Safflower Farming in Hindi: कुसुम को मराठी में करड़ी, कन्नड में कुसुबे, हिन्दी में कुसुम और तेलुगु में कुसुमा कहा जाता है। यह भारत देश की रबी मौसम की एक महत्वपुर्ण तिलहनी फसल है। इसके उत्पादन के भूभाग और उत्पादन के संदर्भ में भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है और उत्पादन मे दूसरा स्थान है। कुसुम का मुख्य उपयोग तेल के अलावा औषाधियों एवं हर्बल उत्पादो मे होता है।
इसके फूल की पांखुडियों की चाय स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद होती है। कुसुम (Safflower) फूलों मे मुख्यता रंगों के दो पदार्थ कार्य करथामी और पीली रंग पाया जाता है। भारत वर्ष मे करथामी का निर्यात करके विदेषी पूंजी अर्जित की जा सकती है। कपडे और खाने के रंगों मे कुसुम का प्रयोग किया जाता है। कुसुम के छिले दानो से प्राप्त खल्ली पशुओं को खिलाने मे दानो से प्राप्त खल्ली खाद के रूप मे प्राप्त की जाती है।
कुसुम की खेती (Safflower Cultivation) सीमित सिंचाई की दशा में अधिक लाभदायक होती है। अन्य तिलहनी फसलों की अपेक्षा किसान कुसुम की खेती कम करते हैं। निम्न उन्नत विधियों अपनाने से उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है। देश के असिंचित क्षेत्रों कुसुम की खेती कर तिलहन उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।
कुसुम की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for safflower cultivation)
कुसुम (Safflower) के बीज अंकुरण के लिए 15 डिग्री तापमान और अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए 20 से 25 डिग्री तक का तापमान अच्छा होता है।
कुसुम की खेती के लिए मिट्टी का चयन (Selection of soil for safflower cultivation)
कुसुम को उगाने के लिए मिट्टी का औसत से अधिक उपजाऊ, पर्याप्त रुप से गहरी, नमी को बनाए रखने वाली, अतिरिक्त पानी को बहा देने वाली और उदासीन क्रिया वाली होना आवश्यक है। जल निकासी की व्यवस्था ठीक न होने के कारण पानी के ठहर जाने से अथवा देर तक वर्षा होने या कम वर्षा होने के कारण कुसुम (Safflower) के पौधे की जडे सड़ जाती या सूख जाती है।
इससे सारभूत रुप से उत्पादन में कमी आती है। सिंचाई पर आधारित कुसुम (Safflower) की खेती के लिए यदि मिट्टी भारी हो तो अतिरक्ति जल निकास की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए। क्षारीय क्षेत्र भी इस फसल के लिए अनुकूल होते है।
कुसुम की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for safflower cultivation)
रबी के दौरान काली मिट्टी के खेतों में जहाँ एक ही फसल उगाई जाती है, वहाँ खरीफ मौसम के दौरान 3 से 4 बार मिट्टी में से ढेले, पत्थर आदि निकलवा देना उतना ही कारगर सिद्ध होता है जितना गहरी जुताई करना या खेत में से घास-फूस साफ करने के लिए मिट्टी को व्यवस्थित करना।
कुसुम की खेती के लिए किस्मों का चयन (Selection of varieties for safflower cultivation)
देश मे बोने के लिये कुसुम (Safflower) की कई उपयुक्त किस्में है। यह सभी जातियां लगभग 135 से 140 दिनो मे पकने वाली है। इन्ही जातियों को परिस्थितियों के अनुकूल चयन करना चाहिये। जो इस प्रकार है, जैसे-
एनआरआई- 6: इस किस्म की पकने की अवधी 117 से 137 दिन है।
जेएसएफ- 1: यह किस्म सफेद रंग की फूल वाली है। पौधे कांटेदार होते है।
जेएसआई-7: इस किस्म की विषेषता यह है, कि ये कांटे रहित है इसके छिले हुये फूल पीले रंग के होते है और जब सूखने लगते है तो फूलों का रंग नारंगी लाल हो जाता है।
जेएसआई- 73: यह किस्म भी बिना कांटे वाली है। इसके भी छिले हुये फूल पीले रंग के रहते है।
