Peanut Cultivation in Hindi: मूंगफली की खेती भारत के कृषि परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो देश भर के किसानों के लिए आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। समृद्ध ऐतिहासिक महत्व और मूंगफली की विभिन्न किस्मों के साथ, भारत दुनिया भर में मूंगफली के अग्रणी उत्पादकों में से एक है। मूंगफली गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू तथा कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाई जाती है। अन्य राज्य जैसे मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब में भी यह काफी महत्त्वपूर्ण फसल मानी जाने लगी है।
यह लेख भारत में मूंगफली की खेती की पेचीदगियों पर प्रकाश डालता है, जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताओं, खेती के तरीकों, कीट और रोग प्रबंधन रणनीतियों, कटाई की तकनीकों और इस फसल के आर्थिक महत्व की खोज करता है। भारत में मूंगफली की खेती (Peanut Farming) की बारीकियों को समझना न केवल किसानों के लिए बल्कि देश के कृषि क्षेत्र में रुचि रखने वाले हितधारकों के लिए भी आवश्यक है।
मूंगफली की खेती के लिए जलवायु (Climate for cultivation of groundnut)
मूंगफली की खेती (Peanut Farming) लगभग सभी राज्यों में होती है, लेकिन जहां उपयुक्त जलवायु होती है वहां इसकी फसल बेहतर होती है। सूर्य की अधिक रोशनी और उच्च तापमान इसकी बढ़त के लिए अनुकूल माने जाते हैं। वही अच्छी पैदावार के लिए तापमान 21 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा होना चाहिए।
मूंगफली की किस्म के आधार पर, पौधों के बढ़ने के लिए 26 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान सही रहता है। 35 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान होने पर मूंगफली का विकास रुक जाता है। इसके लिए 600 से 1500 मिलीमीटर बारिश अच्छी मानी जाती है।
मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Suitable land for peanut cultivation)
मूंगफली की खेती (Peanut Farming) विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है, फिर भी इसकी अच्छी उपज के लिए अच्छी जल निकासी वाली, हल्की बनावट वाली, ढीली, भुरभुरी और रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। जिसमें में कैल्शियम और जैविक पदार्थ होने चाहिए और मिट्टी का पीएच 6.0 से 8.0 के बीच होना चाहिए। इसके लिए पथरीली और चिकनी मिट्टी उपयुक्त नहीं होती है।
मूंगफली की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cultivation of groundnut)
मूंगफली की खेती (Peanut Farming) के लिए तीन से चार बार जुताई करनी चाहिए। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई सही होती है। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलायें, जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें, जिससे नमी संचित रहें।
खेत की आखिरी तैयारी के समय जरूरत के हिसाब से जैविक खाद, जैव उर्वरक, और पोषक तत्वों का प्रयोग करना चाहिए। खेत में दीमक और कीड़ों से बचने के लिए, अंतिम जुताई के समय क्विनलफ़ॉस 1.5 प्रतिशत 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाना चाहिए।
मूंगफली की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for peanut cultivation)
मूंगफली की खेती के लिए कई किस्में उपलब्ध हैं। लेकिन हल्की मिट्टी के लिये फैलने वाली और भारी मिट्टी के लिये झुमका किस्म अच्छी रहती है, जो भूमि के अनुसार बोने के काम में ली जाती है। मूंगफली (Peanut) की पैदावार बढ़ाने में किस्मों का विशिष्ट योगदान होता है। उन्नत किस्मों को अपनाने से स्थानीय किस्मों की तुलना में मूंगफली की उपज में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि पाई गई है। अनुमोदित की गई किस्मों का विवरण इस प्रकार है, जैसे-
फैलने वाली किस्में: आर एस – 1, एम – 335, चित्रा, आर जी – 382 (दुर्गा), एम – 13 और एम ए – 10 आदि प्रचलित है।
मध्यम फैलने वाली किस्में: एच एन जी – 10, आर जी – 138, आर जी – 425, गिरनार – 2 और आर एस बी – 87 आदि प्रचलित है।
झुमका किस्में: डी ए जी – 24, जी जी – 2, जे एल – 24, ए के – 12 व 24, टी जी – 37ए और आर जी -141 आदि प्रचलित है।
मूंगफली के बीज की मात्रा और बुवाई का समय (Quantity of peanut seeds and sowing time)
