रबी की दलहनी फसलों में मसूर का प्रमुख स्थान है। मसूर की खेती (Lentil Farming) सभी प्रकार की मिट्टी, परिस्थितियों और असिंचित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। मसूर का उपयोग दाल, नमकीन एवं अन्य खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त मवेशियों के दाना व चोकर के रूप में किया जाता है। मसूर (Lentil) की दाल पोषक तत्वों के लिए एक सस्ता और प्रमुख स्रोत है।
इसमें 24-26 प्रतिशत प्रोटीन, 1.3 प्रतिशत वसा, 2.2 प्रतिशत लवण तथा पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, लोहा, विटामिन सी तथा राइबोफ्लोविन मौजुद होता है। इस फसल को उगाने से मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि के साथ-साथ भौतिक दशा में भी सुधार होता है। वैज्ञानिक विधि से खेती करके देश में मसूर (Lentil) का उत्पादन काफी हद तक बढ़ाया जा सकता है। अत: फसल की अच्छी पैदावार हेतु निम्नलिखित वैज्ञानिक विधियों को अपनाकर खेती करना लाभप्रद होगा।
मसूर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Lentil Cultivation)
मसूर की फसल (Lentil Crop) की वानस्पतिक वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु तथा पकने के समय गर्म जलवायु की आवश्यकता पड़ती है। सामान्यता: मसूर फसल के लिए 20 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। इस प्रकार की जलवायु में मसूर की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।
मसूर के लिए भूमि का चयन और तैयारी (Selection and Preparation of Land for Lentil)
मसूर सभी प्रकार की मृदाओं में उगाई जा सकती है। उत्तम जल निकास वाली दोमट मिट्टी मसूर की खेती (Lentil Cultivation) के लिये सबसे उपयुक्त मानी जाती है। खरीफ फसल काटने के पश्चात भूमि को एक गहरी जुताई कर लें तथा उसके बाद दो-तीन जुताई हैरो या देशी हल से करके पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें। बुआई के समय भूमि में उचित नमी का होना अति आवश्यक है।
मसूर की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced Varieties for Lentil Cultivation)
उन्नत किस्मों के प्रयोग से मसूर के उत्पादन में 20-30 प्रतिशत तक वृद्धि की जा सकती हैं। मसूर की खेती (Lentil Cultivation) के लिए उन्नत प्रजातियाँ निम्नलिखित है, जैसे-
उकटा प्रतिरोधी किस्में: पी एल- 02, वी एल मसूर- 129, वी एल- 133, वी एल- 154, वी एल- 125, पन्त मसूर (पी एल- 063), के एल बी- 303, पूसा वैभव (एल- 4147), आ- वी एल- 31 और आ पी एल- 316 प्रमुख है।
छोटे दाने वाली किस्में: पन्त मसूर- 4, पूसा वैभव, पन्त मसूर- 406, आ पी एल- 406, पन्त मसूर- 639, डी पी एल- 32 पी एल- 5, पी ए- 6 और डब्लू बी एल- 77 आदि प्रमुख है।
बड़े दाने वाली किस्में: डी पी एल- 62, सुभ्रता, जे एल- 3, नूरी (आई पी एल- 81), पी एल- 5, एल एच- 84-6, डी पी एल-15 (प्रिया), लेन्स- 4076, जे एल- 1, आई पी एल- 316, आई पी एल- 406 और पी एल- 7 आदि प्रमुख है।
मसूर की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing Time for Lentil Cultivation)
मसूर (Lentil) की अच्छी फसल के लिए मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक का समय सर्वोत्तम है। बुआई के समय कतार से कतार की दूरी 25-30 सेंमी तथा पौधा से पौधा की दूरी 8-10 सेंमी रखें।
मसूर की खेती के लिए बीज और उपचार (Seeds and Treatment for Lentil Cultivation)
एक एकड भूमि में बुआई के लिये 10-12 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। बुआई से पूर्व प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम बेविस्टीन से उपचारित कर लें। ऐसा करने से बीज द्वारा आने वाली बीमारियाँ नष्ट हो जाती है। यदि खेत में मसूर की फसल पहली या 4-5 वर्ष के बाद उगाई जा रही है, तो बीज के बुआई से पूर्व मसूर के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना चाहिए। 10 किग्रा बीज के लिये एक पैकेट (200 ग्राम) राइजोबियम कल्चर (जीवाणु खाद) पर्याप्त रहता है। प्रयोग विधि पैकेट पर लिखी होती है।
मसूर की खेती के लिए बुवाई की विधि (Sowing Method for Lentil Cultivation)
मसूर (Lentil) की बुवाई देशी हल या सीड ड्रिल से पंक्तियों में करें। सामान्य दशा में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेंटीमीटर तथा पंक्ति में पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर और देर से बुवाई की स्थिति में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर ही रखें पौधे से पौधे की बीच की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर रखे। बीज 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए।
उतेरा विधि से बोआई करने हेतु कटाई से पूर्व ही धान की खड़ी फसल में अन्तिम सिंचाई के बाद बीज छिटक कर बुआई कर देते है। इस तकनीक में खेत तैयार करने की आवश्यकता नहीं होती, किन्तु अच्छी उपज लेने के लिए सामान्य बुवाई की अपेक्षा 1.5 गुना अधिक बीज दर का प्रयोग करना चाहिए।
पानी भराव वाले क्षेत्रों में वर्षा का पानी हटने के बाद, सीधे हल से बीज नाली बना कर बुआई की जा सकती है। गीली मिट्टी वाले क्षेत्रों में जहाँ हल चलाना संभव न हो बीज छींट कर बुआई कर सकते हैं। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए मसूर (Lentil) की बुवाई सीड ड्रिल या हल के पीछे पंक्तियों में ही करना चाहिए।
मसूर की खेती के लिए उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management for Lentil Cultivation)
