
Horse Gram Farming in Hindi: कुलथी भारत की एक महत्वपूर्ण फसल है। इसका दाना मानव के आहार में दाल और पशु के लिये दाने व चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसको हरी खाद के रूप में भी उपयोग करते हैं। इसमें 22% प्रोटीन, 58% कार्बोहाइड्रेट के अलावा आवश्यक पोषक तत्व जैसे-फॉस्फोरस, कैल्शियम, लौह तत्व और विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
पेचिश, कब्ज, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, मूत्र समस्याओं, पीलिया, बवासीर, गुर्दे की पथरी और पित्ताशय की पथरी में कुलथी का चूर्ण या दाल बनाकर औषधि के रूप में सेवन करना बहुत लाभदायक होता है। यह शरीर में विटामिन ‘ए’ की पूर्ति कर पथरी को रोकने में मददगार है। इस लेख में कुल्थी (Horse Gram) की उन्नत खेती का उल्लेख किया गया है।
कुलथी के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for horse gram)
कुलथी (Horse Gram) अत्यधिक सूखा सहनशील फसल है। इसकी उपयुक्त वृद्धि के लिये हल्की गर्म, सूखी जलवायु अच्छी रहती है। इसे अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में अच्छे से नहीं उगाया जा सकता क्योंकि वहाँ जलवायु ठण्डी व आर्द्र होती है। इसकी खेती समुद्र तल से 1000 मीटर ऊँचाई तक कर सकते है। इसकी उपयुक्त वृद्धि के लिये तापक्रम 25 से 30 सेन्टीग्रेड और सापेक्षित 50-80% के बीच होनी चाहिए।
फसल की प्रारम्भिक अवस्था में भारी वर्षा से जड़ो की ग्रंथियाँ बनना प्रभावित होती है, क्योंकि मृदा का वायु संचार कम होता है। इसकी सफलतम खेती के लिये वार्षिक वर्षा 80 सेमी पर्याप्त रहती है, किन्तु इसको कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगा सकते हैं।
कुलथी के लिए भूमि व खेत की तैयारी (Land and field preparation for Kulthi)
दक्षिण भारत में कुलथी (Horse Gram) को सामान्यतः लैटराइटिक मृदा (निम्न उर्वरता) में उगाया जाता है। इस फसल को कई प्रकार की हल्की से भारी मृदा में उगाया जाता है, जो कि मृदा क्षारीयता से मुक्त हो। इस फसल को कम खेत की तैयारी की आवश्यकता होती है। केवल 1-2 जुताई करके पाटा लगाकर तैयार कर लेना चाहिए।
कुलथी की खेती के लिए बुवाई समय (Sowing time for horse gram cultivation)
कुलथी (Horse Gram) की फसल बोने का समय अगस्त अंत से नवम्बर माह होता है। चारे के लिये बोई गई फसल की बुवाई जून – अगस्त में करते हैं। तमिलनाडू में इसको सितम्बर से नवम्बर में बोया जाता है। महाराष्ट्र में इसको खरीफ में बाजरा के साथ या कई बार रामतिल (नाइजर) के साथ बोया जाता है और इसको रबी में धान के बाद लेते है। मध्य प्रदेश में यह रबी फसल के रूप में ली जाती है। उत्तरी क्षेत्र में इसको खरीफ फसल के रूप में लेते हैं। पश्चिम बंगाल में इसकी बुवाई का समय अक्टूबर-नवम्बर है।
कुलथी की बीज दर और बुवाई का तरीका (Seed rate and sowing method of horse gram)
सामान्यतः द्विउद्देशीय कुलथी (Horse Gram) की फसल (चारे व दाने) की बुवाई छिटकवा विधि से 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर से करते है। कतार में बुवाई करने पर दाने के लिये बोई गई फसल की बीज दर 25-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है। खरीफ फसल में कतार से कतार की दूरी 40-45 सेमी व रबी फसल में कतार से कतार की दूरी 25-30 सेमी रखते है और पौधे से पौधे की दूरी लगभग 5 सेमी रखनी चाहिए।
कुलथी का बीजोपचार और उर्वरक (Seed treatment and fertilizer of horse gram)
बीज उपचार: बुवाई से पूर्व बीजों को फफूँदनाशी दवा कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचार करना चाहिए। इसके बाद राइजोबियम व पी.एस.बी. कल्चर की 5–7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचार करना चाहिए।
उर्वरक: कुल्थी (Horse Gram) बुवाई के समय 20 किग्रा नत्रजन व 30 किग्रा फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से आधार उर्वरक के रूप में बीज से नीचे देना चाहिए।
कुलथी की सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण (Irrigation and weed control of kulthi)
सिंचाई: कुलथी की फसल (Horse Gram Crop) में फूल आने से पहले एवं फली में दाना बनते समय सिंचाई करनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण: बुवाई के बाद व अंकुरण पूर्व (0-3 दिन) पेन्डीमिथालिन की 0.75-1 किग्रा सक्रिय तत्व को 400-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग करें। इसके बाद हाथ से एक निंदाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें।
कुलथी की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in horse gram crop)
