Isabgol Farming in Hindi: ईसबगोल का बानस्पतिक नाम ‘प्लाटैगो ओवेटा’ तथा जीनस प्लाटैगो से संबंधित एक छोटा पौधा है। जिसे साइलियम के नाम से भी जाना जाता है, जो कि महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसका स्वास्थ्य की दृष्टि से बड़ा ही महत्व है। मानव में होने वाले कई प्रकार के रोगों में ईसबगोल पौधे का इस्तेमाल बहुत ही लाभकारी माना गया है। इस पौधे का उत्पत्ति स्थान मिस्र तथा ईरान है। लेकिन अब यह पौधा मालवा, पंजाब और सिन्ध में भी लगाया जाने लगा है।
प्लांटैगो ओवेटा की 281 प्रजातियों में से केवल दो अर्थात प्लांटैगो ओवेटा और प्लांटैगो साइलियम की खेती उनकी भूसी के लिए की जाती है, जोकि फार्मास्यूटिकल और कॉस्मेटिक उद्योग में उपयोग की जाती है। प्लांटैगो ओवेटा के बीज की भूसी फूलने और रंगहीनता के मामले में बेहतर होती है। जिसके कारण विश्व बाजार में फ्रेंच साइलियम को विस्थापित कर दिया है।
ईसबगोल (Isabgol) के पौधे एक से दो हाथ तक ऊँचे होते हैं, जिनमें लंबे किंतु कम चौड़े, धान के पत्तों के समान, पत्ते लगते हैं। डालियाँ पतली और इनके सिरों पर के समान बालियाँ लगती जिनमें बीज होते हैं। आधुनिक ग्रंथों में ये बीज मृदु, पौष्टिक, कसैले, लुआबदार, आँतों को सिकोड़ने वाले तथा कफ, पित्त और अतिसार में उपयोगी कहे गए हैं। इस लेख में ईसबगोल की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
ईसबगोल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Isabgol Cultivation)
इसे ठंडे और शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है। फसल की परिपक्वता के दौरान बेमौसम बारिश या यहां तक कि उच्च ओस के जमाव के परिणामस्वरूप बीज की उपज का कुल नुकसान होता है, जो कि पेपरी जैसी भूसी कई बार पानी को अवशोषित कर फूल जाती है तथा फूलने पर वजन बढ़ने से फूला हुआ बीज अंततः गिर जाता है।
ईसबगोल (Isabgol) बीज के अधिकतम अंकुरण के लिए तापमान की आवश्यकता 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड होती है। जबकि परिपक्वता पर इसके लिए 30 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमानआवश्यक होता है। रात के कम तापमान में यह पौधा तेजी से पनपता है। इसके लिए 50 से 125 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
ईसबगोल की खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Suitable land for Isabgol cultivation)
ईसबगोल (Isabgol) की खेती के लिए बलुई मिट्टी में जहां पानी कम रुकता है वहां इस फसल को उगाना वैज्ञानिक तथा आर्थिक दृष्टिकोण से सही कदम होगा। ऐसी भूमि जिसका पीएच मान 7.0 से 7.9 के मध्य हो उचित रहती है। ईसबगोल की खेती के लिए दोमट बलुई मिट्टी जिसमें जल निकास का उचित प्रबंध व पीएच 7-8 तक हो सर्वोत्तम होती है। ईसबगोल के पौधे के लिए 20-35 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान उचित होता है। इसके लिये शुष्क और आर्द्र वातावरण उपयुक्त होता है।
ईसबगोल की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Isabgol cultivation)
खेत को खरपतवार, मिट्टी के ढेलों इत्यादि से पूर्णरुप से मुक्त कर देना चाहिए। खेत की अच्छी तरह से जुताई करके पाटा लगा देना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर बुआई के पूर्व एक हल्की सिंचाई देकर खेत को तैयार करते हैं। गोबर की सड़ी खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिए तथा खेत को 8 X 3 मीटर की क्यारियों में बांट लें, ताकि सिंचाई करने में आसानी रहे।
ईसबगोल की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for Isabgol cultivation)
गुजरात ईसबगोल – 1 और 2, हरियाणा ईसबगोल – 5, एसआई – 5, एमआइजी – 2, 5, 6, 8 (मंदसौर ईसबगोल), आईआई – 1, (इंदौर ईसबगोल), जवाहर ईसबगोल – 4, ट्रांबे सलेक्शन – 1-10, ईसी – 124 व 345, निहारिका आदि अधिक उत्पादन देने वाली किस्में है। ईसबगोल (Isabgol) की ये प्रजाति काफी अच्छी उपज देती है।
ईसबगोल की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing Time for Isabgol Cultivation)
