
Fenugreek Farming: मेथी फैबेसी परिवार की एक वार्षिक फसल है। यह एक द्विगुणित प्रजाति है। इसे दर्ज इतिहास में सबसे पुराना ज्ञात औषधीय पौधा माना जाता है। मेथी की उत्पत्ति का केंद्र दक्षिण – यूरोप, भूमध्य क्षेत्र और पश्चिमी एशिया है। भारत भी मेथी का मूल निवास है तथा कश्मीर, पंजाब और ऊपरी गंगा के मैदानों में यह पौधा जंगली रूप में पाया जाता है। प्रमुख मेथी (Fenugreek) उत्पादक देश भारत, अर्जेंटीना, मिस्र, फ्रांस, स्पेन, तुर्की, मोरक्को, चीन और अफगानिस्तान हैं।
भारत विश्व में सबसे बड़ा मेथी उत्पादक देश है। भारत में राजस्थान, गुजरात, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब प्रमुख मेथी उत्पादक राज्य हैं। राजस्थान देश का मेथी कटोरा है, जो देश के उत्पादन में लगभग 80 प्रतिशत योगदान देता है। मेथी (Fenugreek) का बीज मुख्य रूप से मसाले, च्युइंग गम, सौन्दर्य प्रसाधन, आइसिंग, अचार मिक्स और हेयर कंडीशनिंग के रूप में उपयोग किए जाते हैं। मेथी के बीज में पर्याप्त मात्रा में डायोसजेनिन 0.41 से 1.20 प्रतिशत होता है।
मेथी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Fenugreek Cultivation)
मेथी की फसल (Fenugreek Crop) को ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है, अधिक तापमान का फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। व्यापक अनुकूलन क्षमता होने के कारण फसल को उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनों क्षेत्रों में 2000 मीटर की ऊंचाई तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। भारत में इसे मुख्य रूप से रबी मौसम की फसल के रूप में उगाया जाता है, और दक्षिण भारत में इसे वर्षा ऋतु में भी उगाया जाता है। फसल कम से मध्यम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जा सकती है।
मेथी की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of Land for Fenugreek Cultivation)
मेथी (Fenugreek) लगभग सभी प्रकार की मृदा में उगाई जा सकती है, जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो। इसकी खेती के लिए कार्बनिक पदार्थ से भरपूर दोमट मिट्टी का भी उपयोग किया जा सकता है, परन्तु रेतीली मृदा में अच्छी फसल नहीं होती है। बारानी खेती के लिए काली कपास की मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मृदा का पी एच – 6.5 से 7.5 के बीच में यह फसल हमेशा बेहतर पत्तियों की गुणवत्ता के साथ उच्च उपज देती है।
मेथी की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Preparation of Land for Fenugreek Cultivation)
बीजों के बेहतर अंकुरण और पौधों की वृद्धि के लिए भूमि को पहले 3 से 4 जुताई करके अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए समूह उसके बाद 2 से 3 बार हैरो से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा कर लेना चाहिए। बीज के बेहतर अंकुरण के लिए बुवाई के समय भूमि में अच्छी नमी होनी चाहिए।
मेथी की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing Time for Fenugreek Cultivation)
मेथी (Fenugreek) ठंडे मौसम की फसल होने के कारण उत्तरी मैदानी क्षेत्रों में अक्टूबर से नवंबर में बोई जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी बुवाई मार्च से मई तक की जाती है। दक्षिण भारत के क्षेत्रों जैसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में इसकी खेती रबी एवं खरीफ दोनों मौसम में की जाती है। मेथी की बुवाई के लिए नवंबर का पहला पखवाड़ा सबसे अच्छा समय है।
मेथी की खेती के लिए उन्नत किस्में (For Cultivation of Fenugreek, Improved Varieties)
आरएम 1, आरएमटी 143, आरएमटी 305, अजमेर मेथी 1, अजमेर मेथी 2, राजेंद्र क्रांति, लैम चयन 1, हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा, हिसार मुक्ता, हिसार माधवी, एचएम 350, पंत रागिनी, पूसा अर्ली बंचिंग आदि प्रमुख किस्में लोकप्रिय हैं।
मेथी के लिए बीज दर और बीज उपचार (Seed Rate and Seed Treatment for Fenugreek)
