
Fodder Barley Farming in Hindi: हरे चारे के लिए जौ की खेती भारत के कृषि परिदृश्य में महत्वपूर्ण महत्व रखती है, खासकर पशुधन खेती के संदर्भ में। क्योंकि यह उच्च गुणवत्ता वाले हरे चारे का एक विश्वसनीय स्रोत प्रदान करती है। यह लेख पौष्टिक चारा फसल के रूप में जौ की खेती के आवश्यक पहलुओं पर प्रकाश डालता है, जो किसानों को अपने पशुधन आहार प्रथाओं को बेहतर बनाने के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रदान करता है।
जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताओं को समझने से लेकर प्रभावी पोषक तत्व प्रबंधन रणनीतियों और कीट नियंत्रण उपायों को लागू करने तक, जौ की खेती की प्रक्रिया में प्रत्येक चरण उच्च गुणवत्ता वाले चारे की सफल फसल सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। इस लेख का उद्देश्य किसानों को पशुधन चारा उत्पादन में एक मूल्यवान संसाधन के रूप में जौ की क्षमता को अधिकतम करने के लिए आवश्यक ज्ञान और विशेषज्ञता से लैस करना है।
चारा जौ के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for fodder barley)
चारा जौ (Fodder Barley) की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। जौ, गर्मी या सर्दी दोनों मौसम में उगाया जा सकता है, लेकिन यह पाले के प्रति संवेदनशील होता है। इसके लिए आदर्श तापमान खासकर बुवाई के समय 25 से 30 डिग्री सेल्सियस होता है। जौ को अंकुरण के लिए 20-22 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। जौ की खेती समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई तक की जा सकती है।
चारा जौ के लिए भूमि का चयन (Selection of land for fodder barley)
चारा जौ (Fodder Barley) की खेती के लिए, दोमट भूमि सबसे अच्छी होती है, लेकिन रेतीली, बलुई दोमट या अन्य प्रकार की मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। क्षारीय और लवणीय भूमि में भी इसकी खेती संभव है, लेकिन इसके लिए सहनशील किस्मों का उपयोग करना चाहिए। भूमि में उचित जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए।
चारा जौ के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for fodder barley)
हरे चारे हेतु जौ (Fodder Barley) की खेती के लिए भूमि की तैयारी में सबसे पहले खेत को खरपतवारों से मुक्त करना और गहरी जुताई करनी चाहिए, फिर 3-4 बार हल्की जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाना चाहिए। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल और ढेलों से मुक्त कर देना चाहिए। खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए और खाद और उर्वरक की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय मिट्टी में मिलाएं।
चारा जौ की उन्नत किस्में (Improved varieties of fodder barley)
चारा जौ की खेती (Fodder Barley Cultivation) के लिए उन्नत किस्मों में डीडब्लूआरबी- 92, डीडब्लूआरबी- 101, डीडब्लूआरबी- 73, डीडब्लूआरबी- 91, बीएच- 885, आरडी- 103, आरडी- 2715, पीएल- 419, पीएल- 172, वीजेएम- 201, और बीएच- 75 शामिल हैं।
इन किस्मों में से कुछ दोहरे उद्देश्य वाली हैं, जो हरा चारा और दाना दोनों देती हैं, जैसे कि आरडी 2715, आरडी 2035, और आरडी 2552 जैसी किस्में हरा चारा और दाना दोनों देने के लिए उपयोगी हैं। इन किस्मों को बोने के 50-55 दिन बाद हरा चारा काटा जा सकता है, और फिर दाने के लिए सिंचाई और उर्वरक का उपयोग किया जा सकता है।
चारा जौ की बुवाई और बीज दर (Sowing and Seed Rate of Barley)
बुवाई का समय: हरे चारे के लिए जौ (Fodder Barley) की बुवाई का उचित समय अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े से नवंबर के पहले सप्ताह तक है। अधिकतर सिंचित क्षेत्रों में, बुवाई का समय 25 नवंबर तक हो सकता है और देर से बुवाई करने पर दिसंबर के दूसरे पखवाड़े तक बुवाई की जा सकती है।
बीज की मात्रा: हरे चारे के लिए जौ (Fodder Barley) की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यदि बुवाई में देरी होती है तो बीज की मात्रा में 25% की वृद्धि करनी चाहिए।
बुवाई का तरीका: हरे चारे के लिए जौ की बुवाई हेतु, पहले खेत को तैयार करना चाहिए, जैसे कि गहरी जुताई, समतल करना और गोबर की खाद डालना। इसके बाद, पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखकर बुवाई करें। बुवाई की गहराई सिंचित क्षेत्रों में 3-5 सेमी और बारानी क्षेत्रों में 5-8 सेमी होनी चाहिए।
चारा जौ के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for fodder jau)
