विश्व के विभिन्न भागों में जौ की खेती (Barley Farming) पुराने समय से ही की जा रही है। अन्य रबी फसलों के मुकाबले जौ की खेती मौसम की विपरीत परिस्थितियों जैसे- सूखा, कम उपजाऊ मिट्टी तथा हल्की लवणीय और क्षारीय भूमि पर उत्पादन के लिए अधिक सक्षम है। भारत के अधिकांश राज्यों में जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और जम्मू व कश्मीर में जौ की फसल (Barley Crop) उगायी जाती है।
जौ की फसल (Barley Crop) विभिन्न उद्देश्यों जैसे दाने, पशु आहार, मुर्गीपालन, चारा तथा अनेक औद्यौगिक उपयोग (बेकरी, शराब, माल्ट, पेपर, फाइबर पेपर) के लिए उगायी जाती है। इसके अलावा कभी-कभी जौ को भूनकर या पीसकर सत्तू के रूप में भी किया जाता है। जौ के दाने में लगभग 10.6 प्रतिशत प्रोटीन, 64 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट तथा 2.1 प्रतिशत वसा होती है। इसके 100 ग्राम दानों में 50 मिलीग्राम कैल्शियम, 6 मिलीग्राम आयरन, 31 मिलीग्राम विटामिन बी-1 तथा 0.10 मिलीग्राम विटामिन बी-2 व नियासीन की भी अच्छी मात्रा होती है।
जौ का क्षेत्रफल और वितरण (Area and Distribution of Barley)
जौ एक उष्ण-कटिबन्धीय पौधा है, जौ की खेती विश्व के अधिकांश भागों में की जाती है। परन्तु इसकी खेती शीतोष्ण और समशीतोष्ण जलवायु में सफलतापूर्वक की जाती है। जौ (Barley) का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश चीन है। भारत के अधिकांश राज्यों में जौ की खेती की जाती है परंतु सबसे अधिक उत्पादन करने वाला राज्य उत्तर प्रदेश है। इसके बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा तथा बिहार आदि राज्यों में भी जौ का उत्पादन अच्छा हो जाता है।
जौ की खेती के लिए जलवायु (Climate for Barley Cultivation)
जौ शीतोष्ण जलवायु की फसल है, लेकिन सफलतापूर्वक समशीतोष्ण जलवायु में भी जौ खेती की जा सकती है। जौ की खेती समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है। जौ की खेती (Barley Farming) के लिए ठंडी और नम जलवायु उपयुक्त रहती है। जौ की फसल के लिए न्यूनतम तापमान 35-40 डिग्री, उच्चतम तापमान 72-86 डिग्री और उपयुक्त तापमान 70 डिग्री होता है।
जौ की खेती के लिए भूमि (Land for Barley Farming)
सामान्यतया जौ की खेती (Barley Farming) सभी भूमियों मे सफलतापूर्वक की जा सकती है। वैसे जौ फसल के लिए उचित जल-निकास वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। भारी भूमि जिनमें जल – निकास की सुविधाएं नहीं होती है, वे भूमि जौ की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं। जौ की खेती अधिकतर रेतीली भूमियों में की जाती है।
जौ की खेती (Barley Farming) के लिए ऊंची भूमियां भी उपयुक्त रहती हैं। ऊसर भूमि में भी जौ की खेती आसानी से की जा सकती है और लवड़ों के प्रति यह गेहूं की अपेक्षा अधिक सहनशील होता है। जौ की फसल को सूखे, क्षारीय और पाले की दशाओं में रवि के मौसम में उगाया जाता है।
जौ की खेती के लिए प्रजातियां (Barley Varieties for Cultivation)
जौ की दो प्रजातियां हैं – होरडियम डिस्टिन जिसकी उत्पत्ति मध्य अफ्रीका और होरडियम वलगेयर है जिसका उत्पत्ति स्थल यूरोप माना जाता है। इन दोनों प्रजातियों में इसकी होरडियम वलगेयर प्रजाति अधिक प्रचलित है। जौ (Barley) की उपयुक्त किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सिंचित क्षेत्रों में समयानुसार बुआई: डी डब्लू आर बी – 52, डी एल – 83, आर डी – 2668, आर डी – 2503, डी डब्लू आर – 28, आर डी – 2552, बी एच – 902, पी एल – 426 (पंजाब), आर डी – 2592 (राजस्थान) आदि किस्में प्रमुख है।
