Brinjal Farming: बैंगन (सोलेनम मैलोंजेना) सोलेनैसी जाति की फसल है, जो कि मूल रूप में भारत की फसल मानी जाती है और यह फसल एशियाई देशों में सब्जी के तौर पर उगाई जाती है। इसके बिना यह फसल मिस्र, फ़्रांस, इटली और अमेरिका में भी उगाई जाती है। बैंगन की फसल बाकी फसलों से ज्यादा सख्त होती है। इसके सख्त होने के कारण इसे शुष्क और कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता हैं।
बैंगन में विटामिन ए तथा बी के अलावा कैल्शियम, फॉस्फरस और लोहे जैसे खनीज भी होते है। यह मधुमेह के रोगियों के लिए लाभप्रद हैं। बैंगन फसल (Brinjal Crop) की हरी पत्तियों में विटामिन ‘सी’ पाया गया है। इसके बीज क्षुधावर्द्धक होते हैं तथा पत्तियां मन्दाग्नि और कब्ज में फायदा पहुंचाती हैं।
इसकी खेती सारा साल की जा सकती है। चीन के बाद भारत दूसरा सबसे अधिक बैंगन उगाने वाला देश है। हमारे देश में बैंगन उगाने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान है। इस लेख में बैंगन की वैज्ञानिक विधि से खेती कैसे करें, का उल्लेख किया गया है। ताकि बैंगन की फसल से गुणवत्तायुक्त और अधिकतम उत्पाद प्राप्त किया जा सके।
बैगन कि खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for brinjal cultivation)
बैगन कि खेती से (Brinjal Cultivation) अधिकतम उत्पादन लेने के लिए लम्बे तथा गर्म मौसम कि आवश्यकता होती है। यह फसल पाला सहन नहीं कर सकती। अच्छी उपज के लिए 21 – 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त है। इसके बीजों के अच्छे अंकुरण के 25 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना गया है और पौधों कि अच्छी बढ़वार के लिए 13 से 21 डिग्री सेल्सिअस औसत तापमान सर्वोत्तम रहता है।
जब तापमान 18 डिग्री सेल्सियस से कम हो तो ऐसे समय में पौधों कि रोपाई नहीं करनी चाहिए, लम्बे फल वाली किस्मों कि अपेक्षा गोल फल वाली किस्मे पाले के लिए सहनशील होती है तथा अधिक पाले के कारण पौधे मर या झाड़ीनुमा जाते है।
बैगन कि खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for brinjal cultivation)
बैंगन (Brinjal) का पौधा कठोर होने के कारण विभिन्न प्रकार कि भूमि में उगाया जा सकता है। इसकी फसल से इच्छित उत्पादन के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। भूमि का पीएच मान 6 से 7 के बीच उपयुक्त है। भूमि में भुरभुरापन और जल निकास अच्छा होना चाहिए। अगेती फसल के लिए रेतीली दोमट भूमि तथा अधिक उपज के लिए मटियार दोमट भूमि अच्छी रहती है।
बैगन कि खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for brinjal cultivation)
पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, उसके बाद 3 से 4 बार हैरो या देशी हल चलाकर पाटा लगाये। भूमि की प्रथम जुताई से पूर्व 200 से 250 कुंतल प्रति हेक्टेयर गोबर कि खाद सामान रूप से बिखेरनी चाहिए। यदि गोबर कि खाद उपलब्ध न हो तो खेत में पहले हरी खाद का उपयोग करना चाहिए। बैंगन (Brinjal) की रोपाई करने से पूर्व सिचाई सुबिधा के अनुसार क्यारियों तथा सिचाई नालियों में विभाजित कर लेते है।
बैगन कि खेती के लिए उपयुक्त किस्में (Suitable varieties for cultivation of brinjal)
बैंगन (Brinjal) में फलों के रंग तथा पौधों के आकार में बहुत विविधता पायी जाती है। मुख्यत: इसका फल बैंगनी, सफेद, हरे, गुलाबी और धारीदार रंग के होते हैं। आकार में भिन्नता के कारण इसके फल गोल, अंडाकार, लंबे एवं नाशपाती के आकार के होते है।