बीज की मात्रा: मूंगफली की झुमका किस्मों के बीज की उचित मात्रा 100 से 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। मध्यम फैलने वाली किस्मों के बीज की उचित मात्रा 80 से 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। अधिक फैलने वाली किस्मों के बीज की उचित मात्रा 60 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपयुक्त होती है। यदि कोई मूंगफली की बुवाई कुछ देरी से करना चाहता है तो बीज की मात्रा को 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ा लेना चाहिये।
बुवाई का समय: खरीफ सीजन की मूंगफली (Peanut) की बुवाई का सही समय जून का दूसरा पखवाड़ा होता है। रबी एवं जायद की फसलों के लिए उचित तापमान देख कर किया जा सकता है। सामान्य रूप से 15 जून से 15 जुलाई के मध्य मूंगफली की बुवाई की जा सकती है।
मूंगफली के बीज का उपचार (Treatment of Peanut Seeds)
मूंगफली की खेती (Peanut Farming) के लिए बीज की बुवाई करने से पहले बीज का उपाचार करना बहुत ही लाभकारी होता है। इसके लिए थाईरम 2 ग्राम और काबेंडाजिम 50% धुलन चूर्ण के मिश्रण को 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहियें। इस उपचार के बाद (लगभग 5-6 घन्टे) अर्थात बुवाई से पहले मूंगफली के बीज को राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करना चाहिये।
कल्चर को बीज मे मिलाने के लिए आधा लीटर पानी मे 50 ग्राम गुड़ घोलकर इसमे 250 ग्राम राइजोबियम कल्चर का पुरा पेकेट मिलाये, इस मिश्रण को 10 किलो बीज के ऊपर छिड़कर कर हल्के हाथ से मिलाये, जिससे बीज के ऊपर एक हल्की परत बन जाए। इस बीज को छांयां में 2-3 घंटे सुखने के लिए रख दें। बुवाई प्रात: 10 बजे से पहले या शाम को 4 बजे के बाद करें। जिस खेत में पहले मूंगफली की खेती नहीं की गयी हो उस खेत मे मूंगफली की बुवाई से पुर्व बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर लेना बहुत ही लाभकारी होता है।
मूंगफली की खेती के लिए बुवाई का तरीका (Sowing method for peanut cultivation)
मूंगफली की खेती के लिए किस्मों और मौसम के अनुसार खेत में पौधों की संख्या में अंतर रखा जाता है। झुमका किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें। फैलने वाली किस्मों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखें। रबी या जायद मौसम में प्रति इकाई क्षेत्र में खरीफ मौसम की तुलना में पौधों की अधिक संख्या रखें।
मूंगफली (Peanut) की बुवाई सीड ड्रिल द्वारा करनी उपयोगी रहती है, क्योंकि कतार से कतार और बीज से बीज की दूरी संस्तुति अनुसार आसानी से कायम की जा सकती है और इच्छित पौधों की संख्या प्राप्त होती है। यदि संभव हो मूंगफली की बुवाई मेंड़ों पर करें। बीज की बुवाई 4 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर करने से अच्छा अंकुरण प्रतिशत मिलता है।
मूंगफली की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for peanut cultivation)
मूंगफली की खेती (Peanut Farming) में बुवाई से पहले खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 45-50 टन प्रति हेक्टेयर, मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। मूंगफली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उचित मात्रा में पोषक तत्वों को समय से देना चाहिये। मूंगफली की फसल को प्रति हेक्टेयर 20 किलो नत्रजन, 30 किलो फास्फोरस, 45 किलो पोटाश, 200 किलो जिप्सम त्तथा 4 किलो बोरेक्स का प्रयोग करना चाहियें।
फास्फोरस की मात्रा की पूर्ति हेतु सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग करना चाहियें। नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश की समस्त मात्रा एवं जिप्सम की आधी मात्रा बुवाई के समय देना चाहिये। जिप्सम की शेष आधी मात्रा और बोरेक्स की समस्त मात्रा को बुवाई के लगभग 22-23 दिन बाद देना चाहिये। ध्यान रहे रासायनिक उर्वरक मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही देना चाहिए।
मूंगफली में नीम की खल का प्रयोग (Use of neem cake in groundnut)
नीम की खल के प्रयोग का मूंगफली (Peanut) के उत्पादन में अच्छा प्रभाव पड़ता है। अंतिम जुताई के समय 400 किग्रा नीम खल प्रति हैक्टर के हिसाब से देना चाहिए। नीम की खल से दीमक का नियंत्रण हो जाता है तथा पौधों को नत्रजन तत्वों की पूर्ति हो जाती है। नीम की खल के प्रयोग से 16 से 18 प्रतिशत तक की उपज में वृद्धि, तथा दाना मोटा होने के कारण तेल प्रतिशत में भी वृद्धि हो जाती है। दक्षिण भारत के कुछ स्थानों में अधिक उत्पादन के लिए जिप्सम भी प्रयोग में लेते हैं।
