Onion Farming: हमारे आहार में उपयोग में लाये जाने वाले सब्जीवर्गीय उत्पादों के अन्तर्गत प्याज का एक महत्वपूर्ण स्थान है जिसे प्रायः सभी आय वर्ग के लोग खाते हैं। किसानों के लिये सब्जियों के अन्तर्गत यह एक मुख्य नकदी फसल है, जिसका उत्पादन उनके द्वारा प्रमुख रूप से रबी के मौसम में किया जाता है, परन्तु उपयुक्त जलवायु और अनुकूल कृषि परिस्थितियों में प्याज (Onion) को खरीफ मौसम में भी पैदा किया जा सकता है।
अपने स्वाद, गंध, पौष्टिकता तथा औषधीय गुणों के कारण इसकी मांग घरेलू तथा विदेशी बाजार में दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यही कारण है की प्याज के भाव सौ रूपये प्रति किलों तक भी पहुंच जाते है। फिर भी किसानों को उन्नत किस्मों की जानकारी के अभाव के साथ ही भंडारण की समुचित व्यवस्था के प्रबंधन न कर पाने के कारण उचित लाभ नही मिल पाता है। अत: जरूरी हो जाता है की वैज्ञानिक तरीके से खेती करके प्याज (Onion) की उत्पादकता वृद्धि के साथ ही भंडारण का समुचित प्रबंधन करे।
प्याज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for onion cultivation)
प्याज की खेती (Onion Cultivation) के लिए समशीतोष्ण जलवायु अच्छी समझी जाती है। पौधों आरम्भिक वृद्धि के लिए ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है, लेकिन अच्छे और बड़े कन्द निर्माण के लिए पर्याप्त धूप वाले बड़े दिन उपयुक्त रहते है। मध्यम जलवायु में फसल सबसे अच्छा प्रदर्शन करती है।
पत्ती वृद्धि के लिए उपयुक्त तापमान 13-24 डिग्री सेंटीग्रेट है, जबकि बल्ब विभेदन और विकास तुलनात्मक रूप से उच्च तापमान पर होता है (16-25 डिग्री सेंटीग्रेट) | लगभग 70% सापेक्ष आर्द्रता अच्छी वृद्धि के लिए आदर्श मानी जाती है। 650 से 750 मिमी की औसत वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में फसल सबसे अच्छा प्रदर्शन करती है।
प्याज की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for onion cultivation)
प्याज एक उथली जड़ वाली फसल है, इसलिए पर्याप्त कार्बनिक पदार्थों वाली बलुई दोमट मिट्टी प्याज के बल्ब के विकास के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। रेतीली या भारी मिट्टी में बल्ब का उचित विकास नहीं होता है। फसल जल भराव के प्रति संवेदनशील है, इसलिए पर्याप्त जल निकासी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
बरसात के मौसम में प्याज (Onion) को उठी हुई क्यारियों पर उगाने की सलाह दी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 उपयुक्त होता है। भूमि अधिक क्षारीय या अधिक अम्लीय नहीं होनी चाहिये अन्यथा कन्दों की वृद्धि अच्छी नहीं हो पाती है।
प्याज की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for onion cultivation)
किस्मों का चयन हमेशा सावधानीपूर्वक करे, क्योंकि फसल का उत्पादन इन्ही पर निर्भर करता है। प्याज (Onion) की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे-
रबी फसल के लिए-
लाल प्याज की किस्में: पूसा रेड, पूसा रत्नार, एनएचआरडीएफ रेड (एल – 28), एनएचआरडीएफ रेड – 2, एनएचआरडीएफ रेड – 3, एग्रीफाऊण्ड डार्क रेड, एग्रीफाउण्ड लाईट रेड, पंजाब रेड राउण्ड, अर्का कल्याण, एन – 53, आरओ – 59, आरओ – 252 और भीमा किरन आदि प्रमुख है।
सफेद प्याज की किस्में: उदयपुर – 102, पूसा व्हाईट फ्लेट, पूसा व्हाईट राउण्ड और एग्रीफाऊण्ड सफेद आदि प्रमुख है।
