छा रहता है। हालाँकि चौलाई की फसल अम्लीय एवं लवणीय भूमि से प्रभावित होती है।
चौलाई की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cultivation of Amarnath)
चौलाई (Amaranth) के बीज छोटे आकार के होने के कारण खेत का चयन एवं उसकी तैयारी पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। बिजाई के समय मिट्टी भुरभुरी होने से बीज का मिट्टी से सही संपर्क हो जाता है, इसके लिए दो से तीन बार जुताई करके पाटा लगा देना चाहिए । इसके अतिरिक्त इस बात का भी ध्यान रखें कि बिजाई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। भूमि की अंतिम जुताई के समय अच्छी तरह से सड़ी हुई 20-25 टन गोबर की खाद अच्छी मानी जाती है।
चौलाई की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for cultivation of Amarnath)
पर्वतीय क्षेत्रों के लिए: अन्नपूर्णा (आईसी- 42258 -1), पीआरए- 1 (8801), पीआरए- 2 ( 9001), पीआरए- 3 (9401), दुर्गा (आईसी- 35407), वीएल चुआ- 44 आदि।
मैदानी क्षेत्रों के लिए: गुजरात अमरेन्थ- 1 (जीए- 1), सुवर्णा, गुजरात अमरेन्थ- 2 (जीए- 2), कपिलासा ( बीजीए- 2), गुजरात अमरेन्थ- 3 (जीए- 3), आरएमए- 4, आरएमए- 7 आदि।
चौलाई की खेती के लिए बीज की मात्रा (Seed quantity for Amarnath cultivation)
चौलाई (Amaranth) के बीज की प्रति हैक्टर मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि किस विधि से बुआई करनी है। छिड़काव विधि से 2 किग्रा बीज प्रति हैक्टर और कतार विधि से 1.50 किग्रा बीज प्रति हैक्टर से जरूरत होती है।
चौलाई की खेती के लिए बुआई का समय (Sowing time for Amarnath farming)
चौलाई की फसल (Amaranth Crop) रबी और खरीफ दोनों में ली जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में मई एवं जून तथा मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर तथा नवम्बर बुआई का उपयुक्त समय होता है।
चौलाई की खेती के लिए बुआई की विधि (Method of sowing for cultivation of amaranth)
आमतौर पर किसान पर्वतीय क्षेत्रों में चौलाई (Amaranth) की बुआई छिटकवां विधि से करते हैं। इस विधि में समय कम लगता है और सुगमता भी रहती है, परन्तु इससे उपज कम मिलती है। अत: अधिक पैदावार के लिए बुआई हमेशा पंक्तियों में करनी चाहिए।
जिससे चौलाई फसल की देखभाल करना आसान होता है और पौधों की बढ़वार अच्छी होने के साथ में पैदावार भी अधिक मिलती है। कतार से कतार की दूरी 45 सेंमी और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंमी एवं 2 सेंमी गहराई तक बुआई करनी चाहिए।
चौलाई की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in amaranth crop)
साधारणत: किसान चौलाई (Amaranth) की फसल में संतुलित और सही तरीके से खाद एवं उर्वरकों का सही इस्तेमाल नहीं करते। प्रायः भूमि की उर्वराशक्ति कम होने के कारण उत्पादन कम होता है। इस फसल के लिए सामान्य रूप से 20-25 टन गोबर की सड़ी हुई खाद, 60 किग्रा नाइट्रोजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस और 20 किग्रा पोटाश देने से पैदावार में वृद्धि हो सकती है। गोबर की खाद को खेत की अन्तिम जुताई से पहले एक समान बिखेर कर जुताई करनी चाहिए जबकि उर्वरक अन्तिम तैयारी के समय भूमि में डाल देना चाहिए।
चौलाई की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Amaranth Crop)
साधारणत: खरीफ चौलाई की फसल (Amaranth Crop) को वर्षा पर निर्भर फसल के रूप में उगाया जाता है। इसलिए समय पर उचित वर्षा होती रहे तो अतिरिक्त सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। समय पर वर्षा न हो तो आवश्यकतानुसार दो से तीन सिंचाई करनी चाहिए। रबी चौलाई को सामान्यत: तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है।
चौलाई की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Amaranth crop)
फसल बुआई के 5-6 दिन के बाद खरपतवार निकल आते हैं। चौलाई (Amaranth) फसल के साथ उगे खरपतवार पोषक तत्व, स्थान, धूप आदि के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं और पौधों के विकास पर इसका प्रभाव पड़ता है। अत: बिजाई के तीन से चार सप्ताह पश्चात निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को समाप्त कर देना चाहिए। रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में फ्लुक्लोरेलीन रसायन 1 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव बुआई के तुरन्त बाद करते हैं।
चौलाई अन्त: फसल एवं मिश्रित खेती (Amaranth Intercropping and Mixed Cultivation)
चौलाई को मुख्यत: शुद्ध, मिश्रित एवं सहफसलीय तौर पर उगाया जाता है। चौलाई विभिन्न फसलों जैसे-मंडुआ, सुतारी, मूंगफली, अरहर, राजमा आदि के साथ सहफसलीय खेती के रूप में अधिक प्रचलित है। चौलाई (Amaranth) के लिए निम्नलिखित सहफसलीय चक्र उपयुक्त है, जैसे-
- चौलाई + सुतारी गेहूं (1 वर्ष)
- चौलाई + राजमा गेहूं (1 वर्ष)
- चौलाई + लोबिया गेहूं (1 वर्ष)
- चौलाई + सोयाबीन गेहूं (1 वर्ष)।