स्थान के अनुसार बैंगन के रंग और आकार का महत्व अ ल ग – अ ल ग देखा गया है। किस्मों का चुनाव बाजार की मांग और लोकप्रियता के आधार पर करना चाहिए। बैंगन किस्मों को फल के आकार के आधार पर तीन भागों में बांटा गया है, जैसे-
लम्बे फल: पंजाब रौनक, पंजाब बरसाती, पंजाब सदा बहार, पूसा परपल लोग, पूसा परपल क्लस्टर, पूसा क्रान्ति, पूसा कौशल, पूसा श्यामला और पूसा क्रांति आदि मुख्य है।
गोल फल: पूसा परपल राउन्ड, एच – 4, पी – 8, पूसा अनमोल, पन्त, ऋतुराज, टी – 3, पूसा उत्तम, पंजाब टी – 3, नीलम और पूसा उपकार आदि मुख्य है।
गोल व छोटे आकार के फल: पूसा बिंदू और पूसा अंकुर आदि मुख्य है।
संकर किस्में: अर्का नवनीत, पूसा हाईब्रिड – 6, पूसा संकर – 9, पूसा संकर – 5 और पूसा संकर – 20 आदि मुख्य है।
बैंगन की खेती के लिए बीज की बुआई (Sowing of seeds for brinjal cultivation)
बैंगन की फसल (Brinjal Crop) को वर्ष में तीन बार लिया जा सकता है, ताकि वर्ष भर बैंगन मिलते रहें। जो इस प्रकार है, जैसे-
वर्षाकालीन फसल: नर्सरी तैयार करने का समय फरवरी से मार्च और मुख्य खेत में रोपाई का समय मार्च से अप्रेल उचित है।
शरदकालीन फसल: नर्सरी तैयार करने का समय जून से जुलाई और मुख्य खेत में रोपाई का समय जुलाई से अगस्त उचित है।
बसंतकालीन समय: नर्सरी तैयार करने का समय दिसम्बर और मुख्य खेत में रोपाई का समय दिसम्बर से जनवरी उचित है।
बैंगन की खेती के लिए बीज की मात्रा (Seed quantity for Eggplant cultivation)
बैंगन की फसल (Brinjal Crop) हेतु एक हैक्टेयर में पौध रोपाई के लिये 400 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है, और संकर किस्मों का 250 से 300 ग्राम प्रति हेक्टेयर बीज उपयुक्त होता है।
बैंगन की खेती के लिए नर्सरी तैयार करना (Preparing nursery for brinjal cultivation)
बैंगन (Brinjal) पौधशाला में लगने वाली बीमारियों और कीटों के नियंत्रण हेतु पौधशाला की मिट्टी को सूर्य के प्रकाश से उपचारित करते हैं। इसके लिए 5-15 अप्रैल के बीच एक मीटर चौड़ी और तीन मीटर लम्बी आकार की 20-30 सेंटीमीटर ऊँची क्यारियां बनाते हैं। प्रति क्यारी 20-25 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद क्यारी में डालकर अच्छी तरह मिलाते हैं।
तत्पश्चात क्यारियों की अच्छी तरह सिंचाई करके इन्हें पारदर्शी प्लास्टिक कि चादर से ढंक कर मिट्टी से दबा दिया जाता है, इस क्रिया से क्यारी से हवा और भाप बाहर नहीं निकलती और 40-50 दिन में मिट्टी में रोगजनक कवकों एवं हानिकारक कीटों कि उग्रता कम हो जाती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई के लिए ऐसी 20-25 क्यारियों की आवश्यकता होती है।
बैंगन (Brinjal) नर्सरी की क्यारियों की अच्छी प्रकार खुदाई करे, खरपतवारों को निकाले। पौधशाला में बुआई से पहले ट्राईकोडर्मा 2 ग्राम प्रति किग्रा अथवा बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करें। बुआई 5 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी लाइनों में की जानी चाहिए। बीज को 1 से 15 सेन्टीमीटर की गहराई पर 2.5 सेन्टीमीटर की दूरी पर कतारों में बुवाई करें।
बैंगन (Brinjal) बीज बुवाई के बाद गोबर की बारीक खाद की एक सेन्टीमीटर मोटी परत से ढक दें और फव्वारा से सिंचाई करें। पौधशाला को अधिक वर्षा और कीटों के प्रभाव से बचाने के लिए नाइलोन की जाली ( मच्छरदानी का कपड़ा) लगभग 1.0-1.5 फुट ऊंचाई पर लगाकर ढकना चाहिए तथा जाली को चारों ओर से मिट्टी से दबा देना चाहिए, जिससे बाहर से कीट प्रवेश न कर सकें।