सिंचित क्षेत्रों में विलम्ब से बुआई: आर डी – 2508, डी एल – 88 आदि किस्में प्रमुख है।
असिंचित क्षेत्रों में समय से बुआई: आर डी – 2508, आर डी – 2624, आर डी – 2660, पी एल – 419 (पंजाब) आदि किस्में प्रमुख है।
क्षारीय एवं लवणीय भूमि के लिए: आर डी – 2552, डी एल – 88, एन डी बी – 1173 आदि किस्में प्रमुख है ।
माल्ट जौ: बी सी यु – 73, अल्फा – 93, डी डब्लू आर यु बी – 52 आदि किस्में प्रमुख है।
पशु चारा के लिए: आर डी – 2715, आर डी – 2552 आदि किस्में प्रमुख है।
जौ के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Barley)
जौ की खेती (Barley Farming) के लिए खेत की 2 से 3 बार जुताई करना चाहिए ताकि खेत में से खरपतवार को अच्छी तरह नष्ट किया जा सके। खेत में पाटा लगाकर भूमि समतल और ढेलों रहित कर लेनी चाहिए। खरीफ फसल की कटाई के बाद हैरो से जुताई करनी चाहिए, इसके बाद 2 क्रोस जुताई हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिए। पहले बोयी गई फसल की पराली को हाथों से उठाकर नष्ट कर दें ताकि दीमक का हमला ना हो सके।
जौ की खेती के लिए बीज दर (Seed Rate for Barley Cultivation)
जौ की खेती (Barley Farming) के लिए समयानुसार बुवाई करने से 100 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। यदि बुवाई बिलम्ब से करना है, तो बीज की मात्रा में 15 से 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर देनी चाहिये।
जौ के बीज का उपचार (Barley Seed Treatment)
जौ की खेती (Barley Farming) से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बीज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बीज सदैव राष्ट्रीय बीज निगम, राज्य बीज निगम, भारतीय राज्य फार्म निगम, अनुसंन्धान संस्थानों कृषि विश्वविद्यालयों और विश्वसनीय स्रोत से ही खरीदना चाहिये। बहुत से कीड़ों और बीमारियों के प्रकोप को रोकने के लिए बीज का उपचारित होना बहुत आवश्यक है।
कंडुआ व स्मट रोग की रोकथाम के लिए बीज को वीटावैक्स या मैन्कोजैब 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। दीमक की रोकथाम के लिए 100 किलोग्राम बीज को क्लोरोपाइरीफोस 20 ई सी की 150 मिलीलीटर द्वारा बीज को उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये।
जौ की बुवाई का समय (Barley Sowing Time)
सिंचित क्षेत्रों में जौ की बुवाई नवंबर के द्वितीय सप्ताह से लेकर नवंबर के अंतिम सप्ताह तक करनी चाहिए। देर से बुवाई करने पर ऊपज कम प्राप्त होती है। असिंचित क्षेत्रों में 15 से 30 अक्टूबर तक जौ की बुवाई की जाती है। वही पछेती बुवाई 15 से 20 दिसंबर तक कर सकते हैं।
जौ फसल में उर्वरक और प्रयोग (Fertilizer and Use)
जौ (Barley) की सिंचित फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। असिंचित क्षेत्रों के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर मात्रा पर्याप्त होती है। खेत की तैयारी के समय 7 से 10 टन अच्छी सड़ी गोबर या कम्पोस्ट खाद डालकर अच्छी प्रकार से मिट्टी में मिला देनी चाहिये।
सिंचित क्षेत्रों के लिए फास्फोरस और पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा एवं नाइट्रोजन की आधी मात्रा को मिलाकर बुवाई के समय देना चाहिये। असिंचित क्षेत्रों के लिए सम्पूर्ण पोटाश 30 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम व नाइट्रोजन 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई के समय पंक्तियों में देनी चाहिये। सिंचित क्षेत्रों के लिए शेष 30 किलोग्राम नाइट्रोजन की मात्रा प्रथम सिंचाई के साथ देनी चाहिये।