जवाहर कुसुम- 97: यह किस्म भी बिना कांटे वाली है और पकने की अवधि 140 दिन है।
कुसुम की शंकर किस्मे: डीएसएच- 129, एमकेएच – 11 और नारी – एनएच 1 है।
कुसुम की खेती और फसल चक्र (Cultivation of Safflower and Crop Cycle)
इस फसल को सूखा वाले क्षेत्र या बरानी खेती मे खरीफ मोसम मे किन्ही कारणों से फसल के खराब होने के बाद आकस्मिक दषा मे या खाली खेतो मे नमी का संचय कर सरलता से उगाया जा सकता है। खरीफ की दलहनी फसलों के बाद द्वितीय फसल के रूप मे जैसे सोयाबीन, मूंग, उडद, मूंगफल्ली के बाद रबी मे द्वितीय फसल के रूप मे कुसुम (Safflower) को उगाया जा सकता है। खरीफ मे मक्का या ज्वार फसल ली हो तो रबी मौसम मे कुसुम फसल को सफलता से उगाया जा सकता है।
कुसुम की खेती के लिए बीज उपचार (Seed treatment for safflower cultivation)
कुसुम फसल (Safflower Crop) के बीजो को बोनी करने के पूर्व बीजोपचार करना आवष्यक है। बीजो को उपचार करने हेतु 3 ग्राम थाईरम या विटावेक्सपावर फफूंदनाषक दवा प्रति एक किलोग्राम स्वास्थ बीज के लिये प्रर्याप्त है।
कुसुम की खेती के लिए बुवाई का समय (Sowing time for safflower cultivation)
मूंग या उडद यदि खरीफ मौसम मे बोई गई हो तो कुसुम फसल (Safflower Crop) बोने का उपयुक्त समय सितम्बर माह के अतिंम और अक्टुबर माह के प्रथम सप्ताह तक है। यदि खरीफ फसल के रूप मे सोयाबीन बोई है, तो कुसुम फसल लेने का उपयुक्त समय अक्टुबर माह के अन्त तक है। यदि जमीन खाली है और खरीफ मे कोई फसल नही लगाई हो तो सितम्बर माह के अन्त या अक्टुबर माह के प्रथम सप्ताह तक कुसुम फसल बो सकते है।
कुसुम की खेती के लिए बोने की विधि (Method of sowing for safflower cultivation)
8 किलोग्राम कुसुम (Safflower) का बीज प्रति एकड के हिसाब से दुफन या फडक से बोना चाहिये, बोते समय कतार से कतार की दूरी 45 सेमी या 1.5 फिट रखना आवष्यक है। पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी या 9 इंच रखना चाहिये।
कुसुम की खेती के लिए खाद और उर्वरक (Manure and fertilizers for saf flower cultivation)
कुसुम (Safflower) के लिए असिंचित अवस्था मे नत्रजन 16 किलोग्राम और सुपर 16 किलोग्राम और पोटाष 8 किलोग्राम प्रति एकड की दर से देना चाहिये। सिंचित स्थिति मे 24:16:8 किलोग्राम नत्रजन स्फुर एवं पोटाष प्रति एकड पर्याप्त है। हर तीसरे वर्ष मे एक बार 8 से 10 गाडी की गोबर की पकी हुई खाद प्रति एकड मे मिलाना फायदेमंद रहता है।
तिलहनी फसल होने की वजह से गंधक की मात्रा 8 से 10 किलोग्राम प्रति एकड देना उचित रहेगा। उर्वरक की सम्पूर्ण मात्रा असिंचित अवस्था मे बोनी के समय ही भूमि मे दे। सिंचित स्थिति मे नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर और पोटाष की पूरी मात्रा बोनी के समय दे और शेष नत्रजन की आधी मात्रा प्रथम सिंचाई के समय दें।
कुसुम की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management in saf flower crop)
कुसुम (Safflower) एक सूखा सहनषील फसल है, अतः यदि फसल का बीज एक बार उग आये तो फसल कटने तक सिंचाई की आवष्यकता नही होती। लेकिन जहां सिंचाई उपलब्ध हो वहां अधिकतम दो सिचांई कर सकते है। प्रथम सिंचाई 50 से 55 दिन पर बढ़वार अवस्था मे दूसरी सिंचाई 80 से 85 दिनों पर करना आवष्यक होता है।
कुसुम की फसल में निदाई और गुडाई (Weeding and Cultivation in Saf flower Crop)
कुसुम फसल (Safflower Crop) मे एक बार डोरा अवष्य चलाये तथा एक या दो बार आवष्यकतानुसार हाथ से निंदाई गुडाई करे। निंदाई गुडाई करने से जमीन की उपरी सतह की पपडी टूट जायेगी यदि दरारे पड रही हो तो वह भर जायेगी और नमी के ह्रास की बचत होगी। निंदाई गुडाई अंकुरण के 15 दिनो के बाद करना चाहिये एवं हाथ से निदाई करते समय पौधो का बिरलन भी आवष्यक है। एक जगह पर एक ही स्वस्थ पौधा रखना चाहिये।
