Chia Seeds Farming: चिया (साल्विया हिस्पेनिका), लैमिएसी कुल का एक पौधा है, जिसे मुख्य रूप से इसके बीज के लिए उगाया जाता है। मानव आहार के लिए इसके बीज का उपयोग महत्वपूर्ण माना गया है। चिया के बीज में 25 से 60% तेल होता है, जिसमें 60% ओमेगा 3 अल्फा-लिनोलेनिक एसिड और 20% ओमेगा 6 लिनोलिक एसिड होता है।
मानव शरीर द्वारा अच्छे स्वास्थ्य के लिए दोनों फैटी एसिड आवश्यक हैं और उन्हें कृत्रिम रूप से संश्लेषित नहीं किया जा सकता है। चिया के बीजों (Chia Seeds) के अनेकों लाभ हैं, चिया के बीज स्वस्थ त्वचा के लिए, बढती उम्र के प्रभाव को कम करना, हृदय और पाचन तंत्र को बेहतर करना, मजबूत हड्डियों और मांसपेशियों का निर्माण करने में सहायक होते हैं।
यह मधुमेह को कम करने के लिए भी सहायक माने जाते हैं। चिया की खेती ऑस्ट्रेलिया, बोलीविया, कोलंबिया, ग्वाटेमाला, मैक्सिको, पेरू और अर्जेंटीना में की जाती है। भारत में चिया की खेती मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में की जाती है। इस लेख में चिया की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
चिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for chia cultivation)
चिया को उष्णकटिबंधीय तटीय रेगिस्थान से लेकर उष्णकटिबंधीय वर्षा वनीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्रों में 800- 2,200 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जा सकता है। चिया (Chia) सर्दियों में फूलने – फलने वाला (शॉर्ट-डे फ्लावरिंग प्लांट) पौधा है जो ठंढ के प्रति संवेदनशील है।
इसलिये दिसंबर और जनवरी के दौरान ज्यादा ठंढ का असर इस पर होता है, क्योंकि यह समय चिया में फूल आने और बालियों में दाना भरने का समय होता है। चिया के बीज का सबसे अच्छा अंकुरण 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीज के तापमान में होता है। चिया पादप की जीवन चक अवधि 120-150 दिनों के बीच होती है।
चिया की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for chia cultivation)
चिया की खेती (Chia Cultivation) के लिए हल्की से मध्यम या रेतीली मिट्टी जो उचित प्रकार से सूखी, मध्यम उपजाऊ हो इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है, साथ ही यह पौधे एसिडिक मिट्टी और मध्यम सूखे को सहन करने में सक्षम होते हैं। बीज बोने के बाद अंकुरण के लिए नमी की आवश्यकता होती है, परंतु परिपक्वता के दौरान गीली मिट्टी चिया के लिए उपयुक्त नहीं है।
चिया की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land Preparation for Chia Cultivation )
मध्यम हल्की से मध्यम भारी मिट्टी जो खरपतवार मुक्त हो, चिया (Chia) की उच्च पैदावार के लिए उपयुक्त होती है। कॉम्पैक्ट मिट्टी और प्रारंभिक खरपतवार फसल वृद्धि को रोकती है। मिट्टी को पूरी तरह से तैयार करने के लिए उसकी अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए। देसी खाद (एफवाईएम) 20 टन प्रति हेक्टेयर बीज बोने या प्रत्यारोपण से कुछ दिन पहले मिट्टी में अच्छी तरह मिलाया जाना चाहिए।
चिया की खेती के लिए बीज दर और समय (Seed quantity and timing for chia cultivation)
अच्छी गुणवत्ता वाला पुर्णरूपेण परिपक्व चिया का बीज (Chia Seeds) चमकदार आवरण (कोट) वाला होता है, जो कीम से चारकोल भूरे गहरे अनियमित चिह्नों या धब्बों के साथ काले या सफेद रंग में होता है। भूरा फीका सफेद रंग, अपरिपक्व चिया बीज की निशानी है। पूर्ण परिपक्व बीज चमकदार गहरे रंग का होता है। इस फसल पर हुये अनुसंधान कार्यो से साबित हुआ है कि चिया की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 5 से 15 अक्टूबर के मध्य का है।
