
Proso Millet Cultivation in Hindi: सांवा या चेना या जेठी एक मोटा अनाज है। इसका बीज स्लेटी रंग का चमकदार होता है, जिसे अपने देश में चावल, हलुआ आदि के रूप में खाया जाता है। औषधिय गुणों से भरपूर इसके बीजों अथवा दानों को बाजरा या अन्य फसलों के साथ मिलाकर भी प्रयोग किया जाता है। अनुपजाऊ मृदा में भी इसकी अच्छी उपज ली जा सकती है।
यह वर्षा ऋतु में उत्पन्न होने वाला अनाज है, जो लगभग दो-ढाई महीने में पककर तैयार हो जाता है। फसल तैयार होने पर पीटकर बीज को निकाला जाता है जबकि हरे पौधे का प्रयोग पशु चारा के रूप में किया जाता है। इस लेख में, हम भारत में सांवा की खेती की पेचीदगियों पर चर्चा करेंगे, जिसमें जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताओं से लेकर पैदावार तक सब कुछ शामिल है।
सांवा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for cultivation of Proso Millet)
सांवा (Proso Millet) की खेती करने के लिए उष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। देश में सांवा की खेती प्राय: असिंचित क्षेत्रों में की जाती है। इसका कारण यह है कि इसको पानी की कम जरूरत होती है, अर्थात सांवा की खेती 200-400 मिलीमीटर बारिश वाले इलाकों में की जा सकती है। इसकी खेती समुद्र तल से 2700 मीटर तक की ऊंचाई वाले इलाकों में की जा सकती है।
सांवा की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for cultivation of Proso Millet)
सांवा (Proso Millet) की फसल सफलतापूर्वक उगाने और ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लेने के लिए हल्की दोमट मृदा सबसे अधिक उपयुक्त मानी जाती है। यह फसल पानी के प्रति अति संवेदनशील होती है। इसलिए अच्छी जल निकास वाली मृदा जिसका पीएच मान 7.0 हो अच्छी मानी जाती है। भारी मृदा में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।
सांवा की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for cultivation of Proso Millet)
सांवा (Proso Millet) की खेती के लिए मानसून शुरू होने से पहले खेत की जुताई कर दें। मानसून शुरू होने के बाद रोटावेटर से पहली जुताई करें। 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करके खेत तैयार कर लें। खेत को ज़्यादा उपजाऊ बनाने के लिए 5 से 7 टन गोबर की सड़ी हुई खाद मिलाएं। खेत को समतल करें और आवश्यक हो तो ढाल बनाएं। जल निकासी की व्यवस्था अवश्य करें।
सांवा की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for cultivation of Proso Millet)
सांवा (Proso Millet) की प्रमुख प्रजातियाँ निम्नलिखित है- सीबीवाईवीएम- 1 (बीएमवी- 611), एल- 29, एल- 172, एल- 181 और एल- 207 आदि प्रमुख रूप से शामिल है सीबीवाईवीएम- 1 सांवा की नई किस्म है, यह किस्म 90 से 94 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 24 से 26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन हासिल किया जा सकता है। यह किस्म वर्षा आधारित खरीफ, सिंचित रबी और ग्रीष्म ऋतु में उगाई जा सकती है।
सांवा बुआई का समय और बीजदर (Time of sowing of Proso Millet and seed rate)
बुआई का समयः सांवा (Proso Millet) की जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बुआई का उत्तम समय होता है। दक्षिणी भारत में फरवरी-मार्च के महिने में बुआई की जाती है और इस समय भी परिणाम अच्छे मिलते हैं।
बीज की मात्रा: बीज की मात्रा 90-95 प्रतिशत अंकुरण क्षमता वाला 8-10 किलोग्रान सांवा (Proso Millet) का बीज एक हेक्टेयर क्षेत्रफल वाले खेत के लिए पर्याप्त रहता है। अगर बीज की अंकुरण क्षमता कम है, तो उसी अनुपात में बीज की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए, अन्यथा इष्टतम पौधों की संख्या नहीं हो पाती है और परिणामस्वरूप उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
सांवा की खेती के लिए बुआई की विधि (Method of sowing for Proso Millet cultivation)