कुसुम की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in safflower crop)
★ आर्थिक रुप से कुसुम फसल(Safflower Crop) का मुख्य कीट माँहू है। बुआई में देरी करने से बचें, माँहू प्रतिरोधक किस्में जैसे कि ए- 1 या भीमा की बुआई करें।
★ माँहू की गंभीरता को देखते हुए 15 दिन के अंतराल से इनका छिडकाव करें 2 मिली प्रति लीटर पानी की मात्रा में डायमेथोएट 30ईसी या 1.5 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा में एसिफेट 75 एसपी या 0.4 मिली प्रति लीटर की मात्रा में इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या 0.25 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा में थियामेथाक्ज़म 25 डब्ल्यूजी या 0.2 मिली प्रति लीटर की मात्रा में कलोथियानिडिन 50 डब्ल्यूडीजी या 0.2 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा में एसिटेमाप्रिड 20 एसपीआई का छिडकाव करें।
★ कुसुम (Safflower) को इल्लियों से बचाने के लिए उसके लारवा के दिखाई देते ही उन पर 0.3 मिली प्रति लीटर की मात्रा से 15 इसी इंडोक्साकर्ब या 0.15 मिली प्रति लीटर की मात्रा में स्पैनोसाड 45 एससी का छिडकाव करें।
★ गुझिया घुन से होने वाली हानि से बचने के लिए 10 जी फोरेट 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डालें और कीडों की संख्या के अनुसार 2 मिली प्रति लीटर की मात्रा में दो से तीन बार क्लोरपायरिफोस का छिडकाव करें।
कुसुम की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in safflower crop)
कुसुम (Safflower) के प्रमुख रोग इस प्रकार है- उकट्टा, जड़े सड़ जाना और उसको पत्तों पर चित्तियाँ उभर आना। जिनके नियंत्रण के उपाय इस प्रकार है, जैसे-
★ उकट्टा को रोकने के लिए प्रतिरोधक संकर जैसे एनएआरआई-एच 15, और उन्नत किस्में जैसे- पीबीएनएस- 12 तथा एनएआरआई- 6 का उपयोग करें एवं साथ मे ट्राइकोडर्मा हरजियानम 10 ग्राम प्रति किलों की मात्रा से बीजोपचार करे। इसके साथ थीराम या मेनकोजेंब 3ग्राम प्रति किलों की मात्रा से बीजोपचार करने से जड़ों के सड़ने के रोग को कारगर रूप से रोका जा सकता है।
★ मैनकोज़ेब की 2.5 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा या कारबेंडिजम 1 ग्राम + मेनकोजेंब 2 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा में छिडकने से पत्तों पर उभर कर आने वाली चित्तियों को रोकने में सहायता मिलती है।
★ सरकोस्पोरा नामक पत्तों की चित्तियों (दागों) पर संतोषजनक रुप से नियंत्रण पाने के लिए फसल पर कॉपर आक्सीक्लोराईड की 3 ग्राम प्रति लीटर कोज़ब की 2.5 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा में छिडकाव करें।
पक्षियों से हानि: बीजों के परिपक्व होने की अवधि के दौरान कुसुम फसल (Safflower Crop) को पक्षियों से बचाया जाना चाहिए।
कुसुम फसल की कटाई और गहाई (Harvesting and Threshing of Safflower Crop)
फसल को अनिवार्य रूप से सुबह के समय ही काटें। पौधों को ऊपर उठाते हुए हसिया की सहायता से जड़ से उखाडे तत्पश्चात इन्हें गड्डियों में बांधकर छोटे-छोटे ढेरों के रूप में खेत में रख दें। जब वो पूरी तरह से सूख जाती है, तब कुसुम फसल (Safflower Crop) को लकडी से कूट-पीटकर अथवा बैलगाड़ी या ट्रैक्टर की सहायता से भी इसकी गहाई की जा सकती है।