मसूर की अच्छी फसल लेने के लिए प्रति एकड़ 8 किग्रा नाइट्रोजन की 16 किग्रा फॉस्फोरस तथा 8 किग्रा पोटाश बुआई के पहले कतारों में डाल दें। मसूर (Lentil) की फसल प्रायः धान फसल के कटाई के बाद ली जाती है। इस कारण मृदा जिंक तत्व की कमी होजाती है। इस कमी को दूर करने के लिए 6-8 किग्रा जिंक सल्फेट प्रति एकड़ की दर से उर्वरकों के साथ प्रयोग करें।
मसूर की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed Control in Masoor Crop)
अनुसंधान में पाया गया है कि खरपतवारों के कारण मसूर (Lentil) की उपज में 40 से 60 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। यांत्रिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए फसल को बुआई के 25-30 दिन व 45-50 दिन बाद दो निराई-गुड़ाई आवश्यकतानुसार की जानी चाहिए। रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए बेसालिन 0.75 सक्रिय तत्व को 320-400 लीटर पानी घोलकर प्रति एकड की दर से बुआई से पहले मिट्टी को हैरो या कल्टीवेटर की सहायता से मिला दें।
मसूर की फसल के रोग और नियंत्रण (Diseases and Control of Masoor Crop)
मसूर (Lentil) को मुख्यत: दो फफूँदीजनित रोग ‘उकठा’ और ‘रतुआ’ सर्वाधिक नुकसान पहुँचाते है। रोकथाम के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
उकठा: उकठा रोग के प्रकोप से पौधे पीले पड़कर सूख जाते है। उकठा प्रभावित क्षेत्र में लम्बी अवधि का फसल चक्र अपनाना चाहिए। रोगरोधी किस्में जैसे पीएल- 406 और और पीएल- 639 का प्रयोग करना चाहिए।
रतुआ: रतुआ रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियों और तने पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है। इससे पौधे की प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिससे फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस रोग की रोकथाम हेतु रोगरोधी किस्मों जैसे एल- 9-12 और पीएल- 406 का प्रयोग करना चाहिए तथा इसके नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
मसूर की फसल के कीट और नियंत्रण (Pests of Masoor Crop and Their Control)
मसूर की फसल (Lentil Crop) को मुख्य रूप से रोयेंदार गिडार, माहू और फली छेदक अधिक हानि पहुँचाते हैं। रोयेंदार गिड़ार की रोकथाम के लिए 500 मिली थायोडान को 230 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ फसल पर छिड़काव करे। माहू और फली छेदक की रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफॉस 36 ईसी की 320 मिली मात्रा को 320 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करे।
मसूर की फसल की कटाई और उपज (Harvesting and Yield of Lentil Crop)
जब फलियाँ और पत्तियाँ भूरी पड़ जाये, तब फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। काटे हुए फसल को धूप में सुखाकर भली-भांति दौनी कर ले। उपरोक्त उन्नत सस्य विधियों और नवीन किस्मों की सहायता से मसूर की खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 15 से 25 क्विन्टल तक उपज प्राप्त की जा सकती है। दौनी की गयी फसल को 2-3 दिनों तक धूप में सुखाकर भण्डारण करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
मसूर की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली, तटस्थ प्रतिक्रिया वाली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। अम्लीय मिट्टी मसूर की खेती (Lentil Cultivation) के लिए उपयुक्त नहीं होती। मिट्टी भुरभुरी और खरपतवार रहित होनी चाहिए ताकि बीज एक समान गहराई पर बोया जा सके। भारी मिट्टी पर, एक गहरी जुताई के बाद दो से तीन क्रॉस हैरोइंग करनी चाहिए।
असिंचित अवास्था में नमी उपलव्ध रहने पर अक्टूवर के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक मसूर की बोनी करना चाहियें। सिंचित अवस्था में मसूर (Lentil) की बोनी 15 अक्टूबर से 15 नवम्वर तक की जनी चाहिये।
इसकी औसत पैदावार 5.5-6.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
मसूर की खेती (Lentil Cultivation) असिंचित और बरानी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। यदि सर्दियों में एक बार वर्ष हो जाती है, तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। सिंचाई की व्यवस्था हो तो हल्की प्रथम सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद तथा दूसरी सिंचाई फलियों में दाने भरते समय करें।
मसूर (Lentil) की पूसा शिवालिक (एल 4076) किस्म करीब 120 से लेकर 125 दिन की अवधि में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार प्रति एकड़ 6 क्विंटल तक प्राप्त की जा सकती है।
मसूर एक प्रमुख दलहनी फसल है, इसलिये इसकी बुवाई से पहले मिट्टी की जांच और खेत की तैयार जरूर कर लें। रबी सीजन में ही मसूर की खेती (Lentil Cultivation) की जाती है। इससे अधिक पैदावार के लिये 15 अक्टूबर से लेकर 15 नवंबर तक बुवाई कर देनी चाहिये। इसकी खेती के लिये हल्की दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है।
मसूर (Lentil) को उकटा और जड़ सड़न रोग से बचाव हेतु बीज को बुआई से पूर्व थायरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलो बीज या ट्राइकोडर्मा विरडी 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। इसके उपरान्त बीज को राइजोवियम एवं पीएसबी कल्चर प्रत्येक की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।
Leave a Reply