Cumin Farming: जीरा कम समय में पकने वाली रबी की मसाले की एक प्रमुख फसल है। इसके बीजों को विभिन्न प्रकार की औषधियों में उपयोग किया जाता है। इसके बीजों में वाष्पशील तेल पाया जाता है। जीरे में सुगन्ध उसमें उपस्थित सुगन्धित पदार्थ क्यूमिनोल के कारण होती है। देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा गुजरात और राजस्थान राज्यों में उगाया जाता है। जीरा कम समय में पकने, कम पानी चाहने और अधिक आय देने वाली फसल है।
किन्तु जीरे की फसल (Cumin Crop) कीट और रोगों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है। इस फसल की देख-रेख में थोड़ी भी असावधानी हो जाये तो पूरी फसल रातों-रात चौपट हो जाती है। उन्नत तकनीकों के प्रयोग द्वारा जीरे की वर्तमान उपज को 25-50 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि जीरे की उपज अपेक्षा काफी कम है। इसलिए इस लेख में जीरे की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें, का उल्लेख किया गया है।
जीरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cumin cultivation)
जीरा शरद ऋतु में बुवाई की जाने वाली फसल है। अच्छी पैदावार के लिए सर्द एवं शुष्क वातावरण अधिक अनुकूल रहता है। जीरे (Cumin) में फूल व बीज बनने की अवस्था में वायुमण्डलीय नमी की अधिकता हानिकारक होती है जिससे फसल को भारी नुकसान होता है।
जीरे की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for cumin cultivation)
जीरा की खेती (Cumin Cultivation) के लिए उचित जल निकास वाली बलूई दोमट भूमि उत्तम मानी जाती है। क्योंकि एक ही खेत में बार-बार जीरा की फसल लगाने से उकठा रोग का प्रकोप होता है। जीरा के फसल उत्पादन के लिए कम से कम तीन वर्षीय फसल चक्र आवश्यक है।
जीरे की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cumin cultivation)
जैसा की जीरे की फसल (Cumin Crop) बलुई दोमट तथा दोमट भूमि अच्छी होती है। खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिये। जीरे की फसल के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद एक क्रास जुताई हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिये और इसके पश्चात् एक जुताई कल्टीवेटर से करके पाटा लगाकर मिट्टी भुरभुरी बना देनी चाहिये।
जीरे की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for cumin cultivation)
किस्में | पकाव अवधि (दिनों में) | उपज (क्वि. प्रति है.) | विशेषताएं |
एमसी- 43 | 115 120 | 5 – 7 | उखटा व झुलसा रोधी |
आरएस- 1 | 80-90 | 10 – 12 | सामान्य सिंचित क्षेत्र |
आरजेड- 19 | 120 125 | 10 – 12 | सामान्य सिंचित क्षेत्र |
आरजेड- 209 | 120 125 | 10 – 12 | छाछिया रोधी |
आरजेड- 223 | 120 130 | 10 – 12 | उखटा व झुलसा रोधी |
गुजरात जीरा- 1 | 105 | 7 – 8 | उखटा व झुलसा रोधी |
गुजरात जीरा- 2 | 100-110 | 10 – 12 | सामान्य सिंचित क्षेत्र |
गुजरात जीरा- 3 | 100-110 | 10 – 12 | उखटा रोधी |
गुजरात जीरा- 4 | 100 110 | 10 – 12.5 | उखटा रोधी, दाने का अच्छा आकार |
जीरे की बीजदर, बीजोपचार और बुवाई (Seed rate, seed treatment and sowing of jeera)
एक हेक्टेर क्षेत्र के लिए 12 से 15 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है। बुवाई से पूर्व जीरे के बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित कर बोना चाहिए। जीरे की फसल (Cumin Crop) में उखटा और जड़ सड़ने के रोकथाम हेतु 100 किग्रा गोबर की खाद में 25 किग्रा ट्राइकोडर्मा मिलाकर बुवाई के 15 दिन पहले खेत में मिला देना चाहिए।
