Ginger Farming in Hindi: अदरक प्रमुख मसालों में एक है, इसकी खेती नगदी फसल के रूप में की जाती हैं। अदरक का वानस्पतिक नाम ‘जिंजिबर ऑफिसिनेल’ है। अदरक के भूमिगत रूपांतरित तना अर्थात प्रकंद का उपयोग किया जाता हैं। इन प्रकंदो को फसल के खोदाई के बाद हरा तथा सुखाकर दानों ही रूपों में उपयोग करते हैं। ताजा अदरक व्यंजनों को खूशबूदार तथा चटपटा बनाने एवं मुरब्बा बनाने के काम आते है। चाय का स्वाद बढ़ाने के लिये विशेष तौर पर सर्दियों में अदरक का उपयोग किया जाता है।
अदरक (Ginger) का उपयोग मसालों के रूप में, सलाद, अचार, मुरब्बा, चटनी आदि के रूप में किया जाता हैं, पकी गांठों को सुखाकर उनसे सोंठ तैयार किया जाता है। जिसका काफी मात्रा विदेशों में निर्यात किया जाता है। सबसे अधिक अदरक का उत्पादन भारत वर्ष में होता है। सभी देशों को मिलाकर जितना अदरक का उत्पादन होता है, उसमें भारत वर्ष अकेले 33 प्रतिशत अदरक का उत्पादन करता है। इस लेख में अदरक की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें, का उल्लेख किया गया है।
अदरक की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of ginger)
अदरक की अच्छी अपज के लिए थोड़ी गर्म तथा नम जलवायु होनी चाहिए। अदरक की अच्छी उपज के लिए 20 से 30 डिग्री से० तापमान उपयुक्त होता है। इससे ज्यादा होने पर फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कम तापमान के कारण (10° से0 से कम) पत्तों तथा प्रकन्दों को नुकसान पहुँचता है । बोआई के अंकुर फूटने तक हल्की नमी, फसल बढ़ते समय मध्यम वर्षा तथा फसल के उखाड़ने के एक माह पहले शुष्क मौसम होना चाहिए।
अदरक की खेती (Ginger Cultivation) उत्तर पर्वत्तीय क्षेत्रों से लेकर दक्षिण पूर्व व पश्चिमी घाटों तक समुद्र सतह से 1500 मीटर की ऊचाई तक की जा सकती है। अधिक वर्षा या गर्मी से इसकी फसल पर विपरीत असर पड़ता है। 150-200 मिमी वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है। जहाँ वातावरण में पर्याप्त नमी बनी रहे (बाग आदि), इसकी खेती के लिए उपयुक्त है।
अदरक की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for cultivation of ginger)
अदरक की अधिक उपज के लिए हल्की दोमट या बलूई दोमट भूमि उयुक्त होती है। 6.0 से 7.5 पीएच मान वाली भूमि में अदरक की अधिक पैदावार होती है। अदरक की खेती के लिए ऊँची जमीन और जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। भारी एवं क्षारीय भूमि में अदरक का उत्पादन अच्छा नहीं होता है। अदरक (Ginger) उत्पादन के लिए फसल चक्र अपनाना अति आवश्यक है।
अदरक की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Preparation of land for ginger cultivation)
अदरक की खेती (Ginger Cultivation) के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाली हल से जुताई करने के बाद, चार बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करते हैं। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाना चाहिए। जिससे मिट्टी भूरभूरी हो जाए। अंतिम जुताई से 3 से 4 सप्ताह पूर्व खेत में 250 से 350 क्विंटल सड़ा हुआ गोबर का खाद देते है। गोबर का खाद देने के बाद एक या दो बार खेत की जुताई कर गोबर के खाद को मिट्टी में मिला देते हैं।
