Cotton Farming in Hindi: कपास की खेती सदियों से भारत के कृषि इतिहास के ताने-बाने से जुड़ी हुई है, जो देश की अर्थव्यवस्था और समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्राचीन उत्पत्ति से लेकर आधुनिक उद्योग तक, कपास की वृद्धि और व्यापार भारत के कृषि परिदृश्य के महत्वपूर्ण चालक रहे हैं। व्यावसायिक रूप से इसकी खेती को सफेद सोना के रूप में भी जाना जाता है।
यह लेख भारत में कपास की खेती (Cotton Cultivation) के समृद्ध इतिहास पर प्रकाश डालता है, उगाई जाने वाली विविध किस्मों, खेती के लिए आदर्श भौगोलिक क्षेत्रों, पारंपरिक बनाम आधुनिक पद्धतियों, कपास के आर्थिक महत्व, किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों, सरकारी सहायता पहलों और भारत में कपास उद्योग की भविष्य की संभावनाओं की जानकारी देता है।
कपास की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cotton cultivation)
कपास की अच्छी फसल के लिए आदर्श जलवायु का होना आवश्यक है। फसल के उगने के लिए कम से कम 16 डिग्री सेंटीग्रेट और अंकुरण के लिए आदर्श तापमान 32 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट होना उचित है। इसकी बढ़वार के लिए 21 से 27 डिग्री तापमान चाहिए। फलन लगते समय दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तथा रातें ठंडी होनी चाहिए। कपास (Cotton) के लिए कम से कम 50 सेंटीमीटर वर्षा का होना आवश्यक है। 125 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा का होना हानिकारक होता है।
कपास की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for cotton cultivation)
कपास के लिए खेत की मिट्टी में अच्छी जलधारण और जल निकास क्षमता होनी चाहिए। जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है, वहां इसकी खेती अधिक जल-धारण क्षमता वाली मटियार भूमि में की जाती है। जहां सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हों, वहां बलुई और बलुई दोमट मिटटी में इसकी खेती की जा सकती है। यह हल्की अम्लीय एवं क्षारीय भूमि में उगाई जा सकती है। इसके लिए उपयुक्त पी एच मान 5.5 से 6.0 है। हालाँकि कपास की खेती (Cotton Cultivation) 8.5 पी एच मान तक वाली भूमि में भी की जा सकती है।
कपास की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cotton cultivation)
दक्षिण और मध्य भारत में कपास की खेती (Cotton Cultivation) वर्षा-आधारित काली भूमि में उगाई जाती है। इन क्षेत्रों में खेत तैयार करने के लिए एक गहरी जुताई मिटटी पलटने वाले हल से रबी फसल की कटाई के बाद करनी चाहिए, जिसमें खरपतवार नष्ट हो जाते हैं और वर्षा जल का संचय अधिक होता है। इसके बाद 3 से 4 बार हैरो चलाना काफी होता है। बुवाई से पहले खेत में पाटा लगाते हैं, ताकि खेत समतल हो जाए।
उत्तरी भारत में कपास की खेती मुख्यतः सिंचाई आधारित होती है। खेत की तैयारी के लिए 1 से 2 गहरी जुताई करनी चाहिए और इसके बाद 3 से 4 हल्की जुताई कर, पाटा लगाकर बुवाई करनी चाहिए। कपास का खेत तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि खेत पूर्णतया समतल हो ताकि मिटटी की जलधारण तथा जलनिकास क्षमता दोनों अच्छे हों। यदि खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या न हो तो बिना जुताई या न्यूनतम जुताई से भी कपास की खेती की जा सकती है।
