Improved Varieties of Millet in Hindi: छोटे बीजों वाले अनाजों का समूह बाजरा, भारतीय कृषि और व्यंजनों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बाजरे ने सदियों से भारतीय कृषि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चावल और गेहूँ की ‘श्वेत क्रांति’ के आने से पहले ये मुख्य फसलों में से एक थे। बाजरा सिर्फ़ एक फसल नहीं है बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है, जो देश की पारंपरिक कृषि पद्धतियों में गहराई से समाया हुआ है।
भारत में उगाए जाने वाले बाजरे को मोती बाजरा, कांगनी और चीना के रूप में भी जाना जाता है। इस लेख में, हम भारत में उगाए जाने वाले बाजरे की किस्मों (Millet Varieties), उनके पोषण संबंधी लाभों, उनकी खेती में शामिल कृषि पद्धतियों और बाजरे की खपत में विकसित हो रहे रुझानों का पता लगाते हैं। बाजरे की विविधतापूर्ण दुनिया और भारत की खाद्य संस्कृति को आकार देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका की खोज के लिए हमारे साथ यात्रा पर जुड़ें।
भारत में उगाए जाने वाले बाजरे के प्रकार (Types of Millets Grown in India)
मोती बाजरा: यह भारत में बाजरे का ‘रॉकस्टार’ है, यह एक बहुमुखी अनाज है, जिसका उपयोग खिचड़ी, रोटी और यहाँ तक कि मिठाई जैसे स्वादिष्ट व्यंजनों में किया जाता है। यह गर्म और शुष्क जलवायु में पनपता है, जिससे यह चुनौतीपूर्ण कृषि परिस्थितियों वाले क्षेत्रों में एक लोकप्रिय विकल्प बन जाता है।
फॉक्सटेल बाजरा (कांगनी): कांगनी, जिसे फॉक्सटेल बाजरा के रूप में भी जाना जाता है, एक ग्लूटेन-मुक्त अनाज है जो पौष्टिकता से भरपूर है। उपमा से लेकर डोसा तक, यह बाजरा व्यंजनों में एक नाजुक, पौष्टिक स्वाद जोड़ता है और साथ ही कई तरह के स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करता है।
प्रोसो बाजरा (चीना): चीना, या प्रोसो बाजरा, भारत में बाजरे की एक कम ज्ञात किस्म है, लेकिन अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण यह लोकप्रियता हासिल कर रही है। दलिया से लेकर पुलाव तक, यह बाजरा आपके आहार में एक पौष्टिक तत्व है, जो विटामिन और खनिजों की अच्छी खुराक प्रदान करता है।
बाजरे की उन्नत किस्में (Improved varieties of millet)
बाजरे की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर बोने, उपयुक्त खाद देने और समय पर पौध संरक्षण उपाय अपनाने के साथ साथ अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म चुनने की ओर भी विशेष ध्यान देना चाहिये। सामान्य बाजरे की तुलना में संकर और संकुल / हाइब्रिड बाजरा किस्मों की पैदावार काफी अधिक है। कुछ प्रचलित राज्यवार बाजरे की किस्में (Millet Varieties) इस प्रकार है, जैसे-
राज्य | बाजरे की किस्में |
राजस्थान | आर एच बी- 121, आर एच बी- 154, सी जेड पी- 9802, राज- 171, डब्लू सी सी- 75, पूसा- 443, आर एच बी- 58, आर एच बी- 30, आर एच बी- 90 आदि। |
महाराष्ट्र | संगम, आर एच आर बी एच- 9808, प्रभणी संपदा, आई सी एम एच- 365, साबोरी, श्रद्धा, एम एच- 179 आदि। |
गुजरात | जी एच बी- 526, जी एच बी- 558, जी एच बी- 577, जी एच बी- 538, जी एच बी- 719, जी एच बी- 732, पूसा- 605 आदि। |
उत्तर प्रदेश | पूसा- 443, पूसा- 383, एच एच बी- 216, एच एच बी- 223, एच एच बी- 67 इम्प्रूव्ड आदि। |
हरियाणा | एच सी- 10, एच सी- 20, पूसा- 443, पूसा- 383, एच एच बी- 223, एच एच बी- 216, एच एच बी- 197, एच एच बी- 67 इम्प्रूव्ड, एच एच बी- 146, एच एच बी- 117 आदि। |
कर्नाटक | पूसा- 334, आई सी एम एच- 356, एच एच बी- 67 इम्प्रूव्ड, नन्दी- 64, नन्दी- 65 आदि। |
आंध्र प्रदेश | जी एच बी- 558, एच एच बी- 146, नन्दी- 65, नन्दी- 64, जी के- 1004, आई सी एम एच- 356, अनन्तास आई सी एम बी- 221 आदि। |
