Bt Cotton Cultivation in hindi: बीटी कॉटन, बैसिलस थुरिंजिएंसिस कॉटन का संक्षिप्त रूप है, जो भारत के कृषि परिदृश्य में एक गेम-चेंजर रहा है। कपास की इस आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म में मिट्टी के जीवाणु बैसिलस थुरिंजिएंसिस का एक जीन होता है, जो कुछ कीटों के लिए विषाक्त प्रोटीन का उत्पादन करता है, जो फसल के लिए अंतर्निहित कीट प्रतिरोध प्रदान करता है। बीटी कॉटन को भारत में व्यावसायिक खेती के लिए आधिकारिक तौर पर 2002 में मंजूरी दी गई थी।
बीटी कॉटन (Bt Cotton) तकनीक की शुरूआत ने न केवल कपास की उपज और उत्पादन में वृद्धि की है, बल्कि किसानों के लिए आर्थिक लाभ भी दिया है। हालाँकि, इसकी सफलताओं के साथ-साथ, हमारे देश में बीटी कॉटन की खेती को चुनौतियों और विवादों का भी सामना करना पड़ा है, जिससे बीज की उपलब्धता, कीटनाशक प्रतिरोध और पर्यावरणीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर बहस छिड़ गई है। इस लेख में, हम बीटी कॉटन की खेती अधिकतम उत्पादन के लिए कैसे करें पर चर्चा करेंगे।
बीटी कपास के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Bt cotton)
बीटी कपास की खेती के लिए, गर्म और आर्द्र जलवायु की ज़रूरत होती है। बीटी कपास का उत्पादन, जलवायु कारकों जैसे कि वर्षा और तापमान पर निर्भर करता है। इसकी खेती के लिए आदर्श तापमान 21 से 37 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। बीटी कपास की खेती (Bt Cotton Farming) के लिए, कम से कम 180 ठंढ-मुक्त दिनों की जरूरत होती है। इस के लिए, सालाना 500-1500 मिलीमीटर बारिश की जरूरत होती है।
बीटी कपास के लिए भूमि का चयन (Selection of land for BT cotton)
बीटी कपास की खेती (Bt Cotton Farming) के लिए काली, मध्यम से गहरी (90 सेमी) और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का चुनाव करना चाहिए। इस फसल को उथली, हल्की खारी और दोमट मिट्टी में नहीं लगाना चाहिए। जिन खेतों में पानी का भराव रहता है, उनमें बीटी कपास की खेती नहीं लेनी चाहिए और क्षारीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं रहती। इसके लिए उपयुक्त पीएच मान 5.5 से 6.0 है। हालाँकि इसकी खेती भूमि सुधार कार्यक्रम के तहत 8.5 पी एच मान तक वाली भूमि में भी की जा सकती है।
बीटी कपास के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for BT cotton)
बीटी कपास की खेती के लिए खेत की तैयारी हेतु खेत में दो बार पलेवा करना चाहिए। पहली बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए, दूसरी बार कल्टीवेटर या देशी हल से तीन-चार जुताइयां करनी चाहिए और पाटा लगाकर बुवाई करनी चाहिए। बीटी कपास का खेत तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत पूर्णतया समतल हो ताकि मिटटी की जलधारण और जलनिकास क्षमता दोनों अच्छी हों।
बुआई से पहले खेत में संतुलित खाद और उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। यदि खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या न हो तो बिना जुताई या न्यूनतम जुताई से भी बीटी कपास की खेती (Bt Cotton Farming) की जा सकती है।
बीटी कपास की अनुमोदित किस्में (Approved varieties of Bt cotton)
