Cowpea Farming in Hindi: लोबिया वर्षाकालीन एक वर्षीय शाकीय फसल है। यह एक सुखा सहन करने वाली फसल भी है। इसकी वृहत और झुकी पत्तियाँ मृदा को और मृदा की नमी को सरंक्षित करती है। इसको ब्लैक आइड़ और दक्षिण मटर इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। इसका बहुआयामी उपयोग है। जैसे खाद्य, चारा, हरी खाद और सब्जी के रूप में होता है। लोबिया (Cowpea) का दाना मानव आहार का पोष्टिक घटक है और पशुधन चारे का सस्ता स्रोत भी है।
लोबिया (Cowpea) के दाने में 22-24 प्रोटीन, 55-66 कार्बोहाईड्रेट, 0. 08–0.11 कैल्शियम, 0.005 प्रतिशत आयरन होता है। इसमे आवश्यक एमिनो एसिड जैसे लाइसिन, लियूसिन, फेनिलएलनिन भी पाया जाता है। भारत के सन्दर्भ में यह गौण फसल है। यह मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शुष्क व अर्धशुष्क क्षेत्रो के कुछ भागों में बोयी जाती है।
इसके साथ ही राजस्थान, कर्नाटक, केरला, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात के काफी क्षेत्रों में बोया जाता है। लोबिया (Cowpea) को पौधे के बढ़वार और फैलाव के आधार पर मुख्य रूप से सीधे बढ़ने वाले, अर्द्ध सीधे बढ़ने वाले, रेंगकर चलने वाले तथा सहारा देकर चढ़ने वाले चार भागों में वर्गीकृत किया गया है। इस लेख में लोबिया (Cowpea) की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें, का उल्लेख किया गया है।
लोबिया की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cowpea cultivation)
लोबिया गरम मौसम तथा अर्ध शुष्क क्षेत्रों की फसल है, जहाँ का तापमान 20 डिग्री से 30 डिग्री सेंटीग्रेट के बीच रहता है। लोबिया (Cowpea) बीज जमाव के लिये न्यूनतम तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेट है तथा 32 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक तापमान पर जड़ों का विकास रूक जाता है।
लोबिया के अधिकतम उत्पादन के लिये दिन का तापमान 27 डिग्री सेंटीग्रेट तथा रात का तापमान 22 डिग्री सेंटीग्रेट होना चाहिए। यह ठंड के प्रति संवेदनशील है तथा 15 डिग्री सेंटीग्रेट से कम तापमान उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसको पेड़ो की छाव में उगाया जा सकता है, किन्तु यह ठंड व पाले को सहन नहीं कर सकती है।
लोबिया की खेती के लिए मृदा का चयन (Selection of soil for cowpea cultivation)
लोबिया की फसल (Cowpea Crop) उन सभी प्रकार की मृदाओं में उगाई जाती है, जिनका पीएच मान 5.5-6.5 हो तथा जल निकास का उचित प्रबन्ध हो। उचित जल निकास वाली दोमट या हल्की भारी मिट्टी उपयुक्त रहती है। ठंडी जलवायु में कुछ हद तक रेतीली भूमि में इसकी फसल सकते है क्योंकि इसमें फसल जल्दी पक जाती है। अम्लीय मृदा में इसको सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है, किन्तु लवणीय व क्षारीय मृदा में इसको नहीं उगा सकते।
लोबिया की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for cowpea cultivation)
कठोर मृदा में एक गहरी जुताई इसके बाद दो-तीन हैरो से जुताई पाटा लगाकर खेत तैयार करें। सामान्य मृदा में दो बार हैरो से जुताई व पाटा लगाकर खेत तैयार करना पर्याप्त होता है। लोबिया (Cowpea) की बुवाई अच्छी तरह तैयार भूमि में करते हैं। क्योंकि भूमि की गहरी जुताई से लोबिया की जड़ों का अनुकूल विकास होता है। हालाँकि जब फसल गर्मी या बसंत में उगाई जाती हो, तो कम से कम जुताई की जानी चाहिए।
