Potato Cultivation: आलू एक नगदी फसल है जिसे क्षेत्र, उत्पादन और आर्थिक महत्व की दृष्टि से मुख्य खाद्यान्न फसलों में तीसरा स्थान प्राप्त है। अधिक उपज प्राप्त करने हेतु आलू के लिए ठंडी जलवायु और कम तापमान की आवश्यकता होती है। आलू (Potato) के उचित वृद्धि एवं विकास हेतु 15-20 सेन्टीग्रेड तापमान सर्वोत्तम रहता है, बीस सेन्टीग्रेड अथवा इससे कम तापमान पर कंदों का निर्माण और विकास अच्छा होता है तथा इससे अधिक तापमान होने पर धीरे-धीरे कंदों का निर्माण कम होने लगता है, जो लगभग 29 सेन्टीग्रेड तापमान पर बंद हो जाता है।
स्वस्थ और उन्नत उत्पादन की सफलता अन्य बातों के अलावा बीज के गुणों के ऊपर बहुत कुछ निर्भर करती है। अच्छे स्वस्थ और निरोग बीज फफूंद नाशक दवाओं से उपचारित कर लगाने से पैदावार अच्छी प्राप्त होती है। अत: उन्नत किस्म का बीज, बीजोपचार और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन अपनाकर अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। मैदानी क्षेत्रों में आलू (Potato) बोने का सर्वोत्तम समय सितम्बर अंत से मध्य नवम्बर तक अच्छा माना जाता है। गुणवत्तायुक्त आलू का उत्पादन निम्न बातों पर निर्भर करता है, जिनका उल्लेख निचे लेख में विस्तार से किया गया है।
आलू की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for potato cultivation)
आलू की फसल (Potato Crop) के लिए मध्यम शीतोष्ण वाली जलवायु की आवश्यकता होती है। आलू की समुचित बढ़वार और विकास के लिए हल्की ठण्डी जलवायु की आवश्यकता होती है। आलू की रोपाई के लिए उचित तापमान 24 – 25 डिग्री सेंटीग्रेट होता है।
इसमें कम तापमान होने पर इसके अंकुरण में विलम्ब हो जाता हे ओर उपज भी कम मिलती है। जहाँ पर दिन के समय तापमान 35 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक न हो, तथा रात का तापमान 21 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक न हो, आलू की फसल की वृद्धि के लिए 15-25 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त माना जाता है।
आलू की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for potato cultivation)
आलू की फसल (Potato Crop) सामान्य तौर पर सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है तथा दोमट और बलुई दोमट मिट्टी वाला कार्बनिक पदार्थो से भरपुर खेत जहां जल निकास की सुविधा हो इसके लिये विशेष उपयुक्त रहता है। खेत का समतल होना भी आलू की फसल के लिये आवश्यक होता है आलू को 6 से 8 पीएच वाली भूमि में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। परन्तु लवणीय व क्षारीय भूमि इस फसल के लिये पूर्णतया अनुपयुक्त रहती है।
आलू की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for potato cultivation)
आलू की खेती (Potato Farming) के लिये खेत की जुताई बहुत अच्छी तरह होनी चाहिये। एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा फिर दो तीन बार हैरो या देशी हल से जुताई कर मिट्टी भरभुरी कर लेनी चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगायें जिससे ढेले न रहें। भूमि उपचार के लिये अन्तिम जुताई के समय क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हैक्टेयर की दर से भूमि में भली भांति देंवे, जिससे भूमिगत कीटों से फसल की सुरक्षा होती हो सके।
आलू की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for potato cultivation)
