Bottle Gourd Farming in Hindi: सब्जियों में लौकी एक महत्वपूर्ण कद्दूवर्गीय महत्वपूर्ण सब्जी है। इसकी खेती से प्राप्त फलों को विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे: रायता, कोफ्ता, हलवा, खीर इत्यादि बनाने के लिए प्रयोग करते हैं। लौकी कब्ज को कम करने, पेट को साफ करने, खाँसी या बलगम दूर करने में अत्यन्त लाभकारी है। इसके मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खाद्य रेशा, खनिज लवण के अलावा प्रचुर मात्रा में अनेकों विटामिन पाये जाते हैं।
लौकी की खेती (Bottle Gourd Cultivation) पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों तक विस्तृत रूप में की जाती है। निर्यात की दृष्टि से सब्जियों में लौकी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। कृषक बंधुओं को चाहिए की वो इसकी खेती परम्परागत तरीके से न करके वैज्ञानिक तकनीकी से करें। जिससे उनको अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो सके। इस लेख में घिया या लौकी की उन्नत तकनीक से खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
लौकी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for bottle gourd cultivation)
लौकी (Bottle Gourd) की अच्छी पैदावार के लिए गर्म और मध्यम आर्द्रता वाले भौगोलिक क्षेत्र सर्वोत्तम होते हैं। अत: इसकी फसल जायद एवं खरीफ दोनों ऋतुओं में सफलतापूर्वक उगायी जा सकती है। बीज अंकुरण के लिए 30-35 डिग्री सेन्टीग्रेड और पौधों की बढ़वार के लिए 32-38 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उत्तम होता है।
लौकी की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for bottle gourd cultivation)
बलुई दोमट तथा जीवांश युक्त चिकनी मिट्टी जिसमें जल धारण क्षमता अधिक तथा पीएच मान 6.0 – 7.0 हो लौकी (Bottle Gourd) की खेती के लिए उपयुक्त होती है। पथरीली या ऐसी भूमि जहाँ पानी लगता हो तथा जल निकास का अच्छा प्रबन्ध न हो इसकी खेती के लिए अच्छी नहीं होती है।
लौकी की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for bottle gourd cultivation)
घिया (Bottle Gourd) की खेती हेतु खेत की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल तथा बाद में 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करते हैं। प्रत्येक जुताई के बाद खेत में पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरी और समतल कर लेना चाहिए, जिससे खेत में सिंचाई करते समय पानी कम या ज्यादा न लगे।
लौकी की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for bottle gourd cultivation)
काशी गंगा: इस लौकी (Bottle Gourd) किस्म के पौधे मध्यम बढ़वार वाले तथा तनों पर गाँठे कम दूरी पर विकसित होती हैं। फल मध्यम लम्बा (30.0 सेमी) व फल व्यास कम (6.90 सेमी) होता है। प्रत्येक फल का औसत भार 800-900 ग्राम होता है। गर्मी के मौसम में 50 दिनों बाद और बरसात में 55 दिनों बाद फलों की प्रथम तुड़ाई की जा सकती है। इस प्रजाति की औसत उत्पादन क्षमता 43.5 टन प्रति हेक्टेयर है।
काशी बहार: इस संकर प्रजाति में फल पौधे के प्रारम्भिक गाँठों से बनने प्रारम्भ होते हैं। फल हल्के हरे, सीधे, 30-32 सेमी लम्बे 780-850 ग्राम वजन वाले तथा 7.89 सेमी व्यास वाले होते हैं। इसकी औसत उपज 52 टन प्रति हेक्टेयर है। गर्मी और बरसात दोनों ऋतुओं के लिए उपयुक्त किस्म है। यह प्रजाति नदियों के किनारे उगाने के लिए भी उपयुक्त है।
