Berseem Farming: बरसीम शुष्क और ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में रबी के मौसम मे उगाई जाने वाली हरे चारे की एक महत्वपूर्ण वार्षिक फसल है। अच्छी उपज और बढ़वार के लिए 18 से 25 डिग्री तक का तापमान सर्वोत्तम होता है। इसका वानस्पतिक नामट्राइफोलियम एलेक्सैड्रिनम है। प्राचीन काल मे बरसीम मिस्र की चारे की एक महत्वपूर्ण फसल थी। भारत में इसका आगमन उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में हुआ।
बरसीम (Berseem) का पौधा 30 से 60 सेमी तक लम्बा होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 20-21 प्रतिशत तक होती है तथा इसमे उपस्थित शुष्क पदार्थ की पाचनशीलता 70 प्रतिशत तक होती है। इसके हरे चारे को पौष्टिक आहार के रूप मे सभी पशु बड़े चाव से खाते है, जिससे उनके दूध उत्पादन, कार्य क्षमता और भार आदि में आपेक्षित वृद्धि भी होती हैं।
उत्पादन अधिक होने पर इसके चारे का साइलेज बनाकर भी रखा जा सकता हैं, जो चारे की कमी होने के समय उत्तम पशु आहार के रूप मे प्रयोग होता है। इस लेख में आप जानेगे की बरसीम (Berseem) की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें, ताकि इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सके।
बरसीम की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Berseem Cultivation)
बरसीम (Berseem) की खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण जलवायु को उपयुक्त माना जाता हैं। बरसीम की खेती वैसे तो किसी भी मौसम में की जा सकती हैं। लेकिन ठंड का मौसम इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता हैं। सर्दी के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं। सर्दी में पड़ने वाला पाला इसकी पैदावार को कुछ हद तक प्रभावित जरुर करता हैं, और अधिक गर्मी के मौसम में इसके पौधे अच्छे से विकास नही कर पाते।
बरसीम की खेती के लिए सामान्य बारिश उपयुक्त होती हैं। अधिक समय तक लगातार होने वाली बारिश इसकी पैदावार को प्रभावित करती हैं। बरसीम की खेती (Berseem Cultivation) के लिए शुरुआत में इसके बीजों में अंकुरण के वक्त 22 डिग्री के आसपास तापमान को उपयुक्त माना जाता हैं।
अंकुरण के बाद इसके पौधे अधिकतम 35 और न्यूनतम 10 से 15 डिग्री के बीच के तापमान पर अच्छे विकास कर सकते हैं। लेकिन इस दौरान पौधों को बार बार हल्की सिंचाई की जरूरत होती है। बरसीम के पौधों के लिए 22 से 25 डिग्री के बीच का तापमान सबसे उपयुक्त होता हैं।
बरसीम की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (Suitable Soil for Berseem Cultivation)
बरसीम की खेती (Berseem Cultivation) के लिए उचित जल निकासी वाली उपजाऊ भूमि उपयुक्त होती है। लेकिन अच्छे उत्पादन के लिए इसे हल्की बलुई दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए। इसकी खेती के लिए अम्लीय भूमि उपयुक्त नही होती। इसकी खेती के लिए सामान्य क्षारीय भूमि को उपयुक्त माना जाता हैं। इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 7 से 8 के बीच होना चाहिए।
बरसीम की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of Field for Berseem Cultivation)
बरसीम की खेती (Berseem Cultivation) के लिए शुरुआत में खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए खेत को खुला छोड़ दें। उसके बाद खेत में जैविक खाद के रूप में 10 से 12 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला दें। खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की दो से तीन बार कल्टीवेटर के माध्यम से तिरछी जुताई कर दें।
खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद रोटावेटर चलाकर खेत में मौजूद मिट्टी के ढेलों को ख़त्म कर दें। इससे मिट्टी भुरभुरी दिखाई देने लगती हैं। रोटावेटर चलाने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना दें। ताकि बारिश के दौरान खेत में जल भराव जैसी समस्या का सामना ना करना पड़ें।
बरसीम की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced Varieties for Berseem Cultivation)
