French Bean Farming in Hindi: फ्रेंचबीन मटर कुल की एक महत्वपूर्ण सब्जी है, फ्रेंच बीन्स (French Beans) को विभिन्न जगहों में अलग-अलग नाम जैसे हैरीकॉट बीन, किडनी बीन, बुश बीन, गार्डन बीन, राजमा व फ्रास बीन के नाम से जाना जाता है। गर्मियों की सब्जियों में फ्रेन्च बीन का बहुत महत्व है, इसका उपयोग मुलायम हरी फलियों की सब्जी और सूखे बीजों की सब्जी बनाकर किया जाता हैं। इसमें पोषक तत्वों की मात्रा काफी होती है, सूखे बीजो में प्रोटीन 24 प्रतिशत के लगभग होता है, वही हरी फलियों में 1.7 प्रतिशत प्रोटीन होता है।
एक शोध से यह पता चला हैं, की डायबिटीस, दिल की बीमारी व गुर्दे की बिमारी से ग्रसित लोगो के लिए यह एक लाभकारी सब्जी हैं। लोगो के बीच में स्वास्थ के प्रति जागरूकता बढने के कारण बीन वर्ग की सब्जियों में फ्रेंच बीन्स (French Beans) की खेती एक विशिष्ट महत्व रखती हैं। फ्रेंचबीन की खेती सामान्य मौसम मे सफलतापूर्वक की जा सकती है, पर्वतीय क्षेत्रों मे फ्रेन्च बीन की खेती गर्मियों के मौसम मे की जाती हैं और वहाँ ऐसे समय में इसकी फसल तैयार होती हैं।
जबकि मैदानों में इसका आभाव रहता हैं, इसलिए पहाड़ो में इसकी खेती ज्यादा लाभकारी हैं। फ्रेंचबीन मुख्यत: दो प्रकार की होती हैं एक बेल वाली किस्में और दूसरी झाड़ीनुमा किस्में (बिना बेल वाली)। बिना बेल वाली फ्रेंचबीन लोगो में अधिक प्रचलित हैं। फ्रेन्च बीन की खेती (French Bean Cultivation) में अगर थोडा ध्यान दिया जाये तो किसान भाई इससे अच्छा आर्थिक लाभ प्राप्त सकते हैं। इस लेख में फ्रेंच बीन्स (French Beans) की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
फ्रेंच बीन्स की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for French bean cultivation)
फ्रेंच बीन मूलतः गर्म जलवायु की फसल है। हालाँकि फ्रेंचबीन की खेती सर्दी व गर्मी दोनों मौसम में की जा सकती है। अच्छी बढ़वार और उपज के लिए 18-20 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है। 16 डिग्री सेन्टीग्रेट से कम तथा 22 डिग्री सेल्शियस से अधिक तापक्रम का फसल की वृद्धि और उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फ्रेंच बीन्स (French Beans) की फसल पाला और अधिक गर्मी के प्रति संवेदनशील होती है।
फ्रेंच बीन्स की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for French bean cultivation)
फ्रेंचबीन (फराश बीन) की खेती लगभग सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती हैं। अच्छे जल निकास वाली जिवांसयुक्त बलुई दोमट से लेकर दोमट मृदा जिसका पीएच मान 6-7 के मध्य हो फरास बीन की खेती के लिए उपयुक्त होती है। जल ठहराव की अवस्था इस फसल के लिए अति हानिकारक होती है। फ्रेंच बीन्स (French Beans) की खेती के लिए भारी व अम्लीय भूमि वाली मिट॒टी उपयुक्त नहीं है।
फ्रेंच बीन्स की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for French bean cultivation)
फ्रेंच बीन्स (French Beans) की अच्छी उपज के लिए 20-25 टन सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मृदा में अच्छी तरह मिला देते हैं। यदि खेत में नमी की कमी हो तो बुवाई से पूर्व खेत का पलेवा कर लेना चाहिए। बुवाई के पूर्व खेत की अच्छी तरह जुताई और पाटा लगाकर तैयार कर लेना चाहिए। बुवाई के समय बीज अंकुरण के लिए खेत मे पर्याप्त नमी होनी आवश्यक है।
फ्रेंच बीन्स की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for French bean cultivation)
बौनी (झाड़ीनुमा) किस्में: कटेन्डर, पूसा पार्वती, वीएल बोनी – 1, काशी परम, काशी सम्पन्न, काशी राजहंस, अर्को सुविधा, पन्त अनुपमा, प्रीमियर, पूषा पार्वती, स्वर्ण प्रिया और अर्का कोमल आदि प्रमुख है।
