
Nutmeg Farming in Hindi: जायफल, एक मसाला है जो अपने गर्म, सुगंधित स्वाद के लिए जाना जाता है, भारत में इसकी खेती का एक समृद्ध इतिहास है। जो देश की सांस्कृतिक विरासत से गहराई से जुड़ा हुआ है। अपने सुगंधित स्वाद और औषधीय गुणों के लिए प्रसिद्ध जायफल सदियों से भारतीय व्यंजनों और पारंपरिक चिकित्सा में एक मुख्य घटक रहा है। जायफल तथा जावित्री नामक दो अलग- अलग मसाले उत्पन्न करता है।
जायफल तथा जावित्री नामक दो अलग- अलग मसाले उत्पन्न करता है। जायफल (Nutmeg Cultivation) शुष्क बीज का दाना तथा उसके चारों ओर लिपटी शुष्क वेज चोल, जावित्री होती है। यह लेख जायफल की खेती की बारीकियों पर प्रकाश डालता है, इसके विकास के लिए आवश्यक आदर्श जलवायु और मिट्टी की स्थिति, खेती की तकनीक, कटाई के तरीके और भारत में जायफल के आर्थिक महत्व की खोज करता है।
जायफल के लिये उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for nutmeg)
जायफल (Nutmeg) के पेड़ गर्म, आर्द्र जलवायु में बहुत अधिक वर्षा और 25-35 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान में सबसे अच्छे से उगते हैं, तथा 150 सेमी तथा इससे अधिक वार्षिक वर्षा वाले स्थान आदर्श माने जाते हैं। इसको समुद्र तट से लगभग 1300 मीटर उंचाई वाले स्थानो पर सफल रूप से उगा सकते हैं।
जायफल के लिये भूमि का चयन (Selection of Soil for Nutmeg)
चिकनी मिट्टी, बालुई मिट्टी तथा लाल लैटराइट मिट्टी जायफल (Nutmeg) की वृद्धि के लिये आदर्श मानी जाती है। जायफल की पैदावार के लिये अत्यधिक शुष्क अथवा अत्यधिक जलमग्नता दोनों तरह की परिस्थिति उपयुक्त नहीं है। इसलिए अच्छी छाया वाली स्थिति वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दें, जो आमतौर पर तेज हवाओं से सुरक्षा के साथ पहाड़ियों पर पाई जाती है तथा जलभराव वाले या खराब जल निकासी वाले क्षेत्रों से बचें।
जायफल की प्रजातियां और रोपण सामग्रियां (Varieties and Planting Materials)
जायफल (Nutmeg) एक कास परागित है तथा इसके पौधों में आपस में कई महत्वपूर्ण विभिन्नताएं देखी गई है। इसके पौधे की वृद्धि की सभी अवस्थाओं तथा शक्ति में ही विभिन्नताएं नहीं होती बल्कि इसमें लिंग समतुल्य सम्बन्ध, लम्बाई, फल का आकार एवं संख्या तथा जावित्री की उपज एवं गुणवत्ता में भी विभिन्नताएं होती है। एक स्वस्थ वृक्ष से लगभग 2000 फल प्रति वृक्ष प्राप्त होते हैं। यह संख्या कुछ सेकडे से लेकर 10,000 फल प्रति वृक्ष तक हो सकती है।
भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान, कालिकट द्वारा विकसित उच्च उपज वाली प्रजाति आईआईएसआर विश्वश्री में रोपण के आठ वर्ष पश्चात् लगभग 1000 फल प्रति वृक्ष की दर से उत्पादन होता है। जब इसके पेडों की संख्या 360 प्रति हेक्टर हो तब इसकी अनुमानित उपज लगभग 3122 किग्रा शुष्क जायफल (छिलके युक्त) तथा 480 किग्रा शुष्क जावित्री प्रति हेक्टर प्राप्त होती है।
