Chicory Cultivation: कासनी की खेती नगदी फसल के रूप की जाती है। इसको चिकोरी और चिकरी के नाम से भी जाना जाता है। कासनी एक बहुपयोगी फसल है। इसकी खेती रबी की फसलों के साथ की जाती है। इसका इस्तेमाल हरे चारे के अलावा औषधीय रूप में कैंसर जैसी बिमारी में किया जाता है और खाने में इसका इस्तेमाल कॉफ़ी के साथ किया जाता है। कॉफ़ी में इसकी जड़ों को भुनकर मिलाया जाता है।
जिससे काफी का स्वाद बदल जाता है। इसकी जड़ मूली के जैसी दिखाई देती है। कासनी के पौधे पर नीले रंग के फूल दिखाई देते हैं। जिनसे इसका बीज तैयार होता है। इसके बीज छोटे, हल्के और और भूरे सफेद दिखाई देते हैं। कासनी की खेती (Chicory Farming) से फसल के रूप में इसके कंद और दाने दोनों उपज के रूप में प्राप्त होते हैं। कसनी की खेती किसानों को दोहरा लाभ पहुँचाती हैं।
इसकी खेती कर किसान भाई इसकी जड़ों के साथ साथ इसके बीजों की पैदावार भी लेते है। जिसका बाजार भाव काफी अच्छा मिलता है। कासनी की फसल (Chicory Cultivation) किसानों के लिए काफी लाभकारी मानी जाती है। अगर आप भी इसकी खेती के माध्यम से अच्छा उत्पादन लेना चाहते हैं, तो इस लेख में हम आपको इसकी वैज्ञानिक खेती के बारें में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं।
कासनी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for the cultivation of chicory)
चिकोरी की खेती के शीतोष्ण और समशीतोष्ण दोनों जलवायु उपयुक्त होती है। इसके पौधे अधिक तेज गर्मी में विकास नही कर पाते। जबकि सर्दी का मौसम इसके पौधों के विकास के लिए काफी उपयुक्त होता है। इसका पौधा सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी सहन कर सकता है। शुरुआत में इसके पौधों को अंकुरण के लिए 25 डिग्री के आसपास तापमान की जरूरत होती है।
उसके बाद इसके पौधे 10 डिग्री तापमान पर भी आसानी से विकास कर लेते हैं। जबकि इसकी फसल के पकने के दौरान पौधों को 25 से 30 डिग्री के बीच तापमान की जरूरत होती है। कासनी की खेती (Chicory Cultivation) ज्यादातर उत्तर भारत के राज्यों में ही की जाती है। इसकी खेती के लिए सामान्य बारिश की जरूरत होती है।
कासनी की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for chicory cultivation)
चिकोरी की खेती सामान्य तौर पर किसी भी तरह की भूमि में की जा सकती है। लेकिन जब इसकी खेती व्यापारिक तौर पर उत्पादन लेने के लिए की जाए, तो इसे उचित जल निकासी वाली उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए। इसकी खेती के लिए जलभराव वाली भूमि उपयुक्त नही होती और कासनी की खेती (Chicory Farming) के लिए भूमि का पीएच मान सामान्य के आसपास होना चाहिए।
कासनी की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for chicory cultivation)
कासनी की खेती (Chicory Farming) के लिए मिट्टी का भुर भुरा और साफ-सुथरा होना जरूरी है। इसलिए शुरुआत में ही खेत की तैयारी के दौरान खेत में मौजूद पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट कर खेत की मिट्टी पलटने वाले हलों से गहरी जुताई कर दें। उसके बाद खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ दें। खेत को खुला छोड़ने के बाद उसमें पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसे मिट्टी में मिला दें।
खाद को मिट्टी में मिलाने के लिए खेत की कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें। खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी में मौजूद ढेलों को नष्ट कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। उसके बाद खेत को समतल ढालू बाना लें, ताकि अधिक बारिश के दौरान खेत में जलभराव ना हो पायें। उसके बाद खेत में बीज रोपाई के लिए उचित आकर की क्यारी तैयार की जाती हैं।
कासनी की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for cultivation of chicory)
कासनी (Chicory) की दो प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिन्हें किसान भाई अलग अलग उपयोग के लिए उगाते है। जो इस प्रकार है, जैसे-
