Oats Cultivation: जई चारे की एक आदर्श फसल है जो दिसम्बर से मार्च तक हरा चारा मुहैया कराती है। बहु कटाई और अधिक उपज के साथ-साथ जई (Oats) एक उच्च गुणवत्ता वाला स्वादिष्ट तथा पौष्टिक चारा है। हमारे देश में जई की खेती (Oats Farming) अधिकतर सिंचित दशा में की जाती है, किंतु मध्य अक्टूबर तक भूमि पर्याप्त नमीं होने पर इसे असिंचित दशा में भी उगया जा सकता है। वैसे सभी जलवायु क्षेत्रों में जहां गेहूं और जौ की खेती होती हो वहां इसकी खेती की जा सकती है। यह पाले और अधिक ठंड को सहन कर सकती है। जई पशुओं के खाने के लिए कोमल और सुपाच्य है।
इसमें क्रूडप्रोटीन 10 से 12 प्रतिशत होता है। जई (Oats) को भूसा या सूखे चारे के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है। यह अपने सेहत संबंधी फायदों के कारण भी काफी प्रसिद्ध है। जई का खाना मशहूर खानों में गिना जाता है। जई में प्रोटीन और रेशे की भरपूर मात्रा होती है। यह भार घटाने, ब्लड प्रैशर को कंटरोल करने और बीमारियों से लड़ने की शक्ति को बढ़ाने में भी मदद करता है। यदि कृषक बन्धु इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो जई की फसल से अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है। इस लेख में जई की खेती (Oats Farming) कैसे करें का उल्लेख किया गया है।
जई की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable Climate for Oats Cultivation)
जई की खेती (Oats Farming) के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु उपयुक्त समझी जाती है, दक्षिण भारत में अधिक तापक्रम होने के कारण इसकी खेती अच्छी उपज नही देती है। इसलिए उत्तर भारत में कम तापक्रम के कारण इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसकी खेती के लिए 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान सर्वोतम माना जाता है।
जई के लिए खेत की तैयारी और भूमि उपचार (Field Preparation and Land Treatment for Oats)
जई की खेती (Oats Farming) के लिए खेत को 2-3 बार हैरो और कल्टीवेटर से जोतकर पाटा लगायें। इस समय भूमि में 10-15 टन प्रति हैक्टेयर कम्पोस्ट खाद मिला दें। साथ ही भूमिगत कीड़ों से बचाव हेतु 25 किलो मिथाईल पैराथियॉन 2 प्रतिशत घोल प्रति हैक्टेयर भूमि में मिला दें। खेत तैयार होने के बाद पलेवा करें व ओट आने पर एक दो बार कल्टीवेटर से जुताई करके बोयें।
जई की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced Varieties for Oats Cultivation)
उन्नत प्रजातियां जैसे- एचऍफ़ओ 114, युपीओ 94, अल्जीरियन, वाहर जई-1, जई-2, जई-03-91, कैंट, ओएस- 6, जेएचओ- 822 या जेएचओ- 851, ऍफ़ओएस- 1, युपीओ- 13, युपीओ- 50, युपीओ- 92, युपीओ- 123, युपीओ- 160, ओएस- 6, एस- 8, ओएस- 7, ओएस- 9, ओएल- 88, ओएल- 99, जेएचओ- 817, जेएचओ- 822 के- 10, चौड़ी पत्ती पालमपुर- 1, एनपी -1, एनपी- 2, एनपी- 1 हायब्रिड, एनपी- 3 हायब्रिड, एनपी- 27 हायब्रिड, बीएस- 1, बी- 2 एस, बिस्टान- 2 बिस्टान -11, ब्रेकल- 11, ब्रेकल- 10 में से कोई भी शुद्ध प्रमाणित और अच्छे अंकुरण वाला बीज विश्वसनीय स्थान से बोनी के पूर्व सुरक्षित करें।
जई की खेती के लिए बीज दर और उपचार (Seed Rate and Treatment for OatS Cultivation)
चारे के लिये बोई गई जई की फसल (Oats Crop) के लिये 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बोना चाहिये। किंतु दाने के लिये केवल 80 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। छिटकवा बुवाई हेतु समय से बुवाई करने पर 110 से 115 किलोग्राम बीज लगता है और पिछेती बुवाई करने पर 120 से 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है। बोनी के पहले बीज को 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से कार्बाक्सिन या कार्बनडाजिम नाम दवा से उपचारित करने से अंकुरण अच्छा होता है और फसल बीज जनित रोगों से मुक्त रहती है।
जई की खेती के लिए बुवाई की विधि (Sowing Method for Oats Cultivation)
बुवाई 90-100 किलो बीज प्रति हैक्टेयर की दर से कतारों में 22.5 सेमी की दूरी पर करें। जई (Oats) की बुवाई अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े से दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक की जा सकती है। चारे की अधिक उपज प्राप्त करने के लिये अक्टूबर का द्वितीय पखवाड़ा अधिक उपयुक्त पाया गया है। ओ एल-9 की बुवाई मध्य अक्टूबर व केन्ट, जावी-8 और डीएफओ- 57 किस्मों की बुवाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह में करें।
जई की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizers for Oats Cultivation)
जई की फसल (Oats Crop) के लिए बुवाई के समय प्रति हैक्टेयर की दर से 40 किलो नत्रजन व 40 किलो फास्फोरस दें । प्रथम सिंचाई के बाद में प्रत्येक कटाई के बाद 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन उर्वरक छिटक कर दें।
जई में निराई गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण (Weeding and Weed Control in Oats)
