Radish Farming: मूली शीघ्र तैयार होने वाली फसल है। इसको अन्तर फसल तथा जायद फसल के रूप में बड़ी आसानी से उगाया जा सकता है। मूली की जड़ें विटामिन युक्त तथा लवणों से भरपूर होती है। इसके अतिरिक्त मूली के पत्तों में भी लवण और विटामिन ए तथा विटामिन सी होती है। मूली की कच्ची फलियों को भी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। देश के शुष्क समशीतोष्ण तथा आर्द्र समशीतोष्ण पर्वतीय क्षेत्रों में इसे ग्रीष्म ऋतु तथा उपसमशीतोष्ण, उपउष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में दोनों ग्रीष्म तथा शीत ऋतु में बीजा जाता है।
यूरोपियन किस्मों का बीज शुष्क समशीतोष्ण तथा आर्द्र समशीतोष्ण पर्वतीय क्षेत्रों में ही पैदा किया जाता है। इसी प्रकार एशियाटिक किस्मों के उच्चगुणवत्ता वाले बीज उप- समशीतोष्ण तथा उप-उष्णकटिबन्ध क्षेत्रों में पैदा किये जाते हैं। मूली (Radish) की जड़ों को यकृत, पित्ताशय और मूत्र संबंधी विकारों, बवासीर और जठराग्नि को ठीक करने में प्रभावी माना गया है। इस लेख में मूली (Radish) की वैज्ञानिक तकनीक से खेती कैसे करे का उल्लेख किया गया है।
मूली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for radish cultivation)
मूली की खेती (Radish Cultivation) ठंड के मौसम में की जाती है, क्योंकि इस मौसम में मूली बेहतर तरीके से विकसित होती है। आर्द्र जलवायु मूली के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके बीजों को अंकुरण के लिए 20 डिग्री से आस-पास तापमान की आवश्यकता होती है। अगर आप 25 डिग्री से अधिक तापमान में मूली की खेती करेंगे, तो फसल की गुणवत्ता कम हो जाती है।
मूली की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for radish cultivation)
मूली की खेती (Radish Cultivation) के लिए उत्तम मिट्टी रेतीली दोमट और दोमट मानी गई है, जबकि मटियार भूमि में इस की खेती करना लाभदायी नहीं होता है, क्योंकि इस में मूली की जड़ों का समुचित विकास नहीं हो पाता है। मूली के लिए ऐसी भूमि का चयन करना चाहिए, जो हलकी भुरभुरी हो और उस में जैविक पदार्थों की मात्रा अधिक हो। इसके लिए भूमि का पीएच मान 5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
मूली की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Land preparation for radish cultivation)
मूली की खेती (Radish Cultivation) के लिए गहरी जुताई कि आवश्यकता होती है, क्योंकि इसकी जड़ें भूमि में गहरी जाती है। गहरी जुताई के लिए मिटटी पलटने वाले हल से जुताई करें। इसके बाद दो बार कल्टीवेटर या देशी हल चलाएँ जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं, ताकि भूमि समतल और भुरभुरी हो जाये। जुताई करते समय 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गली गोबर की खाद मिला देना चाहिए।
मूली की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for radish cultivation)
हमारे देश के अलग-अलग क्षत्रों में मूली (Radish) की दो प्रकार की किस्मे उगाई जाती है, एशियन और यूरोपियन जो इस प्रकार है, जैसे-
उष्ण प्रकार (एशियाटिक) किस्में: पूसा चेतकी, जापानी सफ़ेद, पूसा हिमानी, पूसा रेशमी, जौनपुरी मूली, हिसार मूली न- 1, कल्याणपुर- 1, पूसा देशी, पंजाब पसंद, चाइनीज रोज, सकुरा जमा, व्हाईट लौंग, के एन- 1, पंजाब अगेती और पंजाब सफेद आदि प्रमुख है।
शीतोष्ण प्रकार (यूरोपियन) किस्में: व्हाईट आइसीकिल, रैपिड रेड व्हाईट टिपड, स्कारलेटग्लोब और फ्रेंच ब्रेकफास्ट आदि प्रमुख है।
मूली की खेती के लिए बीज दर और बुवाई (Seed rate and sowing for radish cultivation)
मूली का बीज 10 से 12 किग्रा प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। मूली के बीज को 2.5 ग्राम थिरम प्रति किग्रा बीज की दर से शोधित करना चाहिए। मूली (Radish) की बुवाई इसकी किस्म के आधार पर अलग-अलग समय पर की जाती है। जैसे पूसा हिमानी की बुवाई मध्य सितम्बर से जनवरी, पूसा चेतकी को मार्च से मध्य अगस्त तथा पूसा देसी को अगस्त से अक्टूबर तक बोया जाता है।
बुवाई मेड़ों पर करना अच्छा रहता है। लाइन से लाइन या मेड़ों से मैड़ो की दूरी 30-40 सेंटीमीटर तथा मेड़ की ऊँचाई 20-25 सेंटीमीटर रखी जाती है। मूली (Radish) के पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेंटीमीटर रखी जाती है। बुवाई 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए।
मूली की फसल में खाद और उर्वरक की मात्रा (Amount of Manure and Fertilizer in Crop)
