
Niger Farming in Hindi: रामतिल, जिसे वैज्ञानिक रूप से गुइज़ोटिया एबिसिनिका के नाम से जाना जाता है, एक बहुमुखी तिलहन फसल है जिसका कृषि और आर्थिक महत्व बहुत ज्यादा है। एक फूल वाला पौधा है जिसकी खेती इसके तेल से भरपूर बीजों के लिए की जाती है। जिसका उपयोग आमतौर पर खाना पकाने और पारंपरिक चिकित्सा में भी किया जाता है।
रामतिल की खेती का एक लंबा इतिहास है और विभिन्न क्षेत्रों में इसका सांस्कृतिक महत्व है। यह लेख रामतिल की खेती के तरीकों पर विस्तार से चर्चा करता है, इसके विकास के लिए आदर्श जलवायु और मिट्टी की स्थितियों के बारे में जानकारी देता है, साथ ही रामतिल के बीजों को लगाने, उनकी देखभाल करने और कटाई करने के बारे में विस्तृत मार्गदर्शन भी देता है।
रामतिल के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for Niger)
रामतिल की खेती (Niger Cultivation) के लिए मध्यम तापमान और पर्याप्त वर्षा की जरूरत होती है, अर्थात मध्यम तापमान 18 से 23 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए। 30 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा तापमान होने पर रामतिल के पौधों की वृद्धि और फूलों पर असर पड़ता है। रामतिल की खेती सूखे क्षेत्रों में भी की जा सकती है और साथ ही सभी मौसमों में की जा सकती है।
रामतिल के लिए भूमि का चयन (Selection of land for Niger)
रामतिल की खेती के लिए उपजाऊ और बंजर दोनों तरह की जमीन का चुनाव किया जा सकता है। हालांकि, जमीन में जलभराव नहीं होना चाहिए। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी का चयन करना चाहिए, यह मिट्टी अच्छी तरह से जल निकास करती है। रामतिल की खेती (Niger Cultivation) के लिए जमीन के पीएच मान 5.8 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
रामतिल के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for Niger)
रामतिल की खेती (Niger Cultivation) के लिए खेत को अच्छी तरह से तैयार करना जरूरी होता है। इसके लिए, खेत को गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बनाना चाहिए। इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर के द्वारा खेत की दो बार जुताई कर पाटा लगा देने से खेत रामतिल की बुआई के लिए अच्छी तरह तैयार हो जाता है, साथ ही मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने के लिए गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालनी चाहिए। अंतिम जुताई के समय लिंडेन धूल 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन में मिला देने से दीमक का प्रकोप कम होता है।
रामतिल के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for Niger)
रामतिल की खेती (Niger Cultivation) के लिए इन किस्मों को उगाया जा सकता है: जेएनएस- 2016-1115, जेएनएस- 215-9, जेएनएस- 521, जेएनसी- 6, जेएनसी- 1, जेएनएस- 9, जेएनएस- 28, जेएनएस- 30, बीरसा नाईजर- 3 और पूजा प्रचलित है। रामतिल की उन्नत किस्में रोगरोधी होती हैं और इनसे काफी अच्छी पैदावार मिलती है। इन किस्मों से 38 फ़ीसदी तक तेल निकाला जा सकता है।
रामतिल के लिए बीज दर और उपचार (Seed rate and treatment for Niger)
बीज की मात्रा: रामतिल की खेती (Niger Cultivation) के लिए 2 किग्रा प्रति एकड़ बीज पर्याप्त होता है। बुआई के पूर्व बारीक रेत या वर्मी कम्पोस्ट के साथ बीज का मिश्रण कर लिया जाता है। जिससे भूमि में पौधे से पौधे की पर्याप्त हो जाती है।
बीजोपचार: बीज एवं मृदा जनित रोगों से बचाव के लिए बोने से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम 5 ग्राम या ट्रायकोडर्मा विरडी 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करना चाहिए। इसके बाद बोते समय स्फुर घोलक बैक्टीरिया (पीएसबी कल्चर) 10 ग्राम प्रति किलो बीज का उपयोग भी करना चाहिए।