पीली प्याज की किस्में: अर्ली ग्रेनों, फुले सुवर्णा और अर्का सोना आदि प्रमुख है।
खरीफ फसल हेतु: एन 53, एग्रीफाउण्ड डार्क रेड, भीमा सुपर, भीमा रेड, भीमा डार्क रेड, भीमा शुभ्रा, भीमा श्वेता, भीमा सफेद और लाइन – 883, इत्यादि प्रमुख किस्में है।
प्याज बीज की मात्रा और बुआई की विधि (Quantity of pyaaj seeds and method of sowing)
नर्सरी की तैयारी: प्याज की खेती (Onion Cultivation) से अच्छी पैदावार के लिये स्वस्थ पौध का होना जरूरी है। इसके लिये नर्सरी वाले खेत में बीज बोने से पहले 3-4 मीटर लम्बी, और सुविधानुसार चौड़ी तथा 20-30 सेमी ऊँची उठी हुई क्यारियाँ बना लेनी चाहिये। इन क्यारियों के बीच में लगभग दो फीट की जगह निराई-गुड़ाई के लिये छोड़ देनी चाहिये।
बुवाई करने से पूर्व बीजों को किसी फफूंननाशी दवा जैसे थाइरम या कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति किग्रा बीज) या ट्राइकोडर्मा मित्र फफूंननाशी (4-6 ग्राम प्रति किग्रा बीज) से उपचारित करके ही बुआई के काम में लेवे। बीजों की बुआई हमेशा लाइनों में ही करे इसके लिये 5-6 सेमी पर लाइने तैयार करके बुआई करे। आजकल बीज की बुवाई के लिये मशीनें भी उपलब्ध हैं।
बुवाई का समय: खरीफ की नर्सरी जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के दूसरे सप्ताह तक तथा रबी की नर्सरी अक्टूबर के तीसरे स्प्ताह से नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक डाल देनी चाहिये।
बीज की मात्रा: एक हैक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 8-10 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहता है और पौध तैयार करने के लिए 250-300 वर्ग मीटर क्षेत्र जिसमें की 80-100 क्यारियां बन जाये पर्याप्त होती है।
नर्सरी देखभाल: पौध को बीमारी से बचाने के लिए थाइरम की 2-3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। ट्रायकोडरमा विरीडी (5 ग्राम प्रति लीटर) का उपयोग आर्द्र गलन से बचने और स्वस्थ पौध प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। कई बार यह देखने में आता है कि पौध का विकास अच्छा नही हो पाता है तथा पौध पीली पड़ने लग जाती है। इस स्थिति में, पानी में घुलनशील एनपीके उर्वरक ( 19:19:19 की 5 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी) का पर्णीय छिड़काव करने से वे जल्दी ठीक हो जाते हैं।
प्याज (Onion) की पौधशाला में खरपतवार नियंत्रित करने के लिए 0.2 प्रतिशत पेंडीमिथालिन खरपतवारनाशी का प्रयोग करे। पौधशाला में 0.2 प्रतिशत की दर से मेटालेक्सिल के पर्णीय छिड़काव मृदा जनित रोगों को नियंत्रित करने के लिए फायदेमंद है। कीड़ों का प्रकोप अधिक होने पर 0.1 प्रतिशत फिप्रोनील का पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए।
प्याज के लिए खेत की तैयारी और पौध की रोपाई (Preparation of field and planting of pyaaj seedlings)
खेत की तैयारी: मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की एक गहरी जुताई करके 2-3 जुताई देशी हल से कर लेवें, जिससे मिट्टी भूरभरी हो जाये। अन्तिम जुताई के समय गोबर की खाद को अच्छी तरह मिला देना चाहिए। खरीफ के मौसम में पौध की बुवाई हेतु उठी हुयी क्यारियां अथवा डोलियां अच्छी रहती है, जिससे पानी भरने की स्थिति में भी पौध खराब नहीं होती है और फसल स्वस्थ रहती है।