मूंगफली की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Peanut Crop)
मूंगफली खरीफ फसल होने के कारण इसमें सिंचाई की प्राय: आवश्यकता कम पड़ती। सिंचाई देना सामान्य रूप से वर्षा के वितरण पर निर्भर करता हैं, फसल की बुवाई यदि जल्दी करनी हो तो एक पलेवा की आवश्यकता पड़ती है। यदि पौधों में फूल आते समय सूखे की स्थिति हो तो उस समय सिंचाई करना आवश्यक होता है। फलियों के विकास और गिरी बनने के समय भी भूमि में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। जिससे फलियाँ बड़ी तथा खूब भरी हुई बनें।
अत: वर्षा की मात्रा के अनुरूप सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है। मूंगफली (Peanut) की फलियों का विकास जमीन के अन्दर होता है। अत: खेत में बहुत समय तक पानी भराव रहने पर फलियों के विकास तथा उपज पर बुरा असर पड़ सकता है। बुवाई के समय यदि खेत समतल न हो तो बीच-बीच में कुछ मीटर की दूरी पर हल्की नालियाँ बना देना चाहिए। जिससे वर्षा का पानी खेत में बीच में नहीं रूक पाये और अनावश्यक अतिरिक्त जल वर्षा होते ही बाहर निकल जाए।
मूंगफली की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in groundnut crop)
खरपतवार की अधिकता से मूंगफली फसल (Peanut Crop) पर बुरा असर पड़ता है। बुवाई के करीब 3 से 6 सप्ताह के बीच कई प्रकार की घास निकलना आरंभ हो जाती है। कुछ उपायों या दवाओं के प्रयोग से आप आसानी से इस पर नियंत्रण कर सकते हैं। खरपतवार का प्रबंधन नहीं किया गया तो 30 से 40 प्रतिशत फसल खराब हो जाती है।
बुवाई के 15 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करें और दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 35 दिन बाद करें। खड़ी फसल में 150-200 लीटर पानी में 250 मिलीलीटर इमेजाथापर 10 प्रतिशत एस एल मिला कर छिडकाव करना चाहिए। प्रारम्भिक खरपतवार रोकथाम के लिए बुवाई के तीन दिनों के भीतर प्रति एकड़ खेत में 700 ग्राम पेंडीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत का प्रयोग करें।
मूंगफली की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in peanut crop)
मूंगफली (Peanut) में सफेद गीडार, दीमक, हेयरी कैटरपिलर आदि मुख्य कीट काफी नुकसान पहुँचाते है जिनकी रोकथाम के लिए निम्न उपाय करें, जैसे-
सफेद गीडार की रोकथाम: मूंगफली में सफेद गीडार की रोकथाम के लिए मानसून के प्रारम्भ होते ही मोनोक्रोटोफोस 05% का छिड़काव करना चाहिये। बुवाई के 3-4 घंटे पूर्व क्यूनालफोस 25 ईसी 25 मिली प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित करके बुवाई करे।
दीमक की रोकथाम: दीमक की रोकथाम के लिए क्लोरपायरीफास रसायन की 4 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करे।
हेयरी कैटरपिलर की रोकथाम: हेयरी कैटरपिलर कीट का प्रकोप लगभग 40-45 दिन बाद दिखाई पड़ता है, इस कीट की रोकथाम के लिये डाईक्लोरवास 76% ईसी दवा एक लीटर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से पर्णीय छिड़काव करें।
मूंगफली की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in peanut crop)
मूंगफली (Peanut) में कॉलर रोट, बड नेक्रोसिस और टिक्का रोग प्रमुख रोग है। जिनकी रोकथाम के लिए निम्न लिखित उपाय करें, जैसे-
कॉलर रोट: बीजाई के बाद सबसे ज्यादा नुकसान कॉलर रोट व जड़गलन द्वारा होता हैं। इस रोग से पौधे का निचला हिस्सा काला हो जाता है व बाद में पौधा सूख जाता है। सूखे भाग पर काली फफूंद दिखाई देती है। इसकी रोकथाम के लिये बुवाई से 15 दिन पहले 1 किग्रा ट्राइकोड्रमा पाउडर प्रति बीघा की दर से 50-100 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर बुवाई के समय भूमी में मिला दें।
बुवाई के समय 10 ग्राम ट्राइकोड्रमा पाउडर प्रति किलो की दर से बीज उपचारित करें। गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करके खुला छोड़ने से भी प्रकोप कम होता है। खड़ी फसल में जड़गलन की रोकथाम के लिये 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
