Chilli Farming: व्यावसायिक फसलों में मिर्च का एक महत्वपूर्ण स्थान है, सोलेनेसी कुल की इस फसल को दुनिया भर में हरे फल उत्पादन तथा मसालों के रूप मे बहुतायत मात्रा में प्रयोग किया जाता है। मिर्च की खेती की शुरूआत मध्य-दक्षिण अमेरिका से हुई थी और अब पूरे विश्व में इसकी खेती की जाती है। प्राय: सभी लोग कम अथवा अधिक मात्रा में मिर्च का प्रयोग किसी न किसी रूप में करते हैं। मिर्च भोजन को, विशेषकर सब्जियों को चटपटा बना देता है, जिससे उनकी उपयोगिता बढ़ जाती है।
तीखी हरी मिर्च का प्रयोग सलाद, सब्जी, केचप, निर्माण में तथा सूखी लाल मिर्च का उपयोग मसाले, अचार तथा प्राकृतिक रंग (ओलियोरेजिन) उत्पादन में किया जाता है। मिर्च में तीखापन कैप्सेसिन नामक प्रमुख अवयव के कारण होता है। मिर्च (Chilli) से प्राप्त ओलियोरेजिन और कैप्सेसिन का उपयोग विभिन्न उद्योगों जैसे दवा उद्योग, आहार, सौन्दर्य प्रसाधन, इत्यादि में किया जाता है।
इसके अलावा पोषण तत्वों में विटामिन सी हरे तथा परिपक्व लाल फल में बहुतायत में पाया जाता है, सम्पूर्ण विश्व में भारत मिर्च का सर्वाधिक उत्पादन, खपत और निर्यात करने वाला देश है। भारतवर्ष में मिर्च की खेती लगभग 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है, जिससे लगभग 13 लाख टन सूखे मिर्च का उत्पादन होता है। मिर्च की खेती (Chilli Cultivation) से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर जानकारियां निम्नलिखित है।
मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for chilli cultivation)
मिर्च की खेती (Chilli Cultivation) के लिए आर्द्र और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। इसकी खेती के लिए अधिक गर्मी और सर्दी दोनों ही नुकसानदायक होती है। गर्मियों के मौसम में तेज़ हवाओं के चलने से इसके पौधे पर बनने वाले फूल और फल दोनों ही खराब हो जाते हैं। जबकि सर्दियों में पड़ने वाला पाला इसके पौधे को अधिक नुक्सान पहुँचाता है। इसकी खेती के लिए ज्यादा बारिश की भी आवश्यकता नही होती।
मिर्च (Chilli) के पौधे को अंकुर होने और विकास करने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है। सामान्य तापमान पर इसका पौधा आसानी से विकास करता है। गर्मियों में इसका पौधा अधिकतम 35 डिग्री और सर्दियों में न्यूनतम 10 डिग्री तापमान पर भी विकास कर सकता है। इससे कम या ज्यादा तापमान होने की स्थिति में पौधे पर बनने वाले फूल और फल खराब हो जाते हैं।
मिर्च की खेती के लिए मिट्टी का चयन (Selection of soil for chilli cultivation)
मिर्च की खेती (Chilli Cultivation) के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर काली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। इसकी खेती के लिए मिट्टी में उचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। जलभराव की स्थिति में इसके पौधे में कई तरह के विषाणु और किट जनित रोग लग जाते हैं।
जिसका असर पैदावार पर देखने को मिलता है। इसकी खेती के लिए मिटटी का पीएच मान 5.5 से 7 के बीच होना चाहिए। हालाँकि इसको 8 पी एच मान (वर्टीसोल्स) वाली मिटटी में भी उगाया जा सकता है।
मिर्च की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for chilli cultivation)
मिर्च की फसल (Chilli Crop) के लिए शुरुआत में खेत में मौजूद सभी तरह के अवशेषों को नष्ट कर दें। उसके बाद मिट्टी पलटने वाले हलों से खेत की गहरी जुताई कर तेज़ धूप लगने के लिए खेत को खुला छोड़ दें। उसके कुछ दिन बाद खेत में 25 से 30 गाडी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद डालकर मिट्टी में मिला दें। खाद डालकर मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी छोड़ दें। पानी छोड़ने के दो से तीन दिन बाद खेत की फिर से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें और साथ में पाटा चलाकर मिट्टी को समतल बना लें।
