
Pigeon Pea Cultivation in Hindi: अरहर को ‘तुअर दाल’ के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण महत्व रखती है। यह बहुमुखी फलीदार फसल न केवल भारतीय घरों में मुख्य खाद्य पदार्थ है, बल्कि देश की कृषि अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सूखा प्रतिरोधी फसल अपनी उच्च प्रोटीन सामग्री के लिए मूल्यवान है और लाखों लोगों के लिए पोषण का एक आवश्यक स्रोत है।
इस लेख में, हम भारत में अरहर (Pigeon Pea) की खेती की बारीकियों पर चर्चा करेंगे, जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताओं, लोकप्रिय किस्मों, खेती के तरीकों, कीट और रोग प्रबंधन रणनीतियों, कटाई की तकनीकों का पता लगाएंगे। अरहर की खेती की बारीकियों को समझना उन किसानों के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान कर सकता है, जो अपनी कृषि पद्धतियों को बेहतर बनाना चाहते हैं और अपनी उपज को अधिकतम करना चाहते हैं।
अरहर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of pigeon pea)
अरहर (Pigeon Pea) की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय अर्ध-शुष्क क्षेत्र सबसे उपयुक्त होते हैं। हालांकि, इसे अन्य जलवायु क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है, लेकिन मिट्टी में जलभराव नहीं होना चाहिए। पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है। तापमान 20 डिग्री सेन्टीग्रेट से 40 डिग्री सेन्टीग्रेट एवं 65-100 डिग्री सेन्टी ग्रेड वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अरहर को सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। फूल आने और फली बनने के दौरान, अरहर के पौधे को धीरे-धीरे शुष्क जलवायु की जरूरत होती है।
अरहर की खेती के लिए भूमि का चुनाव (Selection of land for pigeon pea cultivation)
अरहर की खेती के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट तथा दोमट भूमि उपयुक्त मानी जाती है। परन्तु इसकी खेती उचित प्रबंधन द्वारा अन्य प्रकार के मिट्टी में भी की जा सकती है। आम्लीय भूमि में चूना तथा क्षारीय भूमि में जिप्सम का प्रयोग काफी लाभकारी सिद्ध हुआ है। चूना तथा जिप्सम की मात्रा मृदा की पीएच के आधार पर किया जाता है।
यदि मिट्टी सामान्य अम्लीय है, तो 3-4 क्विंटल चूना प्रति हेक्टेयर की दर से व्यवहार करने की अनुशंसा की जाती है। अर्थात अरहर (Pigeon Pea) की अच्छी पैदावार के लिए उचित जल निकास वाली दोमट मिट्टी जिसका पीएच- 7 हो उपयुक्त रहती है।
अरहर की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cultivation of pigeon pea)
अरहर (Pigeon Pea) की खेती के लिए ग्रीष्म ऋतु में रबी फसल की कटाई के पश्चात्त मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करके 2-3 बार कल्टीवेटर या हल से इस प्रकार जुताई करनी चाहिए, जमीन का कोई भी भाग बिना जुते न रह जाये। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा देकर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए। अंतिम जुताई के समय भलीभाँति सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट 5-10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में इस प्रकार छिड़काव करें कि मिट्टी में समसर्वत्र उपलब्ध हो जाये।
अरहर की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for pigeon pea cultivation)
अरहर की खेती (Pigeon Pea Farming) के लिए कई किस्में उपलब्ध हैं। जिनमें से कुछ प्रमुख किस्में इस प्रकार है, जैसे-
उन्नत किस्में: पूसा- 16, करण अरहर- 1, आईपीए- 203, आईपीए आईपीएच- 09-5, फुले टी- 0012, पूसा- 2001, पूसा- 2002, पूसा- 991, पूसा- 992, 206, पूसा- 33, पूसा- 855, पूसा- 9, उपास- 120, प्रभात बहार, टाइप- 21, राजेंद्र अरहर- 1, पन्त अरहर- 291, मानक, अमर, नरेन्द्र अरहर- 1, नरेन्द्र अरहर- 2 और आजाद के 91-25 आदि प्रमुख है।
