Green Gram Cultivation in Hindi: मूंग (Mung) दाल, जिसे हरे चने के नाम से भी जाना जाता है, भारत के कृषि परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। सदियों से उगाई जाने वाली मूंग दाल की खेती देश भर के किसानों को खाद्य सुरक्षा और आजीविका के अवसर प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मूंग के दाने में 24-25% प्रोटीन 56% कार्बोहाहड्रेट व 1.3% वसा पायी जाती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान प्रमुख मूंग उत्पादक राज्य हैं।
इस व्यापक गाइड में, हम भारत में मूंग की खेती (Mung Bean Cultivation) की पेचीदगियों पर चर्चा करेंगे, जिसमें इष्टतम जलवायु और मिट्टी की स्थिति, उगाई जाने वाली लोकप्रिय किस्में, प्रमुख खेती के तरीके, कीट और रोग प्रबंधन रणनीतियाँ, कटाई की तकनीकें और बाजार की गतिशीलता शामिल हैं, जो देश में मूंग दाल किसानों के अनुभवों को आकार देती हैं।
मूंग की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of mung bean)
मूंग की खेती हर प्रकार के मौसम में की जा सकती है। उत्तर भारत में इसे ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में उगाते हैं। दक्षिण भारत में इसे रबी में भी उगाते हैं। ऐसे क्षेत्र जहां 60 से 75 सेंटीमीटर वर्षा होती है, मूंग के लिए उपयुक्त होते हैं। फली बनते और पकते समय वर्षा होने से दाने सड़ जाते हैं और काफी हानि होती है। उत्तरी भारत में मूंग (Mung) को वसंत ऋतु में भी उगाते हैं। अच्छे अंकुरण के लिए 25 डिग्री और समुचित बढ़वार हेतु 20 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है।
मूंग की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for cultivation of mung bean)
मूंग की खेती जीवांश युक्त सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। हालाँकि दोमट मृदा सबसे अधिक उपयुक्त होती है। इसकी खेती मटियार और बलुई दोमट मे भी की जा सकती है, जिनका पीएच 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम हैं। खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिये। मूंग (Mung) की खेती के लिए, नमक और जल जमाव वाली मिट्टी उपयुक्त नहीं होती।
मूंग की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cultivation of mung bean)
खरीफ की फसल हेतु एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए और वर्षा प्रारंभ होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरान्त खेत में पाटा चलाकर समतल करें। दीमक से बचाव के लिये क्लोरोपायरीफॉस 1.5 % चूर्ण 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिलाना चाहिये।
ग्रीष्मकालीन मूंग (Mung) की खेती के लिये रबी फसलों के कटने के तुरन्त बाद खेत की तुरन्त जुताई कर 4-5 दिन छोड़ कर पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताइयाँ देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनावे। इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है व बीजों से अच्छा अंकुरण मिलता हैं।
मूंग की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved Varieties for Mung Bean Cultivation)
भारत में मूंग की कई किस्में हैं, जिन्हें अलग-अलग क्षेत्रों और खेती की प्रणालियों के हिसाब से ढाला गया है। मूंग (Mung) की क्षेत्रवार कुछ किस्में इस प्रकार है, जैसे-
हरियाणा: आईपीएम- 2 – 3, एमएच- 2 – 15 और मुस्कान आदि प्रमुख है।
मध्यप्रदेश / छत्तीसगढ़: हम- 1, टीजेएम- 721, बीएम- 4 और मेहा आदि प्रमुख है।
राजस्थान: एसएमएल- 668, आईपीएम- 2 – 3, आरएमजी- 492, एमएच- 2 – 15 आदि प्रमुख है।
उत्तर प्रदेश / उत्तराखंड: पंत मूंग- 5, पंत मूंग- 4 और नरेन्द्र मूंग – 1 आदि प्रमुख है।
बिहार एवं झारखंड: आईपीएम- 2 – 3, एमएच- 2 – 15, पंत मूंग- 4, हम- 1, पंत मूंग- 2, नरेन्द्र मूंग- 1, सुनैना, पीडीएम- 139 और एमएच- 2 – 15 आदि प्रमुख है।
पंजाब: आईपीएम- 2 – 3, एमएच- 2-15, एमएल- 818 और एमएल- 613 आदि प्रमुख है।