बेलनुमा किस्म: पूसा हेमलता, स्वर्ण लता, एसवीएम – 1, लक्ष्मी (पी- 37) और केन्टुकी वन्डर आदि प्रमुख है।
फ्रेंच बीन्स की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for French bean cultivation)
उत्तरी भारत के मैदानी क्षेत्रों में फ्रेंचबीन की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय 25 अक्टूबर से 07 नवम्बर तथा तराई क्षेत्रों में फरवरी-मार्च है। पहाड़ी क्षेत्रों में फ्रेंच बीन्स (French Beans) की खेती ग्रीष्म व वर्षा ऋतु में की जाती है। इसके लिए कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में फरवरी-मार्च व अगस्त का महीना, मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में मार्च से जुलाई तथा अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में अप्रैल से जुन का समय सर्वोत्तम होता है।
फ्रेंच बीन्स के बीज की मात्रा और बीज उपचार (French bean seed quantity and seed treatment)
फ्रेंचबीन की बौनी (झाड़ीनुमा) किस्मों के लिए 70-80 किग्रा प्रति हेक्टेयर तथा लता वाली (पोल टाइप) किस्मों के लिए 40-50 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। बीज को बुवाई से पूर्व फफूँदनाशी रसायन कार्बेन्डाजिम की 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करनी चाहिए। इससे फ्रेंचबीन फसल की प्रारम्भिक अवस्था में मृदा जनित बीमारियों से सुरक्षा हो जाती है।
फ्रेंच बीन्स की खेती के लिए बुवाई की विधि (Sowing method for French bean cultivation)
फ्रेंच बीन्स (French Beans) बीज की बुवाई समतल खेत में या उठी हुई मेड़ों या क्यारियों में की जाती है। उठी हुई मेड़ों या क्यारियों में बुवाई करना पौधों की अच्छी वृद्धि और अधिक उत्पादन के लिए उपयुक्त पाया गया है। झाड़ीनुमा (बुश टाइप) किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45-60 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखते हैं। लता वाली ( पोल टाइप) किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 75-100 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 25-30 सेमी रखते है।
फ्रेंच बीन्स की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer for French bean cultivation)
अन्य दलहीनी सब्जियों की आपेक्षा फ्रेंच बीन्स (French Beans) की जड़ों में वायुमण्डल से नत्रजन एकत्रित करने वाली ग्रन्थियों का निर्माण बहुत कम होता है, जिसके कारण इस फसल को खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता अधिक होती है। अच्छी उपज के लिए 20-25 टन सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं।
इसके अतिरिक्त 80 – 120 किग्रा नत्रजन, 50 किग्रा फास्फोरस तथा 50 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर देते हैं। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले या बुवाई के समय आधारीय खुराक के रूप में देते हैं। नत्रजन की शेष मात्रा दो बराबर भागों में बाँटकर बुवाई के लगभग 20-25 दिन तथा 35-40 दिन बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिए।
फ्रेंच बीन्स की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in French bean crop)
प्रारम्भिक अवस्था में फ्रेंच बीन्स (French Beans) की फसल को खरपतवार मुक्त रखने के लिए एक से दो निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है। निराई-गुड़ाई अधिक गहराई तक नहीं करनी चाहिए। वैसे खरपतवार नियंत्रण के लिए पूर्व निर्गमन खरपतवारनाशी रसायनों जैसे पेन्डामेथालीन (स्टाम्प ) 3.5 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के 48 घंटे के अन्दर छिड़काव करें। इससे 40-45 दिनों तक मौसमी खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है। इसके बाद यदि आवश्यक हो तो एक निराई कर देनी चाहिए।