हाइब्रिड किस्में: पीपीएच- 4, आईसीपीएच- 8, आईसीपीएच- 2740, आईसीपीएच- 2671, आईपीएच- 15-03, आईपीएच- 09-05 और एएल- 882 आदि प्रमुख है।
जल्दी पकने वाली किस्में (120-160 दिन): प्रगति, उपास- 120, पूसा अगेती, पूसा- 74, पूसा- 84 और पूसा- 992 आदि प्रमुख है।
मध्यम समय में पकने वाली किस्में ( 150-210 दिन): आशा, पूसा- 9, लक्ष्मी, मालवीय अरहर- 3, मुक्ता आइसीपीएल- 85063, बीआर- 65, बीआर- 183 और एमए- 6 आदि प्रमुख है।
देर से पकने वाली किस्में ( 210-240 दिन): बहार, बिरसा अरहर – 1 और मालवीय चमत्कार आदि प्रमुख है।
अधिक देर से पकने वाली किस्में ( 240-280 दिन): मालवीय विकास, नरेन्द्र अरहर – 1, शरद, टी- 7, टी- 17, एनपी (डब्लूआर)- 15, एएस- 71-77, एमएएल- 13, आजाद और पूसा 9 आदि प्रमुख है।
अरहर के बीज की मात्रा और बुवाई का समय (Quantity of pigeonpea seeds and sowing time)
बीज की मात्रा: अच्छी गुणवत्ता वाला 15-20 किलोग्राम अरहर (Pigeon Pea) बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बोना चाहिए।
बुआई का समय: अरहर की बुआई का उपयुक्त समय 25 जून से 15 जूलाई तक रहता है। जहां पानी की सुविधा उपलब्ध हो, वहां जल्दी बुआई करना लाभप्रद रहता है। इसकी बुआई में देरी की दशा में 5 अगस्त तक कर सकते है।
अरहर के बीज का उपचार और बुवाई (Treatment and sowing of pigeon pea seeds)
बीज उपचार: बीज की बुआई पूर्व कार्बेन्डाजिम 1.5 ग्राम या थायरम 3 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करके राजोबियम कल्चर एवं पीएसबी कल्चर 5-10 प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए।
बुआई की विधि: अरहर, को हमेशा पंक्ति में बोना लाभकारी रहता है तथा मिश्रित फसल की दशा में बोई गई फसल जैसे मक्का, मूंग, मूंगफली, उड़द, सोयाबीन शीघ्र पकने वाली धान के साथ इसकी सफल खेती की जा सकती है।
पौधे से पौधे का अंतर: शीघ्र पकने वाली किस्मों में कतारों की दूरी 60 सेमी व पौध की दूरी 15 सेंमी होनी चाहिए। अरहर (Pigeon Pea) की मध्यम अवधि वाली फसल की 90 सेमी व पौधे की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए।
अरहर की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer for pigeonpea cultivation)
अरहर (Pigeon Pea) की फसल में उर्वरक का उपयोग मृदा परीक्षण उपरांत अनुशंसा अनुसार करना चाहिए। सामान्यत: इस फसल के लिये 20 किग्रा नत्रजन 50 किग्रा स्फुर एवं 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर पोटाश बुआई के समय उपयोग करते है। सल्फर 15 किग्रा देना लाभप्रद है। स्फुर की पूर्ति के लिए डीएपी खाद के बजाय एसएसपी का उपयोग करना चाहिए। इससे सल्फर की मात्रा अलग से देने की आवश्यकता नही पड़ती।
अरहर की फसल के साथ अंतरवर्तीय फसल (Intercropping with pigeon pea crop)
अंतरवर्तीय फसल पद्धति से मुख्य फसल अरहर (Pigeon Pea) की पूर्ण पैदावार और अंतरवर्तीय फसल की अतिरिक्त पैदावार प्राप्त होगी। मुख्य फसल में कीड़ों का प्रकोप होने पर या किसी समय में मौसम की प्रतिकूलता होने पर किसी न किसी फसल से सुनिश्चित लाभ होगा। साथ-साथ अंतरवर्तीय फसल पद्धति में कीड़ों और रोगों का प्रकोप नियंत्रित रहता है।
अरहर की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Arhar Crop)
अरहर (Pigeon Pea) की ब्रान्चिग अवस्था (बुवाई से 30 दिन बाद) पुष्पावस्था (बुवाई से 70 दिन बाद) फली बनते समय (बुवाई से 110 दिन बाद) फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। अधिक अरहर उत्पादन के लिए खेत में उचित जल निकास का होना प्रथम शर्त है, अत: निचले एवं अधो जल निकास की समस्या वाले क्षेत्रों में मेड़ों पर बुआई करना उत्तम रहता है। मेड़ों पर बुवाई करने से अधिक जल भराव की स्थिति में भी अरहर की जड़ों के लिए पर्याप्त वायु संचार होता रहता है।
अरहर की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in pigeon pea crop)