रसचूसक कीटः पौधो का रस चूसकर फसल को नुकसान पहुँचाते है। इनके नियंत्रण के लिये डायमिथिएट 30 ईसी को 2 मिली प्रति लीटर या मिथाइल डेमेटान को 1 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।
पत्ती भक्षक व फली भेदक कीट: कुलथी (Horse Gram) में इन कीटों के नियंत्रण के लिये क्विनालफॉस को 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
कुलथी की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in horse gram crop)
पीला मोजेक रोग: इस रोग के नियंत्रण के लिये सफेद मक्खियों का नियंत्रण करना चाहिए। इसके लिये डायमिथिएट 30 ईसी दवा को 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
जड सडन: इस बीमारी से कुलथी (Horse Gram) बचाव के लिये बुवाई पूर्व बीजों को फफूंदनाशी दवा कार्बेन्डाजिम का 2 ग्राम किग्रा बीज के हिसाब से उपचार करके बोये।
कुलथी की कटाई और गहाई (Harvesting and threshing of horse gram)
कुल्थी की फसल (Horse Gram Crop) की कटाई के समय विशेष सावधानी रखनी पड़ती है। पौधे की ऊपर की फलियाँ जब पीली पड़ने लगे तब कटाई कर लेनी चाहिए क्योंकि इस समय पौधे के निचले एवं मध्य भाग में लगी फलियाँ पक जाती है। कटाई में देरी करने से नीचे की फलियाँ चटकने का भय होता है जिससे उत्पादन में कमी आ जाती है। कटाई के उपरान्त पौधे को खुली धूप में सुखाकर गहाई करनी चाहिए।
कुलथी की उपज भण्डारण (Storage of Horse Gram Yield)
भंडारण: गहाई के बाद दाने को 3-4 दिन तक धूप में सुखा लेना चाहिए तथा भण्डारण के समय दाने मं 9-10 प्रतिशत नमी होनी चाहिए।
उपजः उपरोक्त उन्नत तकनीक व प्रबंधन को अपनाकर कुलथी (Horse Gram) की फसल से 7-12 क्विंटल दाने की उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त कर सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
कुल्थी (Horse Gram) की खेती के लिए हल्की गर्म और शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। आमतौर पर कुलथी दोहरे उद्देश्य यानी अनाज और चारे के लिए 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज दर के साथ छितराई हुई फसल के रूप में बोया जाता है। अनाज की फसल के लिए 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लाइन बुवाई के लिए पर्याप्त है। पंक्ति अंतराल: खरीफ के दौरान 40-45 सेमी और रबी के दौरान 25-30 सेमी और पौधे से पौधे के बीच लगभग 5 सेमी का अंतर रखें।
कुलथी की फसल को कम खेत की तैयारी की आवश्यकता होती है। केवल 1-2 जुताई करके पाटा लगाकर तैयार कर लेना चाहिए। कुल्थी की फसल (Horse Gram Crop) बोने का समय अगस्त अंत से नवम्बर माह होता है। चारे के लिये बोई गई फसल की बुवाई जून – अगस्त में करते हैं।
कुलथी (Horse Gram) की खेती के लिए कई किस्में अच्छी मानी जाती हैं। इनमें से कुछ किस्में ये हैं: एचपीके- 4, व्हीएलजी- 1, विरसा कुल्थी, एके- 21, बस्तर- 2 काली किस्म और बिरसा कुलथी- 1 आदि प्रचलित है।
यदि मिट्टी में एनपीके की कमी है, तो 12.5 टन प्रति हेक्टेयर एफवाईएम/कम्पोस्ट, 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर फॉस्फोरस, 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पोटैशियम का उपयोग करें। कुलथी (Horse Gram) के बीजों को राइजोबियल कल्चर के 3 पैकेट (600 ग्राम प्रति हेक्टेयर) और टीएनएयू में विकसित फॉस्फोबैक्टीरिया के 3 पैकेट (600 ग्राम प्रति हेक्टेयर) के साथ बाइंडर के रूप में चावल कांजी का उपयोग करके उपचारित करें।
कुलथी की सिंचाई, फसल में फूल आने से पहले और फली में दाना बनने के समय करनी चाहिए। कुल्थी की खेती में सही जलवायु और तापमान का होना बहुत जरूरी है। कुलथी (Horse Gram) की फसल में ड्रिप सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल अच्छा रहता है। इससे पौधों की जड़ों तक सीधे पानी पहुंचता है और पानी की बर्बादी कम होती है।
कुलथी (Horse Gram) चना एक स्व-निषेचित फसल है जो 3 से 4.5 महीने में पक जाती है। उपयोग: ग्रामीण आबादी द्वारा इसे साबुत बीज, अंकुरित या अनाज के आटे के साथ पूरे भोजन के रूप में खाया जाता है। खराब खाना पकाने की गुणवत्ता ने सूखे बीजों के उपयोग को सीमित कर दिया है।
कुलथी (Horse Gram) की उपज बढ़ाने के लिए, सही बीजों का चुनाव, उचित जलवायु, खरपतवारों और कीटों का नियंत्रण और उर्वरक का सही इस्तेमाल करना जरूरी है।
एक एकड़ में कुलथी (Horse Gram) की खेती के लिए लगभग 12-15 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। कुल्थी की एक एकड़ फसल से किसान लगभग 3-4 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकते हैं।
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