उत्तम उत्पादन में उन्नत किस्मों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्नत किस्म और स्वस्थ बीजों के प्रयोग से किसान भाई अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। आलू (Potato) की उन्नत किस्मों का विवरण नीचे दी गयी तालिका में दर्शित है, जैसे-
किस्में | आलू का रंग | फसल अवधि (दिन) | उपज क्षमता (कु./हे.) | फसल श्रेणी |
कुफरी चन्द्रमुखी | सफेद | 80-90 | 200-250 | अगेती |
कुफरी अशोक | सफेद | 75-85 | 300-350 | अगेती |
कुफरी पुखराज | सफेद | 80-90 | 350-360 | अगेती |
कुफरी ख्याति | सफेद | 60-70 | 250-350 | अगेती |
कुफरी सूर्या | सफेद | 80-90 | 250-300 | अगेती |
कुफरी पुष्कर | सफेद | 80-90 | 300-350 | अगेती |
कुफरी ज्योति | सफेद | 90-100 | 300-320 | मध्यम |
कुफरी लालिमा | लाल | 90-100 | 300-350 | मध्यम |
कुफरी गिरिराज | सफेद | 90-100 | 250-300 | मध्यम |
कुफरी चिप्सोना – 1 | सफेद | 100-110 | 300-350 | मध्यम |
कुफरी चिप्सोना – 2 | सफेद | 100-110 | 300-350 | मध्यम |
कुफरी कंचन | लाल | 100-105 | 250-300 | मध्यम |
कुफरी अरुण | लाल | 90-100 | 300-350 | मध्यम |
कुफरी बादशाह | सफेद | 110-120 | 350-400 | पछेती |
कुफरी सिंदूरी | लाल | 110-120 | 350-400 | पछेती |
मध्यम अर्थात 100-110 दिनों में तैयार होने वाली किस्म
पिछेती अर्थात 120 इससे अधिक दिनों में तैयार होने वाली किस्म
आलू की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for potato cultivation)
अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए उचित समय पर आलू की बुवाई करना आवश्यक है। जब अधिकतम तथा न्यूनतम तापक्रम क्रमशः 30 और 18 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच में रहे तो आलू (Potato) की बुआई की जा सकती है। आलू की किस्मों के अनुसार बुआई का समय इस प्रकार है, जैसे-
- कम दिनों में तैयार होने वाली किस्मों (अगेती) की सितम्बर के अंतिम सप्ताह से अक्तूबर मध्य तक बुआई करें।
- मध्यम अवधि वाली किस्मों (मध्यम) की अक्तूबर मध्य से नवम्बर मध्य तक बुआई करें।
- देर से तैयार होने वाली किस्मों (पछेती) की दिसम्बर के प्रथम सप्ताह से जनवरी के प्रथम सप्ताह तक बुआई करें।
आलू के बीज की मात्रा और बीज उपचार (aaloo seed quantity and seed treatment)
शुद्ध, स्वस्थ और विषाणुमुक्त बीजों का चुनाव कर आलू को समूचा या काटकर बोते हैं। एक हेक्टेयर खेत की बुआई के लिए औसतन 20-25 क्विंटल कंदों (बीज) की आवश्यकता होती है। जबकि कटे हुए कंदों की मात्रा 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होती है। अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कंदों का व्यास 2.5-5.5 सेमी तथा वजन 35-50 ग्राम के बीच होना चाहिए।
बड़े आकार के कंदों को काटकर बोया जाना चाहिए, परन्तु प्रत्येक कंद में 3-5 आँखें अवश्य होनी चाहिए तथा वजन 25 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। आलू (Potato) कंदों को बुआई के 7-10 दिन पूर्व काटकर 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) मेंकोंजेब के घोल में 10 मिनिट तक डुबाकर नम और छायादार स्थान में सुखाने के बाद ही बुआई करें।
आलू की खेती के लिए बीज की बुवाई (Sowing of seeds for aaloo cultivation)
