Basmati Rice Cultivation in Hindi: बासमती धान विश्व मे अपनी एक विशिष्टि सुगंध तथा स्वाद के लिए भली भांति जाना जाता है। इसकी खेती भारत में पिछले सैकड़ो वर्षो से की जाती रही है। भारत तथा पाकिस्तान को बासमती धान का जनक माना जाता है। हरित क्रन्ति के बाद भारत में खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता प्राप्त करके बासमती धान की विश्व में मॉंग तथा भविष्य में इसके निर्यात की अत्यधिक संभावनो को देखते हुए इसकी वैज्ञानिक खेती काफी महत्वपूर्ण हो गयी है। किसी भी फसल के अधिक उत्पादन के साथ साथ अच्छी गुणवत्ता में फसल की किस्मो का अत्यधिक महत्व है।
बासमती चावल में विशिष्टि सुगंध और स्वाद होने के कारण इसकी विभिन्न किस्मों का अलग अलग महत्व है। बासमती धान की पारस्परिक किस्मों से उपज काफी कम होती है। परन्तु बासमती धान की नयी उन्नत किस्में अधिक उपज देने वाली है। सामान्यत: बासमती धान की खेती (Basmati Rice Farming) सामान्य धान की खेती के समान ही की जाती है। परन्तु बासमती धान की अच्छी पैदावार और गुणवत्ता के लिए निम्नलिखित सस्य क्रियाएं अपनायी जानी चाहिये। जिनका वर्णन इस लेख में किया गया है।
बासमती धान की खेती के लिए मुख्य बातें (Main points for Basmati rice cultivation)
- प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करना चाहिए और बीज उपचार अवश्य करना चाहिए।
- 1 किलोग्राम बीज की नर्सरी के लिए कम से कम 25 वर्ग मीटर क्षेत्र अवश्य लें।
- पौध उखाडने से पहले नर्सरी में पानी भरें और पौध की जडों को उखाड़ने के बाद आधा से एक घण्टे तक ट्राइकोडर्मा अथवा कार्बेन्डाजिम के घोल में डूबोकर पौध उपचार करें।
- 20 से 25 दिन की पनीरी (पौध) का ही प्रयोग करें।
- 20 x 20 सेमी की दूरी पर लाइनों में रोपाई करें। ज्यादा गहरा लगाने से उपज घट जाती है अतः एक इंच से ज्यादा गहरा न रोपें।
- बासमती धान (Basmati Rice) की बची हुई नर्सरी को अवश्य नष्ट कर दें।
- उर्वरको का प्रयोग मिट्टी की जॉच कराकर ही आवश्यकतानुसार करें। यूरिया का उपयोग कम और पुष्पन अवस्था से पहले कर लेना चाहिए।
- बासमती धान (Basmati Rice) में पोटाश और जिंक का प्रयोग अवश्य करें।
- रोपाई के 15 दिन बाद खेत में पानी भरकर हल्का पाटा चलाने से फुटाव अधिक होता है।
- खेत में लगातार पानी भरकर न रखें और घास व खरपतवार न होने दें। डोल हमेशा साफ रखें।
- रोगित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें।
- कल्ले निकलते समय एवं बाली निकलते समय खेत में पानी की कमी (सूखा) न होने दें।
- रसायनों का उपयोग केवल वैज्ञानिक की सलाह से ही करना चाहिए एवं बाली निकलने के बाद कोई स्प्रे नहीं करना चाहिए।
- किसान भाई रसायनों का घोल सही मात्रा में ही बनाए, अपनी तरफ से मात्रा न बढाएं। पानी की पूरी मात्रा का प्रयोग करें।
- बासमती धान (Basmati Rice) की कटाई जमीन की सतह से 6-8 इंच ऊपर से करें।
- कटाई करते समय फसल का ढेर न बनाये बल्कि एक समान पतली सतह (लेयर) बनाये।
- धान को अच्छे से साफ/ ओसाई करके ही बिक्री के लिये लेकर जायें।
- धान का भण्डारण करने के लिए जूट के बैगों का ही प्रयोग करें।
बासमती धान की उचित किस्म का चयन (Selection of proper variety of Basmati rice)
