
Nigella Farming in Hindi: कलौंजी, जिसे निगेला सैटिवा, मंगरैल, या काला जीरा के नाम से भी जाना जाता है। कलौंजी एक गौण बीजीय मसाला है, जिसका बीज काले रंग का होता है अचार एवं अन्य खाद्य पदार्थों को मसालेदार एवं तीखा बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। इसमें कई औषधीय गुण पाये जाते है।
इसके तेल में मौजूद नाइजेलोन तत्व की उपस्थिति के कारण खाँसी एवं दमा के रोगों में लाभकारी होता है। इसके बीज को ऊनी कपड़ों के तहों में रखते है, जिससे कीडे नहीं लगते हैं। कलौंजी (Nigella) में समस्त औषधीय गुण विद्यमान रहते है इसलिए इसे रामबाण की संज्ञा दी गयी है।
यह लेख भारत में कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) के बारे में एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रदान करता है, जिसमें जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताओं, खेती की तकनीक, कीट और रोग प्रबंधन, कटाई के तरीके, बाजार के अवसर और सरकारी सहायता पहल जैसे पहलुओं को शामिल किया गया है।
कलौंजी के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Nigella)
कलौंजी की खेती के लिए, सर्दी और गर्मी दोनों मौसमों की जरूरत होती है। उत्तरी भारत में इसकी बुवाई रबी की फसल के रूप में की जाती है। प्रारम्भ में वानस्पतिक वृद्धि के लिए ठंड़ा मौसम अनुकुल होता है, जबकि बीज परिपक्व होते समय शुष्क एवं अपेक्षाकृत गर्म मौसम उपयुक्त होता है। यह फसल पाले के प्रति संवेदनशील होती है। कलौंजी (Nigella) की बुआई के लिए 20-30° सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है।
कलौंजी के लिए भूमि का चयन (Selection of land for Nigella)
कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, लेकिन पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ वाली बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6.5 से 7.5 तक हो, सबसे उत्तम होती है। मिट्टी भूरभूरी एवं उचित जल निकास वाली होनी चाहिए एवं खेत खरपतवार, कंकर पत्थर आदि से मुक्त होना चाहिए।
कलौंजी के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Nigella)
खेत की तैयारी (Nigella Cultivation) करने के लिए एक गहरी जुताई तथा दो से तीन हल्की जुताई करके पाटा लगाना चाहिए। समतल खेत में कलौंजी बीज का जमाव एक समान होता है एवं फसल भी अच्छी होती है। मिट्टी में दीमक की समस्या होने पर अन्तिम जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत की 25 किलोग्राम अथवा फेनवेलेरेट पाउडर 20 किलोग्राम प्रति हैक्टर की दर से खेत में एक समान बुरककर मिला देना चाहिए। खेत में उचित मात्रा में गोबर खाद या कम्पोस्ट डालकर अच्छे से मिला दें।
कलौंजी की उन्नत किस्में (Improved varieties of Nigella)
कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) के लिए कई किस्में विकसित की गई हैं, इन कुछ प्रमुख किस्मों में अजमेर कलौंजी- 1, अजमेर कलौंजी- 20, आजाद कलौंजी, पंत कृष्णा, एनएस- 32, एनएस- 44, राजेंद्रश्यामा, कालाजीरा, आजाद कृष्णा कलौंजी और एन आर सी एस एस ए एन- 1 आदि शामिल है।
कलौंजी के लिए बीज और बीजोपचार (Seed and seed treatment for Kalonji)
उच्च गुणवत्ता वाले कलौंजी (Nigella) के बीजों का चयन करना और उनका सावधानीपूर्वक उपचार करना सफल फसल की दिशा में पहला कदम है। कलौंजी की कतार विधि द्वारा बुवाई के लिए 7 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टर उपयुक्त है तथा बाविस्टिन फंफूद नाशी द्वारा 2.0 ग्राम अथवा ट्राइकोडर्मा 6-8 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए। बीजोपचार सर्वप्रथम कवकनाशी उसके बाद कीटनाशी और अन्त में जीवाणुयुक्त दवाई या जीवाणु खाद से करना चाहिए।
कलौंजी की बुवाई और बुवाई का समय (Sowing and sowing time of Nigella)
बुवाई का समय: रबी की फसल के लिए उत्तरी भारत में कलौंजी (Nigella) की बुवाई का सबसे अच्छा समय मध्य अक्टुबर से मध्य नवम्बर के दौरान होता है।
बुवाई की विधियां: छिटकवाँ विधि से बुवाई में कलौंजी (Nigella) के बीजों को बनायी गयी समतल क्यारियों में एक समान छिटक देना चाहिए एवं इनके ऊपर दंताली की सहायता से मिट्टी की हल्की परत चढ़ा देनी चाहिए।