आलू बुवाई के लिए 30 से 45 ग्राम वाले अच्छे अंकुरित बीज का उपयोग करना चाहिए। समान्यत आलू की 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर और आलू से आलू (Potato) की दूरी उसके बीज के आकार पर निर्भर होती है, छोटी के लिए 15 और बड़े के लिए 40 सेंटीमीटर उपयुक्त रहती है। मेड़ो में आलू 8 से 10 सेंटीमीटर निचे छोड़े।
आलू की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in potato crop)
एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन की उन्नत फसल उत्पादन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्नत और स्वस्थ कंद उत्पादन प्राप्त करने हेतु सदैव मृदा जांच के आधार पर ही खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। आलू फसल (Potato Crop) में सामान्यत: 20- 25 टन कम्पोस्ट या 6-8 टन वर्मी कम्पोस्ट और 200 किग्रा नत्रजन, 100 किग्रा फास्फोरस (स्फुर) एवं 120 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर आवश्यक होता है।
रसायनिक उर्वरकों के रूप में नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश की पूर्ति क्रमश 350 किग्रा यूरिया, 217 किग्रा डीएपी और 200 किग्रा म्यूरेट आफ पोटाश देकर की जा सकती है। नत्रजन की आधी मात्रा और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा अंतिम जुताई के साथ खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। शेष नत्रजन की आधी मात्रा अंतिम बार मिट्टी चढ़ाते समय 40-70 दिन (फसल अवधि के अनुसार) की अवधि में देना चाहिए।
आलू की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in aaloo Crop)
मृदा में अच्छे अंकुरण हेतु नमी की कमी होने पर आलु (Potato) की बुआई उपरान्त हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। दूसरी सिंचाई तब करनी चाहिए जब 2-5 प्रतिशत कंदों का अंकुरण हो जावें । इसके बाद 8-15 दिन के अंतराल पर मृदा की किस्म अनुसार करते रहना चाहिए। इस प्रकार हल्की भूमि में 6-10 एवं भारी भूमि में कुल 3-4 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है।
आलू की फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Potato Crop)
प्रथम सिंचाई या आलू (Potato) बुआई के बाद जब खरपतवार उगने लगें, तब हल्की निंदाई-गुड़ाई कर फसल खरपतवार रहित कर देनी चाहिए। खरपतवारनाशी के रूप पेंडामिथालीन एक किग्रा सक्रिय तत्व (व्यवसायिक मात्रा 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर) का बुआई के 24 घंटे बाद अर्थात् अंकुरण पूर्व एक छिड़काव करने पर 20-25 दिन तक खरपतवार नियंत्रित रहता है। छिड़काव के लिए 800-1000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। छिड़काव के समय मृदा में पर्याप्त नमी होना अत्यन्त आवश्यक है।
आलू की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in potato crop)
माहू: यह हरे रंग का होता है और पत्तियों से रस चूसता है। यह कीट आलू (Potato) में विषाणु रोग भी फैलाता है।
नियंत्रण: 1 मिली इमिडाक्लोरपिड (17.8 एसएल) प्रति 3 लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करें।
पत्तियों का फुदका: यह कीड़ा पत्तियों का रस चुसता है। आरंभ में कीट ग्रस्त पौधों पत्तियाँ मुड़ जाती है।
नियंत्रण: बुप्रोफेन्जिन (5%) 1 मिली 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
आलू का कुतरा: ये कीड़े पौधे को जमीन की सतह से काट देते हैं।
नियंत्रण: 1.5 मिली क्विनॉलफॉस 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
आलू का कंद मोथ: यह कीट आलू (Potato) को खेत से भंडारगृह तक नुकसान पहुँचाता है। इसकी सूंडियाँ कंद के भीतर घुसकर उसे खाती है, फलस्वरूप आलू खोखला होकर सड़ने लगता है।
