Carrot Cultivation: गाजर की खेती पूरे देश में की जाती है। यह एक महत्वपूर्ण जड़ वाली फसल है। इसका उपयोग सब्जी, सलाद, अचार और मिठाई आदि के लिए किया जाता है। गाजर (Carrot) में स्वाद के साथ ही अनेक गुण मौजूद होते हैं। इसमें आयरन, कॉपर, मैग्नीज, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, फोलेट, पैटोथेनिक एसिड आदि भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। ये तत्व कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य रखने में मदद करते हैं।
कई शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है, कि गाजर का सेवन कैंसर और दिल के रोगों के खतरों को कम करता है। इसमें अल्फा और बीटा कैरोटिन पाया जाता है जो दिल का दौरा पड़ने के खतरे को कम करता है। ‘विटामिन ए’, से भरपूर होने के कारण आंखों की रोशनी कम होने पर चिकित्सक गाजर खाने की सलाह देते हैं। यदि कृषक बंधु गाजर (Carrot) की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन और लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
गाजर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for carrot cultivation)
यह एक सर्दी वाली फसल है। इसके बीज अंकुरण के लिए 7.2 – 23.9 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम तथा जड़ों की अच्छी वृद्धि के लिए 18-23 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम उपयुक्त रहता है, और जड़ों के अच्छे रंग के लिए 15-21 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम उपयुक्त रहता है। गाजर के रंग तथा आकार पर तापक्रम का बड़ा असर पड़ता है।
बहुत ही ठण्डे तापक्रम में गाजर (Carrot) का रंग बहुत ही फीका और लम्बाई बढ़ जाती है। इस प्रकार बहुत गर्म तापमान में रंग कुछ गहरा और लम्बाई कम हो जाती है। अच्छे रंग और अच्छे आकार के लिए 15 डिग्री सेन्टीग्रेड से 21 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है।
गाजर की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for carrot cultivation)
गाजर की खेती (Carrot Farming) विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, परन्तु उचित जल निकास वाली जीवान्श युक्त रेतीली अथवा रेतीली दोमट मिट्टी इसकी सफल खेती के लिए उत्तम होती है। भारी मिट्टी में इसकी जड़ो का आकार और रंग अच्छा नहीं बन पाता। 6.5-7 पीएच मान वाली भूमि इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है, परन्तु इसे लगभग 8 पीएच मान तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
गाजर की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for carrot cultivation)
गाजर (Carrot) की अच्छी फसल के लिए भूमि को अच्छी तरह से तैयार करना अत्यन्त आवश्यक है। भूमि की लगभग 1 फुट की गहराई तक अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए, जिसके लिए एक बार डिस्क हल से गहरी जुताई तथा तीन-चार बार हैरो चलाकर पाटा लगा देना चाहिए, ताकि मिट्टी एकदम भुरभुरी हो जाये।
गाजर की अच्छी पैदावार हेतु बुवाई से लगभग 2-3 सप्ताह पूर्व 20-25 टन प्रति हेक्टेयर पूर्णतया सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत में भली भाँति मिला देनी चाहिए। उर्वरकों को अन्तिम जुताई के समय भूमि में मिलाकर आवश्यकतानुसार मेड़े तथा क्यारियां बना लेनी चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जाँच के आधार पर करना चाहिए।
गाजर की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for carrot cultivation)
अच्छे गुणों वाली मोटी, लम्बी, लाल या नारंगी रंग की जड़ों वाली गाजर (Carrot) अच्छी मानी जाती है। गाजर के जड़ के बीच का कठोर भाग कम और गूदा अच्छा होना चाहिए। गाजर की किस्मों को मुख्यतः दो वर्गों में बांटा जा सकता है, जो इस प्रकार है, जैसे-
यूरोपियन किस्में: इसकी जड़े सिलैंडरीकल, मध्यम लम्बी, पुंछनुमा सिरेवाली और गहरे संतरी रंग की होती है। इनकी औसत उपज 270 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक है। इन गाजर (Carrot) किस्मों को ठण्डे तापमान की आवश्यकता होती है। यह किस्में गर्मी सहन नहीं कर पाती है। इसकी प्रमुख किस्में:- नैन्टीज, पूसा यमदागिनी, चैन्टने आदि है|
एशियाई किस्में: ये गाजर (Carrot ) की किस्में अधिक तापमान सहन कर लेती है, जो इस प्रकार है, जैसे:- पूसा मेघाली, गाजर न – 29, पूसा केशर, हिसार गेरिक, हिसार रसीली, हिसार मधुर, चयन न – 223, पूसा रुधिर, पूसा आंसिता और पूसा जमदग्नि प्रमुख है। इनकी अगेती बुवाई अगस्त से सितम्बर में की जाती है। हालाँकि इसकी बुवाई अक्टूबर तक की जा सकती है।