ईसबगोल (Isabgol) सर्दी के मौसम की फसल अक्टूबर के मध्य से दिसंबर के अंत तक कभी भी बोया जा सकता है बीज की अगेती बुवाई विशेष रूप से उच्च बीज दर के साथ फसल को डाउनी मिल्ड्यू (फफूंदी) रोग के प्रति संवेदनशील बनाता है। देर से बुवाई करने पर फसल के पूर्ण वानस्पतिक विकास के लिए अवधि कम हो जाती है और बसंत की बारिश से पौधों को खतरा होता है जिससे बीज अच्छी तरह विकसित नहीं हो पाता है तथा पौधे से टूट कर नीचे गिर जाते हैं।
ईसबगोल की खेती के लिए बीज और बीज उपचार (Seed and Seed Treatment for Isabgol Cultivation)
ताजे और सुस्पष्ट बीजों को बुवाई के लिए चुना जाता है। बीजों को प्रसारण विधि द्दारा और कतार में बुवाई करके बोया जाता है। ईसबगोल (Isabgol) के बीज छोटे और हल्के होते है इसलिए बीजों को साफ रेत या छनी स्रङ्ग्ररूसे ढ़क दिया जाता है। बीजों को 1 से 2 सेमी की गहराई में बोना चाहिए अन्यथा बीजों का अंकुरण प्रभावित होता है।
कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 4 से 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। लगभग 4 से 5 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीजों की आवश्यकता होती है साइलियम बीज की भंडारण में अंकुरण क्षमता कम हो जाती है इसके लिए तत्काल पूर्वर्ती फसल के काटे गए बीज को प्राथमिकता दी जाती है।
ईसबगोल (Isabgol) बुवाई के लिए पिछले वर्ष की फसल के परिपक्व बोल्ड और रोग मुक्त बीजों का उपयोग किया जाता है बीज की बुवाई से पहले बीज को (टीएमटीडी) ट्राईमिथाइल थाईयूरान डाईसल्फाइड थिरम रसायन से 3 ग्राम पर प्रति किलोग्राम की दर से बीज का उपचार करना चाहिए।
ईसबगोल की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer in Isabgol Crop)
खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह सड़ी हुई एफवाईएम 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाई जाती है। ईसबगोल (Isabgol) फसल को अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। 25-30 किग्रा नत्रजन और 15-25 किग्रा फस्फोरस को आधारीय खुराक के रूप में दी जाने की सलाह दी जाती है। पोटेशियम का प्रयोग वहां किया जा सकता है जहां मिट्टी में पोटेशियम की स्वाभाविक रूप में कमी होती है।
ईसबगोल (Isabgol) फसल के विकास के लिए पहली सिंचाई के बाद 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से नत्रजन की मात्रा दी जाती है। में स्पाइक अथवा बाल निकलने के समय 100 पीपीएम इंडोल 3 ब्यूटीरिक एसिड (100 पीपीएम, आईबीए) का स्प्रे कर देना चाहिए, जिससे उपज में 25 से 35% तक की वृद्धि देखी गई है।
ईसबगोल की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Isabgol Crop)
ईसबगोल (Isabgol) की खेती के लिए कुल 6 से 7 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। सिंचाई पानी की एक हल्की फुहार के साथ करना चाहिए अन्यथा पानी के तेज प्रवाह से बीज भूखंड से अलग हो जायेंगे और वितरण में एक रूपता नही रहेगी। यह फसल पानी की सघनता को सहन नहीं करती है। बीज 6-7 दिनों में अंकुरित हो जाते है। यदि अंकुरण कम होता है तो दूसरी बार सिंचाई करना चाहिए।
ईसबगोल की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Isab-gol crop)
ईसबगोल (Isabgol) की फसल में 20-25 दिनों के बाद पहली निराई कर देनी चाहिए। खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए बुवाई के दो महीने के भीतर 2-3 बार निराई और गुड़ाई की आवश्यकता होती है।
ईसबगोल फसल में रोग और कीट नियंत्रण (Disease and pest control in Isab-gol crop)
ईसबगोल (Isabgol) फसल पर लगने वाला प्रमुख रोग मृदृरोमिल फफूंद है। यह रोग फसल में बालियां बनते समय दिखाई देता है। यह फफूंद सबसे पहले पत्तियों पर धब्बे के रुप में प्रकट होता है तथा धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर फैलकर उसे नष्ट कर देता है। अधिक नमी होने पर इस रोग का फैलाव और बढ़ जाता है। इसकी रोकथाम के लिए निम्न उपाय किये जाने चाहिएं, जैसे-
- फसल को नवम्बर मध्य से दिसम्बर प्रथम सप्ताह में बो देना चाहिए।