बैंगन की खेती के लिए पौध की रोपाई (Transplanting of seedlings for brinjal cultivation)
जब पौध नर्सरी में 10 से 15 सेमी ऊंचाई के या 30-40 दिन के हो जावे, तब उन्हें सावधानी से निकालकर, तैयार खेत में रोपाई करें। बैंगन (Brinjal) की अच्छी पैदावार के लिए फसल को उचित दूरी पर लगाना आवश्यक होता है। कतार से कतार की दूरी 60-70 सेन्टीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 60 सेन्टीमीटर रखें।
बैंगन (Brinjal) की कम बढ़वार वाली किस्मों के लिए 60-60 या 60-45 सेंमी दूरी पर्याप्त है। रोपाई शाम के समय की जानी चाहिए एवं इसके बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इस क्रिया से पौधों की जड़ों का मिट्टी के साथ सम्पर्क स्थापति हो जाता है, बाद में मौसम के अनुसार 3-5 दिन के पश्चात आवश्यकतानुसार सिंचाई की जा सकती है।
बैंगन की फसल में खाद एवं उर्वरक (Manure and fertilizer in Eggplant crop)
खाद और उर्वरक की मात्रा मिट्टी की जांच के हिसाब से ही करनी चाहिए। जहां मिट्टी की जांच न की हो खेत तैयार करते समय 25-30 टन गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त बैंगन (Brinjal) फसल में 120-150 किग्रा नत्रजन (260-325 किग्रा यूरिया), 60-75 किग्रा फास्फोरस (375-469 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट) तथा 50-60 किग्रा पोटाश (83 – 100 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश) की प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता होती है।
नत्रजन कि एक तिहाई एवं फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा मिलकर अंतिम जुताई के समय खेत में डालनी चाहिए, शेष नत्रजन की मात्रा को दो बराबर भागों में बाँट कर रोपाई के समय से क्रमश: 20-25 दिन और 45-50 दिन बाद बैंगन (Brinjal) की खड़ी फसल में देना उचित रहता है।
बैंगन (Brinjal) की संकर किस्मों के लिए अपेक्षाकृत अधिक पोषण कि आवश्यकता होती है। इनके लिए 200-250 किग्रा नत्रजन (435-543 किग्रा यूरिया) 100-125 किग्रा फास्फोरस (625-781 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट) और 80-100 किग्रा पोटाश (134-167 किग्रा म्यूरेट ऑफ पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से देना उचित होगा।
बैंगन की फसल में सूक्ष्म पोषण तत्व प्रबंधन (Micronutrient management in brinjal crop)
शुरूआती विकास के समय कई बार तापमान के कारण बैंगन (Brinjal) के पौधे सूक्ष्म तत्व नहीं ले पाते, जिस के कारण पौधा पीला पड़ जाता है और कमजोर दिखता है। ऐसी स्थिति में 19:19:19 या 12:61:0 की 5-7 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें। आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के बाद दोबारा स्प्रे करें। फसल में तत्वों की पूर्ति और पैदावार 10-15 प्रतिशत बढ़ाने के लिए 13:00:45 की 10 ग्राम प्रति लीटर पानी की दो स्प्रे करें।
पहली स्प्रे 50 दिनों के बाद और दूसरी स्प्रे पहली स्प्रे के 10 दिन बाद करें। जब फूल या फल निकलने का समय हो तो 0:52:34 या 13:0:45 की 5-7 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। अधिक तापमान होने के कारण फूल गिरने शुरू हो जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए पलैनोफिक्स (एनएए) 5 मिली प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे फूल निकलने के समय करें, 20-25 दिन बाद यह स्प्रे दोबारा करें।
बैंगन की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in brinjal crop)