जीरे (Cumin) की बुवाई का उपयुक्त समय 15 से 30 नवम्बर के बीच होता है। कतारों में बुवाई के लिए क्यारियों में 22.5 से 25 सेमी की दूरी पर लोहे या लकड़ी से हुक से लाइने बना लेते है। बीजो को इन्ही लाइनों में डालकर दांतली चला दी जाती है।
बुवाई के समय इस बात को ध्यान में रखें कि बीज मिट्टी से एक साथ ढक जाये तथा मिट्टी की परत एक सेन्टीमीटर से ज्यादा मोटी न हो। लेकिन कल्टीवेटर से 25 से 30 सेमी के अन्तराल पर पंक्तियां बनाकर उसमें बुवाई करना अच्छा रहता है।
जीरे में निराई-गुडाई एवं खरपतवार नियंत्रण (Weeding and weed control in jeera)
भूमि में उचित वायु संचार के लिये कम से कम दो निराई-गुडाई करना आवश्यक होता है। पहली निराई-गुडाई जब पौधे 4 से 5 सेमी ऊँचाई के हो जाये तब करनी चाहिए। इस समय पौधे से पौधे की दूरी 5 से 10 सेमी निश्यित कर दनी चाहिए। दूसरी निराई-गुडाई फसल की 60 दिन की अवस्था में करनी चाहिए।
खरपतवारों वाली स्थिति और खेत की पपड़ी बनने की अवस्था में दूसरी निराई गुडाई जल्दी भी की जा सकती है। जहां निराई गुडाई का प्रबन्धन न हो सके वहां पर जीरे की फसल (Cumin Crop) में खरपतवार नियंत्रण हेतु निम्न रसायनों में से किसी एक का प्रयोग करें, जैसे-
- फलूक्लोरलिन 1 किग्रा सक्रिय तत्व (2.225 लीटर), (बासालिन) प्रति हेक्टेर (3 मिली प्रति लीटर में) लगभग 750 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर भूमि में मिला दें, तत्पश्चात जीरे की बुवाई करें।
- ट्रिम्यट्रॉन 1 किग्रा सक्रिय तत्व ( 1.25 किग्रा) प्रति हैक्टेयर (1.5 मिली प्रति लीटर पानी में)।
- ऑक्साटाइसान 0.5 किग्रा सक्रिय तत्व (दो लीटर रानस्टर) प्रति हैक्टेयर (2.5 मिली प्रति लीटर पानी में)।
- पेण्डामिथलिन 1 किग्रा सक्रिय तत्व ( 3.3 किलो स्टाम्प एफ 34 ) प्रति हैक्टेयर (4.5 मिली प्रति लीटर पानी में) बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करें।
- ऑक्सड्राईजिल 50 ग्राम ( 800 ग्राम मिली) प्रति हैक्टेयर बुवाई के 20 दिन के बाद छिड़काव करें।
जीरे की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for cumin cultivation)
खाद और उर्वरक का प्रयोग मृदा जांच के आधार पर करना चाहिए। गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद 10-15 टन प्रति हैक्टेयर डालनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जीरे (Cumin) की फसल को 30 किलो नत्रजन और 20 किलो फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से उर्वरक भी देवें (नत्रजन तथा फॉस्फोरस की मात्रा 43 किलो डीएपी 49 किलो यूरिया से दे सकते हैं)।
फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व आखिरी जुताई के समय भूमि में मिला देनी चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 से 35 दिन बाद तथा शेष आधी मात्रा (15 किलो) बुवाई के 60 दिन के बाद सिंचाई के साथ देवें।
जीरे की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management in cumin crop)
उपरोक्त विधि से जीरे (Cumin) की बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई दे देनी चाहिए। सिंचाई के समय ध्यान रहे कि पानी का बहाव तेज न हो अन्यथा तेज बहाव से बीज अस्त-व्यस्त हो जायेंगे। दूसरी हल्की सिंचाई बुवाई के एक सप्ताह पूरा होने पर जब बीज फूलने लगे तब करें। अगर दूसरी सिंचाई के बाद अंकुरण पूरा नहीं हो या जमीन पर पपड़ी जम गई हो तो एक हल्की सिंचाई करना लाभदायक रहेगा।
इसके बाद भूमि की बनावट तथा मौसम के अनुसार 15 से 25 दिन के अन्तर से सिंचाई पर्याप्त होगी पर ध्यान रहे कि भूमि में पानी का ठहराव अधिक समय तक न रहे। पकती हुई फसल में सिंचाई न करें अर्थात जब 50 प्रतिशत दाने पूरी तौर पर भर जायें तो सिंचाई बंद कर दें। इस अवस्था के बाद सिंचाई करने से बीमारियों का प्रकोप बढने की सम्भावना रहती है। अतः दाने बनते समय अन्तिम सिंचाई गहरी करनी चाहिये ताकि और सिंचाई की आवश्यकता न पड़े।