कतार विधि में बीज की बुवाई 30 सेमी दूर कतारों में एवं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखनी चाहिए। बुवाई के समय हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि बीज की गहराई 2 सेमी से ज्यादा न हो अन्यथा बीज के अंकुरण पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है।
कलौंजी के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer for Nigella)
कलौंजी (Nigella) के लिए बुवाई के लगभग एक माह पूर्व अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद 10 से 15 टन प्रति हैक्टेयर के हिसाब से खेत में समान रूप से मिला देनी चाहिए। उर्वरकों का प्रयोग हमेशा मिट्टी की जाँच के परिणाम के अनुसार करना चाहिए। एक सामान्य उर्वरकता वाली भूमि में 40 किलोग्राम नत्रजन, 20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए।
अन्तिम जुताई के समय नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा भूमि में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। शेष नत्रजन को दो बराबर भागों में बाँटकर बुवाई के 30-35 एवं 60-65 दिनों की खड़ी फसल में सिचाई के साथ देने से पौधों की अच्छी वृद्धि एवं गुणवता वाला उत्पादन प्राप्त होता है।
कलौंजी की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Nigella Crop)
कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) सिंचित और असिंचित दोनों ही अवस्थाओं में की जा सकती है, कलौंजी की बुवाई के पश्चात मौसम तथा मृदा की संरचना को ध्यान में रखते हुए 15-20 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फूल बनते समय एवं बीज के विकसित होते समय मृदा में उचित नमी होनी चाहिए। कलौंजी की अच्छी फसल पैदा करने के लिए कुल 2 से 3 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
कलौंजी की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in Nigella crop)
कलौंजी (Nigella) की जब फसल 30-35 दिनों की हो जाये, तो उसी समय निराई-गुड़ाई के साथ कतारों से अतिरिक्त पौधों को भी निकाल देना चाहिए, ताकि फसल वृद्धि और विकास अच्छी तरह हो सके। दूसरी निराई-गुड़ाई 60-70 दिनों के बाद करनी चाहिए। इसके बाद अगर आवश्यक हो तो एक निराई और कर देनी चाहिए।
रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डिमेथलिन दवा 1 किग्रा सक्रिय तत्व को जमाव पूर्व 500-600 लीटर पानी में घोलकर मृदा पर छिड़काव करना चाहिए। इस विधि से अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि भूमि में पर्याप्त नमी हो।
कलौंजी की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in Kalonji crop)
माहू (एफिड): इन छोटे आकार के हल्के हरे रंग से गहरे कत्थई या काले रंग वाले कीटों का प्रकोप समान्यता: जनवरी से मार्च के बीच पाया जाता है। इस कीट के प्रौढ व शिशु दोनों ही पौधों को क्षति पहुंचाते है।
नियंत्रण: कीटों की संख्या ज्यादा होने पर रसायनिक कीटनाशक जैसे डाइमिथोएट 1.0 मिली, थायोमेथोक्साम 0.5 ग्राम और इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मिली प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।
कटुवा इल्ली: यह कलौंजी (Nigella) पौधों को जमीन की सतह से काट देती है, जिससे पूरा पौधा नष्ट हो जाता है।
नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिये फोरेट 10 जी को 10-12 किलों प्रति हैक्टेयर या फेनवेलरेट पाउडर 25 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से बीज बोने के साथ या बाद में पौधों के पास बुरकना चाहिए।
दीमक: यह कलौंजी (Nigella) को सबसे अधिक हानि पहुँचाते है। इस कीट के अधिक प्रकोप की अवस्था में खेत में फसल को काफी नुकसान होता है। दीमक पौधों की जड़ों तथा तने को काट डालती है, जिससे पौधे अपरिपक्व अवस्था में ही सूख कर गिर जाते है।
नियंत्रण: फसल के दौरान प्रकोप दिखाई देने पर क्लोरपाइरीफोस 20 ईसी का 4 लीटर दवा प्रति हैक्टेयर की दर से रेत में मिलाकर मृदा में डालकर सिंचाई करनी चाहिए या सिंचाई के जल के साथ देने से दीमक से निजात मिलता है।
फल भेदक: इस कीट का प्रकोप कलौंजी (Nigella) में फल बनने की प्रारम्भिक अवस्था में अधिक पाया जाता है। यह कीट फल (केप्सूल) में छेद करके अपरिपक्व बीजों को खा जाता है।
नियंत्रण: इसके लिए डाईमिथोएट 0.01 प्रतिशत का घोल बनाकर 10-12 दिनों के अन्तराल पर 2-3 बार छिड़काव करने से इस कीट को प्रभावी रुपसे नियंत्रित किया जा सकता है।
