Millet Farming in Hindi: भारत में बाजरा की खेती का ऐतिहासिक महत्व है, जो देश की सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुड़ा हुआ है। प्राचीन काल से, बाजरा भारतीय कृषि में एक प्रमुख फसल रही है, जिसे विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में इसके लचीलेपन और इसके पोषण संबंधी लाभों के लिए महत्व दिया जाता है। भारत में बाजरे की खेती का इतिहास बहुत पुराना है और यह देश की कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बाजरा छोटे बीज वाले अनाज होते हैं जो सूखा प्रतिरोधी और पौष्टिक होते हैं।
यह लेख भारत में बाजरे की खेती के बहुआयामी पहलुओं पर प्रकाश डालता है, उगाए जाने वाले बाजरे के प्रकारों, खेती के तरीकों और तकनीकों के साथ-साथ टिकाऊ कृषि और खाद्य सुरक्षा में बाजरे की महत्वपूर्ण भूमिका की खोज करता है। इसके अतिरिक्त, यह बाजरा किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों, बाजरे की खेती (Millet Cultivation) को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहलों और भारत के कृषि परिदृश्य में इस आवश्यक फसल के लिए आशाजनक भविष्य की संभावनाओं की जांच करता है।
बाजरा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for millet cultivation)
बाजरे की खेती (Millet Cultivation) गर्म जलवायु तथा 50-60 सेंमी वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से की जा सकती है। बाजरे की फसल भारी वर्षा वाले उन क्षेत्रों में अच्छी तरह की जा सकती है, जहां पर पानी का भराव न हो। इस फसल के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 32 से 37° सेंटीग्रेट माना गया है, इसलिए इसकी बुवाई जून जुलाई माह में कर देनी चाहिए। बालियों में दाना भरने की अवस्था में यदि नमी अधिक हो और तापमान कम हो तो अर्गट रोग के प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है।
बाजरा की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for millet cultivation)
बाजरा की फसल (Millet Crop) जल निकास वाली सभी तरह की भूमियों में उगाई जा सकती है। बाजरा के लिए भारी मृदा अनुकूल नहीं रहती है। बाजरा के लिए अधिक उपजाऊ भूमियों की भी आवश्यकता नहीं होती हैं, इसके लिए बलुई दोमट मृदा अत्यंत उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 और 7.5 के बीच होना चाहिए।
बाजरा की खेती के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for millet cultivation)
एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए | इसके बाद दो-तीन जुताइयां देशी हल, हैरो या कल्टीवेटर चलाकर उसके साथ पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। दीमक के बचाव के लिए आखिरी जुताई के समय 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से फॉरेट को खेत में छिड़क देना चाहिए। बाजरा की खेती (Millet Cultivation) शून्य जुताई विधि द्वारा भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसके लिए खेत को समतल करना तथा मिटटी पर पूर्व फसल के अवशेषों या अन्य वानस्पतिक अवशेषों का आवरण बनाए रखना लाभप्रद होता है।
बाजरा की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for millet cultivation)
बाजरे की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए बीज की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बीज की किस्म एवं उसकी गुणवत्ता अच्छी होनी चाहिये। बाजरे (Millet) की अनेक संकुल एवं संकर किस्में विकसित की गई है तथा इनके द्वारा अनाज एवं चारे की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। जो इस प्रकार है, जैसे-