हिमाचल / जम्मू कश्मीर: पूसा 672, केएम- 2241 और शालीमार मूँग- 1 आदि प्रमुख है।
गुजरात: गुजरात मूंग- 3, गुजरात मूंग- 4, के- 851 और पीकेवीएकेएम- 4 आदि प्रमुख है।
महाराष्ट्र: हम- 1, बीएम- 2002 – 1, पीकेवीएकेएम- 4, बीएम- 4 और टार्म- 2 आदि प्रमुख है।
कर्नाटक: आईपीएम- 02 – 14 एवं 2 – 3, हम – 1, पीकेवीएकेएम- 4, कोजीजी- 912, केकेएम- 3, एलजीजी- 460, टार्म- 1 और ओबीजीजी- 52 आदि प्रमुख है।
आंध्रप्रदेश: मधिरा- 429, पूसा- 9072, डब्लूजीजी- 2, आईपीएम- 02 – 14, ओयूएम- 11 – 5 और कोजीजी- 912 आदि प्रमुख है।
आसाम: आईपीएम- 2 – 3, पंत मूँग- 4, नरेन्द्र मूंग – 1, एजी- 1 और पंत मूंग- 2 आदि प्रमुख है।
ओडीशा: पीडीएम- 139, ओयूएम- 11 – 5, कोजीजी- 912 और आईपीएम- 2 – 3 आदि प्रमुख है।
तमिलनाडू: आईपीएम- 2 – 3, को- 6, टीएम- 96 – 2, वंबन- 2 और वंबन 3 आदि प्रमुख है।
पश्चिम बंगाल: एमएच- 2-15, पंत मूँग- 5, पंत मूँग- 4, नरेन्द्र मूंग- 1 आदि प्रमुख है।
मूंग की खेती के लिए बुआई समय (Sowing time for cultivation of mung bean)
खरीफ मूंग की बुआई का उपयुक्त समय जून के द्वितीय पखवाड़े से जुलाई के प्रथम पखवाड़े के मध्य है। बसंत कालीन मूँग (Mung) को मार्च के प्रथम पखवाड़े में एवं ग्रीष्मकालीन मूँग को 15 मार्च से 15 अप्रैल तक बोनी कर देना चाहिये। बोनी में विलम्ब होने पर फूल आते समय तापक्रम वृद्धि के कारण फलियाँ कम बनती हैं अथवा बनती ही नहीं है, इससे इसकी उपज प्रभावित होती है।
मूंग की खेती के लिए बीज की मात्रा (Seed quantity for mung mean cultivation)
खरीफ में कतार विधि से बुआई हेतु मूंग 12-15 किग्रा प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। बसंत अथवा ग्रीष्मकालीन बुआई हेतु 20-25 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता पड़ती है। गन्ने के साथ सहफसली खेती के लिए मूँग (Mung) की बीज दर 7-8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। मिश्रित फसल में मूँग की बीज दर 8-10 किग्रा प्रति हेक्टेयर रखते है ।
मूंग की खेती के लिए बीज का उपचार (Seed treatment for mung bean cultivation)
मृदा एवं बीज जनित रोगों से बीजों के बचाव के लिए थायरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम केप्टान (1:2) 3 ग्राम दवा या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित कर लें। इसके बाद बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूएस से 7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करें। बीजोपचार
बीज शोधन के 2-3 दिन बाद बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए।
50 ग्राम गुड़ या शक्कर को आधा लीटर जल में घोलकर उबालें व ठण्डा कर लें। ठण्डा होने पर इस घोल में राइजोबियम कल्चर डालकर 10 किलोग्राम बीज को उपचारित करे। उपचारित बीजों को 4-5 घंटे तक छाया में फेला देते हैं। उपचारित बीज को धूप में नहीं सुखाना चाहिए। मुंग (Mung) का बीज उपचार दोपहर में करें ताकि शाम को अथवा दूसरे दिन बुआई की जा सके।
मूंग की खेती के लिए बुवाई का तरीका (Method of sowing for Mung bean cultivation)
सीड ड्रिल या देशी हल के पीछे नाई या चोंगा बाँधकर केवल पंक्तियों में ही बुवाई करना चाहिए। खरीफ मुंग (Mung) फसल के लिए कतार से कतार की दूरी 45 सेमी तथा बसंत (ग्रीष्म) के लिये 30 सेमी रखी जाती है। पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखते हुये 4 सेमी की गहराई पर बोना चाहिये।
मूंग की खेती के साथ अन्तरवर्तीय खेती (Intercropping with moong cultivation)
बसंतकालीन गन्ने के साथ अन्तरवर्तीय खेती करना अत्यन्त लाभदायक रहता है। बसंतकालीन गन्ने को 90 सेमी दूरी पर पंक्तियों में बोते है। गन्ने की दो पंक्तियों के बीच की दूरी में मूँग (टाइप 1 या पूसा बैसाखी) की दो पंक्ति 30 सेमी की दूरी पर बोते है। मूंग (Mung) की पँक्ति गन्ने की पँक्ति से 30 सेमी की दूरी पर रखते है। ऐसा करने पर मूँग के लिए अतिरिक्त उर्वरक की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सूरजमुखी व मूंग को 2:6 पंक्ति के अनुपात में भी बो सकते हैं।
