Corn Farming in Hindi: मक्का (Maize) की खेती भारत के कृषि परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जो खाद्य सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि दोनों में योगदान देती है। एक समृद्ध ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुकूलित विविध किस्मों के साथ, मक्का देश की कृषि पद्धतियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अन्य फसलों की तुलना में मक्का अल्प समय में पकने और अधिक पैदावार देने वाली फसल है।
इसमे कार्बोहाइड्रेट 70 प्रोटीन 10 और तेल 4 प्रतिशत पाया जाता है। ये सब तत्व मानव शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक है। अगर किसान भाई थोड़े से ध्यान से और आज की तकनीकी के अनुसार खेती करे, तो इस फसल की अधिक पैदावार से अच्छा मुनाफा ले सकते है।
सफल मक्का उत्पादन के लिए जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताओं के साथ-साथ खेती की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है। यह लेख भारत में मक्का की खेती (Maize Cultivation) की पेचीदगियों का पता लगाता है, इसके ऐतिहासिक महत्व, वैराइटी विविधता, खेती की तकनीक, कीट और रोग प्रबंधन, सरकारी सहायता और देश में मक्का किसानों के सामने आने वाली भविष्य की प्रवृत्तियों और चुनौतियों पर चर्चा करता है।
मक्का की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for maize cultivation)
मक्का एक उष्णकटिबंधीय पौधा है और इसे 10 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान वाले क्षेत्रों में साल भर उगाया जा सकता है। मक्का की अच्छी बढ़वार हेतु अच्छी धूप की आवश्यकता होती है। बुवाई के समय वायुमण्डल का तापक्रम 18- 20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। यदि तापक्रम 9 – 10 डिग्री सेल्सियस होता है तो मक्का का अंकुरण प्रभावित होता है। मक्का (Maize) की बढवार हेतु 25–30 डिग्री सेल्सियस तापक्रम उपयुक्त होता है।
मक्का की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for maize cultivation)
मक्का की खेती (Maize Cultivation) के लिए उचित जल निकास युक्त बलुई मटियार से दोमट मृदा, जिसमें वायु संचार एवं पानी के निकास की उत्तम व्यवस्था हो तथा पीएच मान 6.5 से 7.5 के आस-पास हो उस मिट्टी में मक्का की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। मिट्टी में खुराकी तत्वों की कमी पता करने के लिए, मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए। लवणीय तथा क्षारीय भूमियां मक्का की खेती के लिए उपयुक्त नहीं रहती।
मक्का की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for maize cultivation)
मक्का की खेती (Maize Cultivation) के लिए खेत की तैयारी जून के प्रथम सप्ताह मैं शुरु कर देनी चाहिए, खरीफ की फसल के लिए एक गहरी जुताई करनी चाहिए, अगर खेत गर्मियों में खाली है तो जुताई गर्मियों में करना अधिक लाभप्रद रहता है। इस जुताई से खरपतवार व रोगों की रोकथाम में सहायता मिलती है, साथ ही खेत की नमी को बनाए रखने के लिए कम से कम समय पर जुताई करके तुरंत पाटा लगाना लाभदायक रहता है।
जुताई का मुख्य उद्देश्य मिट्टी को भुरभुरी बनाना है। यदि गोबर की खाद का प्रयोग करना हो तो इसे अंतिम जुताई के समय पूर्ण रूप से सड़ी हुई 15 से 20 टन गोबर की खाद को जमीन में अच्छी तरह से मिलाएं।