कपास की उन्नत किस्में (Improved varieties of cotton)
बीटी कॉटन की किस्में: बीटी कॉटन किस्म की अपनी ताकत और सीमाएँ हैं, जिससे किसानों के लिए कीटों के दबाव, मिट्टी के प्रकार और बाज़ार की माँग जैसे कारकों के आधार पर सही किस्म का चयन करना ज़रूरी हो जाता है। प्रत्येक किस्म की विशिष्ट विशेषताओं को समझने से किसानों को अपनी कपास की खेती (Cotton Cultivation) के लिए सूचित निर्णय लेने में मदद मिल सकती है।
संकर कपास की किस्में: संकर कपास (Cotton) की किस्मों ने अपनी बेहतर उपज क्षमता, कीट प्रतिरोध और फाइबर की गुणवत्ता के लिए भारतीय किसानों के बीच लोकप्रियता हासिल की है। ये संकर विभिन्न कपास लाइनों के क्रॉसिंग से उत्पन्न होते हैं, जो वांछनीय गुणों का मिश्रण प्रदान करते हैं जो उत्पादकता और लाभप्रदता को बढ़ाते हैं।
पारंपरिक कपास की किस्में: पारंपरिक कपास की किस्में कृषि परंपराओं में गहराई से निहित हैं, जो पीढ़ियों की खेती द्वारा आकार की गई विशेषताओं की एक विविध श्रृंखला को प्रदर्शित करती हैं। ये विरासत की किस्में अक्सर अद्वितीय फाइबर गुणों और स्थानीय बढ़ती परिस्थितियों के अनुकूलता का प्रदर्शन करती हैं, जो उन क्षेत्रों की सांस्कृतिक और कृषि विरासत को दर्शाती हैं, जहां से वे उत्पन्न होती हैं।
कपास की खेती के लिए बीज की मात्रा (Seed quantity for cotton cultivation)
कपास की खेती (Cotton Cultivation) के लिए बीज की मात्रा, कपास की किस्म पर निर्भर करती है। संकर और बीटी के लिए चार से पांच किलो प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर डालना चाहिए। देशी और नरमा किस्मों की बुवाई के लिए 15 से 20 किलोग्राम प्रमाणित बीज प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें। बीज लगभग 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर डालें।
कपास की खेती के लिए बीज उपचार (Seed treatment for cotton cultivation)
- कपास फसल (Cotton Crop) को बीज जनित रोग से बचने के लिये बीज को 10 लीटर पानी में एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या ढाई ग्राम एग्रीमाइसिन के घोल में 8 से 10 घण्टे तक भिगोकर सुखा लीजिये इसके बाद बीज की बुवाई करनी चाहिए।
- जिस खेत में जड़ गलन रोग का प्रकोप होता है ट्राइकोड़मा हारजेनियम या सूडोमोनास फ्लूरोसेन्स जीव नियन्त्रक से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें या रासायनिक फफूंदनाशी जैसे कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यू पी, 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या कार्बेन्डेजिम 50 डब्ल्यू पी से 2 ग्राम या थाईरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
- रेशे रहित एक किलोग्राम नरमे के बीज को 5 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यू एस या 4 ग्राम थायोमिथोक्साम 70 डब्ल्यू एस से उपचारित कर पत्ती रस चूसक हानिकारक कीट और पत्ती मरोड़ वायरस को कम किया जा सकता है।
- असिंचित स्थितियों में कपास (Cotton) की बुवाई के लिये प्रति किलोग्राम बीज को 10 ग्राम एजेक्टोबेक्टर कल्चर से उपचारित कर बोने से पैदावार में वृद्धि होती है।
कपास की बुवाई का समय और विधि (Time and method of sowing cotton)
- कपास (Cotton) की बुवाई का उपयुक्त समय विभिन्न किस्मों के लिए अप्रेल के द्वितीय पखवाड़े से मई के प्रथम सप्ताह तक है।
