Paddy Varieties in Hindi: धान (Rice) उत्पादन में उन्नत किस्मों के बीज का योगदान काफी महत्वपूर्ण होता है। अच्छे बीज के अभाव में फसलोत्पादन के अन्य साधनों का उपयोग विफल हो जाता है। सर्वप्रथम ऐसी किस्मों के बीज का उपयोग किया जाए जो किसी क्षेत्र – विशेष और मृदा की दशा के लिए उपयुक्त हों। धान संकर किस्मों का बीज प्रति वर्ष बदलने की आवश्यकता होती है। अत: धान का संकर बीज नया तैयार किया हुआ ही प्रयोग में लाना चाहिए।
किसी धान किस्म (Rice Varieties) के सही नाम तथा गुणों की जानकारी के लिए आवश्यक है, कि बीज किसी विश्वसनीय विक्रेता, सरकारी संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय अथवा प्रादेशिक बीज निगमों से प्रमाणित बीज ही खरीदा जाए। बेहतर यही होगा कि बुवाई से पूर्व बीज की अंकुरण क्षमता की जांच कर ली जाये और बुवाई से पूर्व बीज का उपचार परम आवश्यक होता है।
आमतौर पर प्रमाणित बीज को उपचारित करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह पहले से ही उपचारित होता है। परंतु यदि पिछली फसल का बीज उपयोग में लाया जा रहा है, तो उसका उपचार अति आवश्यक होता है। धान की खेती के लिए अपने क्षेत्र विशेष के लिए उन्नत किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए। जिससे कि अधिक से अधिक पैदावार ली जा सके। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित धान की प्रमुख किस्मों का उल्लेख निचे लेख में किया गया है।
धान की किस्में (Varieties of Rice)
अगेती किस्में (110 – 115 दिन): इन धान किस्मों (Rice Varieties) में मुख्य रूप से पूसा बासमती 1509, पी एन आर – 381, पी एन आर – 162, नरेन्द्र धान – 86, गोविन्द, साकेत – 4, नरेन्द्र धान – 97, सहभागी धान, एमटीयू 1010, और संपदा आदि प्रमुख हैं। इनकी औसत पैदावार लगभग 4.5 – 6.5 टन प्रति हेक्टेयर तक है।
मध्यम अवधि की किस्में (120-125 दिन): इन धान किस्मों (Rice Varieties) में मुख्य किस्में सरजू – 52, पंत धान – 10, पंत धान – 12, आई आर – 64, कोटंडोरा सनालु, गोंतरा बिधान – 1, खांडागिरी, महामाया और नवीन आदि प्रमुख हैं। इनकी औसत उपज लगभग 5.5 – 7.5 टन प्रति हेक्टेयर है।
लम्बी अवधि वाली किस्में ( 130-140 अथवा अधिक दिन): इस वर्ग में पूसा – 44, पी आर 106, मालवीय – 36, नरेन्द्र- 359, महसूरी, ललाट, नरेंद्र 8002, पूजा, प्रतीक्षा, रानी धान, रंजीत, सांबा महसूरी एवं स्वर्णा सब-1, आदि प्रमुख किस्में हैं। इनकी औसत उपज लगभग 6.0–7.5 टन प्रति हेक्टेयर है।
संकर किस्में: इन धान किस्मों (Rice Varieties) में प्रमुख रूप से पंत संकर धान – 1, के आर एच – 2, पी एस डी – 3, जी के – 5003, पी ए – 6444, पी ए – 6201, पी ए – 6219, डी आर आर एच – 3, इंदिरा सोना, सुरूचि, नरेन्द्र संकर धान – 2, प्रो एग्रो – 6201, पी एच बी – 71, एच आर आई – 120, आर एच – 204 और पूसा राईस हाइब्रिड – 10 (पी आर एच – 10 ) आदि हैं।
बासमती किस्में: बासमती – 386, टाइप – 3, कस्तूरी, पूसा बासमती – 1, पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती – 1609, पूसा बासमती – 1121, हरियाणा बासमती – 1, माही सुगंध, इम्प्रूव्ड पूसा बासमती – 1 (पूसा 1460), वल्लभ बासमती – 22, वल्लभ बासमती – 23, वल्लभ बासमती – 24, बासमती सी एस आर – 30, पूसा बासमती – 1718, पूसा बासमती – 1728 और पूसा बासमती 1637 आदि।
सुगंधित किस्में: इन धान किस्मों (Rice Varieties) में मुख्य रूप से पूसा सुगंध – 5 पूसा – 1592, कस्तूरी बासमती, तरावड़ी बासमती, बासमती 370 और पूसा – 1612 आदि शामिल है।
क्षेत्रीय विशेष धान की किस्में (Regionally Special Rice Varieties)
उत्तर में लोकप्रिय धान की किस्में
जब उत्तर भारत में धान की किस्मों (Rice Varieties) की बात आती है, तो दो नाम सबसे ज़्यादा चमकते हैं, जैसे-
