धान की फसल (Paddy Crop): विश्व की आधी से अधिक आबादी अपने मुख्य भोजन के रूप में चावल का सेवन करती है। विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाने के बावजूद, चावल दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला भोजन है। भारत में, धान की खेती (Paddy Farming) आमतौर पर छह अलग-अलग आवासों में की जाती है, जिनमें तटीय तराई क्षेत्र, गहरे पानी वाले क्षेत्र, वर्षा आधारित तराई क्षेत्र, वर्षा आधारित उपरी भूमि, सिंचित खरीफ और सिंचित रबी शामिल हैं।
अपने खेत की उत्पादकता बढ़ाने के लिए धान की फसल (Paddy Crop) कैसे उगाएं। क्योंकि धान की उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता है और यह तभी संभव हो सकता है, जब सधन विधियों को ठीक प्रकार से अपनाया जाये। इसकी पूरी समझ के लिए लेख को पढ़ें हासिल करें।
धान की खेती के लिए जलवायु और भूमि (Climate and Land)
धान की फसल (Paddy Crop) के लिए समशीतोषण जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके पौधों को जीवनकाल में औसतन 20 डिग्री सेंटीग्रेट से 37 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता होती है। धान की खेती (Paddy Farming) के लिए मटियार एवम दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती है।
धान की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Paddy)
धान की खेती (Paddy Farming) के लिए अपने क्षेत्र विशेष की उन्नत किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए, जिससे कि अधिक से अधिक पैदावार ली जा सके| इसके लिए संस्तुति प्रजातियाँ इस प्रकार है, जैसे-
अगेती किस्में (110 से 115 दिन): इनमें मुख्य रूप से पी एन आर- 381, पी एन आर- 162, नरेन्द्र धान- 86, गोविन्द, साकेत- 4, पूसा- 2 व 21, पूसा- 33 व 834, और नरेन्द्र धान- 97 आदि किस्में प्रमुख हैं|
मध्यम अवधि की किस्में (120 से 125 दिन): इनमें मुख्य किस्में पूसा- 169, 205 व 44, सरजू- 52, पंत धान- 10, पंत धान- 12, आई आर- 64 आदि प्रमुख हैं|
लम्बी अवधि वाली किस्में (130 से 140 दिन): इस वर्ग में पूसा- 44, पी आर- 106, मालवीय- 36, नरेन्द्र- 359, महसुरी आदि प्रमुख किस्में हैं| इनकी औसत पैदावार लगभग 6.0 से 7.0 टन प्रति हेक्टेयर है| इनका नर्सरी समय 20 मई से 20 जून तक होता है|
संकर किस्में (125 से 135 दिन): इनमें मुख्य रूप से पंत संकर धान- 1, के आर एच- 2, पी एस डी- 3, जी के- 5003, पी ए- 6444, पी ए- 6201, पी ए- 6219, डी आर आर एच- 3, इंदिरा सोना, सुरूचि, नरेन्द्र संकर धान- 2, प्रो एग्रो- 6201, पी एच बी- 71, एच आर आई- 120, आर एच- 204 और पी आर एच -10 संकर किस्में हैं| इनकी औसत पैदावार लगभग 6.5 से 8.0 टन प्रति हेक्टेयर है|
बासमती किस्मे: इनमें मुख्य रूप से पूसा बासमती- 1, पूसा सुगंध- 2, 3, 4 व 5, कस्तुरी- 385, बासमती- 370 व बासमती तरावडी आदि प्रमुख है| इसका नर्सरी समय 15 मई से 15 जून तक होता है| इनकी औसत पैदावार लगभग 5.5 से 7.0 टन प्रति हेक्टेयर है|
धान की फसल के लिए खेत की तैयारी (Field Preparation for Paddy Crop)
धान की फसल (Paddy Crop) के लिए पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयां कल्टीवेटर से करके खेत तैयार करना चाहिए साथ ही खेत की मजबूत मेडबंदी कर देनी चाहिए, जिससे की वर्षा का पानी अधिक समय तक संचित किया जा सके तथा रोपाई से पूर्व खेत को पानी भरकर जुताई कर दे और जुताई करते समय खेत को समतल कर लेना चाहिए।
