Gram Farming: चना रबी ऋतु ने उगायी जाने वाली महत्वपूर्ण दलहन फसल है। विश्व के कुल चना (Chickpea) उत्पादन का 70 प्रतिशत भारत में होता है। चने में 21 प्रतिशत प्रोटीन, 61.5 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट तथा 4.5 प्रतिशत वसा होती है। इसमें कैल्शियम, आयरन व नियासीन की अच्छी मात्रा होती है। चने का उपयोग इसके दाने और दाने से बनायी गयी दाल के रुप में खाने के लिये किया जाता है। इसके दानों को पीसकर बेसन बनाया जाता है, जिससे अनेक प्रकार के व्यंजन तथा मिठाईयां बनायी जाती है।
हरी अवस्था में चने के दानों और पौधों का उपयोग सब्जी के रुप में किया जाता है। चने (Chickpea) का भूसा चारे व दाना पशुओं के लिए पोषक आहार के रूप मे प्रयोग किया जाता है। चने (Chickpea) का उपयोग औषधि के रूप में जैसे खून साफ करने के लिए एवं अन्य बीमारियों के लिए भी किया जाता है। चना दलहनी फसल होने के कारण वातावरण से नाइट्रोजन एकत्र कर भूमि की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाता है।
देश में कुल उगायी जाने वाली दलहन फसलों का उत्पादन लगभग 17.00 मिलीयन टन प्रति वर्ष होता है। चने (Chickpea) का उत्पादन कुल दलहन फसलों के उत्पादन का लगभग 45 प्रतिशत होता है। हमारे देश में चने की औसत उपज अन्य देशों की अपेक्षा काफी कम है। चने की खेती (Chickpea Cultivation) उन्नत विधियों द्वारा करने पर इसकी औसत उपज में दोगुनी से अधिक बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
चना की खेती के लिए जलवायु (Climate for Chickpea Cultivation)
चना की खेती (Chickpea Cultivation) के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। चने की फसल की वृद्धि के लिए 20 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। चना की खेती साधारणतया शुष्क फसल के रूप में रबी की ऋतु में की जाती है। न्यून से मध्यम वर्षा और हल्की सर्दी वाले क्षेत्र इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं परन्तु फूलने के बाद वर्षा हानिकारक है। फलियाँ बनते समय यदि वर्षा होती है तो फली बेधक का प्रकोप बढ़ जाता है। चने (Chickpea) के अंकुरण एवं पकने के समय उच्च तापक्रम और बीच में साधारणतः ढंडक वाला मौसम उपयुक्त है।
चने के लिए भूमि और उसकी तैयारी (Land and its Preparation for Gram)
चने की खेती (Chickpea Cultivation) के लिए हल्की दोमट या दोमट मिट्टी अच्छी होती है। भूमि में जल निकास की उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिये। भूमि में अधिक क्षारीयता नहीं होनी चाहिये। प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करनी चाहिये। इसके पश्चात् एक क्रास जुताई हैरों से करके पाटा लगाकर भूमि समतल कर देनी चाहिये।
चना फसल (Chickpea Crop) को दीमक एवं कटवर्म के प्रकोप से बचाने के लिए अन्तिम जुताई के समय हैप्टाक्लोर (4 प्रतिशत) या क्यूंनालफॉस (1.5 प्रतिशत ) या मिथाइल पैराथियोन (2 प्रतिशत) या एन्डोसल्फॉन की (1.5 प्रतिशत) चूर्ण की 25 किग्रा मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में अच्छी प्रकार मिला देनी चाहिये।
चने की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Chickpea)
बीज के आकार, रंग, फूलों के रंग आदि के आधार पर, चने (Chickpea) की सैकड़ों किस्में हैं। साधारणतया चने को दो वर्गों में विभक्त करते हैं, देशी चना तथा काबुली चना। जिनकी किस्में इस प्रकार है, जैसे-
देशी चना: पूसा – 256, के पी जी – 59 (उदय), पंत जी 186, जी एन जी- 1581, हरियाणा चना- 1, करनाल चना- 1, डी सी पी- 92-3, पूसा- 372, पूसा- 329, पूसा- 362, उदय, सम्राट, जी पी एफ- 2, पूसा चमत्कार (बी जी- 1053), आर एस जी- 888 आलोक (के जी डी- 1168), बी जी डी- 28 (के), जी एन जी- 1581, आर एस जी- 963, राजास, आर एस जी- 931, जी एन जी- 143, पी बी जी- 1 और जी एन जी- 663 आदि प्रमुख है।
काबुली चना: जी सी पी- 105, एच के- 2, एच के- 5-169, हरियाणा काबुली चना- 1, जे जी के- 1, जे जी के- 2 और जे जी के- 3 आदि प्रमुख है।