तमिलनाडु | पी ए सी- 903, एम एल बी एच- 104, जी एच बी- 558, जी एच बी- 526, आई सी एम एच- 356, सी ओ एच- 8 आदि। |
चारे के लिए बाजरे की किस्में | राज बाजरा चरी- 2, जाइन्ट बाजरा, ए वी के बी- 2, ए वी के बी- 19, जी एफ बी- 1, पी सी बी- 164, नरेन्द्र चरी बाजरा- 2 आदि। |
बाजरे की किस्मों की विशेषताएं (Characteristics of millet varieties)
एच एच बी- 67 (1990): 140-195 सेन्टीमीटर ऊंची यह संकर किस्म वर्षा की कमी और अधिकता दोनों परिस्थितियों हेतु उपयुक्त है। यह जल्दी व देरी से बुबाई के लिए भी उपयुक्त है। 65-70 दिन में पकने वाली इस किस्म के सिट्टे 15-20 सेन्टीमीटर लम्बे शंकु आकार के एवं तना पतला होता है। शुष्क खेती और अंतराशस्य के लिए उपयुक्त, तुलासिता रोग प्रतिरोधी इस बाजरा किस्म (Millet Varieties) के दाने सामान्य मोटाई के भूरे रंग के होते हैं। यह 15-25 क्विंटल दाने एंव 25-35 क्विंटल चारे की प्रति हैक्टेयर उपज देती है।
आई सी एम एच- 356: 155-200 सेन्टीमीटर ऊंची, बैंगनी रंग व रोम रहित तने की गांठ, 4-5 फुटान वाले पौधे की पत्तियां हरे रंग की होती है। इसका सिट्टा गोलाकार लम्बा पूर्णतया कसा हुआ 15-20 सेन्टीमीटर लम्बा होता है। इसके दाने गोलाकार स्लेटी रंग के 1000 दानों का वजन 9-10 ग्राम होता है। यह सूखे के प्रति सहनशील व डाउनी मिल्ड्यू प्रतिरोधी बाजरे की किस्म (Millet Varieties) है। सिंचित व बारानी, उच्च व कम उर्वर भूमि के लिए उपयुक्त यह संकर किस्म 75 दिन में पककर 20 से 26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है।
राज- 171 (एम पी 171 ): 170-200 सेन्टीमीटर ऊंची, मध्यम व सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों हेतु उपयुक्त, इस संकुल किस्म के सिट्टे 25-27 सेन्टीमीटर लम्बे होते हैं। सिट्टे लम्बे, सामान्य मोटे, बेलनाकार, ऊपरी भाग में कुछ पतले दानों से कसे हुए होते हैं। तना मोटा तथा 2-3 फुटान वाला होता है। दाना हल्की पीली झांई लिए हुए हल्का स्लेटी होता है। तुलासिता रोग प्रतिरोधी यह बाजरा किस्म (Millet Varieties) 85 दिन में पक कर प्रति हैक्टेयर 20-25 क्विंटल दाने व 45-48 क्विंटल चारे की उपज देती है।
आई सी टी पी- 8203: शीघ्र पकने वाली इस संकुल किस्म के पौधे 160-230 सेन्टीमीटर ऊंचे होते हैं। 70-75 दिन में पककर यह बाजरा किस्म (Millet Varieties) 15-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है । दाने हल्के से गहरे स्लेटी, सिट्टे मध्यम लम्बाई वाले मोटे, ढीले तथा बेलनाकार, शंकु आकार के होते हैं। यह तुलासिता रोग रोधी है।
एच एच बी- 94: सिंचित व बारानी क्षेत्र के लिए संस्तुतित, पौधा 180-200 सेमी लम्बा, पुष्पावस्था 45 दिन में तथा यह बाजरे की किस्म (Millet Varieties) 70-75 दिन में पक कर औसत उपज 29 क्विण्टल प्रति हैक्टर तक देती है। वेलनाकार सिट्टा सभी शाखाएं एक ही ऊंचाई व एक साथ पकने वाली किस्म, 70 क्विण्टल प्रति हैक्टर सूखा चारा प्राप्त होता है।
आर एच बी- 173: दुर्गापुरा से विकसित बाजारे की इस संकर किस्म के पौधों की औसत लम्बाई 200 सेमी तथा सिट्टो की लम्बाई 30 से 35 सेमी होती है। इसके सिट्टे लम्बे तथा कसाव लिये होते हैं। मध्यम एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त यह किस्म जोगिया (ग्रीन ईयर) रोग रोधी है। 78-80 दिन में पककर तैयार होने वाली इस किस्म की उपज 30-33 क्विंटल एवं चारे की उपज 68-77 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
आर एच बी- 177: कृषि अनुसंधान केन्द्र दुर्गापुरा द्वारा विकसित एस संकल्प किस्म का जनन आईसीएमए 843 – 22 ए (मादा) और आरआईबी 494 (नर) के संयोग से किया गया है। अच्छे फुटान वाली इस बाजरा किस्म (Millet Varieties) की ऊंचाई 150-160 सेमी तथा सिट्टों की लम्बाई 21-23 सेमी होती है।