अदरक की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for cultivation of ginger)
सूखा अदरक के लिए: करक्कल, नदिया, मारन, विनाङ, मननटोडी, वल्लूवनद, इमड और कुरूप्पमपदी आदि प्रमुख है।
ताजे अदरक के लिए: रिपोडीजेनेरो, चाइना, विनाड और टफन्जिया आदि प्रमुख है।
जेल (जिन्जेरॉल) के लिए: स्लिवा स्थानीय, नरसापट्टम, इमड, चेमड और हिमाचल प्रदेश आदि प्रमुख है।
ओलियोरेगिन (तेल) के लिए: इमड, चेमड, चाइना, कुरूप्पमपदी और रियो डी जेनेरो आदि प्रमुख है।
अल्पा रेशित व ताजे कन्द के लिए: जमैका, बैंकाक और चाइना आदि प्रमुख है।
अदरक की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for ginger cultivation)
अदरक (Ginger) की बुवाई दक्षिण भारत में मानसून फसल के रूप में अप्रैल से मई में की जाती है, जोकि दिसम्बर तक परिपक्व हो जाती है। जबकि मध्य और उत्तर भारत में अप्रैल से जून माह तक बुवाई योग्य समय हैं। सबसे उपयुक्त समय 15 मई से 30 मई हैं। 15 जून के बाद बुवाई करने पर कंद सड़ने लगते हैं तथा अंकुरण पर प्रभाव बुरा पड़ता हैं। पहाड़ी क्षेत्रो में 15 मार्च के आस-पास वुवाई की जाने वाली अदरक में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त हुआ है।
अदरक की खेती के लिए बीज की मात्रा (Quantity of seeds for cultivation of ginger)
अदरक की खेती (Ginger Cultivation) के लिए 20 से 25 क्विंटल प्रकन्द प्रति हेक्टेयर बीज दर उपयुक्त रहती हैं और पौधों की संख्या 140000 प्रति हेक्टेयर पर्याप्त मानी जाती हैं। मैदानी भागो में 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा का चुनाव किया जा सकता हैं। क्योंकि अदरक की कुल लागत का 30 से 40 प्रतिशत बीज में लग जाता है, इसलिये बीज की मात्रा का चुनाव, किस्म, क्षेत्र और प्रकन्दों के आकार के अनुसार ही करना चाहिये। शीत गृह में रखे गए बीज कन्द को सामान्य तापमान पर लाने के उपरान्त ही उपयोग करना चाहिए।
अदरक की खेती के लिए बीज उपचार (Seed treatment for ginger cultivation)
अदरक के प्रकन्द बीजों को खेत में बुवाई, रोपण और भंडारण के समय उपचारित करना अति आवश्यक होता हैं। बीज उपचारित करने के लिये (मैंकोजेब + मैटालैक्जिल) या कार्बेन्डाजिम की 3 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर कन्दों को 30 मिनट तक डुबो कर रखना चाहिये साथ ही स्ट्रप्टोसाइकिलन या प्लान्टो माइसिन भी 5 ग्राम की मात्रा 20 लीटर पानी के हिसाब से मिला लेते है।
जिससे जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम की जा सके, पानी की मात्रा घोल में उपचारित करते समय कम होने पर उसी अनुपात में मिलाते जायें और फिर से दवा की मात्रा भी चार बार के उपचार करने के बाद फिर से नया घोल बनायें। उपचारित करने के बाद अदरक (Ginger) बीज को थोडी देर छावं में सुखाकर बुआई करें।
अदरक की खेती के लिए बुआई की विधियाँ (Sowing methods for ginger cultivation)
अदरक की रोपाई भूमि की दशा या जल वायु के प्रकार के अनुसार समतल कच्ची क्यारी, मेड-नाली आदि विधि से अदरक की बुवाई या रोपण किया जाता हैं। अदरक (Ginger) बोने की प्रचलित विधि इस प्रकार है, जैसे-
