Capsicum Farming in Hindi: शिमला मिर्च को ग्रीन पेपर, स्वीट पेपर, बेल पेपर इत्यादि विभिन्न नामों से जाना जाता है। सब्जियों में शिमला मिर्च का एक महत्वपूर्ण स्थान है। आकार तथा तीखापन में यह मिर्च से भिन्न होती है। इसके फल गूदेदार, मांसल, मोटा, घण्टी नुमा, कहीं से उभरा तो कहीं से नीचे दबा हुआ होता है। शिमला मिर्च की लगभग सभी किस्मों में तीखापन अत्यंत कम या नहीं के बराबर पाया जाता है।
इसमें मुख्य रूप से विटामिन ए और सी की मात्रा अधिक होती है। इसलिये इसको सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है। यदि कृषक बंधु शिमला मिर्च की खेती (Capsicum Cultivation) उन्नत और वैज्ञानिक तकनीक से करे, तो अधिक उत्पादन व आय प्राप्त कर सकते है। निचे इस लेख में शिमला मिर्च की उन्नत खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है।
शिमला मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of capsicum)
शिमला मिर्च नर्म आर्द्र जलवायु की फसल है। हमारे देश में जिन क्षेत्रों में शीत ऋतु में तापमान 10 डिग्री सेल्सियस से अक्सर नीचे नही जाता और ठंड का प्रभाव बहुत कम दिनों के लिये रहने पर इसकी वर्ष भर फसलें ली जा सकती है। इसकी अच्छी वृद्धि तथा विकास के लिये दिन का तापमान 22 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड और रात्रीकालीन तापमान सामान्यत:16 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड उत्तम रहता है।
पाला शिमला मिर्च (Capsicum) के लिये हानिकारक होता है। कम तापमान की वजह से परागकणों की जीवन उपयोगिता कम हो जाती है और फूल कम लगते है, फल छोटे, कड़े एवं टेढ़े मेढ़े आकार के हो जाते हैं तथा अधिक तापक्रम (33 डिग्री सेल्सियस से अधिक) होने से भी इसके फूल एवं फल झड़ने लगते हैं।
शिमला मिर्च की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for capsicum cultivation)
शिमला मिर्च की खेती (Capsicum Cultivation) के लिए अच्छी जल निकासी वाली मध्यम रेतीली दोमट भूमि उपुयक्त होती है। मृदा का पीएच मान 5.5 से 6.8 बीच होना सर्वोत्तम माना जाता है। वहीं बलुई दोमट मिटटी में भी अधिक खाद डालकर और सही समय और उचित सिंचाई प्रबंधन द्वारा भी इसकी खेती कि जा सकती है। भूमि की सतह से नीचे क्यारियों की अपेक्षा इसकी खेती के लिये जमीन की सतह से ऊपर उठी व समतल क्यारियां ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है।
शिमला मिर्च की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Capsicum cultivation)
शिमला मिर्च की खेती के लिए पूर्व फसल अवशेषों को नष्ट करने के लिए पहले खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई कर दी जाती है। गहरी जुताई के बाद खेत में प्राकृतिक खाद के रूप में 25 से 30 टन पुरानी गली सड़ी गोबर की खाद को डालकर फिर से जुताई कर लें। इससे खेत की मिट्टी में गोबर की खाद ठीक तरह से मिल जायेगी।
यदि खेत में नमी की कमी हो तो बुवाई से पूर्व खेत का पलेवा कर लेना चाहिए और बुवाई के पूर्व खेत की अच्छी तरह जुताई तथा पाटा लगाकर तैयार कर लेना चाहिए। शिमला मिर्च (Capsicum) की बुवाई या पौध रोपण के समय खेत मे पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है।
शिमला मिर्च की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for cultivation of capsicum)
शिमला मिर्च (Capsicum) की अनेक उन्नत और संकर किस्में है। लेकिन इसके उत्पादक भाइयों को अपने क्षेत्र की प्रचलित तथा अधिक उत्पादन देने वाली के साथ रोग प्रति रोधी किस्मों का चयन करना चाहिए। जो इस प्रकार है, जैसे-
उन्नत किस्में: कैलिफोर्निया वंडर, रायल वंडर, येलो वंडर, अरका बसन्त,अरका गौरव, अरका मोहिनी, सिंजेटा इंडिया की इन्द्रा, बॉम्बी, लारियो एवं ओरोबेल, क्लॉज इंटरनेशनल सीडस-आशा, सेमिनीश की 1865, हीरा आदि किस्में प्रचलित हैं।