धान के बीज की मात्रा और बीज शोधन (Seed Quantity and Seed Treatment)
धान की सीधी बुवाई के लिए बीज की मात्रा 40 से 50 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बोना चाहिए और धान की एक हेक्टेयर रोपाई के लिए बीज की मात्रा 30 से 35 किलोग्राम बीज पौध तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है। नर्सरी डालने से पहले बीज का शोधन करना अति आवश्यक है। 25 किलोग्राम बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेपटोसईक्लीन तथा 75 ग्राम थीरम के द्वारा बीज को शोधित करके बुवाई करे।
धान की पौध तैयार करना (Preparation of Paddy Seedlings)
एक हेक्टेयर खेत की रोपाई हेतु 30 से 35 किलोग्राम धान का बीज पौध तैयार करने हेतु पर्याप्त होता है। ट्राइकोडरमा का एक छिडकाव 10 दिन के अंतर पर पौध पर कर देना चाहिए। बुवाई के 10-15 दिन बाद पौध पर कीटनाशक और फफूंदीनाशक का छिडकाव करना चाहिए, जिससे कोई कीट एव रोग न लग सके। पौध वाले खेत में कड़ी धूप होने पर पानी निकाल देना चाहिए जिससे की पौध गलन न हो सके। सिंचाई शाम के समय 3 बजे के बाद करना चाहिए, जिससे की रात भर में पानी खेत में सोख जाये। 21 से 25 दिन में पौध इस तरह से रोपाई हेतु तैयार हो जाती है। एक हेक्टेयर पौध नर्सरी से 15 हेक्टेयर की रोपाई की जा सकती है।
धान की खेती के लिए पौधों की रोपाई (Transplanting of Plants for Paddy Farming)
धान की रोपाई का उपयुक्त समय जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के तीसरे सप्ताह के मध्य अवश्य करनी चाहिए। इसके लिए धान की 21 से 25 दिन की तैयार पौध की रोपाई उपयुक्त होती है। धान रोपाई के लिए पंक्तियों से पंक्तियों की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर तथा एक स्थान पर 2 से 3 पौधे लगाने चाहिए।
धान में खाद और उर्वरकों का प्रयोग (Use of Manure and Fertilizers in Paddy)
धान की अच्छी उपज के लिए खेत में आख़िरी जुताई के समय 100 से 150 कुंतल पर हेक्टेयर गोबर की सड़ी खाद खेत में मिलाते है, और उर्वरक में 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रयोग करते है। नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय देते है एवं आधी मात्रा नत्रजन की टापड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए।
धान की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Paddy Crop)
धान की फसल (Paddy Crop) को सभी फसलों में सबसे अधिक पानी की आवश्यकता पड़ती है। फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटने वाली, बाली निकलने, फूल निकलने तथा दाना भरते समय खेत में पानी बना रहना अति आवश्यक है।
धान में खरपतवार का नियंत्रण (Weed Control in Crop)
धान की फसल (Paddy Crop) में खरपतवार नष्ट करने के लिए खुरपी या पैडीवीडर का प्रयोग करते है, और रसायन विधि से खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 3-4 दिन के अन्दर पेंडीमेथलीन 30 ईसी की 3.3 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर खेत में प्रयोग करने से खरपतवार का नियंत्रण अच्छी तरह से होता है।
धान की फसल में रोग नियंत्रण (Disease Control in Paddy Crop)
धान की फसल (Paddy Crop) में लगने वाले प्रमुख रोग सफ़ेद रोग, विषाणु झुलसा, शीथ झुलसा, भूरा धब्बा, जीवाणु धारी, झोका, खैरा इत्यादि है। इन सभी के प्रबंधन के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है, जैसे-
- गर्मी की जुताई तथा मेडों की छटाई करते हुए घास की सफाई करना अति आवश्यक है।