समतल विधि: हल्की तथा ढालू भूमि में समतल विधि द्वारा रोपण या बुआई की जाती हैं। खेत में जल निकास के लिये कुदाली या देशी हल से 5 से 6 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाई जाती है, जो जल के निकास में सहायक होती हैं। इन नालियों में कन्दों का 15 से 20 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपण किया जाता हैं और रोपण के दो माह बाद पौधो पर मिट्टी चढ़ाकर मेड नाली विधि बनाना लाभदायक रहता हैं।
ऊँची क्यारी विधि: इस विधि में 1X3 मीटर, आकार की क्यारीयों को जमीन से 20 सेंटीमीटर ऊची बनाकर प्रत्येक क्यारी में 50 सेंटीमीटर चौड़ी नाली जल निकास के लिये बनाई जाती हैं। बरसात के बाद यही नाली सिचाई के काम में आती हैं। इन उथली क्यारियों में 30 X 20 सेंटीमीटर की दूरी पर 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई पर कन्दों की बुवाई करते हैं। भारी भूमि के लिये यह विधि अच्छी है।
मेड़ नाली विधि: इस विधि का प्रयोग अदरक (Ginger) के लिए सभी प्रकार की भूमियों में किया जा सकता हैं। तैयार खेत में 60 या 40 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ नाली का निर्माण हल या फावड़े से काट के किया जा सकता हैं। बीज की गहराई 5 से 6 सेंटीमीटर रखी जाती है।
अदरक की खेती के लिए नर्सरी तैयार करना (Preparing nursery for cultivation of ginger)
यदि पानी की उपलब्धता नही या कम है, तो अदरक की नर्सरी तैयार करते हैं। पौधशाला में एक माह तक कंदों को अंकुरण के लिये रखा जाता है। अदरक (Ginger) की नर्सरी तैयार करने हेतु उपस्थित बीजो या कन्दों को गोबर की सड़ी खाद तथा रेत (50:50) के मिश्रण से तैयार बीज की फैलाकर उसी मिश्रण से ढक देना चाहिए और सुबह-शाम पानी का छिड़काव करते रहना चाहिये। कन्दों के अंकुरित होने एवं जड़ो से जमाव शुरू होने पर उसे मुख्य खेत में मानसून की बारिश के साथ रोपण कर देना चाहिये।
अदरक की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in ginger crop)
अदरक (Ginger) एक लम्बी अवधि की फसल हैं। जिसे अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता अधिक होती है। उर्वरकों का उपयोग मिटटी परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। खेत तैयार करते समय 30 से 35 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में सामान्य रूप से फैलाकर मिला देना चाहिए। प्रकन्द रोपण के समय 20 कुन्टल प्रति हेक्टेयर नीम की खली भूमि डालने से प्रकन्द गलन और सूत्रकृमि या भूमि जनित रोगों की समस्या कम हो जाती हैं।
रासायनीक उर्वरकों की मात्रा को 20 प्रतिशत कम कर देना चाहिए, यदि गोबर की खाद या कम्पोस्ट डाला गया है तो, संतुलित उर्वरकों की मात्रा 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉसफोरस, 50 किलोग्राम पोटाश और जिंक की कमी होने पर 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और बाकि सभी उर्वरकों की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के समय खेत में प्रकंदों से 4 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर देनी चाहिए।
अदरक की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Ginger Crop)