250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गली गोबर की खाद खेत की तैयारी के समय देनी चाहिए। इसके साथ ही 50 किग्रा नत्रजन, 100 किग्रा फास्फोरस तथा 50 किग्रा पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले तथा नत्रजन की आधी मात्रा दो बार में मूली (Radish) की खड़ी फसल में देना चाहिए। नत्रजन की 1/4 मात्रा पौधों की बढ़वार के समय तथा 1/4 नत्रजन की मात्रा जड़ों की बढ़वार के समय देना चाहिए।
मूली की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Radish Crop)
मूली फसल में पहली सिंचाई पौधों की तीन चार पत्ती की अवस्था पर करनी चाहिए। मूली (Radish) में सिंचाई भूमि के अनुसार कम ज्यादा करनी पड़ती है। सर्दियों में 10-15 दिन के अंतराल पर तथा गर्मियों में प्रति सप्ताह सिंचाई करनी चाहिए।
मूली की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in radish crop)
पूरी फसल में 2 से 3 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। जब जड़ों की बढ़वार शुरू हो जाये तो एक बार मेड़ों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। मूली (Radish) की फसल में खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद 2 से 3 दिन के अंदर 3.3 लीटर पेन्डीमेथालीन को 600 से 800 लीटर पानी के साथ घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
मूली की फसल में रोग और कीट नियंत्रण (Disease and Pest Control in Crop)
रोग नियंत्रण: मूली (Radish) में सफेद रोली (व्हाइट रस्ट), पत्ती धब्बा तथा अंगमारी रोग लगते हैं। बीज को किसी फफूंदनाशक जैसे केप्टान या थिरम (2 ग्राम प्रति किग्रा बीज) से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए। रोगों का खड़ी फसल पर प्रकोप होने पर इंडोफिल एम- 45 ( 2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए।
कीट नियंत्रण: माहु, आरा मक्खी तथा बीटल मूली (Radish) के प्रमुख कीट हैं। इनकी रोकथाम हेतु डाइमेथोएट 30 ईसी (2 मिली प्रति लीटर पानी) या मेलाथियान 50 ईसी (1.5-2 मिली प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए।
मूली फसल की खुदाई और उपज (Digging and yield of radish crop)
मूली फसल (Radish Crop) की जड़ें बुवाई के 45 से 50 दिन बाद खाने योग्य हो जाती हैं। इनकी जड़ों को सलाद और अचार बनाने में भी प्रयोग करते हैं। जड़ों की पैदावार 200 से 350 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
मूली की खेती ठंड के मौसम में की जाती है, क्योंकि इस मौसम में मूली बेहतर तरीके से विकसित होती है। आर्द्र जलवायु मूली के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसके बीजों को अंकुरण के लिए 20 डिग्री से आस-पास तापमान की आवश्यकता होती है। अगर आप 25 डिग्री से अधिक तापमान में मूली (Radish) की खेती करेंगे, तो फसल की गुणवत्ता कम हो जाती है।
इसे अप्रैल से सितंबर तक गर्मियों और मानसून की फसल के रूप में उगाया जाता है। इसकी जड़ें 30-45 सेमी लंबी, ऊपर से हरे रंग की सफेद होती हैं। मध्य सितंबर से मध्य नवंबर तक जल्दी बुवाई के लिए उपयुक्त है, लेकिन यह थोड़ा अधिक तापमान सहन कर सकती है। जड़ें लगभग 55- 60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं।
वसंत की फसल के लिए अप्रैल की शुरुआत से मई की शुरुआत तक मूली (Radish) के बीज बोएँ, और पतझड़ की फसल के लिए 1 अगस्त से 1 सितंबर तक।
गर्मियों की मूली तेज़ी से बढ़ती है और 4-8 सप्ताह में पक जाती है और सलाद में इस्तेमाल की जाती है। सर्दियों की मूली 8-10 सप्ताह में तैयार हो जाती है और गर्मियों की मूली (Radish) से बहुत बड़ी होती है; इसे सलाद में कच्चा खाया जा सकता है या शलजम या स्वीड की तरह पकाया जा सकता है। गर्मियों की मूली मार्च से अगस्त तक और सर्दियों की किस्मों को जुलाई से अगस्त तक बोएं।
मूली (Radish) की औसत पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
अगर आप सितंबर महीने में मूली की खेती करना चाहते हैं, तो आप मूली (Radish) की कुछ उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं। इन उन्नत किस्मों में पूसा हिमानी, जापानी सफेद, पूसा रेशमी, रैपिड रेड व्हाइट टिपड और पंजाब पसंद आदि किस्में शामिल हैं। इन किस्मों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
मूली (Radish) हल्की, रेतीली, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में सबसे अच्छी होती है। इससे जड़ों का विकास समान रूप से होता है और कटाई के बाद उन्हें धोना आसान होता है।
मूली (Radish) के लिए, एक उर्वरक मिश्रण जो नाइट्रोजन पर हल्का हो लेकिन फास्फोरस और पोटेशियम की उचित मात्रा हो, आदर्श है। 5-10-10 एनपीके अनुपात जैसा कुछ काम करना चाहिए। याद रखें, मूली तेजी से बढ़ती है, उन्हें फलने-फूलने के लिए पोषक तत्वों के ढेर की ज़रूरत नहीं है, बस सही समय पर सही खुराक की ज़रूरत है।
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