आई आईएसआर विश्वश्री से शुष्क जायफल (Nutmeg) तथा जावित्री क्रमश: 70 तथा 35% प्राप्त होती है। जायफल में 7.1% इसेनशियल ओयल, 9.8% ओलिओरसिन तथा 30.9% मक्खन जबकि जावित्री में 7.1% इसेनशियल ओयल, 13.8% ओलिओरसिन की मात्रा होती है। आईआईएसआर ने कुछ अधिक उच्च उपज वाली उच्च स्तरीय पंक्तियों जैसे A9 -20, 22, 25, 69, 150, A4-12, 22, 52, A11-23, 70 को चिन्हित किया है तथा इनकी वितरण हेतू पैदावार की जा रही है।
जायफल के पौधों का प्रजनन (Breeding of Nutmeg Plants)
जायफल (Nutmeg) के नवोदभिद पौधों में नर तथा मादा पौधों को पृथक करना एक प्रमुख समस्या है। जिसके कारण लगभग 50% नर वृक्ष अनुत्पादक रह जाते है। हालांकि अनेक दावों के अनुसार लिंग को अंकुरित अवस्था में पत्तियों की आकृति एवं वेनोशन रंग, शक्ति तथा पत्तियों की इपीडरमिस पर कैलशियम ओकज़ेलेट के कणों के आकार के आधार पर पहचाना जा सकता है।
परन्तु इनमें से कोई पूर्णतः विश्वसनीय नहीं है। केवल वानस्पतिक प्रजनन को वैकल्पिक रूप से अपना सकते है अथवा इसके अतिरिक्त सर्व सम्पन्न गुण युक्त नर पौधा या कलिका या कलम का उपयोग उत्पादन में कर सकते है।
बीजपत्रोपरिक कलम (ईपीकोटाइल कलम): जायफल (Nutmeg) को व्यावसायिक रूप हेतू कलम के द्वारा उत्पादन करते है। प्राकृतिक रूप से फटे हुए फल की तुडाई जून – जुलाई माह में रूट स्टाक के लिये करते है। बीज को पेरीकार्प से पृथक करके सुविधानुसार लम्बी, 1-1.5 मीटर चौढी तथा 15 सेमी उंची बालुई बेड में तुरन्त बुआई करना चाहिए। अच्छे अंकुरण के लिये पानी का नियमित छिडकाव अति आवश्यक है। रोपण के लगभग 30 दिन से लेकर 90 दिन के अन्दर अंकुरण आरम्भ होने लगता है।
लगभग 20 दिन पुराने अंकुरित पौधे को मृदा, बालू तथा गोबर खाद के मिश्रण ( 3:3:1) युक्त पोलीथीन बैग में स्थानान्तरण करते है। रूट स्टाक के लिये तने की मोटाई (0.5 सेमी या अधिक व्यास), प्रथम पत्ती अवायत तथा उपयुक्त लम्बाई वाले पौधे का चयन कर सकते है। अधिक उपज वाले वृक्ष की 2-3 पत्ती सहित कलम को ग्राफटिंग के लिये उपयोग कर सकते है। इस बात का विशेष ध्यान रखे कि स्कन्द तथा कलम एक ही व्यास की होनी चाहिए।
स्कन्द पर ‘V’ आकार का कट लगाते है तथा कलम को सावधानीपूर्वक उस पर फिट कर देते है। तत्पश्चात् ग्राफटिंग वाले क्षेत्र को प्लास्टिक की पट्टी से बांध कर उसे पोटिंग मिश्रण युक्त 25 सेमी x 15 सेमी आकार की पोलीथीन बैग में रोपण कर देते है। जायफल (Nutmeg) कलम को उपर से पोलीथीन बैग से ढक कर ठण्डी छायादार स्थान (जहां पर सूर्य प्रकाश न आता हो) पर रखते है।
एक माह पश्चात् ढकी गयी पोलीथीन बैग को हटाकर निरीक्षण करते है यदि ग्राफट की गई कलमों में अंकुरण दिखाई दे तो उन्हें तुरन्त मृदा, बालू तथा गोबर खाद ( 3:3:1) युक्त पोलीथीन बैग में स्थानान्तरण करके वृधि हेतू छायादार स्थान में रख देते है। ग्राफट वाले क्षेत्र से पोलीथीन का बांध तीन माह पश्चात् हटा सकते है। ग्राफटिंग के दौरान कलम को म्लानी रोग से बचाने के लिये सावधानी बरतनी चाहिए तथा ग्राफट को यथासम्भव जल्दी से जल्दी पूरा कर लेना चाहिए। कलम को 12 माह पश्चात् खेत में रोपण कर सकते है।