अदरक बरसात वाली फसल है, इसलिए इसकी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन अक्टूबर-नवम्बर माह में वर्षा नहीं होने की परिस्थिति में सिंचाई करना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि अक्टूबर-नवम्बर माह में अदरक की गांठ बनती तथा उसका विकास होता है। इसलिए अक्बूबर-नवम्बर माह में खेतों अधिक नमी होनी चाहिए। बारिश न होने पर 15 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए। अदरक (Ginger) में बीज कंद अंकुरण के समय और कंदों के उत्पादन के समय अनिवार्य रूप से पानी देने की आवश्यकता होती है।
अदरक की खेती और फसल प्रणाली (Adarak cultivation and cropping system)
अदरक की फसल के रोग एवं कीटों में कमी लाने और मृदा के पोशक तत्वों के बीच सन्तुलन रखने हेतु अदरक को सिंचित भूमि में पान, हल्दी, प्याज, लहसुन, मिर्च अन्य सब्जियों, गन्ना, मक्का तथा मूंगफली के साथ उगाया जा सकता है। वर्षा अधिक सिंचित वातावरण में 3 से 4 साल में एक बार आलू, रतालू, मिर्च, धनियाँ के साथ या अकेले ही फसल चक्र अपना सकते हैं। अदरक की फसल (Ginger Crop) को पुराने बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप में उगा सकते हैं।
अदरक की फसल में पलवार (Mulching in adarak crop)
अदरक की फसल (Ginger Crop) में पलवार बिछाना बहुत ही लाभदायक होता हैं, रोपण के समय इससे भूमि का तापक्रम और नमी का सामंजस्य बना रहता है, जिससे अंकुरण अच्छा होता है। खरपतवार भी अंकुरित नही होती और वर्षा होने पर भूमि का क्षरण भी नही होने पाता है। रोपण के तुरन्त बाद हरी पत्तियाँ या लम्बी घास पलवार के लिये ढाक, आम, केला या गन्ने की पत्तियों का भी उपयोग किया जा सकता हैं। 10 से 12 टन या सूखी पत्तियाँ 5 से 6 टन प्रति हेक्टेयर बिछाना चाहिये।
अदरक में खरपतवार नियंत्रण और मिट्टी चढ़ाना (Weed control and earthing up in ginger)
पलवार के कारण खेत में खरपतवार नहीं उगते अगर उगे हो तो उन्हें निकाल देना चाहिये, दो बार निंदाई 4 से 5 माह बाद करनी चाहिये तथा साथ ही मिट्टी भी चढ़ाना चाहिऐ। जब पौधे 20 से 25 सेंटीमीटर ऊँचे हो जाये तो उनकी जड़ों पर मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता हैं। इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और प्रकंद का आकार बड़ा होता है, एवं भूमि में वायु संचार अच्छा होता हैं।
अदरक (Ginger) के कंद बनने लगते है तो जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलते हैं, उन्हें काट देना चाहिए, ऐसा करने से कंद बड़े आकार के हो पाते हैं। अदरक में खरपतवारनाशक दवाईयों का जयादा इस्तेमाल नहीं किया जाता है, क्योंकि लम्बे समय की फसल होने के कारण रोपाई से पहले या तुरन्त बाद के छिड़काव से अच्छे परिणाम नहीं मिले हैं।
अदरक की फसल में रोग और कीट नियंत्रण (Disease and Pest Control in Ginger Crop)
राइजोम गलन: यह एक मृदा जनित रोग है, जिसके कारक मुख्यतः पिथियम, फ्युजिरियम, राइजोक्टोनिया आदि कवक है। यह रोग अदरक (Ginger) की पत्तियों पर दिखाई देता है। इस रोग में पत्तियों का रंग हल्का फीका पड़ने लगता है। यह रोग पत्तियों की नोंक से शुरू होकर नीचे की ओर बढ़ता है और फिर पूरी पत्ती को सूखा देता है, तो वहीं कंदों के ऊपर का छिलका स्वस्थ दिखाई देता है, लेकिन अंदर का गूदा सड़ा देता है। इस रोग के प्रकोप को सूत्रकृमि, राइजोम मैगट कीट बढ़ाते हैं। इस रोग की रोकथाम हेतु निम्नलिखीत उपाय करे, जैसे-
