SRI of Paddy Cultivation in Hindi: फ्रांस के धर्मगुरु फादर हेनरी डी लौलाने ने 1980 दशक के दौरान मेडागास्कर में धान की सघन कृषि प्रणाली (SRI) का विकास किया था, वे एक किसान भी थे। धान की सघन कृषि प्रणाली (श्री) अब एक उभरता हुआ जल बचत प्रौद्योगिकी है। इस प्रणाली में परंपरागत खेती की तुलना में पौध, मृदा, जल और पोषक तत्वों का प्रबंधन इस प्रकार किया जाता है। जिससे धान पौधों के लिए बेहतर शस्य अवस्था तैयार होती है, विशेषकर जड़ों के लिए बेहतर स्थिति पैदा होती है।
धान की खेती (Paddy Cultivation) की एसआरआई पद्धति निश्चित रूप से एक व्यवहार्य विकल्प है, जिससे न केवल निवेश की बचत होती है, बल्कि मृदा की स्वास्थ्य/गुणवत्ता में सुधार होता है तथा पर्यावरण की भी सुरक्षा होती है। धान की सघन कृषि प्रणाली प्रौद्योगिकी में कम बीज, जल, रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक की आवश्यकता होती है। पौध जड़ों का आकार बड़ा होता है, प्रचुर और मजबूत दौजियां, लंबी बालियां होती हैं।
दाना भरण अच्छी एवं अनाज वजनदार होते हैं। सघन कृषि प्रणाली के संभाव्य लाभ के बारे में और अधिक पहचान करने के लिए अधिकांश धान की खेती करने वाले देश जैसे भारत, चीन, इंडोनेशिया, कंबोडिया, थाइलैंड, क्यूबा, बंग्लादेश तथा श्रीलंका में इस प्रणाली का परीक्षण किया जा रहा है। सघन कृषि प्रणाली से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए विकसित की गई कृषि तकनीक का वर्णन नीचे किया गया है।
श्री विधि से धान की खेती के लिए ध्यान रखने योग्य बातें (Points to keep in mind for paddy cultivation by SRI method)
- 8-12 दिन वाली कम वयस्क बिचड़ों की रोपाई की जाती है।
- एकल बिचड़ा (पौधे) का प्रत्येक पूंज सावधानीपूर्वक और सुगमता से लगाया जाता है।
- श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) में पौध से पौध की दूरी बढ़ जाती है।
- यांत्रिक निराई (रोटारी कुदाल) की जाती है।
- फसल की वृद्धि अवस्था के दौरान मृदा गिली रहनी चाहिए तथा फूल लगने से लेकर दाने बनने तक खेत में 2-3 सेंटीमीटर का पानी स्तर रखा जाता है।
- मृदा की गुणवत्ता में सुधार के लिए जैविक खाद या अन्य जैविक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है।
श्री विधि से धान की खेती के लिए मिटटी का चयन (Soil selection for paddy cultivation by SRI method)
- धान की सघन पद्धति से खेती करने के लिए चयन की गई भूमि को अच्छी तरह से समतल करना चाहिए।
- इस प्रकार की खेती के लिए अधिक जैविक कार्बन वाली उपजाऊ मृदा सबसे उपयुक्त है।
- लवणीय व क्षारीय मिटटी श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
श्री विधि से धान की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for paddy cultivation by Sri method)
- अच्छी तरह से खेत की जुताई करते हुए, कीचड़दार बना कर, समतल करके तथा पारंपरिक पद्धति में जिस प्रकार हेंगा चलाया जाता है उसी प्रकार, खेत में हेंगा चलाकर भूमि को सावधानीपूर्वक तैयार कीजिए।
- श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के तहत पूरे खेत में प्रत्येक तीन मीटर के अंतराल में 25-30 सेंटीमीटर वाली चौड़ी नालियां रखें।
- छोटे-छोटे टुकडों में खेत को बांट दीजिए ताकि जल का प्रबंधन तथा उपयोग आसानी से हो सके।
श्री विधि से धान की खेती के लिए बीज दर (Seed rate for paddy cultivation by Sri method)