जौ फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management)
जौ की फसल (Barley Crop) से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 2-3 सिंचाईयो की आवश्यकता पड़ती है। पहली सिंचाई बुवाई के 30 दिन बाद, दूसरी सिंचाई बुवाई के 60-65 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई बालियों में दूध पढ़ते समय अर्थात 80-85 दिन बाद की जाती है।
जौ फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management)
अच्छी फसल और अधिक उत्पादन के लिए प्रारम्भिक अवस्था से ही खरपतवार की रोकथाम बहुत जरूरी है। बुवाई के 48 घंटे के अंदर पैंडीमैथालीन 30 प्रतिशत ई सी 1 लीटर को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें। चौड़े पत्तों वाले खरपतवारों की रोकथाम के लिए खरपतवार के अंकुरण के बाद 2,4-D 250 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के 20-25 दिनों के बाद छिड़काव करें। सकरी पत्ती जैसे खरपतवारों की रोकथाम के लिए आइसोप्रोटिउरॉन 75 प्रतिशत डब्लु पी 500 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें।
जौ के लिए फसल चक्र (Crop Rotation for Barley)
सामान्यतः जौ (Barley) के लिए वे सभी फसल चक्र उचित रहते है, जो गेहूँ के लिए उपयुक्त होते है। सामान्यतौर पर खरीफ की सभी फसलें जैसे धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंगफली, मूंग आदि के उपरांत जौ की फसल ली जा सकती है। रबी की सभी फसलें (गेहूँ, चना, मटर, सरसों आदि ) के साथ जौ की मिलवां या अंतर- फसली खेती की जा सकती है। असिंचित क्षेत्रों में जौ को प्रायः चना, मटर या मसूर के साथ ही मिलाकर बोया जाता है।
जौ फसल में कीट और प्रबंधन (Pests and Management)
जौ की फसल (Barley Crop) में प्रमुख कीटो मे दीमक, गुजिया, वीविल एवं माहूँ आदि का प्रकोप अधिक रहता है।
कीट रोकथाम
- जौ (Barley) की बुवाई से पहले दीमक के नियंत्रण हेतु क्लोरपाईरीफॉस 20 प्रतिशत ईसी की 3 मिली अथवा थायोमेथाक्साम 30 प्रतिशत ऍफएस 3 मिली प्रति लीटर किग्रा बीज की दर से बीज को शोधित करना चाहिए।
- ब्यूवेरिया बैसियाना 1.15 बायोपेस्टीसाइड (जैव कीटनाशी) की 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर 60 से 75 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छीटा देकर 8 से 10 दिन छाया में रखकर बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई के समय भूमि में मिलाने से दीमक सहित भूमि जनित कीटों का नियंत्रण हो जाता है।
- खड़ी फसल में दीमक या गुजिया के नियंत्रण हेतु क्लोरिपाईरीफॉस 20 प्रतिशत ईसी 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।
- माहूँ कीट के नियंत्रण के लिए डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ईसी अथवा आक्सीडेमेटान – मिथाइल 25 प्रतिशत ईसी के 1.0 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा थायोमेथाक्सान 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी 500 ग्राम लगभग 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
जौ फसल में रोग और प्रबंधन (Diseases and Management)
जौ की फसल (Barley Crop) मे आवृत कंडुआ रोग, पत्ती का धारीदार रोग, पत्ती का धब्बेदार रोग, अनावृत कंडुआ रोग और गेरुई रोग अधिक लगता है।
रोग रोकथाम
- बीज उपचार: अनावृत कंडुवा, आवृत कंडुवा, पत्ती का धारी दार रोग एवं पत्ती के धब्बे दार रोगों के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी 2 ग्राम अथवा कार्बोक्सिन 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से बीज शोधन कर बुवाई करना चाहिए।