मूंग की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for cultivation of green gram)
मूंग (Mung) की खेती के लिए 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 20 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। आलू व चने के बाद उर्वरक की आवश्यकता कम पड़ती है। नाइट्रोजन और फास्फोरस की पूर्ति के लिए 100 किलोग्राम डीएपी प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग फर्टीसीड ड्रिल या हल के पीछे चांगा बाँधकर कूड़ों में बीज से 2-3 सेंटीमीटर नीचे देना चाहिए।
गौण एवं सूक्ष्म पोषक तत्व
गंधक (सल्फर): काली और दोमट मृदाओं में 20 किलोग्राम गंधक (154 किलोग्राम जिप्सम या 22 किलोग्राम बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हैक्टर की दर से बुवाई के समय प्रत्येक फसल के लिये देना पर्याप्त होगा। कमी ज्ञात होने पर लाल बलुई मृदाओं हेतु 40 किलोग्राम गंधक (300 किलोग्राम जिप्सम या 44 किग्रा बेन्टोनाइट सल्फर) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
जिंक: जिंक की मात्रा का निर्धारण मृदा के प्रकार एवं उसकी उपल्बधता पर के अनुसार की जानी चाहिए। लाल बलुई व दोमट मृदा में 2.5 किग्रा जिंक (12.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट या 7.5 किग्रा जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
काली मृदा में 1.5 से 2.0 किलोग्राम जिंक ( 7.5 से 10 किग्रा जिंक सल्फेट) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए। लैटेराइटिक,जलोढ़ एवं मध्यम मृदा में 2.5 किग्रा जिंक (12.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 किग्रा जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) के साथ 200 किग्रा गोबर की खाद का प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
उच्च कार्बनिक पदार्थ वाली तराई क्षेत्रों की मृदा में बुवाई के पूर्व 3 किग्रा जिंक (15 किग्रा जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 9 किग्रा जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हेक्टर की दर से तीन वर्ष के अन्तराल पर दें। कम कार्बनिक पदार्थ वाली पहाड़ी बलुई दोमट मृदा में 2.5 किग्रा जिंक (12.5 किग्रा जिंक सल्फेट हेप्टा हाइड्रेट या 7.5 किग्रा जिंक सल्फेट मोनो हाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से एक वर्ष के अन्तराल में प्रयोग करें।
बोरॉन: बोरॉन की कमी वाली मृदाओं में उगाई जाने वाली मूँग (Mung) की फसल में 0.5 किग्रा बोरॉन (5 किग्रा बोरेक्स या 3.6 किग्रा डाइसोडियम टेट्राबोरेट पेन्टाहाइड्रेट) प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें।
मैंगनीज: मैंगनीज की कमी वाली बलुई दोमट मृदाओं में 2% मैंगनीज सल्फेट के घोल का मूंग (Mung) का बीज उपचार या मैंगनीज सल्फेट के 1% घोल का पर्णीय छिड़काव लाभदायक पाया गया है।
मॉलिब्डेनम: मॉलिब्डेनम की कमी वाली मृदाओं में 0.5 किग्रा सोडियम मॉलिब्डेट प्रति हैक्टर की दर से आधार उर्वरक के रूप में या 0.1% सोडियम मॉलिब्डेट के घोल का दो बार पर्णीय छिड़काव करना चाहिए अथवा मॉलिब्डेनम के घोल में बीज शोषित करें। ध्यान रहे कि अमोनियम मॉलिब्डेनम का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए, जब मृदा में मॉलिब्डेनम तत्व की कमी हो।
मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in mung bean crop)
बुआई के 25 से 30 दिन तक खरपतवार मूंग (Mung) फसल को अत्यधिक नुकासान पहुँचाते हैं यदि खेत में खरपतवार अधिक हैं तो बोवाई के 20-25 दिन के बाद निराई कर देना चाहिए। दूसरी निंराई बुआई के 45 दिन के बाद करनी चाहिए। जिन खेतों में खरपतवार गम्भीर समस्या हों वहाँ खरपतवारनाशक रसायन का छिड़काव करने से खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।
इसके लिए पेन्डीमिथालीन 30 ईसी 750-1000 ग्राम सक्रिय तत्व बुवाई के 0-3 दिन के अंदर घासकुल एवं कुछ चौडी पत्ती वाले खरपतवार हेतु प्रयोग कर सकते है। खरपतवार नाशक दवाओ के छिड़काव के लिये हमेशा फ्लैट फेन नोजल का ही उपयोग करे।
