Desi Cotton Farming in Hindi: भारत में देसी कपास की खेती का ऐतिहासिक महत्व है और यह देश के कृषि परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारतीय कृषि पद्धतियों में गहरी जड़ों वाली एक पारंपरिक फसल के रूप में, देसी कपास को इसकी पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक योगदान के लिए महत्व दिया जाता है। भारतीय संदर्भ में इसका महत्व इसके आर्थिक मूल्य से कहीं आगे जाता है, जो पारंपरिक कृषि पद्धतियों को संरक्षित करने और स्थिरता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यह लेख देसी कपास की खेती के विकास, भारतीय कृषि में इसके महत्व, खेती की तकनीक, किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों, सरकारी सहायता पहलों, टिकाऊ पद्धतियों और देसी कपास उद्योग की भविष्य की संभावनाओं का पता लगाता है। इन पहलुओं पर गहराई से विचार करके, हमारा उद्देश्य भारत में देसी कपास की खेती (Desi Cotton Cultivation) की अनूठी विशेषताओं और संभावनाओं का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करना है।
देसी कपास के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Desi cotton)
देसी कपास (Desi Cotton) मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय फसल है। इसे अन्य कपास की तरह समान रूप से उच्च तापमान (21 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस) की आवश्यकता होती है और यह 50-100 सेमी की औसत वार्षिक वर्षा सीमा के भीतर अच्छी तरह से बढ़ता है। कपास के अंतर्गत अधिकांश सिंचित क्षेत्र पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में हैं।
देसी कपास के लिए मिट्टी का चयन (Selection of soil for Desi cotton)
देशी कपास के लिए रेतीली दोमट से चिकनी दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। क्योंकि इस प्रकार की मिट्टी में अधिक समय तक नमी रहती है और इसमें प्रचुर मात्रा में ह्यूमस होता है। जिन खेतों में पानी का भराव रहता है, उनमें देशी कपास (Desi Cotton) नहीं लेनी चाहिए। क्षारीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं रहती है।
देसी कपास के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Desi cotton)
देसी कपास (Desi Cotton) के लिए पड़त खेतों में तैयारी पिछली फसल काटते ही शुरू करनी चाहिए। इसके लिए 2-3 बार जुताई और अंत में सुहागा देकर खेत तैयार करना चाहिए, ताकि खेत में खरपतवार न रहे। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी करें।
देसी कपास के लिए पलेवा और मिट्टी उपचार (Ploughing and soil treatment for Desi cotton)
देसी कपास (Desi Cotton) के लिए पलेवा की सिंचाई गहरी होनी चाहिए। पलेवा के बाद तरबतर स्थिति में एक या दो जुताई व सुहागा देकर खेत को तैयार करके यथा शीघ्र बुवाई करनी चाहिए। जहां रेतीली मिट्टी हो, वहां कोई जुताई न करें, ताकि रेत उड़कर पौधों को नहीं मारे। जुताई करने से पहले दीमक से प्रभावित खेतों में 6 किलोग्राम क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत या मिथाईल पैराथियान 2 प्रतिशत प्रति बीघा की दर भूमि में मिलायें।
देसी कपास की खेती के लिए किस्में (Varieties for Desi Cotton Cultivation)
हमारा सुझाव है, की किसान भाई अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्मों में से ही उत्तम किस्म का चुनाव करके बुआई करें। देसी कपास (Desi Cotton) की खेती के लिए कुछ उन्नत किस्में ये हैं, जैसे-
उन्नत किस्में: एच डी 107, एच डी 123, एच डी 324, एच डी 432, आर जी 18, डी एस 5, एल डी 230, एल डी 327, एल डी 491, एल डी 694 और आर जी 542 आदि प्रमुख प्रचलित किस्में है।
संकर किस्में: ए ए एच 1, हाईब्रिड सीआईसीआर 2 और राज डी एच 9 आदि मुख्य प्रचलित किस्में है।
देसी कपास के लिए बीज और बुवाई (Seed and sowing for Desi cotton)
बुवाई का समय: देसी कपास (Desi Cotton) बुवाई का उपयुक्त समय अप्रेल के प्रथम सप्ताह से मई के प्रथम सप्ताह तक होता है। इसके बाद बोने पर पैदावार में कमी आ जाती है।
बीज की मात्रा: तीन किलो बीज प्रति बीघा की दर से बोना उपयुक्त है। इससे खेत में पौधों की वांछित संख्या उपलब्ध हो जाती है।
देसी कपास के बीज का उपचार (Treatment of Desi Cotton Seeds)
देसी कपास में गुलाबी लट की रोकथाम के लिए साढ़े तीन से चालीस किलोग्राम तक बीज को 3 ग्राम एल्यूमिनियम फास्फाईड से धूमित ( फ्यूमिगेट) करें तथा बीज को 24 घण्टे तक धूमित अवस्था में रखें। यदि घुमित करना सम्भव न हो तो बीज की पतली तह बनाकर तेज धूप में तपायें। जड़गलन की समस्या वाले खेतों में बुवाई से पूर्व 6 किलोग्राम व्यापारिक जिंक सल्फेट प्रति बीघा की दर से मिट्टी डालकर मिला दें।