- बोर्डेक्स मिश्रण 6:3100 के अनुपात से प्रयोग करने पर रोग से बचाव होता है।
- कापर ऑक्सीक्लोराइड या डाईथेन एम- 45 या डाईथेन जेड- 78 की 2.0 से 2.5 ग्राम मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर छिकड़ने से फसल का इस फफूंद से बचाव होता है।
ईसबगोल (Isabgol) फसल को कभी-कभी सफेद रंग की सूंडी और दीमक जड़े काटकर नुकसान पहुंचाती है। इससे रोकथाम के लिए 65 प्रतिशत लिंडेन 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या 10 प्रतिशत बीएचसी 60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर खेत में डालना उचित है।
ईसबगोल फसल की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Isab-gol Crop)
तुडाई, फसल कटाई का समय: जब ईसबगोल (Isabgol) फसल पीले रंग की हो जाती है, बालियाँ भूरी पड़ जाती है और बालियों को दबाने पर बीज निकल जाते है तो इसका मतलब फसल परिपक्व हो गई है। कटाई के समय वातावरण शुष्क होना चाहिए और पौधे में कोई नमी नहीं होना चाहिए अन्यथा बीज बिखर जायेंगे। इसलिए कटाई सुबह 10-11 बजे के बीच करना मिट्टी की संरचना को देखते हुए पौधो को जमीनी स्तर से या पूरी तरह उखाड़ा जाता है।
सफाई: बीजों को तब तक छाना जाता है जब तक वे साफ ना हो जाये। भूसी को अलग करने के लिए साफ बीजों को 6-7 बार पीसा जाता है।
उपज: ईसबगोल (Isabgol) की अच्छी फसल से प्रति हेक्टेयर 12-15 क्विंटल उपज प्राप्त होती है। इसके बीज की भूसी का वजन 20 प्रतिशत होता । इस प्रकार एक हेक्टेयर खेती से लगभग 5 क्विंटल भूसी प्राप्त होती है।
श्रेणीकरण- छटाई: बीज और भूसी को उष्कृष्टता अनुसार सफाई कर वर्गीकृत किया जाता है। उच्चतम गुणवत्ता की भूसी सफेद होती है जो बिना किसी लाल कर्नल के कण के बिना होती है।
पैकिंग: वायुरोधी थैले इसके लिए आदर्श होते है। नमी के प्रवेश को रोकने के लिए ईसबगोल (Isabgol) के बीजों और भूसी को पालीथीन या नायलॉन के थैलो में पैक किया जाना चाहिए।
भडारण: बीज और भूसी को अलग-अलग संग्रहित किया जाना चाहिए। बीज साधारण भंडारण के तहत व्यवहार्यता खो देते हैं। गोदाम भंडारण के लिए अच्छे होते है। शीत भंडारण अच्छे नहीं होते है। बीजों को सीधे बेचा जा सकता है और भूसी अलग से बेची जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
ईसबगोल (Isabgol) के लिए दोमट मिट्टी जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा अधिक और नमी की मात्रा कम हो, पौधों की वृद्धि और बीजों की अधिक उपज के लिए आदर्श है। ईसबगोल गर्म-समशीतोष्ण क्षेत्रों में अच्छी तरह से पनपता है। इसे ठंडे और शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है और इसे सर्दियों के महीनों में बोया जाता है। नवंबर के पहले सप्ताह में बोने से सबसे अच्छी उपज मिलती है।
भारत दुनिया में ईसबगोल (Isabgol) का सबसे बड़ा उत्पादक है और देश में उत्पादित इसबगोल का 93% दुनिया भर में निर्यात किया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका भारत से इसबगोल का सबसे बड़ा आयातक है।
डाउनी फफूंद ईसबगोल (Isabgol) का मुख्य रोग है। नाइट्रोजन की अनुशंसित मात्रा, बीज दर और सिंचाई से अधिक उपयोग करने से फसल इस रोग के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।
ईसबगोल (Isabgol) एक प्रकाश संवेदी पौधा है। यदि दिन की अवधि बढ़ जाये तो यह पौधा समय से पहले ही पक जाता है परन्तु शाक वृद्वि कम होने से बीज तथा भूसी की मात्रा कम प्राप्त होती है। अतः इसे मध्य नवम्बर से मध्य दिसम्बर तक बो देना चाहिए जिससे फरवरी आने तक यह पूर्ण रुप से बढ सके।
उपचार के लिए 2.5 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा 100 किलो वर्मी कम्पोस्ट या गोबर की खाद के साथ में अच्छी तरह मिलाकर भूमि में मिला देवें।
वैसे ईसबगोल (Isabgol) फसल में तीन सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुआई के तुरंत बाद, दूसरी सिंचाई 30-35 दिन के अंदर तथा तीसरी 70 दिन बाद करते हैं। आखिरी सिंचाई बालियों में बीज पड़ते समय करें उसके बाद सिंचाई की आवश्यकता नहीं रहती।
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