संकर किस्में: पूसा दिप्ती, भारत, इन्द्रा, सन 1090, ग्रीन गोल्ड आदि किस्में प्रचलित हैं।
शिमला मिर्च की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for capsicum cultivation)
शिमला मिर्च (Capsicum) के लिए खेत की तैयारी करते समय 25 से 30 टन गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद डालना चाहिये। आधार खाद के रूप में रोपाई के समय 250 किलोग्राम नाइट्रोजन, 150 किलोग्राम फॉस्फोरस और 150 किलोग्राम पोटेशियम डालना चाहिये। इनमे से नाइट्रोजन की आधी तथा फॉस्फोरस और पोटेशियम की पूरी मात्रा का उपयोग खेत तैयारी के समय करना चाहिए। शेष 75 किलोग्राम नत्रजन को दो भागों में बांटकर खड़ी फसल में रोपाई के 30 एवं 55 दिन बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में बुरकना चाहिये।
शिमला मिर्च की खेती के लिए नर्सरी तैयार करना (Preparing nursery for capsicum cultivation)
रोपण वाली सब्जियों में नर्सरी (पौधशाला) का बड़ा महत्व है। शिमला मिर्च (Capsicum) के लिए 3 X 1 मीटर आकार की भूमि की सतह से 10 से 15 सेंटीमीटर ऊपर उठी क्यारियां बनानी चाहिये। इस तरह से 5 से 6 क्यारियां 1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिये पर्याप्त रहती है। प्रत्येक क्यारी में 2 से 3 टोकरी गोबर की अच्छी सड़ी खाद डालना चाहिये। मिटटी को उपचारित करने के लिये 1 ग्राम बाविस्टिन को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये।
सामान्यत: उन्नत किस्मों का 750 से 900 ग्राम एवं संकर किस्मों का 200 से 300 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में लगाने के लिये पर्याप्त रहता है। बीजों को बोने के पूर्व थाइम, केप्टान या बाविस्टिन के 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करके कतारों में प्रत्येक 7 से 10 सेंटीमीटर की दूरी में लकडी या कुदाली की सहायता से 1 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाकर 2 से 3 सेंटीमीटर की दूरी में बुवाई करना चाहिये।
शिमला मिर्च (Capsicum) बीजों को बोने के बाद गोबर या कम्पोस्ट की महीन खाद व मिट्टी के मिश्रण से ढंककर हजारे की सहायता से हल्की सिंचाई करनी चाहिये। यदि संभव हो तो क्यारियों को पुआल या सूखी घांस से बीजों के 50 प्रतिशत अंकुरण तक ढंक देना चाहिये। जिससे अंकुरण भी अच्छा होगा और खरपतवार पर भी रोक लगेगी, इसके बाद पुलाव या घास को हटा लें।
शिमला मिर्च की बीज बुवाई और पौध रोपण (Sowing seeds and planting seedlings of capsicum)
हमारे भारत में शिमला मिर्च (Capsicum) को वर्ष में मौसम के आधार पर तीन बार उगाया जाता है। जो इस प्रकार है, जैसे-
पहला: जून से जुलाई में नर्सरी में बीज बोना और जुलाई से अगस्त में पौध का रोपण मुख्य खेत में किया जाना।
दूसरा: अगस्त से सितंबर में नर्सरी में बीज बोना और सितंबर से अक्टूबर में मुख्य खेत में पौध का रोपण करना।
तीसरा: नवंबर से दिसंबर में नर्सरी में बीज बोना और दिसंबर से जनवरी में मुख्य खेत में रोपण करना।
शिमला मिर्च (Capsicum) के बीज के अच्छे अंकुरण के लिए आवश्यक है, कि समय से बुवाई कि जाए, क्योंकि देर से बुवाई करने पर जब तापक्रम कम होने लगता है। तो अंकुरण 1 से 2 प्रतिशत घट जाता है तथा अंकुरण में काफी समय लगता है। पौधशाला मे 30 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है, पौधे कि बढ़वार के लिए 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। जबकि फल लगने के लिए महीने का औसत तापमान 10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा पाया गया है।
शिमला मिर्च की खेती के लिए रोपण और दूरी (Planting and distance for capsicum cultivation)