चौलाई की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in amaranth crop)
इस चौलाई (Amaranth) फसल में ज्यादा हानिकारक कीट नहीं लगते फिर भी लीफ वेबर, कैटरपिलर और चींटी फसल को हानि पहुंचाते हैं। इन कीटों का प्रकोप कभी इतना भीषण रूप ले लेता है जिससे फसल काफी हद तक प्रभावित होती है। इसकी रोकथाम के लिए मिथाईल ओ डेमिटान या डाई मिथोएट के 0.1 प्रतिशत या क्यूनालफॉस के 1.5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए।
चौलाई की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in Amaranth crop)
इसमें लीफ ब्लाइट और सफेद रस्ट दो मुख्य रोग हैं, जो चौलाई को ज्यादा प्रभावित करते हैं। लीफ ब्लाइट रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु में ज्यादा होता है। ग्रीष्म और नमीयुक्त जलवायु में इसका प्रभाव कम रहता है। इस रोग में छोटे-छोटे सफेद धब्बे पत्तियों पर दिखाई देने लगते हैं जो बाजार के लिए अनुपयुक्त हो जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 4 ग्राम प्रति लीटर या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करने से रोग का अच्छी तरह से नियंत्रण हो जाता है।
चौलाई फसल (Amaranth Crop) में सफेद रस्ट रोग का प्रकोप होने से पत्ती के ऊपर और नीचे गोल फफोले के रूप में धब्बे दिखाई देने लगते हैं। इस रोग के लगने से पौधों की पत्ती भूरी होकर सूखने लगती है। इसकी रोकथाम के लिए डायथेन एम- 45 का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
चौलाई की फसल से उपज (Yield from Amarnath crop)
चौलाई की कटाई दो तरीके से की जाती है। इसमें पहली विधि में पौधे की कटाई जड़ों के साथ बुआई के 30, 45 और 55 दिनों के बाद करते हैं। फिर जड़ों के साथ चौलाई को धोकर बाजार के लिए भेज दिया जाता है। दूसरा मल्टी-कट होता है जिसमें पहली कटाई बुआई के 25-35 दिनों के बाद करते हैं। छोटी चौलाई की कटाई साप्ताहिक अंतराल पर तथा बड़ी चौलाई की कटाई 10 दिनों के अंतराल पर करते हैं।
साधारण रूप से सब्जी वाली चौलाई प्रति हैक्टर 40 टन तक उपज देती है। चौलाई का भण्डारण 50 सेंटीग्रेट तापमान तथा 75% सापेक्षिक आर्द्रता पर करना चाहिए जिससे उसके रंग और विटामिन धारण की क्षमता बढ़ जाये। यदि उन्नत किस्में और उपरोक्त उन्नत फसल पद्धतियों को अपनाया जाये तो चौलाई (Amaranth) दाने की 40 क्विंटल प्रति हैक्टर पर्वतीय क्षेत्रों में तथा 25 क्विंटल प्रति हैक्टर मैदानी क्षेत्रों में पैदावार ली जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
चौलाई गर्म, आर्द्र और गर्म, शुष्क दोनों जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ती है। यह पौधा 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान को पसंद करता है। चौलाई (Amaranth) प्रकाश के प्रति संवेदनशील है और अधिकांश प्रजातियाँ तब फूलती हैं जब दिन की लंबाई 12 घंटे से कम होती है।
चौलाई की खेती (Amaranth Cultivation) किसी भी तरह की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन बलुई-दुमट मिट्टी को इसकी खेती लिए अच्छा माना गया है। यह साग की ऐसी किस्म है, जिसकी खेती गर्म और ठंड दोनों तरह के मौसम में की जा सकती है।
भारत में, चौलाई (Amaranth) की खेती मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है, लेकिन 1990 के दशक के उत्तरार्ध में, भारत के मध्य और पश्चिमी पठारी क्षेत्रों में इसकी खेती ने गति पकड़ी। अनुमान है कि भारत में चौलाई फसल लगभग 40-50 हज़ार हेक्टेयर में उगाई जाती है।
चौलाई की फसल (Amaranth) रबी एवं खरीफ दोनों में ली जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में मई और जून तथा मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर एवं नवम्बर बुआई का उपयुक्त समय होता है।
समय पर वर्षा न हो तो आवश्यकतानुसार दो से तीन सिंचाई करनी चाहिए। रबी चौलाई (Amaranth) को सामान्यत: तीन से चार सिंचाई की जरूरत होती है।
चौलाई (Amaranth), जिसे “रामदाना” के रूप में भी जाना जाता है, ने न केवल, पालक, लेट्यूस और मेथी को पीछे छोड़ दिया है। रामदाना थोडा बहुत पालक जैसा दिखता है और मुख्यत: हिमालय की तलहटी और दक्षिण भारत के तटों पर पाया जाता है।
यह सीधा और लगभग 80 सेमी तक ऊँचा शाकीय पौधा है। इसके पत्ते एकान्तर, भालाकार या आयताकार 3 से 9 सेमी लम्बे तथा 2.5 से 6 सेमी तक चौड़े होते हैं। इसके फूल पीले-हरे रंग के या लाल-बैंगनी रंग के तथा गुच्छों में लगे हुए होते हैं। चौलाई (Amaranth) का प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है।
किस्म और पौधे के प्रकार के आधार पर, चौलाई की कटाई रोपण या बुवाई के 20-45 दिन बाद की जा सकती है, जब इसकी ऊँचाई 25-30 सेमी हो जाती है। एक हेक्टेयर ऐमारैंथ की फसल से लगभग 25 टन पत्तियाँ काटी जा सकती हैं। चौलाई (Amaranth) के पौधों की कटाई एक बार या कई बार की जा सकती है।
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