मक्का की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for maize cultivation )
अति शीघ्र पकने वाली किस्में (75 दिन से कम): जवाहर मक्का 8 विवेक 4, विवेक- 17, विवेक 43, विवेक 42 और प्रताप हाइब्रिड मक्का 1 आदि प्रमुख है।
शीघ्र पकने वाली किस्में (85 दिन से कम): जवाहर मक्का 12 अमर, आजाद कमल, पंत संकुल मक्का 3 चन्द्रमणी, प्रताप 3, विकास मक्का 421 हिम 129, डीएचएम 107, डीएचएम 109 पूसा अरली हाइब्रिड मक्का 1, पूसा अर्ली हाइब्रिड मक्का 2, प्रकाश, पीएमएच 5 प्रा 68, एक्स 3342, डीकेसी 7074, जेकेएमएच 175 और हाशेल व बायो- 9637 आदि प्रमुख है।
मध्यम अवधि में पकने वाली किस्में ( 95 दिन से कम): जवाहर मक्का 216, एचएम 10 एचएम 4, प्रताप 5, पी 3441, एनके 21, केएमएच 3426 के एमएच 3712 एनएमएच 803 और बिस्को 2418 आदि मुख्य है।
देरी से पकने वाली किस्में ( 95 दिन से अधिक ): गंगा 11 त्रिसुलता, डेक्कन 101, डेक्कन 103 डेक्कन 105, एचएम 11 एचक्यूपीएम 4, सरताज प्रो 311, बायो 9681, सीड टैंक 2324, बिस्को 855, एनके 6240 और एसएमएच 3904 आदि प्रमुख है।
विशिष्ट मक्का की किस्में-
बेबीकॉर्न: वीएल 78, पीईएचएम 2, पीईएचएम 5 और वीएल बेबी कॉर्न 1 आदि प्रमुख है।
पॉपकॉर्न: अम्बर पॉप, वीएल अम्बर पॉप और पर्ल पॉप आदि प्रमुख है।
स्वीट कॉर्न: माधुरी, प्रिया, विन ओरेंज और एससीएच 1 आदि प्रमुख है।
उच्च प्रोटीन मक्का: एचक्यूपीएम 1, 5 व 7, शक्तिमान 1, 2, 3 व 4 और विवेक क्यूपीएम 9 आदि प्रमुख है।
पशु चारा किस्मे: जे 1006, प्रताप चरी 6 और अफ्रीकन टाल इत्यादि प्रमुख है।
मक्का की बुवाई का समय और बीज की मात्रा (Maize sowing time and seed quantity)
बीज दर: मक्का फसल (Maize Crop) के बीज शीघ्रता से अपनी अंकुरण क्षमता खो देते हैं, इसलिए ये आवश्यक है कि बोने से पूर्व बीज का अंकुरण प्रतिशत जॉच करें। बुवाई के लिए संकर किस्म 18 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, कम्पोजिट किस्म 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, हरे चारे के लिए 40 से 45 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए हर साल नया बीज खरीदकर प्रयोग करें।
बुवाई का समय: मक्का की फसल (Maize Crop) मुख्यत खरीफ ऋतु में ली जाती है। खरीफ ऋतु में बुवाई मानसून पर निर्भर रहती है, जहां पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध रहती है वहां खरीफ में बुवाई का उपयुक्त समय मध्य जून से मध्य जुलाई, रबी में अक्टूबर से नवंबर तक तथा जायद में फरवरी से मार्च के बीच में बुवाई कर देनी चाहिए।
मक्का के बीज का उपचार और बुवाई की विधि (Treatment of corn seeds and method of sowing)
बीज उपचार: बीज को रात भर पानी में भिगोने तथा सुबह छायादार जगह पर सुखा कर बोने से अंकुरण जल्दी होता है तथा बीज को बीज एवं मृदा जनित रोगों और कीट व्याधियों से बचाने के लिए बुवाई से पूर्व कवकनाशी तथा कीटनाशकों जैसे बाविस्टीन तथा कैप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या एप्रोन 35 एसडी और इमिडाक्लोप्रिड या फिप्रोनिल 4 मिली प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करने के बाद जैविक उर्वरको जैसे जोस्पिरिलम, पी.एस.बी कल्चर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम मक्का (Maize) बीज का उपचार करके बुवाई करनी चाहिए।