बीटी कॉटन (Bt Cotton), बैक्टीरिया बैसिलस थुरिंजिएंसिस के जीन युक्त कपास की एक आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म है, जिसने कपास की खेती के तरीकों में क्रांति ला दी है। बीटी कपास की कुछ अनुमोदित किस्में ये हैं, जैसे- एबीसीएच 243, एबीसीएच 4899, एबीसीएच 254, एसीएच 133-2, एसीएच 155-2, एसीएच 177-2, एसीएच 33-2, अंकुर 3224, अंकुर 3228, अंकुर की 3244, बायोसीड 6588 बीजी- II, बायोसीड बंटी बीजी- II, जेकेसीएच 1947, एमआरसी 7017 बीजी- II, तुलसी 4 बीजी, रासी 314 और मरू बीटी संकर एमआरसी- 7017 आदि।
बीटी कपास की बुवाई का समय (Sowing time of BT cotton)
बीटी कपास (Bt Cotton) की बुआई का सही समय, क्षेत्र और फसल की किस्म के आधार पर अलग-अलग होता है। आम तौर पर, उत्तर भारत में कपास की बुआई अप्रैल-मई में की जाती है, जबकि दक्षिण में बुआई देरी से की जाती है। अगर सिंचाई की पर्याप्त सुविधा हो, तो मई के मध्य से जून के पहले सप्ताह तक टपक विधि से बुआई करना उचित होता है। साधारणतया मई माह में बुवाई कर देनी चाहिए।
बीटी कपास के लिए बीज की मात्रा और विधि (Seed quantity and method for BT cotton)
बीज की मात्रा: बीटी कपास की खेती (Bt Cotton Farming) के लिए बीज की मात्रा बुवाई की विधि पर निर्भर करती है। आमतौर पर बीजदर 1.800 से 2.500 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर रखें।
बुवाई की विधि: बीटी कपास (Bt Cotton) की बुवाई बीज रोपकर (डिबलिंग) 108×60 सेमी ( 108 सेमी कतार से कतार और पौधे से पौधे 60 सेमी) अथवा 67.5 X 90 सेमी की दूरी पर करें।
बीटी कपास के खेत की परिधि पर उसी किस्म की नॉन बीटी संकर (रिफ्यूजिया) की बुवाई अवश्य करें। रिफ्यूजिया के अन्तर्गत कुल बिजाई क्षेत्र का 20 प्रतिशत अथवा 5 पंक्तियां, जो भी अधिक हो, रखें।
बीटी कपास पौध रोपण: नहर बन्दी या अन्य किन्ही कारणों से कपास की समय पर बिजाई सम्भव न हो तब फसल को पोलीथिन की थैलियों में उगाकर बिना किसी उपज में हानि के 30 मई तक खेत में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति पर पौध रोपण किया जा सकता है। कपास में बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति से पौध रोपण करने पर अधिक उपज प्राप्त होती है।
बीटी कपास में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer in Biotechnology Cotton)
कम से कम 10 से 15 टन गोबर की खाद देनी चाहिए। बुआई के समय एक हेक्टेयर के लिए आवश्यक बीज में 500 ग्राम एज़ोस्पिरिलम और 500 ग्राम पीएसबी मिलायें। बीटी कपास (Bt Cotton) के लिऐ नत्रजन की मात्रा 150 किलो प्रति हैक्टेयर देनी चाहिए। जिससे एक तिहाई 50 किलो बुवाई के समय दें, तत्पश्चात एक तिहाई मात्रा विरलीकरण के समय प्रथम सिंचाई के साथ व शेष मात्रा कलियाँ बनते समय सिंचाई के समय दें।
साथ में पोटेशियम नाइट्रेट दो प्रतिशत की दर से दो पर्णीय छिड़काव चरम पुष्पन अवस्था और टिण्डे बनने की अवस्था पर करना चाहिये। फॉस्फोरस की पूरी मात्रा 40 किलोग्राम बुवाई के समय देनी चाहिए।
सूक्ष्म तत्व सिफारिश: बीटी कपास (Bt Cotton) के लिए मृदा जाँच के आधार पर जिंक तत्व की कमी निर्धारित होने पर बुवाई से पूर्व 15.28 किग्रा जिंक सल्फेट मोनोहाइड्रेट अथवा 24 किग्रा जिंक सल्फेट हेप्टाहाइड्रेट को मिट्टी में मिलाकर उर कर या छिड़काव द्वारा प्रति हैक्टर दिया जाना चाहिए।