लोबिया की खेती के लिए किस्में (Varieties for cultivation of cow-pea)
राज्य | किस्में |
उत्तर प्रदेश | यूपीसी – 622, स्वर्णहरिता (आईसी – 285143) काशी चन्दन, यूपीसी – 628, पन्त लोबिया – 1 |
मध्य प्रदेश | गुजरात लोबिया – 3, वी – 240, गुजरात लोबिया – 4, यूपीसी – 622 |
राजस्थान | आरसी – 101, आरसीपी – 27 (एफटीसी – 27) |
पंजाब | सीएल – 367, यूपीसी – 622, वीआरसीपी – 4 (काशी चन्दन) |
हरियाणा | हिसार लोबिया – 46, (एचसी 98-46) |
छत्तीसगढ़ | खालेश्वरी |
झारखण्ड | यूपीसी – 628 |
कर्नाटक | केबीसी – 2, आईटी – 38956-1, पीकेबी – 4, पीकेबी – 6 |
तमिलनाडू | वम्बन – 1, सीओ – 6, यूपीसी – 628 |
दानें के लिये: सी – 152, पूसा फाल्गुनी, अम्बा (वी – 16), स्वर्णा (वी – 38), जीसी – 3, पूसा सम्पदा (वी – 585), श्रेष्ठा (वी – 37 ) आदि मुख्य है।
चारे के लिये: जीएफसी – 1, जीएफसी – 2, जीएफसी – 3 खरीफ के लिये मुख्य है।
ग्रीष्म के लिये: बन्डल लोबिया – 1, यूपीसी – 287, यूपीसी – 5286 रशियन ग्रेन्ट, के – 395, आईजी एफआरआई ( कोहीनूर), सी – 8, यूपीसी – 5287, यूपीसी – 4200, (उत्तर-पूर्व भारत), यूपीसी – 628, यूपीसी – 628, यूपीसी – 621, यूपीसी – 622, यूपीसी – 625 आदि मुख्य है।
लोबिया की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for cowpea cultivation)
उत्तर भारत में लोबिया (Cowpea) की बुवाई बसन्त (फरवरी – मार्च) और वर्षा (जून-जुलाई) दोनों ऋतुओं में की जाती है। लेकिन सीजन के अनुसार बुवाई का समय इस प्रकार है, जैसे-
खरीफ: मानसून आने पर (जून शुरूआत से जुलाई के अंत तक)
रबी: अक्टूबर से नवम्बर माह (दक्षिण भारत)
ग्रीष्म: मार्च द्वितीय सप्ताह से मार्च अन्तिम सप्ताह में (दाने के लिये) व फरवरी माह में चारे के लियें पहाडी क्षेत्रों में इसको अप्रैल-मई में लगाते है तथा हरी खाद के लिये जून मध्य से जुलाई का प्रथम सप्ताह में लगाते है।
लोबिया की खेती के लिए बीज की मात्रा (Quantity of seeds for cowpea cultivation)
सामान्यत: दाने के लिये लोबिया की खेती हेतु 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर, चारे व हरी खाद के लिये 30-35 किलो प्रति हेक्टेयर बीज दर की आवश्यकता होती है। ग्रीष्मकाल में दाने के लिये बोई गई फसल के लिये 30 किलो प्रति हेक्टेयर व चारे तथा हरी खाद के लिये 40 किलो प्रति हेक्टेयर बीज दर की आवश्यकता होती है।
लोबिया (Cowpea) बीज की यह मात्रा बुवाई की विधि (छिटकवाँ अथवा पंक्तियों में), प्रजातियों के प्रकार (छोटी एवं झाड़ीनुमा अथवा चढ़ने वाली प्रजातियाँ) और बुवाई के समय (बसन्त एवं ग्रीष्म अथवा वर्षा ऋतु ) पर निर्भर करती है। छिटकवाँ विधि की अपेक्षा पंक्तियों में बुवाई करने पर बीज कम लगता है।
लोबिया की खेती के लिए बीज उपचार (Seed treatment for cowpea cultivation)
लोबिया (Cowpea) के बीजों का बुवाई से पहले थायरम (2 ग्राम) + कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम) प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचार करना चाहिए । इसके उपरान्त राईजोबियम कल्चर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करके बुवाई करना चाहिए।
लोबिया की खेती के लिए बुवाई की विधि (Sowing method for Cowpea cultivation)