वर्तमान समय में बासमती धान (Basmati Rice) की लगभग 45 से 50 प्रजातियां हैं। गुणवत्ता के आधार पर तरावडी बासमती, टाइप 3, बासमती 370, और बासमती सीएसआर 30 उम्दा पारम्परिक प्रजातियाँ हैं। इन प्रजातियों की उपज क्षमता तो कम है लेकिन उच्च गुणवत्ता के कारण देश – विदेश में अधिक मूल्य मिलता है। ये प्रजातियां अधिक बढने वाली होती है और इन प्रजातियों में खाद एवं पानी की आवश्यकता भी कम होती है।
इनके अलावा बासमती की अन्य प्रजातियाँ पूसा बासमती 1, पूसा बासमती 1121, उन्नत पूसा बासमती 1, पूसा बासमती 6, पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1637, पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1728, पंजाब बासमती 4, पंजाब बासमती 5, हरियाणा बासमती 2, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1885, पूसा बासमती 1886, पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1985, पूसा बासमती 1979 आदि प्रमुख प्रतातियाँ है जिनकी उपज अपेक्षाकृत अधिक है।
बासमती धान की नर्सरी तैयारी के आवश्यक बिंदु (Essential points for nursery preparation of Basmati rice)
- बासमती धान (Basmati Rice) की नर्सरी बुवाई से पहले, खेत को लेजर लेवलर द्वारा समतल अवश्य करायें और सम्भव हो तो छोटी-छोटी क्यारी बना लें।
- बासमती धान का बीज सदैव भरोसे वाले स्रोत जैसे- प्रमाणित संस्था या अनुसंधान केन्द्र से ही खरीदें।
- बासमती धान के बीज की बुवाई से पहले बीज का शुद्धीकरण अवश्य करें। इसके लिए एक टब या बाल्टी में 160 ग्राम सादा नमक व 10 लीटर पानी का घोल बनाकर उसमें बीज को धीरे-धीरे छोडें। ऐसा करने से हल्के बीज पानी की ऊपरी सतह पर तैरने लगते हैं इन बीजों को निकाल कर अलग कर देना चाहिए। अच्छे बीजो को साफ पानी में दो बार अवश्य धोयें।
- बीज उपचार हेतु 20 ग्राम कार्बेन्डाजिम और 1 ग्राम स्ट्रप्टोसाइक्लीन और पानी की उचित मात्रा के घोल में 10 किलोग्राम अच्छे बीजों को भिगो कर 10 से 24 घन्टे के लिए छाया में रखें।
- बीज उपचार के बाद इन बीजों को जूट के बैग में अथवा ढेर बनाकर छायादार स्थान पर अंकुरित होने के लिए लगभग 24 घन्टे के लिए रख दे। बीजों को सडन से बचाने के लिए नमी अवश्य बनाये रखें। ऐसा करने से एक समान अंकुरण होता हैं।
- एक किलोग्राम बीज को बोने के लिए कम से कम 25 वर्ग मीटर क्षेत्र आवश्य लेना चाहिए।
- बासमती धान (Basmati Rice) नर्सरी की क्यारी अच्छी तरह से समतल होनी चाहिए।
- नर्सरी क्षेत्र की अन्तिम पडलिगं से ठीक पहले नत्रजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक और आयरन की सन्तुलित मात्रा प्रयोग करना चाहिए।
- अंकुरित बीजों को शाम के समय एक सामान रूप से छिटक कर बोना चाहिए।
- बीज छिटकते समय नर्सरी में 2-3 सेन्टीमीटर पानी भरा होना चाहिए। नर्सरी क्षेत्र में खरपतवार नही होने चाहिए और पानी का स्तर धीरे-धीरे बढाना चाहिए।
- पौध को पानी भर कर ही उखाडना चाहिए, सुखे में पौध उखाडने पर पादपगलन (झन्डा रोग) हो सकता है।
बासमती धान की नर्सरी के लिए उर्वरक और खाद (Fertilizer and Manure for Basmati Rice Nursery)
एक एकड़ क्षेत्र की रोपाई के लिए लगभग 150 वर्ग मीटर क्षेत्र में बासमती धान (Basmati Rice) की नर्सरी की बुवाई करनी चाहिए। इसके लिए 6 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है। इसके लिए निम्न खादों का प्रयोग करें, जैसे-
- बासमती धान (Basmati Rice) की नर्सरी की तैयारी करते समय 3 कुंतल अच्छी सड़ी गोबर की खाद या 1 कुंतल वर्मी कम्पोस्ट को एक समान मात्रा में मिला दें।
