Rye Farming: राई रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है, जिसका भारत की अर्थ व्यवस्था में एक विशेष स्थान है। राई कृषकों के लिए बहुत लोक प्रिय होती जा रही है, क्यों कि इससे कम सिंचाई व लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है। राई की खेती (Rye Cultivation) मिश्रित रूप में और बहु फसलीय फसल चक्र में आसानी से की जा सकती है।
भारत वर्ष में क्षेत्रफल की दृष्टि से इसकी खेती प्रमुखता से राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, आसाम, झारखंड़, बिहार और पंजाब में की जाती है। लेकिन इसकी उत्पादकता अन्य की तुलना कम है। यदि किसान भाई वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर उन्नतशील किस्मों और उन्नत तकनीक अपनाकर राई (Rye) की खेती करें, तो अच्छी पैदावार ले सकते है।
राई की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for rye cultivation)
राई की फसल (Rye Crop) को ठंढी एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके वानस्पतिक वृद्धि के लिए पर्याप्त मृदा – आर्द्रता की आवश्यकता होती है। ठंढा तापमान, खुला और साफ आसमान और पर्याप्त मृदा नमी उपलब्ध रहने से बीजों में तेल की प्रतिशत मात्रा में वृद्धि होती है।
पौधें में फूल आने और बीज पड़ने के समय बादल और कोहरे भरे मौसम से फसल पर बुरा प्रभाव पड़ता है और ऐसे मौसम में कीड़ों और बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। पाले से उपज में अधिक हानि होती है एवं इससे फलियों के अंदर ही बीज मर जाते हैं। यह फसल सूखा सहन नहीं करती है साथ ही इन्हें जलजमाव भी बर्दाश्त नहीं होता है।
राई की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for rye cultivation)
राई की खेती (Rye Cultivation) लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों में संभव है। बलुई दोमट भूमि से लेकर मटियार दोमट भूमि में उगाया जा सकता है, परन्तु अच्छे जल निकास वाली हल्की दोमट भूमि इनकी खेती के लिए सर्वोत्तम रहती है। भूमि का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच रहे तो अच्छी उपज मिलती है। यह फसल हल्की क्षारीयता को बर्दाश्त कर सकता है।
राई की खेती के लिए भूमि की तैयारी (Preparation of land for rye cultivation)
राई (Rye) के लिए खेत की तैयारी हेतु एक गहरी जुताई मिट्टी पलट हल से करके दो-तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई करें साथ ही पाटा देकर खेत को भुरभुरा बना देना चाहिए। खेत में नमी के अभाव में पलेवा करके खेत तैयार करने से बुआई के समय नमी का संरक्षण होता है। जब इसे गेहूँ, जौ, चना आदि के साथ मिलवाँ बोया जाता है, तो फसलों के लिए की गयी खेत की तैयारी ही इन फसलों के लिए पर्याप्त होती है।
राई की खेती के लिए उन्नत किस्में (Improved varieties for rye cultivation)
वरूणा: राई (Rye) की यह किस्म 135 – 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसत उपज 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। राई की इस किस्म में 42 प्रतिशत तेल निकलता है।
पूसा बोल्ड: राई की यह किस्म 120-140 दिन में पककर तैयार हो जती है। इस किस्म की औसत उपज 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। राई की इस किस्म में भी 42 प्रतिशत तेल निकलता है।
क्रांति: राई (Rye) की यह किस्म 125-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसत उपज 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। राई की इस किस्म में 40 प्रतिशत तेल निकलता है।
राजेन्द्र राई पछेती: राई की यह किस्म 105-115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसत उपज 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। राई की इस किस्म में 41 प्रतिशत तेल निकलता है।
राजेन्द्र अनुकूल: राई (Rye) की यह किस्म 105-115 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसतन उपज 10-13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। राई के इस किस्म में 40 प्रतिशत तेल निकलता है।
राजेन्द्र सुफलाम: राई की यह किस्म 105 – 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसत उपज 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इस किस्म में तेल की मात्रा 40 प्रतिशत है।
सिंचित क्षेत्रों के लिए: नरेन्द्र अगेती राई- 4, वरूणा (टी-59), बसंती (पीली), रोहिणी, माया, उर्वशी, नरेन्द्र स्वर्ण-राई- 8 (पीली) और नरेन्द्र राई (एनडीआर- 8501) आदि।