गाजर के लिए बुवाई का समय और बीज दर (Sowing time and seed rate for carrots)
बीज की मात्रा: बुवाई हेतु उन्नतशील किस्मों के चुनाव के अलावा बीजों का स्वस्थ होना भी अत्यन्त आवश्यक है। गाजर (Carrot) बीज की मात्रा बुवाई के समय, भूमि के प्रकार, बीज की गुणवत्ता, आदि पर निर्भर करती है, जो प्रति हैक्टेयर 5 से 8 किग्रा तक हो सकती है। अगेती फसल की बुआई हेतु अपेक्षाकृत अधिक बीज की आवश्यकता पड़ती है। हल्की क्षारीय भूमि में और बुवाई पश्चात पपड़ी बनने की दशा में सघन बुवाई करने की वजह से बीज की मात्रा बढ़ जाती है।
बुवाई का समय: गाजर (Carrot) की बुवाई अगस्त से लेकर नवम्बर तक की जा सकती है, परन्तु अक्टूबर में बोई जाने वाली फसल उत्पादन तथा गुणवत्ता दोनो दृष्टि से सर्वोतम मानी जाती है।
गाजर की खेती के लिए बुवाई की विधि (Method of sowing for carrot cultivation)
भारी मिट्टी में बुवाई मेड़ों पर जबकि रेतीली में समतल क्यारियों में करनी चाहिए। बुवाई क्यारियों में 1-2 सेमी गहराई पर 30-40 सेमी की दूरी पर बनी पंक्तियों में करनी चाहिए। बीजों को बारीक छनी हुई रेत में मिलाकर बुवाई करने से बीजों का वितरण समान होता है तथा बीज भी कम लगता है। गाजर (Carrot) बीज को 12-24 घंटे तक पानी में भिगोने के पश्चात छाया में सुखाकर बुवाई करने से बीज आसानी से व जल्दी उगते हैं।
बुवाई से पूर्व बीजों को राख के साथ रगड़ना भी जमाव के लिए अच्छा माना गया है। गाजर (Carrot) बीज उगने के 2-3 सप्ताह के भीतर प्रत्येक पक्ति में लगभग 6-8 सेमी की दूरी छोड़कर फालतू पोधों को निकाल देना चाहिए, इससे पौधों की बढ़वार के लिए पर्याप्त स्थान मिलता है तथा जड़ों का विकास भी अच्छा होता है।
गाजर की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizers for Carrot Cultivation)
गाजर (Carrot) की अच्छी पैदावार के लिए बुवाई से लगभग 2-3 सप्ताह पूर्व 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर पूर्णतया सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत में भली भाँति मिला देनी चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जाँच के आधार पर करना चाहिए। सामान्य भूमि की दशा में 100 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा फास्फोरस तथा 60 किग्रा पोटाश प्रति हैक्टेयर प्रयोग करना चाहिये।
नत्रजन की आधी तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी-पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय तथा नत्रजन की शेष बची आधी मात्रा बुवाई के लगभग एक माह पश्चात निराई-गुड़ाई के समय देनी चाहिए।
नत्रजन को अधिक मात्रा में तथा देरी से देने से बचना चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से गाजर पर सफेद सूक्ष्म रोम तो अधिक बनते ही हैं साथ ही साथ गाजर (Carrot) की भण्डारण क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है, जिससे दूरस्थ बाजरों में भेजी जाने वाली गाजर का परिवहन के दौरान जल्द खराब हो जाने से इनका बाजार मूल्य कम मिलता है।
गाजर की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management for carrot cultivation)
गाजर के बीज का जमाव धीरे तथा कुछ देरी से होता है, जिसके लिए बुवाई के पश्चात शीघ्र एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। भूमि में पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार 5-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। कम सिंचाई की दशा में जड़े सख्त हो जाती हैं और इनमें कसैलापन भी आ सकता है, जबकि आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने से गाजर (Carrot) की जड़ों में मिठास की कमी हो जाती है।
गाजर की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in carrot crop)
गाजर (Carrot) फसल को बुवाई से लगभग 4-6 सप्ताह तक खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए। इसके लिए बुवाई के तीसरे तथा पाँचवे सप्ताह में खरपतवार निकालने के साथ-साथ खुरपी भी लगा देनी चाहिये। यदि फसल मेड़ पर बोई गई है तो गुड़ाई के साथ-साथ मेड़ों पर मिट्टी भी चढ़ा देनी चाहिये। खरपतवार नाशी रसायनों जैसे पेन्डीमिथेलिन 30 ईसी 3.3 किलोग्राम (प्रति हेक्टेयर) को 900 से 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई से 48 घंटे के अंदर समानांतर छिडकाव करे। जिससे शुरुवात में खरपतवारों से निजात मिल जाता ‘है।
गाजर फसल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in crop)