संकर किस्में: आरएचबी 121, आरएचबी 177, जीएचबी 538, आईसीएमएच 356, एमपीएमएच 17, एमपीएमएच 21, एचएचबी 226, एचएचबी 67, सुपर 82, जेसीबी 4 (एमपी 403), सीजेडीपी 9802, जवाहर बाजरा 3, जवाहर बाजरा 4, पीएनबी 233, पीएनबी 83 और पीएनबी 346 आदि प्रमुख प्रचलित हैं।
संकुल किस्में: राज 171, सीजेडपी 9802, आरएचबी 121, एचएचबी 67 (उन्नत), एचएचबी 60, जीएचबी 538, पूसा 605, आरएचबी 177, एमपीएमएच 17, पूसा कंपोजिट 701, पूसा कंपोजिट 1201, आईसीटीपी 8202 और राज बाजरा चारी आदि प्रमुख हैं।
बाजरा बुवाई का समय और बीजदर (Sowing time and seed rate of millet)
बुवाई का समय: बाजरे की दीर्घावधि (80-90 दिनों) में पकने वाली किस्मों की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह में कर देनी चाहिये। मध्यम अवधि (70–80 दिनों) में पकने वाली किस्मों की बुवाई 10 जुलाई तक कर देनी चाहिये तथा जल्दी पकने वाली किस्मों ( 65-70 दिन) की बुवाई 10 से 20 जुलाई तक की जा सकती है, अर्थात गर्मियों में बाजरे की खेती (Millet Cultivation) के लिए मार्च से अप्रैल के मध्य तक बुवाई करनी चाहिए। दक्षिण भारत में, रबी मौसम के लिए अक्टूबर से नवंबर महीने में भी बुवाई की जा सकती है।
बीज की मात्रा: बाजरे की बुआई के लिए, एक हेक्टेयर ज़मीन में 4-5 किलोग्राम बीज की ज़रूरत होती है। बाजरे के बीज छोटे होते हैं, इसलिए इसकी बुआई 2-2.5 सेंटीमीटर गहराई में करनी चाहिए। बाजरे (Millet) की बुआई से पहले, बीजों को उपचारित करना चाहिए। इसके लिए, एक किलोग्राम बीज पर 2.5 ग्राम थीरम या 2.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम का इस्तेमाल किया जा सकता है।
बाजरा की खेती के लिए बुवाई का तरीका (Sowing method for bajara cultivation)
बारानी क्षेत्रों में बाजरे (Millet) की बुवाई मानसून की पहली बरसात के साथ कर देनी चाहिए। इसकी बुवाई मशीन द्वारा की जाती है। जिससे इसकी बुवाई कतारों में होती है, प्रत्येक कतारों के बीच 45-60 सेंटीमीटर की दूरी होती है। जबकि पौधों के बीच 10 से 15 सेंटीमीटर की दूरी होती है। बीज को 2 सेंटीमीटर नीचे ही बोया जाता है।
यदि मानसून देरी से आए या किन्हीं कारणों से समय पर बुवाई न कर सकें तो बाजरे की फसल को देरी से बोने की अपेक्षा इसकी रोपाई करना अधिक लाभप्रद पाया गया है। एक हैक्टर क्षेत्र में पौध रोपाई के लिए लगभग 500 वर्गमीटर क्षेत्र में 2 से 3 किलोग्राम बीज उपयोग करते हुए जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में उपयुक्त खाद और उर्वरक के साथ नर्सरी तैयार करनी चाहिए।
बाजरा की खेती के लिए पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management for Millet Cultivation)
सिंचित क्षेत्र के लिए: बाजरा (Millet) की अच्छी उपज के लिए नाइट्रोजन 80 किग्रा, फॉस्फोरस 40 किग्रा और पोटाश 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर की मात्रा उपयुक्त रहती है।
बारानी क्षेत्रों के लिए: नाइट्रोजन 60 किग्रा, फास्फोरस 30 किग्रा और पोटाश 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर की मात्रा अच्छी रहती है।
सभी परिस्थितयों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा लगभग 3-4 सेंमी की गहराई पर डालनी चाहिए। नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा अंकुरण से 4-5 सप्ताह बाद खेत में बिखेरकर देनी चाहिए।
