Rajma Cultivation: राजमा (Kidney Bean) का वैज्ञानिक नाम ‘फेसीओलीस वलगेरीस’ है और यह लेग्युमिनोसी कुल की एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। इसे पोषण का राजा की उपाधि दी गई है। राजमा भारत में ज्यादातर रबी सीजन में उगाई जाती है। राजमा की खेती सब्जी और दाने दोनों के लिए की जाती है। राजमा जिसे फ्रेंचबीन (फली), किडनी बीन एवं स्नैप बीन के नाम से भी जाना जाता है, की जायकेदार स्वादिष्ट सब्जी सभी लोग बहुत ही पसंद करते हैं और इसलिए इसे नकदी फसल के रूप में उगाया जाने लगा है।
राजमा (Kidney Bean) के दानों में सामान्यतः 23 प्रतिशत प्रोटीन, और 60% कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। इसके 100 ग्राम दानों में 260 मिग्रा कैल्शियम, 410 मिग्रा फास्फोरस और 5.8 मिग्रा लौहतत्व पाये जाते हैं जो पोषण की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। राजमा का बीज लाल, चितकबरा, सफेद, नीला इत्यादि कई रंगों में होता है। राजमा एक दलहनी फसल होने के कारण नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है। यदि राजमा की खेती उन्नत तकनीक से की जाये, तो राजमा की फसल से इच्छित उपज प्राप्त की जा सकती है।
राजमा की खेती के लिए जलवायु (Climate for Kidney Bean Farming)
राजमे (Kidney Bean) की फसल उष्णकटिबन्धीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों जहाँ 60-150 सेमी की वार्षिक बारिश होती है, की जा सकती है। इस फसल के लिए आदर्श तापमान 15°-25°C होता है। यह फसल पाला और जल जमाव के प्रति काफी संवदेनशील होती है। 30°C से अधिक तापमान होने पर फुल झड़ने लगते हैं इसी प्रकार 5°C से कम तापमान होने पर फुलों, फलियों एवं शाखाओं में क्षति होती है।
राजमा के लिए मिट्टी और खेत की तैयारी (Soil and Field Preparation for Kidney Beans)
उपयुक्त भूमि: इस फसल की खेती हल्की बलुई, दोमट मिट्टी से लेकर भारी चिकनी मिट्टी में की जा सकती है। फिर भी अच्छे जल-निकास वाली उर्वर दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी पायी गई है। यह मिट्टी की क्षारियता के प्रति काफी संवेदनशील हैं। मिट्टी घुलनशील लवणों की अत्याधिकता से मुक्त होनी चाहिए और उसका पीएच मान 6.0-7.0 होना चाहिए।
खेत की तैयारी: राजमा (Kidney Bean) के बीज चूंकि बोल्ड एवं कठोर बीज-कवच वाले होते हैं, खेत की तैयारी अच्छी तरह करनी चाहिए। प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताईयाँ देशी हल या कंल्टिवेटर से करने के बाद पाटा चलाकर खेत समतल कर लेनी चाहिए। दीमक का प्रकोप रहने पर फसल सुरक्षा के लिए क्लोरपॉइरीफॉस (1.2 प्रतिशत) 20 किग्रा प्रति हेक्टयर की दर से अंतिम जुताई के समय मिट्टी में भली-भांति मिला देनी चाहिए। मिट्टी अगर अम्लीय हो तो 3-4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से चुने का प्रयोग लाभप्रद पाया गया है।
राजमा की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Kidney Beans)
राजमा (Kidney Bean) की बहुत सी किस्में हैं। इनमें से अच्छा उत्पादन देने वाली राजमा की कुछ किस्में इस प्रकार से हैं, जैसे-
मालवीय- 15: सफेद रंगी राजमा की यह प्रजाति 115 से लेकर 120 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 25 से लेकर 30 कुंतल इसकी पैदावार होती है।
मालवीय- 137: राजमा की यह प्रजाति लाल रंगी की होती है, जो 110 से लेकर 115 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 25 से लेकर 30 कुंतल इसकी उपज होती है।