लोबिया की खेती (Cowpea Cultivation) के लिए आवश्यकतानुसार तथा मौसम के आधार पर बुवाई कतार में, छिटकवां और डिबलिग विधि से कर सकते है। कतार में बुवाई छिटकवां विधि से अच्छी रहती है । यद्यपि, चारे व हरी खाद की फसल की बुवाई हेतु छिटकवां विधि अच्छी मानी गई है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में, प्रत्येक 2 मीटर अन्तराल पर 30 सेमी चौडी व 15 सेमी गहरी नालियाँ बना देनी चाहिए जिससे वर्षा का अतिरिक्त पानी निकल जाए।
लोबिया की अच्छी फसल के लिए बुवाई पंक्तियों में नाली अथवा मेड़ बनाकर की जाती है। इससे बीजों का अंकुरण और जल निकास अच्छा होता है। निराई-गुड़ाई तथा कीट एवं फफूँदी नाशक दवाओं के छिड़काव में सहायक सिद्ध होता है। झाड़ीनुमा और बौनी प्रजातियों के लिए पंक्ति से पंक्ति 40-50 सेंमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंमी रखनी चाहिए। इसी प्रकार फैलने या चढ़ने वाले प्रजातियों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 70-75 सेंमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेंमी रखी जाती है। बीज की बुवाई 3-5 सेमी गहराई पर करनी चाहिए।
लोबिया फसल के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer for Cowpea Crop)
लोबिया की फसल (Cowpea Crop) से अच्छी पैदावार के लिए 200 – 250 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद तथा 30-40 किग्रा नेत्रजन, 50-60 किग्रा फॉस्फोरस और 50 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। यदि खेत में पहली बार लोबिया की खेती की जा रही है, तो बुवाई से पूर्व बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए। बीजों को उपचारित करने के लिए 1.5 किग्रा राइजोबियम कल्चर प्रति 100 किग्रा बीज की दर से आवश्यकता पड़ती हैं।
लोबिया की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in cowpea crop)
सामान्यत: लोबिया (Cowpea) बुवाई के लगभग चार सप्ताह बाद खुरपी या कुदाल से एक बार निराई-गुड़ाई अवश्य करना चाहिए। निराई-गुड़ाई के बाद नेत्रजन की शेष आधी मात्रा को टापड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए। रासायनिक विधि द्वारा खरपतवारों का नियंत्रित करने के लिए 3.30 लीटर स्टाम्प को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 48 घंटों के भीतर खेत में समान रूप से छिड़काव करना चाहिए। इसमें फूल आने से थोड़ा पहले 50-200 पीपीएम मौलिक हाइड्राजाईड का पौधों पर छिड़काव करने से हरी फलियों के उत्पादन में वृद्धि पायी गयी है।
लोबिया की फसल में सिंचाई प्रबन्धन (Irrigation Management in Cowpea Crop)
लोबिया की फसल (Cowpea Crop) जल जमाव के प्रति संवेदनशील है। इसलिए हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए। फूल आने से पूर्व सिंचाई करना फलियों के निर्माण में सहायक है। दूसरी सिंचाई फलियाँ लगने के बाद करनी चाहिए। पहली बार के फूलों से उत्पन्न सभी हरी फलियों की तुड़ाई हो जाय तब पुनः सिंचाई करने से पौधो में दूसरी बार फूल उत्पन्न होते हैं, जिससे पैदावार में वृद्धि होती है। लेकिन ग्रीष्म ऋतु में 5-6 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना आवश्यक है।
लोबिया की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in cow-pea crop)