रोपाई का समय: प्याज (Onion) की पौध लगभग 6 से 7 सप्ताह में रोपाई योग्य हो जाती है। खरीफ फसल के लिये रोपाई का उपयुक्त समय जुलाई के अन्तिम सप्ताह से लेकर अगस्त तक तथा रबी फसल के लिये 15 दिसम्बर से 15 जनवरी तक है। खरीफ मौसम में देरी करने से तथा रबी मौसम में जल्दी रोपाई करने से फूल निकल आते हैं।
रोपाई की विधि: रोपाई करते समय कतारों के बीच की दूरी 15 सेन्टीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेन्टीमीटर रखते हैं। रोपाई के समय पौध के शीर्ष का एक तिहाई भाग काट देना चाहिए जिससे उनकी अच्छी स्थापना हो सके। पौध की जड़ों को हमेशा कार्बेण्डाजिम (0.1%) अथवा ट्राइकोडर्मा विरडी मित्र फफूंननाशी (10 ग्राम प्रति प्रति लीटर पानी) के घोल में डूबाने के बाद रोपित करे जिससे बिमारियों से बचाव हो सके।
प्याज की फसल में खाद और उर्वरक प्रबंधन (Manure and fertilizer management in onion crop)
खाद और उर्वरको के उपयोग का मुख्य उद्देश्य पौधों के समुचित विकास एवं बढ़वार के साथ ही मृदा में अनुकूल पोषण दशाएं बनाए रखना होता है। अत: संतुलित मात्रा में खाद और उर्वरकों का उपयोग करना आवश्यक होता है। पोशक तत्वों की कमी या अधिकता का प्याज (Onion) फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
पौध की रोपाई से पूर्व मृदा जांच आवश्यक रूप से करवा लेनी चाहिए तथा उसी सिफारिस के आधार पर खाद व उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए। प्याज (Onion) के लिये अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 400 से 500 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से खेत तैयार करते समय मिला देवें। इसके अलावा 100 किलो नत्रजन, 50 किलो फास्फोरस तथा 50 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है।
नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व खेत की तैयारी के समय देवें। नत्रजन की शेष मात्रा रोपाई के एक डेढ माह बाद खड़ी फसल में देवें। जिंक की कमी वाले क्षेत्रों में रोपाई से पूर्व जिंक सल्फेट 25 किग्रा प्रति हैक्टेयर भूमि में मिलावे अथवा रोपाई के बाद जिंक कमी के लक्षण दिखाई देने पर 5 किग्रा जिंक सल्फेट का पौध रोपण के 50-60 दिन बाद छिड़काव करें।
प्याज की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Onion Crop)
प्याज की फसल (Onion Crop) को प्रारम्भिक अवस्था में कम सिंचाई की आवश्यकता होती है, परन्तु रोपाई के साथ और उसके तीन चार दिन बाद हल्की सिंचाई अवश्य करें, ताकि मिट्टी नम रहे। बाद की अवस्थाओं में सिंचाई की अधिक आवश्यकता रहती है। कन्द बनते समय पर्याप्त मात्रा में सिंचाई करनी चाहिए। फसल तैयार होने पर पौधे के शीर्ष पीले पड़कर गिरने लगते हैं, इस समय सिंचाई बंइ कर देनी चाहिये।
प्याज की फसला में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in onion crop)
प्याज (Onion) के पौधों की आपस की दूरी कम और जड़े अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती है। जिसके कारण अच्छी पैदावार के लिए निराई-गुड़ाई और खरपतवारों की रोकथाम समय से होनी चाहिए। रासायनिक नियंत्रण के लिए ऑक्सिफ्लोरोफेन 23.5 ईसी (1.5-2.0 मिली प्रति लीटर पानी) अथवा पेंडीमिथालीन 30 ईसी (3.5-4.0 मिली प्रति लीटर पानी) का उपयोग रोपाई से पहले या रोपाई के समय करना चाहिए और फिर रोपाई के 40-60 दिनों के बाद एक बार हाथ से निराई की आवश्यकता होती है।
प्याज की फसल में कीट और रोग नियंत्रण (Pest and disease control in onion crop)