जायफल रोपण के लिये भूमि की तैयारी (Preparation of land for planting)
जायफल का वर्षा ऋतु के आरम्भिक काल में रोपण करते है। 0.75 X 0.75 X 0.75 मीटर आकार के 9 x 9 मीटर के अन्तराल पर गड्ढे खोद कर, उसमें रोपण के 15 दिन पहले जैविक खाद तथा मृदा भर देते है। पैलीगियोट्रोफिक ग्राफट को रोपण के लिये गड्ढों में 5 x 5 मीटर का अन्तराल रखना चाहिए। खेत में प्रति 20 मादा ग्राफट पर एक नर ग्राफट को अवश्य रोपण करना चाहिए। पौधे को रोपण के पश्चात् प्रारम्भिक अवस्था में सूर्य के झुलसा देने वाले प्रकाश से बचाने हेतू छाया प्रदान करना चाहिए।
जायफल (Nutmeg) को जब ढलान युक्त पहाडी क्षेत्रों तथा एकल फसल प्रणाली (मोनोकोप) के रूप में खेती कर रहे है, तब स्थाई छायादार वृक्षों को रोपण करना चाहिए। जायफल की 15 वर्ष पुराने नारियल के बागों में अन्तः फसल सर्वोत्तम होती है क्योंकि इन बागों की छाया जायफल की पैदावार के लिये आदर्श मानी जाती है। इसकी खेती हेतू नारियल के बाग नदी-तट के सहारे अथवा उसके निकटवर्ती क्षेत्र अति उपयुक्त होते है। इसमें ग्रीष्मकाल में सिंचाई अि आवश्यक है।
जायफल के लिये खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer for nutmeg)
खाद जायफल (Nutmeg) पौधे के चारों ओर कम गहराई वाले गड्ढे खोद कर डालना चाहिए। 20 ग्राम नाइट्रोजन (40 ग्राम यूरिया), 18 ग्राम P/2O/2 (110 ग्राम सुपर फोस्फेट) तथा 50 ग्राम KO (80 ग्राम पोटाश का म्यूरेट) को रोपण के पश्चात् प्रारम्भिक वर्षों में डालना चाहिए तथा पौधे की प्रगति के अनुसार खाद की मात्रा में वृधि करके क्रमशः 500 ग्राम नाइट्रोजन (1090 ग्राम यूरिया), 250 ग्राम P/2O/2 (1560 ग्राम सुपर फोस्फेट) तथा 1000 ग्राम KO (1670 ग्राम पोटाश का म्यूरेट) प्रति वर्ष 15 वर्ष पुराने या परिपक्व वृक्षों में डालना चाहिए। 7-8 वर्ष पुराने में एफ वाई एम 2-5 किग्रा की दर से तथा 15 वर्ष पुराने या परिपक्व वृक्षों में 50 किग्रा की दर से डालना चाहिए।
जायफल में रोग नियंत्रण (Disease control in nutmeg)
डाई बैक: यह रोग जायफल (Nutmeg) की पूर्ण विकसित तथा अविकसित शाखाओं में अग्रभाग से नीचे की ओर निर्जलकरण के कारण चरित्र चित्रण करते है।
नियंत्रण: संकमित शाखाओं को वृक्ष से काट कर अलग करना चाहिए तथा कटे हुए अवशेष को 1% बोर्डियो मिश्रण से उपचारित करना चाहिए।
धागेनुमा अंगमारी: जायफल (Nutmeg) में प्रायः दो प्रकार की अंगमारी होती है। प्रथम सफेद धागेनुमा अंगमारी जिससे सफेद महीन हाइके समूह कवकीय धागे तने तथा पौधे के निचले भाग पर बनाते हैं। दूसरी प्रकार की अंगमारी को होर्स हेयर ब्लाइट (घोडे के बाल की तरह अंगमारी) कहते है। इसमें काली रेशमी धागेनुमा महीन कवक अनियमित, शिथिल तन्तु पत्तियों एवं तने पर बनाती है।