चने की खेती के लिए बीज उपचार (Seed Treatment for Gram Farming)
चने (Chickpea) में अनेक प्रकार के कीट और बीमारियां हानि पहुँचाते हैं। इनके प्रकोप से फसल को बचाने के लिए बीज को उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिये। बीज को उपचारित करते समय ध्यान रखना चाहिये कि सर्वप्रथम उसे फफूंदनाशी, फिर कीटनाशी तथा अन्त में राजोबियम कल्चर सें उपचारित करें।
जड़ गलन तथा उखटा रोग की रोकथाम के लिए बीज को कार्बेन्डाजिम या मैन्कोजेब या थाइरम की 1.5 से 2 ग्राम मात्रा द्वारा प्रति किग्रा बीज दर से उपचारित करें। दीमक और अन्य भूमिगत कीटों की रोकथाम हेतु क्लोरोपाइरीफोस 20 ईसी या एन्डोसल्फान 35 ईसी की 8 मिलीलीटर मात्रा प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये।
अन्त में बीज को राइजोबियम कल्चर के तीन और फास्फोरस घुलनशील जीवाणु के तीन पैकेटों द्वारा एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए आवश्यक बीज की मात्रा को उपचारित करके बुवाई करनी चाहिये। बीज को उपचारित करके लिए एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ को गर्म करके ठंडा होने पर उसमें राइजोबियम कल्चर एवं फास्फोरस घुलनशील जीवाणु को अच्छी प्रकार मिलाकर उसमें बीज उपचारित करना चाहिये। उपचारित बीज को छाया में सूखाकर शीघ्र बुवाई कर देनी चाहिये।
चने बोने का समय और बुवाई (Time of Sowing and Sowing of Chickpea)
असिचिंत क्षेत्रों में चने (Chickpea) की बुवाई अक्टूबर के प्रथम पखवाडे में कर देनी चाहिये। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा हो वहाँ पर बुवाई 30 अक्टूबर तक अवश्य कर देनी चाहिये। फसल से अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए खेत में प्रति इकाई पौधों की उचित संख्या होना बहुत आवश्यक है। पौधों की उचित संख्या के लिए आवश्यक बीज दर और पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे की उचित दूरी की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं।
बारानी खेती के लिए 80 किग्रा तथा सिंचित क्षेत्र के लिए 60 किग्रा बीज की मात्रा प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होती है। बारानी फसल के लिए बीज की गहराई 7 से 10 सेमी तथा सिंचित क्षेत्र के लिए बीज की बुवाई 5 से 7 सेमी गहराई पर करनी चाहिये। चना फसल (Chickpea Crop) की बुवाई पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 50 सेमी पर करनी चाहिये।
चने की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizers for Chickpea Cultivation)
चने की फसल (Chickpea Crop) दलहनी होने के कारण इसकी नाइट्रोजन की कम आवश्यकता होती है, क्योंकि चने के पौधों की जडों में ग्रन्थियां पाई जाती है। ग्रन्थियों में उपस्थित जीवाणु वातावरण की नाइट्रोजन का जड़ों में स्थिरीकरण करके पौधे की नाइट्रोजन की काफी मात्रा की आवश्यकता की पूर्ति कर देती है। लेकिन प्रारम्भिक अवस्था में पौधे की जड़ो में ग्रन्थियों का पूर्ण विकास न होने के कारण पौधे को भूमि से नाइट्रोजन लेनी होती है।
अत: नाइट्रोजन की आपूर्ति हेतु 20 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। इसके साथ 40 किग्रा फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिये। नाइट्रोजन की मात्रा यूरिया या डाई अमोनियम फास्फेट (डीएपी) तथा गोबर खाद और कम्पोस्ट खाद द्वारा दी जा सकती है। जबकि फास्फोरस की आपूर्ति सिंगल सुपर फास्फेट या डीएपी या गोबर व कम्पोस्ट खाद द्वारा की जा सकती है।
एकीकृत पोषक प्रबन्धन विधि द्वारा पोषक तत्वों की आपूर्ति करना लाभदायक होता है। एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिए 2.50 टन गोबर या कस्पोस्ट खाद को भूमि की तैयारी के समय अच्छी प्रकार से मिट्टी में मिला देनी चाहिये। बुवाई के समय 22 किग्रा यूरिया तथा 125 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट या 44 किग्रा डीएपी में 5 किलो ग्राम यूरिया मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से पंक्तियों में देना पर्याप्त रहता है।