बुवाई की विधि: पौधों की जड़ों को पर्याप्त नमी और जलभराव से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बीज को मेड़ों पर बोया जाए, बुवाई उचित दूरी (पंक्ति से पंक्ति 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेमी) पर ही लगाना चाहिए। आजकल विभिन्न बीज माप प्रणालियों के प्लांटर उपलब्ध हैं, प्लांटर का उपयोग करने से एक ही बार में बीज उर्वरको को उचित स्थान पर डालने में मदद मिलती है। परंतु चारे के लिए मक्का (Maize) की बुवाई सीडड्रिल द्वारा करनी चाहिए, बुवाई के 1 माह पश्चात मिट्टी चढ़ाने का कार्य करना चाहिए।
मक्का की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management in Corn Crop)
मक्का एक खाद्यान्न फसल है, इसलिए इसको पोषक तत्वों की अधिक मात्रा में आवश्यकता रहती है तथा मक्का की अधिक उपज के लिए बुवाई से पहले मिट्टी की जांच करवाना अति आवश्यक है। बुवाई से 10 से 15 दिन पूर्व खेत में भली-भांति सड़ी हुई 15-20 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर मिला देनी चाहिए तथा 90-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 से 40 किलोग्राम फास्फोरस, 30 से 40 किलोग्राम पोटाश तथा जस्ते की कमी वाले क्षेत्रों में जिंक सल्फेट 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय डाल देना चाहिए।
फास्फोरस, पोटाश और जिंक की पूरी मात्रा तथा 1/3 नाइट्रोजन को बुवाई के समय देना चाहिए, शेष नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बाद में देनी चाहिए 30 प्रतिशत नाइट्रोजन मक्का की फसल (Maize Crop) में 8 पत्तियां आने के समय देनी चाहिए।
मक्का की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Maize Crop)
मक्का कम व अधिक पानी दोनों में ही संवेदनशील होता है, मक्का एक ऐसी फसल है जो ना सूखा सहन कर सकती और ना ही अधिक पानी सहन कर सकती है। अतः मक्का फसल (Maize Crop) में उचित जल प्रबंधन हेतु निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। खेत में जल निकासी के लिए नालियां, खेत की ढलान के अनुसार बुवाई के समय ही तैयार कर देनी चाहिए व समय पर अतिरिक्त पानी कि निकासी कर देनी चाहिए।
वर्षा ऋतु में वर्षा सामान्य रही तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि भारत में लगभग 80 प्रतिशत मक्का विशेष रूप से वर्षा सिंचित क्षेत्रों में उगाया जाता है। मक्का (Maize) जब 10 से 15 दिन का हो जाए तब इसमें मिट्टी चढ़ा देना चाहिए जिसमें कतारों के बीच नालियां बन जाए जो वर्षा नही होने की स्थिति में पानी देने के काम व अधिक वर्षा की स्थिति में जल निकासी के काम में आ सकेगी।
फसल को सिंचाई की आवश्यकता हो उसी समय सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई की दृष्टि से नई पौध की ऊंचाई घुटनों तक, फूल आने तथा दाने भराव की अवस्थाएं सबसे संवेदनशील होती है। इन अवस्थाओं में अगर सिंचाई की सुविधा हो तो सिंचाई अवश्य करनी चाहिए अन्यथा उपज में काफी कमी हो जाती है।
मक्का की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in maize crop)