श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए एक हैक्टर में रोपाई हेतु पांच से छः किलोग्राम बीज को अंकुरित कर बुआई करें।
श्री विधि से धान की खेती के लिए पौधशाला (Nursery for paddy cultivation by Sri method)
- बीज क्यारी को जहां तक संभव हो, मुख्य खेत के निकट ही बनायें सुविधानुसार लंबाई और 1 मीटर चौड़ी बीज क्यारी बनायें।
- बीज क्यारी के चारों ओर लकड़ी का पाटा या बांस का सहारा दें।
- स्वस्थ बीजों का प्रयोग करें, उन्हें 24 घंटों तक पानी में भिगोयें तथा अंकुरित होने के लिए 24 घंटों तक छोड़ दें।
- बीज क्यारी को समतल करें तथा क्यारी पर सड़ा हुआ गोबर खाद फैला दें।
- श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए अंकुरित बीजों का कम मात्रा में एवं समान रूप से प्रयोग करें।
- बीजों को ढकने के लिए सड़े हुए गोबर खाद की एक और परत डालें।
- बीज क्यारी को धान पुआल से ढक दीजिए ताकि धूप, वर्षा, पक्षी आदि के संपर्क में न आ सके।
श्री विधि से धान की खेती के लिए पौध की रोपाई (Transplanting of seedlings for paddy cultivation by SRI method)
- श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए आठ से दस दिनों वाली बिचड़ों या दो-तीन पत्तियों वाली पौध को ही रोपाई के लिए प्रयोग करें।
- क्यारी से बिचड़ों को बीज थैली और मिट्टी के समेत उखाड़ें। मिट्टी में बिचड़ों को अधिक गहराई में रोपण नहीं करें।
- क्यारी से बिचड़ों को सुगमता से उखाड़कर शीघ्र इनकी रोपाई करें।
- बिचड़ों को भूमि के ऊपर उपयुक्त ग्रिड बिंदु पर रोपाई करें। कतार में बिचड़ों की
रोपाई करें तथा पौध से पौध की दूरी 10×10 इंच या 25 x 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए अर्थात एक वर्गमीटर में 16 पौधें होने चाहिए।
श्री विधि से धान की खेती के लिए पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management for Rice Cultivation by SRI Method)
- आर्द्र मौसम में नत्रजन 60 किलोग्राम, फासफोरस 30 किलोग्राम तथा पोटाश 30 किलोग्राम तथा शुष्क मौसम में नत्रजन 80 किलोग्राम, फासफोरस 40 किलोग्राम तथा पोटाश 40 किलोग्राम दर से प्रति हैक्टर प्रयोग करें।
- बेहतर मृदा स्वास्थ्य के लिए अच्छी तरह से सड़ा हुआ जैविक खाद जैसे गोबर का खाद, कृमि कंपोस्ट आदि या जैविक खाद जैसे अजोला का 50:50 अनुपात में प्रयोग करें।
- अत्यधिक उपजाऊ भूमियों में रासायनिक उर्वरकों के बदले फार्म यार्ड खाद या कंपोस्ट 10 टन प्रति हैक्टर दर पर प्रयोग करें जो पोषक तत्वों के रूप में पर्याप्त है।
श्री विधि से धान की खेती के लिए जल प्रबंधन (Water management for paddy cultivation by SRI method)
- श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के तहत खेत में पानी जमने न दें।
- जल प्रबंधन के तहत खेत को बारी बारी से गीला और सुखा रखा जाता है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है तथा मृदा में एरोबिक एवं एनारोबिक दशा बनती है, जिससे बेहतर पोषक की उपलब्धता होती है।
- आवधिक निराई करने के पहले पूर्व संध्या में खेत की सिंचाई कर सुबह खेत से पानी निकाल देने पर रोटारी वीडर चलाने में सुविधा होती है।
श्री विधि से धान की खेती के लिए निराई गुड़ाई (Weeding for rice cultivation by SRI method)
- इस प्रणाली के तहत शाकनाशियों का प्रयोग न करने की सिफारिश की जाती है।