जंगली किस्में: चिकोरी की जंगली किस्में सामान्य रूप से उगाई जाती है। जिसका इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। इसकी पत्तियों का स्वाद हल्का कडवा होता है। इसका पौधा एक बार लगाने के बाद कई कटाई देता हैं। इसके कंद सामान्य तौर पर कम मोटे पाए जाते हैं।
व्यापारिक किस्में: व्यापारिक प्रजाति की किस्मों को फसल के रूप में उगाते हैं। इसका पौधा रोपाई के लगभग 140 दिन के आसपास खुदाई के लिए तैयार हो जाता है। इस प्रजाति की जड़ों का स्वाद हल्का मीठा पाया जाता है। जो इस प्रकार है, जैसे-
के 1: कासनी (Chicory) की इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के पाए जाते हैं। जिनकी जड़ें आकार में मोटी। लम्बी और शंकु की तरह नुकीली पाई जाती हैं। इसकी जड़ों का रंग भूरा और गुदा सफ़ेद रंग का पाया जाता है। इसके पौधे को उखाड़ते वक्त सावधानी रखनी पड़ती हैं। क्योंकि इसकी जड़े उखाड़ते वक्त टूट जाती हैं।
के 13: चिकोरी की इस व्यापारी किस्म का उत्पादन हिमाचल प्रदेश में अधिक किया जाता है। इस किस्म के पौधों की जड़ें गठी हुई और मोटी दिखाई देती है। इसके गुदे का रंग सफ़ेद पाया जाता है। इसकी जड़ें उखाड़ते समय काफी कम टूटती हैं। जिससे इनका उत्पादन अच्छा मिलता है।
कासनी बीज रोपाई का तरीका और समय (Chicory seed planting method and time)
कासनी (Chicory) के बीजों की रोपाई इसके उपयोग के आधार पर की जाती है। अगर इसकी फसल को हरे चरें के रूप में उपयोग लेने के लिए उगाई जाए तो इसके बीजों की रोपाई सघन तरीके से की जाती है। जबकि व्यापारिक उद्देश्य के रूप में उगाने के दौरान बीजों की रोपाई अधिक दूरी पर की जाती है।
दोनों ही तरीकों से रोपाई के दौरान इसके दानो को छिडकाव विधि के माध्यम से उगाया जाता हैं। सघन रोपाई के दौरान इसके बीजों को खेत में सीधा छिड़क दिया जाता है। जबकि व्यापारिक तरीके से रोपाई के दौरान इसके बीजों को दानेदार मिट्टी के साथ मिलाकर छिड़कते हैं। जिससे दानो के मध्य दूरी उचित पाई जाती है।
कासनी की खेती के लिए लाइन में रोपाई (Planting in lines for the cultivation of chicory)
इसके दानो को छिडकने के बाद उन्हें हल्के हाथों से मिट्टी में मिला दिया जाता है। इसके दानो की रोपाई मिट्टी में एक से दो सेंटीमीटर की गहराई में करनी चाहिए। अधिक गहराई में इसकी रोपाई करने पर पौधों का अंकुरण प्रभावित होता है। जबकि कुछ किसान भाई इसके बीजों का छिडकाव करने के बाद लगभग आधा से एक फिट के बीच की दूरी के चौड़े हलों को बनाकर खेत में लाइन (मेड) बना देते हैं। जिससे मेड पर रहने वाले बीज आसानी से निकल आते हैं।
उनके बीच की दूरी भी उचित पाई जाती है। कासनी (Chicory) के बीजों की रोपाई अगेती पैदावार के रूप में खरीफ की फसल की रोपाई के तुरंत बाद अगस्त माह में कर दी जाती है। जबकि सामान्य तौर पर इसे मध्य अक्टूबर से नवम्बर माह के शुरुआत तक उगा देना चाहिए। हरे चारे के रूप में किसान भाई इसे जुलाई के आखिरी में भी उगा सकते हैं।
कासनी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Kasni Crop)
कासनी (Chicory) के पौधों की सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। उसके बाद बीजों के अंकुरण होने तक आवश्यकता के अनुसार उनकी हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग तीन से चार दिन बाद पूर्ण रूप से अंकुरित हो जाते हैं। पौधों के अंकुरण होने के बाद उनकी सिंचाई फसल के उपयोग के आधार पर की जाती हैं। अगर इसकी फसल को हरे चारे की उपलब्धता के आधार पर उगाया जाता है, तो फसल में पानी की अधिक जरूरत होती है।
हरे चारे के रूप में उगाने के दौरान इसके पौधों की 5 से 7 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए। व्यापारिक तौर पर फसल का उत्पादन लेने के दौरान पौधों के विकास के लिए सामान्य सिंचाई की जरूरत होती है। इसके पौधों को विकास के दौरान 20 दिन के अंतराल में पानी देना चाहिए। उसके बाद पौधों पर फूल खिलने और उनमें दाने बनने के दौरान सिंचाई के समय अंतराल को कम कर देना चाहिए। क्योंकि इस दौरान पानी की कमी होने से दाने कम बनते हैं।