पीलिया रोग: बरसात शुरू होते समय फसल पीली होने लगती है और देखते ही देखते पुरा खेत पीला हो जाता है। यह रोग लौह तत्व की कमी से होता है। इसकी रोकथाम के लिये 75 ग्राम फेरस सल्फेट व 15 ग्राम साइट्रिक अम्ल प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
बडनेक्रोसिस: इस रोग की रोकथाम के लिए किसान जून के चौथे साप्ताह से पूर्व बुवाई ना करें। फिर भी अगर इस रोग का प्रकोप खेत में हो जाता है, तो रसायन डाईमेथोएट 30 ईसी दवा का एक लीटर एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
मूंगफली का टिक्का रोग: इस रोग के कारण मूंगफली (Peanut) की पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए खड़ी फसल में मैंकोज़ेब 2 किलोग्राम मात्रा का प्रति हैक्टेयर में 2-3 छिड़काव करना लाभकारी होता हैं।
मूंगफली की कटाई और खुदाई (Harvesting and Digging of Peanuts)
मूंगफली फसल परिपक्वता के प्रमुख लक्षण हैं, पत्ते का पीला पड़ना, पत्तियों का पकना और पुरानी पत्तियों का गिरना। फली परिपक्व तब होती है, जब यह सख्त हो जाती है और जब कोशिकाओं के अंदरूनी तरफ गहरा रंग होता है। परिपक्वता से पहले कटाई करने से बीजों के सिकुड़ने के कारण उपज कम हो जाती है।
मूंगफली (Peanut) की खुदाई प्राय: तब करे जब मूंगफली के छिलके के ऊपर नसें उभर आये तथा भीतरी भाग कत्थई रंग का हो जाये, खुदाई के बाद फलियो को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें।
मूंगफली की सफाई और सुखाई (Cleaning and Drying of Peanuts)
मूंगफली (Peanut) की कटाई के समय, फली में आमतौर पर 40% (गीला आधार) से अधिक नमी होती है और शारीरिक परिपक्वता में व्यापक रूप से भिन्न होती है। सुरक्षित भंडारण या विपणन के लिए नमी को 10% या उससे कम करने के लिए फली को साफ और सूखना पड़ता है। ढलाई या अन्य प्रकार की गिरावट को रोकने के लिए सुखाने को तेजी से किया जाना चाहिए, लेकिन गुणवत्ता को कम करने के लिए बहुत तेजी से नहीं। यह वांछनीय स्वाद, बनावट, अंकुरण और समग्र गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करेगा।
मूंगफली की फसल से उपज (Yield from Peanut Crop)
मूंगफली की उपज उसकी उसकी किस्म और सस्य क्रियाओं पर निर्भर करती है। उपरोक्त उन्नत विधियों के उपयोग करने पर मूंगफली (Peanut) की सिंचित क्षेत्रों में औसत उपज 20-25 क्विण्टल प्रति हेक्टर प्राप्त की जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
मूंगफली की खेती (Peanut Farming) के लिए अच्छी जल निकासी वाली, हल्की, भुरभुरी, रेतीली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
मूंगफली फसल (Peanut Crop) की स्वस्थ वृद्धि के लिए गर्म और नम परिस्थितियाँ अनुकूल होती हैं, जबकि ठंडी और नम जलवायु के कारण अंकुरण और बीज बनना धीमा हो जाता है, साथ ही बीज सड़ने का जोखिम भी बढ़ जाता है।
मूंगफली (Peanut) की झुमका किस्म हेवी सॉइल (भारी मिट्टी) के लिए उपयोगी मानी जाती है। दूसरी अर्द्ध विकसित और विकसित किस्में लाइट सॉइल के लिए उपयुक्त रहती है। झुमका में उन्नत किस्म टी जी-37-ए, अर्द्ध विस्तारी किस्म में आरजी 599-3 और आरजी 425 को अच्छा माना गया है। विस्तारी किस्म में आरजी 510 अच्छी है।
मूंगफली की बुवाई का उपयुक्त समय जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह के बीच होता है। मूंगफली की खेती (Peanut Farming) साल भर की जा सकती है, लेकिन खरीफ़ सीज़न में इसकी बुवाई जून महीने के दूसरे पखवाड़े तक कर देनी चाहिए।
रोपण से कटाई तक, मूंगफली (Peanut) के बढ़ने का चक्र 4 से 5 महीने का होता है, जो कि प्रकार और किस्म पर निर्भर करता है।
मूंगफली की खेती (Peanut Farming) एक या एक से अधिक (खरीफ, रबी और ग्रीष्म) मौसमों में की जाती है, लेकिन लगभग 90% क्षेत्रफल और उत्पादन खरीफ फसल (जून-अक्टूबर) से आता है।
एक शोध के अनुसार, मूंगफली की फसल (Peanut) से संतोषजनक उपज प्रदान करने के लिए आम तौर पर 18 इंच पानी (सिंचाई और वर्षा से) की आवश्यकता होती है।
मूंगफली (Peanut) के पौधों के लिए प्रति हेक्टेयर 40-60 किलोग्राम फॉस्फोरस का बुनियादी प्रयोग सुझाया जाता है। यह एकल सुपरफॉस्फेट (SSP) या ट्रिपल सुपरफॉस्फेट (TSP) के रूप में लागू किया जा सकता है। एक पाद के उत्पन्न चरण में नाइट्रोजन खाद्यांकन की भी योजना बनाई जा सकती है, जिसमें प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम दर प्रतिनिधि है।
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