- अमेरिकन किस्मों की कतार से कतार की दूरी 60 सेन्टीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेन्टीमीटर रखनी चाहिये।
- देशी कपास किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेन्टीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 30 सेन्टीमीटर रखनी चाहिये।
- बी टी कपास की बुवाई बीज रोपकर (डिबलिंग) 108 X 60 सेंटीमीटर अर्थात 108 सेंटीमीटर कतार से कतार और पौधे से पौधे 60 सेंटीमीटर या 67.5 X 90 सेंटीमीटर की दूरी पर करें।
- पौलीथीन की थैलियों में पौध तैयार कर रिक्त स्थानों पर रोप कर वांछित पौधों की संख्या बनाये रख सकते हैं।
- लवणीय भूमि में यदि कपास (Cotton) की बुवाई की जानी है, तो मेड़े बनाकर मेड़ों की ढाल पर बीज उगाना चाहिए।
कपास में खाद और उर्वरक की मात्रा (Amount of Manure and Fertilizer in Cotton)
- कपास बुवाई से तीन चार सप्ताह पहले 15 से 20 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से जुताई कर भूमि में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए।
- कपास की अमेरिकन और बीटी किस्मों में प्रति हैक्टेयर 75 किलोग्राम नत्रजन तथा 35 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता पड़ती है।
- कपास (Cotton) की देशी किस्मों को प्रति हैक्टेयर 50 किलोग्राम नत्रजन और 25 किलो फास्फोरस की आवश्यकता होती है।
- पोटाश उर्वरक मिट्टी परीक्षण के आधार पर देनी चाहिए, फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा और नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई से पहले देनी चाहिए। नत्रजन की शेष आधी मात्रा फूलों की कलियां बनते समय देनी चाहिए।
- मिटटी जांच के आधार पर जिंक तत्व की कमी निर्धारित होने पर बुवाई से पूर्व बी टी या नरमा कपास में 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट को मिट्टी में मिलाकर बुरका दिया जाना चाहिए। यदि बुवाई के समय जिंक सल्फेट नही दिया गया हो तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट के घोल का दो छिड़काव पुष्पन और टिण्डा वृद्धि अवस्था पर करने से अधिक पैदावार ली जा सकती है।
- सल्फर- अमेरिकन कपास (Cotton) मे यदि फास्फोरस डी ए पी द्वारा देते हैं| तो उसके साथ 150 किलोग्राम जिप्सम प्रति हैक्टर देनी चाहिए। यदि फास्फोरस सिंगल सुपर फास्फेट द्वारा दे रहे हो तो जिप्सम देने की आवश्यकता नहीं है।
कपास फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Cotton Crop)
- कपास (Cotton) बुवाई के बाद 5 से 6 सिंचाई करें, उर्वरक देने के बाद और फूल आते समय सिंचाई अवश्य करें। दो फसली क्षेत्र में 15 अक्टूबर के बाद सिंचाई नहीं करें।
- अंकुरण के बाद पहली सिंचाई 20 से 30 दिन में कीजिये। इससे पौधों की जड़े ज्यादा गहराई तक बढ़ती है। इसी समय पौधों की छंटनी भी कर दीजिये, बाद की सिंचाईयां 20 से 25 दिन बाद करें।
- नरमा या बी टी कपास की प्रत्येक कतार में ड्रिप लाईन डालने की बजाय कतारों के जोड़े में ड्रिप लाईन डालने से ड्रिप लाईन का खर्च आधा होता है।
- इसके लिए पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखते हुए जोडे में कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें और जोडे से जोडे की दूरी 120 सेंटीमीटर रखें। प्रत्येक जोडे में एक ड्रिप लाईन डाले तथा ड्रिप लाईन में ड्रिपर से ड्रिपर की दूरी 30 सेंटीमीटर हो और प्रत्येक ड्रिपर से पानी रिसने की दर 2 लीटर प्रति घण्टा होनी चाहिए।