मक्का (Maize) की अच्छी उपज हेतु खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है, यदि बरसात के दिनों में निराई गुड़ाई के लिए समय नहीं मिल पाता है तो शाकनाशीयों का प्रयोग भी कर सकते हैं। वर्षा ऋतु में खरपतवारनाशीयों के प्रयोग से लाभदायक परिणाम मिलते हैं। शाकनाशी रसायनों में एट्राजीन (50 प्रतिशत डब्ल्यूपी) के प्रयोग से 1 वर्षीय घास तथा चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवारो का नियंत्रण हो जाता है।
लेकिन दूब, मोथा व केना आदि खरपतवार नहीं मरते हैं। अतः इनको खुरपी से खेत मे से निकाल कर नियंत्रण किया जा सकता है। एट्राजीन की मात्रा भूमि के प्रकार पर निर्भर करती है, जो हल्की मिट्टियों में कम तथा भारी मिट्टियों में अधिक होती है। 0.5 किलोग्राम एट्राजीन प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है, जिसको लगभग 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के तुरंत बाद छिड़काव करना चाहिए।
मृदा सतह पर छिड़काव के समय नमी का होना अति आवश्यक है। सामान्यत खरीफ ऋतु के मौसम में खरपतवारो की समस्या अधिक रहती है, जो मक्का फसल (Maize Crop) से पोषण, जल व प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं जिसके कारण उपज में 10 से 40 प्रतिशत तक नुकसान होता है। मक्का की फसल के प्रमुख खरपतवार निम्न प्रकार से हैं, जैसे-
(1) संकीर्ण पत्तियों वाले खरपतवार जैसे सावा, गूंज घास, वाइपर घास, मकरा, चिरचिटा, बनचरी, बंदरा, नरकुल, दूब तथा मोथा आदि।
(2) चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवार जैसे कुनरा घास, कुंद्रा घास, चौलाई, साठी, कंकूबा, हजार दाना, जंगली जूट, सफेद मुर्गा, कोई, हुलहुल तथा गोखरू आदि।
मक्का की फसल में कीट प्रबंधन (Pest Management in Corn Crop)
तना भेदक: मक्के (Maize) में तना भेदक का लार्वा मुख्य रूप से हानिकारक होता है। तना भेदक के पतंगे पत्तियों पर अंडे देते हैं, इनकी सुंडी गोभ में घुसकर में पौधों को नष्ट कर देती है पौधा यदि 20 से 25 दिन तक बच जाए तो उसमें तना भेदक के लिए प्रतिरोधक क्षमता प्रबल हो जाती है।
नियंत्रण: तना भेदक का प्रकोप अधिक हो तो इसकी रोकथाम के लिए पौधे जमने के 10-12 दिन के पश्चात प्रति हेक्टेयर 8 ट्राइकोकार्ड का रिलीज करने से भी इनकी रोकथाम की जा सकती है।
दीमक: दीमक मक्का (Maize) तने के साथ सुरंग बनाकर पौधों को नष्ट कर देती है। ग्रसित पौधा हाथ से खींचने पर आसानी से बाहर आ जाता है व खोखली जड़ों में मिट्टी नजर आती है।
नियंत्रण: दीमक के प्रकोप वाले क्षेत्रों में क्लोरपाइरीफोस से उपचारित बीजों का प्रयोग करना चाहिए। पहली फसल के अवशेष खेत में नहीं रहने देने चाहिए हल्का पानी लगाने के बाद फिप्रोनिल के दाने उचित जगह पर डालने चाहिए।
फॉल आर्मी वर्म: यह सैन्य कीट है जो पत्तियों और मक्का (Maize) के भुट्टो को चट कर जाता है फॉल आर्मीवर्म कीटके प्रकोप का खतरा वातावरण में नमी के कारण अधिक बढ़ जाता है जिससे मक्के की पौधे को बढ़ने की शक्ति को समाप्त कर देता है और यदि समय पर इसका नियंत्रण नहीं किया गया तो पूरा पौधा ही चट कर जाता है।
नियंत्रण: कीट के नियंत्रण हेतु मक्का की फसल के लिए न्यायोचित तरीके से अनुशंसित रसायन या इमामेक्टीनबेंजोएट 6 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी या स्पिनोसेड 45 एससी का 200 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर, थायोमेथक्साम 12.6 प्रतिशत के साथ लेम्डसाइलो हेलेथ्रीन 9.5 प्रतिशत मिली लीटर या थायोडिकार्प 75 प्रतिशत डब्लूपी मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करें।