असिंचित क्षेत्रों के लिए: वैभव और वरूणा (टा-59) आदि।
विलम्ब से बुआई के लिए: आशीर्वाद और वरदान आदि।
क्षारीय/लवणीय भूमि हेतु: नरेन्द्र राई, सीएस- 52 और सीएस- 54 आदि।
राई की खेती के लिए बीज दर और बीज उपचार (Seed rate and seed treatment for rye cultivation)
राई की खेती (Rye Cultivation) के लिए सिंचित और असिंचित क्षेत्रों में 5-6 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। बीज जनित रोगों से सुरक्षा हेतु 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलो की दर से बीज को उपचारित करके बोये। मैटालेक्सिल 1.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज शोधन करने से सफेद गेरूई एवं तुलासिता रोग की प्रारम्भिक अवस्था में रोकथाम हो जाती है।
राई की खेती के लिए बुआई का समय और विधि (Sowing time and method for rye cultivation)
राई (Rye) बोने का उपयुक्त समय विभिन्न क्षत्रों में सितम्बर से 10 नवम्बर तक का है परन्तु विलम्ब वाली प्रजाति को अंतिम बुवाई कतार में देशी हल के पीछे 4-5 सेमी गहरे कूड़ो में 45 सेमी कतार से कतार की दूरी पर करना चाहिए। बुआई के बाद बीज ढ़कने के लिए हल्का पाटा लगा देना चाहिए। विलम्ब से बुवाई करने पर माहॅू कीट का प्रकोप एवं अन्य कीटों एवं बीमारियों की संम्भावना अधिक रहती है।
राई की खेती के लिए उर्वरक की मात्रा (Amount of fertilizer for rye cultivation)
राई (Rye) के लिए उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जायें। सिंचित क्षेत्रों में नेत्रजन 120 किग्रा, फॉस्फेट 60 किग्रा एवं पोटाश 60 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से अच्छी उपज प्राप्त होती है। फॉस्फोरस का प्रयोग सिंगल सुपर फॉस्फेट के रूप में अधिक लाभदायक होता है, क्योंकि इससे सल्फर की उपलब्धता भी हो जाती है।
यदि सिंगल सुपर फॉस्फेट का प्रयोग न किया जाय तो गन्धक की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से गंधक का प्रयोग करना चाहिए। यदि डीएपी का प्रयोग किया जाता है, तो इसके साथ बुआई के समय 200 किग्रा जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना फसल के लिए लाभदायक होता है। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए।
राई की फसल में निराई-गुड़ाई और विरलीकरण (Weeding and thinning in mustard crop)
राई (Rye) में बुआई के 15-20 दिन के अन्दर घने पौधों को निकालकर आपसी दूरी 15 सेमी कर देना आवश्यक है। बुआई के 15 से 20 दिन बाद पहली निराई गुड़ाई करनी चाहिए और उसी समय पंक्ति में उगे हुए घने पौधों को निकालकर पौधों की आपस की दूरी 15 सेमी कर देनी चाहिए।
राई की फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Mustard Crop)
सरसों और राई (Rye) की फसलों की बढ़वार की प्रारंम्भिक अवस्था में खरपतवार प्रबंधन करना जरूरी है। निराई गुड़ाई से भी खरपतवार नष्ट हो जाते है। खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करके भी खरपतवार प्रबंधन किया जा सकता है। इसके लिए फसल बुआई के तुरंत बाद या 48 घंटे के भीतर 3.3 लीटर पेण्डीमेथिलीन प्रति हेक्टेयर का छिडकाव 400-500 लीटर पानी में करना चाहिए।
राई की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management in rye crop)
राई (Rye) में प्रथम सिंचाई फसल बुवाई के 25-30 दिन बाद करें तथा दूसरी सिंचाई जब 50 प्रतिशत फूल फल में परिणत हो जाय तो करनी चाहिए। सिंचित दशा में राई की फसल में प्रथम सिंचाई फूल निकलने की अवस्था पर देनी चाहिए। इस सिंचाई का सबसे अधिक महत्व है। यह बुआई के 40 से 55 दिन बाद की जाती है, दूसरी सिंचाई फलियों में दाना भरते समय दे सकते है।
राई की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in mustard crop)
पौध आर्द्रपतन: इस रोग के कारण बीज भ्रूण भूमि के बाहर अंकुरित होने से पहले ही मर जाता है। कुछ पौधों के उग जाने के बाद यह रोग लगता है। इनमें प्रांकुर तो बीज से बाहर निकल आता है, लेकिन बाद में रोग के कारण सड़ जाता है।
रोकथाम: बीज को दो ग्राम कैप्टान या कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लूपी प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने के बाद बोना चाहिए। कटाई के बाद फसल के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए।
सफेद तोरई: यह रोग भी एक फफुंद के कारण होता है। इस रोग के कारण पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले जैसे पड़ जाते है। इसके बाद में पुष्प विन्यास विकृत हो जाता है।