सामान्यत: शिमला मिर्च (Capsicum) का 10 से 15 सेंटीमीटर लंबा, 4 से 5 पत्तियों वाला पौध जो कि लगभग 45 से 50 दिनों में तैयार हो जाता है, रोपण के लिये प्रयोग करें। पौध रोपण के एक दिन पूर्व पौध क्यारियों की सिंचाई कर देनी चाहिये, ताकि पौध आसानी से निकाली जा सके। पौध को शाम के समय मुख्य खेत में 60 X 45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिये। रोपाई के पूर्व पौध की जड़ को बाविस्टिन 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में आधा घंटा डुबाकर रखना चाहिये। रोपाई के बाद खेत की हल्की सिंचाई करें।
शिमला मिर्च की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management in capsicum crop)
शिमला मिर्च (Capsicum) की फसल को कम और ज्यादा पानी दोनो से नुकसान होता है। यदि खेत में ज्यादा पानी का भराव हो गया हो तो तुरंत जल निकास की व्यवस्था करनी चाहिये। मिटटी में नमी कम होने पर सिंचाई करनी चाहिये। नमी की पहचान करने के लिये खेत की मिट्टी को हाथ में लेकर लड्डू बनाकर देखना चाहिये। यदि मिट्टी का लड्डू आसानी से बने तो भूमि में नमी है, यदि ना बने तो सिंचाई कर देनी चाहिये। आमतौर पर गर्मियों में 1 सप्ताह तथा शीत ऋतु में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिये।
शिमला मिर्च फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in capsicum crop)
पौध रोपण के बाद शुरू के 30 से 45 दिन तक शिमला मिर्च (Capsicum) के खेत को खरपतवार मुक्त रखना अच्छे फसल उत्पादन की दृष्टि से आवश्यक है। कम से कम दो निराई-गुड़ाई लाभप्रद रहती है। पहली निराई-गुड़ाई रोपण के 25 और दूसरी 45 दिन के बाद करनी चाहिये। पौध रोपण के 30 दिन बाद पौधो में मिट्टी चढ़ाना चाहिये, ताकि पौधे मजबूत हो जाये और गिरे नही। यदि खरपतवार नियंत्रण के लिये रसायनों का प्रयोग करना हो तो खेत में नमी की अवस्था में पेन्डीमेथेलिन 4 लीटर या एलाक्लोर 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें।
शिमला मिर्च की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in shimla mirch crop)
माहू, थ्रिप्स, सफेद मक्खी या मकड़ी: शिमला मिर्च (Capsicum) में इन कीटों का प्रकोप ज्यादा होता है। जो अलग-अलग अवस्थाओं में अलग-अलग तरीके से शिमला मिर्च की फसल को नुकसान पहुचाते है।
नियंत्रण: इन कीटो की रोकथाम के लिये डायमेथोएट या मिथाइल डेमेटान या मेलाथियान का 1 से 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करे। फलों के तुड़ाई पश्चात ही रसायनों का छिड़काव करना चाहिये।
शिमला मिर्च की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in capsicum crop)
आर्द्रगलन रोग: इस रोग का प्रकोप शिमला मिर्च (Capsicum) नर्सरी अवस्था में होता है। इससे जमीन की सतह वाले तने का भाग काला पडकर गल जाता है और छोटे पोधे गिरकर मरने लगते हैं।
नियंत्रण: बुवाई से पूर्व बीजों को थाइम, केप्टान या बाविस्टिन 2.5 से 3 ग्राम प्रति किलोंग्राम बीज की दर से उपचारित कर बोयें। नर्सरी, आसपास की भूमि से 10 से 15 इंच उठी हुई भूमि में बनावें। मिटटी उपचार के लिये शिमला मिर्च की नर्सरी में बुवाई से पूर्व थाइम या कैप्टान या बाविस्टिन का 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल उपयोग में लाते है, जिसे ड्रेचिंग कहते है। रोग के लक्षण प्रकट होने पर बोडों मिश्रण 5:5:50 या कॉपर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल कर छिडकाव करें।
भभूतिया रोग: यह रोग ज्यादातर गर्मियों में आता है। इस रोग से शिमला मिर्च (Capsicum) की पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त धब्बे बनने लगते हैं। रोग की तीव्रता होने पर पत्तियों पीली पड़कर सूखने लगती है तथा पौधा बौना हो जाता है।
नियंत्रण: रोग की रोकथाम के लिये सल्फेक्स या कैलेक्सिन का 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल 15 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करें।