यदि बुवाई के समय जिंक सल्फेट नही दिया गया हो तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट (0.5 प्रतिशत सान्द्रण के जिंक के घोल को तैयार करने हेतु 6.0 किग्रा जिंक सल्फेट और 3.0 किग्रा बुझा चूना अलग-अलग पात्रों में घोलकर चूने के निथरे पानी को जिंक के घोल में मिलाकर 400-500 लीटर पानी प्रति हैक्टेयर की दर ) के घोल का दो छिड़काव पुष्पन तथा टिण्डा वृद्धि अवस्था पर करने से अधिक उपज ली जा सकती है।
बीटी कपास की खेती में सिंचाई (Irrigation in BT cotton cultivation)
बीटी कपास (Bt Cotton) की प्रत्येक कतार में ड्रिप लाईन डालने की बजाय कतारों के जोड़े में ड्रिप लाईन डालने से ड्रिप लाईन का खर्च आधा होता है। इसमें पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखते हुए जोडे में कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें और जोडे से जोडे की दूरी 120 सेंटीमीटर रखें। प्रत्येक जोडे में एक ड्रिप लाईन डाले, ड्रिप लाईन में ड्रिपर से ड्रिपर की दूरी 30 सेंटीमीटर हो और प्रत्येक ड्रिपर से पानी रिसने की दर 2 लीटर प्रति घण्टा हो।
सूखे में बिजाई करने के बाद लगातार 5 दिन तक 2 घण्टे प्रति दिन के हिसाब से ड्रिप लाईन चला दे, इससे अंकुरण अच्छा होता है। बुवाई के 15 दिन बाद बूंद-बूंद सिंचाई प्रारम्भ करें। बूंद-बूंद सिंचाई का समय संकर नरमा कपास के अनुसार ही रखे। वर्षा होने पर वर्षा की मात्रा के अनुसार सिंचाई उचित समय के लिये बन्द कर दें, पानी एक दिन के अन्तराल पर लगावें।
बीटी कपास में रोग नियंत्रण (Disease Control in Biotechnology Cotton)
बीटी कपास (Bt Cotton) में रोग नियंत्रण के लिए, कई समन्वित तरीके अपनाए जा सकते हैं, जैसे-
- बीटी कपास में पत्ती रोगों के लिए रासायनिक कवकनाशकों और जैव नियंत्रण एजेंट का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- कपास की सूखी लकड़ियों के ढेर के चारों तरफ़ मेलाथियन धूल छिड़कनी चाहिए।
- कपास के बचे हुए ठूंठों को गहरी जुताई कर नष्ट करना चाहिए।
- जमीन में छुपे फंगस के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए।
- खेतों में गली-सड़ी गोबर की खाद डालनी चाहिए।
- फसल की लगातार निगरानी रखनी चाहिए।
- पत्ती मरोड़ रोग से ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर दबा देना चाहिए या जला देना चाहिए।
- रेतीली जमीनों में नाइट्रोजन की कमी के कारण कपास के पत्तों का रंग लाल पड़ जाता है, इसलिए फूल और टिंडे लगने के समय खाद डालनी चाहिए और पानी देना चाहिए।
बीटी कपास में कीट नियंत्रण (Pest Control in Biotechnology Cotton)
बीटी कपास (Bt Cotton) में कीट रोकथाम के लिए, रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल के साथ-साथ कई गैर-रासायनिक तरीकों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जो इस प्रकार है, जैसे-
- मिलीबग कीट के लिए बीटी कपास की फसल की निरंतर निगरानी करें।
- प्रभावित फसल पर ही प्रोफ़ेनोफ़ॉस का छिड़काव करें।
- खेतों में मिलीबग कीट के परजीवी मिलने पर कीटनाशकों का छिड़काव न करें।
- परभक्षी मित्र कीटों जैसे लेडी बीटल, मकड़ी, क्राइसोपरला वगैरह को पहचानकर उनका संरक्षण करें।
- तंबाकू की इल्ली के एंड समूहों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
- फसल कटाई के बाद फसल के अवशेषों को कम्पोस्ट के साथ दबाकर नष्ट करें।
बीटी कपास की चुनाई कब करें (When to pick BT cotton)
बीटी कपास फूल आने के लगभग पांच महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है, जो आमतौर पर तीन महीने में होता है। इसलिए बीटी कपास (Bt Cotton) के टिंडे पूरे खिल जाये तब उनकी चुनाई कर लीजिये। प्रथम चुनाई 50 से 60 प्रतिशत टिण्डे खिलने पर शुरू करें और दूसरी शेष टिण्डों के खिलने पर करें।