- नर्सरी बुवाई से ठीक पहले 2.50 किलो ग्राम एनपीके (12:32:16), एक किलोग्राम यूरिया और 400 ग्राम जिंक सल्फेट का प्रयोग करें। जिंक सल्फेट को एनपीके साथ न मिलाएं।
- बुवाई के 10-12 दिन बाद एक किलोग्राम यूरिया का बुरकाव शाम के समय नर्सरी में हल्का पानी लगाकर करें। यदि नर्सरी की बढ़वार अच्छी नहीं हो रही है तो नर्सरी बुवाई के 15 दिन बाद शाम के समय ही एक टंकी (15 लीटर क्षमता) में 250 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम जिंक सल्फेट और 50 ग्राम फॅरस सल्फेट का घोल बनाकर एक समान रूप से स्प्रे करें। आवश्यक होने पर दो दिन के अन्तराल पर इस स्प्रे को दोबारा कर सकते हैं।
बासमती धान की रोपाई करते समय आवश्यक बिंदु (Important points while transplanting Basmati rice)
- बासमती धान की खेती करने वाले कृषक भाई अपने खेतों को रबी फसल की कटाई के बाद लेजर लेवलर द्वारा समतल अवश्य करायें और सम्भव हो तो खेतो का आकार छोटा रखे। इससे सिंचाई में खर्च होने वाले पानी की मात्रा की बचत की जा सकती है।
- हरी खाद की बुवाई अवश्य करें। इसके लिए ढैचा/सनई/लोबिया या मूंग फसल की बुवाई करें। मूंग की फसल से किसान भाई हरी खाद के साथ-साथ आमदनी भी कर सकते हैं।
- बासमती धान (Basmati Rice) की रोपाई से पहले अपने खेतो में पानी भर कर हरी खाद को पडलिंग के समय ही रोटोवेटर द्वारा खेत में पलट दें। इससे जुताई लागत भी कम की जा सकती हैं।
- किसान भाई मृदा जॉच रिपोर्ट की संस्तुति के आधार पर ही अपने खेत में अन्तिम पडलिगं से ठीक पहले फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक और आयरन की सन्तुलित मात्रा का प्रयोग करें।
- नर्सरी से पौध / पनीरी को पानी भर कर ही उखाडना चाहिए। सुखे में पौध उखाडने पर बकाने (झन्डा रोग) हो सकता है।
- रोपाई के लिए 20 से 25 दिन की पौध का ही प्रयोग करना चाहिए। पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1847 की 18-22 दिन की पौध होने पर रोपाई कर देनी चाहिए।
- पौध को उपचारित करने के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम प्रति लीटर पानी की दर के घोल में कम से कम 1 घन्टे के लिए डुबो कर अवश्य रखें।
- पौध लम्बी होने पर रोपाई से पहले पौध का ऊपरी भाग लगभग 3 से 4 सेन्टीमीटर तोडकर नष्ट कर देना चाहिए।
- पौध की रोपाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए। 2 से 3 मीटर रोपाई करने के बाद एक 40 सेन्टीमीटर के रास्ते छोड देने चाहिए। ऐसा करने से हवा व सूर्य का प्रकाश मिलने के कारण कीटों और बीमारियों का प्रकोप कम होता है और उपज में वृद्धि होती है।
- रोपाई करते समय पंक्ति से पंक्ति व पौधे से पौधे की दूरी 20 सेन्टीमीटर रखनी चाहिए।
- बासमती धान (Basmati Rice) पौध की रोपाई 2 से 3 सेन्टीमीटर से ज्यादा गहरी नही करनी चाहिए।
- नाली, मेडों, खेतों और उनके आस-पास के क्षेत्र को सदा साफ रखना चाहिए।
- रोपाई करते समय ही खेत में दिखाई देने वाले ऊंचे स्थानों को उसी समय समतल भी करते रहना चाहिए ऐसा करने से सिंचाई जल की काफी मात्रा में बचत की जा सकती है।
- अधिक फुटाव के लिए व पहली रसायन की लागत को बचाने के लिए रोपाई के 15 से 20 दिन बाद खेत में पानी भर कर हल्का पाटा (15 से 18 किलोग्राम वजन) एक से दो बार चलाना चाहिए।
बासमती धान में उर्वरक और खाद का प्रयोग (Use of fertilizers and manure in Basmati rice)
- बासमती धान (Basmati Rice) की परम्परागत किस्मों में अपेक्षाकृत कम नत्रजन की आवश्यकता होती हैं। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण और फसल की मांग के आधार पर आवश्यकतानुसार करना चाहिए।