मेथी (Fenugreek) की अधिक उपज हेतु बीज दर 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर और कसूरी किस्म के लिए 10 से 12 किग्रा प्रति हेक्टेयर पर्याप्त रहती है। मेथी दलहनी फसल है। यह वातावरण से लगभग 283 किग्रा प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष नत्रजन का स्थिरीकरण करती है। मेथी के उत्पादन में राइजोबियम की भूमिका बहुत अधिक है।
बुवाई से पहले बीजों को राइजोबियम मेलिलोटी स्थानीय कल्चर से उपचारित करना चाहिए, खासकर जब फसल नए खेत में बोई जाती है। शुरुआती फफूंद रोगों के नियंत्रण हेतु बीज को बाविस्टिन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करना चाहिए।
मेथी की खेती के लिए बुवाई की विधि (Sowing Method for Fenugreek Cultivation)
मेथी (Fenugreek) को या तो पंक्तियों में या अच्छी तरह से तैयार समतल खेत में बीजों को बिखेर कर और विवेकपूर्ण ढंग से सतह को रेकिंग करके बोया जा सकता है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 से 30 सेमी की आवश्यकता होती है तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेमी की दूरी बनाए रखने के लिए पौधों पौधों की छंटाई की जाती है।
बीज बोने के लगभग 5 से 7 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं। यद्यपि बोने वाले बीजों की गहराई बुवाई के समय मिट्टी के प्रकार और मिट्टी की नमी पर निर्भर करती है। लेकिन छोटे आकार के होने के कारण सामान्य मेथी के बीज आमतौर पर 2 से 3 सेमी और कसूरी मेथी के बीज 1 से 1-5 सेमी की गहराई पर बोए जाते हैं।
मेथी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management for Fenugreek Crop)
मेथी (Fenugreek), मुख्य रूप से एक सिंचित फसल होने के कारण इसकी वृद्धि के लिए निश्चित अंतराल पर हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। लेकिन देश के कुछ हिस्सों में वर्षा आधारित परिस्थितियों में भी इसकी खेती की जा सकती है। हल्की मिट्टी में सामान्यतः 6 से 7 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है और भारी मृदा में 4 से 5 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।
मेथी की फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Fenugreek Crop)
फलीदार फसल होने के कारण मेथी (Fenugreek) को जड़ प्रणाली के विकास के लिए उचित मिट्टी के वातन की आवश्यकता होती है। स्वस्थ फसल और अधिक उपज के लिए दो निराई-गुड़ाई, पहली गुड़ाई बुवाई के 15 से 20 दिन बाद, पौधों की छंटाई के साथ और दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 40 से 50 दिन बाद करनी चाहिए।
एकीकृत खरपतवार प्रबंधन पेंडीमेथालिन 1 किग्रा प्रति हेक्टेयर के उपयोग से एकीकृत खरपतवार प्रबंधन या 500 से 600 लीटर पानी में फ्लुक्लोरिन 0.75 किग्रा प्रति हेक्टेयर के बुवाई पूर्व प्रयोग पर एक हाथ से निराई के साथ खरपतवार नियंत्रण की प्राप्ति के लिए बहुत प्रभावी तरीका है। मेथी की खेती में अधिक उपज और लाभ के लिए विभिन्न शाकनाशी उपचारों में पेंडीमिथालिन 0.75 किग्रा प्रति हेक्टेयर और फ्लुक्लोरालिन 1.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर बेहतर पाए गए।
मेथी की फसल में कीट नियंत्रण (Pest Control in Fenu greek Crop)
माहूया चेपा: चेपा मेथी की फसल (Fenugreek Crop) अत्यधिक हानि पहुँचाता है तथा समूह में पाया जाता है। निम्फ और वयस्क दोनों कोमल पत्तियों, फूलों आदि से रस चूसते हैं। गंभीर संक्रमण पत्तियों की उपज और गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करता है। चेपा के प्रकोप से पौधे पीले हो जाते हैं और परिणामस्वरूप बीज सिकुड़ जाते हैं और बीज की उपज के साथ-साथ गुणवत्ता में भी कमी आती है। गंभीर स्थिति में 10 दिनों के अंतराल से इमिडाक्लोरप्रिड 0.005 या डाइमेथोएट 0.33 प्रतिशत के दो छिड़काव कीट प्रबंधन में बहुत प्रभावी है।