मिर्च की खेती के लिए किस्में (Varieties for chilli cultivation)
मिर्च की सफल खेती कर अधिक उपज प्राप्त करने के लिए उचित किस्मों का चुनाव अति महत्वपूर्ण है। व्यावसायिक स्तर पर मिर्च की खेती (Chilli Cultivation) हरी और लाल मिर्च के लिए की जाती है। मिर्च उत्पादन हेतु मुक्त परागित एवं संकर दोनों प्रकार कि किस्मों का उपयोग किया जाता है।
सामान्यतया संकर किस्मों की उपज ज्यादा होती है, परन्तु इसके लिए प्रतिवर्ष संकर से प्राप्त बीजों का ही प्रयोग करना होता है। मुक्त परागित किस्मो के बीजों को उत्पादन अपने खेत में उगाये मिर्च की फसल (Chilli Crop) के स्वपरागण से प्राप्त कर सकते हैं। मिर्च की लोकप्रिय उन्नत किस्में निम्नवत् हैं, जैसे-
मिर्च की मसाले वाली किस्में: एनपी 46 ए, पूसा ज्वाला, मथानिया लोंग, पन्त सी 1, हंगेरियन वैक्स (पीले रंग वाली), पूसा सदा बहार (निर्यात हेतु बहुवर्षीय), आरसीएच- 1, परभणी तेजस, अग्निरेखा, भाग्य लक्ष्मी, आर्को लोहित, पंजाब लाल, आंध्रा ज्योतिऔर फूले ज्योति आदि मुख्य है।
मिर्च की आचार वाली किस्में: केलिफोर्निया वंडर, चायनीज जायंट, येलो वंडर, हाइब्रिड भारत, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव, अर्का मेघना, अर्का बसंत, सिटी, काशी अर्ली, तेजस्विनी, आर्का हरित और पूसा सदाबहार (एल जी- 1) आदि प्रमुख है।
शिमला मिर्च (सब्जी वाली) सामान्य किस्में: कैलिफोर्नियॉ वन्डर, यलो वन्डर, बुलनोज, अर्का मोहिनी, अर्का गौरव और अर्का बसंत आदि मुख्य है।
शिमला मिर्च की संकर किस्में: सोलन संकर – 1, सोलन संकर – 2, हाईब्रिड भारत, पूसा दिप्ती, इन्दिरा और तनवी आदि मुख्य है।
मिर्च की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for chilli cultivation)
मिर्च (Chilli) की वर्ष में तीन फसलें ली जा सकती है, प्राय: इसकी फसल खरीफ और गर्मी में ली जाती है। शिमला मिर्च मध्यम जलवायु आवश्यकता वाली सब्जी है। अधिक गर्म जलवायु में फलन कम होता है। पहले नर्सरी में बीज की बुवाई कर पौध तैयार की जाती है। इसके लिये खरीफ की फसल हेतु मई-जून में और गर्मी की फसल हेतु फरवरी-मार्च में नर्सरी में बीज की बुवाई करें।
मिर्च की खेती के लिए बीज दर (Seed rate for chilli cultivation)
मिर्च की खेती (Chilli Cultivation) हेतु एक हैक्टेयर क्षेत्र के लिये पौध तैयार करने हेतु 100 वर्ग मीटर नर्सरी में सामान्य किस्मों वाले एक से डेढ़ किलो बीज और संकर किस्मों वाले 250 – 500 ग्राम बीज पर्याप्त है। शिमला मिर्च के लिए 600 से 800 ग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त है।
मिर्च की खेती के लिए पौध तैयार करना (Preparation of seedlings for mirch cultivation)
मिर्च के बीजों को सीधा खेतों में नही उगाया जाता। इसके लिए सबसे पहले मिर्च (Chilli) की पौध तैयार की जाती है, जिनकी तैयारी नर्सरी में की जाती है। नर्सरी में इसके बीजों की रोपाई से पहले उन्हें थायरम या बाविस्टन से उपचारित कर लेना चाहिए। नर्सरी में इसके बीज की रोपाई जमीन से कुछ ऊंचाई पर की जाती है। एक हेक्टेयर के लिए संकर किस्म का आधा किलो और देशी किस्म का एक किलो बीज काफी होता है।
नर्सरी में मिर्च (Chilli) के बीजों की रोपाई के लिए एक मीटर चौड़ी और 5 मीटर लम्बाई की समतल से उठी हुई क्यारी तैयार करते हैं। इन क्यारियों में 25 किलो पुरानी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को डालकर उसे मिट्टी में मिला दें। उसके बाद इसके बीजों की रोपाई पंक्ति में की जाती है, इसके लिए क्यारी में चार से पांच सेंटीमीटर की दूरी छोड़ते हुए हलकी नाली बना लेते हैं।