- पूरी फसल के दौरान ऊँची बढने वाली प्रजातियों के लिए प्रति हैक्टेयर 100 किग्रा यूरिया, 90 किग्रा डीएपी तथा 70 किग्रा एमओपी (पोटाश) और 25 किग्रा जिंक सल्फेट की मात्रा पर्याप्त होती है। बौनी प्रजातियों के लिए यूरिया 140 किग्रा बाकी उर्वरक की मात्रा समान है।
- डीएपी और एमओपी (पोटाश) की पूरी मात्रा अंतिम पडलिंग के समय प्रयोग करनी चाहिए। जिंक को कभी भी फॉस्फेटिक उर्वरको के साथ मिलाकर न दें। यूरिया की आधी मात्रा व जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा रोपाई के 10-15 दिन बाद एवं शेष मात्रा को दो बार में आवश्यकतानुसार प्रयोग करें।
- गोभ अवस्था आने के बाद यूरिया का प्रयोग नही करना चाहिए। गोभ में बाली बनते समय घुलनशील पोटाश (0:0:50) की 5 किग्रा मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करने से दानों में चमक आती है, दाने का विकास अच्छा होता है और बीमारी भी कम आती है।
बासमती धान में जल प्रबन्धन कैसे करें (How to do water management in Basmatee rice)
- बासमती धान (Basmati Rice) की रोपाई के समय में केवल 2-3 सेमी जल पर्याप्त है। खेतों में रोपाई के बाद दरार बनने से पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
- बाद में जल स्तर धीरे-धीरे बढ़ा कर 3-5 सेमी तक कर देना चाहिए। यह 3-5 सेमी जल स्तर पहले 30 दिन तक बनाये रखें। इससे खरपतवार नियंत्रण में सहायता मिलेगी।
- इसके पश्चात दाने भरने तक केवल खेत गीला रखने से भी पूरी पैदावार मिलेगी। खेत में दरार न पड़ने दें। किन्तु बाल निकलने एवं दाने में दुग्ध बनने की दशा में पानी खेत में भरा रखने से लाभ होता है।
- बासमती धान (Basmati Rice) में मृदा की दशा के अनुसार कटाई से लगभग 10 से 15 दिन पूर्व सिचाई बन्द कर देनी चाहिए।
बासमती धान में खरपतवार प्रबन्धन कैसे करें (How to manage weeds in Basmati rice)
- खरपतवारों की अधिकता से रोगों और कीटों का प्रकोप भी अधिक होता हैं, जिससे लागत मूल्य में वृद्धि होती है साथ में उपज तथा गुणवत्ता पर भी नकारात्मक प्रभाव पडता हैं। खरपतवारों के द्वारा धान की उपज में 10 से 60 प्रतिशत कमी हो सकती है।
- मानव श्रम उपलब्ध होने पर बासमती धान (Basmati Rice) की रोपाई के बाद दो बार कमश: 20 व 40 दिन पर निराई कर देनी चाहिए या हाथों के द्वारा खरपतवारों को निकालवा देना चाहिए।
- खरपतवारनाशी प्रयोग करते समय खेत में 2-3 सेमी पानी होना चाहिए। रसायनिक नियंत्रण हेतु नीचे दिये गये किसी एक खरपतवारनाशी का प्रयोग करना चाहिए, जैसे-
- बासमती धान (Basmati Rice) रोपाई के बाद 3 दिन के अन्दर खरपतवारनाशी ब्यूटाक्लोर 50 ईसी, 3.0 लीटर प्रति हेक्टयर का प्रयोग कर सकते है।
- अन्दर खरपतवारनाशी प्रेटीलाक्लोर 50 ईसी, 1.5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर का भी रोपाई के बाद 3 दिन के अन्दर प्रयोग किया जा सकता है।
- बासमती धान रोपाई के बाद 15 से 20 दिन के अन्दर खरपतवारनाशी विसपाइवैक सोडियम 10 ईसी, 200 मिलीलीटर मात्रा प्रति हेक्टयर का प्रयोग किया जा सकता है।
- खरपतवारनाशी मेटासल्फ्यूरान मिथाईल 20 डब्ल्यूपी, 20 ग्राम मात्रा प्रति हेक्टयर का प्रयोग भी धान रोपाई के बाद 15 से 20 दिन के अन्दर किया जा सकता है।
बासमती धान में पाटा का प्रयोग करने के फायदे (Benefits of using pata in Basmati rice)