जोगिया रोग रोधी तथा शीघ्र पकने वाली (74 दिन) इस किस्म के दोनों की औसत पैदावार 18-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सूखे चारे की पैदावार 42-43 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इस किस्म का सिट्टा रोयें युक्त, बेलनाकार दानों से कसा हुआ तथा दाना हल्का भूरा गोलाकार होता है। सूखा प्रतिरोधक क्षमता वाली यह किस्म देश के अत्यन्त शुष्क जलवायु क्षेत्रों के लिए उपयोगी है।
पूसा कम्पोजिट- 701: यह बाजरे की किस्म (Millet Varieties) चारे एवं दाने दोनों के लिए उपयुक्त है। 80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है तथा डाउनी मिल्ड्यू एवं झुलसा रोग के प्रति प्रतिरोधक है । दाने की औसत उपज 23 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
धनशक्ति (आईसीटीवी 8203 एफई. 10-2): यह किस्म 74 से 78 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। दाना मोटा एवं सलेटी रंग का होता है। शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में भी अच्छी उपज देती है, उक्त किस्म के दानों में लोहा एवं जिंक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। दाने की औसत उपज 22 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है । किस्म हरितवाल था पत्ती झुलसा रोग के प्रति प्रतिरोधक है।
एम पी एम एच- 21: यह किस्म दाने व चारे दोनों के लिए उपयुक्त है। करीब 75 दिनों में पकने वाली इस किस्म की ऊँचाई 169 सेमी व सिट्टे की लम्बाई 20 सेमी तथा 1000 दानों का वनज 7-8 ग्राम पाया गया है। इस किस्म के दानों की उपज 24 क्विंटल व चारे की औसत उपज 48 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यह किस्म डाउनी मिल्ड्यू कण्डवा व ब्लास्ट रोग के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी तथा स्मट (कण्डवा (रोग) के प्रति मध्यम प्रतिरोधी पायी गई है।
आर एच बी- 233: मध्यम पकाव अवधि की इस बाजरा किस्म (Millet Varieties) की दाने की पैदावर 31 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है तथा चारे की पैदावार 74 क्विंटल प्रति हैक्टेयर प्रति हैक्टेयर है। उक्त किस्म के दानों में लोहा तथा जिंक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह किस्म प्रमुख कीट एवं बीमारियों के प्रति प्रतिरोध क्षमता रखती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
एचएचबी 67-2, नंदी बाजरा-72 और नंदी-75: उपज उत्पादन के हिसाब से नंदी बाजरे का उत्पादन अच्छा है। बाजरे की बालियाँ अच्छी मोटी और लंबी होती है। फसल में रोग कीट की बात करें, तो इनके बीजों में कम देखने को मिलते है।
बाजरे की कुछ अच्छी हाइब्रिड किस्में: जेसीबी 4 (एमपी 403), सीजेडीपी 9802, जवाहर बाजरा 3, जवाहर बाजरा 4, टाटा एमपी 7172 और 7878 ये किस्में अच्छी उपज देती हैं और पकने में 70-90 दिनों का समय लेती हैं।
बाजरा की उन्नत किस्मों में पूसा 23, पूसा 415, पूसा 605, पूसा 322, एचएचबी 50, एचएचबी 67, एचएचडी 68, एचएचबी 117, एचएचबी इंप्रूव्ड आदि प्रचलित है।
बाजरे की देशी किस्में: मोती बाजरा और कोदो बाजरा प्रचलित है, यह सूखा-प्रतिरोधी गुणों के लिए जानी जाती है।
बाजरे की संकुल किस्में: पूसा कंपोजिट 701, पूसा कंपोजिट 1201, आईसीटीपी 8202, राज बाजरा चारी 2 व राज 171 आदि प्रमुख हैं।
बाजरे की दीर्घावधि (80-90 दिनों) में पकने वाली किस्मों की बुवाई जुलाई के प्रथम सप्ताह में कर देनी चाहिये। मध्यम अवधि (70–80 दिनों) में पकने वाली किस्मों की बुवाई 10 जुलाई तक कर देनी चाहिये तथा जल्दी पकने वाली किस्मों ( 65-70 दिन) की बुवाई 10 से 20 जुलाई तक की जा सकती है।
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