चिया फसल (Chia Crop) में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी व पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी प्रर्याप्त है। बीज 2-3 सेमी से गहरा नही बोना चाहिए। आमतौर पर एक हेक्टेयर क्षेत्र में चिया की बुवाई के लिए 2.5 से 3.0 किलोग्राम बीज का उपयोग कर लिया जाता है, जिसमें पौध उद्धव (ईमर्जेन्स) के बाद पौधों में काफी विरलीकरण (थिनिंग) करने की आवश्यकता पड़ती है। बुवाई के दो सप्ताह बाद विरलीकरण करके पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 सेमी कर दी जाती है।
चिया की खेती के लिए बुवाई की विधि (Sowing method for Chia cultivation)
चिया (Chia) एक मौसमी फसल है तथा बीज द्वारा लगाई जाती है। सीधे बीज बोने, नर्सरी द्वारा और मुख्य क्षेत्र में प्रत्यारोपण द्वारा फसल लगाई जाती है। प्रति हेक्टेयर के लिए 3 से 6 किलोग्राम की सामान्य बुवाई दर और 30 सेंटी मीटर की पंक्ति से पंक्ति एवं 10 सेंटी मीटर की दूरी पौधे से पौधे के बीच उपयुक्त होती है।
यदि कृषक बंधु नर्सरी द्वारा खेती करना चाहते है, तो अच्छी प्रकार से तैयार खेत में वांक्षित आकार की उठी हुई क्यारी बना लें। चिया के बीज आकर में छोटे होते है इसलिए क्यारी की मिट्टी भुरभरी और समतल कर लेना चाहिए। चिया के 100 ग्राम बीज को 1 किलो सुखी मिट्टी के साथ मिलाकर तैयार क्यारी में एकसार बोने के उपरांत बारीक़ वर्मी कम्पोस्ट या मिट्टी से ढक कर हल्की सिचाई करना चाहिए। क्यारी में नियमित रूप से झारे की मदद से हल्की सिचाई करते रही जिससे क्यारी की मिट्टी नम बनी रहें।
पौध रोपण हेतु खेत की भली भांति साफ़ सफाई करने के पश्चात जुताई कर भुरभुरा और समतल कर लेना चाहिए। अब खेत में 30 सेमी की दूरी पर कतारें बनाकर पौध से पौध 10 सेमी का फांसला रखते हुए पौधे रोपना चाहिए। शीत ऋतू – रबी में कतार से कतार 30 सेमी और पौधे से पौधे के मध्य 10 से 20 सेमी की दूरी रखना उचित पाया गया है, क्योंकि ठण्ड के मौसम में पौध बढ़वार कम होती है।
चिया (Chia) पौध रोपण के तुरंत बाद खेत में हल्की सिचाई करना अनिवार्य होती है ताकि पौधे सुगमता से स्थापित हो सकें। भूमि में नमीं के स्तर और मौसम के अनुसार 8-10 दिन के अन्तराल पर हल्की सिचाई करते रहे।
चिया की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizers for Chia Cultivation)
भारत में एक नई फसल होने के कारण, चिया की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को अभी मानकीकरण हेतु परीक्षित किया जा रहा है, अच्छे पौष्टिक उत्पादन के लिए चिया (Chia) की जैविक खेती करना बेहतर रहता है। इसमें पोषण की आवश्यकता को पूरा करने लिए अच्छी तरह से सड़ी हुई 15-20 टन गोबर की खाद को खेत की तैयारी से पूर्व देना लाभदायक रहता है।
हल्की मृदा में पौधों की आवश्यक वृद्धि के लिये 30 किलोग्राम नत्रजन 23 किलोग्राम फास्फोरस और 15 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय देना लाभदायक रहता है। आवश्यकता होन पर बुवाई के 30-45 दिनों के भीतर 10 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में दी जा सकती है।
चिया की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management for Chia Cultivation)