बासमती धान (Basmati Rice) के खेतों में अधिक फुटाव के लिए कृषक भाई विभिन्न दवाओं का उपयोग करते है, जबकि किसी भी रसायन की संस्तुति अधिक फुटाव के लिए नहीं की गई है। खेत में अधिक फुटाव (अधिक कल्ले निकलना) के लिए आसान तकनीक हैं, जिसमें खेत में धान की रोपाई करने के बाद 15-25 दिन के मध्य एक हल्का पाटा या सीधी लकडी का लट्ठा जिसका वजन लगभग 12-18 किलोग्राम तक और लम्बाई लगभग 2.25 मीटर हो को खेत में पानी भरकर एक अथवा दो बार रस्सी की सहायता से चलाया जा सकता हैं, एक सप्ताह के अन्तराल पर दूसरी बार भी चलाया जा सकता है। इस तकनीक का उपयोग करने से निम्न फायदे होते हैं, जैसे-
- बासमती धान (Basmati Rice) में ज्यादा कल्ले निकलते हैं।
- मिट्टी की ऊपरी सतह अस्त-व्यस्त होने से भूमि में वायु संचार अधिक होता है और जड़ों का विकास बहुत अच्छा होता हैं।
- भूमि में दरार नहीं पडती और पानी की बचत होती हैं।
- पत्ती लपेटक और तना छेदक कीट से फसल की प्रारम्भिक अवस्था में बचाव होता हैं।
- किसान भाई पहली कीटनाशक की लागत लगाने से भी बच सकते है। पूरे पौधों की बढ़वार सही तरीके से होती हैं।
- खेतों से काई की समस्या से भी बचाव करने में मदद मिलती हैं।
- छोटे-छोटें खरपतवारों को भी नष्ट करने में मदद मिलती हैं।
- बासमती धान (Basmati Rice) की अधिक उपज प्राप्त होती हैं।
बासमती धान में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in Basmatee rice)
धान की फसल में अन्य धान्य फसलों की तुलना में सबसे अधिक कीट और रोग नुकसान पहुँचाते है। बासमती धान (Basmati Rice) में कीट एवं रोगों के प्रकोप से उपज के साथ साथ गुणवत्ता में भी हास होता है। जिसमें बासमती चावल की मॉग स्थानीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ारों में काफी घट जाती है। जिसके परिणाम स्वरुप किसानो को भी भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।
बासमती धान को निम्नलिखिति कीट नुकसान पहुँचाते है; धान का भूरा एवं सफेद फुदका, धान का तना बेधक, गन्धी कीट, धान का पत्ती लपेटक कीट आदि, बासमती धान को निम्नलिखित रोग मुख्य रूप से अधिक हानि पहुँचाते है; धान का झोंका (ब्लास्ट) रोग, धान का भूरा धब्बा रोग, धान का पर्णच्छद झुलसा रोग, धान की जीवाणु पत्ती झुलसा रोग, धान का खैरा रोग, धान का मिथ्या कण्डुआ रोग, धान का पर्णच्छद विगलन रोग आदि।
उपरोक्त कीटों और रोगों के नियत्रंण के लिए रासायनिक तथा जैविक साधनों का उचित मिश्रण बासमती धान (Basmati Rice) की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए उचित माना जाता है। जैविक नियंत्रण से धान के मित्र कीटों की संख्या भी बनी रहती है। बासमती धान में कीट और रोग रोकथाम सामान्य धान की खेती के समान ही की जाती है।
बासमती धान की कटाई, मड़ाई और भंडारण (Harvesting, Threshing and Storage of Basmati Rice)
जब बासमती धान (Basmati Rice) की बाली में 85-90 प्रतिशत दानों का रंग हरे सुनहरे पीले रंग में बदल जाये तो फसल को जमींन की सतह से 6-8 इंच ऊपर से काट लेना चाहिए। फसल को एक समान पतली तह में फैलाना चाहिए ताकि फसल जल्दी सुख जाये। फसल को सुखाने के तुरन्त बाद मड़ाई करके धान को छाव में सुखाना चाहिए।
धूप में सुखाने पर चावल की गुणवत्ता खराब हो जाती है। 10-14 प्रतिशत नमी पर सुखाकर जूट के बोरों में भरकर भण्डारण ऐसी जगह करें, जहाँ नमी का प्रकोप न हो। धान को कभी भी प्लास्टिक बैगों में भर कर न रखें। इन बैगो में भरने से धान की गुणवत्ता खराब हो जाती है, जिसके कारण किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नही मिल पाता हैं।