थ्रिप्स: यह कीट छोटे आकार का होता है, पूर्ण विकसित होने पर लंबाई एक मिमी होती है। यह प्याज (Onion) पत्तियों का रस चूसते है, जिससे पत्तियों पर छोटे छोटे असंख्य सफेद रंग के निशान बन जाते है। अधिक प्रकोप से पत्तियों के शिरे सूखने लगते हैं और अंत में पत्तियां मुड़कर झुक जाती है।
नियंत्रण: कीट के नियंत्रण के लिए सर्वप्रथम रोपाई से पहले पौधों की जड़ों को 30 मिनट तक इमिडाक्लोप्रिड का 0.5 मिली प्रति लीटर के हिसाब से पानी में घोल बनाकर उपचारित करना चाहिए। फसल में कीट नियंत्रण हेतु 12 से 15 दिन के अंतराल पर डायमेथोएट (1 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए। कीटनाशक के सही प्रभाव हेतु चिपकने वाले पदार्थ (स्टिकर) का उपयोग करना चाहिए।
बैंगनी धब्बा (पर्पल ब्लॉच): इस रोग के कारण पत्तियों के शीर्ष और तने पर शुरूआत में सफेद भूरे रंग के धब्बे बनते है, जिनका मध्य भाग बैंगनी गुलाबी होता है, जो बाद में गहरे भूरे या काले रंग के हो जाते है। बाद में प्याज (Onion) की पत्ती तथा डण्ठल मुड़कर लटक जाते है। पत्तियाँ ऊपर से नीचे की ओर सुखती है।
नियंत्रण: रोकथाम के लिए मई-जून में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। फसल चक्र अपनाना चाहिए एवं फसल अवशेषों को एकत्र कर जला देना चाहिये। बीजों को थायरम या केप्टान 2 ग्राम प्रति किलो बीज से बीजोपचार करना चाहिए। कवकनाशी क्लोरोथेलोनील या कॉपर आक्सीक्लोराइड या डाइथेन एम- 452 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
झुलसा रोग (ब्लाइट): प्रभावित पौधों की पत्तियाँ एक तरफ से पीली (झुलसी) नजर आती है व दूसरे तरफ हरी रहती है। प्रारम्भ में प्याज (Onion) पौधे पर भूरे काले धब्बे दिखाई देते है और ऊपरी भाग मुलायम तथा पुष्प डण्ठल प्रभावित भाग से सुखने लगते है। बाद में संक्रमित भागों पर छोटी-छोटी काले रंग की एसर वुलाई बन जाती है। अधिकांश संक्रमण पुष्प दण्ड में अधिक होता है। यह रोग पत्तियों व तनों के मध्य में पीले धब्बों अथवा धारियों के रूप में भी प्रकट होता है।
नियंत्रण: रोकथाम हेतु फसल चक्र अपनावें तथा गर्मी ने अच्छी गहरी जुताई करें। बाविस्टीन (कार्बेन्डाजिम) 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर बीज कंदों का शोधनकर बुवाई करें या उक्त मात्रा का खड़ी फसल में छिडकाव भी कर सकते है। कॉपर आक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिडकाव करें।
आर्द्रगलन: इस बीमारी का प्रकोप मुख्य रुप से प्याज (Onion) की पौधशाला में देखा जा सकता है। इस रोग में पौध का निचला जमीन के पास वाला भाग कवक के संक्रमण के कारण सड़कर सिकुड़ जाता है और पौधा जमीन पर गिर जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए नर्सरी की क्यारियों को जमीन से 15 से 20 सेमी ऊपर बनाना चाहिए तथा नर्सरी में पानी के निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
नियंत्रण: नियंत्रण हेतु बीज को कार्बेन्डाजिम अथवा थायरम 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज कि दर से उपचारित करना चाहिए। पौधषाला में क्यारियों को केप्टान 0.2 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 0.1 ग्राम से अच्छी तरह तर कर दे। ट्रायकोडरमा विरीडी (5 ग्राम प्रति लीटर) का भी उपयोग आर्द्र गलन से बचने और स्वस्थ पौध प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है।
प्याज कंदों की खुदाई और उपज (Digging of onion bulbs and yield)