जीवाणु उकठा: इस रोग से प्रभावित शिमला मिर्च (Capsicum) की पूरे खेत की फसल हरी की हरी मुरझाकर सूख जाती है। यह रोग में पौधे में किसी भी समय प्रकोप कर सकता है।
नियंत्रण: गीष्मकालीन गहरी जुताई करके खेतों को कुछ समय के लिये खाली छोड़ देना चाहिये। फसल चक्र को अपनाना चाहिए, रोग सहनशील जातियां जैसे- अर्को गौरव का चुनाव करना चाहिये। प्रभावित खड़ी फसल में रोग का प्रकोप कम करने के लिये गुडाई बंद कर देनी चाहिए, क्योंकि गुडाई करने से जडों में घाव बनतें है व रोग का प्रकोप बढता है। रोपाई पूर्व खेतों में ब्लीचिंग पाउडर 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलायें।
पर्ण कुंचन व मोजेक: ये विषाणु जनित रोग है| पर्ण कुंचन रोग के कारण शिमला मिर्च के पौधों के पत्ते सिकुडकर मुड़ जाते है और छोटे व भूरे रंग युक्त हो जाते हैं। ग्रसित पत्तियां आकार में छोटी, नीचे की ओर मुडी हुई मोटी व खुरदुरी हो जाती है। मोजेक रोग के कारण पत्तियों पर गहरा व हल्का पीलापन लिए हुए हरे रंग के धब्बे बन जाते है। उक्त रोगों को फैलाने में कीट अहम भूमिका निभाते हैं। प्रभावित पौधे पूर्ण रूप से उत्पादन देने में असमर्थ सिद्ध होते है, रोग द्वारा उत्पादन की मात्रा व गुणवत्ता दोनों प्रभावित होती है।
नियंत्रण: बुवाई से पूर्व कार्बोफ्यूरान 3 जी, 8 से 10 ग्राम प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से भूमि में मिलावें। पौध रोपण के 15 से 20 दिन बाद डाइमिथोएट 30 ईसी या इमिडाक्लोप्रिड एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें। यह छिड़काव 15 से 20 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार दोहरावें। फूल आने के बाद उपरोक्त कीटनाशी दवाओं के स्थान पर मैलाथियान 50 ईसी एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
श्यामवर्ण व फल सड़न: शिमला मिर्च (Capsicum) में रोग के शुरूवाती लक्षणों में पत्तियों पर छोटे-छोटे काले धब्बे बनते हैं। रोग के तीव्रता होने पर शाखाएं ऊपर से नीचे की तरफ सूखने लगती है। फलों के पकने की अवस्था में छोटे-छोटे काले गोल धब्बे बनने लगते है और बाद में इनका रंग धूसर हो जाता है, जिसके किनारों पर गहरे रंग की रेखा होती है। प्रभावित फल समय से पहले झड़ने लगते है, अधिक आद्रता इस रोग को फैलाने में सहायक होती है।
नियंत्रण: फसल चक अपनाना चाहिये। स्वस्थ तथा उपचारित बीजों का ही प्रयोग करे। मेन्कोजेब, डायफोल्टान, या ब्लाइटॉक्स का 0.2 प्रतिशत सांद्रता का घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करे।
शिमला मिर्च फसल के फलों की तुड़ाई (Harvesting of Shimla Mirch crop fruits)
शिमला मिर्च (Capsicum) के फलों की तुड़ाई पौध रोपण के 55 से 70 दिन बाद प्रारंभ हो जाती है, जो कि 90 से 120 दिन तक चलती है। फलों की तुड़ाई हमेशा पूरा रंग व आकार होने के बाद ही करनी चाहिए तथा तुड़ाई करते समय 2-3 सेमी लम्बा डण्ठल फल के साथ छोड़कर फल को पौधों से काटा जाना चाहिए। नियमित रूप से तुड़ाई का कार्य करना चाहिये।
शिमला मिर्च की फसल से पैदावार (Yield from Shimla Mirch crop)
उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से शिमला मिर्च की खेती (Capsicum Cultivation) करने और परिस्थितियों के अनुसार किस्म का चयन करने के बाद उन्नतशील किस्मों में 250 से 400 क्विटल एवं संकर किस्मों में 600 से 700 किंवटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
पहले शिमला मिर्च (Capsicum) की पौध तैयार की जाती है। 30 से 35 दिन मे शिमला मिर्च के पौधे रोपाई योग्य हो जाते है। रोपाई के समय पौधे की लम्बाई तकरीबन 16 से 20 सेमी और 4-6 पत्तियां होनी चाहिए। रोपाई के पूर्व पौधे को 0.2 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम मे डुबो कर पूर्व मे बनाए गए छेद मे लगाना चाहिए। पौधो की रोपाई अच्छी तरह से उठी हुई तैयार क्यारियाँ मे करनी चाहिए।