इन नालियों में बीज डालकर उन पर हल्की मिट्टी डालकर ढक देते हैं, उसके बाद क्यारियों की हजारे की सहायता से सिंचाई करते हैं। सिंचाई करने के बाद क्यारियों को पुलाव या सूखी हुई घास से ढक देते है, पुलाव से ढकने से बीजों का अंकुरण अच्छे से होता है। जब इसके बीज अंकुरित हो जाएँ तब पुलाव को हटा देते हैं। नर्सरी में इसके बीज की रोपाई पौध लगाने के टाइम से लगभग एक से डेढ़ महीने पहले करनी चाहिए। जिससे पौध समय पर तैयार हो जाती है।
मिर्च की खेती के लिए पौध की रोपाई (Planting of chilli plants for cultivation)
मिर्च (Chilli) के पौधों की रोपाई समतल और मेड बनाकर की जाती है। समतल में आमतौर पर इसकी रोपाई 4 गुना 10 फिट की क्यारी बनाकर की जाती हैं। इन क्यारियों में इसकी पौध को ढाई फिट की की दूरी पर उगाया जाता है। ताकि पौधे को फैलने के लिए आसानी से पूरी जगह मिल सके। जबकि मेड पर इसकी रोपाई करते समय मेड से मेड की दूरी तीन फिट और पौधे से पौधे की दूरी डेढ़ फिट रखी जाती है।
दोनों तरह से इसके पौधों की रोपाई करते वक्त पौधों की जड़ों को तीन से चार सेंटीमीटर नीचे जमीन में दबाना चाहिए। मिर्च (Chilli) के पौधों की रोपाई कभी भी तेज़ धूप में नही करनी चाहिए। इसलिए पौधों की रोपाई के लिए शाम का वक्त सबसे उपयुक्त होता है। शाम को इसके पौधों की रोपाई करने पर पौधों का अंकुरण अच्छे से और अधिक मात्रा में होता है।
मिर्च (Chilli) के पौधों की शरदकालीन रोपाई के लिए अक्टूबर और मध्य नवम्बर का महीना सबसे उपयुक्त होता है। इस दौरान इसकी रोपाई करने पर पैदावार ज्यादा प्राप्त होती है। जबकि गर्मियों के मौसम के लिए इसकी रोपाई फरवरी और मार्च महीने में की जाती है।
मिर्च की फसल के पौधों की सिंचाई (Irrigation of chilli crop plants)
मिर्च (Chilli) के पौधों की रोपाई खेत में करने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए। उसके बाद पौधों के अंकुरित होने तक खेत में नमी बनाए रखने के लिए हल्की सिंचाई करें। इसके पौधों को सर्दियों में कम और गर्मियों में अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।
सर्दियों में इसके पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में जमीन सूखने पर पानी देना चाहिए। जबकि गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में दो बार पानी की आवश्यकता पड़ती है और बारिश के मौसम में इसके पौधे को पानी की कम ही आवश्यकता होती है।
मिर्च की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in chilli crop)
मिर्च (Chilli) के पौधों को उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है। खासकर इसके पौधे पर जब फूल और फल बन रहे होते हैं, तब उर्वरक की ज्यादा जरूरत होती है। इसके लिए पौधे की रोपाई से पहले 25 से 30 गाड़ी गोबर की पुरानी खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालकर उसे मिट्टी में मिला दें।
गोबर की खाद की जगह कम्पोस्ट खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में नाइट्रोजन 140 किलो, फास्फोरस 60 किलो और पोटाश 80 किलो की मात्रा को आपस में मिलाकर खेत की आखिरी जुताई के वक्त खेत में छिड़क दें।
मिर्च की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in mirch crop)
मिर्च की खेती (Chilli Cultivation) में खरपतवार नियंत्रण करना जरूरी होता है, क्योंकि खरपतवार के होने से पौधे अच्छे से विकास नही कर पाते है। जिससे पौधों से पैदावार कम प्राप्त होती है। इसलिए खरपतवार नियंत्रण कर पौधों से अच्छी पैदावार ली जा सकती है। मिर्च की खेती में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक और प्राकृतिक दोनों तरीके से की जाती है।
रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए आक्सीफ्लोरफेन का पौधे की रोपाई से पहले खेत में छिडकाव करना चाहिए। जबकि प्राकृतिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की कम से कम तीन बार निराई गुड़ाई कर देनी चाहिए। पौधों की पहली गुड़ाई पौध रोपण के 20 दिन बाद कर दें और बाकी की गुड़ाई 15 से 20 दिन के अंतरालों में कर दें।
