
Makchari Farming in Hindi: मकचरी, मक्के की तरह दिखाई देने वाली फसल है। यह अपेक्षाकृत अधिक वर्षा वाले क्षेत्रां में भी जहाँ पानी निकास का उतम प्रबन्ध न हो वहाँ सफलता पूर्वक उगाई जा सकती है। जबकि मक्का बिल्कुल ही जलमग्नता को सहन नही कर सकती, ऐसी भूमि के लिए यह उत्तम मानी गयी है। मकचरी को चारे के लिए बुवाई के 70-75 दिन बाद काटते हैं।
इसमें मक्के की तुलना में अधिक शाखाएं होती है, जिसके कारण यह मक्का से अधिक चारे की पैदावार देती है। यह मक्के की अपेक्षा अधिक दिन तक हरी रहती है। यह एक उत्तम चारा प्रदान करने वाली तथा लगभग अधिकाँश बीमारियों एवं कीट पतंगों से स्वतंत्र रहने वाली चारा फसल है। यह जानवरों के लिए स्वादिष्ट और पोषक चारा है। जिसमें लगभग 7-9 प्रतिशत क्रेड प्रोटीन, पाचकता 60-62 प्रतिशत वसा 2-3 प्रतिशत, कैलिसयम 0.16 प्रतिशत फासफोरस, 0.09 प्रतिशत, पोटाश 1.25 प्रतिशत पाया जाता है।
जहाँ मक्का एक बार में एक ही कटान देती है, वहीं पर मकचरी से 2-3 कटान प्राप्त की जा सकती हैं। सामान्य रूप से यह विषैले पदार्थों से मुक्त होती है। इसे उगाने में बिहार, बंगाल, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और तामिलनाडू प्रमुख हैं। इस लेख में मकचरी की उन्नत खेती (Advanced Makchari Cultivation) की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है।
मकचरी के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Makchari)
मकचरी की खेती (Makchari Cultivation) के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्र, जहां अच्छी बारिश होती है, मकचरी के लिए बेहतरीन होते हैं। यह वायुमण्डल में अधिक नमी एवं निचली भूमि वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगायी जाती है।
इसकी अच्छी वृद्धि के लिए उपयुक्त तापमान 30-35 डिग्री सेंटीग्रेट होता है। मकचरी को अच्छी बारिश की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर 50-75 सेमी के बीच होती है।
मकचरी के लिए भूमि का चयन (Selection of land for Makchari)
मकचरी की खेती (Makchari Cultivation) के लिए अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है, जिसका पीएच 5.5 से 7.0 के बीच होना चाहिए। ये मिट्टीएं अच्छी तरह से जल निकासी करती हैं और पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं। अच्छी पैदावार लेने के लिए सिंचाई एवं जल निकास का अच्छा प्रबन्ध होना भी आवश्यक है।
मकचरी के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Makchari)
मकचरी की बुआई के लिए एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने के बाद दो बार विपरीत दिशा में हैरो या देसी हल चलाकर पाटे की सहायता से भूमि को समतल, भुरभुरा तथा खरपतवारों से रहित कर लेना चाहिए। चारा मकचरी (Makchari) की बुआई के 15-20 दिन पहले उचित मात्रा में अच्छी गली – सड़ी गोबर की खाद डालकर मृदा में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए।
मकचरी के लिए फसल चक्र (Crop rotation for Makchari)
गन्ने की पेडी, सरसो/लाही, जई, आलू आदि फसलों के बाद मकचरी की फसल (Makchari Crop) उगायी जा सकती है। इसको गेहुँ की कटाई के बाद भी बोया जा सकता है। चारे की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए इसे लोबिया अथवा ग्वार जैसी फलीदार फसलों के साथ भी मिलाकर बोना चाहिए। इसके लिए निम्न चारा फसल चक्र अपनाये जा सकते है, जैसे-
मकचरी – लोबिया-सरसो / शलजम – जई सरसो – 1 वर्ष
ज्वार/बाजरा – मकचरी – लोबिया – बरसीम – सरसो – 1 वर्ष
ज्वार/ मक्का – मकचरी – लोबिया-जई – सरसो – 1 वर्ष आदि।
मकचरी की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Makchari)