बैंगन (Brinjal) की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए। फसल की समय-समय पर निराई और गुड़ाई करनी आवश्यक होती है। प्रथम निराई व गुड़ाई रोपाई के 20-25 दिन पश्चात और द्वितीय 40-50 दिन के बाद करें। इस क्रिया से भूमि में वायु का संचार होगा।
बैंगन (Brinjal) रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए स्टाम्प या पेंडीमेथेलिन नामक खरपतवार नाशी की 3.3 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से पौध रोपाई से पहले प्रयोग करें और इस बात का ध्यान रखें कि छिड़काव से पहले जमीन में नमी होनी चाहिए।
बैंगन की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in brinjal crop)
फल और तना छेदक कीट: यह बैंगन की फसल (Brinjal Crop) का मुख्य और खतरनाक कीट है। यह कीट फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। इस कीट कि सुंडी या लार्वी शीर्ष पर पत्ती के जुड़े होने के स्थान पर छेद बनाकर घुस जाते हैं तथा उसे अंदर से खाते हैं। जिससे टहनी का विकास रुक जाता है, बाद में आगे का भाग मुरझा कर सुख जाता है। फल आने पर सुंडी इनमें छेद कर गुदे व बीज को खाती हैं। प्रभावित फलों के ऊपर बड़े छेद नजर आते हैं और फल खाने योग्य नहीं होते हैं।
नियंत्रण:-
- इसकी रोकथाम हेतु समेकित कीट प्रबन्धन उपाय कारगर पाए गये हैं, इनमें प्रभावित शाखाओं को कीट सहित तोड़कर नष्ट करते है।
- बैंगन (Brinjal) फसल में फेरोमोन पाश लगाकर इस कीट के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- प्रभावित फल हर सप्ताह तोड़ कर नष्ट कर दें।
- शुरूआती आक्रमण में नीम बीज अर्क (5 प्रतिशत) का छिड़काव करें।
- ज्यादा आक्रमण होने पर एमामेक्टिन बेन्जोएट 4 ग्राम या फ्लुबेन्डामाइड 7.5 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
चेपा: इस कीट के शिशु तथा वयस्क दोनों ही पत्तियों तथा कोमल टहनियों का रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां पीली होकर सूख जाती है तथा नीचे की ओर झुक जाती है। यह कीट शहद जैसा पदार्थ छोड़ता है। इस शहद जैसे चिपचिपें पदार्थ पर फफूंद की एक मोटी काली परत प्रभावित पौधें पर जमा हो जाती है। जिससे पौधे को क्षति पहुंचती है।
नियंत्रण:-
- बैंगन (Brinjal) फसल खेत में 2 से 3 प्रति एकड़ की दर से पीले चिपचिपे प्रपंच लगाए।
- इस कीट के नियंत्रण हेतु एक-एक सप्ताह के अंतराल पर नीम बीज अर्क 5 प्रतिशत के 2 से 3 छिड़काव करें।
- इस कीट के परभक्षी मित्र कीट जैसे कॉक्सीनेला सेप्टमपंकटाटा, क्राइसोपा और सिरफिड मक्खी इत्यादि की संख्या अधिक होने पर कीटनाशकों का प्रयोग न करें तथा साथ ही इनको बढ़ावा देना चाहिए।
- इस कीट के रासायनिक नियंत्रण हेतु 0.5 मिली प्रति लीटर की दर से इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का छिड़काव करें।
मूल ग्रन्थी सूत्र कृमि (निमेटोड): यह बैंगन की फसल (Brinjal Crop) की आम बीमारी है। यह फसल के शुरूआती समय में ज्यादा खतरनाक होते हैं। इससे जड़ें फूलने लग जाती हैं और उनमे गांठे बन जाती हैं, पौधा पीला पड़ जाता है। पौधों की बढ़वार रूक जाती है तथा पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हैं।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाएं और मिट्टी में कार्बोफ्युरॉन 5-8 किलो प्रति एकड़ मिलाएं।
बैंगन की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in brinjal crop)