बरसीम की खेती (Berseem Cultivation) के लिए जैसे – मैस्कावी, बुंदेलखंड बरसीम जिसे जेएचपी – 146 भी कहते है, जवाहर बरसीम – 1, जवाहर बरसीम – 5, वरदान, युवीपी – 103, युवीपी – 110, बीएल – 1, बीएल – 2, बीएल – 10, वीएल – 22, टेट्राप्लॉइड, जेबी – 1, खादरावी, टाइप 529, जैदी, बीएल – 2, फहाली, बीएटी – 678, सीडी, टाइप – 561, टी – 724 वार्डन, पूसा गैंट, जवाहर बरसीम – 2, डीप्लोइड, एचएफबी 600 और युपिबी – 10 आदि उन्नत किस्मों के खरपतवार रहित बीजों का ही उपयोग बुआई के लिए करना चाहिए।
बरसीम की खेती के लिए बीज की मात्रा और उपचार (Seed Quantity and Treatment for Cultivation)
बरसीम की खेती (Berseem Cultivation) के लिए बीज की मात्रा रोपाई के तरीके पर निर्भर करती है। सघन या छिडकाव विधि से रोपाई करने के दौरान अधिक बीज की आवश्यकता होती हैं। जबकि सीडड्रिल के माध्यम से रोपाई के दौरान बीज की कम जरूरत होती हैं।
दोनों विधि से रोपाई के दौरान प्रति हेक्टेयर 25 से 30 किलो बीज की जरूरत होती हैं। इसके बीजों की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को उपचारित करने के लिए राइजोबियम कल्चर या कैप्टन दावा का इस्तेमाल करना चाहिए। राइजोबियम कल्चर का इस्तेमाल काफी बेहतर होता है।
बरसीम की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing Time for Berseem Cultivation)
इसके बीजों की रोपाई सामान्य तौर पर सर्दी के मौसम में पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है। इस दौरान बरसीम (Berseem) के बीजों की रोपाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवम्बर तक की जाती हैं। इसके अलावा वर्तमान में काफी ऐसी किस्में भी हैं, जिन्हें अगेती पैदावार के रूप में जून महीने में भी आसानी से उगाया जा सकता है।
बरसीम की खेती के लिए बुवाई का तरीका (Sowing Method for Cultivation)
पशुओं के लिए हरे चारे की खेती के दौरान बरसीम (Berseem) की सघन बुवाई की जाती हैं। जिसमें इसके बीजों की बुवाई छिडकाव विधि से की जाती हैं। छिडकाव विधि से बुवाई के दौरान इसके बीजों को समतल किए खेत में छिड़क दिया जाता है। बीजों को छिडकने के बाद कल्टीवेटर के पीछे हल्का पाटा बांधकर खेत की दो बार हल्की जुताई कर देते हैं। इससे इसके बीज भूमि में तीन से चार सेंटीमीटर नीचे चले जाते हैं।
बीज को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में उचित आकार की क्यारियाँ बना देते हैं। सीड ड्रिल के रूप में इसकी रोपाई के दौरान किसान भाई इसकी रोपाई कतारों में करते हैं। सीड ड्रिल से रोपाई के दौरान प्रत्येक कतारों में बीच 25 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए। जबकि कतारों में पौधों के बीच 5 सेंटीमीटर के आसपास दूरी होनी चाहिए।
बरसीम की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Berseem Crop)
बरसीम की खेती (Berseem Cultivation) में इसके पौधों की सिंचाई की जरूरत फसल के आधार होती हैं। क्योंकि हरे चारे और पैदावार के रूप में खेती करने के दौरान इसके पौधों को अलग मात्रा में पानी की जरूरत होती हैं। बरसीम की रोपाई अगर सूखी भूमि में की गई हो तो इसके पौधों की पहली सिंचाई तुरंत कर देनी चाहिए। समतल भूमि में सिंचाई के दौरान धीमें बहाव से इसकी क्यारियों की सिंचाई करनी चाहिए।
क्योंकि तेज़ बहाव में सिंचाई करने से क्यारियों का सारा बीज किनारों की तरफ बहकर चला जाता है। दानो के लिए उगाई गई फसल में इसके पौधों को सिंचाई की कम जरूरत होती हैं। इस दौरान सर्दी के मौसम में इसके पौधों को 15 से 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए, और गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार पानी देना उचित होता है।
हरे चारे के रूप में इसकी खेती करने के दौरान इसके पौधों को सिंचाई की ज्यादा जरूरत होती हैं। इस दौरान इसके पौधों को सर्दियों में मौसम में 10 से 12 और गर्मियों के मौसम में 5 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए।
बरसीम की फसल में उर्वरक की मात्रा (Amount of Fertilizer in Berseem Crop)
बरसीम (Berseem) के पौधों को उर्वरक की जरूरत इसके पौधों की सिंचाई के तरीके की तरह ही होती हैं। जब इसकी खेती पैदावार के लिए की जाती हैं तो उर्वरक की कम जरूरत होती हैं। जबकि हरे चारे के रूप में खेती करने के दौरान उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती हैं।