- समय पर रोग प्रतिरोधी सहिष्णु प्रजातियों के मानक बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
- धान की फसल (Paddy Crop) के लिए बीज शोधन करके ही नर्सरी में बुवाई बीज की करनी चाहिए।
- बीज को तीन ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए।
- बीज को 1.50 ग्राम के साथ 1.50 ग्राम कार्बेन्डाजिम से प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करना चाहिए।
- झुलसा की समस्या वाले क्षेत्रों में 25 किलोग्राम बीज के लिए 38 ग्राम ऍमई ऍमसी और 4 ग्राम स्ट्रेप्तोसाईक्लीन को 45 लीटर पानी में बीज को रात भर भिगो दे और छाया में सुखाकर नर्सरी में बुवाई करनी चाहिए।
- इसके पश्चात 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट को 20 किलोग्राम यूरिया 1000 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।
- इसके बाद 5 किलोग्राम फेरस सल्फेट की 20 किलोग्राम यूरिया के साथ 800 लीटर पानी में घोलकर छिडकाव करना चाहिए।
- क्षेत्र के अनुसार प्रजातियों की बुवाई करके पौध रोपण करना चाहिए।
- आख़िरी बीज शोधन 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ट्राइकोडर्मा के साथ 60 से 80 किलोग्राम गोबर की खाद से भूमि शोधन आख़िरी जुताई में मिलाकर करना चाहिए।
धान की फसल में कीट नियंत्रण (Pest Control in Paddy Crop)
धान की फसल (Paddy Crop) में लगने वाले प्रमुख कीट जैसे- दीमक, पत्ती लपेटक कीट, गन्धी बग, सैनिक कीट, तना बेधक आदि लगते है। इन सब के नियंत्रण के लिए उपाय है, जैसे-
- गर्मी की जुताई और मेंड़ों की छटाई तथा घास की सफाई कर देना चाहिए।
- धान की फसल (Paddy Crop) को खरपतवारों से मुक्त रखें।
- अगेती और समय से पौध डालकर तैयार पौध की रोपाई करे।
- अवरोधी प्रजातियों की बुवाई करके फसल की उपज ले।
- अधिक दूरी पर 20 X 20 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपाई करे।
- प्रत्येक 20 कतार के बाद एक कतार छोड़कर रोपाई करे
- धान की फसल (Paddy Crop) में स्वच्छ उर्वरको का प्रयोग करे।
- सिंचाई का उचित प्रबंध रखे अर्थात सिंचाई समयानुसार करे।
- रोपाई से पहले वाली फसल के अवशेषों को भली भांती नष्ट कर देना चाहिए।
- रोपाई के पहले पौध के उपरी भाग को नष्ट कर रोपाई करे।
- 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर नीम का आधारी कीटनाशको का प्रयोग करे।
- क्यूनालफास 25 ईसी का 1.25 लीटर या क्लोरोपईरीफास 20 ईसी का 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिडकाव करना चाहिए।
धान फसल की कटाई और मड़ाई (Crop Harvesting and Threshing)
खेत में 50 प्रतिशत बालियाँ पकने पर फसल से पानी निकाल देना चाहिए। 80 से 85 प्रतिशत बालियों के दाने सुनहरे रंग के हो जाएँ अथवा बाली निकलने के 30 से 35 दिन बाद कटाई करनी चाहिए। इससे दानो को झड़ने से बचाया जा सकता है। अवांछित पौधों को कटाई के पहले ही खेत से निकाल देना चाहिए। कटाई के बाद तुरंत ही मड़ाई करके दाना निकाल लेना चाहिए।
धान की फसल से पैदावार (Paddy Crop Yield)
दो प्रकार की प्रजातियाँ मिलती है, सिंचित और असिंचित दोनों प्रकार की प्रजातियों में पैदावार भी अलग-अलग पाई जाती है। सिंचित क्षेत्रों में उपरोक्त सभी तकनीकी अपनाने पर 55 से 80 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है। असिंचित क्षेत्रों में सभी तकनीकी अपनाने पर 45 से 65 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)?