मिर्च की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in chilli crop)
थ्रिप्स: इस कीट के शिशु तथा वयस्क दोनों पत्तियों से रस चूसकर नुकसान पहुँचाते है। वयस्क कीट की पंख कटी-फटी होती है। प्रौढ़ कीट 1 मिमी से कम लम्बा होता है। यह कोमल हल्के पीले भूरे रंग का होता है। एक मादा 50-60 अण्डे देती है, इसके प्रकोप से पत्तियों ऊपर की ओर मुड़कर सूख जाती है। जिसका प्रतिकूल असर फसल की पैदावार पर होता है। पत्तियों की उपर की तरफ मुड़ जाना इसका मुख्य पहचान हैं।
नियंत्रण: मिर्च (Chilli) के बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस का 5-10 ग्राम प्रति किग्रा बीज से उपचारित कर पौधशाला में बुआई करें। पौधशाला में नर्सरी को 25-30 दिनों तक थ्रिप्स से बचाने के नॉयलान से बने जाली (200 गज) प्रयोग करें। पर्णीय छिड़काव के लिए इनमें से कोई भी कीटनाशक जैसे साइजेपर 10 ओड़ी 1.2 मिली प्रति लीटर पानी या एसिटामिप्रिड 200 एससी. 0.2 मिली प्रति लीटर पानी
या कार्बोसल्फान 3 ग्रेन्यूल 33.3 किग्रा प्रति हेक्टेयर या डाईनेथोएट 30 ईसी 1.5 मिली प्रति लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल 0.5 मिली लीटर लीटर पानी की दर से 10-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें। इन दवा का प्रयोग फूल लगने के लगभग 10 दिन पहले बन्द कर देना चाहिए। कभी भी एक ही रसायन के दो बार छिड़काव के बाद प्रयोग न करें।
पीली माइट: यह पीले रंग की छोटी चींटी है, इसकी पीठ पर सफेद धारियाँ होती है। यह आकर में इतनी छोटी होती हैं, जो आसानी से दिखाई नहीं देती है। इसका प्रकोप होने पर पत्तियाँ नीचे की तरफ मुड़ जाती है तथा देखने में सिकुड़ लगती है। उत्पादन प्रभावित होता है। इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों को चूसकर हानि पहुँचाते हैं। पौधों की बढ़वार भी प्रभावित होती है।
नियंत्रण: बुप्रोफॉजिन 25 एससी 1.2 मिली प्रति लीटर पानी या क्लोरफेनपीर 10 एससी 2 मिली प्रति लीटर पानी या डाईफेन्थ्युरॉन 5 डब्ल्यूपी 1.2 ग्राम प्रति लीटर पानी या डाईमेथोएट 30 ईसी 2 मिली प्रति लीटर पानी या इमामेक्टिन बेंजोएट 5 ईसी 0.4ग्राम प्रति लीटर पानी या इथियान 5 ईसी 3-4 मिली प्रति लीटर, पानी की दर से 10-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें। कभी भी एक ही रसायन को दो बार छिड़काव के पश्चात् दोहराएं नहीं या बार बार प्रयोग न करें।
मिर्च की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in chilli crop)
पत्ती मोड़ विषाणु रोग: इस रोग में मिर्च (Chilli) पौधों की पत्तियाँ अनियमित ढंग से मुड़ जाती है तथा पौधो की बढ़वार रूक जाती है। फल छोटे और भद्दे हो जाते हैं तथा पौधों की पत्तियाँ हल्का पीलापन लिये हुए ऊपर नीचे मुड़ जाती है। अगर बीमारी पौधे की प्राथमिक अवस्था में लग जाये तो पौधे की बढ़वार तथा फसल उत्पादन पूरी तरह रूक जाता है।
नियंत्रण: चूँकि यह रोग विषाणुवाहक कीट सफेद मक्खी के द्वारा फैलता है, अत: नर्सरी की अवस्था से ही कीटनाशक का 4-6 दिनों के अन्तराल पर्णी छिड़काव करने से इस रोग से मुक्ति प्रदान करता है। नर्सरी को मच्छरदानी से ढ़ककर उगाना चाहिए। रोगी पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए अथवा मिट्टी के नीचे दबा देना चाहिए, जिससे रोग का प्रसार रूक जाए।
मिर्च (Chilli) पौध रोपण के समय पौधों की जड़ों को इमिडाक्लोप्रिड की 0.3 मिली प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर 2 घण्टे तक अवश्य उपचारित करना चाहिए। नर्सरी में एक सप्ताह के अन्तराल पर कीटनाशक का छिड़काव करते रहना चाहिए।