कासनी की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in chicory crop)
कासनी (Chicory) के पौधों में उर्वरक की जरूरत फसल के उपयोग के आधार पर की जाती है। इसकी खेती के लिए शुरुआत में खेत की तैयारी के दौरान खेत में 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को जैविक उर्वरक के रूप में खेत में डालकर मिट्टी में मिला दें। इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में खेत की आखिरी जुताई के वक्त लगभग चार बोरे एनपीके की मात्रा को खेत में छिड़कर मिट्टी में मिला दें।
पौधों की रोपाई के बाद भी पौधों के विकास के लिए उर्वरक की जरूरत होती है। इस दौरान अगर फसल की कटाई बार बार हरे चारे के रूप में की जाती है, तो पौधों को हर दूसरी कटाई के बाद लगभग 20 किलो यूरिया का छिडकाव खेत में करना चाहिए। जबकि व्यापारिक तौर पर उगाने के दौरान फसल की जड़ों के विकास के दौरान प्रति एकड़ लगभग 25 किलो यूरिया का छिडकाव खेत में करना चाहिए।
कासनी की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in chicory crop)
कासनी की खेती (Chicory Farming) में खरपतवार नियंत्रण उसके उपयोग के आधार पर किया जाता है। हरे चारे के रूप में फसल की खेती करने के दौरान पौधों को खरपतवार नियंत्रण करने की जरूरत नही होती। लेकिन जब इसकी पैदावार उपज के आधार पर की जाती हैं, तो फसल में खरपतवार नियंत्रण की जरूरत होती हैं। इस दौरान इसके पौधों में खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक तरीके से नीलाई गुड़ाई कर किया जाता है।
प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के दौरान इसके पौधों की दो गुड़ाई काफी होती है। इसके पौधों की पहली गुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद करनी चाहिए और उसके बाद पौधों की दूसरी गुड़ाई, पहली गुड़ाई के लगभग 20 से 25 दिन के बीच कर देनी चाहिए। क्योंकि उसके बाद इसकी जड़ों का आकार बड़ा हो जाता है। जिससे बाद में गुड़ाई के दौरान जड़ों में नुक्सान पहुँच सकता है।
कासनी की फसल में मिट्टी चढ़ाना (Earthing up in kasni crop)
कासनी की खेती (Chicory Farming) में मिट्टी चढाने का काम फसल की रोपाई के बाद जब पौधे की जड़ें विकसित होने लगती हैं, तब किया जाता है। इस दौरान इसके पौधों पर मिट्टी चढ़ाने का काम महीने के दो बार करना चाहिए। ताकि पौधों की जड़ों का आकार अच्छा बने।
कासनी की फसल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in chicory crop)
कासनी (Chicory) के पौधों में सामान्य रूप से काफी कम ही रोग देखने को मिलते हैं। जिनमें कुछ कीट रोग इसकी फसल को काफी नुक्सान पहुँचाते हैं, जैसे-
बालदार सुंडी: कासनी के पौधों में बालदार सुंडी का प्रकोप पौधों पर शुरुआत में अगेती पैदावार के दौरान देखने को मिलता है। इसकी सुंडी पौधों की पत्तियों को खाकर उन्हें नुक्सान पहुँचाती हैं। जिससे पौधों का विकास रुक जाता है। इस कीट की रोकथाम के लिए अगर फसल हरे चारे के लिए लगाईं गई हो तो नीम के तेल और सर्फ के घोल का छिडकाव करना चाहिए। इसके अलावा फसल व्यापारीक तौर पर उगाई गई हो तो मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव भी लाभदायक होता है।
जड़ गलन: जड़ गलन का प्रभाव पौधों में अधिक नमी की वजह से दिखाई देता हैं। इसके लगने से कासनी (Chicory) की पैदावार में काफी नुक्सान पहुँच सकता है। इसकी रोकथाम के लिए पौधों में पानी का भराव अधिक ना होने दें। इसके अलावा शुरुआत में खेत की जुताई के वक्त खेत में नीम की खली का छिडकाव कर मिट्टी में मिला दें।
कासनी फसल की कटाई और मड़ाई (Harvesting and threshing of chicory crop)
कासनी की फसल की कटाई अलग अलग इस्तेमाल के लिए अलग अलग तरह से की जाती है। हरे चारे के रुप में इस्तेमाल के दौरान इसके पौधे बीज रोपाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। हरे चारे के रूप में इसके पौधों की एक बार रोपाई के बाद 10 से 12 कटाई आसानी से की जा सकती है। क्योंकि इसके पौधे 12 से 15 दिन बाद फिर से कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