कंदों की खुदाई: प्याज (Onion) की फसल 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती है। जैसे ही प्याज की गाँठ अपना पूरा आकर ले लेती है और पत्तियां सूखने लगे तो लगभग 10-15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिए और प्याज (Onion) के पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए इससे कंद ठोस हो जाते हैं और उनकी वृद्धि रूक जाती है। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही कतारों में ही रखकर सुखाते है।
उपज: उपरोक्त उन्नत तकनीक और अच्छी देखभाल द्वारा प्याज की फसल (Onion Crop) से प्रति हैक्टर लगभग 200 से 350 क्विंटल तक पैदावार ली जा सकती है।
सुखाना: खुदाई के बाद प्याज (Onion) कंदों को पत्तियों के साथ एक सप्ताह तक सुखायें। धूप तेज हो तो छाया में लाकर रख दें तथा एक सप्ताह बाद पत्तों को गांठो के 2 से 2.5 सेन्टीमीटर ऊपर से काट दें तथा एक सप्ताह तक सुखायें।
भंडारण: लगभग 40-50 प्रतिशत नुकसान भंडारण में होता है। प्याज की फसल (Onion Crop) 50 प्रतिशत ग्रीवा गिरने के बाद निकाली जानी चाहिए। पत्तियां काट कर सुखाने के बाद प्याज को हवादार सूखी और ठंडी जगह में भण्डारित करना चाहिये। कटे हुये तथा जुडवा कन्द छाट कर अलग कर देना चाहिये। खरीफ मौसम में प्याज को सुखाने के बाद शीघ्र बेच दें अन्यथा गाठे खराब हो जाती है या उनमें फुटान हो जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
प्याज (Onion) एक शीतोष्ण फसल है, लेकिन इसे समशीतोष्ण, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु जैसी कई तरह की जलवायु परिस्थितियों में उगाया जा सकता है। अत्यधिक ठंड और गर्मी तथा वर्षा के बिना हल्के मौसम में सबसे अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
प्याज ऐसे क्षेत्र में सबसे अच्छी तरह से उगता है जहाँ भरपूर धूप हो, ढीली, अच्छी जल निकासी वाली, उपजाऊ, रेतीली-दोमट से लेकर गाद-दोमट मिट्टी हो जिसमें भरपूर मात्रा में कार्बनिक पदार्थ हों। प्याज (Onion) उच्च अम्लीय मिट्टी से आसानी से प्रभावित होते हैं और 6.0 से 6.8 के बीच मिट्टी का पीएच पसंद करते हैं।
प्याज (Onion) को हर हफ़्ते लगभग 1 इंच पानी की ज़रूरत होती है, इसलिए अगर मौसम शुष्क है, तो आपको पानी देना होगा।
रोपाई के तीसरे दिन दूसरी सिंचाई करें। इसके बाद, आपकी मिट्टी कितनी गीली है, इसके आधार पर अपने पौधों को हर 10 से 15 दिनों में पानी दें। फसल काटने से दस दिन पहले खेत की सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।
जनवरी और फरवरी माह के मध्य बोयी जाने वाली प्याज (Onion) फसल से एक बीघा में 50 कुंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
एक हेक्टेयर में प्याज (Onion) लगाने के लिए 10 से 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
प्याज (Onion) में खरपतवार अधिक होते है। इसलिए नियमित निदांई-गुड़ाई कर खेतों के खरपतवार को नियंत्रित रखना चाहिए। सकरी और चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवारों को नियंत्रण करने के लिए – रासायनिक खरपतवारनाशी ऑक्सीफ्लोरफेन 23.5% ईसी 200 मिली प्रति एकड़ या क्विज़ालोफॉप-एथिल 5% ईसी 300 मिली प्रति एकड़ रोपाई के 20 -25 दिन के अंदर प्रयोग करें।
प्याज (Onion) के वजन के लिए इष्टतम नाइट्रोजन की आपूर्ति महत्वपूर्ण है। नाइट्रोजन पत्तियों के उत्पादन का समर्थन करता है और इसलिए, प्याज के कंद के आकार और वजन को बढ़ाता है।
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