पत्ती खाने वाली सुंडी: बड़ी संख्या में सुंडी दिखाई देती है और पत्तियों को नष्ट कर देती है। अंडे गुच्छों में दिए जाते हैं और युवा लार्वा सामूहिक रूप से पत्तियों को खाते हैं। ये पत्तियों से हरे पदार्थ को खुरच कर निकाल देते हैं और कागज जैसी सफेद संरचना का रूप देते हैं।
जिससे उपज और गुणवत्ता में काफी नुकसान होता है। लार्वा के विकास के प्रारंभिक चरण में नीम के बीज का अर्क 5 प्रतिशत या नीम का तेल 2 प्रतिशत का छिड़काव करें। न्यूक्लियर पश्वलीहाइड्रोसिस वायरस 250 और बेवेरिया बेसियाना 100 बीजाणु प्रति मिली का उपयोग एक प्रभावी जैविक नियंत्रण है।
फली छेदक: यह कीट पत्तियों, फूलों और फलियों को खाता है। मादा तितली अपने अण्डे पत्ती की निचली सतह पर देती है। जो बाद में युवा लार्वा पत्तियों को नुकसान पहुँचाती हैं। यदि कीट का नियंत्रण नहीं होता है, तो 10 से 90 प्रतिशत तक नुकसान होता है। कीटों की संख्या अधिक होने पर क्विनालफॉस 0.05 प्रतिशत का छिड़काव करें।
तेला: तेला मेथी की फसल (Fenugreek Crop) पर प्रारंभिक अवस्था में हमला करता है। निम्फ और वयस्क पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। जैसिड्स के प्रभावी नियंत्रण के लिए क्यूनॉलफॉस 2 मिली प्रति लीटर का पर्णीय छिड़काव किया जाता है।
मेथी की फसल में रोग नियंत्रण (Disease Control in Fenu greek Crop)
जड़ गलन: मेथी की जड़ गल्न अल्टरनेरिया अल्टरनेटा के कारण होती है। यह एक मृदा जनित रोग है जो प्रमुख मेथी (Fenugreek) उगाने वाले क्षेत्रों में एक समस्या है और उपज में भारी कमी लाता है। लक्षणों में जड़ों के सड़ने की अलग-अलग अवस्था शामिल हैं। जो आम तौर पर 30 से 45 दिन पुराने पौधों में पीले रंग की होती हैं। प्रभावित पौधे बाद में मुरझा कर सूख जाते हैं ।
नियंत्रण: संक्रमण के स्रोत को कम करने के लिए फसल चक्र और रोगग्रस्त पौधों को हटाना प्रभावी होता है। बीज कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रति किग्रा बीज के साथ उपचार बहुत प्रभावी है।
आर्द्र गलन: आर्द्र गलन राइजोक्टोनिया सोलानी के कारण होता है। यह रोग मुख्य रूप से कवक के कारण होता है जिससे पौधों को काफी नुकसान होता है। इसका प्रभाव सबसे अधिक नए अंकुरित पौधों पर होता है, जिससे पौधा जमीन के पास से सड़-गल कर नीचे गिर जाता है।
नियंत्रण: संक्रमण के स्रोत को कम करने के लिए फसल चक्र और रोगग्रस्त पौधों को हटाना प्रभावी होता है। बीज कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम/किग्रा बीज के साथ उपचार बहुत प्रभावी है।
मेथी फसल की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Fenu greek Crop)
कटाई: सामान्य मेथी (Fenugreek) बुवाई के लगभग 20 दिनों में ताजी हरी पत्तियों और नई टहनियों को काटने के लिए तैयार हो जाती है। जबकि कसूरी किस्म की मेथी बुवाई के 25 से 30 दिनों में तैयार हो जाती है और बाद की कटाई 15 से 20 दिनों के अंतराल पर की जा सकती है। कटाई आमतौर पर तेज चाकू से जमीन की सतह से 3 से 4 सेंटीमीटर ऊपर ठूंठ छोड़ कर की जाती है। यदि मेथी को देर से काटा जाए तो इसके पत्तों का स्वाद कड़वा हो जाता है।
उपज: मेथी (Fenugreek) की किस्म और मौसम के आधार पर बीज के लिए फसल उगाने में बुवाई से लेकर कटाई तक लगभग 80 से 165 दिन लगते हैं। जब 70 प्रतिशत फली पीली हो जाती है, तो पूरे पौधों को दरांती से आधार से काटकर निकाल लिया जाता है। बीजों को थ्रेसर से या फटक कर अलग किया जाता है।
बीज को 7 से 8 प्रतिशत नमी तक सुखाया जाता है। सिंचित परिस्थितियों में सामान्य प्रकार की मेथी (Fenugreek) की किस्में सामान्य रूप से ताजी हरी पत्ती और बीज उपज क्रमशः 70 से 90 और 15 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और कसूरी प्रकार 80 से 110 क्विंटल हरी पत्तियां प्रति हेक्टेयर देती हैं।
मेथी की सफाई, पैकेजिंग और भंडारण (Cleaning, Packaging and Storage of Fenugreek)