खरपतवारनाशक पेन्डीमिथालिन 0.75-1.00 किग्रा सकिय तत्व प्रति हेक्टर बोनी के बाद प्रयोग करने से खरपतवार नियंत्रण होता है। अरहर की फसल (Pigeon Pea Crop) में खरपतवारनाशक प्रयोग के बाद एक निराई लगभग 30 से 40 दिन की अवस्था पर करना लाभदायक होता है।
किन्तु यदि पिछले वर्षों में खेत में खरपतवारों की गम्भीर समस्या रही हो तो अन्तिम जुताई के समय खेत में फ्लूक्लोरेलीन 50 प्रतिशत (बासालीन) की 1 किग्रा सक्रिय मात्रा को 800-1000 लिटर पानी में घोलकर या एलाक्लोर (लासा) 50 प्रतिशत ईसी की 2-2.5 किग्रा (सक्रिय तत्व) मात्रा को बीज अंकुरण से पूर्व छिड़कने से खरपतवारों पर प्रभावी नियन्त्रण पाया जा सकता है।
अरहर की फसल में कीट नियन्त्रण (Pest control in pigeon pea crop)
फलीमक्खी / फली छेदक: यह फली पर छोटा सा गोल छेद बनाती है। इल्ली अपना जीवनकाल फली के भीतर दानों को खाकर पूरा करती है। जिसके कारण दानों का सामान्य विकास रूक जाता है। दानों पर तिरछी सुरंग बन जाती है और अरहर (Pigeon Pea) दानों का आकार छोटा रह जाता है।
नियंत्रण: क्विनालफास, 20 ईसी 2 मिली या एसीफेट 75 एसपी 1 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
पत्ती लपेटक: मादा प्रायः फलियों पर गुच्छों में अंडे देती है। इस कीट के शिशु और वयस्क दोनों ही फली एवं दानों का रस चूसते हैं, जिससे अरहर (Pigeon Pea) फली आड़ी-तिरछी हो जाती है एवं दाने सिकुड़ जाते है। एक जीवन चक्र लगभग चार सप्ताह में पूरा करते है।
नियंत्रण: मोनोक्रोटोफास 36 एसएल 1 मिली + डाईक्लोरोवास 76 ईसी 0.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
प्लू माथ: इस कीट की इल्ली फली पर छोटा सा गोल छेद बनाती है। प्रकोपित दानों के पास ही इसकी विष्टा देखी जा सकती है। कुछ समय बाद प्रकोपित दाने के आसपास लाल रंग की फफूंद आ जाती है। इसकी इल्लियाँ हरी तथा छोटे-छोटे काटों से आच्छादित रहती है।
अरहर की फसल में रोग नियन्त्रण (Disease control in pigeon pea crop)
तना विगलन: बीज को रोडोमिल 3 ग्राम प्रति किग्रा बीज से उपचारित करने बोयें। अरहर (Pigeon Pea) की रोगरोधी प्रजातियां जैसे आशा, मारूति बीएसएमआर- 175 तथा बीएसएमआर- 736 का चयन करना चाहिए।
उकठा रोग: यह फ्यूजेरियम नामक कवक से फैलता है। रोग के लक्षण साधारणतया फसल में फूल ‘लगने की अवस्था पर दिखाई पड़ते है। सितंबर से जनवरी महीनों के बीच में यह रोग देखा जा सकता है। अरहर (Pigeon Pea) का पौधा पीला होकर सूख जाता है।
इस बीमारी से बचने के लिए रोगरोधी जातियां जैसे जेकेएम- 189, सी- 11, जेकेएम- 7, बीएसएमआर- 853, बीएसएमआर- 736, आशा आदि बोयें। उन्नत जातियों को बीज बीजोपचार करके ही बोयें। गर्मी में गहरी जुताई व अरहर साथ ज्वार की अंतरवर्तीय फसल लेने से इस रोग का संक्रमण कम रहता है।
बन्ध्यता मोजेक रोग: यह रोग विषाणु (वायरस) से होता है। इसके लक्षण ग्रसित पौधों के ऊपरी शाखाओं में पत्तियां छोटी, हल्के रंग की तथा अधिक लगती है और फूल-फली नहीं लगती है। यह रोग माईट, कीट के द्वारा फैलता है। इसकी रोकथाम हेतु रोग रोधी किस्मों को लगाना चाहिए। खेत में बेमौसम रोगग्रसित अरहर के पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए। माईट कीट का नियंत्रण करना चाहिए।
बांझपन विषाणु रोग रोधी जातियां जैसे आईसीपीएल 87119 (आशा), बीएसएमआर 853, 736, राजीव लोचन, बीडीएन 708 को लगाना चाहिए। माईट कीट के नियंत्रण के लिए डाइकोफाल 18.5 ईसी (2 मिली प्रति लिटर) या डायमिथिएट 30 ईसी (1.7 मिली प्रति लीटर) या मिथाइल डिमेटान 25 ईसी (2 मिली प्रति लीटर) पानी मे मिलाकर छिडकाव करें।
फायटोप्थोरा झुलसा रोग: रोग ग्रसित अरहर (Pigeon Pea) पौधा पीला होकर सूख जाता है। इसमें तने पर जमीन के ऊपर गठान नुमा असीमित वृद्धि दिखाई देती है व पौधा हवा आदि चलने पर यहीं से टूट जाता है। इसकी रोकथाम हेतु 3 ग्राम मेटालेक्सिल 35 डब्लूएस फफूंदनाशक दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। बुआई पाल (रिज) पर करना चाहिए और चवला या मूंग की फसल साथ में लगाये। रोग रोधी किस्में जेए 4 एवं जेकेएम 189 को बोना चाहिए।