डैम्पिंग ऑफ या आर्द्र गलन: यह बैंगन (Brinjal) पौधशाला का प्रमुख फुफुदं जनित रोग है, इसका प्रकोप दो अवस्थाओं में देखा गया है। प्रथम अवस्था में, पौधे जमीन की सतह से बाहर निकलने के पहले ही मर जाते हैं और द्वितीय अवस्था में, अंकुरण के बाद पौधे जमीन की सतह के पास गल कर मर जाते हैं।
नियंत्रण: नियंत्रण हेतु बीज को बुवाई से पूर्व थाइरम या कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। पौधों के नजदीक मिट्टी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 250 ग्राम या कार्बेनडाजिम 200 ग्राम प्रति 150 लीटर पानी डालें। पौधे का उखेड़ा रोग जो जड़ गलन के कारण होता है।
रोकथाम के लिए जड़ें ट्राइकोडरमा 2.5 किलो प्रति 500 लीटर पानी डालें। नर्सरी में बुवाई से पूर्व थाइरम या कैप्टान 4 से 5 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से भूमि में मिलायें। नर्सरी आसपास की भूमि से 4 से 6 इंच उठी हुई भूमि में बनायें।
छोटी पत्ती रोग: यह बैंगन (Brinjal) का एक माइकोप्लाज्मा जनित विनाशकारी रोग हैं। इस रोग के प्रकोप से पत्तियां छोटी रह जाती हैं तथा गुच्छे के रूप में तने के ऊपर उगी हुई दिखाई देती हैं। पूरा रोगग्रस्त पौधा झाड़ीनुमा लगता हैं। ऐसे पौधों पर फल नहीं बनते।
नियंत्रण: नियंत्रण हेतु रोग ग्रस्त पौधे को उखाडकर नष्ट कर देना चाहिये। यह रोग हरे तेले (जेसिड) द्वारा फैलता हैं। अत: इसकी रोकथाम हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या थाओमेथॉक्सम या 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
फल सड़न सड़न (फोमोप्सिस ब्लाईट): यह फफूंद के कारण होने वाला बीज जनित रोग है। प्रभावित पत्तियों पर प्रारंभ में छोटे-छोटे गोल भूरे धब्बे बन जाते हैं तथा बाद में अनियमित आकार के काले धब्बे पत्तियों के किनारों पर दिखाई देते हैं। रोगी पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है। फलों पर धूल कणों के समान भूरी रचनाएं दिखाई पड़ती हैं, जो बाद में बढ़कर काले धब्बों के रूप में दिखाई देने लगती है।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए बिजाई से पहले बीजों को थीरम 3 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। इस बीमारी की रोधक किस्मों का प्रयोग करें यदि खेत में हमला दिखे तो मैनकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
झुलसा रोग: इस रोग के प्रकोप से बैंगन (Brinjal) फसल की पत्तियों पर विभिन्न आकार के भूरे से गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। धब्बों में छल्लेनुमा धारियां दिखने लगती हैं।
नियंत्रण: नियंत्रण हेतु मैन्कोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें। यह छिड़काव 10 से 15 दिन के अन्तराल से दोहरावें।
बैंगन की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Brinjal Crop)
गर्मी की ऋतु में 4 से 5 दिन की अन्तराल पर तथा सर्दी की ऋतु में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर बैंगन (Brinjal) फसल की सिंचाई करनी चाहिए। वर्षा ऋतु में सिंचाई आवश्यकतानुसार करें। अधिक पैदावार लेने के लिए सही समय पर पानी लगाना बहुत जरूरी है। फसल को कोहरे वाले दिनों में बचाने के लिए मिट्टी में नमी बनाये रखें और लगातार पानी लगायें।
बैंगन के फलों कि तुड़ाई (Harvesting of Eggplant Fruits)
बैंगन (Brinjal) के फलों कि मुलायम और चमकदार अवस्था में तुड़ाई करनी चाहिए। तुड़ाई में देरी करने से फल सख्त व बदरंग हो जाते हैं साथ ही उनमें बीज का विकास हो जाता है, जिससे बाजार में उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलता। जब फसल बाजार भेजने लायक हो जावें, तब फलों की तुडाई करें। फलों की तुड़ाई कैंची की मदद से करें। जब बीज मुलायम व सफेद हो, फलों को तोड़ें।
