Sesame Farming in Hindi: भारत में तिल की खेती का इतिहास बहुत पुराना है और देश के कृषि परिदृश्य में इसका बहुत महत्व है। यह फसल कई भारतीय घरों में मुख्य खाद्य पदार्थ है। अपने समृद्ध तेल सामग्री और पौष्टिक स्वाद के लिए जाना जाने वाला तिल एक बहुमुखी फसल है, जो देश भर में विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में पनपती है। विभिन्न क्षेत्रों में उगाई जाने वाली विभिन्न किस्मों के साथ, तिल भारतीय संस्कृति और व्यंजनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यह लेख तिल की खेती की उत्पत्ति और प्रसार, भारत में उगाई जाने वाली विभिन्न किस्मों और किसानों द्वारा अपनाई जाने वाली खेती की पद्धतियों और तकनीकों पर गहराई से चर्चा करता है। इसके अतिरिक्त, यह तिल के किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों, तिल की खेती (Sesame Cultivation) को समर्थन देने के लिए सरकारी पहल और भारत में तिल की टिकाऊ खेती के लिए भविष्य की संभावनाओं की जांच करता है।
तिल की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for sesame cultivation)
तिल की फसल (Sesame Crop) को खरीफ के मौसम में उगाया जाता है। तिल की खेती के लिए, पौधे के जीवन चक्र के दौरान 25-35 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त होता है। तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा होने पर और गर्म हवाएं चलने पर तेल की मात्रा कम हो जाती है।
तिल के खेती में 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक या 15 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान उत्पादकता को बहुत अधिक प्रभावित करता है। बुवाई के समय 25 से 27 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान अंकुरण के लिए उपयुक्त होता है।
तिल की खेती के लिए भूमि का प्रकार (Type of land for sesame cultivation)
तिल की खेती के लिए हल्की रेतीली, दोमट या मध्यम से भारी तथा अच्छे जल निकास वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। ज्यादा अम्लीय और क्षारीय भूमि (पीएच- 8.2) तिल की फसल के लिए उपयुक्त नहीं होती है। तिल पानी के भराव के लिए ज्यादा संवेदनशील होती हैं, अत: उचित जल निकास का विशेष ध्यान रखना चाहिए। तिल की खेती (Sesame Cultivation) से अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है कि भूमि का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
तिल की खेती के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for sesame cultivation)
तिल की खेती (Sesame Cultivation) के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा आवश्यकतानुसार एक-दो जुताई कल्टीवेटर या हैरो चलाकर करनी चाहिए। अच्छे बीज अंकुरण के लिए भूमि का भुरभुरा होना एवं मृदा में पर्याप्त नमी का होना अनिवार्य है।
क्योंकि तिल का बीज बहुत छोटा और कठोर होता है, इसलिये अंकुरण अच्छा हो के लिए मिट्टी का भुरभुरा और पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। यदि संभव हो तो आखिरी जुताई के समय खेत में 10 से 15 टन गोबर की सड़ी हुई खाद अवश्य मिला दें।
तिल की खेती के लिए किस्में (Varieties for Sesame Cultivation)
तिल को रंग के आधार पर सफ़ेद, काला,और पीला में बांटा गया है। सफेद और काले तिल सबसे आम और ज़्यादा उगाए जाने वाले तिल हैं। उत्पादकों को तिल की खेती के लिए, कीट और रोग रोधी उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए। तिल की खेती (Sesame Cultivation) के लिए कुछ किस्में इस प्रकार है, जैसे-
टा- 12, टा- 13, टा- 78, आरटी- 351, शेखर, प्रगति, तरूण, जेटी- 11 (पीकेडीएस- 11), जेटी- 12 (पीकेडीएस- 12), जवाहर तिल- 306, जेटीएस- 8, टीकेजी- 308, राजस्थान तिल- 346, माधवी, कनिकी सफेद, प्रताप, गुजरात तिल- 3, हरियाणा तिल, गुजरात तिल- 4, पंजाब तिल- 1, ब्रजेश्वरी (टीएलके- 4) आदि प्रचलित है।
तिल बुवाई का समय और बीज की मात्रा (Sesame sowing time and seed quantity)