मूंग की फसल में सिंचाई प्रबन्धन (Irrigation Management in Mung Bean Crop)
पलेवा के अतिरिक्त मूंग (Mung) फसल की आवश्यकता के अनुसार 4-5 सिंचाई करनी चाहिए। बुआई के 20-25 दिन बाद मूंग में पहली सिंचाई करने पर अधिकतम उपज प्राप्त होती है। इसके बाद 12-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। जब फसल पूरी तरह फूल खिलने की अवस्था में हो तो सिंचाई नही करें तथा फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिये।
मूंग की फसल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in mung bean crop)
थ्रिप्स या रसचूसक कीट: मूंग (Mung) बुवाई के पूर्व बीजो को थायोमेथोक्जम 70 डब्ल्यूएस 2 मिली प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचार करें तथा थायोमेथोक्जम 25 डब्ल्यू जी 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करनें से थ्रिप्स का अच्छा नियंत्रण होता है। ट्राइजोफॉस 40 ईसी 2 मिली प्रति लीटर या इथियोन 50 ईसी 2 मिली प्रति लीटर का छिडकाव आवश्यकतानुसार करना चाहिए।
माहू एवं सफेद मक्खी: डायमिथोएट 1000 मिली प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल प्रति 600 लीटर पानी में 125 मिली दवा के हिसाब से मूंग (Mung) में प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना लाभप्रद रहता है।
पीला चितकबरा रोग: मूंग (Mung) की रोगरोधी प्रजातियाँ जैसे नरेन्द्र मूंग- 1, पन्त मूंग- 3 पीडीएम- 139 (समाट), पीडीएम- 11, एमयूएम- 2, एमयूएम- 337, एसएमएल- 832, आईपीएम- 02-14, एमएच- 421 इत्यादि का चुनाव करना चाहिए। श्वेत मक्खी इस रोग का वाहक है। इससे बचाव करने के लिए श्वेत मक्खी के नियंत्रण हेतु ट्रायजोफॉस 40 ईसी 2 मिली प्रति लीटर अथवा थायोमेथाक्साम 25 डब्लूजी 2 ग्राम प्रति लीटर या डायमिथिएट 30 ईसी 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 2 या 3 बार 10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
मूंग फसल की कटाई और मड़ाई (Harvesting and threshing of mung bean crop)
जब 70-80 प्रतिशत मूंग (Mung) की फलियां पक जाएं, हँसिया से कटाई आरम्भ कर देना चाहिए। तत्पश्चात बण्डल बनाकर फसल को खलिहान में ले आते हैं। 3-4 दिन सुखाने के पश्चात सुखाने के उपरान्त डडें से पीट कर या बैलों की दायें चलाकर या थ्रेसर द्वारा भूसा से दाना अलग कर लेते हैं।
मूंग की खेती से पैदावार (Yield from Moong Bean Cultivation)
मूंग (Mung) की खेती उन्नत तरीके से करने पर बर्षाकालीन फसल से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा ग्रीष्मकालीन फसल से 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उपज प्राप्त की जा सकती है। मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।
भंडारण करने से पूर्व दानों को अच्छी तरह धूप में सुखाने के उपरान्त ही जब उसमें नमी की मात्रा 8-10% रहे तभी वह भण्डारण के योग्य रहती है।
मूंग की खेती से अधिक उत्पादन के सूत्र (Tips for higher production from moong cultivation)
- मूंग (Mung) के स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का उपयोग करें।
- सही समय पर बुवाई करें, देर से बुवाई करने पर उपज कम हो जाती है।
- किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार करें।
- बीजोपचार अवश्य करें, जिससे पौधो को बीज एवं मृदा जनित बीमारियों से प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित होने से बचाया जा सके।
- मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करे जिससे भूमि की उर्वराशक्ति बनी रहती है, जो टिकाऊ उत्पादन के लिए जरूरी है।
- मुंग (Mung) की खरीफ मौसम में मेड नाली पद्धति से बुबाई करें।
- समय पर खरपतवारों नियंत्रण एवं पौध संरक्षण करें जिससे रोग एवं बीमारियो का समय पर नियंत्रण किया जा सके।
- मुंग (Mung) की खरीफ में बुवाई के लिये रिज फरो विधि अपनाये।
- पौध संरक्षण के लिये एकीकृत पौध संरक्षण के उपायों को अपनाना चाहिए।