रोकथाम: सबसे पहले राई (Rye) स्वस्थ्य बीजों का प्रयोग करें खेत से खरपतवार आदि निकालकर साफ रखें, क्योंकि शुरू में यह रोग खरपतवारों पर आता है। फसल पर 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
राई की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in mustard crop)
आरा मक्खी: इस मक्खी की गिन्डार भूरे मटमैले रंग की होती है, जो पत्तियों में छेद करके खाती है, जिससे पत्तियाँ बिल्कुल छलनी हो जाती है। पौधों की छोटी अवस्था में इस कीड़े का प्रकोप अधिक होता है और जब पौधे बड़े हो जाते है तो इनका प्रकोप स्वतः ही कम हो जाता है।
रोकथाम: सर्दी बढ़ने पर यह कीड़े मर जाते है और इनकी रोकथाम के लिए 1.3 प्रतिशत लिंडेन धूल का 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करना चाहिए।
रोमिल सुंडी या कमला कीट: इस कीड़े की सूंडियां राई (Rye) फसल की प्रारंभिक अवस्था मे आक्रमण करती है, ये पत्तियों को खाती है।
रोकथाम: इस कीड़े की रोकथाम के लिए 1.25 लीटर इंडोसल्फास 35 ईसी या साइपरमेथिलीन 50 प्रतिशत ईसी को 2.0 मिली लीटर दवा पानी में घोलकर स्प्रे करें।
राई की फसल की कटाई और मंडाई (Harvesting and marketing of rye crop)
फसल को पूरी तरह खेत में सूखने न दें। जब 75 प्रतिशत फलियाँ सुनहरे रंग की हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि फसल की कटनी करने के बाद इसे सुखाकर अपने संसाधनों द्वारा बीजों को अलग कर लें। देर से कटाई करने पर बीजों के झड़ने की आशंका रहती है। बीजों को 3-4 दिन सुखाकर भंडारित करें।
विशेष सुझाव: राई(Rye) – तोरी – सरसों के खेत में प्रति हेक्टेयर 4-5 मधुमक्खी के बक्से रखने से परागन की क्रिया तेजी से होती है। जिसके फलस्वरूव फसल के दाने के भराव बढ़ता है जिससे फसल की उपज बढ़ जाती है। इस कार्य से किसानों को सरसों के खेत से एक अतिरिक्त कृषि उत्पाद की प्राप्ति होती है।
राई का बीज उत्पादन कैसे करें (How to produce rye seeds)
राई (Rye) का शुद्ध प्रमाणित बीज उत्पादन करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर खेती करनी चाहिए, जैसे-
- बीज उत्पादन के लिए ऐसे खेत का चुनाव करें, जिसमें पिछले साल सरसों या राई (Rye) की फसल न उगाई गई हो।
- बीज उत्पादन के लिए किसी विश्वसनीय संस्था से शुद्ध आधार बीज प्राप्त करने के पश्चात् ही फसल लगानी चाहिए।
- राई (Rye) की फसल से बीज उत्पादन वाले खेत से अन्य सरसों और राई का खेत कम से कम 200 मीटर की दूरी पर होना चाहिए।
- फसलों को लाइनों में शुद्ध फसल के रूप में लगाना चाहिए। किसी भी अन्य फसल के साथ मिलवॉ फसल के रूप में न लगाया जाए।
- फसल की अच्छी तरह से देखरेख की जानी चाहिए, जब पौधे लगभग 15 से 20 सेमी ऊँचाई के हो जाए तो फसल में निराई गुड़ाई करके सभी खरपतवारों को निकाल देना चाहिए। फसल में किसी भी रोग अथवा कीड़े के आक्रमण पर तुरंत ही उपचार करना चाहिए।
- दुसरी बार रोगिंग तब करें, जब पौधों में फलियाँ आ जाए फलियों के आकार, रंग आदि के अंतर को देखकर भी सभी अवांछनीय पौधों को निकाल देना चाहिए।
- जब पौधों में 90 प्रतिशत फलियाँ पीले रंग की जो जाए तो राई फसल (Rye Crop) की कटाई कर लेनी चाहिए। दो तीन दिनों तक खलिहान में रहने के बाद मड़ाई करके दाने अलग कर लेना चाहिए। दानों को साफ करके तेज धूप में इतना सुखाऍ कि दानों में लगभग 08 प्रतिशत नमी रह जाए फिर बीज का सही ढंग से भंडारण करें।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
सस्ती और आसानी से उगने वाली राई बंजर, रेतीली या अम्लीय मिट्टी या खराब तरीके से तैयार की गई भूमि पर अन्य सभी कवर फसलों से बेहतर प्रदर्शन करती है। यह व्यापक रूप से अनुकूलित है, लेकिन ठंडे, समशीतोष्ण क्षेत्रों में सबसे अच्छी तरह से उगती है।
राई (Rye) का पकने का समय 90 से 125 दिन का होता है, और फसल की खेती सर्दियों और वसंत की गेहूं किस्मों की तरह ही की जाती है।
राई (Rye) बोने का उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 10 नवम्बर तक का है।
इसका दाना छोटा और काला होता है, छोटी-छोटी गोल-गोल राई लाल और काले दाने में अक्सर मिलती है, विदेशों में सफेद रंग की राई (Rye) भी मिलती है। राई के दाने सरसों के दानों से काफी मिलते है। बस राई सरसों से थोड़ी छोटी है।
राई (Rye) की औसत उपज सिंचित अवस्था में 15 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित अवस्था में 8 से 15 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
Leave a Reply