जीरे की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in cumin crop)
जीरे की फसल (Cumin Crop) कीट और व्याधियों का घर है। परन्तु समय पर कीट एवं बीमारियां की रोकथाम कर नुकसान को कम किया जा सकता है, जैसे-
मोयला (चैंपा): मोयला का प्रकोप बादल होते ही शुरु हो जाता है। इसके आक्रमण से फसल को काफी नुकसान होता है, यह पौधे के कोमल भाग से रस चूस कर हानि पहुंचाता है तथा इसका प्रकोप प्रायः फसल में फूल आने के समय आरम्भ होता है तथा फसल के पकने तक रहता है।
इस कीट की रोकथाम के लिए जीरे की फसल (Cumin Crop) में डाइमिथोएट 30 ईसी या मैलाथियान 50 ईसी या इन्डोसल्फॉन 35 ईसी एक मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकतानुसार 10-15 दिन के बाद पुनः छिड़काव करें।
जीरे की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in cumin crop)
जीरे की फसल (Cumin Crop) में मुख्यतः झुलसा, छाछिया और उखटा रोग के प्रकोप से बड़ी क्षति होती है। इसके लिए सबसे आवश्यक यह है कि किसानों को रोग के लक्षण प्रकट होने के समय की जानकारी और उपचार के साधनों का सही ज्ञान होना चाहिए, जैसे-
उखटा: यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरियम फार्म क्यूमिनाई नामक कवक द्वारा होता है। यह रोग जीरे की फसल का सबसे उग्र रोग है। एक ही खेत में लगातार 2 या 3 फसल जीरे की लेने के बाद इस रोग से कई बार 60-70 प्रतिशत तक नुकसान देखा गया है, क्योंकि रोग फैलाने वाली फफूंद के जीवाणु भूमि में कई साल तक जिन्दा रहते हैं।
यह रोग जीरे (Cumin) में पौधों की किसी भी अवस्था में दिखाई दे सकता है, परन्तु अधिकतर यह रोग छोटे-छोटे चकतों में दिसम्बर माह के अन्त में खेत में शुरू होता है। रोग की प्रारम्भिक अवस्था में रोग ग्रस्त पौधे पीले पड़ जाते हैं, जो बाद में सुख जाते हैं।
रोग नियंत्रण के लिए गर्मी में गहरी जुताई करें तथा बुवाई के 15 दिन पहले ट्राइकोडर्मा नामक मित्र फफूंद ढाई किग्रा को 25 किग्रा सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर एक बीघा क्षेत्र में अच्छी प्रकार मिला दें। कम से कम तीन वर्ष का फसल चक्र (ग्वार-जीरा, ग्वार-गेहूं, ग्वार – सरसों) अपनाएँ। बीजों का बावस्टिन से 2 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से उपचारित करके बोना चाहिए।
छाछिया: यह रोग जीरे (Cumin) में अधिकतर फूल आने और बीज बनने के समय उग्र अवस्था में दिखाई देता है। इसकी उग्रता जनवरी तथा फरवरी माह में मौसम की अनुकूलता के हिसाब से देखी जा सकती है। इस रोग की शुरूआत छोटे सफेद धब्बों के रूप में होती है, जो धीरे-धीरे आपस में मिलकर पूरी पत्तियों पर छा जाती है, जिससे ऊपर की नई पत्तियां भी रोगग्रस्त हो जाती है।
अधिक फैलने पर जीरे (Cumin) की सारी पत्तियां सफेद हो जाती है। धीरे-धीरे रोग तने, फूलों व बीजो पर भी फैल जाता है। मौसम के शुष्क होते ही इस बीमारी का फैलाव रूक जाता है। यह रोग शुरू की अवस्था में 25 किलो गन्धक चूर्ण का प्रति हैक्टेयर भुरकाव करने से रोका जा सकता है।
यदि मौसम बीमारी के अनुकूल हो तो गन्धक का एक और भुरकाव 15 रोज बाद करीब 12 – 13 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से करना चाहिए। इसके अलावा कैराथेन एलसी एक एमएल प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिड़काव करने से इसकी रोकथाम की जा सकती है।
झुलसा: इस रोग से जीरे (Cumin) के पौधों के सिरे झुके हुए नजर आने लगते हैं। पौधे की पत्तियों एवं नों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। यह रोग इतनी तेजी से फैलता है कि रोग के लक्षण दिखाई देते ही यदि नियन्त्रण कार्य न कराया जाए, तो फसल को नुकसान से बचाना मुश्किल हो जाता है।