फ्रेंच बीन्स की फसल के पौधों को सहारा देना (Supporting the plants of Frenchbean crop)
फ्रेंच बीन्स (French Beans) की लता वाली किस्मों को सहारा देना आवश्यक है। सहारा न देने की अवस्था में पौधे भूमि पर ही फैल जाते हैं तथा उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण गुणवत्तायुक्त उत्पादन में भारी गिरावट आ जाती है। सहारा देने के लिए पौधों की कतारों के समानान्तर 2-3 मीटर लम्बे बाँस या लकड़ी या एंगिल आयरन के खम्भों को 5-7 मीटर की दूरी पर गाड़ देते है।
इन पर रस्सी या लोहे के तार खींचकर ट्रेलिस बनाकर लताओं को चढ़ा देते है। पौधों की बढ़वार के अनुसार रस्सी या तार की कतारों की संख्या 30-45 सेमी के अन्तराल पर बढ़ाते जाते है।
फ्रेंच बीन्स की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in FrenchBean Crop)
फ्रेंच बीन्स (French Beans) को बुआई के समय बीज अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। इसके बाद 7 से 10 दिन के अंतराल पर फसल की आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें। क्योंकि फराश बीन की फसल मृदा नमी के प्रति अति संवेदनशील होती है।
अत: खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। अपर्याप्त नमी होने पर पौधे मुरझा जाते हैं, जिसके कारण उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके लिए मृदा नमी को ध्यान में रखते हुए नियमित अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
फ्रेंच बीन्स की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in French bean crop)
तना छेदक कीट (स्टेम बोरर): यह फ्रेंच बीन्स (French Beans) की फसल को नुकसान पहुँचाने वाला महत्वपूर्ण कीट है। इस कीट का मैगट क्षतिकारक होता है, जो तने में छेद करके सुरंग बनाकर क्षति पहुँचाता है, जिससे पौधे का ऊपरी भाग सूख जाता है। इस कीट का प्रकोप शुरू की अवस्था में ज्यादा होता है।
नियंत्रण: बुआई के समय इमिडाक्लोप्रिड 48 एफएस 5-9 मिली प्रति किग्रा बीज या इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूएस 5-10 ग्राम प्रति किग्रा बीज या थायोमेथोक्जाम 70 डब्लूएस 3 – 5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करें। क्षतिग्रस्त तनों और शाखाओं को खेत से हटा देना चाहिए।
बीन बिटिल: इस कीट के प्रौढ़ व सूँड़ी दोनों फ्रेंच बीन्स (French Beans) पौधे की पत्तियों को खाकर क्षति पहुँचाते हैं।
नियंत्रण: इस कीट के नियंत्रण के लिए मैलाथियान 50 ईसी 15 मिली या क्लोरपारीफॉस 20 ईसी मिली प्रति किग्रा या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 0.5 या डाइमेथोएट 30 ईसी 2.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
फ्रेंच बीन्स की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in French bean crop)
कालर रॉट: इस रोग का प्रारम्भिक लक्षण पौधों पर पड़ते है, जो मीन की अधिकता के कारण जमीन की सतह से प्रारम्भ होता है और सम्पूर्ण छाल सड़न से ढ़क जाती है। जिससे संक्रमित भाग पर सफेद फफूँद वृद्धि हो जाती है, जो छोटे-छोटे टुकड़ों में बनकर धीरे-धीरे स्क्लेरोटिनिया में बदल जाती है। जो मिट्टी में जीवित रहते है और उपयुक्त वातावरण मिलने पर पुन: सक्रिय हो जाती है।
नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए बीजों का उपचार बुआई से पूर्व ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किग्रा की दर से करना चाहिए। बुआई के 20 दिन उपरान्त, ट्राईकोडर्मा के घोल से (10 ग्राम प्रति लीटर पानी) जड़ों को तर करना चाहिए। त्वरित रोग नियंत्रण के लिए, संध्या के समय जड़ के समीप कॉपर आक्सीक्लोराईड 4 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से जड़ों को तर करें।
रस्ट: यह फफूँद जनित रोग है, जो फ्रेंच बीन्स (French Beans) पौधों के सभी ऊपरी भाग पर छोटे, हल्के उभरे हुए धब्बे के रूप में दिखाई देता है, और तने पर साधारणत: लम्बे उभरे हुए धब्बे बनते हैं।
नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए खेत में औसतन दो धब्बे प्रति पत्तियों के दिखने पर फफूँदनाशक जैसे- फ्लू सिलाजोल या हेक्साकोनाजोल या बीटरटेनॉल या ट्राईआडीमेफॉन 1 मिली प्रति लीटर पानी का 5-7 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये।
विषाणु रोग (गोल्डेन मोजैक ): यह वायरस जनित रोग है। लक्षण में ऊपरी फ्रेंच बीन्स (French Beans) पत्तियों पर पीले एवं हरे रंग के धब्बे बनते हैं। बाद में अधिकांश पत्तियाँ पूर्णतया पीली पड़ जाती है। संक्रमित फलियाँ साधारण हरे रंग से पीली पड़ जाती है।
नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए कार्बोफ्यूरॉन 3 जी के 1.5 सक्रिय तत्व को प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाने के उपरान्त बुआई करनी चाहिए। इमिडाक्लोप्रिड 0.3 मिली प्रति लीटर या थायमेथोक्जोन 1 मिली प्रति 3 लीटर पानी के घोल का छिड़काव फूल लगने तक 15 दिन के अंतराल पर करते रहना चाहिए।
बैक्टीरीयल ब्लाईट्स: यह जीवाणु जनित रोग है, जिसमें संक्रमित उत्तक पीले पड़ जाते हैं और मरने के उपरान्त विभिन्न आकार एवं नाप के उभार प्रति धब्बे बनाते हैं। जो बाद में (वर्षा ऋतु) बड़े धब्बे के समान लक्षण पत्तियों पर दिखते हैं। वर्षा ऋतु में, फलियों पर भी छोटे धब्बे बनते हैं।
नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए बुआई के पूर्व बीजों को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन घोल (100 पीपीएम की दर से) 30 मिनट के लिए डुबोने के उपरान्त बुआई करें। साफ, रोगमुक्त एवं अवरोधी बीजों का प्रयोग करें।
पत्ती का धब्बा रोग: इसके लक्षण छोटे धब्बों के रूप बनते है और धब्बों को घेरे हुए हल्की वृत्ताकार की आकृति होती है। फ्रेंच बीन्स (French Beans) की पत्तियाँ भूरे रंग की होकर सूख जाती हैं।
नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए डाईफेनोकोनाजोल 1 मिली प्रति लीटर पानी या थायोफेनेट मिथाईल 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के दो छिड़काव दस दिनों के अंतराल पर करना चाहिए।
फ्रेंच बीन्स फसल के फलों की तुड़ाई (Harvesting of Frenchbean crop fruits)
फ्रेंचबीन फसल की फलियों की तुड़ाई हमेशा मुलायम अवस्था में करनी चाहिए। देर से तुड़ाई करने पर फलियों मे सख्त रेशे बन जाते है। जिससे इनका बाजार मूल्य घट जाता है। बौनी (झाड़ीनुमा) किस्मों से 3-4 तुड़ाई मिल जाती है। जबकि लता (पोल टाइप) किस्मों में लम्बे समय तक फलत मिलती रहती है। यदि फ्रेंच बीन्स (French Beans) की खेती सूखे दानों के लिए की गयी हो तो फलियों की तुड़ाई सूखी अवस्था में जब वे चिटकने के करीब हो करनी चाहिए।
फ्रेंच बीन्स की फसल से पैदावार (Yield from French bean crop)
फ्रेंच बीन्स (French Beans) की झाड़ीनुमा (बुश टाइप) किस्मों से हरी फलियों की उपज 60-90 कुन्तल और लता वाली ( पोल टाइप) किस्मों की 80-110 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है। हालाँकि उपज प्रजाति के प्रकार पर भी निर्भर करती है। सूखे दानों की औसत उपज 10-15 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होती है।