चने की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Chickpea Crop)
चने (Chickpea) की अधिकतर खेती बारानी क्षेत्रों में संचित नमी में की जाती है। यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो नमी की कमी होने की स्थिति में एक या दो सिंचाई की जा सकती है। पहली सिंचाई 40 से 50 दिनों बाद तथा दूसरी सिंचाई फलियां आने पर की जानी चाहिये। सिचिंत क्षेत्रों में चने की खेती के लिए 3 से 4 सिंचाई पर्याप्त होती है।
बुवाई से पहले पलेवा करके फसल की बुवाई करनी चाहिये। इसके पश्चात् फसल की गुड़ाई करने के पश्चात् बुवाई के 35-40 दिन बाद प्रथम, 70-80 दिन बाद दूसरी और 105-110 दिनों बाद अन्तिम सिंचाई करनी चाहिये।
यदि बुवाई के बाद दो ही सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो प्रथम बुवाई के 40-50 दिनों बाद तथा द्वितीय 80-85 दिनों बाद करनी चाहिये। यदि बुवाई के बाद एक ही सिंचाई करने योग्य पानी उपलब्ध हो तो बुवाई के 60-65 दिनों बाद सिंचाई करने को प्राथमिकता देनी चाहिये। ध्यान रहे खेत में अधिक समय तक पानी भरा नहीं रहना चाहिये, इससे फसल के पौधों को नुकसान हो सकता है।
चना फसल में निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण (Weeding and Weed Control in Gram Crop)
चने की फसल (Chickpea Crop) में अनेक प्रकार के खरपतवार जैसे बथुआ, खरतुआ, मोरवा, प्याजी, मोथा, दूब इत्यादि उगते है। ये खरपतवार फसल के पौधों के साथ पोषक तत्वों, नमी, स्थान और प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करके उपज को प्रभावित करते है। इसके अतिरिक्त खरपतवारों के द्वारा फसल में अनेक प्रकार की बीमारियों तथा कीटों का भी प्रकोप होता है, जो बीज की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते है। खरपतवारों द्वारा होने वाली हानि को रोकने के लिए समय ये नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है।
चने की फसल (Chickpea Crop) में दो बार गुड़ाई करना पर्याप्त होता है। प्रथम गुड़ाई फसल बुवाई के 30-35 दिन पश्चात् और दूसरी 50-55 दिनों बाद करनी चाहिये। यदि मजदूरों की उपलब्धता न हो तो फसल बुवाई के तुरन्त पश्चात् पैन्डीमैथालीन की 2.50 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर खेत में समान रूप से मशीन द्वारा छिड़काव करना चाहिये। फिर बुवाई के 30-35 दिनों बाद एक गुड़ाई कर देनी चाहिये। इस प्रकार चने की फसल में खरपतवारों द्वारा होने वाली हानि की रोकथाम की जा सकती है।
चना फसल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and Disease Control in Chickpea Crop)
चने की फसल (Chickpea Crop) में अनेक प्रकार के कीटों और बीमारियों का प्रकोप होता है जिनका उचित समय पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है, जैसे-
दीमक, कटवर्म एवं वायर वर्म: यदि बुवाई से पहले एन्डोसल्फॉन, क्यूनालफोस या क्लोरोपाइरीफोस से भूमि को उपचारित किया गया है तथा बीज को क्लोरोपाइरीफोस कीटनाशी द्वारा उपचारित किया गया है, तो भूमिगत कीटों द्वारा होने वाली हानि की रोकथाम की जा सकती है। यदि खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरोपाइरीफोस 20 ईसी या एन्डोसल्फान 35 ईसी की 2 से 3 लीटर मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के साथ देनी चाहिये। ध्यान रहे दीमक के नियन्त्रण हेतु कीटनाशी का जड़ों तक पहुचना बहुत आवश्यक है।
कटवर्म की लटें ढेलों के नीचे छिपी होती है तथा रात में पौधों को जड़ों के पास काटकर फसल को नुकसान पहुँचाती है। कटवर्म के नियंत्रण हेतु मिथाइल पैराथियोन 2 प्रतिशत या क्यूनालफोस 1.50 प्रतिशत या एन्डोसल्फॉन् 4 प्रतिशत चूर्ण की 25 किलोग्राम मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव शाम के समय करना चाहिये। ट्राईक्लोरोफॉन 5 प्रतिशत चूर्ण की 25 किग्रा मात्रा को भी प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव किया जा सकता है।