इस प्रक्रिया में सुंदर और स्वच्छ बीज अलग हो जाते है। इस तरह की गहाई और सफाई का कार्य मशीन द्वारा भी किया जा सकता है। जैसे गेंहू की फसल के लिए किया जाता है अथवा दोनों ही प्रकार की पद्धतियों का भी प्रयोग इस फसल के लिए किया जा सकता है।
कुसुम की फसल से पैदावार (Yield from Safflower Crop)
पर्याप्त नमी न होने की स्थिति में कुसुम (Safflower) के बीजों की पैदावार 800 से 1200 किग्रा प्रति हैक्टर तक होती है और जहाँ पर्याप्त व अनुकूल नमी होती है, वहाँ पर 1500 से 2000 किग्रा प्रति हेक्टर तक का उत्पादन होता है। थोड़ी सी सिंचाई की सहायता से यह पैदावार 2000 से 2800 किग्रा प्रति हेक्टर तक भी बढ सकती है।
बीज उत्पादन के अतिरक्ति, सुव्यवस्थित प्रबंधन के द्वारा विशेष पोषण पद्धति से बगैर काँटोवाली कुसुम (Safflower) से 75-100 किग्रा प्रति हेक्टर पंखुडियों का उत्पादन होता है। अभी यह पंखुडियाँ भारत में 800 से 1500/- प्रति किलों की दर से बेची जाती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना कुसुम उगाने वाले प्रमुख राज्य हैं। इसकी खेती मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी की जाती है। कुसुम (Safflower) मुख्य रूप से स्व-परागण वाली फसल है; हालाँकि, कुछ हद तक क्रॉस-परागण मुख्य रूप से मधुमक्खियों के माध्यम से होता है।
कम नमी की स्थिति में बीज की उपज क्षमता लगभग 320 से 480 किलोग्राम प्रति एकड़ और अनुकूल नमी की स्थिति में लगभग 600 से 800 किलोग्राम प्रति एकड़ होती है। न्यूनतम सिंचाई के तहत 800 से 1120 किलोग्राम प्रति एकड़ की उपज प्राप्त की जा सकती है।
कुसुम की फसल (Safflower Crop) 150-180 दिनों में पक जाती है। कटाई तब करनी चाहिए, जब फूल पीले भूरे रंग के हो जाते हैं।
कुसुम (Safflower) एक ठंडी (रबी) मौसम की फसल है। अंकुरण के लिए इष्टतम तापमान लगभग 15 डिग्री सेल्सियस है। फूल आने के समय 24-32 डिग्री सेल्सियस की सीमा में दिन का तापमान अधिक उपज के लिए अनुकूल होता है। इसकी खेती समुद्र तल से लेकर समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊँचाई तक की जाती है।
कुसुम (Safflower) का उपयोग मसाले केसर में मिलावट के रूप में किया जाता है। बीज से प्राप्त तेल पौधे का मुख्य आधुनिक उपयोग है। कुसुम का तेल समय के साथ पीला नहीं होता है, जिससे यह वार्निश और पेंट तैयार करने में उपयोगी होता है। हालाँकि, अधिकांश तेल का सेवन नरम मार्जरीन, सलाद तेल और खाना पकाने के तेल के रूप में किया जाता है।
कुसुम (Safflower) को मध्यम से उच्च उपजाऊ, काफी गहरी, नमी बनाए रखने वाली और तटस्थ पीएच प्रतिक्रिया वाली अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। खराब जल निकासी या अपेक्षाकृत कम अवधि के लिए भी लंबे समय तक बारिश के कारण जलभराव से फसल को जड़ सड़न और मुरझाने से नुकसान होने की संभावना होती है और इससे उपज में काफी कमी आती है।
फूल खत्म होने के लगभग चार सप्ताह बाद फसल पकती है। कुसुम (Safflower) को आम तौर पर उभरने से लेकर पकने तक 110 से 120 दिन लगते हैं।
बारानी खेती है और खरीफ में कोई भी फसल नहीं लगाई हो तो सितम्बर माह के अंत से अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह तक कुसुम फसल की सफलतापूर्वक बुवाई सकते हैं।
कुसुम (Safflower) के पुष्प और बीजाें का तेल एडिबल ऑयल बनाने के काम आता है। इसके अलावा साैंदर्य उत्पाद बनाने, मसालाें तथा आयुर्वेदिक दवाएं बनाने के काम आता है।
कुसुम (Safflower) की बुवाई से पहले खेत की तैयारी और जल निकासी की व्यवस्था करना फायदेमंद रहता है, और इसकी खेती के लिये रासायनिक उर्वरकों की जगह जैविक और कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल करना फायदेमंद रहता है।
Leave a Reply