पुरानी परंपराओं के अनुसार खेत में बीज को छिड़ककर बोया जाता है, परन्तु इससे अंकुरण एक समान नहीं होता है और बीज की मात्रा भी अधिक लगती है। इसलिए वैज्ञानिकों का सुझाव है, कि बुआई 20-25 सेंमी की दूरी पर पक्तियों में करनी चाहिए।
इससे अकुंरण अच्छा होता है और अंत क्रियाएं भी करने में सुविधा रहती है। जिससे उत्पादन भी अपेक्षाकृत अधिक प्राप्त होता है। सांवा (Proso Millet) की बुआई के लिए बैल चालित बीज – मशीन का प्रयोग भी कर सकते हैं।
सांवा की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in Proso Millet crop)
सांवा (Proso Millet) की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खाद एवं उर्वरकों का इस प्रकार प्रबंधन करें, जैसे- नाइट्रोजन की आपूर्ति 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया का प्रयोग करके, फॉस्फोरस की आपूर्ति 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एसएसपी का प्रयोग करके और पोटाश की आपूर्ति 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से म्यूरेट ऑफ पोटाश का प्रयोग करके करना चाहिए।
ध्यान रहे कि फॉस्फोरस एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा का प्रयोग बुआई के समय ही करें और शेष नाइट्रोजन की आधी नात्रा का प्रयोग दो बार में आधा-आधा करके करना चाहिए। अगर सिंचाई की सुविधा हो तो सिंचाई के बाद खरपतवार को निकलवा कर ही उर्वरक एवं खाद का प्रयोग करना चाहिए।
सांवा की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Sawa Crop)
सांवा (Proso Millet) की वर्षा ऋतु में उगाई जाने वाली फसलों को कोई खास सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। रबी के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। खेत में अधिक पानी का भराव खड़ी फसल के लिए काफी नुकसानदेह है। इसलिए उचित जल निकास के लिए बुआई से पूर्व खेत को समतल कर लेना चाहिए।
सांवा की फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Sawa Crop)
सांवा (Proso Millet) की फसल में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक और यांत्रिक दोनों तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए फसल खरपतवार से मुक्त होनी चाहिए। खरपतवारों की रोकथाम के लिए खेत में 2-3 बार निराई करनी चाहिए। यह क्रिया पंक्ति में बोई गई फसल में आसानी से की जा सकती है।
सांवा की फसल में फसल सुरक्षा (Crop protection in Proso Millet crop)
फसल में दो प्रकार की समस्याएं आती है, पहला रोग व्याधियां और दूसरा कीट-पतंगे आदि। इनका समय पर प्रबंधन करना अति आवश्यक होता है अन्यथा उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सांवा (Proso Millet) में लगने वाले प्रमुख रोग और उनका उपचार इस प्रकार है, जैसे-
मदुरामिल आसिता: यह कवक जनित भयानक रोग है। इसके आक्रमण से पत्तियां पीली पड़ कर सूख जाती है और बालियां भूसीदार हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए रोगी पौधों को उखाड़कर जला देना चाहिए। फसल को समय-समय पर देखते रहना चाहिए और रोगी पौधों को उखाड़कर जलाते रहना चाहिए।
कंड रोग: यह सांवा (Proso Millet) का कवक जनित रोग है। इसके आक्रमण से सम्पूर्ण बाल में काला चूर्ण बन जाता है। इसके बीजाणु एक सफेद झिल्ली से ढके रहते हैं। इसकी खास पहचान यह है कि रोगी पौधे अन्य पौधों से लम्बाई में अधिक होते हैं। इस रोग से बचाव के लिए बीज को गर्म पानी से उपचारित करना चाहिए।
कम से कम 55-60 डिग्री सेल्सियस तापमान के पानी में 7-12 मिनट तक बीज को रखने के बाद बीज को बाहर निकालकर हल्का सुखाएँ, फिर छाया में बीज को कवकनाशी रसायन एग्रोसन जीएन की 20 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।
सांवा फसल की कटाई और गुड़ाई (Harvesting and Weeding of Proso Millet Crop)