फली छेदक: यह कीट प्रारम्भिक अवस्था में पत्तियों को खाकर फसल को हानि पहुँचाता है। फली आने पर उसमें छेद बनाकर अन्दर घुस जाता है तथा दाने को खाकर फली को खोखला बना देता है। इस कीट के नियंत्रण हेतु फसल में फूल आने से पहले तथा फली लगने के बाद एन्डोसल्फॉन 4 प्रतिशत या क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाइल पैराथियोन 2 प्रतिशत चूर्ण की 20-25 किग्रा मात्रा को प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकनी चाहिये।
पानी की उपलब्धता होने पर मोनोक्रोटोफॉस 35 ईसी या क्यूनॉलफोस 25 ईसी की 1.25 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से फसल में फूल आने के समय छिड़काव करना चाहिये।
झुलसा रोग (ब्लाइट): यह बीमारी एक फफूंद के कारण होती है। इस बीमारी के कारण पौधे की जड़ों को छोड़कर तने, पत्तियों और फलियों पर छोटे गोल तथा भूरे रंग के धब्बे बन जाते है। पौधे की आरम्भिक अवस्था में जमीन के पास तने पर इसके लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देते है। पहले प्रभावित पौधे पीले तथा फिर भूरे रंग के हो जाते है तथा अन्तत: पौधा सूखकर मर जाता है।
इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर मैन्कोजेब नामक फफूंदनाशी की एक किग्रा या घुलनशील गन्धक की एक किग्रा या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 1.30 किग्रा मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। 10 दिनों के अन्तर पर 3-4 छिड़काव करने पर्याप्त होते है।
उखटा रोग (विल्ट): इस बीमारी के लक्षण जल्दी बुवाई की गयी फसल में बुवाई के 20-25 दिनों बाद स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते है। देरी से बोई गयी फसल में रोग के लक्षण फरवरी व मार्च में दिखाई देते है। पहले प्रभावित पौधे पीले रंग के हो जाते है तथा नीचे से ऊपर की ओर पत्तियाँ सूखने लगती है।
अन्तत: पौधा सूखकर मर जाता है। इस रोग के नियन्त्रण हेतु भूमि में नमी की कमी नही होनी चाहिये। यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो बीमारी के लक्षण दिखाई देते ही सिंचाई कर देनी चाहिये। रोग रोधी किस्मों जैसै आरएसजी 888, सी 235 तथा बीजी 256 की बुवाई करनी चाहिये।
किट्ट (रस्ट): इस बीमारी के लक्षण फरवरी व मार्च में दिखाई देते है। पत्तियों की ऊपरी सतह पर, फलियों पर्णवृतों तथा टहनियों पर हल्के भूरे काले रंग के उभरे हुए चकत्ते बन जाते है। इस रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब नामक फफूंदनाशी की एक किग्रा या घुलनशील गन्धक की एक किग्रा या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 1.30 किग्रा मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। 10 दिनों के अन्तर पर 3-4 छिड़काव करने पर्याप्त होते है।
चने की फसल का पाले बचाव (Frost Protection of Chickpea Crop)
चने की फसल (Chickpea Crop) में पाले के प्रभाव के कारण काफी क्षति हो जाती है। पाले के पड़ने की संम्भावना दिसम्बर-जनवरी में अधिक होती है। पाले के प्रभाव से फसल को बचाने के लिए फसल में गन्धक के तेजाब की 0.1 प्रतिशत मात्रा यानि एक लीटर गन्धक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिये। पाला पड़ने की सम्भावना होने पर खेत के चारों और धुआं करना भी लाभदायक रहता है।
चने की खेती और फसल चक्र (Cultivation and Crop Rotation of Chickpea)
भूमि की उर्वरा शक्ति बनाये रखने और फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए उचित फसल चक्र की विशेष भूमिका होती है। असिंचित क्षेत्र में पड़त – चना ( एक वर्षीय), पड़त – चना – पड़त – सरसों (द्विवर्षीय), तथा पड़त – चना-पड़त – सरसों – पड़त – चना ( तीन वर्षीय) फसल चक्र अपनाये जा सकते है।
चना फसल की कटाई और गहाई (Harvesting and Threshing of Chickpea Crop)