रामतिल के लिए बुवाई का समय और विधि (Sowing time and method for Niger)
बुवाई का समय: रामतिल (Niger) की खरीफ में बुवाई का उपयुक्त समय जुलाई के तृतीय सप्ताह से अगस्त के दूसरे सप्ताह तक और रबी में सितम्बर माह उपयुक्त होता है।
पौध अंतरण: कतार से कतार की दूरी 30 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखना चाहिए। बीज 3 सेमी की गहराई तक बोया जाना चाहिए। कतार में बोनी करनी चाहिए। ढाल वाली भूमि में ढलान के विपरीत दिशा में कतारों में बोनी करना चाहिए।
विरलन प्रक्रिया: रामतिल फसल (Niger Crop) अंकुरण के लगभग 15 दिन बाद या 10 सेमी ऊंचे पौधे होने पर विरलन प्रक्रिया द्वारा पौधे से पौधे का अंतर 10 सेमी एवं कुल पौध संख्या 3.50 लाख प्रति हेक्टेयर तक रखना चाहिए।
रामतिल के लिए उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer Management for Niger)
रामतिल (Niger) की अच्छी उपज के लिए 8 किलो नत्रजन 8 किलो फास्फोरस एवं 4 किलो पोटाश प्रति एकड़ आवश्यकता होती हैं। जिसके लिए 9 किग्रा यूरिया, 50 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट और 6.5 किग्रा मुरेट आफ पोटाश बुवाई के समय आधार रूप से डालना चाहिए तथा शेष 4 किलो नत्रजन (9 किग्रा यूरिया) बुवाई के 30 दिनो के बाद प्रति एकड़ की दर टॉप ड्रेसिंग के रूप में से डालना चाहिए। सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग करने से 12 प्रतिशत सल्फर एवं 21 प्रतिशत कैल्शियम प्राप्त हो जाता है। अतः अलग से सल्फर देने की आवश्यकता नहीं होती है।
रामतिल के लिए खरपतवार प्रबंधन (Weed Management for Niger)
रामतिल फसल (Niger Crop) बुवाई के 0-3 दिन के अन्दर पेण्डिमेथलीन 38.7 (सीएस) 700 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। खेत मे पर्याप्त नमी होना चाहिए। फ्लेट फेन नोजल का प्रयोग करना चाहिए। छिड़काव करते समय पीछे की तरफ चलते हुए प्रयोग करना चाहिए। बुवाई के 15 दिन बाद डोरा चलाकर खरपतवार नियंत्रण करें। बोनी के 20-25 दिन बाद क्विजेलोफाप इथाइल या प्रोपाक्युजेफोप की 250 ली प्रति एकड़ व्यापारिक मात्रा का स्प्रे किया जा सकता है।
रामतिल के लिए सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management for Niger)
रामतिल की खेती (Niger Cultivation) में सिंचाई का प्रबंधन करने के लिए, लंबे समय तक बारिश न होने पर या सूखे की स्थिति में सिंचाई करनी चाहिए, अर्थात लम्बा सूखा पर फूल एवं बीज बनते समय सिंचाई करें। रामतिल के पौधों को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती। सिंचाई के लिए ड्रिप सिंचाई पद्धति का इस्तेमाल किया जा सकता है। ड्रिप सिंचाई पद्धति में पानी पौधों की जड़ों में बूंद-बूंद करके दिया जाता है, इससे पानी की बचत होती है और पौधों का विकास बेहतर होता है।
रामतिल के लिए पौध संरक्षण (Plant protection for Ramtil)
रामतिल (Niger) के पौधों को संरक्षित करने के लिए, बीजों को थायरम या ट्राइकोडर्मा बिरडी के साथ मिलाकर बोना चाहिए। साथ ही, कीटों से बचने के लिए, कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए। अन्य बचाव के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
- बीजों को थायरम या ट्राइकोडर्मा बिरडी के साथ मिलाकर बोना चाहिए।
- रामतिल की इल्ली से बचने के लिए, 800 मिलीलीटर की दर से कीटनाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए।
- माहों कीट से बचने के लिए, 0.3 मिलीलीटर की दर से कीटनाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए।