आमतौर पर गाजर की फसल (Carrot Crop) में कीट व बीमारियों का प्रकोप शुष्क क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम होता है। कभी-कभी देर वाली फसल में फफूँद जनित सफेद चूर्णिल आसिता नामक बीमारी का प्रकोप होता है। इस बीमारी के लगने से पत्तों और डंठल पर सफेद धब्बे नजर आने लगते हैं, जो आगे चलकर बादामी रंग के हो जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए 0.1 प्रतिशत बेनलेट अथवा बावस्टीन के घोल का छिड़काव 8-10 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
गाजर फसल की खुदाई और सफाई (Digging and cleaning of crop)
गाजर बुवाई के 95 से लेकर 110 दिन के भीतर खुदाई के लिए तैयार हो जाती है, परन्तु यह प्रायः इसकी किस्म, बुवाई के समय, भूमि के प्रकार, आदि पर निर्भर करता है। जड़ों के तैयार हो जाने पर एक हल्की सिंचाई देकर अगले दिन खुदाई करनी चाहिए। खुदाई हमेशा ठंड़े मौसम में अर्थात् सुबह के समय करना अच्छा रहता है।
खुदाई के पश्चात जड़ों पर लगी मिट्टी हटाने के लिए इन्हें पानी से साफ करते हैं। गाजर (Carrot) की जड़ों की सफाई हेतु एक विशेष प्रकार की मशीन का प्रयोग किया जाता है, जिससे इन पर लगी हुई मिट्टी की सफाई के साथ-साथ जड़ों पर लगे सूक्ष्म रोम तथा ऊपरी हल्की सफेद झिल्ली भी साफ हो जाती है।
जिससे गाजर (Carrot) साफ और आकर्षक दिखने लगती है और बाजार भाव अच्छा मिलता है। हस्त चालित मशीन एक बार में 10 से 15 किग्रा गाजर की सफाई करती है, जबकि ट्रैक्टर, विद्युत मोटर या डीजल इंजन द्वारा चालित मशीन इसकी कार्य क्षमता के अनुसार एक से लेकर पाँच क्विंटल प्रति लोड तक सफाई कर सकती है।
गाजर की फसल से उपज (Yield from carrot crop)
गाजर (Carrot) की पैदावार और गुणवत्ता किस्म, बुवाई के समय, भूमि के प्रकार, आदि पर निर्भर करती है। इसकी अगेती फसल (अगस्त बुवाई ) से औसतन लगभग 20-25, मध्यम फसल (सितम्बर-अक्टूबर बुवाई) से 30-40 तथा देर वाली फसल (नवम्बर बुवाई) से 28-32 टन प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त होता है।
गाजर का भडांरण (Storage of Carrot)
सामान्य दशा में गाजर को 3-4 दिन से अधिक भंडारित नहीं किया जा सकता है, परन्तु छिद्रित पॉलीथीन में रखकर इसे कम से कम लगभग 2 सप्ताह तक भडारित किया जा सकता है, जबकि छिद्रित पॉलीथीन में पैक की हुई गाजर (Carrot) शीतगृह में 1-2 डिग्री सेल्सियस तापक्रम व 90–95 प्रतिशत आद्रता पर लम्बे समय (2-3 माह ) तक आसानी से संरक्षित की जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
गाजर दुनिया भर में एक लोकप्रिय भोजन है और इसे ताजा और पकाकर दोनों तरह से खाया जाता है। इन्हें उगाना आसान है और इन्हें विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। व्यावसायिक गाजर की खेती (Carrot Farming) दुनिया भर में कहीं भी एक लाभदायक व्यवसाय है।
अगस्त-सितंबर गाजर (Carrot) की स्थानीय किस्मों की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय है, जबकि अक्टूबर-नवंबर का महीना यूरोपीय किस्मों के लिए आदर्श है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 7.5 सेमी रखें।
विकास के चरण के दौरान, हम आपको नाइट्रोजन-आधारित उर्वरकों से बचने की सलाह देते हैं क्योंकि वे पत्ते के विकास को बढ़ावा देते हैं जबकि गाजर (Carrot) जड़ वाली सब्जियाँ हैं। इसके बजाय, ऐसा उर्वरक खोजें जिसमें पोटेशियम और फॉस्फेट हो। ये दो पोषक तत्व जड़ के विकास को बढ़ावा देते हैं जिससे गाजर की पैदावार बढ़ेगी।
गाजर (Carrot) तब अच्छी होती है जब मिट्टी का पीएच 6 से 7 के बीच तटस्थ से थोड़ा अम्लीय होता है। अच्छी आकार की जड़ें उगाने के लिए हल्की रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी होती है। भारी मिट्टी वाली मिट्टी तब तक ठीक रहती है, जब तक मिट्टी में अच्छी जल निकासी हो और वह संकुचित न हो।
गाजर की फसल (Carrot Crop) बुवाई के 70 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है।
पूसा केसर किस्म से पैदा होने वाले गाजर (Carrot) का आकार छोटा और रंग गहरा लाल होता है। ये किस्म बीज रोपाई के लगभग 90 से 110 दिनों में तैयार हो जाती है। वहीं यह किस्म पैदावार में भी बेहतर होती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर तकरीबन 300 क्विंटल का उत्पादन होता है।
गाजर (Carrot) में जड़ों की पैदावार किस्म के प्रकार के अनुसार प्राप्त होती है जैसे कि एशियाटिक टाइप में 100 से 120 क्विंटल प्रति एकड़ उपज प्राप्त होती है तथा यूरोपियन टाइप में 40 से 50 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार प्राप्त होती है।
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