नियन्त्रण: दोनों तरह के रोग डाई बैक तथा धागेनुमा अंगमारी का प्रभाव अधिक छायादार स्थान में अधिक होता है। अतः इन रोगों की रोकथाम छाया को नियन्त्रण तथा फाइटोसैनिटेशन अपना कर कर सकते है। अत्यधिक संक्रमित बागों में परम्परागत विधियों के अतिरिक्त 1% बोर्डियो मिश्रण का छिडकाव कर के इन रोगों को नियन्त्रण किया जा सकता है।
तल विगलन: जायफल के अधिकांश बागों में अविकसित फलों का फटना, फल का सडना तथा फल का गिरना एक प्रमुख गम्भीर समस्या है। कुछ वृक्षों पर बिना किसी स्पष्ट संक्रमण के अविकसित फलों का फटना तथा ओसारी को देखा गया है। गहरे रंग की चित्ती पेडिकिल से आरम्भ होकर धीरे धीरे सम्पूर्ण फल पर फैल जाती है जिस कारण फल सडने लगता है।
नियन्त्रण: जायफल (Nutmeg) के अर्ध विकसित फलों पर 1% बोर्डियो मिश्रण का छिडकाव करने से इस रोग को नियन्त्रण किया जा सकता है।
छर्रा छिद्र ( शाट होल): इसके प्रमुख लक्षणों में उताक्षयी धब्बा पटल पर विकसित होता है जो कि हरिमाहीन परिवेष से घिरा रहता है। पूर्णत: विकसित अवस्था में नेकरोटिक धब्बा भुरभुरा हो जाता है तथा छर्रा छिद्र होने के कारण गिर जाता है।
नियन्त्रण: जायफल (Nutmeg) में रोग निरोधी 1% बोर्डियो मिश्रण का छिडकाव करने पर इस रोग को प्रभावशाली तरीके से नियन्त्रण कर सकते हैं।
जायफल में कीट नियंत्रण (Pest control in nutmeg)
काला शल्क (ब्लैक स्कैल): काला शल्क विशेषकर पौधशाला में नये तने तथा पत्तियों पर तथा कभी कभी खेत में नये पौधों को हानि पहुँचाता हैं। शल्क आपस में मिलकर गुच्छों के समान, काले, अण्डाकार तथा गुबंद के आकार के होते है। यह पौधे का रस चूसते हैं तथा अधिक संक्रमण के कारण शाखाओं पर म्लानी तथा सूखापन आ जाता है।
सफेद शल्क: सफेद शल्क भूरी सफेद, सपाट, मछली के शल्क के आकार की होती है तथा विशेषकर पौधशाला में बीज द्वारा उत्पन्न पौधों की पत्तियों के निचले भाग में आपस में गुच्छे बनाकर चिपकी रहती है। इस हानिकारक संक्रमण के कारण पत्तियों पर पीली धारी तथा धब्बा पड जाता है तथा अत्यधिक संक्रमण के कारण पत्तियां शिथिल तथा सूख जाती है।
परिरक्षक शल्क (शीलड स्कैल): शीलड स्कैल हलके भूरे रंग की अण्डाकार होती है। यह विशेषकर जायफल (Nutmeg) पौधशाला में नये अंकुरित पौधों की पत्तियों तथा तने पर पाई जाती है। इसके कारण पत्तियां तथा तना सूख जाता है।
नियन्त्रण: उपरोक्त शलक कीटों तथा इनकी अन्य जातियां जो जायफल (Nutmeg) को हानि पहुंचाती है, उनको 0.05% मोनोक्रोटोफोस का छिडकाव करके नियन्त्रित कर सकते है।
जायफल के फलों की तुड़ाई (Harvesting of Nutmeg Fruits)
जायफल (Nutmeg) के मादा वृक्ष से 6 वर्ष बाद फल आना आरम्भ हो जाता जबकि 20 वर्ष पश्चात् यह अपनी चरम सीमा पर होते है। फूल के 9 महीने पश्चात् फल तुडाई के लिये तैयार हो जाताI माह जून – अगस्त तुडाई के लिये सबसे उत्तम समय माना जाता है I जब फल पक जाये और फलभित्ति फट जाये तब फल तोडने के लिये तैयार होता है।