जई की फसल (Oats Crop) के साथ उगने वाले मुख्य खरपतवार बथुवा, मोथा, कृष्णनील, प्याजी, चटरी, मटरी इत्यादि है। इसके नियंत्रण के लिये पहली सिंचाई के 4-5 दिन बाद खुरपी या हो द्वारा निराई गुड़ाई करें। बीज उत्पादन के लिये ली जाने वाली फसल में खरपतवार नियंत्रण लाभप्रद होता है। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिये 500 ग्राम 2, 4-डी का उपयोग 600 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर घोल कर छिड़काव करें।
जई की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Oat Crop)
जई की फसल (Oats Crop) में पहली सिंचाई बुवाई के 22 – 25 दिन बाद करें तथा बाद की सिंचाइयां फसल की आवश्यकतानुसार करते रहें। ध्यान रहे कि कटाई के बाद सिंचाई अवश्य देवें ताकि फसल की पुनर्वृद्धि अच्छी हो सके।
जई की फसल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and Disease Control in Oat Crop)
रोग नियंत्रण: यदि जई फसल (Oats Crop) का हरा चारा पशुओं को खिलाने के लिए प्रयोग करते है, तो इस अवस्था में रोग कम लगते है। जब जई का बीज बनाते है, तो कण्डवा, पट्टी का धारीदार रोग और रतुआ या गेरुई रोग लगते है। इनके उपचार हेतु मैंकोजेब 2 किलोग्राम या जिनेब 2.5 किलोग्राम का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए।
कीट रोकथाम: जई (Oats) का हरे चारे के रूप प्रयोग करने पर कम कीट लगते है, लेकिन बीज लेने पर खड़ी फसल में चूहे, माहू, सैनिक कीट और गुलाबी तना भेदक नुकसान पहुचाते है। इनके नियंत्रण हेतु चूहो के लिए जिंक फास्फाइड अथवा बेरियम कार्बोनेट के बने जहरीले चारे का प्रयोग करना चाहिए, तथा अन्य की रोकथाम हेतु क्यूनालफास 25 ईसी की 2.0 लीटर मात्रा का फेनवेलरेट 1 लीटर मात्रा 800 से 900 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
ध्यान दे: चारे की जई फसल (Oats Crop) में कीटनाशक का प्रयोग न करें। प्रयोग करने पर कम से कम 15 से 25 दिन तक उस फसल को चारे के रूप में प्रयोग में न लावें।
जई फसल की चारे के लिए कटाई (Harvesting of Oat Crop for Fodder)
समय पर बोयी गयी जई की फसल (Oats Crop) की पहली कटाई बुवाई के 60 दिन बाद व दूसरी कटाई उसके 45 दिन बाद करें। फसल की अच्छी पुनर्वृद्धि हेतु फसल को भूमि से 4-5 सेमी ऊँचाई से काटें। देरी से बोयी फसल में पुनर्वृद्धि अच्छी नहीं आती है। अतः देरी से बोई गयी फसल में बुवाई के 90 दिन बाद एक ही कटाई लें। हरा चारा की औसत पैदावार 400-500 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर मिल जाती है।
जई के साथ मिश्रित खेती (Mixed Farming with Oats)
जई (Oats) घास कुल की फसल है। इसके चारे की उत्पादकता, स्वादिष्टता गुणवत्ता व पौष्टिकता बढ़ाने के लिये इसके साथ सरसों अथवा फलीदार चारा फसलें जैसे मटर, सैंजी, मैथी, आदि की मिश्रित अथवा अंत फसलीय पद्धति में उगा सकते हैं। सरसों को जई के साथ उगाना फायदेमंद पाया गया है।
जई की फसल से बीज उत्पादन (Seed Production from Oats Crop)
बीज उत्पादन के लिये पृथककरण दूरी कम से कम 3 मीटर रखें। फसल में पहली बार पुष्पावस्था पूर्व और दूसरी बार परिपक्वता के समय जंगली जई तथा दूसरे अवांछनीय पौधों को जड़ से उखाड़कर बाहर निकाल दें। जई (Oats) की फसल 120-125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। पकी फसल को काट लें व बाद में सूखने पर थ्रेसर से गहाई कर बीज अलग कर लें।
जई (Oats) का औसत बीज उत्पादन 20-25 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है। अक्टूबर में बोयी गयी जई की फसल को बुवाई के 60 दिन बाद चारे के लिये काटकर पुनर्वृद्धि फसल से भी बीज उत्पादन किया जा सकता है। खरीफ में ग्वार की फसल दाने हेतु लेने के पश्चात् रबी और जायद में हरा चारा हेतु क्रमशः जौ, (आर डी 2052 ) व ज्वार चरी (राज चरी) की फसल लेना लाभदायक साबित हुआ है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
भारत में, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल के सीमित क्षेत्र ओट उगाने वाले राज्य हैं। ओट एक अच्छा पशु चारा है, अच्छी गुणवत्ता वाले अनाज, ओट मील और कुकीज़ के रूप में मानव भोजन है।
जई (Oats) एक वार्षिक पौधा है, जिसे वसंत या पतझड़ में बोया जा सकता है ताकि गर्मियों के अंत में कटाई की जा सके (शरद ऋतु की शुरुआत में कटाई के लिए)। यह 15 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान वाले वातावरण में अच्छी तरह से बढ़ता है। 80 से 100 मिमी बारिश आदर्श है। बुवाई के लिए आदर्श तापमान सीमा 20 से 40 डिग्री सेल्सियस है।
जई (Oats) के लिए विकास का समय 80 से 110 दिनों तक हो सकता है, जो कि बढ़ती परिस्थितियों और फसल की किस्म पर निर्भर करता है। पोषक तत्वों और नमी की प्रचुरता या कमी जैसे कारक पौधे को किसी भी दिए गए विकास चरण तक पहुंचने में लगने वाले समय को बढ़ा या घटा सकते हैं।
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