बरसीम की खेती (Berseem Cultivation) में जैविक और रासायनिक दोनों तरह के उर्वरक की जरूरत होती हैं। दोनों ही तरीकों से खेती के दौरान शुरुआत में जैविक उर्वरक के रूप में खेत की तैयारी के वक्त 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को खेत में डालकर मिट्टी में मिला दें।
जबकि रासायनिक उर्वरक के रूप में 20 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की आखिरी जुताई से पहले खेत में छिड़कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसके अलावा हरे चारे के रूप में कटाई के दौरान प्रत्येक कटाई के बाद 20 किलो यूरिया की मात्रा पौधों को देनी चाहिए।
बरसीम की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Crop)
बरसीम की खेती (Berseem Cultivation) में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीकों से किया जा सकता हैं। रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज रोपाई के बाद फ्लूक्लोरेलिन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण बीजों के उत्पादन के लिए उगाई गई फसल में किया जाता है। क्योंकि हरे चारे के रूप में होने वाली खेती में इसकी कटाई बार बार होती रहती है। इस कारण खरपतवार नियंत्रण की जरूरत नही होती। जबकि पैदावार के रूप में कतारों में लगाई गई फसल में एक या दो हल्की गुड़ाई कर खरपतवार को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज रोपाई के 25 दिन बाद कर देनी चाहिए।
बरसीम की फसल में रोग नियंत्रण (Disease Control in Berseem Crop)
बरसीम के पौधों में कई तरह के रोग देखने को मिलते हैं। जो इसके पौधों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं। इन सभी तरह के रोगों की उचित समय पर रोकथाम कर फसल को खराब होने से बचाया जा सकता हैं। बरसीम फसल (Berseem Crop) के रोग इस प्रकार है, जैसे-
तना गलन: बरसीम (Berseem) के पौधों में तना गलन का रोग खेत में जल भाराव या अधिक नमी के बने रहने से दिखाई देता हैं। पौधों में ये रोग किसी भी वक्त दिखाई दे सकता हैं। जो फफूंद की वजह से फैलता हैं। इस रोग के लगने पर शुरुआत में पौधे मुरझाने लगते हैं। उसके कुछ दिन बाद पौधों की पत्तियां सूखकर गिरने लगती हैं।
जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं। इस रोग की रोकथाम के लिए पौधों की जड़ों में कार्बेन्डाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए। इसके अलावा बीजों उपचारित कर खेतों में लगाना चाहिए और बारिश के मौसम में खेतों में जलभराव ना होने दे।
बरसीम की फसल में कीट नियंत्रण (Pest Control in Berseem Crop)
बरसीम (Berseem) के पौधों में कई तरह के कीट देखने को मिलते हैं। जो इसके पौधों को काफी ज्यादा नुक्सान पहुँचाते हैं। इन सभी तरह के कीटों की उचित समय पर रोकथाम कर फसल को खराब होने से बचाया जा सकता हैं। बरसीम फसल के कीट इस प्रकार है, जैसे-
माहू: बरसीम की खेती (Berseem Cultivation) में माहू मौसम परिवर्तन के दौरान देखने को मिलता हैं। ये कीट पौधे की पत्तियों और तने पर एक समूह में पाए जाते हैं। जो पौधे की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नष्ट कर देते हैं। जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए पौधों पर मेथालियॉन या नीम के तेल का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
सेमीलूपर: सेमीलूपर की सुंडी पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती हैं। इस रोग की सुंडी का रंग हरा दिखाई देता है। इस रोग के बढ़ने से पौधे पत्तियों रहित दिखाई देने लगते हैं, और पौधे को पोषक तत्व ना मिल पाने की वजह से वे विकास करना बंद कर देता हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए पौधों पर एण्डोसल्फान 35 ईसी की उचित मात्रा का छिडकाव करना चाहिए।
थ्रिप्स: बरसीम (Berseem) के पौधों में लगने वाला थ्रिप्स कीट जनित रोग हैं। यह कीट पौधों की पत्तियों का रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते है। जिससे पौधे की पत्तियां पीली दिखाई देने लगती हैं, और कुछ दिन बाद सूखकर गिर जाती हैं। जिससे पौधा विकास करना बंद कर देता हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए मेथालियॉन की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए। इसके अलावा ड्रायमेथोयट या नीम के तेल का छिडकाव भी पौधों पर करना अच्छा होता है।