- साधारण यांत्रिक रोटारी वीडर या कोनो वीडर कर प्रयोग करें जिससे मिट्टी का मंथन होता है और खरपतवारों का नियंत्रण होता है।
- श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) में रोपाई करने के 12 से 15 दिनों बाद प्रथम निराई करें।
- रोपाई करने के 40 दिनों तक प्रत्येक 10-12 दिन के अंतराल में परवर्ती निराई की आवश्यकता हो सकती है।
- रोटारी वीडर के प्रयोग से पौधों के जड़ों में हवा प्रवाह बढ़ जाता है जिससे जड़ों की अधिक वृद्धि होती है।
- खरपतवार से प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है, जड़ों को अधिक आक्सीजन एवं नत्रजन मिलती है।
- कीट एवं रोग प्रबंधन अधिक दूरी बनाए रखने तथा जैविक खादों के प्रयोग से पौधों की वृद्धि अच्छी होती है एवं नाशककीट और रोग का प्रकोप कम होता है।
- जब कभी आवश्यकता पड़े तो कुछ जैविक मिश्रण का प्रयोग करते हुए अवरोधक या आवश्यकता आधारित पौध सुरक्षा उपाय अपनाएं।
धान की सघन कृषि प्रणाली फसल की देखभाल (Intensive farming system of rice Crop care)
- खेत में पानी की एक इंच पतली परत बनाए रखते हैं, परन्तु दो या तीन बार खेत से पानी निकाल देते हैं तथा पुनः खेत में पानी भर देते हैं।
- श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) में स्वस्थ जड़ के लिए बीच-बीच में मिट्टी को हवा मिलना भी जरूरी होता है।
- कोनोवीडर मशीन का इस्तेमाल कर मिट्टी को पलटने से नए उग रहे खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है।
- इलाके के हिसाब से खादों का इस्तेमाल करते हैं। पूरी खाद की मात्रा खेत में दो-तीन किस्त में देना लाभप्रद होता है।
- श्री विधि से धान की खेती में कीट और रोग नियंत्रण बहुत आवश्यक है, इसके लिए कृषक बंधु धान की सामान्य खेती के उपाय अपना सकते है।
धान की सघन कृषि प्रणाली से पैदावार (Yield from intensive farming system of rice)
- एक जगह पर प्रत्येक बिचड़े से 40 से 45 कल्ले फूटते हैं।
- एक जगह पर अच्छी बालियों वाले 25 से 35 कल्ले मिलते हैं।
- श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) की हरेक बाली में लगभग 150 से 200 दाने आते हैं।
- ‘श्री’ विधि से एक एकड़ धान के खेत में 40 से 50 मन उपज मिल जाती है।
धान की सघन कृषि प्रणाली के लाभ (Advantages of Intensive Rice Farming System)
- श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) द्वारा अधिक अनाज तथा पुआल उपज मिलती है।
- फसल की कुल अवधि में 10 दिन की कमी हो जाती है।
- बीज, रसायन आदि में बचत होती है।
- पानी का बहुत कम प्रयोग होता है, लगभग 50 प्रतिशत जल की बचत होती है।
- दाना भरण बेहतर होता है तथा भूसीदार अनाज बहुत ही कम हो जाता है।
- अनाज के आकार में परिवर्तन हुए बिना अधिक वजनदार अनाज प्राप्त होते हैं।
- अधिक सेला चावल प्राप्त होता है।
- जैविक क्रियाकलाप के माध्यम से मृदा के स्वास्थ्य में सुधार होता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) में लगातार पानी की आवश्यकता नहीं होती है। सिंचाई शुरू में मिट्टी की नमी को संतृप्ति के करीब बनाए रखने के लिए की जाती है और जब सतह की मिट्टी में बाल जैसी दरारें विकसित होती हैं तो पानी डाला जाता है। हालाँकि, सिंचाई अंतराल मिट्टी की बनावट के साथ बदलता रहता है। कम जल धारण क्षमता वाली मिट्टी को बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।