बुवाई का समय: तिल बुवाई का समय तापक्रम और भूमि में नमी की उपलब्धता पर निर्भर करता है। बुवाई करते समय यह अवश्य देख लेना चाहिए कि तापक्रम ज्यादा व भूमि में नमी कम तो नहीं है। तिल (Sesame) की बुवाई का उचित समय 1 जुलाई से 15 जुलाई तक है, लेकिन हर हालत में अंतिम सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए।
बीज की मात्रा: तिल (Sesame) के लिए बीज की मात्रा 3-4 किग्रा प्रति हैक्टयेर रखनी चाहिए। कम या ज्यादा होने पर उपज में बढ़ोतरी की बजाय कमी हो जाती है। प्राय: यह देखा गया है कि अधिकतर किसान बीज कम मात्रा में प्रयोग करते हैं। बीज को बोने से पहले उपचारित अवश्य कर लेना चाहिए। बीज उपचारित करके बोने से फसल में कीड़े और बीमारियों का प्रकोप कम होता है।
तिल का बीज और मिट्टी उपचार (Sesame seed and soil treatment)
बीज उपचार: तिल (Sesame) की बुवाई से पूर्व जड़ व तना गलन रोग से बचाव के लिये बीजों को 1 ग्राम कार्बेन्डिजम + 2 ग्राम थाईरम या 2 ग्राम कार्बेन्डिजम या 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करें। जीवाणु अंगमारी रोग से बचाव हेतु बीजों को 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 10 लीटर पानी में घोल बनाकर बीज उपचार करें। कीट नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूएस की 7.5 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें।
मृदा उपचार: तिल (Sesame) बुवाई से पूर्व 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा 2.5 टन गोबर की सड़ी खाद में मिलाकर खेत में प्रयोग करने में जड़ और तना गलन रोग की रोकथाम में मदद मिलती है।
तिल की खेती के लिए बुवाई का तरीका (Method of sowing for til cultivation)
बुवाई की विधि का तिल (Sesame) की उपज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। तिल की बुवाई सीधी लाईनों में करनी चाहिए। लाईन से लाईन की दूरी 30 से 45 सेमी और पौधों से पौधों की दूरी 10-15 सेमी रखनी चाहिए। अधिकतर किसान तिल को छिड़क कर बोते है। छिड़क कर बोने से पौधों से पौधों की दूरी सही नहीं हो पाती हैं तथा पौधें की संख्या प्रति वर्ग मीटर आवश्यकता से अधिक हो जाती है, जिससे पौधों को बढ़ने में पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है।
पौधों को पर्याप्त सूर्य का प्रकाश भी नहीं मिल पाता है, पौधे सीधे ही बढ़ते हैं। शाखाएं कम निकलती है। फलियों की संख्या कम हो जाती है, निराई-गुड़ाई करने में भी असुविधा रहती है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व अधिक पौधे होने के कारण कम प्राप्त होते हैं एवं फसल में कीड़े व बीमारियों का प्रकोप होने पर दवा छिड़कने में असुविधा रहती है।
तिल की खेती के लिए बुवाई का तरीका (Method of sowing for sesame cultivation)
बुवाई की विधि का तिल (Sesame) की उपज पर सीधा प्रभाव पड़ता है। तिल की बुवाई सीधी लाईनों में करनी चाहिए। लाईन से लाईन की दूरी 30 से 45 सेमी और पौधों से पौधों की दूरी 10-15 सेमी रखनी चाहिए। अधिकतर किसान तिल को छिड़क कर बोते है। छिड़क कर बोने से पौधों से पौधों की दूरी सही नहीं हो पाती हैं तथा पौधें की संख्या प्रति वर्ग मीटर आवश्यकता से अधिक हो जाती है, जिससे पौधों को बढ़ने में पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती है।
पौधों को पर्याप्त सूर्य का प्रकाश भी नहीं मिल पाता है, पौधे सीधे ही बढ़ते हैं। शाखाएं कम निकलती है। फलियों की संख्या कम हो जाती है, निराई-गुड़ाई करने में भी असुविधा रहती है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पौधों को आवश्यक पोषक तत्व अधिक पौधे होने के कारण कम प्राप्त होते हैं एवं फसल में कीड़े व बीमारियों का प्रकोप होने पर दवा छिड़कने में असुविधा रहती है।
तिल की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and fertilizer in til crop)
खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा जांच के आधार पर करें। फसल के अच्छे उत्पादन के लिये बुवाई से पूर्व 250 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग लाभकारी रहता है। बुवाई के समय 2.5 टन गोबर की खाद के साथ ऐजोटोबेक्टर व फास्फोरस विलय बैक्टिरिया (पीएसबी) 5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर प्रयोग करें। तिल बुवाई से पूर्व 250 किलोग्राम नीम की खली का प्रयोग भी लाभदायक है।