जीवाणु झुलसा: लोबिया (Cowpea) के नवजात पौधे भूरे लाल होकर मर जाते है। पत्तियों पर अनियमित भूरे रंग के धब्बे बनते है, जो बाद में तने पर फैल जाते है तथा तना टूट भी जाता है। इससे फलियाँ भी प्रभवित होती है जिससे दाना सिकुड़ जाता है।
नियंत्रण के उपाय: (1) रोग रोधी किस्मों को बोना चाहिए; (2) स्वस्थ व रोग रहित बीज का उपयोग करना चाहिए; ( 3 ) फसल पर कॉपर आक्सी क्लोराइड दवा की 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
लोबिया मोजेक: लोबिया फसल (Cowpea Crop) की संक्रमित पौधो की पत्तियाँ पीली व आकार विकृत हो जाती है।
नियंत्रण के उपाय: स्वस्थ व रोग रहित बीज का उपयोग करना चाहिए, रोग के वाहक एफिड के नियंत्रण के लिये मिथाइल डेमेटॉन 1 मिली प्रति लीटर या इमिडाक्लोरोप्रिड 0.2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें तथा दूसरा छिडकाव 10 दिन बाद करें।
चूर्णिल आसिता: इस बीमारी के लक्षण लोबिया (Cowpea) पौधे के पूरे वायवीय भागों पर सफेद रंग के कवक बीजाणुओं का चूर्ण दिखाई देता है।
नियंत्रण के उपाय: कटाई के बाद फसल अवशेष को इकट्ठा कर जला दें; पपद्ध रोग सहनशील या रोग रोधी किस्मों का चुनाव करें; रोग नियंत्रण के लिये घुलनशील सल्फर 3 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडकाव करें तथा एक सप्ताह के अन्तराल पर फिर से छिडकाव करें।
लोबिया की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in cow-pea crop)
लोबिया फली छेदक: इस कीट की इल्ली पत्तियों को रोल बनाकर उपरी प्ररोह के साथ जाला बनाती है। इल्ली फली में छेद करके दाने को खाती है और यदि फूल व फलियाँ नहीं होती तो पत्तियों को खाती है।
नियंत्रण के उपाय: कीट के अण्डो व इल्लियों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें; पपद्ध इल्ली के नियंत्रण के लिये 2 प्रतिशत मिथाइल पेराथियान पाउडर की 25-30 किग्रा मात्रा का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बुरकाव करें या क्यूनालफॉस 2 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिडकाव करें।
रोमिल सुंडी: यह लोबिया (Cowpea) की प्रमुख कीट है। यह फसल को भारी नुकसान पहुँचाता है। यह नवजात पौधे को काट देता है व हरी पत्तियों को खा जाता है।
नियंत्रण के उपाय: कीट के अण्डो व इल्लियों को इकट्ठा कर नष्ट कर दें इल्लियों की प्रारम्भिक अवस्था में नियंत्रण के लिये क्लोरोपायरीफॉस या क्विनॉलफॉस दवा की 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें।
एफिड और जेसिड: ये कीट लोबिया (Cowpea) पौधे के रस को चूसकर उसे पीला व कमजोर कर देते है।
नियंत्रण के उपाय: इसकी रोकथाम के लिये मिथाइल डेमेटॉन 25 ईसी 1 मिली प्रति लीटर या डाईमेथोएट 30 ईसी 1.7 मिली प्रति लीटर पानी से घोल बनाकर छिडकाव करें।
बीन फ्लाई / तना मक्खी: इस कीट का मैगट जमीन के पास तने में छेद करके घुसता है, वहाँ तना फूल जाता है। मैगट तने में निचे प्यूपा में बदल जाता है जिससे तने में दरार आ जाती है।
नियंत्रण के उपाय: खेत को दलहन फसलों के अवशेषों से साफ रखें; पपद्ध बुवाई के समय फोरेट 10जी 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से कुड में दें, जिससे इसका प्रकोप कम हो।
लोबिया फसल की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Cowpea Crop)
