Garlic Cultivation: लहसुन (एलियम सेटाइवम) एक प्रमुख औषधीय फसल है, जिसका भारतीय मसालों वाली फसलों में प्याज के बाद लहसुन का दूसरा स्थान आता है। इसकी खेती भारत के सभी प्रदेशों में की जाती है। लेकिन मुख्यत: लहसुन की खेती (Garlic Farming) मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा और तमिलनाडु में बड़े पैमाने पर की जाती है।
भारत में लहसुन की खेती का कुल क्षेत्रफल 2.80 लाख हेक्टेयर है तथा इसका कुल उत्पादन 16.17 लाख टन और औसत उत्पादकता 5.76 टन प्रति हेक्टेयर है। भारत में लहसुन की उत्पादकता अन्य देशो की तुलना में बहुत कम है, क्योंकि किसानों तक विशाणु रहित उन्नति किस्म का बीज उपलब्ध नही हो पाता हैं। अत: किसान पुराने देशी किस्मों के बीज को बुवाई लिये कई सालों तक प्रयोग में लाते है।
जिससे फसल की पैदावार और गुणवत्ता घटती जाती है और किसानों को अच्छा उपज मूल्य नही मिल पाता है। इसलिए किसानों को यह ध्यान में रखना चाहिये कि लहसुन की खेती (Garlic Farming) करते समय उच्च संस्तुति किस्मों का चयन करें और नई विकसित तकनीक का प्रयोग करके लहसुन का उत्पादन बढ़ाकर ज्यादा से ज्यादा कीमत प्राप्त कर अपनी आय को बढ़ा सकते है।
लहसुन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for garlic cultivation)
सामान्यत: भारत में लहसुन विविध वातावरण में उत्पादित किया जाता है। लहसुन समुद्रतल से 1000-1300 मीटर उंचाई तक आसानी से लगाया जा सकता है। लहसुन (Garlic) एक पाला सहनशील फसल है, जिसको वृद्धि काल ठण्डी तथा नम और पकते समय सामान्यत: शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है इसके लिए मध्यम गर्म तथा ठण्डे वातावरण की आवश्यकता होती है।
लहसुन की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for lahsun cultivation)
आमतौर पर लहसुन (Garlic) हर प्रकार की मृदाओं में लगाया जा सकता है। परन्तु मध्यम काली दोमट मृदा जिसमें जीवांश प्रदार्थ तथा पोटाश प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो साथ ही जहां जल निकास व्यवस्था सुचारू हो, और मिटटी का पीएच मान 6 से 7 के बीच हो ऐसी मृदायें लहसुन के लिए अच्छी होती है।
लहसुन की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for garlic cultivation)
लहसुन उत्पादन में भूमि की तैयारी का विशेष महत्व है। भूमि तैयार करने के लिए ट्रैक्टर या देशी हल की सहायता से भूमि की हल्की जुताई करें क्योंकि लहसुन (Garlic) की जड़ें भूमि में 10-12 सेमी से अधिक गहरी नहीं जाती हैं। इसके बाद भूमि को भुरभुरा बनायें और पाटा चलाकर खेत समतल कर लें। इस प्रकार तैयार खेत में अपनी सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियां और सिंचाई की नालियां बना लें।
लहसुन की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for garlic cultivation)
लहसुन (Garlic) की एग्रीफाउण्ड सफेद (जी – 41), यमुना सफेद (जी – 1), यमुना सफेद – 2 (जी – 50), यमुना सफेद – 3 जी – 282, यमुना सफेद – 4 (जी – 323), यमुना सफेद – 5 (जी – 189), एग्रीफाउण्ड पार्वती (जी – 313), हरियाणा लहसुन, पंजाब लहसुन, लावा, मलेवा, भीमा ओंकार और भीमा पर्पल प्रमुख किस्में है।
लहसुन की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for garlic cultivation)
इसकी अच्छी पैदावार लेने के लिए 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि में मिला देना चाहिये। इसके अलावा 100 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा फास्फोरस, 50 किग्रा पोटाश और 60 किग्रा गंधक प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नत्रजन की एक तिहाई तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व दें।
शेष नत्रजन को दो बराबर भागों बुवाई के 20 से 25 और 40 से 45 दिन बाद देना लाभदायक होता है। लहसुन (Garlic) की उत्पादन वृद्धि में सूक्ष्म तत्वों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। बोरेक्स का 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग कंदों का आकार तथा उत्पादन को बढ़ाता है।
लहसुन की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for garlic cultivation)
लहसुन की खेती (Garlic Farming) विभिन्न क्षेत्रों में अलग अलग समय पर की जाती है। उत्तरी भारत के मैदानों और निचले पहाड़ी क्षेत्रों में इसे सितम्बर से नवम्बर में लगाया जाता है। जबकि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात और आंध्रप्रदेश में इसे अक्टूबर से नवंबर में लगाया जाता है।