बासमती धान की फसल से पैदावार (Yield from Basmatee rice crop)
बासमती धान (Basmati Rice) की पैदावार, धान की किस्म और अन्य कई कारकों पर निर्भर करती है। बासमती धान की अर्द्ध बौनी किस्में, जो 135 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है, और इनसे प्रति हैक्टेयर 4-6 टन तक पैदावार मिल सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
बासमती धान (Basmati Rice) की खेती के लिए अच्छें जल धारण क्षमता वाली चिकनी या मटियारी मिट्टी उपयुक्त रहती है। आम तौर पर चावल के लिए पौधों की दूरी 30 सेमी x 25 सेमी होती है। रोपण से 3 सप्ताह पहले मुख्य खेत की सूखी जुताई की जाती है और 5-10 सेमी खड़े पानी से उसे डुबोया जाता है। 10 टन जैविक खाद या 10-20 टन हरी खाद डालने के बाद खेत को ठीक से समतल किया जाता है।
बासमती चावल (Basmati Rice) कई तरह की मिट्टी जैसे गाद, दोमट और बजरी पर उगता है। यह क्षारीय और अम्लीय मिट्टी को भी सहन कर सकता है। लेकिन इसके लिए उच्च जल धारण क्षमता वाली जलोढ़ मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है।
बासमती चावल (Basmati Rice) की फसल को एक गर्म और नम जलवायु की जरूरत है। यह सबसे अच्छा उच्च नमी, लंबे समय तक धूप और पानी की एक आश्वस्त आपूर्ति वाले क्षेत्रों के लिए अनुकूल है। चावल को उगाने के लिए 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान और उच्च आर्द्रता के साथ 100 सेमी से अधिक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। फसल की जीवन अवधि के दौरान आवश्यक औसत तापमान 21 से 42 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
बासमती धान (Basmati Rice) की कई किस्में हैं और इनमें से कुछ बेहतरीन किस्में ये रहीं; 1121 बासमती, पूसा 834, पंत धान-12, पूसा-1401, स्कुअस्त-के धान, कस्तूरी बासमती और तरावड़ी बासमती ये किस्में बेहतर मानी जाती है।
बासमती धान (Basmati Rice) की बुवाई जून के मध्य से जुलाई के पहले सप्ताह में करनी चाहिए। जल्दी पकने वाली प्रजातियों के लिए जून के दूसरे पखवाड़े में और देर से पकने वाली प्रजातियों के लिए मध्य जून तक बुवाई कर देनी चाहिए।
कम अवधि में पकने वाली पूसा बासमती पीबी 1692 जो किसानों द्वारा बेहद पसंद की जाती है। यह किस्म 115 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म कम पानी वाले क्षेत्रों में भी बेहतर अच्छा उत्पादन देती है। इस किस्म के चावल के दाने क्वालिटी में अच्छे होते हैं, जो कि टूटते नहीं है। आमतौर पर बासमती धान (Basmati Rice) को तैयार होने में 120 से 130 दिनों का समय लगता है।
बासमती धान (Basmati Rice) की आवश्यकतानुसार सिचाई की जाती है। लेकिन रोपाई के 15 दिन बाद खेत में पानी भरकर हल्का पाटा चलाने से फुटाव अधिक होता है। खेत में लगातार पानी भरकर न रखें और घास व खरपतवार न होने दें। डोल हमेशा साफ रखें।
उचित सस्य क्रियाओं और उचित किस्म अपनाने पर बासमती धान (Basmati Rice) की शीघ्र पकने वाली किस्मों की प्रति हेक्टेयर औसत उपज 40 से 50 क्विंटल, मध्यम व देर से पकने वाली किस्मों से प्रति हेक्टेयर 50 से 60 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
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