भूमि उपचार: ट्राइकोडर्मा तथा सड़ी हुई गोबर की खाद को 1:200 के अनुपात में मिलाकर संवर्धित करे तथा खेत तैयार करते समय मिट्टी में मिला दे। बीजोपचार हेतु ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति पानी का घोल बनाकर 2 घंटे भिगोये तत्पश्चात बुआई करे। इसके अलावा कार्बेन्डाजिम, मैन्कोजेब को आवश्यकता अनुसार लगभग 100 लीटर पानी में मिलाकर घोल से उपचारित कर लेना चाहिए।
अगर जीवाणु म्लानि का प्रकोप है, तो रसायनों में लगभग 20 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन भी मिला देना चाहिए। बुवाई के बाद खेतों में नमी संरक्षण के लिए पुवाल में उन्ही पेड़ों की पत्ती या घास का उपयोग करें, जो अदरक (Ginger) सड़न के रोगाणुओं और कुरमुला कीट को बढ़ाती न हो। प्रकंदों को ऊंची मेंड़ों पर लगाएं, जिससे खेतों में पानी इकट्ठा न हो।
अदरक (Ginger) की खड़ी फसल में रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेंकोजेब 64% + मेटालेग्सिल 4% को 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव तथा ड्रेन्चिंग करे। खेत को साफ-सुथरा रखें और बुवाई के समय पौधों के बीच उचित दूरी बनाकर रखें।
अदरक फसल के प्रकंदों की खुदाई (Digging of rhizomes of adarak crop)
अदरक की खुदाई लगभग रोपण के 8 से 9 महीने बाद कर लेनी चाहिये, जब पत्तियाँ धीरे-धीरे पीली होकर सूखने लगे। खुदाई में देरी करने पर प्रकन्दों की गुणवत्ता तथा भंडारण क्षमता में गिरावट आ जाती है और भंडारण के समय प्रकन्दों का अंकुरण होने लगता हैं। खुदाई कुदाली या फावडे की सहायता से की जा सकती है, बहुत शुष्क और नमी वाले वातावरण में खुदाई करने से उत्पादन में क्षति पहुँचती है, जिससे ऐसे समय में खुदाई नहीं करनी चाहिए। खुदाई करने के बाद प्रकन्दों से पत्तियों और अदरक कंदों में लगी मिट्टी को साफ कर देना चाहिये।
यदि अदरक (Ginger) का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाना है, तो खुदाई रोपण के 6 महीने के अन्दर की जानी चाहिए। प्रकन्दों को पानी से धुलकर एक दिन तक धूप में सूखा लेना चाहिये। सूखी अदरक के लिए जिन कंदों की खुदाई 8 महीने बाद की गई है, उनको 6 से 7 घन्टे तक पानी में डुबोकर रखें। इसके बाद नारियल के रेशे या मुलायम ब्रश आदि से रगड़कर साफ कर लेना चाहिये।
धुलाई के बाद अदरक (Ginger) को सोडियम हाइड्रोक्लोरोइड के 100 पीपीएम के घोल में 10 मिनट के लिये डुबोना चाहिए। जिससे सूक्ष्म जीवों के आक्रमण से बचाव के साथ-साथ भण्डारण क्षमता भी बढ़ती है। मुलायम अदरक को धुलाई के बाद 30 प्रतिशत नमक के घोल जिसमें 1 प्रतिशत सिट्रीक अम्ल में डुबो कर तैयार किया जाता हैं, जिससे वो 14 दिनों के बाद प्रयोग और भण्डारण के योग्य हो जाते है।
अदरक की फसल से पैदावार (Yield from ginger crop)
ताजा हरे अदरक के रूप में 100 से 150 क्विंटल पैदावार प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है। जो सूखाने के बाद 20 से 25 क्विंटल तक होती हैं। उन्नत किस्मों के उपयोग और अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत पैदावार 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है। इसके लिये अदरक (Ginger) को खेत में 3 से 4 सप्ताह तक अधिक छोड़ना पड़ता है। जिससे कन्दों की ऊपरी परत पक जाती है और मोटी भी हो जाती हैं।