पूसा नवीन: इस लौकी (Bottle Gourd) किस्म के फल बेलनाकार, सीधे तथा लगभग 550 ग्राम के होते हैं। इस प्रजाति की उत्पादन क्षमता 35-40 टन प्रति हेक्टेयर है । अर्का बहार : इस प्रजाति के फल सीधे, मध्यम आकार के लगभग एवं 1 किलो वजन के होते हैं । फल हल्के हरे रंग के होते हैं इसकी उत्पादन क्षमता 40-50 टन प्रति हेक्टेयर है।
नरेन्द्र रश्मि: फल हल्के हरे एवं छोटे-छोटे होते हैं। फलों का औसत वनज 1 किग्रा होता है। इस लौकी (Bottle Gourd) प्रजाति की औसत उपज 30 टन प्रति हेक्टेयर है। पौधों पर चूर्णिल व मृदुरोमिल आसिता का प्रकोप कम होता है।
पूसा सन्देश: पौधे मध्यम लम्बाई के तथा गाँठों पर शाखाएं कम दूरी पर विकसित होती हैं। फल गोलाकार, मध्यम आकार के व लगभग 600 ग्राम वजन के होते हैं। बरसात वाली फसल 55-60 दिनों और गर्मी वाली फसल 60-65 दिनों बाद फल की प्रथम तुड़ाई की जा सकती है। औसत उपज 32 टन प्रति हेक्टेयर होता है।
इनके अलावा भी घिया (Bottle Gourd) की अन्य किस्में है, जैसे- पूसा हाइब्रिड – 3, पूसा समर प्रोलिफिक राउंड, स्वाती, पूसा कोमल, लट्टू न – 17, पूसा संतुष्टि, प्रोलिफिक लोंग, पंजाब राउंड, पंजाब कोमल, पूसा मंजरी, पूसा मेघदूत कल्यानपुर हरी लम्बी, उत्तरा, आजाद हरित और आजाद नूतन प्रमुख है।
लौकी की खेती के लिए बीज की मात्रा (Quantity of seeds for bottle gourd cultivation)
लौकी (Bottle Gourd) की सीधी बीज बुआई के लिए 2.5-3 किग्रा बीज एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए पर्याप्त होता है, परन्तु पालीथीन के थैलों या नियंत्रित वातावरण युक्त ग्रहों में (प्रो ट्रे) नर्सरी उत्पादन करने से 1 किग्रा बीज ही पर्याप्त होता है।
लौकी की खेती के लिए बुआई का समय (Sowing time for bottle gourd cultivation)
लौकी (Bottle Gourd) की बुआई ग्रीष्म ऋतु (जायद) में 15-25 फरवरी तक तथा वर्षा ऋतु (खरीफ) में 15 जून से 15 जुलाई तक कर सकते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में बुआई मार्च-अप्रैल के महीने में की जाती है।
लौकी की खेती के लिए बुआई की विधि (Method of sowing for gourd cultivation)
लौकी (Bottle Gourd) की बुआई के लिए गर्मी के मौसम में 2.5-3.5 और वर्षा के मौसम में 4.0-4.5 मीटर की दूरी पर 50 सेमी चौड़ी तथा 20-25 सेमी गहरी नाली बना लेते हैं। इन नालियों के दोनों किनारे पर 60-75 सेमी (गर्मी वाली फसल) एवं 80-85 सेमी (वर्षा कालीन फसल) की दूरी पर बीज की बुआई करते हैं। एक स्थान पर 2-3 बीज 4 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। बुवाई के समय बीज का नुकीला भाग नीचे की तरफ रखना चाहिए।
लौकी की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for gourd cultivation)
अच्छी उपज हेतु पोषण के रूप में 50 किग्रा नत्रजन, 35 किग्रा फास्फोरस और 30 किग्रा पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय देना चाहिए। बची हुई नत्रजन की आधी मात्रा दो समान भागों में बाँटकर 4-5 पत्ती की अवस्था तथा शेष आधी मात्रा लौकी (Bottle Gourd) के पौधों में फूल बनने के पहले टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।
लौकी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Bottle Gourd Crop)