तुडाई के पश्चात् बाहरी आवरण को अलग कर देते हैं तथा जायफल (Nutmeg) को जावित्री से अलग करते है। जायफल तथा जावित्री को अलग-अलग सुर्य के प्रकाश में सुखाते हैं। सूखने के पश्चात् जावित्री का लाल रंग धीरे धीरे भूरा पीला तथ भुरभुरा रंग का हो जाता है। स्वस्थ फलभित्ति को अचार, जैम तथा जैली बनाने में उपयोग कर सकते हैं।
जायफल की यान्त्रिकी शुष्क विधि (Mechanical drying process of nutmeg)
ताज़ा जावित्री को पानी में 75° सेल्सियस पर 2 मिनट तक हल्का उबालने पर लाल रंग यथावत् बना रहता है। इसके पश्चात् गरम हवा (55-65° सेल्सियस) में 3-4 घण्टे सुखाने पर 8-10% आर्द्रता का स्तर बनाये रखते है। जबकि जायफल (Nutmeg) को गरम हवा तकनीक द्वारा 14-16 घण्टे तक सुखाते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
छायादार नर्सरी में चयनित बीजों को 2.5 – 5 सेमी गहराई पर और 30 सेमी की दूरी पर बक्सों या अच्छी तरह से तैयार नमीयुक्त नर्सरी बेड में बोया जाता है। अंकुरण में लगभग एक महीने या उससे अधिक समय लगता है। जायफल (Nutmeg) के दो से तीन महीने के बाद पौधों की औसत ऊंचाई लगभग 15 सेमी हो जाती है। फिर उन्हें टोकरियों या प्लास्टिक के छिद्रित थैलों में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
जायफल (Nutmeg) के लिए भुरभुरी, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी से लेकर लाल मिट्टी उपयुक्त है। यह फसल 150 – 250 सेमी वर्षा, आर्द्र उष्णकटिबंधीय जलवायु के साथ 1000 मीटर की ऊंचाई तक उगाई जा सकती है।
जायफल (Nutmeg) की बुवाई वर्षा ऋतु के शुरूआत में करनी चाहिए, जून से अगस्त के बीच जायफल के पौधों की रोपाई की जा सकती है।
जायफल (Nutmeg) के प्रति एकड़ 50-60 पौधे लगाए जा सकते है। 15 वर्ष या उससे अधिक आयु के पेड़ लगभग 1000-2000 या उससे अधिक फल देते हैं और बड़े पेड़, जो 30 वर्ष से अधिक आयु के हैं, प्रति वर्ष लगभग 3000-10000 फल दे सकते हैं।
जायफल का पेड़ छठे साल से फल देना शुरू कर देता है। हालांकि, इसका चरम काल 20 सालों के बाद आता है। जायफल (Nutmeg) के पेड़ की पैदावार धीरे-धीरे बढ़ती है और 25-30 सालों में यह अपने अधिकतम उत्पादन स्तर पर पहुंच जाता है।
फूल आने के लगभग 9 महीने बाद जायफल (Nutmeg) फल कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। कटाई का सबसे अच्छा मौसम जून-अगस्त के दौरान होता है। जब पेरिकारप खुल जाता है तो फल पक जाते हैं और कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
जायफल की खेती (Nutmeg Cultivation) से एक हेक्टेयर में करीब 3,122 किलोग्राम शुष्क जायफल (छिलके सहित) और 480 किलोग्राम शुष्क जावित्री की उपज होती है। हालांकि, यह उपज कई कारकों पर निर्भर करती है।
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