चना फसल (Chickpea Crop) जब अच्छी प्रकार पक जाये तो कटाई करनी चाहिये। जब पत्तियाँ व फलियाँ पीली व भूरे रंग की हो जाये तथा पत्तियाँ गिरने लगे और दाने सख्त हो जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिये। कटाई की गई फसल जब अच्छी प्रकार सूख जाये तो थ्रैशर द्वारा दाने को भूसे से अलग कर लेना चाहिये तथा अच्छी प्रकार सुखाकर सुरक्षित स्थान पर भण्डारित कर लेना चाहिये।
चने की खेती से पैदावार और भंडारण (Yield and Storage from Chickpea Cultivation)
चने (Chickpea) की उन्नत विधि अपनाते हुए और अच्छी प्रजाति का चुनाव करके प्रति हेक्टेयर 20-25 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है। भंडारण के समय दानों में नमी का प्रतिशत 10 से अधिक नहीं हो। भण्डार गृह में 2 गोली एल्युमिनियम फास्फाइड प्रति टन रखने से भण्डार कीटों से सुरक्षा मिलती है। भण्डारण के दौरान चने को अधिक नमी से बचायें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
चने की फसल (Chickpea Cultivation) को 30-40 सेंटीमीटर की पंक्ति दूरी पर सीड ड्रिल या स्थानीय हल द्वारा बोया जा सकता है। बीज के आकार के आधार पर प्रति हेक्टेयर 75-100 किलोग्राम बीज दर एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त हो सकती है। बीज को 8-10 सेंटीमीटर गहराई पर लगाया जाना चाहिए क्योंकि उथले हिस्से को 0.25 प्रतिशत से उपचारित किया जाना चाहिए।
चने (Chickpea) आपके द्वारा लगाए जाने के लगभग 100 दिन बाद तुड़ाई के लिए तैयार हो जाएँगे। अगर आप उन्हें ताज़ा खाने की योजना बना रहे हैं, तो उन्हें तब काटें जब फलियाँ अभी भी छोटी और हरी हों, फिर उन्हें स्नेप बीन्स की तरह खाएँ। अगर आप उन्हें सुखाना पसंद करते हैं, तो पत्तियों के मुरझाने और भूरे होने का इंतज़ार करें, फिर पूरे पौधे को उखाड़ लें।
भारत में चने की बुवाई सितंबर से नवंबर के महीनों में की जाती है और इसीलिए यह रबी की फसल की श्रेणी में आता है। अमेरिका में यह फसल अप्रैल के मध्य में बोई जाती है। देसी किस्म के चने (Chickpea) की पकने की अवधि 95-105 दिन और काबुली किस्म के चने की पकने की अवधि 100-110 दिन होती है।
अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी (भारी चिकनी मिट्टी या अम्लीय मिट्टी नहीं), अंकुरण के दौरान उच्च जल की आवश्यकता होती है, लेकिन जलभराव के प्रति संवेदनशील है। गर्म जलवायु, फूल आने के दौरान 15°C से कम और 35°C से अधिक तापमान के प्रति संवेदनशील है।
चने (Chickpea) की देसी किस्मों के लिए 15-18 किलो बीज प्रति एकड़ डालें और 37 किलो बीज प्रति एकड़ काबुली किस्मों के लिए डालें। यदि बिजाई नवंबर के दूसरे पखवाड़े में की जाए तो 27 किलो बीज प्रति एकड़ डालें और यदि बिजाई दिसंबर के पहले पखवाड़े में की जाए तो 36 किलो बीज प्रति एकड़ डालें।
सीएसजे- 515 नामक चने की विकसित किस्म अधिक उत्पादकता के साथ-साथ प्रतिकूल अवस्थाओं के प्रति अधिक सहनशील एवं प्रतिरोधी है। अतः चने (Chickpea) की भी आधुनिक तकनीकी से सस्य क्रियाएं करने से सीएसजे – 515 से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
पहली सिंचाई 40 से 50 दिनों बाद तथा दूसरी सिंचाई फलियां आने पर की जानी चाहिये। सिचिंत क्षेत्रों में चने की खेती (Chickpea Cultivation) के लिए 3 से 4 सिंचाई पर्याप्त होती है।
चने (Chickpea) अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 20-25 किलोग्राम नत्रजन 50-60 किलोग्राम फास्फोरस 20 किलोग्राम पोटाष व 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करे। वैज्ञानिक षोध से पता चला है कि असिंचित अवस्था में 2 प्रतिषत यूरिया या डीएपी का फसल पर स्प्रे करने से चना की उपज में वृद्धि होती है।
चने (Chickpea) की अच्छी पैदावार लेने के लिए 2 निराई-गुड़ाई करना आवश्यक है। पहली गुड़ाई बिजाई से 25-30 दिन बाद तथा दूसरी 45-50 दिन पर करें। पछेती बिजाई में दूसरी गुड़ाई 55-60 दिन पर करें। खरपतवार नियंत्रण पर विशेष ध्यान दें।
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