- पर्णीय उपचार: गेरुई एवं पत्ती धब्बा रोग एवं पत्ती धार रोग के नियंत्रण हेतु जिरम 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2.0 किग्रा अथवा मेन्कोजेब 75 डब्ल्यूपी को 2.0 किग्रा अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्ल्यूपी की 2.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
- गेरुई के नियंत्रण के लिए प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी की 500 मिली प्रति हेक्टेयर पानी लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
जौ फसल की कटाई और गहाई (Harvesting and Threshing)
गेहूँ की अपेक्षा जौ (Barley) की फसल जल्दी पकती है। दानों में 18 से 20 प्रतिशत नमी रहने पर कटाई करते हैं। नवम्बर के आरम्भ में बोई गई फसल मार्च के अन्तिम सप्ताह में पक कर तैयार हो जाती है। पकने के बाद फसल की कटाई तुरन्त कर लेनी चाहिए अन्यथा दाने खेत में झड़ने लगते हैं और कटाई हँसियाँ से या बड़े स्तर पर कम्बाइन हारवेस्टर से की जा सकती है। हाथ से काटी गयी फसल को खलिहान में 4 से 5 दिन सुखाने के बाद थ्रेशर से मड़ाई कर लेनी चाहिए।
जौ फसल की उपज और भंडारण (Barley Crop Yield and Storage)
जौ की अच्छी फसलो से सिंचित अवस्था में 40 से 50 कुन्टल तक दाना तथा 45 से 55 कुन्टल प्रति हेक्टेयर तक भूसे की उपज प्राप्त की जा सकती है। असिंचित जौ की फसल (Barley Crop) से 7 से 15 कुन्टल प्रति हेक्टयर दाने की उपज प्राप्त की जाती है। भंडारण अच्छी तरह सुखाने के बाद जब दानों में नमी का अंश 10-12 प्रतिशत रह जाये, उचित स्थान पर भंडारण करते है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
राजस्थान अपने विशाल खुले स्थानों और अनुकूल जलवायु का लाभ उठाते हुए, भारत में सबसे बड़ा जौ उत्पादक राज्य है।
भारत में जौ रबी मौसम के दौरान अक्टूबर से नवंबर तक बोया जाता है और मार्च से अप्रैल तक काटा जाता है। जौ (Barley) उत्पादन के प्रमुख राज्य राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश हैं।
पहली जुताई डिस्क हैरो या मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए ताकि “रम्पा” को उखाड़ा जा सके और सर्दियों में आने वाले कीटों और खरपतवारों को नष्ट किया जा सके। बुआई से पहले खेत को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए और भरपूर सिंचाई करनी चाहिए।
जौ (Barley) मुख्य रूप से एक अनाज है, जिसे भारत में जौ के नाम से जाना जाता है। चावल, गेहूं और मक्का के बाद यह चौथी सबसे महत्वपूर्ण अनाज की फसल है। इसे विभिन्न खाद्य तैयारियों में उपयोग करने के लिए माल्ट में परिवर्तित किया जाता है।
यह ठंडी, शुष्क, हल्की सर्दियों वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से सूखा, उपजाऊ दोमट या हल्की, चिकनी मिट्टी में सबसे अच्छा बढ़ता है। यह हल्की, सूखी मिट्टी पर भी अच्छा लगता है और अन्य अनाज फसलों की तुलना में कुछ हद तक क्षारीय मिट्टी को बेहतर सहन करता है। चुनने के लिए जौ की कई किस्मों के साथ, क्षेत्रीय रूप से अनुकूलित एक का चयन करना सुनिश्चित करें।
जौ को उपोष्णकटिबंधीय जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। फसल को बढ़ती अवधि के दौरान लगभग 12-15 0C और परिपक्वता के समय लगभग 30 0C की आवश्यकता होती है। यह विकास के किसी भी चरण में पाले को सहन नहीं कर सकता है और फूल आने पर पाले की घटना उपज के लिए अत्यधिक हानिकारक होती है।
जौ की फसल (Barley Crop) 120-125 दिन में पककर तैयार होती है। इस किस्म की उपज 40-50 क्विंटल प्रति हैक्टयेर तक ली जा सकती है।
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