चारा जौ (Fodder Barley) की अच्छी पैदावार के लिए 15-20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद बुवाई के 4-5 सप्ताह पहले डालें। इसके अतिरिक्त 80 किलो नत्रजन, 40 किलो फॉस्फोरस व 40 किलो पोटाश प्रति हैक्टेयर पर्याप्त है। नत्रजन की आधी व फॉस्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पूर्व उर कर देनी चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई तथा पहली कटाई के बाद बराबर मात्रा में देनी चाहिए।
चारा जौ फसल की देखभाल (Fodder barley crop care)
सिंचाई: जौ की चारा (Fodder Barley) फसलों के लिए 6-7 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद व अन्य सिंचाई आवश्यकतानुसार करते रहना चाहिए।
पौध संरक्षण: चारा जौ (Fodder Barley) की फसल में बुवाई के 20-25 दिन बाद यदि आवश्यकता हो तो एक निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए, पैंडीमैथालीन, 2,4-D, और आइसोप्रोटिउरॉन जैसे खरपतवारनाशी का उपयोग किया जा सकता है।
कीट और रोग: चारा जौ फसल में कीटों और रोगों के नियंत्रण के लिए, जैविक और रासायनिक दोनों ही तरीके अपनाए जा सकते हैं। जैविक तरीकों में, नीम तेल, नीम का अर्क, और ट्राइकोडर्मा विरिडी जैसे जैविक नियंत्रण एजेंटों का उपयोग शामिल है। रासायनिक नियंत्रण में, क्लोरोपाइरीफॉस, डाइमेथोएट, और अन्य कीटनाशकों का उपयोग शामिल है।
विशेष: यदि संभव हो सके चारे की फसलों में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग कम से कम व अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए। इनके अवशेष चारे में बचे रहने के कारण इससे पशुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
चारा जौ की कटाई और उपज (Harvesting and yield of fodder barley)
कटाई: चारा जौ की फसल को हरे चारे के रूप में इस्तेमाल करने के लिए, बुआई के 50-55 दिनों के बाद कटाई की जाती है। पर्वतीय क्षेत्रों में, बुआई के 70 दिन बाद कटाई करना उपयुक्त होता है। द्वितीय कटाई बाली आने की अवस्था में या दूधिया अवस्था में करनी चाहिए।
उपज: चारा जौ (Fodder Barley) की फसल से औसतन 200 – 250 क्विंटल हरा चारा तथा एक कटाई के बाद दाने पकने देवें, तो 15-25 क्विंटल दाने प्रति हैक्टेयर प्राप्त होते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
चारा जौ (Fodder Barley) की खेती के लिए, आपको अच्छी तरह से खेत तैयार करना होगा, उपयुक्त किस्म का चयन करना होगा, बीज की मात्रा निर्धारित करनी होगी, बुवाई का समय सही रखना होगा, और उचित सिंचाई और खाद प्रबंधन करना होगा।
चारा जौ (Fodder Barley) की बुवाई का आदर्श समय नवंबर के पहले सप्ताह से आखिरी सप्ताह तक है। यदि बुवाई में देरी होती है तो दिसंबर के मध्य तक भी बुवाई की जा सकती है।
चारा जौ (Fodder Barley) की बुवाई के लिए प्रति एकड़ 18 से 24 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। यदि खेत की तैयारी अच्छी नहीं है तो छिटकाव विधि से बुवाई की जा सकती है, जिसमें बीज की मात्रा 15 से 20 प्रतिशत बढ़ जाती है।
चारा जौ (Fodder Barley) की कुछ अच्छी किस्मों में आर डी 2715, आर डी 2552, डी एल 88, एन डी बी 1173, और करण-201, 231, 264. ये किस्में अच्छी पैदावार देती हैं और विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु स्थितियों में भी उगाई जा सकती हैं।
चारा जौ (Fodder Barley) की बुवाई के लिए, आप बुवाई के समय 20-25 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ का उपयोग कर सकते हैं। बुवाई की सबसे अच्छी विधि सीड ड्रिल है, जहाँ बीजों को 15-20 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में डाला जाता है, और पौधों के बीच 1.4 सेमी की दूरी होती है। आप छिटकवा विधि से भी बुवाई कर सकते हैं, लेकिन बीज की मात्रा में 15-20% की वृद्धि करनी होगी यदि खेत की तैयारी अच्छी नहीं है।
चारा जौ (Fodder Barley) के लिए, अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद (10-15 टन प्रति हेक्टेयर) का उपयोग करें। इसके अलावा प्रति एकड़, सिंचित क्षेत्रों में, 24 किलो नाइट्रोजन, 16 किलो फास्फोरस, और 12 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है, जबकि असिंचित क्षेत्रों में, 16 किलो नाइट्रोजन, 16 किलो फास्फोरस, और 12 किलो पोटाश का उपयोग करें।
चारा जौ (Fodder Barley) की सिंचाई मुख्य रूप से फसल की वृद्धि की अवस्थाओं के अनुसार की जानी चाहिए। आमतौर पर, बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली सिंचाई, फिर 40-50 दिन बाद दूसरी और दाना बनने के समय तीसरी सिंचाई करनी चाहिए।
जौ की फसल से हरा चारा 400-500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल सकता है। कुछ उन्नत किस्में दाने की 38-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती हैं।
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