- सूखे में कपास (Cotton) की बिजाई करने के बाद लगातार 5 दिन तक 2 घण्टे प्रति दिन के हिसाब से ड्रिप लाईन चलानी चाहिए। इससे उगाव अच्छा होता है और बुवाई के 15 दिन बाद बून्द-बून्द सिंचाई प्रारम्भ करें।
कपास फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in kapas crop)
- कपास (Cotton) में निराई-गुड़ाई सामान्यत: पहली सिंचाई के बाद बतर आने पर कसौले से करनी चाहिए। इसके बाद आवश्यकतानुसार एक या दो बार त्रिफाली चलायें।
- रसायनों द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथालीन 30 ईसी, 833 मिलीलीटर (बीजों की बुवाई के बाद मगर अंकुरण से पहले) या ट्राइलूरालीन 48 ईसी, 780 मिलीलीटर (बीजाई से पूर्व मिट्टी पर छिड़काव) को 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से लेट फेन नोजल से उपचार करने से फसल प्रारम्भिक अवस्था में खरपतवार विहीन रहती है। इनका प्रयोग बिजाई से पूर्व मिट्टी पर छिड़काव भली-भांति मिलाकर करें।
- कपास (Cotton) में प्रथम सिंचाई के बाद कसोले से एक बार गुड़ाई करना लाभदायक रहता है। यदि फसल में बोई किस्म के अलावा दूसरी किस्म के पौधे मिले हुए दिखाई दें, तो उन्हें निराई के समय उखाड़ दीजिए क्योंकि मिश्रित कपास का मूल्य कम मिलता है।
कपास फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in cotton crop)
कपास में मुख्यत: बीज जनित व भूमि जनित रोगों पौधों का सूखना (विल्ट), अंगमारी (एन्मैकनोज), झुलसा रोग (बेक्टेरियल ब्लाइट) और जड़ सड़न (रूट रॉट) का प्रकोप होता है। इन रोगों का नियंत्रण बहुत मुश्किल होता है, अत: बुवाई के समय या खड़ी फसल में 2-3 बार ट्राइकोडर्मा विरडी नामक जैविक फफूंदनाशक 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग कर, इन रोगों से कपास फसल (Cotton Crop) को बचाया जा सकता है। रोग नियंत्रण के अन्य उपाय इस प्रकार है, जैसे-
- बीमारियों के लक्षण दिखाई देने पर सर्वप्रथम रोग से ग्रसित पौधों को खेत से दूर ले जाकर जला देना चाहिए।
- प्राथमिक लक्षण दिखाई देने पर ट्रायकोडर्मा विरडी 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से पौधों की जड़ों के पास घोल बनाकर देना चाहिये।
- बीमारियों के लक्षण दिखाई देने पर मेन्कोजेब या कॉपर आक्सीक्लोराईड 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना चाहिये। छिडकाव हेतु पानी की मात्रा 200 लीटर प्रति एकड़ उपयोग की जानी आवष्यक है।
- फसल चक्र अपनाना चाहिए।
कपास फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in cotton crop)
कपास फसल (Cotton Crop) मे कीटो का आक्रमण बहुत ज्यादा होता है और इनके नियंत्रण के लिये किसान रासायनिक दवाओं पर अत्यधिक निर्भर है। कपास में समन्वित कीट प्रबंधन करना आवष्यक हो गया है। इस के लिए निम्नानुसार उन्नत सस्य क्रियाएँ अपनाना चाहिए, जैसे-
- गर्मी में गहरी जुताई मिट्टी पलट हल से करनी चाहिए, जिससे कि हानिकारक कीटों के अण्डे व शंखियाँ नष्ट हो सके।
- गर्मी में जुताई के तुरंत बाद खाली खेत में नीम की खली 1 क्विंटल या नीम बीज पीसकर 3 किलो प्रति बीघा गोबर खाद के साथ या नीम तेल 0.5 लीटर प्रति बीघा छिड़काव करने से जमीन में व्याप्त कीटों के अण्डे, शंखियाँ और बीमारियो के जनक नष्ट हो जाते हैं।