मकचरी (Makchari) की कुछ उन्नत किस्मों में टीएल- 1, इम्प्रूव्ड मकचरी, प्रपात मक्का- 6, अफ्रीकन टाल, गंगा- 2, गंगा- 5, जे- 1006, गंगा- 6 और गंगा- 7 आदि किस्में हैं, जो हरे चारे के लिए उपयुक्त हैं। टीएल- 1 किस्म दानों के सुरंगी कीटों के प्रतिरोधी होती है और इसके पत्ते पकने तक हरे रहते हैं।
यह किस्म 1994 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा विकसित की गयी। यह अच्छी उपज देने वाली किस्म है, और इम्प्रूव्ड मकचरी किस्म 1987 में हरियाण्ज्ञा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में विकसित की गयी। इससे 225-250 क्विंटल प्रति एकड़ तक चारे की पैदावार ली जा सकती है।
मकचरी की बुवाई और बीज दर (Sowing and seed rate of Makchari)
बुवाई का समय: मकचरी (Makchari) की मुख्य फसल जून-जुलाई में बोयी जानी चाहिए तथा इस मौसम की फसल से केवल एक ही कटाई ली जा सकती है, क्योंकि बरसात के कारण पौधों में पुर्नवृद्धि या तो होती ही नहीं या तो बहुत कम होती है।
गर्मी के मौसम में चारे के अभाव के समय चारा प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई मार्च-अप्रैल में की जा सकती है। नवम्बर तथा दिसम्बर में हरे चारे की उपलब्धि के लिए इसकी बुवाई अगस्त-सितम्बर में करनी चाहिए। मार्च में बोई जाने वाली फसल से 2-3 कटाई ली जा सकती हैं।
बीज की मात्रा: मकचरी (Makchari) बीज की मात्रा बुवाई के तरीके पर निर्भर करती है। सामान्यत: सीड ड्रिल द्वारा बुवाई करने पर 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा पर्याप्त मानी गयी है।
बुवाई का तरीका: मकचरी की बुआई सीड ड्रिल द्वारा पंक्तियों में करनी चाहिए, जहां पर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेंमी, पौधे से पौधे की दूरी 15-20 सेंमी तथा 2-5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। बीज को 6-8 घण्टे तक पानी में भिगाकर बोने से बीज जल्दी एवं अच्छे जमते हैं।
मकचरी के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer for Makchari)
मकचरी (Makchari) बोये जाने वाले खेत में 15-20 टन गोबर की खाद और 60 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर बुवाई से पूर्व देना उपयुक्त होता है तथा 60 किग्रा नाईट्रोजन पहली सिचाई के बाद खेत में छिड़कना चाहिए। यदि फसल मार्च में बोई गयी है, और इससे दो कटाई लेनी हो तो पहली कटाई के बाद 30 किग्रा नाईट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। पोटाश की मात्रा मिटटी की जाँच के अनुसार दी जानी चाहिए। जहाँ पर पोटाश की कमी हो वहाँ पर 20-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए।
मकचरी में सिंचाई और जल निकास (Irrigation and Drainage in Makchri)
मकचरी (Makchari) के लिए प्राय: नम भूमि की जरूरत होती है तथा शुष्क मौसम में इसे जल्दी-जल्दी पानी की आवश्यकता होती है। गर्मी के मौसम में 12-15 दिन में सिंचाई करनी चाहिए तथा बरसात वाली फसल में आवश्यकतानुसार फसल की सिंचाई करनी चाहिए। अगस्त-सितम्बर में बोयी गयी फसल में 20-25 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
मकचरी में खरपतवार नियन्त्रण (Weed control in Makchari)
शुरू में मकचरी फसल (Makchari Crop) की वृद्धि कम होती है, इस समय खरपतवार पर नियन्त्रण करना आवश्यक होता है। इसके लिए 0.5 से 0.75 किग्रा प्रति हेक्टेयर एट्राजिन खरपतवार नाशक को 500 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के 2-3 दिन बाद छिड़काव करना चाहिए।
मकचरी चारा फसल की कटाई (Harvesting of Makchri Fodder Crop)