बाजरा की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Millet Crop)
जिन स्थानों पर सिंचाई का साधन है, वहां पर फूल आने की स्थिति में सिंचाई करना लाभप्रद होता है। वर्षा बिल्कुल न हो तो 2-3 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है। पौधों में फुटान होते समय, बालियां निकलते समय तथा दाना बनते समय नमी की कमी नहीं होनी चाहिए। बालियां निकलते समय नमी का विशेष ध्यान रखना चाहिए। बाजरा (Millet) जल प्लावन से भी प्रभावित होता है, अतः ध्यान रहे कि खेत में पानी इकट्ठा न होने पाये।
बाजरा की फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Bajara Crop)
बाजरा फसल (Millet Crop) में शुरूआती खरपतवार नियंत्रण के लिए एक किलोग्राम एट्राजिन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करते हैं। यह छिड़काव बुवाई के बाद तथा अंकुरण से पूर्व करते हैं। इसके साथ-साथ 20-40 दिन के अन्दर एक बार खुरपी या कसौला से खरपतवार निकाल देने चाहिए।
बाजरा की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in millet crop)
साधारणतया बाजरा की फसल (Millet Crop) में कीट पतंगों से अधिक नुकसान नहीं होता है, लेकिन अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए फसल की कीटों से देखभाल करना आवश्यक है। बाजरा की फसल में निम्न कीटों का प्रायः असर देखा गया है, जैसे-
दीमक: दीमक के प्रकोप को रोकने के लिए 3-4 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से क्लोरोपाइरोफॉस का पौधों की जड़ों में छिड़काव करना चाहिए।
तना बेधक: इसका असर पत्तियों पर अधिक होता है तथा बाद में गिडार तने को भी खाती है। इसकी रोकथाम के लिए एक लीटर मोनोक्रोटोफास का 600-800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
मिज: इसका असर प्राय: बालियों के आते समय देखा गया है। इसके साथ-साथ पत्तियों पर खाने वाले कीटों का असर भी दिखाई दे, तो 3 प्रतिशत फोरेट को 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से धूल छिड़कना चाहिए।
टिड्डि: पौधों पर टिड्डियों का आक्रमण पौधे के बड़े होने के साथ देखा जाता हैं। टिड्डि पौधे की सभी पत्तियों को खा जाती है। जिससे पैदावार पर काफी ज्यादा असर पड़ता है। इसकी रोकथाम के लिए खेत में सांद्र मेलाथिऑन का छिडकाव करें।
बाजरा की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in millet crop)
हरित बाली रोग: यह फंफूदी से पैदा होने वाला रोग है, इसे मृदुरोमिल आसिता भी कहते हैं। इसके प्रभाव से पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है, पौधों की बढ़वार रूक जाती है। इसकी रोकथाम के लिए खेत में रोगग्रस्त पौधों को समय-समय पर उखाड़ कर जला देना चाहिए। कम से कम तीन वर्ष का फसल चक्र भी रोग को रोकने में सहायक होता है।
बोने से पहले बाजरा (Millet) बीजों को अप्रोन 35 एसडी या रिडोमील एम जेड 72 से 3 ग्राम प्रति किग्रा की दर से उपचारित करें। रोग की व्यापकता को कम करने के लिए रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देते ही कवकनाशी रिडोमील एम जेड 72 (2.5 ग्राम प्रति लिटर पानी) से छिड़काव करना चाहिए।
अर्गट: यह बीमारी बाजरा (Millet) फसल पर बालियां बनने की अवस्था में नुकसान पहुंचाती है। इस बीमारी के लक्षण के रूप में बालियों पर शहद जैसी चिपचिपी बूंदें दिखाई देती हैं। शहद के समान वाला पदार्थ कुछ दिनों बाद सूखकर गाढ़ा पड़ जाता है इसे अर्गट के नाम से जाना जाता है। रोग के प्रकोप को कम करने के लिए कम से कम तीन वर्ष का फसल चक्र अपनाना चाहिए।