- गर्मी के मौसम में खेतों की गहरी जुताई करनी चाहिए।
- प्रतिरोधी किस्मों के बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए।
- फसल चक्र, अन्तःफसल, ट्रैप कॉप जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करना चाहिए।
- लाइट ट्रैप और चिपकने वाली ट्रैप का इस्तेमाल करना चाहिए।
- जैविक नियंत्रण के लिए परजीवी और कीट जीवों का इस्तेमाल करना चाहिए।
- आल्टरनेरिया, सरकोस्पोरा एवं जड़ सड़न के लिए कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम एवं मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति किलो बीजोपचार करें। आवश्यक होने पर दवाओं का दो बार स्प्रे किया जा सकता है।
रामतिल के लिए कटाई और भंडारण (Harvesting and storage for Ramtil)
कटाई एवं गहाई: रामतिल फसल (Niger Crop) की पत्तियों के सूखने, बोड़ी के भूरे या काले होने पर कटाई करें। सूर्य की धूप में एक सप्ताह सूखने के बाद लकड़ी के डंडे से पिटाई कर गहाई करें।
भण्डारण: गहाई किये हुये बीज को उड़ाकर साफ करें एवं 8 प्रतिशत नमी रहने तक छाया में सुखाऐं एवं उचित भंडारण करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
रामतिल की खेती करने के लिए जरूरी है कि मिट्टी को अच्छी तरह तैयार किया जाए। इसके अलावा, बीजों का उपचार करके बोना चाहिए। रामतिल की बुआई कतारों में करनी चाहिए कतारों के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।
बीजों को बोने से पहले, उन्हें फफूंद नाशी दवा से उपचारित करना चाहिए। रामतिल की फ़सल को उगाने के लिए, उन्नत किस्म के बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए। फसल को सही तरीके से सिंचित करना चाहिए और फसल को खरपतवार से बचाना चाहिए।
रामतिल को सदाबहार फसल कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा क्योंकि इसकी खेती सभी मौसमों में बखूबी से की जा सकती है। यही नहीं वातावरण की प्रतिकूल परिस्थितियों (सूखा एंव अधिक वर्षा), गैर उपजाऊ मिट्टियों में भी कम निवेश पर रामतिल बेहतर उपज और आर्थिक लाभ देने में सक्षम है।
रामतिल की खेती के लिए उपजाऊ और बंजर दोनों तरह की मिट्टी में की जा सकती है। हालांकि, रेतीली दोमट, बलुआही मिट्टी में इसकी पैदावार सबसे अच्छी होती है। रामतिल की खेती के लिए जरूरी है कि मिट्टी में जलभराव न हो। मिट्टी का पीएच मान 5.2 से 7.3 के बीच होना चाहिए।
रामतिल की खेती खरीब के मौसम में पूर्णतः वर्षा आधारित की जाती है। वर्षाकाल में लम्बे समय तक वर्षा नहीं होने की स्थिति में अथवा सूखे की स्थिति निर्मित होने पर भूमि में नमी का स्तर कम होता है।
रामतिल की खेती के लिए जेएनएस- 2016-1115, जेएनएस- 215-9, जेएनएस- 521, जेएनसी- 6, जेएनसी- 1, जेएनएस- 9, जेएनएस- 28, जेएनएस- 30, बीरसा नाईजर- 3, पूजा, गुजरात नाईजर- 1, एनआरएस- 96-1 जैसी किस्में अच्छी मानी जाती हैं। ये किस्में रोगरोधी होती हैं और अच्छी पैदावार देती हैं।
रामतिल की फसल हेतु अनुशंसित रासायनिक उर्वरक की मात्रा 40:30:20 एनएफनपो किग्रा प्रति हेक्टेयर है। जिसको निम्नानुसार देना चाहिये; 20 किलोग्राम नत्रजन + 30 किलोग्राम फास्फोरस + 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर बोनी के समय आधार रूप में देना चाहिये।
रामतिल की खेती खरीफ के मौसम में की जाती है और ज़्यादातर बारिश पर ही निर्भर रहती है। हालांकि, बारिश कम होने पर या सूखे की स्थिति में सिंचाई करनी पड़ सकती है, ज़रूरी होने पर सिंचाई करने से रामतिल की फ़सल से अच्छी पैदावार मिलती है।
उन्नत तकनीक के साथ अनुशंसित कृषि कार्यमाला अपनाते हुये काश्त करने पर रामतिल की फसल से 700-1000 किग्रा प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
Leave a Reply