पूसा बासमती: अपनी सुगंधित खुशबू और लंबे दानों के लिए मशहूर, पूसा बासमती चावल के पारखी लोगों के बीच पसंदीदा है।
आईआर 64: आईआर 64 चावल की किस्म को इसकी उच्च उपज और कीटों और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता के लिए महत्व दिया जाता है, जो इसे इस क्षेत्र के किसानों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बनाता है।
दक्षिण में पारंपरिक धान की किस्में
दक्षिण भारत में, पारंपरिक धान की किस्में (Rice Varieties) पाक तैयारियों में एक अनूठा स्वाद जोड़ती हैं, जैसे-
सोना मसूरी: सोना मसूरी चावल, अपनी नाजुक बनावट और सूक्ष्म सुगंध के साथ, दक्षिण भारतीय घरों में रोज़मर्रा के भोजन के लिए एक पसंदीदा विकल्प है।
जीराकासला: जीराकासला चावल, जो अपने छोटे दानों और विशिष्ट स्वाद के लिए जाना जाता है, का उपयोग अक्सर इस क्षेत्र में पारंपरिक व्यंजनों और अनुष्ठानों में किया जाता है।
छत्तीसगढ़ का गोबिंदभोग: छत्तीसगढ़ का गोबिंदभोग चावल अपनी सुगंधित खुशबू और नाजुक बनावट के लिए जाना जाता है, जो इसे विशेष अवसरों और उत्सव के भोजन के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बनाता है।
असम का जोहा चावल: असम का जोहा चावल एक बेशकीमती किस्म है, जिसका स्वाद अनोखा मीठा और बनावट थोड़ी चिपचिपी होती है, जो पारंपरिक असमिया व्यंजनों जैसे कि पिठा और खीर के लिए एकदम सही है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
बासमती धान की किस्में (Rice Varieties) विश्व में अपनी एक विशिष्टि सुगंध तथा स्वाद के लिए भली भांति जानी जाती है। भारत और पाकिस्तान को बासमती धान का जनक माना जाता है। बासमती धान की कुछ बेहतरीन किस्में ये हैं: पूसा 834, पंत धान 12, स्कुअस्त-के धान, पूसा 1401। बासमती धान की खेती भारत में पिछले सैकड़ों वर्षों से होती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने धान की पूसा सुगंध 5 किस्म को विकसित किया है। सुगंधित और उच्च गुणवत्ता देने वाली हाइब्रिड किस्म है, ये 120 से 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। पूसा सुगंध 5 से किसान 50 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज भी ले सकते हैं।
बासमती 370 धान काफी उत्तम किस्म मानी जाती है। यही वजह है कि भारत के साथ इसके चावल को विदेश में भी निर्यात किया जाता है। इसे तैयार होने में 140 से 150 दिन का समय लगता है। यह धान की किस्म (Rice Varieties) बेहद खुशबूदार होने के साथ दानों की लंबाई अधिक होती है।
सबौर मंसूरी धान: बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस धान की खोज की है। यह धान कम पानी, खाद, और कम लागत में सामान्य धान किस्मों (Rice Varieties) की तुलना में डेढ़ गुना ज़्यादा उपज देता है। इस धान के बीज को बिना रोपनी सीधी लगाया जा सकता है। इसका औसत उत्पादन 65 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
पूसा 1718: नई किस्म विकसित की है, जो 20 फीसदी कम पानी खर्च करेगी। इनमें जलवायु परिवर्तन को भी झेलने की क्षमता भी है। स्वर्ण शुष्क धान भी कम पानी वाले क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्म है।
धान की कम पानी वाली किस्में ये हैं: पूसा 1718, पूसा 834, स्वर्ण पूर्वी धान 1, स्वर्ण, पूसा सुगंध 5, सीआर धान 100 (सत्यभामा) इन के अलावा भी धान की कम पानी में उगने वाली अन्य किस्में है; पूसा सुगंध 5, पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1121 व पूसा 1612 आदि शामिल हैं।
पंत धान-12 और हाइब्रिड अराइज 6444 यह हाइब्रिड धान की एक उन्नत किस्में है। यह 135 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इनब्रीड धान के मुकाबले हाइब्रिड धान किस्मों (Rice Varieties) से से 30 प्रतिशत ज्यादा पैदावार मिलती है।
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