लौकी फसल की खरीफ ऋतु में सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती है, परन्तु वर्षा न होने पर 10-15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। अधिक वर्षा की स्थिति में जल के निकास के लिए नालियों का गहरा और चौड़ा होना आवश्यक है। गर्मियों में अधिक तापमान होने के कारण 4-5 दिनों के अन्तराल पर लौकी (Bottle Gourd) की सिंचाई करनी चाहिए।
लौकी की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in gourd crop)
दोनों ऋतु में सिंचाई के बाद खेत में काफी मात्रा में खरपतवार उग आते हैं। इसलिए उनको खुर्पी की सहायता से 25-30 दिनों तक निकाई करके खरपतवार निकालते रहना चाहिए। लौकी (Bottle Gourd) में पौधों की अच्छी वृद्धि और विकास के लिए 2-3 बार निकाई-गुड़ाई करके जड़ों के पास हल्की मिट्टी चढ़ा देना चाहिए। रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में ब्यूटाक्लोर रसायन की 2 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बीज बुआई के तुरन्त बाद छिड़काव करना चाहिए।
लौकी की फसल को सहारा देना (Providing support to the bottle gourd crop)
वर्षा ऋतुओं में लौकी (Bottle Gourd) गुणवत्ता की उपज अधिक प्राप्त करने के लिए लकड़ी या लोहे के द्वारा निर्मित मचान पर चढ़ा कर खेती करनी चाहिए। इससे फलों का आकार सीधा और रंग अच्छा रहता है तथा बढ़वार भी तेजी से होती है। प्रारम्भिक अवस्था में निकलने वाली कुछ शाखाओं को काटकर निकाल देना चाहिए, इससे ऊपर विकसित होने वाली शाखाओं में फल ज्यादा बनते हैं। सामान्यत: मचान की ऊँचाई 5.0-5.5 फीट तक रखते हैं। इस पद्धति के उपयोग से सस्य क्रिया सम्बन्धित लागत कम हो जाती है।
लौकी की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in bottle gourd crop)
कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल): इस कीट का वयस्क चमकीली नारंगी रंग का होता हैं तथा सिर, वक्ष एवं उदर का निचला भाग काला होता है। सूण्डी जमीन के अन्दर पायी जाती है। इसकी सूण्डी व वयस्क दोनों लौकी (Bottle Gourd) फसल को क्षति पहुँचाते हैं। प्रौढ़ पौधों की छोटी पत्तियों पर ज्यादा क्षति पहुँचाते हैं। ग्रब इल्ली जमीन में रहती है, जो पौधों की जड़ पर आक्रमण कर हानि पहुँचाती है।
नियंत्रण: सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से भी प्रौढ़ पौधा पर नहीं बैठता जिससे नुकसान कम होता है। जैविक विधि से नियंत्रण के लिए अजादीरैक्टिन 300 पीपीएम 5-10 मिली प्रति लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत 0.5 मिली प्रति लीटर की दर से दो या तीन छिड़काव करने से लाभ होता है। इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशी जैसे डाईक्लोरोवास 76 ईसी 1.25 मिली प्रति लीटर पानी की दर से 10 दिनो के अन्तराल पर पर्णीय छिड़काव करें।
फल मक्खी: इस कीट की सूण्डी अधिक हानिकारक होती है। प्रौढ़ मक्खी गहरे भूरे रंग की होती है। इसके सिर पर काले तथा सफेद धब्बे पाये जाते हैं। प्रौढ़ मादा छोटे, मुलायम फलों के छिलके के अन्दर अण्डा देना पसन्द करती है, और अण्डे से सूड़ी (ग्रब्स) निकलकर लौकी (Bottle Gourd) फलों के अन्दर का भाग खाकर नष्ट कर देते हैं।
नियंत्रण: गर्मी की गहरी जुताई या पौधें के आस पास खुदाई करें, ताकि मिट्टी की निचली परत खुल जाए, जिससे फल मक्खी का प्यूपा धूप द्वारा नष्ट हो जाये तथा शिकारी पक्षियों के खाने से नष्ट हो जो ग्रसित फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए।