देसी कपास (Desi Cotton) के बोये जाने वाले बीजों को कार्बोक्सिन ( 70 डब्ल्यू पी) 0.3 प्रतिशत या कार्बेन्डेजिम (50 डब्ल्यू पी) 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी में) के घोल में भिगोकर अथवा सादे पानी में भिगोये गये बीज को कुछ समय तक छाया में सुखाने के बाद ट्राइकोडरमा हरजेनियम जीव या सूडोमोनास फ्लूरोसेन्स 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोये।
देसी कपास के लिए बुवाई की विधि (Sowing method for Desi cotton)
देशी कपास (Desi Cotton) तरबतर खेत में 67.5 सेन्टीमीटर (सवा दो फीट) की दूरी पर स्थित कतारों में पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी पर बोना चाहिए। यह ध्यान रहे कि बीज के ऊपर 4-5 सेन्टीमीटर में अधिक मिट्टी न गिरे, अन्यथा अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। पहली सिंचाई के बाद आवश्यकता से अधिक पौधों की छंटनी करके पौधे से पौधे की दूरी समानांतर कर देनी चाहिए।
देसी कपास के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for Desi cotton)
कृषकों को गोबर की खाद अधिक मात्रा में फसल चक्र में डालनी चाहिये। इसके अतिरिक्त देसी कपास (Desi Cotton) के लिए 22.5 किलोग्राम नत्रजन और 7 किलो फास्फोरस प्रति बीघा देना चाहिए। यदि किसी कारणवश बुवाई के समय नत्रजन की उपरोक्त मात्रा न दी जा सके, तो पहली सिंचाई के समय तो अवश्य देनी चाहिए। शेष बची हुई नत्रजन खड़ी फसल में अगस्त के प्रथम पखवाड़े में टॉप ड्रेसिंग विधि से देकर सिंचाई करें। नत्रजन की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर घटाई – बढ़ाई जा सकती है।
देसी कपास में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Native cotton)
देसी कपास (Desi Cotton) के खेत में खरपतवार न पनपने दें। इसके लिए पहली निराई-गुड़ाई पहली सिंचाई के बाद कसिये से करें, इसके बाद एक और निराई-गुड़ाई त्रिफाली से करें। रसायन द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डामेथलीन (30 ईसी) 1250 मिली प्रति बीघा की दर से 125-150 लीटर पानी में घोलकर फ्लेटफेन नोजल से बिजाई से पूर्व या बिजाई के तुरन्त बाद छिड़काव करें। प्रथम सिंचाई के बाद एक बार गुड़ाई करना अधिक लाभदायक रहता है।
देसी कपास की फसल में सिंचाई (Irrigation in Native Cotton Crop)
देशी कपास (Desi Cotton) में पलेवा के अतिरिक्त 4-5 सिंचाईयाँ देनी चाहिए। पहली सिंचाई बोने के 35-40 दिन बाद करनी चाहिए और इसके बाद सिंचाईयाँ 25-30 दिन के अन्तर पर जून, जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर में करनी चाहिए। आखिरी सिंचाई सितम्बर के दूसरे पखवाड़े के बाद ही करें। देशी कपास में बून्द – बून्द सिंचाई पद्धति से पैदावार में वृद्धि तथा सिंचाई जल की बचत होती है।
देसी कपास की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in Desi cotton crop)
देसी कपास की फसल (Desi Cotton Crop) में रोग नियंत्रण के लिए ये उपाय किए जा सकते हैं, जैसे-
- रोगों के धब्बे दिखने पर, 150-200 लीटर पानी में 600-800 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड और 6-8 ग्राम स्टेप्टोसाइकलिन घोलकर 15-20 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें।
- टिडा गलन रोग के लिए, 2 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या 2 ग्राम कार्बनडाज़िम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- कोणीय धब्बे रोग के लिए, बीज बोने से पहले 1 ग्राम स्टेप्टोसाइक्लिन प्रति लीटर पानी में भिगोकर बीजों का उपचार करें।
- झुलसा रोग के लिए, 1 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- लाल पत्ती रोग के लिए, नाइट्रोजन और मैग्नीशियम का छिड़काव करें।
- पत्ती मोड़ रोग के लिए, स्थिति के मुताबिक कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें और दवा का छिड़काव करें।
- कपास की फसल में हरे तेला, चेपा या मिली बग की रोकथाम के लिए डेनटॉप कीटनाशक का इस्तेमाल करें।
देसी कपास की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in Desi cotton crop)
देसी कपास (Desi Cotton) की फसल में कीटों से नियंत्रण के लिए, इन तरीकों को अपनाया जा सकता है, जैसे-
- देसी कपास में कीटों से निपटने के लिए, रासायनिक कीटनाशकों के साथ-साथ गैर-रासायनिक तरीकों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