पीडीआर- 14 (उदय): राजमा की लाल चित्तीदार रंगी प्रजाति है। 125 से लेकर 130 दिनों में यह तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 30 से लेकर 35 कुंतल इसकी पैदावार होती है।
वीएल- 63: राजमा की यह प्रजाति भूरा चित्तीदार होती है। 115 से लेकर 120 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी उपज भी प्रति हेक्टेयर 25 से लेकर 30 कुंतल होती है।
अंबर: राजमा (Kidney Bean) की यह प्रजाति लाल चित्तीदार होती है। यह 20 से लेकर 25 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी उपज 20 से लेकर 25 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है।
उत्कर्ष: गहरा लाल चित्तीदार रंग की यह प्रजाति 130 से 135 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 20 से लेकर 25 कुंतल इसकी उपज होती है।
एचयूआर- 15: सफेद दानों वाली किस्म है| इसके 100 दानों का वजन 40 ग्राम तक है, तथा 120 से 125 दिनों में पककर तैयार होती है| इसकी उपज 18 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|
झाड़ीदार किस्मों: (पंत अनुपमा, स्वर्ण प्रिया, अरका कोमल, स्ट्रींगलेस) को (फली के लिए) सितंबर-अक्टूबर, जनवरी-मार्च महीने में लगाना चाहिए। इसका बीजदर 80-90 किग्रा प्रति हेक्टेयर होता है और लगाने की दूरी 40 सेमी x 10 सेमी होनी चाहिए ।
लत्तीदार किस्मों: (केटकी वंडर, स्वर्ण लता) को (फली के लिए) मई-जून महीने में लगाना चाहिए। इसका बीज-दर 25-30 किग्रा प्रति हेक्टेयर होता है और इसे 75 सेमी x 15 सेमी की दूरी पर लगाया जाना चाहिए।
राजमा की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing Time for Kidney Bean Farming)
पहाड़ी स्थान पर जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक। देश के उत्तरी और पूर्वी भागों में राजमा (Kidney Bean) की बुआई का उपयुक्त समय अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से लेकर नवंबर के प्रथम सप्ताह तक होता हैं। देर से बुआई करने पर पौधों की वृद्धि में कमी आती है और उत्पादन काफी प्रभावित होता हैं।
राजमा की खेती के लिए बीज की मात्रा (Seed Quantity for Kidney Bean Cultivation)
राजमा (Kidney Bean) की फसल से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए 2.5 से 3.5 लाख पौधे प्रति हैक्टेयर अवश्य होने चाहिए। यह पौध संख्या दानों के भार के अनुसार प्रति 120 से 125 किलोग्राम बीज दर से प्राप्त की जा सकती है।
राजमा की खेती के लिए बीज उपचार (Seed Treatment for Kidney Bean Cultivation)
राजमा के बीजों को कैप्टन या ट्राइकोडर्मा या थीरम या कार्बेण्डाजीम 4 ग्रा प्रति किग्रा की दर से बीजोपचार करने पर आगे रोगों के आने की संभावना काफी कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त बीजों को जैव उर्वरक से भी 200 ग्राम प्रति 30 किग्रा बीज की दर से पानी या चावल के मॉड से उपचारित कर 30-45 मिनट छाया में सुखाकर बुवाई करनी चाहिए।
राजमा की खेती के लिए बुवाई विधि (Sowing Method for Kidney Bean Cultivation)
राजमा (Kidney Bean) की खेती के लिए लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर रखते है, और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते है, इसकी बुवाई 8 से 10 सेंटीमीटर की गहराई पर करते है।
राजमा की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizers for Kidney Bean Farming)