नर फल मक्खी को नष्ट करने के लिए प्लास्टिक की बोतलों में इथेनाल, कीटनाशक ( डाई क्लोरोवास या कार्बारिल या मैलाथियान ), क्यूल्यूर को 6:1:2 के अनुपात के घोल में लकड़ी के टूकड़े को डुबोकर 25 से 30 फंदा खेत में विभिन्न स्थानों पर स्थापित कर देना चाहिए।
कार्बारिल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर या मैलाथियान 50 ईसी 2 मिली प्रति लीटर पानी को लेकर 10 प्रतिशत शीरा अथवा गुड़ में मिलाकर जहरीले चारे को 250 जगहों पर 1 हेक्टेयर खेत में उपयोग करना चाहिए ।
लौकी की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in bottle gourd crop)
चूर्णील आसिता: रोग का प्रथम लक्षण लौकी (Bottle Gourd) पत्तियों और तनों की सतह पर सफेद या धुँधले धूसर रंग के पावडर जैसा दिखाई देता है। कुछ दिनों के बाद वे धब्बे चूर्णयुक्त हो जाते हैं। सफेद चूर्णी पदार्थ अंत में समूचे पौधे की सतह को ढंक लेता है। अधिक प्रकोप के कारण पौधे का असमय ही नियंत्रण हो जाता है इसके लिए फलों का आकार छोटा रह जाता है।
नियंत्रण: रोकथाम हेतु रोग पीड़ित पौधों के खेत में फफूँदनाशक दवा जैसे 0.05 प्रतिशत ट्राइडीमोर्फ अर्थात् 1 / 2 मिली दवा 1 लीटर पानी में घोलकर सात दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। इस दवा के उपलब्ध न होने पर फ्लूसिलाजोल 1 ग्राम प्रति लीटर या हेक्साकोनाजोल 1.5 मीली प्रति लीटर या माईक्लोबूटानिल 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के साथ 7 से 10 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें।
मृदुरोमिल फफूँदी: यह रोग लौकी (Bottle Gourd) की वर्षा एवं ग्रीष्म कालीन वाली दोनों फसल में समान रूप से आता है। उत्तरी भारत में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग के मुख्य लक्षण पत्तियों पर कोणीय धब्बे जो शिराओं द्वारा सीमित होते हैं। ये कवक पत्ती के ऊपरी पृष्ठ पर पीले रंग के होते हैं तथा नीचे की तरफ रोयेंदार वृद्धि करते हैं।
नियंत्रण: बचाव के लिए बीजों को मेटलएक्सिल नामक कवकनाशी की 3 ग्राम दवा प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए तथा मैंकोजेब 0.25 प्रतिशत घोल का छिड़काव रोग के लक्षण प्रारम्भ होने के तुरन्त बाद फसल पर करना चाहिए। यदि संक्रमण उग्र दशा में हो तो मैटालैक्सिल + मैंकोजेब का 2.5 ग्राम प्रति लीटर की दर से 7 से 10 के अंतराल पर 3-4 बार छिड़काव करें।
मोजैक विषाणु रोग: यह रोग विशेषकर नई पत्तियों में चितकबरापन और सिकुड़न के रूप में प्रकट होता है। पत्तियाँ छोटी एवं हरी पीली हो जाती है। संक्रमित पौधे की वृद्धि रूक जाती है। इसके आक्रमण से पर्ण छोटे और पुष्प छोटे-छोटे पत्तियों जैसे बदले हुए दिखाई पड़ते हैं। ग्रसित पौधा बौना रह जाता है और उसमें फलत बिल्कुल नहीं होता है।
नियंत्रण: बचाव के लिए लौकी (Bottle Gourd) के रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए। रोग वाहक कीटों से बचाव के करने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.3 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर दस दिनों के अन्तराल में 2-3 बार फसल पर छिड़काव करना चाहिए।
लौकी के फलों की तुड़ाई और उपज (Fruit Harvesting and Yield of Bottle Gourd)