- कीट व रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन जैसे बीटी कपास में बोलगार्ड- 1 व बोलगार्ड- 2 किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।
- रक्षक फसलें लगाना चाहिए जैसे – साधारण कपास (नान बीटी), मक्का, चवला, अरहर इत्यादि, जो कि कपास फसल की बाहर से आने वाले कीटों से प्राथमिक रक्षा करती है और कपास की कीट प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते है व मित्र कीटों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
- कपास (Cotton) बीज को इमिडा क्लोरप्रिड, थायोमेथोक्जोम कीटनाशक व थायरम, बाविस्टीन या ट्रायकोडर्मा विरडी फफूँदनाशक से उपचारित करना चाहिए, जिससे कि फसल प्रारंभिक अवस्था में कीटों और रोगों से बची रहे।
- कपास की पौधो से पौधो की दूरी अत्यधिक होती है अत: पौधों के बीच-बीच में अर्न्तवर्ती फसलें जैसे – मक्का, सोयाबीन, चवला, मूंग, अरहर आदि लगानी चाहिए। जिससे कि कीटों के प्रकोप से भी बचा जा सके व अतिरिक्त लाभ भी प्राप्त हो सके।
कपास की चुनाई कब करें (When to pick kapas)
कपास फसल (Cotton Crop) की चुनाई ओस हटने के बाद करनी चाहिए। चुनाई करते समय, पूरी तरह से खिले हुए गूलरों को ही चुनना चाहिए। चुनाई के साथ सूखी पत्तियां या डंठल नहीं होने चाहिए, क्योंकि इससे गुणवत्ता घटती है। चुनाई के बाद, कपास को अच्छी तरह से सुखाकर रखना चाहिए। भंडारण गृह भी अच्छी तरह से सूखा होना चाहिए।
कपास की फसल से उपज (Yield from cotton crop)
कपास (Cotton) की पैदावार, कपास की किस्म पर निर्भर करती है। देशी/उन्नत किस्मों से 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, संकर किस्मों से 13-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथी बीटी किस्मों से 15-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक औसत उपज प्राप्त होती है।
कपास की फसल में क्या सावधानियाँ रखें? (What precautions should be taken in kapas crop?)
- कपास की खेती (Cotton Cultivation) से पूर्व मिट्टी की जाँच आवश्यक है, जिससे कि हमें पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके।
- खाली स्थान के लिये बीज के पैकेट के साथ दिये गये साधारण (नान बीटी) बीज का उपयोग नहीं करना चाहिये। बल्कि नॉन बीटी बीज का उपयोग खेत की मेड़ो पर शरणार्थी फसल के रूप मे उगाना चाहिये, ताकि मुख्य फसल पर रस चूसक कीड़ो का आक्रमण कम हो और मुख्य फसल सुरक्षित रहे।
- इसी तरह गेंदा फसल को ट्रैप (जाल) फसल के रूप मे उगाना चाहिए, ताकि मुख्य फसल पर रस चूसक कीड़ों का आक्रमण कम हो और मुख्य फसल सुरक्षित रहे।
- प्रत्येक 20-25 दिन पर खुरपी की सहायता से निंदाई करना चाहिए, जिससे कि खरपतवार निकल सके।
- रक्षक फसलें लगानी चाहिए जैसे- साधारण कपास (नान बीटी), मक्का, चवली, अरहर इत्यादि, जो कि कपास फसल की बाहर से आने वाले कीटों से प्राथमिक रक्षा करते है और कपास की कीट प्रतिरोधक क्षमता को बढाते है तथा मित्र कीटों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
- कपास की खेती (Cotton Cultivation) के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए।
- कपास की चुनाई नीचे ऊपर की ओर करें, जिससे कि चुनाई के समय कपास में आने वाले कचरे को कम किया जा सके। चुनाई सुबह ओस समाप्त होने के बाद शुरू करें।