कलौंजी की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in Nigella crop)
जड़ सड़न: इस बीमारी से कलौंजी (Nigella) के रोगग्रस्त पौधे पहले तो पीले दिखते है एवं बाद में पतियाँ धीरे धीरे सूख जाती है और पौधा अन्ततः मर जाता है।
नियंत्रण: इस रोग से बचाव के लिए बीज को ट्राइकोडर्मा पाउडर द्वारा 4 से 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना फायदेमंद रहता है, इसके अलावा कार्बन्डेजियम या कैप्टान 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित कर भी बोया जा सकता है। ग्रीष्म ऋतु में गहरी जुताई करके खेत को खुला छोड़ देना एवं उचित फसल चक्र अपनाना भी एक अच्छा उपाय है।
कलौंजी फसल की कटाई और मड़ाई (Harvesting and threshing of Nigella crop)
जब कलौंजी (Nigella) की फसल परिपक्व हो जाये तभी फसल की कटाई करनी चाहिए। सामान्यतया फसल 135-150 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। बीज संपुट ज्यादा सूख जाने पर फट जाते है, जिससे बीज खेत में बिखर जाते है। अतः फसल की कटाई समय पर कर लेनी चाहिए। इसके लिए पौधों को हाथ से या कटाई मशीन से काट लेना चाहिए।
इसके बाद छोटे-छोटे बण्डल बाँध कर इन्हें छायादार फर्श पर फैलाकर उलटते रहना चाहिए, जिससे अच्छी प्रकार सूख जाए। बीज को बीजीय मसाला घेसर द्वारा अलग कर लेना चाहिए एवं बीजों को सूखाकर बोरियों या उपयुक्त पैकिट या थैले में भरकर रखना चाहिए।
कलौंजी की फसल से उपज (Yield from Kalonji crop)
कलौंजी की फ़सल बुआई के 135-150 दिन बाद पक जाती है। कलौंजी (Nigella) की खेती में उन्नत तकनीकियाँ अपनाकर ली गई फसल से औसतन 8 से 12 क्विंटल उपज प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
काला जीरा, जिसे निगेला सैटिवा या कलौंजी (Nigella) भी कहा जाता है, की खेती सीधे मिट्टी में इसके बीजों को बोकर की जाती है, आमतौर पर 1.5-2 सेमी की गहराई पर पंक्तियों के बीच 30 सेमी और पौधों के बीच 15 सेमी की दूरी के साथ लाइन बुवाई के माध्यम से। यह अच्छी तरह से सूखा मिट्टी में पूर्ण सूर्य के प्रकाश के साथ पनपता है, मध्यम पानी की आवश्यकता होती है और जब बीज की फली भूरी और सूखी हो जाती है, तो इसे काटा जाना चाहिए।
कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) के लिए ठंडे मौसम की शुरुआत में और गर्म मौसम के अंत में जलवायु अनुकूल होती है।
कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) के लिए कार्बनिक पदार्थों वाली बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। दोमट या काली मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता ज्यादा होने की वजह से यह ज्यादा उपयुक्त होती है।
कलौंजी की बुवाई सितंबर से अक्टूबर के बीच की जाती है। यह रबी सीज़न की एक प्रमुख नकदी फसल है, कलौंजी (Nigella) के पौधे गर्म और ठंडी दोनों जलवायु में पनपते हैं।
कलौंजी (Nigella) की एनएस- 4, एनआरसीएसएस एन- 1, आजाद कृष्णा, पंत कृष्णा, एनएस -32, अजमेर कलौंजी- 1, अजमेर कलौंजी- 20 जैसी किस्में अच्छी मानी जाती हैं।
कलौंजी (Nigella) की बुवाई के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए। इसके लिए, खेत को कई बार जुताई करके समतल और चिकना करना चाहिए। इसके बाद, खेत में क्यारियां बनाकर बीज बोने चाहिए। कलौंजी की बुवाई के लिए अक्टूबर-नवंबर का समय सबसे अच्छा होता है।
कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) के लिए नाइट्रोजन, फ़ॉस्फ़ोरस और पोटैश की उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा, सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट भी खेत में मिलाई जाती है।
कलौंजी की फसल (Nigella Crop) में ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती। हालांकि, बीज बोने के तुरंत बाद इसकी पहली सिंचाई कर देनी चाहिए। कलौंजी के पौधों को पानी देने के बीच मिट्टी का सूखना पसंद होता है, अर्थात कलौंजी के पौधों को नियमित रूप से पानी देना चाहिए।
कलौंजी की खेती (Nigella Cultivation) से एक हेक्टेयर में औसतन 8 से 12 क्विंटल बीज की पैदावार होती है। हालांकि, अलग-अलग किस्मों के हिसाब से पैदावार अलग-अलग हो सकती है।
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