यह रोग जीरे (Cumin) में अधिकतर फरवरी और मार्च में अपेक्षाकृत आर्द्र मौसम के समय में देखा जा सकता है। इसकी शुरूआत छोटे-छोटे धब्बे बड़े होकर बैंगनी रंग के होते हैं, जो बाद में गहरे भूरे व काले रंग के पड़ जाते हैं। यदि यह रोग ग्रसित बीज पुनः बोया जाता है, तो इस रोग के खेत में फैलने की पूर्ण सम्भावना होती है।
इस रोग को शुरू में ही रोकने के लिए बीजों को फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डेजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करके बोना चाहिए। रोग के लक्षण दिखते ही जाइनेब या मेन्कोजेब का छिड़काव 2 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से करना चाहिए। यदि मौसम बादलों वाला हो तो एक और छिड़काव 10-15 रोज में करें।
जीरे की फसल की कटाई और उपज (Harvesting and yield of cumin crop)
कटाई: जीरे की फसल (Cumin Crop) 120-130 दिन में पक जाती है। फसल को दराती या हंसिये से काट कर अच्छी तरह से सुखा लेवें। पौधों को उखाड़ना नहीं चाहिए। फसल के ढेर को पक्के फर्श पर धीरे-धीरे पीटकर दानों को अलग करें और दानों से धूल, हल्का कचरा एवं अन्य पदार्थ प्रचलित विधि द्वारा ओसाई कर दूर कर देवें।
उपज: उन्नत कृषि विधियाँ अपनाने से 7-15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर जीरे (Cumin) की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
जीरे की बुवाई दो तरीकों से की जाती है, यानी लाइन में बुवाई और ब्रॉड-कास्टिंग। परंपरागत रूप से किसान जीरे (Cumin) की बुवाई ब्रॉड-कास्टिंग विधि से करते हैं, लेकिन लाइनों में बुवाई करने से अंतर-संस्कृति संचालन में आसानी होती है। लाइन से लाइन की दूरी 25 सेमी रखनी चाहिए।
जीरे (Cumin) को पकने में 90 से 120 दिन लगते हैं। जैसे ही बीज के सिर दिखाई देने लगते हैं, लेकिन बीज के सिर से गिरने से पहले, कटाई का समय आ जाता है।
उच्च तापमान वृद्धि अवधि को कम कर सकता है और जल्दी पकने को प्रेरित कर सकता है। भारत में, जीरा (Cumin) अक्टूबर से दिसंबर तक बोया जाता है, और कटाई फरवरी में शुरू होती है।
जीरे की खेती (Cumin Cultivation) के लिए एक सामान्य उर्वरक कार्यक्रम में बढ़ते मौसम की शुरुआत में यूरिया या अमोनियम सल्फेट जैसे नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों को डालना शामिल हो सकता है। स्वस्थ बीज विकास को बढ़ावा देने के लिए फूल आने के दौरान ट्रिपल सुपरफॉस्फेट जैसे फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों को लगाया जा सकता है।
प्रति एकड़ जीरे (Cumin) की ज़रूरत की संख्या रोपण विधि, मिट्टी के प्रकार और अन्य कारकों के आधार पर अलग-अलग होती है, लेकिन आमतौर पर प्रति एकड़ औसतन 3-4 किलोग्राम जीरा की ज़रूरत होती है।
जीरे की बुवाई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। जीरे (Cumin) की बुवाई के 8 से 10 दिन बाद दूसरी एक हल्की सिंचाई दे जिससे जीरे का पूर्ण रूप से अंकुरण हो पाए। इसके बाद आवश्यकता हो तो 8-10 दिन बाद फिर हल्की सिंचाई की जा सकती है। इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर दाना बनने तक तीन और सिंचाई करनी चाहिए।
जीरे (Cumin) से अधिक पैदावार और आमदनी प्राप्त करने के लिये समन्वित उत्पादन पद्धति अपनानी चाहिये। इसमें सिफारिश की गई नत्रजन की आधी मात्रा देशी खाद से व शेष यूरिया से दें। बीज को जीवाणु खाद (एजोटोबेक्टर और पीएसबी) से उपचारित करें। बुवाई के समय 40 किलो गन्धक जिप्सम के माध्यम प्रति हैक्टेयर खेत में डाले।
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