फ्यूजेरियम विल्ट (उकठा): इस रोग में पौधों की पत्तियों पीली होकर गिर जाती है। तने का उपरी भाग पीला होकर झुक जाता है तथा अन्त मे जड़ों में सड़न दिखाई देता है।
नियंत्रण: एक ही कुल की सब्जियों जैसे कि टमाटर या बैगन के बाद पुन: उसी खेत मे मिर्च (Chilli) न लगायें। बीज को कार्बेन्डाजिम से 2.5 ग्राम प्रति किग्रा की दर से उपचारित कर के ही बुवाई करनी चाहिए। टेबुकोनाजेला 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना चाहिए। खड़ी फसल पर कार्बेन्डाजिम अथवा बेनलेट का 0.2 प्रतिशत घोल की छिड़काव एक सप्ताह के अन्तराल पर करने से रोग का फैलाव रूक जाता है।
शीर्षमरण रोग और फल सड़न: इस रोग में मिर्च (Chilli) पौधों का उपरी भाग सूखना प्रारंभ होता है और नीचे तना सूख जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में टहनियों पर रॉवेदार कवक दिखाई देती है। रोग ग्रसित पौधों के फल सड़न लगते हैं, लाल फलों पर इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।
नियंत्रण: इससे बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम दवा प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बोये क्षतिगस्त टहनी को सुबह से शाम तक कुछ नीचे से काटकर इकट्ठा कर लें एवं जला दें। डाईफेनोकोनाजोल 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से या क्लोरोथेलोनिकल 1.5 प्रति लीटर की दर से या एजोक्सी सट्रोबिन 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से या प्रोपिनेब 3.5 ग्राम प्रति की दर से या टेबुकानाजोल 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें।
मिर्च के फलों की तुड़ाई (Picking of mirch Fruits)
मिर्च की अलग अलग किस्मों की तुड़ाई अलग अलग समय पर की जाती है। मिर्च की कई किस्में तो पौध रोपाई के लगभग 50 दिन बाद ही पैदावार देना शुरू कर देती हैं। जबकि कुछ इनसे ज्यादा टाइम लेती हैं, लेकिन इन सभी की पहली तुड़ाई के बाद बाकी की सभी तुड़ाई 10 से 12 दिन के अंतराल में की जाती है। मिर्च की बार बार तुड़ाई करने पर पौधे से पैदावार अधिक मात्रा में प्राप्त होती है।
लेकिन लाल मिर्च (Chilli) बनाने के लिए फलों की तुड़ाई 120 से 130 दिन बाद करनी चाहिए। पकी हुई लाल मिर्चों को 8 से 10 दिन तक तेज़ धूप में सुखाया जाता है और जब मिर्च आधी सुख जाएँ तब उन्हें रात के वक्त एकत्रित कर ढककर दबा दिया जाता है। इससे मिर्च और ज्यादा तीखी बनती है, जिसके बाद उन्हें बोरो में भरकर बाजार में विपणन दिया जाता है।
मिर्च तुड़ाई उपरांत प्रबंधन और उपज (Post harvest management and yield)
मिर्च: जब फलों का रंग लाल होना शुरू हो जाए तो तुड़ाई करें। सूर्य की धूप में 10-15 दिनों तक सुखाकर थैलों में पैक करे तथा 0-10 सेंटीग्रेट तापमान और 65-70 प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता पर 50 दिनों तक भण्डारित कर सकते है।
उपज: हरी मिर्च (Green Chilli) की पैदावार 90-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सूखी मिर्च की उपज 20-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
शिमला मिर्च: फलों में आकर्षक लाल, हरा या पीला रंग आने पर तुड़ाई करें। श्रेणीकरण के बाद, गत्ते के डिब्बों में पैक करके बाजार भेजें या 0 से 10 सेंटीग्रेट तापमान और 85-90 प्रतिशत आर्द्रता पर 50-60 दिनों तक भण्डारित करें।
उपज: शिमला मिर्च की सामान्य प्रजाति से औसत फल उपज 190 से 270 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा संकर किस्मों की उपज 250-450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
सम्पूर्ण उपज: शिमला मिर्च की सामान्य प्रजाति में औसत फल उपज 190 से 270 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और संकर किस्मों की उपज 250-450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। हरी मिर्च की पैदावार 90-150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा सूखी मिर्च की उपज 20-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