फसल की कटाई: सांवा (Proso Millet) की फसल 70-80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जब फसल पककर तैयार हो जाये तो कटाई हसियां से करनी चाहिए। सामान्यतया खरीफ ऋतु में बुआई की गई फसल अगस्त-सितम्बर में पककर तैयार हो जाती है।
फसल की गुड़ाई: इसकी गुड़ाई बैलों की दाप चलाकर कर सकते हैं। जब दाना भूसे से अलग दिखाई दे तो हक अथवा पंखे से दानों को भूसे से औरगई करके अलग कर लेना चाहिए। यदि बहुत कम क्षेत्रफल में उगाया गया है तो हाथ से डण्डों द्वारा हल्की पिटाई करके दानों को अलग कर सकते हैं।
सांवा की फसल से उपज और भंडारण (Yield and storage of Sanwa crop)
उपज: सांवा (Proso Millet) की फसल के लिए उक्त अच्छी तरह प्रबंधन करके उगाने पर 24-26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दाना और 20-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पुआल प्राप्त हो जाता है।
भंडारण: सांवा दानों को धूप में अच्छी तरह सुखाकर रखना चाहिए। दानों में 10-12 प्रतिशत नमी का रहना सही माना जाता हैं। इससे ज्यादा नमी रहने पर दानों में कीट लग जाते हैं। जिन बोरों अथवा डिब्बों में दानों को भरकर रख रहे हैं, ध्यान रहे कि उसके नीचे तख्ते अथवा ईटों के फर्श पर लकड़ी के फट्टे बिछे हो। भंडारित स्थान पर कीटनाशी रसायन से उपचारित करना ना भूलें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
सांवा (Proso Millet) की खेती मैदानी एवं पर्वतीय स्थानों पर छोटे-छोटे खेतों में की जाती है। हल्की एवं कम उर्वरता वाली भूमि में खेती हेतु एक से दो गहरी जुताई वर्षा पूर्व आवश्यक है। अधिक उत्पादन हेतु उन्नत किस्मों का चुनाव करें। सांवा की बुवाई छिड़काव विधि से या कतार में की जा सकती है। कतार में बुवाई करने पर, बीजों के बीच 25 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए।
सांवा की खेती के लिए गर्म और मध्यम जलवायु अच्छी रहती है। यह कठोर मौसम को भी सहन कर लेता है। सांवा (Proso Millet) की खेती वर्षा आधारित होती है।
सांवा की खेती के लिए बलुई दोमट और दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। हालाँकि सांवा (Proso Millet) की खेती कम उपजाऊ मिट्टी में भी की जा सकती है।
सांवा (Proso Millet) की बुवाई जून से जुलाई के बीच करनी चाहिए। तमिलनाडु में असिंचित फसल की बोआई सितम्बर-अक्टूबर माह में तथा सिंचित फसल की बोआई फरवरी-मार्च में की जाती है। जबकि उत्तराखंड के पर्वतीय स्थानों पर अप्रैल-मई माह बोआई हेतु उत्तम है।
सांवा (Proso Millet) की कतार में बोआई हेतु बीज दर 8 से 10 किलो प्रति हेक्टेयर तथा छिड़काव पद्धति से बोआई के लिये 12 से 15 किलो बीज प्रति हेक्टेयर हेतु आवश्यक है।
सांवा (Proso Millet) की बुवाई के लिए उन्नत किस्मों में व्हीएल 29, व्हीएल 172, व्हीएल 181, व्हीएल 207 और सीबीवाईवीएम 1 (बीएमवी 611) आदि शामिल है।
सांवा (Proso Millet) की खेती के लिए गोबर की खाद, रासायनिक उर्वरक और जैविक उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता है। बोआई से पहले गोबर की खाद 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। रासायनिक उर्वरक के रूप में 20 किलो नत्रजन और 20 किलो फ़ॉस्फ़ोरस प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। नत्रजन की आधी मात्रा बोआई से पहले और बाकी आधी मात्रा बोआई के 3-4 हफ़्ते बाद डालें।
आम तौर पर, सांवा (Proso Millet) की फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं होती। हालांकि, बारिश लंबे समय से न होने पर, फूल आने के समय एक बार सिंचाई कर देनी चाहिए। सांवा की फसल को 2 से 3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 15 से 20 दिन बाद और दूसरी सिंचाई बुवाई के 40 से 45 दिन बाद करनी चाहिए।
सांवा (Proso Millet) की फसल 90 से 95 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा इसकी फसल से विभिन्न किस्मों की उत्पादन क्षमता के अनुसार 15 से 23 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है।
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