जबकि पैदावार के रूप में चकोरी की फसल (Chicory Crop) की खुदाई जब जड़ों का आकार अच्छा दिखाई देने लगे तब कर लेनी चाहिए। इसकी जड़ें बीज रोपाई के लगभग तीन से चार महीने बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इस दौरान इसकी जड़ों की खुदाई कर लेनी चाहिए। लेकिन अगर कृषक भाई इसके बीज बनाना चाहते है, तो वो इसके पौधों की खुदाई बीजों की कटाई के बाद कर सकते है।
इसके बीजों के रूप में कटाई दो से तीन बार में की जाती है। क्योंकि इसके दाने एक साथ पककर तैयार नही होते। कासनी (Chicory) की जड़ों की खुदाई के बाद उन्हें साफ़ पानी से धोकर बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है और बीजों को मशीन की सहायता से निकाल लिया जाता है।
कासनी की फसल से पैदावार (Yield from kasni Crop)
चिकोरी (Chicory) की विभिन्न किस्मों के पौधे रोपाई के लगभग 120 दिन के आसपास खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जिनसे कंदों के रूप में प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 20-25 टन के आसपास पाया जाता है और इसके बीजों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 5-7 क्विंटल के आसपास पाया जाता हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
चकोरी की खेती (Chicory Farming) करने के लिए भूमि को समतल रखना चाहिए। क्योंकि ऊंची नीची भूमि होने पर खेत में जलभराव हो जाता है, यह फसल जलभराव को सहन नहीं कर पाती है। इसकी खेती करने के लिए मिट्टी का पीएच मान सामान्य उचित होता है।
चकोरी की बुवाई करने के लिए बीजो की रोपाई अगस्त के महीने में करनी चाहिए। इसकी सीधी बुवाई जमीन पर की जाती है, जिसमें सही गहराई और दूरी पर चिकोरी के बीज बिखेरे जाते हैं। खेती की प्रक्रिया के दौरान , पर्याप्त सिंचाई बनाए रखना आवश्यक है।
चिकोरी की खेती के लिए समशीतोष्ण और शीतोष्ण दोनों जलवायु उपयुक्त होती है। इसके पौधों को विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है। कासनी की खेती (Chicory Farming) के लिए सर्दी का मौसम सबसे उपयुक्त होता है।
चिकोरी (Chicory) को सबसे अच्छी वृद्धि के लिए उपजाऊ, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद है जो कार्बनिक पदार्थों से भरपूर हो। अधिकांश मिट्टी चिकोरी उत्पादन के लिए उपयुक्त है बशर्ते वे अच्छी जल निकासी वाली और उपजाऊ हों।
चिकोरी (Chicory) के बीजों की रोपाई अगेती पैदावार के रूप में खरीफ की फसल की रोपाई के तुरंत बाद अगस्त माह में कर दी जाती है। जबकि सामान्य तौर पर इसे मध्य अक्टूबर से नवम्बर माह के शुरुआत तक उगा देना चाहिए। हरे चारे के रूप में किसान भाई इसे जुलाई के आखिरी में भी उगा सकते हैं।
कासनी (Chicory) की बुवाई के लिए बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर 1 से 2 किलोग्राम उपचारित बीज पर्याप्त रहता है।
रेडिकियो रोसो किस्म, गर्मी और शरद ऋतु की फसल के लिए बहुत उत्पादक है। इसका बारहमासी खेती वाला रूप है। इसे एक पत्ती वाली सब्जी के रूप में उगाया जाता है और आमतौर पर इसमें रंगीन, सफेद-शिराओं वाली लाल पत्तियां होती हैं। इसका कड़वा और मसालेदार स्वाद होता है, जो इसे भूनने या भूनने पर कम हो जाता है।
कासनी (Chicory) को पतझड़ की फसल के लिए भी लगाया जा सकता है। इसको 6 महीने की फसल के रूप में लगाया जाता है, जिसमें वसंत में रोपी गई चिकोरी को गर्मियों के दौरान चराया जाता है, फिर हर शरद ऋतु में उसे छिड़का जाता है और फिर से छोटे रोटेशन या बारहमासी चरागाहों में लगाया जाता है।
मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए नियमित रूप से चिकोरी (Chicory) को पानी दें, हर हफ़्ते 1-2 इंच पानी डालें। पानी की ज़रूरतें मिट्टी के प्रकार और तापमान पर निर्भर करती हैं।
कासनी के कंद की खुदाई बुवाई के लगभग 90-120 दिन के बाद की जानी चाहिए। जिसके द्वारा लगभग 20-25 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन प्राप्त होता है और चकोरी की खेती (Chicory Farming) से लगभग 5-7 कुंटल तक बीज प्राप्त हो जाता है।
Leave a Reply