चिया बीज (Chia Seeds) के अंकुर की स्थापना के लिए बुवाई के समय मृदा नमी की पर्याप्त मात्रा आवश्यक है। चिया में सिंचाईयो की संख्या मृदा के प्रकार और तापमान पर निर्भर करती है, हालाँकि, आमतौर पर रेतीली या रेतीली दोमट मिट्टी में बुवाई के बाद 5-6 सिंचाईयों की आवश्यता होती है। बुवाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर देनी चाहिये ताकि बिजों का अंकुरण शुरू हो जाय अन्यथा बीजों को चीटियां ले जा सकती है।
बुवाई के 7-8 दिन बाद एक हल्की सिंचाई देनी चाहिये ताकि बीजाकुंरण संपूर्ण हो जाय। तत्पश्चात 12-15 दिनों के अन्तराल से 4 सिंचाईयां देनी चाहिये। यह फसल परिपक्वता अवस्था के दौरान अत्यधिक नमी के प्रति अति संवेदनशील होती है, अतः फसल परिपक्वता के समय सूखा वातावरण लाभदायक रहता है।
चिया की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Chia crop)
चिया (Chia) एक बहुशाखाओं वाली फसल है, इसलिए खरपतवारों से यह बहुत अधिक प्रभावित नहीं होती है, लेकिन इसके प्रारंभिक विकास अवस्था के दौरान खरपतवार प्रबंधन करना अति आवश्यक होता है, इसके लिये बुवाई के 25-30 दिनों बाद हाथ से खरपतवार नियंत्रण करना कारगर रहता है।
चिया की फसल में पादप संरक्षण (Plant protection in chiya crop)
चिया (Chia) एक ऐसा पौधा है, जिसे न तो किटों से और न ही बिमारियों से कोई समस्या उत्पन्न होती है। हालांकि, परिपक्वता अवस्था के दौरान इसकी बालियों पर चींटियों का प्रकोप देखा गया है, जिसके नियंत्रण के लिये खेत के चारो तरफ किसी कीटनाशी पाउडर की रेखा बनाकर किया जा सकता है। चिया की फसल पर पाले का प्रभाव भी देखा गया है, जिससे कोमल पत्तियां व उभरती हुई बालियां काली पड़ जाती है।
पाले से प्रभावित फसल में बीज पूरी तरह से भराव नहीं कर पाते है, जिससे उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। दिसंबर और जनवरी के महीनों में यह फसल ठंढ के प्रति संवेदनशील होती है। अत: इस दौरान पाला पड़ने की संभावना से पूर्व हल्की सतही सिंचाई करके मिट्टी के तापमान को बनाये रखा जा सकता है, तथा फसल को ठंढ के कारण होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
चिया की फसल कटाई, थ्रेसिंग और भंडारण (Harvesting, Threshing and Storage of Chia)
चिया की फसल 120-130 दिनों में परिपक्व हो जाती है। परिपक्व अवस्था में इसकी सारी पत्तियां झड़ जाती है तथा तने पर सिर्फ बालियाँ रह जाती है। चिया की फसल को दरांती से काटा जा सकता है और थ्रेसिंग के लिए बालियों को लकड़ी की डंडियों से दबाकर या कूटकर बीजों को अलग कर दिया जाता है तथा साजड़े (घरेलू उपकरण) से उफान कर बीजों को बिलकुल साफ कर लिया जाता है।
इस प्रकार साफ और शुष्क (8 प्रतिशत तक नमीयुक्त) बीजों को 3-4 महीने तक सामान्य तौर पर संग्रहीत किया जा सकता है। आजकल छोटे स्कीन का उपयोग करके मानक थ्रेसर में थोड़ा संयोजन करके चिया फसल (Chia Crop) की थ्रेसिंग की जा सकती है।
चिया की फसल से उपज (Yield from chiya Crop)
रबि मौसम में चिया (Chia) की उन्नत विधि से फसल प्रबन्धन करने से 6-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की उपज प्राप्त की जा सकती है।
चिया के ओषधीय गुण (Medicinal properties of chiya)
- चिया के बीज में प्रोटीन, वसा, खनिज लवण और विटामिन्स प्रचुर मात्रा में विद्यमान होती है जिसके कारण इसके सेवन से मांसपेशियां, मस्तिष्क कोशिकाएं और तंत्रिका तंत्र मजबूत होता है।