- मुंग (Mung) की फसल में खरपतवार नियंत्रण अवश्य करे।
- तकनीकी जानकारी हेतु अपने जिले / नजदीकी कृषि विज्ञान केन्द्र से संपर्क करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
मूंग (Mung) की खेती करने के लिए, गहरी जुताई और हैरोइंग द्वारा मिट्टी को अच्छी तरह से तैयार करें, 30 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बीज बोएं, 4-6 सेमी की गहराई पर बीज बोएं, विशेष रूप से फूल आने और फली बनने के दौरान पर्याप्त सिंचाई करें, हाथ से निराई करके खरपतवारों का प्रबंधन करें और नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम पर ध्यान केंद्रित करते हुए मिट्टी के विश्लेषण के आधार पर आवश्यक उर्वरकों का प्रयोग करें, जलभराव से बचने के लिए उचित जल निकासी सुनिश्चित करें।
मूंग (Mung) की फसल कई तरह की जलवायु परिस्थितियों में उगती है। 25⁰C से 35⁰C तक के तापमान वाली गर्म आर्द्र जलवायु, 400-550 मिमी वर्षा और 60-90 दिनों की अवधि के दौरान अच्छी तरह से वितरित, खेती के लिए उपयुक्त है।
मूंग की दाल उपजाऊ, रेतीली दोमट मिट्टी में अच्छी तरह उगती है, जिसमें आंतरिक जल निकासी अच्छी हो और पीएच 6.3 और 7.2 की सीमा में हो। मूंग (Mung) की दाल को अच्छी वृद्धि के लिए थोड़ी अम्लीय मिट्टी की आवश्यकता होती है। यदि उन्हें बारी-बारी से उगाया जाता है, तो सबसे अधिक अम्लीय संवेदनशील फसल के पीएच को प्राप्त करने के लिए चूना डालें। भारी मिट्टी पर जड़ों की वृद्धि सीमित हो सकती है।
मूंग की खेती जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई के मध्य या पहले सप्ताह के दौरान की जानी चाहिए। गर्मी या वसंत की फसल के लिए, मूंग (Mung) की खेती आखिरी फसल (आलू, गन्ना, सरसों और कपास आदि) की कटाई के बाद की जानी चाहिए। मार्च का पहला पखवाड़ा वसंत/गर्मी की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है।
मूंग (Mung) बोने का आदर्श समय आमतौर पर अधिकांश क्षेत्रों में मध्य मार्च से अप्रैल के प्रारंभ तक होता है, जिसे ग्रीष्म या वसंत ऋतु माना जाता है, क्योंकि यह इसके विकास के लिए इष्टतम तापमान प्रदान करता है, देर से बुवाई करने से फूल आने के चरण के दौरान उच्च तापमान के कारण उपज में हानि हो सकती है।
आधार उर्वरक: मुख्य रूप से जैविक उर्वरक, कुछ त्वरित-क्रियाशील रासायनिक उर्वरकों द्वारा पूरक, आम तौर पर 2 से 3 वर्ग मीटर खेत की खाद, 10 से 25 किलोग्राम डायमोनियम हाइड्रोजन फॉस्फेट (हाइड्रोलाइज्ड नाइट्रोजन के लिए उच्चतम सीमा 60 पीपीएम से नीचे) और 0 से 10 किलोग्राम पोटेशियम सल्फेट डालें।
खरीफ की फसल के दौरान मूंग (Mung) की फलियों को एक सिंचाई की आवश्यकता होती है, और गर्मियों या वसंत की फसल के दौरान 2-3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करनी चाहिए, और दूसरी सिंचाई फूल आने से पहले और फली भरने की अवस्था में करनी चाहिए।
मूंग, ग्रीष्म और खरीफ दोनों मौसमों में कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। आमतौर पर मूंग (Mung) की फसल 60 से 70 दिनों में तैयार हो जाती है।
मूंग की खेती से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसान भाई इन उर्वरकों का इस्तेमाल करें, जिससे कि उनकी फसल में अच्छी पैदावार हो सके। अगर आप ने एक हेक्टर जमीन में मूंग (Mung) की खेती करनी है, तो बीज बुवाई से पहले नाइट्रोजन 20 किलोग्राम और सल्फर 50 किलोग्राम और डायअमोनियम फास्फेट डीएपी खाद भी देना चाहिए।
मूंग की खेती उन्नत तरीके से करने पर बर्षाकालीन फसल से 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा ग्रीष्मकालीन फसल से 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर औसत उपज प्राप्त की जा सकती है। मिश्रित फसल में 3-5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। हालांकि, मूंग (Mung) की उपज कई बातों पर निर्भर करती है, जैसे कि खेती का तरीका, सिंचाई, और बोई जाने वाली किस्म आदि।
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