लहसुन की खेती के लिए बीज की मात्रा (Quantity of seeds for garlic cultivation)
लहसुन (Garlic) की बुवाई इसकी कलियों के द्वारा होती है। प्रत्येक कंद में औसतन 15 से 20 कलियां होती है। बुवाई से पूर्व कलियों को सावधानी पूर्वक अलग कर लें, परंतु ध्यान रखें की कलियों के ऊपर की सफेद पतली झिल्ली को नुकसान न हो। बुवाई के लिए 8 से 10 मिमी आकार की रोगरहित सुगठित और बड़े आकार की कलियों का ही चुनाव करें।
बुआई से पूर्व कलियों को फफूंदनाशक दवा जैसे कार्बण्डाजिम (2 से 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल में दो मिनट तक डुबोकर उपचारित करें। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए लगभग 50 क्विंटल कलियों की आवश्यकता होती है। तैयार क्यारियों में 10 से 15 सेमी दूरी पर लाइनें बना लें इन लाईनों में 8 से 10 सेमी दूरी पर कलियों की बुवाई करें।
लहसुन की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in lahsun Crop)
लहसुन एक उथली जड़ वाली फसल है, जिसकी अधिकांश जड़ें भूमि की उपरी सतह पर फैली रहती है। जहां से वे अपनी आवश्यकतानुसार पानी और अन्य पोषक तत्वों को ग्रहण करती है। अत: इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि प्रत्येक सिंचाई में मृदा के इस स्तर में नमी की कमी न हो। लहसुन की बुवाई के तुरंत बाद सिंचाई अवश्य करना चाहिये, ताकि कलियों का अंकुरण अच्छा हो सकें।
ध्यान रखें की पौधों की प्रारंभिक अवस्था में भूमि में नमी की कमी न हो वरना पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लहसुन (Garlic) के कंद पक जायें पत्तियां पीली हो जायें, तब सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। इसमें अंतिम सिंचाई फसल खुदाई के तीन चार दिन पूर्व करनी चाहियें ताकि कंदों की खुदाई में आसानी हो और उन्हें कोई हानि न पहुंचे।
लहसुन की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in garlic crop)
लहसुन फसल (Garlic Crop) के खेत को खरपतवार रहित रखने के लिए पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद तथा दूसरी 40 से 45 दिन बाद करनी चाहिये। यह फसल काफी सघन बोई जाती है, इसलिए हाथ और यांत्रिक नियंत्रण में काफी कठिनाई आती है।
रासायनिक नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथालीन 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर सक्रिय तत्व को लहसुन की बुवाई के एक दिन बाद डालने से खरपतवार नियंत्रित होते हैं तथा कंदों की अच्छी उपज प्राप्त होती है। ऑक्सीडायजन 1 किग्रा प्रति हेक्टेयर का अंकुरण पूर्व प्रयोग करने से नियंत्रण अच्छा होता है।
लहसुन की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in garlic crop)
थ्रिप्स: यह लहसुन (Garlic) का सबसे खतरनाक कीट है, जो कि आकार में छोटा हल्के पीले रंग का होता है। यह प्रायः पत्तियों की निचली सतह पर पाया जाता है। यह कीट पत्तियों का रस चूसता है, जिससे पत्तियों पर सफेद चमकदार धब्बे बन जाते हैं तथा पत्तियां मुड़ जाती हैं, इसके साथ साथ पत्तियों की वृद्धि रूक जाती है। पत्तियां सूखकर नष्ट हो जाती हैं। परिणामस्वरूप कंद आकार में छोटे रह जाते हैं और उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
रोकथाम: नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 0.4 से 0.5 मिली दवा प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए। आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन बाद पुन: छिड़काव करना चाहिए।
प्याज का मेगट: यह कीट सफेद रंग का होता है, जो कि जड़ों के माध्यम से कंदों में प्रवेश कर जाता है। यह कीट मुलायम भाग को ग्रसित कर देता है। जिससे पौधा पीला भूरा सा होने लगता है तथा बाद में सूख जाता है। प्रभावित कंद भण्डारण करने पर धीरे-धीरे सड़ने लगते हैं।
रोकथाम: इस कीट के नियंत्रण के लिए बुवाई के समय भूमि में क्लोरोपाइरीफॉस पाउडर 2 प्रतिशत 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर अन्तिम जुताई के समय खेत में डालना चाहिए।
लहसुन की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in garlic crop)
बैंगनी धब्बा रोग: यह रोग अल्टरनेनिया पोरी नामक कवक से फैलता हैं। इस रोग का प्रकोप लहसुन की पत्तियों पर दिखाई देता है। रोगग्रस्त पौधों में सफेद छोटे धसे हुए भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जिनका मध्य भाग बैंगनी रंग का होता है। यह धब्बे शीघ्र ही बढ़ते हैं, धब्बों की सीमायें लाल रंग की होती हैं और ये पीले रंग की सीमाओं से घिरे रहते हैं। ग्रसित पौधों की पत्तियों तथा तना झुलसने लगते हैं तथा बाद में संपूर्ण पौधा झुलसा हुआ दिखाई देता है।