व्युत्पत्ति के अनुसार, “धान” शब्द मलय शब्द “पाडी” से आया है, जिसका अर्थ है चावल का पौधा। इस प्रकार के फसल क्षेत्रों का वर्णन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अन्य शब्दों में “चावल के खेत” और “चावल धान” शामिल हैं। धान के खेत एशिया में पाए जा सकते हैं, जहां चावल एक प्रमुख फसल है।
धान का चावल, चावल का असंसाधित, बिना छिला हुआ रूप है, जो अभी भी खेत में है। इसके विपरीत, चावल उस अनाज को संदर्भित करता है। जिसे कटाई, मड़ाई और पीसने के बाद भूसी, भूसी और रोगाणु को हटा दिया जाता है, जिससे खाने योग्य अनाज बच जाता है।
ओराइज़ा सैटिवा या जिसे हम धान के वानस्पतिक नाम के रूप में जानते हैं, प्रकृति में खाने योग्य और बहुत स्टार्चयुक्त अनाज है। यह एक घास का पौधा है और यह पोएसी परिवार का है। इसकी सहायता से फसल का उत्पादन किया जाता है तथा उसे मनुष्यों के उपभोग हेतु बनाया जाता है।
धान की फसल (Paddy Crop) को गर्म एवं आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। यह उन क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त है, जहां उच्च आर्द्रता, लंबे समय तक धूप और पानी की सुनिश्चित आपूर्ति होती है। फसल के पूरे जीवन काल में आवश्यक औसत तापमान 21 से 37º C तक होता है।
धान की फसल (Paddy Crop) की किस्में, बढ़ती परिस्थितियाँ और कृषि संबंधी प्रथाएँ सभी प्रभावित कर सकती हैं, कि पौधों को परिपक्व होने में कितना समय लगता है। अधिकांश किस्मों को बुआई से लेकर कटाई तक 105 से 150 दिनों के बीच की आवश्यकता होती है। हालाँकि, कुछ प्रकारों को विकसित होने में 180 दिन तक का समय लग सकता है।
धान की तीन प्रमुख किस्में हैं: अ) औस चावल- यह गर्मियों में बोया जाता है और शरद ऋतु में काटा जाता है। ब) अमन- यह बरसात में बोया जाता है और सर्दी में काटा जाता है। स) बोरो- यह शीत ऋतु में बोया जाता है तथा ग्रीष्म ऋतु में काटा जाता है।
पश्चिम बंगाल भारत का सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य है। चावल भारत में एक अत्यंत महत्वपूर्ण खाद्य फसल है। चावल भारत में लाखों लोगों का मुख्य भोजन है।
धान, छोटा, समतल, पानी से भरा हुआ खेत, जिसका उपयोग दक्षिणी और पूर्वी एशिया में चावल की खेती (Paddy Farming) के लिए किया जाता था। गीले-चावल की खेती सुदूर पूर्व में खेती का सबसे प्रचलित तरीका है, जहां यह कुल भूमि के एक छोटे से हिस्से का उपयोग करती है, फिर भी अधिकांश ग्रामीण आबादी को खिलाती है।
चावल की अधिकांश खेती ख़रीफ़ सीज़न के दौरान की जाती है। चावल का एक छोटा हिस्सा रबी और गर्मी के मौसम में सुनिश्चित सिंचाई के साथ उगाया जाता है।
रायचूर जिला अपने धान के खेतों के लिए जाना जाता है और यहां का चावल बेहद बेहतर गुणवत्ता का होता है। रायचूर में कई चावल मिलें हैं जो विभिन्न देशों में उच्च गुणवत्ता वाले चावल का निर्यात करती हैं।
धान से किसानों को मिलने वाला लाभ कई कारकों पर निर्भर करता है, जिसमें उपज, धान की कीमत और खेती की लागत शामिल है।
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