- चिया के बीजों में एंटी ऑक्सिडेंट्स पर्याप्त मात्रा में होते है, जो शरीर से फ्री रैडिकल्स को बाहर निकलने में मदद करता है, जिससे ह्रदय रोग और कैंसर रोग से बचा जा सकता है।
- चिया के बीजों में ओमेगा- 3 और ओमेगा- 6 फैटी एसिड पाया जाता है, जो ह्रदय रोग और कोलेस्ट्रॉल की समस्याओं को दूर करने में मददगार साबित होता है।
- चिया के बीजों (Chia Seeds) के नियमित सेवन करने से शरीर में सूजन की समस्या से निजात मिलती है।
- चिया के बीज (Chia Seed) भूख शांत करने और बजन घटाने में कारगर साबित हो रहे है।
- चिया के बीज का सेवन करने से शरीर में 18% कैल्शियम की कमीं पूरी होती है, जोकि दांत और हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में मददगार होती है।
- शरीर की त्वचा को कांतिमय बनाने के लिए इसका नियमित सेवन अत्यंत लाभकारी बताया जा रहा है।
- पाचन तंत्र को सुधारने और मधुमेह रोगियों के लिए भी उपयोगी खाद्य है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
चिया के बीजों (Chia Seeds) के अधिक उत्पादन के लिए पोषक तत्वों के साथ खेत को ठीक तरह से तैयार करना उपयुक्त होता है। इसके लिए खेत की सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर की मदद से 2 से 3 बार गहरी जुताई करें, उसके बाद खेत में रोटोवेटर से 1 से 2 बार जुताई करके खेत की मिट्टी भुरभुरा कर देते है। इसके बाद खेत में पाटा लगाकर मिट्टी को समतल करना होता है। इसके बाद उपयुक्त विधि से बीज की बुवाई करते है।
अगर आप उचित उगने वाले क्षेत्र में रहते हैं, तो आप चिया के बीज (Chia Seeds) बो सकते हैं, जैसे आप अन्य वार्षिक फसल बोते हैं। पतझड़ में मिट्टी का बिस्तर तैयार करें और बीजों को हल्के से बिखेर दें, बस मिट्टी से थोड़ा सा ढक दें। अंकुरित होने तक हर दिन हल्का पानी दें।
चिया को अंकुरित होने के लिए ठंडी जलवायु और गर्म मिट्टी पसंद है; भारत में चिया के बीज (Chia Seeds) बोने का सबसे अच्छा समय अगस्त के अंत से अक्टूबर तक है।
चिया बीज (Chia Seeds) का हिंदी नाम “सब्जा” या “तुकमरिया” है।
चिया या मैक्सिकन चिया एक तिलहन फसल है। यह भारतीय किसानों के लिए अपेक्षाकृत नई है, लेकिन इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, चिया की खेती (Chia Cultivation) से उपज बाजार में लागत से दोगुनी से भी अधिक मिल सकती है। यानी खेती में बेहतर मुनाफा कमाने के लिए चिया एक बेहतरीन विकल्प है।
अक्टूबर और नवम्बर माह में इसकी बुवाई करना उचित माना जाता है। इसमें बीज की मात्रा 1 से 1.5 किलोग्राम प्रति एकड़ रखी जाती है। चिया बीज (Chia Seeds) की बुवाई छिटकवाँ विधि से या लाइनों में की जाती है, परन्तु लाइनों में बुवाई करना अधिक उपयुक्त रहता है।
एक हेक्टेयर के खेत से लगभग 6 से 9 क्विंटल का उत्पादन होता है, जिससे किसान भाइयों को अच्छा मुनाफा होता है। चिया के बीजों की बाजार मूल्य भी प्रति किलो लगभग 1 हज़ार रुपये से अधिक है।
भारत में मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान और हरियाणा में इसकी वैज्ञानिक खेती की जा रही है। चिया (Chia) तेल की बढ़ती लोकप्रियता का कारण इसमें मौजूद पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड की उच्च मात्रा है। इसी वजह से इसे पारंपरिक खाद्य तेलों के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने का चलन तेजी से बढ़ रहा है।
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