मिर्च का बीजोत्पादन (Seed production of chilli)
मिर्च और शिमला मिर्च के आधार बीज के लिए बीज उत्पादन हेतु 400 मीटर प्रमाणित बीज के लिए 200 मीटर की पृथक्करण दूरी रखें। अवांछित पौधों को कम से कम तीन बार निकालें। पहली बार फूल आने से पहले, दूसरी बार फूल आने पर तथा तीसरी बार फल बन जाने के बाद फल के आकार और रंग के आधार पर अवांछित पौधों को निकाल दें।
मिर्च (Chilli) फलों की तुड़ाई उनके लाल रंग विकसित होने के बाद करें तथा धूप में सुखाकर बीज को अलग कर लें। भंडारण के समय बीज में नमी की मात्रा 8 प्रतिशत तक होनी चाहिए ।
बीज उपज: मिर्च 200-300 किग्रा और शिमला मिर्च 50-100 किग्रा प्रति हेक्टेयर।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
मिर्च के पौधे गर्म और आर्द्र जलवायु पसंद करते हैं और ऐसी परिस्थितियों में पनपने के लिए जाने जाते हैं। इसके अतिरिक्त, फलों की परिपक्वता को बढ़ावा देने के लिए शुष्क मौसम देखा गया है। मिर्च (Chilli) के बीजों को पौधों में सर्वोत्तम रूप से विकसित करने के लिए, खेती के लिए इष्टतम तापमान सीमा 20-25 डिग्री सेल्सियस के बीच है।
किसी खास किस्म को पकने में लगने वाले दिनों की संख्या में बहुत अंतर होता है। मिर्च (Chilli) की कुछ किस्म बोने के 60 दिन बाद ही पक जाती हैं और कुछ को 120 दिन तक लग जाते हैं। याद रखें कि हैबनेरोस जैसी किस्मों को पकने में 100 या उससे ज़्यादा दिन (3 1/2 महीने) लगते हैं।
भारत में मिर्च की खेती (Chilli Cultivation) खरीफ और रबी दोनों ही मौसमों में की जाती है। खरीफ फसल के मौसम के लिए मिर्च की बुवाई जुलाई और अगस्त के बीच होती है, जबकि रबी के मौसम के लिए मिर्च की बुवाई अक्टूबर और नवंबर में की जाती है।
‘एन पी 46 ए’ मिर्च की इस किस्म के फल लंबे पतले और बहुत तीखे होते हैं। यह लगभग 120 से 130 दिनों में पक जाती है। मिर्च (Chilli) की ‘एन पी 46 ए’ किस्म से प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 90 क्विंटल हरी मिर्च मिल जाती है।
मौसम अनुकूल होने पर एक एकड़ में 150-200 क्विंटल मिर्च (Chilli) का उत्पादन एक सीजन में मिल सकता है।
मिर्च की फसल (Chilli Crop) मे उर्वकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करे। सामन्यतः एक हेक्टेयर क्षेत्रफल मे 200-250 क्विंटल गोबर की पूर्णत: सडी हुयी खाद या 50 क्विंटल वर्मीकंपोस्ट खेत की तैयारी के समय मिलायें। नत्रजन 120-150 किलों, फास्फोरस 60 किलो तथा पोटाष 80 किलो का प्रयोग करे।
अगर प्रति हेक्टेयर खेती की दर से बात करे, तो मिर्च की खेती (Chilli Cultivation) करने के लिए खेत में उचित मात्र में अच्छे से सड़ी हुई गोबर खाद, वर्मी कंपोस्ट, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, यूरिया, एसएसपी और म्यूरेट और पोटाश डालना जरूरी होता है। इससे मिर्च के जड़ों और पोधों का विकास अच्छे से होता है।
शीतकालीन मौसम के मिर्च के खेती (Chilli Cultivation) में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। सिंचाई की आवश्यकता पड़ने पर दो – तिहाई सिंचाई दिसंबर से फरवरी तक करनी पड़ती है। ग्रीष्म कालीन मौसम की खेती में 7 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। बारिश के समय आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
प्रमाणित बीज का उपयोग करें, मिर्च की फसल (Chilli Crop) में जल निकास की उचित व्यवस्था करें, कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशी से पौधशाला के स्थान को उपचारित करें। जिस खेत में पहले मिर्च, सोयाबीन, मूंग, भिण्डी की फसल ली हो उसमें पौधशाला तैयार न करें।
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