शिमला मिर्च (Capsicum) के पौधे कम गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह विकसित होते हैं। फसल पकाते समय शुष्क जलवायु उपयुक्त रहती है। बीज के अंकुरण के लिए 16-29 डिग्री सेल्सियस पौधे की अच्छी बढ़त के लिए 21-27 डिग्री सेल्सियस व फलों के उचित विकास और परिपक्वता के लिए तापमान 32 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा होना चाहिए।
अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें अच्छी तरह से पानी का रिसाव हो, शिमला मिर्च (Capsicum) उगाने के लिए सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 शिमला मिर्च उगाने के लिए आदर्श है।
शिमला मिर्च एक ऐसी सब्जी है, जिसकी फार्मिंग साल भर की जाती है। इसकी पहली बुवाई जून से जुलाई महीने के बीच की जाती है, जबकि दूसरी बुवाई का सीजन अगस्त से सितंबर महीने तक चलता है। वहीं, कई राज्यों में किसान नवंबर और दिसंबर महीने में भी मिशला मिर्ची (Capsicum) की बुवाई करते हैं।
इन्द्रा, शिमला मिर्च (Capsicum) की शानदार किस्म है। इसकी एक मिर्च का वेट 100 से 150 ग्राम तक होता है। अगर पैदावार की बात करें, तो सामान्यत: एक एकड़ में आप इसकी खेती कर 110-130 क्विंटल तक शिमला मिर्च का उत्पादन प्राप्त कर सकते है।
शीतकालीन मौसम में शिमला मिर्च को सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। सिंचाई की आवश्यकता पड़ने पर दो से तीन सिंचाई दिसंबर से फरवरी तक करनी पड़ती है। ग्रीष्म कालीन मौसम की खेती में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। शिमला मिर्च (Capsicum) की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए।
शिमला मिर्च की फसल में फल लगने की दर केवल 30 से 40% तक होती है। बादल वाले दिनों में मिर्च के फूल सबसे अधिक झड़ते हैं। शिमला मिर्च (Capsicum) में फूल लगना प्रारंभ होते ही प्लानोफिक्स नामक दवा को 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर पहला छिड़काव करना चाहिये तथा इसके 25 दिन बाद दूसरा छिड़काव करे। इससे फूलों का झड़ना कम हो जाता है, फल अच्छे आते है और उत्पादन में वृद्धि होती है।
तापमान में तेजी से उतार-चढ़ाव शिमला मिर्च के फूलों के झड़ने का सबसे आम कारण है, जब भी शिमला मिर्च (Capsicum) के पौधे के आस-पास के वातावरण में तापमान उनकी आवश्यकता के विपरीत हो जाता है, तो पौधे जीवित रहने के लिए अपनी ऊर्जा का उपयोग करने के लिए फूल से फल बनाने (फलने) की प्रक्रिया को रोकने के लिए मजबूर हो जाते हैं, और फूल गिरा देते हैं।
अच्छी उपज के लिए 30 एवं 60 दिनों के बाद गुड़ाई करनी चाहिए। शिमला मिर्च में अच्छी उपज के लिए मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है। यह कार्य 30-40 दिन की अवस्था पर करना चाहिए। शिमला मिर्च (Capsicum) का पौधा 40 डिग्री तक का तापमान सह सकता है और करीब रोपाई के 65-75 दिन बाद पौधा पैदावार देना शुरू कर देता है।
शिमला मिर्च की अच्छी उपज के लिए 30 एवं 60 दिनों के बाद गुड़ाई करनी चाहिए। शिमला मिर्च (Capsicum) में अच्छी उपज के लिए मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है। यह कार्य 30-40 दिन की अवस्था पर करना चाहिए। रासायनिक दवा के रूप में खेत तैयार करते समय 2.22 लीटर की दर से फ्लूक्लोरेलिन (बासालिन) का छिड़काव कर खेत में मिला देना चाहिए।
शिमला मिर्च (Capsicum) के फलो की तुडाई हमेशा पूरा रंग व आकार होने के बाद ही करनी चाहिए तथा तुडाई करते समय 2-3 सेमी लम्बा डण्ठल फल के साथ छोडकर फल को पौधो से काटा जाना चाहिए। वैज्ञानिक तरीके से खेती करने पर संकर शिमला मिर्च की औसतन पैदावार 700-800 क्विंटल प्रति हेक्टयर होती है।
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