नियंत्रण: इसकी रोकथाम के लिए लहसुन (Garlic) की कलियों की बुवाई करने के पूर्व कार्बण्डाजिम दवा (1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) में 3 से 5 मिनट तक डुबोकर उपचारित करें। खड़ी फसल पर ताम्रयुक्त दवा जैसे कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
लहसुन फसल के कंदों की खुदाई (Digging of lahsun crop tubers)
लहसुन के कंद 150 से 160 दिन में खोदने वाले हो जाते है। इसका पौधा जब ऊपर से सूखकर झुकने या गिरने लगता है, तो यही अवस्था लहसुन की खुदाई के लिए उपयुक्त होती है। इस अवस्था प्राप्त कंद अच्छी गुणवत्ता वाले होते हैं, यदि खुदाई में देर हो तब कंद फैलने लगते हैं तथा कुछ किस्मों में तो पुन: अंकुरण तक देखा गया है। इसलिये लहसुन (Garlic) की सही समय पर खुदाई करने से गुणवत्तायुक्त कंदों का उत्पादन होता है।
लहसुन की फसल से उपज और भंडारण (Yield and storage from garlic crop)
उपज: अच्छी तरह से देख-रेख में उपरोक्त तकनीक से लहसुन की खेती (Garlic Farming) करने पर 125 से 200 कुण्तल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।
भंडारण: खुदाई करने के बाद कंदों की सूखी पत्तियां काटकर अलग कर देनी चाहिये। बाद में इन्हें टोकरियों में भरकर सूखी एवं ठण्डी जगह पर भण्डारित करना चाहिये।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
लहसुन को समुद्र तल से 1200 से 2000 मीटर की ऊँचाई पर उगाया जा सकता है। वनस्पति विकास के दौरान इसे कम दिनों, ठंडी 12 से 18 डिग्री सेल्सियस नमी की अवधि की आवश्यकता होती है। 6 से 7 की पीएच रेंज वाली कार्बनिक पदार्थों से भरपूर अच्छी तरह से सुखी हुई मिट्टी आदर्श है। अत्यधिक अम्लीय मिट्टी के साथ-साथ भारी मिट्टी भी लहसुन फसल (Garlic Crop) के लिए उपयुक्त नहीं है।
आम तौर पर, लहसुन रेतीली दोमट मिट्टी को पसंद करता है, जो गीली अवधि के दौरान अच्छी तरह से जल निकासी करती है और शुष्क अवधि के दौरान नमी बनाए रखती है। उच्च कार्बनिक पदार्थ और अच्छी उर्वरता वाली मिट्टी भी आदर्श हैं। लहसुन (Garlic) गीली परिस्थितियों में अच्छा प्रदर्शन नहीं करता है और अगर मिट्टी संतृप्त रहती है, तो आसानी से सड़ सकता है।
आपका खेत खरपतवार मुक्त होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि लहसुन खरपतवारों के साथ पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा न करे। लहसुन (Garlic) के बल्ब रोपण के 4 से 5 महीने बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। बाहरी संकेत हरी पत्तियाँ हैं, जो भूरे रंग में बदलने लगेंगी।
लहसुन एलियम परिवार का एक बल्ब है, जिसमें प्याज, चाइव्स और लीक शामिल हैं। कई वसंत फूल वाले बल्बों की तरह, लहसुन को पतझड़ में लगाया जाता है। सर्वोत्तम परिणामों के लिए, लहसुन (Garlic) को सितंबर के अंत से अक्टूबर के मध्य तक लगाया जाना चाहिए।
लहसुन (Garlic) को उत्तरी भारत के मैदानों और निचले पहाड़ी क्षेत्रों में इसे सितम्बर से नवम्बर में लगाया जाता है। जबकि मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात और आंध्रप्रदेश में इसे अक्टूबर से नवंबर में लगाना चाहिए।
मध्य प्रदेश, देश के कुल लहसुन (Garlic) उत्पादन में राज्य का योगदान लगभग 62.85% है।
सभी प्रकार के लहसुन महत्वपूर्ण हैं और व्यंजन पकाने के लिए अलग-अलग तरीकों से उपयोग किए जाते हैं। हालाँकि, तुलना करने पर, बैंगनी लहसुन (Garlic) को सबसे रसदार और हल्के स्वाद वाला लहसुन कहा जाता है जिसे कोई भी अपने व्यंजनों में इस्तेमाल कर सकता है।
16-6-4 एनपीके उर्वरक का एक सूत्र आपके लहसुन (Garlic) के शुरुआती विकास को बहुत लाभ पहुंचाएगा। एक बार जब आपका लहसुन अंकुरित हो जाता है, तो आप मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा कम करना चाहेंगे और अधिक फास्फोरस और पोटेशियम जोड़ना चाहेंगे।
लहसुन की फसल (Garlic Crop) एक एकड़ में 40 से 45 क्विंटल तक ली जा सकती है।
एक बीघा भूमि में 6 से लेकर 12 कुंतल तक लहसुन (Garlic) प्राप्त किया जा सकता है।
लहसुन की फसल (Garlic Crop) में आप कंद का वजन और साइज बढ़ाने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट का प्रयोग कर सकते हैं। यह कंद वर्गीय फसलों के लिए एक बड़ा अच्छा उत्पाद है। कैल्शियम नाइट्रेट का प्रयोग लहसुन में कंद बनने के समय करना चाहिए।
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