हरी पत्तियाँ बहुत जल्दी खराब होने वाली होती हैं। इसलिए कटाई के तुरंत बाद उनका विपणन किया जाता है। हालांकि, अच्छी तरह से सूखे पत्तों को लगभग 10 से 12 महीनों तक संग्रहीत किया जा सकता है। पत्तियों को कटाई के बाद लगभग 24 घंटों के लिए परिवेशी परिस्थितियों में संग्रहीत किया जा सकता है, हालांकि, शीतगृह में 0 डिग्री सेल्सियस तापमान और 90 से 95 प्रतिशत सापेक्ष आर्द्रता पर पत्तियों के भंडारण की अवधि को 10 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
बीजों को पॉलिथीन फिल्म प्लास्टिक बैग, वैक्यूम पैकेज आदि के साथ पंक्तिबद्ध थैलों में पैक किया जाता है। मेथी के बीजों की सफाई के लिए वैक्यूम ग्रेविटी सेपरेटर का उपयोग किया जाता है। ठीक से साफ किए गए मेथी (Fenugreek) के बीजों को प्रारंभिक नमी स्तर 7 से 8 प्रतिशत पर रखा जाता है। मेथी के बीजो को अच्छी तरह से पैक करके अगले मौसम की फसल की बुवाई तक सामान्य परिस्थितियों में हवादार सूखी और ठंडी जगह पर रखा जाता है।
इस प्रकार यदि उपरोक्त बातों का ध्यान रखते हुए मेथी (Fenugreek) की फसल को उगाया जाता है, तो गुणवत्ता युक्त अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी मेथी की खेती (Fenugreek Crop) के लिए सबसे उपयुक्त होती है। बीज उपचार: 12 किलोग्राम बीज के लिए एज़ोस्पिरिलम 1.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर + ट्राइकोडर्मा विराइड 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर से उपचारित करें। खेत की तैयारी और बुवाई: मुख्य खेत को अच्छी तरह से जोतने के लिए तैयार करें।
इसे दक्षिण भारत में रबी और खरीफ दोनों फसल मौसमों में उगाया जाता है – रबी के दौरान अक्टूबर का पहला पखवाड़ा और खरीफ के दौरान जून-जुलाई का दूसरा पखवाड़ा। दोनों मौसमों में बुवाई के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बीजों की मात्रा आम तौर पर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है। रबी के मौसम में पैदावार ज़्यादा होती है।
मेथी (Fenugreek) के पौधे की पत्तियाँ बुवाई के 30 से 40 दिनों के भीतर कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। परिपक्व तने के ऊपरी तिहाई भाग को सावधानी से काट लें, ताकि बाकी को उगना जारी रहे। इससे शाखाएँ बढ़ेंगी, जिससे बाद में फूल और बीज उत्पादन में आसानी होगी। छंटाई के बाद, पत्तियाँ 15 दिनों में फिर से उग आएंगी।
प्रति एकड़ कितने मेथी के बीज की ज़रूरत होती है? प्रति एकड़ मेथी (Fenugreek) के बीजों की ज़रूरत कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि रोपण विधि, बीजों के बीच की दूरी और बीजों की व्यवहार्यता दर। औसतन प्रति एकड़ लगभग 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
यह एक ठंडे मौसम की फसल है और ठंढ और कम तापमान के प्रति काफी सहनशील है। इसकी खेती उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनों क्षेत्रों में की जाती है। भारत में इसे मुख्य रूप से रबी मौसम की फसल के रूप में उगाया जाता है लेकिन दक्षिण भारत में इसे वर्षा ऋतु की फसल के रूप में भी उगाया जाता है।
आमतौर मेथी (Fenugreek) बोआई के करीब 3 हफ्ते पहले एक हेक्टेयर खेत में औसतन 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डाल देनी चाहिए। वहीं सामान्य उर्वरता वाली जमीन के लिए प्रति हेक्टेयर 25 से 35 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 से 25 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश की पूरी मात्रा खेत में बुवाई से पहले देनी चाहिए।
अकेला राजस्थान देश की 80% से अधिक मेथी पैदा करता है, इसके अलावा गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश अन्य उत्पादक राज्य हैं।
मेथी और कसूरी मेथी दोनों फेनुग्रीक पौधे से बने मसाले हैं। मेथी (Fenugreek) के पत्ते और बीज उपयोग में आते हैं, जबकि कसूरी मेथी ड्राइ मेथी होती है जो गंधियता को बढ़ाने के लिए उपयोग होती है। मेथी पत्ते और बीज सब्जियों और दाल में उपयोग होते हैं, जबकि कसूरी मेथी तरकारी और करी में मसाला के रूप में इस्तेमाल होती है।
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