मक्का और ज्वार की अपेक्षा मकचरी (Makchari) की पाचकता बहुत तेजी से घटती है, इसलिए इसकी कटाई सही समय पर कर लेनी चाहिए। चारे की अच्छी गुणवत्ता के लिए मकचरी में जब झंडे दिखाई देने लगें (लगभग 70-75 दिन बुवाई के बाद) तब इसकी कटाई करनी चाहिए।
मार्च में बोई गयी फसल को लगभग 55-60 दिन बुवाई के बाद कटाई करनी चाहिए। कटाई करते समय तने का निचला हिस्सा 3-4 इंच छोडकर काटना चाहिए। जून-जुलाई वाली फसल को बुवाई 70-75 दिन पश्चात कटाई कर लेनी चाहिए।
मकचरी चारा फसल से उपज (Yield from Makchari Fodder Crop)
गर्मियों में मकचरी (Makchari) की उपज 600-750 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा बरसात वाली फसल से चारे की पैदावार लगभग 500-650 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। उचित प्रबन्ध के साथ बीज की कुल पैदावार 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
मकचरी उगाने के लिए सबसे पहले अच्छी जल निकासी वाली, रेतीली दोमट या दोमट मिट्टी का चयन करना चाहिए। खेत को अच्छी तरह तैयार करने के लिए जुताई, हैरो और पाटा का उपयोग करें। बीज बोने का समय मार्च से मध्य अप्रैल तक होता है, और प्रति हेक्टेयर 40 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है। मकचरी (Makchari) की बुवाई कतारों में की जाती है।
मकचरी की खेती (Makchari Cultivation) साल में दो बार की जा सकती है। गर्मी की फसल के लिए बुवाई मार्च से मध्य अप्रैल तक और मानसून की फसल के लिए जून या जुलाई में की जाती है।
मकचरी (Makchari) की कुछ अच्छी किस्में टीएल 1, टीएल 2, टीएल 3, टीएल 4, एचक्यूपीएम 1, सिरसा 10, के 585, सी 88 और एचएफसी 42-1हैं। इन अधिकतर किस्मों का पौधा दानों के सुरंगी कीटों का रोधक होता है, और इनकी पत्तियाँ पकने तक हरी रहती हैं।
मकचरी (Makchari) की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 35-45 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीज से लगने वाली बीमारियों से बचाव के लिए, सूखे बीजों को बैवीस्टीन, एग्रोसैन जीएन या थिराम से उपचार करना चाहिए। एक किलोग्राम बीज के लिए 2.5 से 3 ग्राम रोगनाशी का उपयोग करें।
मकचरी की फसल (Makchari Crop) में, सिंचाई का समय बुवाई के बाद 25-30 दिनों में पहली सिंचाई, 55-60 दिनों में दूसरी सिंचाई, 75-80 दिनों में तीसरी सिंचाई, 110-115 दिनों में चौथी सिंचाई और 120-125 दिनों में पांचवी सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई का तरीका आप अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी के प्रकार के अनुसार सिंचाई का तरीका चुन सकते हैं।
मकचरी की फसल (Makchari Crop) के लिए, बुवाई से पहले सड़ी गोबर की खाद, नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम युक्त उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। बुवाई के दौरान, पूरी फास्फोरस और पोटेशियम की मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा डालें। शेष नाइट्रोजन की मात्रा को बाद में दो भागों में डालें, एक बार बुवाई के 30-35 दिन बाद और दूसरी बार नर मंजरी (टैसलिंग) के दौरान डालें।
हरे चारे के लिए मकचरी (Makchari) की कटाई बुवाई के 60-70 दिन बाद पहली बार करनी चाहिए। इसके बाद, हर 40-45 दिन बाद अगली कटाई करनी चाहिए।
मकचरी से औसतन प्रति हेक्टर 40 से 75 टन तक हरे चारे की उपज प्राप्त होती है, जो प्रजाति के अनुसार भिन्न हो सकती है। मकचरी की खेती (Makchari Cultivation) मक्का के समान ही की जा सकती है और इसे अधिक वर्षा या जलभराव वाले क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।
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