बीटी कपास की फसल से उपज (Yield from Bt cotton crop)
बीटी कपास, आनुवांशिक रूप से संशोधित कपास है। इसमें ट्रांसजेनिक तकनीक के ज़रिए एक विशेष गुण शामिल किया जाता है। उपरोक्त उन्नत तकनीक से खेती करने पर बीटी कपास (Bt Cotton) की खेती से 23 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल प्राप्त हो सकती है, अर्थात प्रति एकड़ 3-4 क्विंटल तक पैदावार बढ़ सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
जैव प्रौद्योगिकीविदों ने बीटी बैक्टीरिया से चुने गए विदेशी डीएनए को कपास के पौधे के डीएनए में डालकर बीटी कपास (Bt Cotton) बनाया। डीएनए वह आनुवंशिक पदार्थ है जो पौधे या जानवर के लक्षणों की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करता है।
कपास की बुवाई ट्रैक्टर या बैल द्वारा खींची जाने वाली सीड ड्रिल या डिबलिंग द्वारा की जाती है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में विशेष रूप से संकर किस्मों के लिए अनुशंसित अंतराल पर बीजों को हाथ से डिबलिंग करना आम बात है। यह प्रणाली उचित पौधे की स्थिति, एक समान ज्यामिति सुनिश्चित करती है और बीजों की बचत भी करती है। यह अब बीटी कपास (Bt Cotton) की बुवाई की मुख्य प्रणाली है।
बीटी कपास (Bt Cotton) की प्रजातियाँ दो प्रकार की होती हैं- बीजी- 1 और बीजी- 2। बीजी- 1 किस्में तीन तरह के डेंडोलू बेधक कैटरपिलर के प्रति प्रतिरोधी होती हैं, ये कैटरपिलर हैं- चित्तीदार कैटरपिलर, गुलाबी डेंढू बेधक, और अमेरिकी डेंढू बेधक। बीजी- 2 किस्में तंबाकू के कैटरपिलर से भी रक्षा करती हैं।
बीटी कॉटन की बीज दर 450 ग्राम प्रति बीघा रखें। इसकी बुआई रोपकर करें। बुआई में 108 सेंटीमीटर कतार से कतार और 60 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी रखें। बीटी कपास (Bt Cotton) के खेती की परिधि में उसी किस्म की नॉन बीटी संकर की बुआई भी करें।
बीटी कपास की बुआई का सही समय, सिंचाई की सुविधा और मौसम पर निर्भर करता है। अगर सिंचाई की पर्याप्त सुविधा हो, तो मई के मध्य से जून के पहले सप्ताह तक बीटी कपास की बुआई करनी चाहिए। अगर सिंचाई की पर्याप्त सुविधा न हो, तो मानसून की शुरुआत के साथ जून-जुलाई में बीटी कपास (Bt Cotton) की बुआई करनी चाहिए।
बीटी कपास (Bt Cotton) में 100-150 किलो नत्रजन और 40-65 किलो फ़ॉस्फ़ोरस प्रति हेक्टेयर की दर से देने के लिए लगभग 200 किलो डीएपी और 275 किलो यूरिया डालना चाहिए। अगर जमीन में पोटाश की कमी है, तो पोटाश युक्त उर्वरक डालना चाहिए, जैसे पोटैशियम सल्फ़ेट और पोटैशियम क्लोराइड।
बीटी कपास (Bt Cotton) में 20-30 दिन के अंतराल पर उचित विधि से सिंचाई करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि सिंचाई में पानी कम से कम खर्च हो इस हेतु हो सके तो ड्रिप (टपक) या क्यारी विधि या एक कतार छोड़कर सिंचाई करना चाहिए।
बीटी कपास से प्रति हेक्टेयर तीन-चौथाई टन से अधिक उत्पादन प्राप्त हो सकता है। अर्थात बीटी कपास से प्रति हेक्टेयर 17-25 क्विंटल तक औसत उपज प्राप्त की जा सकती है। बीटी कपास की खेती (Bt Cotton Farming) से पर्यावरणीय लाभ भी होता है, क्योंकि इसमें कीटनाशकों की कम आवश्यकता होगी।
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