फ्रेंच बीन्स के फलों का तुड़ाई उपरान्त प्रबन्धन (Management of Frenchbean fruits after harvesting)
फ्रेंच बीन्स (French Beans) की हरी फलियों को तुड़ाई के पश्चात् ठंडे छायादार स्थानों पर रखना चाहिए। क्षतिग्रस्त, सड़ी-गली, कीड़ों मकोड़ों से प्रभावित और विकृति फलियों को छाँटकर निकाल देते है। जूट के बैग में भरकर फलियों को यथाशीघ्र बाजार में विक्रय हेतु भेज देते है। फलियों को ताजा बनाये रखने के लिए बीच-बीच में पानी का छिड़काव कर सकते हैं। हरी मुलायम फलियों को 4-5 डिग्री सेन्टीग्रेट तापमान व 95 प्रतिशत सापेक्षित आर्द्रता पर 6-8 दिनों तक भण्डारित कर सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
फ्रेंच बीन्स (French Beans) की खेती साल में दो बार की जा सकती है, मैदानी इलाकों में जनवरी-फरवरी और जुलाई-सितंबर में और पहाड़ियों में मार्च से जून में। बौने या झाड़ीदार किस्म की फसल को पंक्ति से पंक्ति 40-50 सेमी और पौधे से पौधे 10 सेमी की दूरी पर बोया जाता है, जबकि पोल किस्म की फसल को 60-65 सेमी x 10-12 सेमी की दूरी पर बोया जाता है। बीज को मिट्टी में 2-3 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए।
फ्रेंच बीन्स (French Beans) के लिए इष्टतम तापमान 15- 21 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त है। फफूंद जनित रोगों को नियंत्रित करने के लिए बुवाई से 24 घंटे पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किग्रा या थिरम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करें। यदि फसल पहली बार उगाई जा रही है, तो इसे क्लस्टर बीन्स की तरह राइजोबियम से उपचारित किया जाना चाहिए।
अच्छे जल निकास वाली जिवांसयुक्त बलुई दोमट से लेकर दोमट मृदा जिसका पीएच मान 6-7 के मध्य हो फ्रेंच बीन्स (French Beans) की खेती के लिए उपयुक्त होती है। जल ठहराव की अवस्था इस फसल के लिए अति हानिकारक होती है।
फ्रेंच बीन्स (French Beans) की बुवाई दो बार अक्टूबर व फरवरी में की जा सकती है। हल्की ठंड वाले स्थानों पर नवम्बर के पहले सप्ताह में बुवाई उपयुक्त है। पहाड़ी क्षेत्रों में फरवरी, मार्च व जून माह में बुवाई की जा सकती है।
राजा; फ्रेंच बीन्स (French Beans) की वह किस्म है, जिसे हम सर्वश्रेष्ठ में से एक के रूप में सुझाते हैं। 1996 में रॉयल हॉर्टिकल्चरल सोसाइटी अवार्ड ऑफ़ गार्डन मेरिट (RHS AGM) से सम्मानित, यह किस्म मध्यम हरी फलियाँ पैदा करती है, जो लगभग हमेशा सीधी और एक ही लंबाई की होती हैं। कोमल और रसदार फलियों के साथ इसका स्वाद लाजवाब होता है।
फ्रेंच बीन्स (French Beans) की औसत परिपक्वता अवधि 45-60 दिन है। प्रति एकड़ 3,000 किलोग्राम से 6,000 किलोग्राम की औसत उपज के साथ, फ्रेंच बीन्स की कटाई फली के पूरी तरह से परिपक्व होने से पहले की जाती है, आमतौर पर रोपण के 42 से 56 दिनों के बीच और पहली कटाई के दो महीने बाद तक।
फ्रेंच बीन्स (French Beans) के लिए पोषक तत्व की सिफारिश 60:40:60 किलोग्राम एनपीके प्रति हेक्टेयर है। उपरोक्त खुराक प्राप्त करने के लिए सीधे उर्वरकों की मात्रा एक सेंट के लिए काम की जाती है। आवश्यक उर्वरक खुराक क्रमशः 521 ग्राम यूरिया, 888 ग्राम रॉक फॉस्फेट और 400 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश एक सेंट के लिए है।
फ्रेंच बीन्स (French Beans) की बुआई के समय बीज अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी की आवश्यकता है। इसके बाद 1 सप्ताह से 10 दिन के अंतराल पर फसल की आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें।
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