अरहर फसल की कटाई और गहाई (Harvesting and threshing of pigeon pea crop)
जब अरहर (Pigeon Pea) के पौधे की पत्तियाँ खिरने लगे एवं फलियां सूखने पर भूरे रंग की हो जाएं तब फसल को काट लेना चाहिए। खलिहान मे 8-10 दिन धूप में सूखाकर ट्रैक्टर या बेलों द्वारा दावन कर गहाई की जाती है।
अरहर की फसल से पैदावार (Yield from pigeon pea crop)
उन्नत उत्पादन तकनीकी अपनाकर अरहर (Pigeon Pea) की खेती करने से 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज असिंचित अवस्था में और 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज सिंचित अवस्था में प्राप्त कर सकते है एवं 50-60 क्विंटल लकड़ी प्राप्त होती है।
अरहर के उत्पादन भण्डारण (Production and storage of pigeon pea)
भण्डारण हेतु नमी का प्रतिशत 8-10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। भण्डारण में कीटों से सुरक्षा हेतु एल्यूमीनियम फास्फाइड की 2 गोली प्रति टन प्रयोग करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
इसकी खेती करने के लिए सामान्य पी-एच मान वाली बलुई दोमट मृदा सर्वोत्तम होती है। लवणीय तथा क्षारीय मृदा अरहर (Pigeon Pea) की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है। पहली जुताई मिट्टी पलट कर हल से करने के बाद 2-3 जुताई हैरो या देसी हल से करनी चाहिए। उचित खाद और उर्वरक प्रबंधन के बाद अरहर की कतारों में बुवाई की जाती है।
अरहर (Pigeon Pea) की फसल के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी अच्छी होती है। हालाँकि इसको काली कपास वाली मिट्टी में सफलतापूर्वक उगाया जाता है, जिसमें अच्छी जल निकासी हो और जिसका पीएच 7.0-8.5 के बीच हो।
अरहर मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की फसल है, जिसकी खेती मुख्य रूप से भारत के अर्ध शुष्क क्षेत्रों में की जाती है। अरहर (Pigeon Pea) की खेती बरसात के मौसम (जून से अक्टूबर) और बरसात के बाद (नवंबर से मार्च) में की जा सकती है।
अरहर खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली दलहनी फसल है। अरहर की खेती अगेती और पछेती फसल के रूप में करते हैं। सिंचित क्षेत्रों में अगेती अरहर (Pigeon Pea) की बुआई मध्य जून में पलेवा करके करें। कतार और मेड़ों पर बोने से अच्छी उपज मिलती है।
अरहर की फसल को तैयार होने में आम तौर पर 120 दिन लगते हैं। हालांकि, अरहर (Pigeon Pea) की नई हाइब्रिड किस्में कम समय में तैयार हो जाती हैं। लंबी अवधि वाली किस्में लंबी, फैलने वाली होती हैं और लगभग 250-270 दिनों तक खेत में रहती हैं।
अरहर की फसल को बुआई के 30 दिन बाद फूल आने पर पहली बार सिंचाई करें। फसल में फली आने के 70 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए। अरहर (Pigeon Pea) की सिंचाई बारिश पर निर्भर करती है, लेकिन कम बारिश होने पर फसल की सिंचाई आवश्यकतानुसार करनी चाहिए।
अरहर की अच्छी उपज लेने के लिए 15-20 किग्रा नत्रजन, 40-45 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा सल्फर की प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। हालाँकि अरहर (Pigeon Pea) की अधिक से अधिक उपज के लिए फास्फोरस युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, डाई अमोनियम फास्फेट का प्रयोग करना चाहिए।
अरहर (Pigeon Pea) की उपज बढ़ाने के लिए बुआई के लिए, रेतीली दोमट या मटियार दोमट मिट्टी का चुनाव करें। बीज बुआई से पहले, खेत में गोबर की कंपोस्ट खाद डालकर मिट्टी को पोषण दें एवं मान्यता प्राप्त उन्नत किस्मों के बीजों का इस्तेमाल करें। बुआई से पहले, बीजों का उपचार करें ताकि कीट-रोग न फैल सकें।
उपरोक्त उत्पादन तकनीकी अपनाकर उपजाऊ और सिंचित फसल से अरहर (Pigeon Pea) की 25 से 40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
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