नियंत्रण: फोरेट 10 जी का 10 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से व्यवहार करें या बीज वाले आलू को भंडारित करने से पहले 3 ग्राम प्रति लिटर पानी बोरिक एसिड घोल में मिलाकर 10 मिनट छाया में सुखा लें।
आलू की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in potato crop)
अगेती झुलसा: इसके प्रकोप से पत्तियों पर काले, पीले या भूरे रंग के छोटे-छोटे धब्बे पड़ जाते हैं। ये धब्बे शुरूआत में पत्तियों के किनारे पर दिखाई देते हैं।
पछेती झुलसा: पहले पत्तियाँ तथा तनों पर भूरे बैंगनी धब्बे दिखाई पड़ते हैं, यदि रोकथाम में देर हो जाए तो यह आलू (Potato) कंद तक पहुँच जाता है और सड़न पैदा कर देता है।
नियंत्रण: दोनों प्रकार के झुलसा के रोकथाम के लिए टेबुकाजोल (25%) 1 मिली दवा का प्रति लीटर पानी घोल बनाकर बोने के 40 दिन बाद से 15 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव करना चाहिए या इप्रोवेलीकार्ब 5.5%+प्रोपीनेब 61.25% डब्लूपी का 2-2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
मोजेक: पत्तियों पर हल्के हरे-पीले चित्तियों से लेकर कई आकार में होते हैं। पत्तियों तथा आलू का भी आकार छोटा हो जाता है।
नियंत्रण: 1) प्रमाणित एवं रोग मुक्त बीजों का प्रयोग। 2) रोगग्रस्त पौधों को खेत से निकालकर जला देना चाहिए। 3) विषाणु के रोकथाम के लिए 1 मिली इमिडाक्लोरपिड 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
आलू की फसल की खुदाई (Digging of potato crop)
जब आलू का छिलका पक जाये तब आलू (Potato) की खुदाई कर सकते है। भोज्य आलू की खुदाई बाजार भाव और आवश्यकता के अनुसार कर सकते हैं। आलू की खुदाई शुरू करने से पहले यह ध्यान रहे कि खेत गीला न हो। खुदाई बैल या ट्रैक्टर चालित आलू खोदने के यंत्र से कर सकते है और यंत्र बहुत ही उपयोगी होता है।
खुरपी या कुदाल से खुदाई करने पर आलू (Potato) के कंद बहुत ज्यादा मात्रा में कट जाते हैं, जिससे काफी नुकसान होता हैं। खुदाई करने के पश्चात कंदों को किसी छायादार स्थान पर एक मीटर ऊँचें ढेर में लगा देना चाहिए तथा 10-15 दिन के लिए उसी स्थान पर छोड़ देना चाहिए। जिससे आलू का छिलका अच्छी तरह से पक जाता हैं।
आलू फसल कंदों की छंटाई (Sorting of aaloo crop tubers)
आलू की खुदाई के 10-15 दिन के बाद जब छिलका अच्छी तरह से पक जाये तब इसको तीन श्रेणियों जैसे 30 ग्राम से छोटे, 30-80 ग्राम तक तथा 80 ग्राम से बडे कंदों को अलग-अलग छॉट लेते है। शीत भण्डारण के लिए आलू की खुदाई ठंडे मौसम में ही कर लेनी चाहिए। खुदाई के समय यदि तापमान 28 डिग्री सेंटीग्रेट से ज्यादा होता है, तो कंदो में काला गलन रोग (चारकोल रॉट) आना शुरू हो जाता हैं।
खुदाई तथा छंटाई के बाद यदि आलू (Potato) को बीज के लिए रखना है तो उसे 2.5 या 3 बोरिक एसिड घोल (25 ग्राम या 30 ग्राम दवा एक लीटर पानी में) 10-15 मिनट तक डूबोकर उपचारित कर लेना चाहिए। स्प्रेयर की मदद से भी बीजोपचार कर सकते हैं, इसमें घोल कम लगता हैं तथा लागत भी कम आती हैं।
ध्यान रहे कि उपचार करते समय तापमान 30- 32 डिग्री सेंटीग्रेट से ज्यादा नहीं होना चाहिए। अन्यथा गर्म वातावरण में उपचार करने से आलू (Potato) के सड़ने का प्रतिशत बढ़ जाता है। उपचार के बाद आलू को किसी छायादार स्थान पर फैलाकर सुखा लेना चाहिए।
आलू की फसल से उपज (Yield from potato crop)