राजमा (Kidney Bean) की फसल में गाँढ़ नहीं बन पाने के कारण जैविक नेत्रजन स्थिरीकरण नहीं हो पाती है, इसलिए इसे अन्य दलहनी फसलों की अपेक्षा अधिक नेत्रजन की आवश्यकता होती है। सड़े हुए गोबर के खाद (एफवाईएम) का अधिकाधिक (15 टन प्रति हेक्टेयर) प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इससे मिट्टी की कार्बनिक मात्रा, जलधारण क्षमता, पोषण प्राप्ति में कुल मिलाकर के उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है। एफवाईएम से मिटटी की भौतिकीय, रसायनिक और जैव क्षमताओं में व्यापक बढ़ोतरी होती है।
नेत्रजन का 100-125 किग्रा के दर से, फास्फोरस का 60-70 किग्रा की दर से प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। नेत्रजन की आधी मात्रा लगाने के समय (बेसल) और शेष आधी मात्रा की प्रथम सिंचाई के बाद उपरिवेशन के रूप में देना चाहिए। इसके साथ ही 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर गंधक देने से भी काफी लाभ मिलता हैं। 2.0 प्रतिशत युरिया के घोल को बुआई के 30 दिन तथा 50 दिन में करने पर अच्छी उपज की प्राप्ति होती है।
राजमा की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Rajma Crop)
राजमा (Kidney Bean) की फसल उथली जड़ों के कारण नम भूमि को पसंद करती है और कठोर बीज कवच के कारण बोने के पहले सिंचाई देने की आवश्यकता होती है, इससे बीजों का अंकुरण अच्छा होता है। बोने के 25, 50, 75 और 100 दिनों बाद सिंचाई देना आवश्यक होता है। किसी कारण से जल जमाव होने पर निकासी शीघ्र प्रबंध करना चाहिए।
राजमा की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Kidney Bean Crop)
राजमा (Kidney Bean) फसल के आरंभिक अवस्था एक माह में खरपतवार प्रबंध की विशेष आवश्यकता होती है। राजमा के फसल में 1-2 निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। पहली निकाई-गुड़ाई पहली सिंचाई के बाद कर हल्की मिट्टी चढा देना लाभकारी होता है। खरपतवार के रसायनिक प्रबंधन के लिए पेन्डीमीथीलीन 0.75 – 1 किग्रा एआई प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर बुआई के बाद (अंकुरण के पहले) छिड़काव करना चाहिए।
राजमा फसल में रोग और कीट नियंत्रण (Disease and Pest Control in Rajma Crop)
रोग: एन्थ्रेक्नोज से प्रभावित पौधे के बीजपत्र पर पीले भूरे चित्तेदार धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियों के उपरी, निचली एवं साथ ही साथ तनों पर भी गहरे रंग के धारीदार धब्बे दिखाई देते हैं। इसके नियंत्रण के लिए थीरम + कार्बेन्डाजीम (2:1) 3 ग्राम प्रति किग्रा बीज से बीजोपचार करना चाहिए। मैकोजेब का 0.25 प्रतिशत (2.5 ग्राम प्रति लिटर) या कार्बेण्डाजीम 0.1 प्रतिशत (1 ग्राम प्रति लिटर) का 2-3 बार पत्तियों पर छिड़काव 40, 60 और 75 दिनों के पश्चात् करें। संक्रमित पौधों को नष्ट कर देना चाहिए एवं फसल चक्र अपनाना चाहिए।
इसके अलावा राजमा में तना गलन तथा कोणीय धब्बों का भी संक्रमण आता है, जिसे उपरोक्त कवकनाशी दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है।
कीट: कीड़ों में तना मक्खी के कारण तने फुल जाते हैं और दो हिस्सों में टूट जाते हैं, पार्श्व जड़े नहीं बन पाती है और अंकुरित पौधा सुखकर मर सकता है। इसके लिए क्लोरपाइरीफरस (8 मिली प्रति किग्रा) से बीजोपचार और फोरेट 10 जी (10 किग्रा प्रति हेक्टेयर) बुआई के समय प्रयोग करना चाहिए।