खेत से रोगग्रस्त बालियों को समय-समय पर काट कर जला देना चाहिए। बीजों में मिले रोगजनक स्केलेरोशिया को दूर करने के लिए बीजों को 10 प्रतिशत नमक के घोल में डालकर अलग कर देना चाहिए। रोग की व्यापकता को कम करने के लिए कवकनाशी बाविस्टीन 1 किग्रा 1000 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए तथा बीज को बाविस्टीन (2 ग्राम प्रति किग्रा) से उपचारित करें।
बाजरा फसल की कटाई और गहाई (Harvesting and threshing of bajara crop)
जब बाजरे की फसल (Millet Crop) पककर तैयार हो जाए तो उस अवस्था में बालियों को काटकर अलग कर लेना चाहिए। इन बालियों को एक जगह खलियान में इकट्ठा करके सुखा लें और थ्रेशर से दाना अलग कर लेते हैं।
बाजरे की फसल से पैदावार (Yield from millet crop)
यदि उपरोक्त उन्नत सस्य विधियां अपनाकर बाजरा की फसल (Millet Crop) उगाई जाए तो सिंचित अवस्था में इसकी उपज 30-35 क्विंटल दाना तथा 100 क्विंटल सूखा चारा प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित अवस्था में 15-20 क्विंटल दाना तथा 60-70 क्विंटल सूखा चारा प्रति हेक्टेयर मिल जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
बाजरा (Millet) के लिए हल्की या दोमट बलुई मिट्टी उपयुक्त होती है। भूमि का जल निकास उत्तम होना आवश्यक हैं। बीजों को बीज ड्रिल का उपयोग करके पंक्तियों में बोया जाता है। यह विधि सटीक बीज प्लेसमेंट, समान पौधों की दूरी सुनिश्चित करती है, और खरपतवार प्रबंधन और यांत्रिक कटाई की सुविधा प्रदान करती है। इष्टतम बुवाई गहराई और अंतराल: अच्छे अंकुरण को सुनिश्चित करने और पक्षियों और कीटों से बीजों की सुरक्षा के लिए 2-3 सेमी की गहराई पर बीज बोएं।
बाजरे (Millet) की अधिकतम खेती खरीफ अवधि में होती है, यानी मानसून के मौसम में। जिन क्षेत्रों में 800 मिमी से अधिक बारिश होती है, वहां बाजरे की खेती दूसरे मौसम में की जा सकती है, यानी रबी की फसल के रूप में (मानसून के बाद, शुरुआती सर्दियों के महीनों में)।
बाजरा (Millet) शुष्क भूमि कृषि के लिए सबसे उपयुक्त फसल है। ये पोषक अनाज वार्षिक, कम अवधि (75 से 120 दिन) की वर्षा आधारित फसलें हैं, जो अम्लीय से क्षारीय मिट्टी तक पीएच रेंज वाली उथली और कम उपजाऊ मिट्टी पर अच्छी तरह से उगती हैं।
बाजरे की बुवाई का सही समय इस बात पर निर्भर करता है कि बाजरे (Millet) की किस्म कितने दिनों में पकती है। इसकी बुवाई मुख्य रूप से जून से मध्य अगस्त तक होती है।
बुवाई के 15 दिन पूर्व 10-15 टन प्रति हेक्टेयर सडी गोबर की खाद डालकर हल द्वारा उसे भलीभॉती मिट्टी मे मिला देते हैं। नाइट्रोजन 80 किग्रा, फॉस्फोरस 40 किग्रा और पोटाश 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर की मात्रा उपयुक्त रहती है। दीमक के प्रकोप की संभावना होने पर प्रति 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर क्लोरोपायरीफॉस 1.5 प्रतिषत चूर्ण खेत मे मिलाये।
बाजरा (Millet) की अच्छी उपज के लिए जिस खेत में बाजरे की बुवाई करनी है, उसकी ग्रीष्मकाल के दौरान 1-2 जुताई एवं 3-4 वर्ष में एक बार गहरी जुताई आवश्यक रूप से करनी चाहिए। ये रोगों को रोकने एवं नमी के संरक्षण में बहुत लाभदायक हैं।
बाजरे की फसल (Millet Crop) से दाने की उपज लगभग 30 से 35 क्विंटल और चारे की उपज लगभग 77 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है।
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