लौकी के फलों की तुड़ाई मुलायम अवस्था में करना चाहिए। फलों का वजन किस्मों पर निर्भर करता है। फलों की तुड़ाई डण्ठल लगी अवस्था में किसी तेज चाकू से चार से पाँच दिन के अंतराल पर करना चाहिए, ताकि पौधें पर ज्यादा फल लगे। औसतन लौकी (Bottle Gourd) की उपज 35-50 टन प्रति हेक्टेयर होती हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
लौकी (Bottle Gourd) को क्षेत्रीय भाषाओं में दुधी (मराठी और गुजराती), घिया (हिंदी) और सोरकाया भी कहा जाता है।
लौकी (Bottle Gourd) की खेती के लिए अच्छी तरह ड्रेन और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर रेतीली दोमट मिट्टी होनी चाहिए। मिट्टी का पीएच 6.5 से 7.5 के बीच लौकी की खेती के लिए उपयुक्त है। लौकी के उत्तम विकास के लिए, न्यूनतम 18°C तापमान की आवश्यकता होती है, लेकिन सर्वोत्तम तापमान 24-27°C के बीच होता है। बुआई के लिए गर्मी के मौसम में 2.5-3.5 और वर्षा के मौसम में 4.0-4.5 मीटर की दूरी पर 50 सेमी चौड़ी तथा 20-25 सेमी गहरी नाली बना लेते हैं।
लौकी लगभग किसी भी प्रकार की मिट्टी में उग सकती है, जो अच्छी तरह से सूखा, हवादार और उर्वरकों से समृद्ध हो। जल्दी पकने वाली फसल के लिए रेतीली या चिकनी दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। लौकी (Bottle Gourd) अम्लीय मिट्टी के प्रति संवेदनशील होती है और थोड़ी क्षारीय प्रतिक्रिया के साथ 6.5 और 7.5 के बीच पीएच मान पसंद करती है।
लौकी (Bottle Gourd) के उत्तम विकास के लिए, न्यूनतम 18°C तापमान की आवश्यकता होती है, लेकिन सर्वोत्तम तापमान 24-27°C के बीच होता है। जायद की बुवाई मध्य जनवरी में, खरीफ मध्य जून से पहले जुलाई तक और रबी सितंबर के अंत से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक की जाती है।
जनवरी-मार्च और सितंबर-दिसंबर लौकी (Bottle Gourd) उगाने के लिए आदर्श मौसम हैं। वर्षा आधारित फसल के लिए मई-जून के दौरान पहली कुछ बारिश होने के बाद बुवाई शुरू की जा सकती है।
आपके पौधे को रोपण के 25-30 दिनों के भीतर फूलना शुरू कर देना चाहिए। लौकी में लगभग 4 इंच व्यास के सफ़ेद फूल आते हैं। लौकी (Bottle Gourd) रोपण के 40-50 दिनों के भीतर दिखाई देनी चाहिए।
मिट्टी में लौकी के बीज लगाने के बाद, बीज को अंकुरित होने में लगभग 7 से 10 दिन का समय लग सकता है। लौकी (Bottle Gourd) के पौधों की उचित देखभाल करते हुए, आपको लगभग 55 से 70 दिन के अंदर ताजे फल तोड़ने को मिल जाते है।
लौकी (Bottle Gourd) की कटाई बुवाई के 55-75 दिन बाद की जा सकती है। फल की कटाई तब करनी चाहिए जब फल का छिलका बहुत कोमल और हरा हो। कटाई में देरी से फल विपणन के लिए अनुपयुक्त हो जाता है।
बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर पौधों की सिंचाई करनी चाहिए। बारिश के मौसम के बाद लौकी (Bottle Gourd) की सप्ताह में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए। अधिक गर्मियों के मौसम में इन्हे सिंचाई की अधिक आवश्यकता होती है, इसलिए इन्हे 3 से 4 दिन के अंतराल में पानी देते रहना चाहिए।
पौधों को पंक्तियों में 2-3 फीट की दूरी पर रखें। इससे उच्च गुणवत्ता वाले फल पैदा करने की उनकी संभावनाएँ बेहतर होंगी। लौकी (Bottle Gourd) को 4:2:2 या 6:2:4 के एनपीके अनुपात वाले संतुलित उर्वरक की आवश्यकता होती है।
लौकी (Bottle Gourd) की उपज 300-500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है।
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