टिड्डी: बरसीम (Berseem) के पौधों पर टिड्डी का प्रभाव जुलाई और अगस्त माह में देखने को मिलता हैं। ये कीट पौधे की पत्ती और उसके तने को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाते हैं। रोग के उग्र होने की स्थिति में पूरी फसल भी खराब हो जाती है। इस कीट की रोकथाम के लिए पौधों पर मैलाथियान की उचित मात्र का छिडकाव करना चाहिए।
चने की सुंडी: बरसीम (Berseem) के पौधों पर इस कीट का प्रभाव फसल की पैदावार के दौरान देखने को मिलता है। इस कीट की सुंडी पौधों की फलियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती हैं। जिसका सीधा असर इसकी पैदावार पर देखने को मिलता हैं। इस कीट की रोकथाम के लिए स्पिनोसेड 48 एस सी या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल की उचित मात्रा का छिडकाव पौधों पर करना चाहिए।
बरसीम फसल की कटाई (Harvesting of Berseem Crop)
बरसीम (Berseem) के पौधों की कटाई हरे चारे और इसकी पैदावार लेने के लिए अलग अलग समय पर की जाती हैं। हरे चारे के रूप में इसकी पैदावार लेने के लिए इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 50 दिन बाद पैदावार देने के लिए तैयार हो जाते हैं।
इस दौरान जब इसके पौधे 10 सेंटीमीटर के आसपास ऊंचाई वाले हो जायें, तब उनकी पहली कटाई कर लेनी चाहिए। पहली कटाई के बाद आगे की कटाई के लिए इसके पौधे 20 से 25 दिन बाद फिर से तैयार हो जाते हैं। इस तरह इसके पौधे हरे चारे के रूप में कई बार कटाई दे सकते हैं।
बरसीम की फसल से पैदावार (Yield from Berseem Crop)
पैदावार के रूप में इसकी खेती करने के दौरान किसान भाई एक या दो बार इसके पौधों की हरे चारे के रूप में कटाई कर पैदावार ले सकते हैं। पूर्ण रूप से पकने पर इसके पौधों की पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं, और पौधे सूखने लगते हैं, तब इसके पौधों की कटाई कर लेनी चाहिए। पौधों की कटाई करने के बाद उन्हें धूप में सुखाकर मशीनों की सहायता से इसके दानो को निकलवाकर बाज़ार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए।
उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से खेती करने पर फसल में बीज उत्पादन नहीं किया जाये तो प्रति हेक्टेयर औसत से अधिक लगभग 1000 क्विंटल हरा चारा प्राप्त होता हैं। बीज के लिए फसल को फरवरी बाद छोड़ दिया जाय तो 3 से 7 क्विंटल बीज तथा 500 से 600 क्विंटल हरा चारा लिया जा सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
बरसीम (Berseem) सर्दियों के मौसम में उगाई जाती है, पशुओं को दाग से बचाने के लिए इसको मुरझाने के बाद खिलाएँ। इसमें कच्चा प्रोटीन 18-20% होता है। इसकी कुछ उन्नत किस्में: बीएल – 180, बीएल – 42, हिसार बरसीम – 1, जवाहर बरसीम – 5, वार्डन और जेबी – 1 आदि है।
पहली कटाई के लिए बुवाई के 55-60 दिनों के बाद फसल तैयार हो जाती है। सर्दियों और वसंत के दौरान 30 दिनों के अंतराल पर अगली कटाई की जाती है। मई के मध्य तक कुल 5-6 कटाई प्राप्त की जा सकती है।
बरसीम (Berseem) बहुत हल्की रेतीली मिट्टी को छोड़कर सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है। मिट्टी अच्छी तरह से जल निकासी वाली होनी चाहिए, जिसमें फास्फोरस, कैल्शियम और पोटाश भरपूर मात्रा में हो। यह अम्लीय मिट्टी में अच्छी तरह से नहीं उगती है, लेकिन क्षारीय मिट्टी में अच्छी जल धारण क्षमता के साथ सफलतापूर्वक उगती है।
बरसीम (Berseem) को अंकुरण और स्थापना के लिए हल्के तापमान की आवश्यकता होती है। अत्यधिक ठंड या ठंढे मौसम में इसकी वृद्धि सीमित होती है। अंकुरण के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस, फूल आने के लिए 35 से 37 डिग्री सेल्सियस।
प्रति एकड़ 10-12 किग्रा बीज बोते है। पहली कटाई मे चारा की उपज अधिक लेने के लिए 400 ग्राम प्रति एकड़ चारे वाली सरसों का बीज बरसीम (Berseem) में मिलाकर बोना चाहियें।
बरसीम (Berseem) में होने वाली कुछ आम फंगल बीमारियाँ हैं स्टेम रॉट (स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटियोरम), रूट रॉट (राइज़ोक्टोनिया सोलानी, फ्यूजेरियम मोनिलिफ़ॉर्म, और स्क्लेरोटिनिया बैटाटिकोला), डैम्पिंग ऑफ़ (पाइथियम स्पिनोसम) और क्लोवर स्कॉर्च (कबाटिएला कॉलिवोरा) प्रमुख है।
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