- देसी कपास की फसल में कीटों से निपटने के लिए, समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) का इस्तेमाल किया जा सकता है।
- देसी कपास (Desi Cotton) की फसल में कीटों से निपटने के लिए, इन बातों का ध्यान रखा जा सकता है, जैसे-
क) परभक्षी मित्र कीटों जैसे लेडी बीटल, मकड़ी, क्राइसोपरला आदि को पहचाने और उनका संरक्षण करें।
ख) सितंबर-अक्टूबर में मिली बग के परजीवी के प्यूपे दिखाई देने पर मिली बग के लिए किसी भी रसायन का इस्तेमाल न करें।
ग) तंबाकू की इल्ली के अंड समूहों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।
घ) देशी कपास (बीटी रहित) में 75 दिन की फसल में 1.5 लाख परजीवित अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राईकोग्रामा किलोनिस का इस्तेमाल करें।
ड़) कीटों से निपटने के लिए, गर्मी में गहरी जुताई करें।
देसी कपास की चुनाई कैसे करें (How to pick Native cotton)
देसी कपास (Desi Cotton) का डेंडू पूरा खुलने पर ही चुनाई करें, जिससे उसमें बनने वाले रेशे का पूरा विकास हो सके। कपास की चुनाई नीचे से ऊपर की ओर करें, जिससे कि चुनाई के समय कपास में आने वाले कचरे को कम किया जा सके। चुनाई सुबह ओस समाप्त होने के बाद शुरू करें। अलग–अलग किस्मों की चुनाई अलग-अलग दिनों में ही करें जिससे मिश्रण न हो।
देसी कपास की फसल से पैदावार (Yield from Desi Cotton Crop)
देसी कपास (Desi Cotton) की पैदावर किस्म, खेती की प्रक्रिया और देखभाल पर निर्भर करती है। सामान्यत: इस फसल से 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत उपज मिलती है। हालांकि, उन्नत विधि से खेती करने पर देसी कपास की 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार ली जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
देसी कपास (Desi Cotton) के लिए रबी की फसल की कटाई के बाद मिट्टी पलटने वाले हल का प्रयोग करना चाहिए जिससे खरपतवार निकल जाए और खेत में अच्छी सफाई हो जाए। खेत तैयारी के बाद 67.5 सेन्टीमीटर की दूरी पर स्थित कतारों में पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी पर बोना चाहिए। यह ध्यान रहे कि बीज के ऊपर 4-5 सेन्टीमीटर में अधिक मिट्टी न गिरे।
देसी कपास (Desi Cotton) के उत्तम जमाव के लिए न्यूनतम 16 डिग्री सेल्सियस तापमान, फसल बढ़वार के समय 21-27 डिग्री सेल्सियस तापमान व उपयुक्त फलन के लिए दिन में 27 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा रात्रि में हल्की ठंडक का होना आवश्यक है।
देसी कपास (Desi Cotton) उगाने के लिए उपयुक्त मिट्टी जलोढ़, लाल रेतीली दोमट, चिकनी मिट्टी और काली मिट्टी होती है, जिनमें काली मिट्टी कपास की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है।
देसी कपास (Desi Cotton) की कुछ किस्में ये हैं: एच डी 1, एच डी 107, एच डी 123, एच डी 324, एच डी- 432, आर जी 18 और हाईब्रिड सीआईसीआर 2 प्रचलित किस्में है।
देसी कपास (Desi Cotton) की बुवाई सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध होने पर मध्य से जून प्रथम सप्ताह तक टपक विधि से करना उचित है। वर्षा आधारित खेती हेतु मानसून सक्रीय होने के पश्चात् जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह में चुपाई विधि से उचित दूरी पर पालियों पर बुवाई करना चाहिए।
देसी कपास (Desi Cotton) में पलेवा के अलावा, 4-5 बार सिंचाई करनी चाहिए। पहली सिंचाई बुआई के 35-40 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद, जून, जुलाई, अगस्त, और सितंबर में 25-30 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। आखिरी सिंचाई सितंबर के दूसरे पखवाड़े के बाद करनी चाहिए।
देसी कपास (Desi Cotton) में अपने आप गिरने वाले पुष्प कलियों और टिण्डों को बचाने के लिए एसीमोन या प्लानोफिक्स का 2.5 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी में घोल बनाकर पहला छिड़काव कलियाँ बनते समय तथा दूसरा टिण्डों के बनाते शुरू होते ही करना चाहिए।
जिन हिस्सों में देसी कपास (Desi Cotton) की फसल अधिक वानस्पतिक बढ़वार करती है, वहाँ पर फसल की अधिक बढ़वार रोकने के लिए बिजाई 90 दिन उपरान्त वृद्धि निपवण रसायन लियोसीन का 100 लीटर पानी में 5 मिलीलीटर की दर से मिलाकर एक छिड़काव करें।
कपास की पैदावार किस्म और फसल देखभाल पर निर्भर करती है। देशी कपास (Desi Cotton) से प्रति हेक्टेयर 10-15 क्विंटल तक कपास का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
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