बैंगन की फसल से उपज (Yield from Eggplant crop)
यह फसल की किस्म और जलवायु पर निर्भर करती है। बैंगन की फसल (Brinjal Crop) से औसतन 300-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा संकर किस्म की 600-800 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
बैंगन को सभी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, आम तौर पर अच्छी जल निकासी वाली गाद दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है। यह गर्म मौसम की फसल है और गंभीर ठंढ के प्रति संवेदनशील है। सफल बैंगन (Brinjal) उत्पादन के लिए जलवायु परिस्थितियाँ विशेष रूप से ठंडे मौसम के दौरान कम तापमान वांछनीय है।
बैंगन (Brinjal) एक गर्म मौसम की फसल है और इसे लंबे गर्म मौसम की आवश्यकता होती है। यह पाले के प्रति बहुत संवेदनशील है। इसके सफल उत्पादन के लिए 13-21 डिग्री सेल्सियस का दैनिक औसत तापमान सबसे अनुकूल है।
बैंगन (Brinjal) को सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। हालाँकि, यह ढीली, भुरभुरी, अच्छी जल निकासी वाली गाद दोमट या कार्बनिक पदार्थों से भरपूर चिकनी दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी तरह से उगता है। हल्की मिट्टी में जल्दी पकने वाली फसल अच्छी उपज देती है।
बैंगन की फसल सर्दी और गर्मी दोनों मौसम में उगाई जा सकती है। सर्दियों की फसल के तौर पर जून से जुलाई के बीच बैंगन (Brinjal) बोना बेहतर होता है। और गर्मियों की फसल के तौर पर दिसंबर से जनवरी के बीच बैंगन बोना बेहतर होता है।
पूसा पर्पल लॉन्ग, यह जल्दी पकने वाली और लंबे फल वाली किस्म है। फल चमकदार, हल्के बैंगन (Brinjal) रंग के, 25-30 सेमी लंबे, चिकने और कोमल होते हैं। फसल 100 से 110 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। वसंत और शरद ऋतु में रोपण के लिए उपयुक्त, औसत उपज 27.5 से 30 टन प्रति हेक्टेयर है।
बैंगन (Brinjal) की अधिकांश व्यावसायिक किस्मों को रोपाई के 60-100 दिनों के बाद काटा जा सकता है। रोपाई से लेकर कटाई तक का समय पौधे की किस्म, जलवायु की स्थितियों और लगाए गए पौधों की आयु पर निर्भर करता है।
बैंगन (Brinjal) की रोपाई शाम के समय की जानी चाहिए एवं इसके बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इस क्रिया से पौधों की जड़ों का मिट्टी के साथ सम्पर्क स्थापति हो जाता है। बाद में मौसम के अनुसार 5-10 दिन के पश्चात आवश्यकतानुसार सिंचाई की जा सकती है।
जैसे-जैसे बैंगन (Brinjal) बढ़ता है, उसे मिट्टी में पोषक तत्वों की नियमित पूर्ति की आवश्यकता होगी। इस उद्देश्य के लिए एक अच्छी गुणवत्ता वाला जैविक एनपीके उर्वरक भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसमें उच्च नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम होता है।
अच्छी बलुई या दोमट मिट्टी में बैंगन का बीज सही ढंग से उगता है, मिट्टी में जलनिकासी की व्यवस्था भी अच्छी होनी चाहिए। बीज के अच्छे विकास या जमने के लिए पीएच मान 5.8 और 6.5 के बीच होना जरूरी है। बैंगन (Brinjal) के बीच या पौधे को बढ़ाने के लिए अधिक खाद का प्रयोग कतई न करें। उपरोक्त संतुलित खाद और उर्वरक की मात्रा में अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।
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