पर्ण सुरगक राजमा (Kidney Bean) का महत्वपूर्ण कीट है जिसमें पत्तियाँ पीली होकर झड़ जाती है। संक्रमित पौधे बोने ही रह जाते है। रोकथाम के लिए मिथाइल डेमेटोन (1 मिली प्रति लिटर) का छिड़काव, नीम के पानी का छिड़काव और संक्रमित पत्तियों को नष्ट कर देना चाहिए।
फली छेदक कीट से बचाव हेतु इमीडाक्लोरोप्रिड दवा का 1 लिटर प्रति 500 लिटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए।
राजमा फसल की तुड़ाई (Harvesting of Rajma Crop)
राजमा (Kidney Bean) की फलियाँ जब पककर तैयार हो जाती है। जब फली का रंग भुरा होने लगे और पौधे पीले होने को तब फसल की तुराई (साधारणतया: 120-130 दिनों बाद) करनी चाहिए। तुड़ाई के पश्चात् पौधों को धुप में 3-4 दिनों तक रखना चाहिए। थ्रेसिंग होनी के लिए बैल या डंडे का उपयोग करना चाहिए। साफ बीजों को सोडबीन में ठंढ़े एवं सुखे स्थानों पर भण्डारित करना चाहिए।
फली के लिए फसल की तुड़ाई कच्ची अवस्था में ही (फल आने के 7-12 दिनों बाद) कर लेनी चाहिए। झाड़ीदार किस्में जल्दी (50 दिनों में) तैयार हो जाती है। वहीं लतरदार किस्में 60-75 दिनों तैयार होने में लेती हैं। फली वाले फ्रेंचबीन के भण्डारण का तापमान 50-7°C होना चाहिए इस पर इसे 20-25 दिनों तक अच्छी तरह रखा जा सकता है।
राजमा की खेती से पैदावार (Yield From Kidney Bean Farming)
उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से राजमा (Kidney Bean) की खेती करने और फसल के अनुकूल परिस्थितियों में 20 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सिंचित खेती से मैदानी क्षेत्रों में तथा 7 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बारानी में उपज प्राप्त होती है। फली फ्रेंचबीन झाड़ीदार (70-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर), फली फ्रेंचबीन लत्तरदार (110-140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) प्राप्त होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
भारत में, यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश (यूपी), जम्मू और कश्मीर (जेएंडके), हिमाचल प्रदेश (एचपी), महाराष्ट्र और उत्तर-पूर्वी राज्यों में उगाया जाता है। हालाँकि, इसकी उत्पत्ति मध्य अमेरिका और दक्षिण मैक्सिको से हुई है।
परंपरागत रूप से राजमा (Kidney Bean) हिमालय की पहाड़ियों में खरीफ के दौरान उगाया जाता है, हालांकि बेहतर प्रबंधन के कारण मैदानी इलाकों में रबी में उच्च उपज प्राप्त की जा सकती है।
अनारदाना (अनार) की चटनी के साथ परोसा जाने वाला राजमा चावल जम्मू और कश्मीर के रामबन जिले के एक कस्बे पीराह और जम्मू और कश्मीर के डोडा जिले के अस्सार/बग्गर में एक प्रसिद्ध व्यंजन है।
राजमा (Kidney Bean) आमतौर पर वसंत के अंत तक कटाई के लिए तैयार हो जाता है, रोपण के लगभग 100 से 140 दिन बाद। परिपक्व बीन की फली भूसे के रंग की होगी, बाहर से सूखी और अंदर से सख्त होगी।
यह महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में 80-85 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है। हालाँकि, रबी और गर्मियों के दौरान इसकी खेती उत्तरी भारतीय मैदानी इलाकों में भी लोकप्रियता हासिल कर रही है।
उन्नत तकनीक से राजमा (Kidney Bean) की खेती करने पर 20-30 क्वींटल प्रति हेक्टेयर उपज होती है।
लाल राजमा यह राजमा आपने खूब खाई होगी। बाजारों में यह लाल राजमा ज्यादा मिलती है। लाल राजमा आयरन से भरपूर और बहुत रेशेदार होता है।
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