श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) की प्रणाली मेडागास्कर में उत्पन्न हुई है और इसे पहली बार 1983 में फादर हेनरी डी लौलानी, एक फ्रांसीसी जेसुइट पुजारी द्वारा संश्लेषित किया गया था। उन्हें पेरिस, फ्रांस में राष्ट्रीय कृषि विज्ञान संस्थान में एक कृषि विज्ञानी के रूप में प्रशिक्षित किया गया है। उन्हें लोकप्रिय रूप से ‘एसआरआई के जनक’ के रूप में जाना जाता है।
श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए मिट्टी में पौधों का अधिक गहराई में रोपण नहीं करें। क्यारी से बिचड़ों को सुगमता से उखाड़कर शीघ्र इनकी रोपाई करें। बिचड़ों को भूमि के ऊपर उपयुक्त ग्रिड बिंदु पर रोपाई करें। कतार में बिचड़ों की रोपाई करें तथा पौध से पौध की दूरी 10×10 इंच या 25 x 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए अर्थात एक वर्गमीटर में 16 पौधें होनी चाहिए।
श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) में 2 किग्रा प्रति एकड़ की दर बीज की और प्रति यूनिट (25×25 सेमी) क्षेत्रफल की दर से कुछ पौधों की आवश्यकता होती है।
वर्षा आरम्भ होते ही धान की बुवाई का कार्य आरम्भ कर देना चाहिये। जून मध्य से जुलाई प्रथम सप्ताह तक बोनी का समय सबसे उपयुक्त होता है। श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए 7 से 14 दिन या कम से कम दो पत्तों वाले पौधों का इस्तेमाल किया जाता है।
संकर धान या सामान्य धान की किस्मों से भी श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) कर सकते हैं। क्षेत्र विशेष की जलवायु के अनुसार संकर धान की किस्मों का चयन आवश्यक है। बोआई हेतु प्रति वर्ष संकर धान का नया बीज विश्वसनीय एवं अधिकृत बीज वितरक से प्राप्त करनी चाहिए।
श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए सिफारिश की गई 25 x 25 सेमी की दूरी रखी जानी चाहिए। हालांकि, ऐसे कई किसान हैं, जिन्होंने 50 x 50 सेमी और 1 x 1 मीटर की दूरी पर प्रयोग किया है और अच्छी पैदावार प्राप्त की है।
श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) में, खेत में पानी सिर्फ़ मिट्टी को गीला करने और आर्द्रता बनाए रखने के लिए डालना चाहिए। मिट्टी में दरारें आने पर ही सिंचाई करनी चाहिए। खेत को सूखने और फिर पानी देने से मिट्टी में माइक्रोबियल क्रियाकलाप बढ़ता है और पौधों को पोषक तत्व मिलते हैं। धान की रोपाई के करीब एक हफ़्ते बाद जब कल्ले निकलते हैं, तब तक खेत में 2-3 सेंटीमीटर जल भरा रहना चाहिए।
श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) में 10 टन तक जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। नीम या करंज की खली 5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के तीन सप्ताह पूर्व जुताई के समय खेत में बिखेर दें। रोपाई के 15 दिनों पूर्व खेत की सिंचाई एवं कदवा करें ताकि खरपतवार, सड़कर मिट्टी में मिल जायें।
भारत में आम तौर पर मानक पद्धति के तहत एक एकड़ से 25 से 30 क्विंटल धान प्राप्त किया जा सकता है। हालांकि, अगर आप श्री विधि से धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिए हाइब्रिड बीज और चावल गहनता प्रणाली (SRI) का उपयोग करते हैं, तो 50 से 60 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
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