आलू की पैदावार किस्म और समय पर निर्भर करती है। यदि उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से आलू की खेती (Potato Farming) की जाये, तो आमतौर पर सामान्य किस्मों से 30 से 40 टन और संकर किस्मों से 35 से 60 टन प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल सकती है।
आलू कंदों का भंडारण (Storage of potato tubers)
इसमें सड़न तथा गलन की क्रिया वातावरण के कुप्रभाव से शीघ्र होने लगती है। इसलिए इसको सुरक्षित रखने के लिए इसका भंडारण शीतगृह में तुरंत कर देने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसा विशेषकर मैदानी भागों में जरूरी होता है, जहाँ आलू (Potato) की खुदाई के तुरंत बाद तापमान बड़ी तेजी के साथ बढ़ता है।
इस परिस्थिति में इसका उचित भंडारण न किए जाने पर कंदों के सड़ने, सिकुड़ने तथा सूखने के कारण काफी क्षति होती है। आलू के भंडारण का सर्वोत्तम स्थान शीतगृह है। जिन स्थानों पर शीतगृहों की सुविधा न हो, वहाँ आलू के देशी भंडारों में रखा जा सकता है। इस तरह के देशी भंडार, घास-फूस की छत वाले तथा ठंडे छायादार स्थानों या वृक्षों के नीचे बनाने चाहिए।
भंडार के अंदर लकड़ी के रैक में 20- 30 सेंटीमीटर मोटी तहों में रेत से ढ़क कर आलू रखना चाहिए। आवश्यकतानुसार समय-समय पर सड़ी गली तथा क्षतिग्रस्त कंदों की छँटाई करते रहना चाहिए। शीतगृहों में तापमान और नमी दोनों का प्रमुख स्थान है। इसके लिए 2-4° सेंटीग्रेड तापमान तथा 75-80% आपेक्षिक आर्द्रता की आवश्यकता पड़ती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
आलू (Potato) की मुख्य फसल अक्टूबर के पहले सप्ताह में बोई जाती है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में खरीफ की फसल जून के अंत में बोई जाती है जबकि रबी की फसल अक्टूबर-नवंबर के मध्य से बोई जाती है।
विशेषज्ञों की मानें तो आलू (Potato) को पकने में 60 से 90 दिन का आइडियल टाइम लगता है। लेकिन आलू की कुछ वैरायटी ऐसी भी हैं, जो 130 दिनों में तैयार होती है।
आलू (Potato) की पहली सिंचाई अंकुरण के उपरांत करनी चाहिए। इसके बाद 10-12 दिन के अंतराल पर हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
आलू (Potato) की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस, 100 किलोग्राम पोटाश तथा 24 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से रासायनिक खाद का प्रयोग करें।
आलू की फसल (Potato Crop) में कुल यूरिया की मात्रा को तीन भाग में बाँट कर पहला भाग बुवाई के समय दूसरा 21-25 दिन पर तथा तीसरा भाग 40 – 45 दिन पर देना चाहिए।
आलू फसल (Potato Crop) के लिए पंक्तियों से पंक्तियों के बीच में 50 सेंटीमीटर का अंतर और पौधों से पौधों में 20 से 25 सेमी की दूरी रखनी चाहिए।
कुफरी पुखराज, कुफरी सिंदूरी, कुफरी चिप्सोना, कुफरी अलंकार और कुफरी नीलकंठ किस्मों की खेती करके आलू (Potato) से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
वानस्पतिक वृद्धि, कंद निर्माण और उभार के दौरान पोटेशियम और नाइट्रोजन दोनों की आवश्यकता होती है। पोटैशियम आलू की फसल (Potato Crop) द्वारा सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला तत्व है और आलू की उच्च पैदावार प्राप्त करने के लिए नाइट्रोजन के साथ इसकी सबसे अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।
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