स्पाइनो सेड 48 एससी या 45 एससी प्रति 0.3 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें। इससे बहुत हद तक कीट के प्रकोप को रोका जा सकता है।
मक्का की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in maize crop)
पत्ती झुलसा: पत्ती झुलसा मक्का (Maize) की निचली पत्तियों से शुरु होकर ऊपर की ओर बढ़ता है। लंबे, अंडाकार, भूरे धब्बे पत्ती पर पड़ते हैं, जो पत्ते की निचली सतह पर ज्यादा साफ दिखते हैं।
नियंत्रण: रोकथाम हेतु 2 5 ग्राम मेन्कोजेब या 3 ग्राम प्रोबिनेब या 2 ग्राम डाईथेन जेड- 78 या 1 मिलीलीटर फेमोक्साडोन 16.6 प्रतिशत + सायमेक्सानिल 22.1 प्रतिशत एस सी या 2.5 ग्राम मेटालैक्सिल या 3 ग्राम सायमेक्सेनिल + मेंकोजब प्रति लीटर पानी में छिड़कें 10 दिन अन्तराल के बाद फिर छिड़काव करें।
जीवाणु तना सड़न: जीवाणु तना सड़न में मुख्य तना मिट्टी के पास से भूरा, पिलपिला एवं मुलायम हो कर वहां से टूट जाता है। सड़ते हुए भाग से शराब जैसी गंध आती है।
नियंत्रण: अधिक नाइट्रोजन न डालें, खेत में पानी भरा न रहने दें। खेत में बुवाई के समय फिर गुडाई के वक्त व फिर नर फूल निकलने पर 6 किलोग्राम प्रति एकड़ ब्लीचिंग पाउडर तने के पास डालें। इसे यूरिया के साथ कतई भी न मिलाएं, दोनों को कम से कम 1 सप्ताह के अंतर पर डालें।
रोग दिखाई देने पर 15 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन अथवा 60 ग्राम एग्रीमाइसीन तथा 500 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से अधिक लाभ होता है।
भूरा धारीदार मृदुरोमिल आसिता: भूरा धारीदार मृदुरोमिल आसिता रोग में पत्ते पर हल्की हरी या पीली 3 से 7 मिलीमीटर चौड़ी धारियां पड़ती हैं, जो बाद में गहरी लाल हो जाती है। नम मौसम में सुबह के समय उन पर सफेद या राख के रंग की फंफूद नजर आती है।
नियंत्रण: रोकथाम हेतु लक्षण दिखने पर मेटालेक्सिल + मेंकोजेब 30 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी का छिड़काव करें, 10 दिन बाद पुनः दोहराएं।
रतुआ: मक्का (Maize) पत्तों की सतह पर छोटे लाल या भूरे, अंडाकार, उठे हुए फफोले पड़ते हैं। ये पत्ते पर अमूमन एक कतार में पड़ते हैं।
नियंत्रण: रोकथाम हेतु हैक्साकोनाजोल या प्रोपिकोनाजोल 15 मिलीलीटर प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें, 15 दिन बाद पुन दोहराएं।
तुलासिता रोग: इस रोग में पत्तियों पर पीली धारियां पड़ जाती है। पत्तियों के नीचे की सतह पर सफेद रूई के समान फफूंदी दिखाई देती है। ये धब्बे बाद में गहरे अथवा लाल भूरे पड़ जाते हैं। रोगी पौधे में भुट्टा कम बनते हैं या बनते ही नहीं हैं। रोगी पौधे बौने एवं झाड़ीनुमा हो जाते हैं।
नियंत्रण: इनकी रोकथाम के लिए जिंक मैगनीज कार्बामेट या जीरम 80 प्रतिशत, दो किलोग्राम अथवा 27 प्रतिशत के तीन लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव आवश्यक पानी की मात्रा में घोलकर करना चाहिए।
मक्का फसल की कटाई (Harvesting of Maize Crop)
मक्का फसल (Maize Crop) की अवधि पूर्ण होने के पश्चात अर्थात् चारे वाली फसल बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी किस्म बोने के 75-85 दिन बाद, व संकर एवं संकुल किस्म बोने के 90-115 दिन बाद तथा दाने मे लगभग 25-30 प्रतिशत तक नमी हाने पर कटाई करनी चाहिए।