अदरक के कंदों का भंडारण (Storage of Adarak Tubers)
अदरक (Ginger) का भंडारण करने के लिये आवश्यकतानुसार छायादार जगह पर 4 x 3 फीट के गड़ें खोद कर गोबर से लीपाई करे। भंडारण हेतु उपयुक्त कंदो को ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से उपचारित कर एक तह में बिछा दे तथा उस पर बालू मिट्टी की एक तह बिछाये। इस तरह गड्डे को भर दें, उपर से सूखी घास से ढक कर लिपाई कर दें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
अदरक की खेती वर्षा आधारित और सिंचाई करके भी की जा सकती है। इस फसल की सफल खेती के लिए बुआई से अंकुरण तक मध्यम वर्षा, वृद्धि तक अधिक वर्षा और खुदाई से लगभग 1 महिना पहले शुष्क वातावरण अति आवश्यक है। इसकी खेती बालुई,चिकनी,लाल या लेटेराइट मिट्टी में उत्तम होती है। एक ही खेत में अदरक की फसल (Ginger Crop) को लगातार नहीं बोना चाहिए।
जलवायु अदरक की अच्छी अपज के लिए थोड़ी गर्म तथा नम जलवायु होनी चाहिए। अदरक (Ginger) की अच्छी ऊपज के लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता है।
अदरक की खेती बलुई दोमट जिसमें अधिक मात्रा में जीवाशं या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा हो वो भूमि सबसे ज्यादा उपयुक्त रहती है । मृदा का पीएच मान 5.6 से 6.5 अच्छे जल निकास वाली भूमि अदरक (Ginger) की अधिक उपज के लिए सबसे अच्छी रहती हैं।
अदरक (Ginger) की रोपाई का मौसम मार्च-अप्रैल से शुरू होता है, जब मानसून शुरू होता है। फसल की अवधि आम तौर पर लगभग 8-9 महीने (अप्रैल/मई से दिसंबर/जनवरी) होती है।
नादिया: यह उच्च उपज देने वाली किस्म है, जो लगभग 24-25 टन प्रति हेक्टेयर हरी अदरक (Ginger) पैदा करती है, तथा शुष्क पदार्थ की रिकवरी 22 टन प्रति हेक्टेयर होती है।
अदरक (Ginger) को हल्की छाया देने से खुले में बोई गयी अदरक से अधिक उपज प्राप्त होती है और कन्दों की गुणवत्ता भी अच्छी होती हैं।
अदरक (Ginger) की रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई की जाती है, उसके बाद हर 10 दिन में एक और सिंचाई की जाती है। एक फसल अवधि में कुल 16-18 सिंचाई की आवश्यकता होती है। एक हेक्टेयर में फसल को कुल 90-100 सेमी पानी की आवश्यकता होती है।
अदरक (Ginger) रोपण के 210-240 दिनों के बाद पूरी तरह से पक जाता है। सब्जी के लिए अदरक की कटाई मांग के आधार पर 180 दिनों के बाद शुरू होती है। हालाँकि, सूखी अदरक बनाने के लिए, परिपक्व प्रकंदों को पूरी तरह से पकने पर काटा जाता है, यानी जब पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और सूखने लगती हैं।
बुआई के समय 25-30 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह अपघटित गोबर खाद या कम्पोस्ट को ऊपर बिखेर कर अथवा बुआई के समय छोटे गढ्डे करके उसमें डाल देना चाहिए। अदरक (Ginger) बुआई के समय 2 टन प्रति हेक्टेयर की दर से नीम केक का उपयोग करने से प्रकांड गलन रोग तथा सूत्रकृमियों का प्रभाव कम होता है, जिससे उपज बढ़ जाती है।
उन्नत किस्मों के उपयोग और अच्छे प्रबंधन द्वारा अदरक (Ginger) की फसल औसतन 150 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। तो 1 एकड़ में 120 से 160 क्विंटल अदरक प्राप्त की जा सकती है।
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