- भण्डारण के समय सावधानी पूर्वक कपास को दीवारों से और नमी वाले स्थान से दूर, जमींन से कुछ ऊपर, साफ सुथरी तथा हवादार व सुरक्षित जगह पर भण्डारित करना चाहिए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
कपास (Cotton) की बुवाई ट्रैक्टर या बैल द्वारा खींची जाने वाली सीड ड्रिल या डिबलिंग द्वारा की जाती है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में विशेष रूप से संकर किस्मों के लिए अनुशंसित अंतराल पर बीजों को हाथ से डिबलिंग करना आम बात है। यह प्रणाली उचित पौधे की स्थिति, एक समान ज्यामिति सुनिश्चित करती है और बीजों की बचत भी करती है। यह अब बीटी की बुवाई की मुख्य प्रणाली है।
कपास फसल के लिए गर्म और नम जलवायु होनी चाहिए। फसल लंबे समय तक ठंढ से मुक्त अवधि के साथ-साथ बहुत अधिक गर्मी और धूप वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ती है। सक्रिय विकास अवधि के दौरान, कपास (Cotton) उगाने के लिए आदर्श तापमान 70 और 100°F (21 और 37°C) के बीच होता है।
कपास ऐसी मिट्टी में पनपता है, जिसमें जल निकासी अच्छी हो और पानी को रोक सके (पानी मिट्टी द्वारा अवशोषित किया जाता है)। कपास (Cotton) का पौधा अत्यधिक नमी और जलभराव से पीड़ित होता है। काली मिट्टी कपास की वृद्धि के लिए उपयुक्त है क्योंकि इसमें मिट्टी की मात्रा अधिक होती है और पानी को बनाए रखने की अच्छी क्षमता होती है।
कपास की अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी का पीएच 5.8-8.0 के बीच होना चाहिए, जबकि 6.0-6.5 की सीमा सबसे बेहतर है। कपास (Cotton) कम पीएच वाली मिट्टी के प्रति सबसे संवेदनशील फसलों में से एक है।
कपास की बुआई का सही समय अप्रैल के पहले हफ़्ते से मई के पहले हफ़्ते के बीच होता है। अगर इस समय के बाद कपास (Cotton) बोया जाए, तो पैदावार कम हो जाती है।
नाइट्रोजन (N) के अलावा, फॉस्फोरस (P), पोटेशियम (K), सल्फर (S) और बोरॉन (B) कपास (Cotton) में महत्वपूर्ण पोषक तत्व हैं, जिन्हें इष्टतम फाइबर गुणवत्ता और लिंट उपज के लिए ठीक से प्रबंधित किया जाना चाहिए।
कपास फसल (Cotton Crop) में स्वतः गिरने वाली पुष्प कलियों और टिण्डों को बचाने के लिए एनएए 20 पीपीएम (2 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी) का घोल बनाकर पहला छिड़काव कलियाँ बनते समय और दूसरा टिण्डों के बनना शुरू होते ही करना चाहिए।
कपास की फसल (Cotton Crop) में पूर्ण विकसित टिण्डे खिलाने हेतु 50 से 60 प्रतिशत टिण्डे खिलने पर 50 ग्राम ड्राप अल्ट्रा (थायाडायाजुरोन) को 150 लीटर पानी में घोल कर प्रति बीघा की दर से छिड़काव करने के 15 दिन के अन्दर करीब-करीब पूर्ण विकसित सभी टिण्डे खिल जाते हैं|
कपास (Cotton) की उपज क्षमता कई कारकों पर निर्भर करती है: किस्म, मिट्टी का जल भंडारण, वर्षा, स्थानीय परिस्थितियां, फसल प्रबंधन, आनुवंशिकी में सुधार आदि। देशी व उन्नत किस्मों से 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, हाइब्रिड किस्मों से 13-18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथी बी.टी. किस्मों से 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक औसत उपज प्राप्त होती है।
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