हरी फलियों के उपयोग के लिये उगाई लोबिया (Cowpea) फसल की तुडाई बुवाई के 45-90 दिन बाद किस्म के आधार पर कर सकते है। दाने की फसल के लिये कटाई, बुवाई के 90-125 दिन बाद जब फलियाँ पूर्णतः पक जाए, करनी चाहिए। कटाई के बाद फसल को सुखा कर थ्रेसिंग करना चाहिए। भण्डारण के पूर्व दानों को धूप में सुखाने के बाद ही भण्डारण करें। चारे वाली फसल की कटाई सामान्यतः बुवाई के 40-45 दिन बाद की जाती है।
दाने की उपज: अच्छी तरह उगाई फसल से लगभग 12 से 17 क्विंटल दाना व 50-60 क्विंटल भूसा प्राप्त होता है। चारे वाली लोबिया फसल (Cowpea Crop) से 250-350 क्विंटल तक हरा चारा प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है।
हरी फली की उपज: लोबिया की अगेती प्रजातियों में हरी फलियाँ लगभग 40-45 दिनों में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। फलियाँ की तुड़ाई कोमल अवस्था में कम अन्तराल पर तथा रेशा बनने से पूर्व करनी चाहिए। लोबिया एक पौधे में 3-4 बार फलन होती है तथा एक फलन में लगभग 4 बार तुड़ाई होती है।
इस प्रकार पूरे लोबिया फसल (Cowpea Crop) काल में 12-16 तुड़ाई होती है। उन्नतिशील झाड़ीदार प्रजातियों की 100-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और चढ़ने वाली प्रजातियों से 150-230 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरी फलियाँ मिलती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
लोबिया की वृद्धि के लिए इष्टतम तापमान 30 °C (86 °F) है, जिससे यह दुनिया के अधिकांश हिस्सों में केवल गर्मियों की फसल के रूप में उपलब्ध है। यह 400 से 700 मिमी (16 और 28 इंच) के बीच वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में सबसे अच्छी तरह से बढ़ता है। आदर्श मिट्टी रेतीली होती है और लोबिया (Cowpea) अधिकांश अन्य फसलों की तुलना में बंजर और अम्लीय मिट्टी के लिए बेहतर सहनशीलता रखती है।
लोबिया (Cowpea) की बुवाई उनके उद्देश्य और मौसम के आधार पर छिड़काव, लाइन बुवाई और बीजों की डिबलिंग द्वारा की जाती है। बुवाई की छिड़काव विधि की तुलना में लाइन बुवाई बेहतर रही है। हालांकि, चारा और हरी खाद की फसल के लिए छिड़काव विधि बेहतर मानी जाती है।
लोबिया (Cowpea) खरीफ फसल की बुवाई जून से जुलाई तक की जाती है। रबी फसल की बुवाई अक्टूबर से नवंबर तक की जाती है और जायद फसल की बुवाई फरवरी से मार्च तक की जाती है। सामान्यत: एक हेक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 15 – 25 किग्रा बीज की आवश्यकता पड़ती है।
सब्जियों के रूप में इस्तेमाल के लिए हरी फलियों को किस्म के आधार पर बुवाई के 45-90 दिन बाद काटा जा सकता है। अनाज के लिए,लोबिया फसल (Cowpea Crop) की कटाई बुवाई के लगभग 90-125 दिन बाद की जा सकती है, जब फलियाँ पूरी तरह से पक जाती हैं।
लोबिया (Cowpea) के पौधे में 3-4 बार फलन होती है तथा एक फलन में लगभग 4 बार तुड़ाई होती है। इस प्रकार पूरे फसल काल में 12-16 तुड़ाई होती है। उन्नतिशील झाड़ीदार प्रजातियों की 100-200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और चढ़ने वाली प्रजातियों से 150-230 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरी फलियाँ मिलती है, और 12 से 17 क्विंटल दाना प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त किया जा सकता है।
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