कटाई के बाद मक्का फसल में सबसे महत्वपूर्ण कार्य गहाई है इसमें दाने निकालने के लिये सेलर का उपयोग किया जाता है। सेलर नहीं होने की अवस्था में साधारण थ्रेशर में सुधार कर मक्का की गहाई की जा सकती है। इसमें मक्के के भुट्टे के छिलके निकालने की आवश्यकता नहीं है। सीधे भुट्टे सुखे होने पर थ्रेशर में डालकर गहाई की जा सकती है।
मक्का की फसल से उपज और भंडारण (Yield and storage of maize crop)
उपज: मक्का (Maize) की शीघ्र पकने वाली किस्मों से 50-60 क्विटल प्रति हेक्टेयर, मध्यम पकने वाली किस्मों से 60-65 क्विटल प्रति हेक्टेयर, देरी से पकने वाली किस्मों से 65-70 क्विटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है
भण्डारण: कटाई व गहाई के पश्चात प्राप्त दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करना चाहिए। यदि दानों का उपयोग बीज के लिये करना हो तो इन्हें इतना सुखा लें कि नमी करीब 12 प्रतिशत रहे।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (RAQs)
मक्का की खेती के लिए पर्याप्त जीवांश वाली दोमट भूमि अच्छी होती है। भली-भांति समतल एवं अच्छी जल धारण शक्ति वाली भूमि मक्का की खेती के लिए उपयुक्त होती है। पलेवा करने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 10-12 सेमी गहरी एक जुताई तथा उसके बाद कल्टीवेटर या देशी हल से दो-तीन जुताइयां करके पाटा लगाकर खेत की तैयारी कर लेनी चाहिए। मक्का (Maize) के बीज को 3.5-5.0 सेमी गहरा बोना चाहिए, जिससे बीज मिट्टी से अच्छी तरह से ढक जाए तथा अंकुरण अच्छा हो सके।
मक्का मुख्य रूप से गीले और गर्म जलवायु में उगाया जाता है। यह खरीफ की फसल है और इसलिए यह बरसात के मौसम में सबसे अच्छी तरह से उगती है। भारत में, बरसात का मौसम जून के महीने में शुरू होता है और सितंबर के महीने में समाप्त होता है। इस प्रकार, भारत में मक्का (Maize) जून से सितंबर तक उगाया जाता है।
मक्का (Maize) सभी मौसमों में उगाया जा सकता है जैसे खरीफ (मानसून), मानसून के बाद, रबी (सर्दियों) और वसंत। रबी और वसंत ऋतु के दौरान किसानों के खेत में अधिक उपज प्राप्त करने के लिए सुनिश्चित सिंचाई सुविधाओं की आवश्यकता होती है।
नाइट्रोजन: नाइट्रोजन मक्का की फसल (Maize Crop) की वृद्धि, उपज और गुणवत्ता में सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व और भूमिका निभाता है। पत्तियों की अच्छी वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए नाइट्रोजन उर्वरक आवश्यक है। छोटी पत्तियों के कारण प्रकाश संश्लेषण कम होता है, जो अनाज में स्टार्च भंडारण के लिए आवश्यक प्रक्रिया है।
मक्के (Maize) की उच्च पैदावार प्राप्त करने के लिए नाइट्रोजन महत्वपूर्ण है। यह फसल की वृद्धि और विकास को बढ़ावा देता है और इसे आसानी से उपलब्ध होना चाहिए। हरी पत्तियों के निर्माण और रखरखाव, प्रकाश संश्लेषण को अधिकतम करने और मक्के की फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन महत्वपूर्ण है।
मक्का फसल (Maize) अवधि चारे वाली फसल बोने के 60-65 दिन बाद, दाने वाली देशी किस्म बोने के 75-85 दिन बाद और संकर एवं संकुल किस्म बोने के 90-115 दिन बाद तथा दाने मे लगभग 25 प्रतिशत् तक नमी हाने पर कटाई करनी चाहिए।
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