अच्छी वर्षा वाले क्षेत्रों में 40 किलो नत्रजन व 25 किलो फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर का प्रयोग करें। नत्रजन की आधी मात्रा और पूरा फॉस्फोरस तिल (Sesame) बुवाई के समय सीडड्रील द्वारा भूमि में ऊरकर दें। उर्वरक बीज से 4-5 सेंमी नीचे रहना चाहिये। यूरिया की तरह फॉस्फोरस उर्वरक को भूमि में छिड़ककर देने से कोई फायदा नहीं होता है।
अत: बुवाई पूर्व फॉस्फोरस उर्वरक को भूमि में उचित गहराई पर ऊरकर दें। नत्रजन की शेष बची आधी मात्रा बुवाई के 4-5 सप्ताह बाद खेत में वर्षा के बाद भुरक कर दें। यदि वर्षा कम है, तो खड़ी फसल में नत्रजन उर्वरक का प्रयोग नहीं करें। पोटाश का प्रयोग मृदा जांच के आधार पर करें।
तिल (Sesame) की अच्छी उपज के लिये दिये जाने वाले उर्वरकों की 75 प्रतिशत मात्रा के साथ 2 प्रतिशत यूरिया का पत्तियों पर छिड़काव फूल आने के समय करना चाहिये। उचित मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग भी लाभकारी रहता है।
तिल की फसल में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in sesame crop)
तिल (Sesame) खरीफ की फसल है, जिसमे खरपतवारों की संख्या अधिक होती है। यदि खरपतवार समय पर नियन्त्रित नहीं किये जाते हैं, तो उपज में भारी गिरावट आती है। खरपतवार की रोकथाम के लिये बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकालें।
फसल की छोटी अवस्था में जहां निराई-गुड़ाई संभव नहीं हो वहां एलोक्लोर 2 किलो दाने या 1.5 लीटर तरल प्रति हैक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व प्रयोग करें, फिर आवश्यकतानुसार 30 दिन बाद एक निराई-गुड़ाई अवश्य करें।
अन्तराशष्य: अच्छे उत्पादन के लिये तिल (Sesame) की मोठ या मूंग के साथ बुवाई करें। तिल को मोठ या मूंग के साथ 2:2 लाइनो में बुवाई करने से दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक उत्पादन मिलता है जिसमें प्रति ईकाई उत्पादन के साथ आमदनी बढ़ती है।
तिल की फसल में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management in sesame crop)
तिल की फसल (Sesame Crop) सामान्यता जल भराव के प्रति संवेदनशील होती है। इसलिए फसलो में उचित जल निकास एवं सुरक्षात्मक सिंचाई का प्रबंध करें। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए तिल की फसल में क्रांतिक अवस्था जिसे फूल अवस्था एवं फल्लियों में पानी दाने भरने के समय सिंचाई उपलब्ध करायें।
खरीफ के मौसम में लंबे समय तक सूखा पड़ने या बारिश न होने पर सुरक्षात्मक सिंचाई करनी चाहिए अर्थात जब पौधों में 50-60 प्रतिशत फली लग जाय और उस समय नमी की कमी हो तो एक सिंचाई करना आवश्यक है।
तिल में समन्वित रोग नियंत्रण (Integrated disease control in sesame)
तिल (Sesame) के बीजों को थाइरम 0.2 प्रतिशत + कार्बेन्डिजम 50 डब्ल्यूपी 0.1 प्रतिशत से बीज उपचार कर बुवाई करें तथा 30-45 दिन की फसल होने पर मेन्कोजेब 0.2 प्रतिशत + क्यूनालफॉस 0.05 प्रतिशत का घोल बनाकर छिडकाव करें। आवश्यक होने पर इस छिडकाव को 45 से 55 दिन की अवस्था पर पूनः दोहराएं।
तिल में समन्वित कीट नियन्त्रण (Integrated pest control in sesame)
तिल (Sesame) के बीजों को थाइरम 0.2 प्रतिशत + कार्बेन्डिजम 50 डब्ल्यू. पी. 0.1 प्रतिशत से बीज उपचार कर बुवाई करें तथा 30-45 दिन की फसल होने पर मेन्कोजेब 0.2 प्रतिशत + क्यूनालफॉस 0.05 प्रतिशत का घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यक होने पर इस छिड़काव को 45 से 55 दिन की अवस्था पर पूनः दोहराएं।
तिल फसल की कटाई और गहाई (Harvesting and threshing of til crop)
तिल फसल (Sesame Crop) पकने पर तने तथा फलियों का रंग पीला पड़ जाता है जो फसल कटाई का उपयुक्त समय है। खेत में पकी फसल को ज्यादा समय तक रखने पर फलियां फटने लगती हैं तथा बीज बिखरने लगतें हैं । अत: उचित समय पर फसल कटाई करें। फसल सूखने पर गहाई करें, गहाई बाद बीजों को साफ करके धूप सुखायें। भण्डारण से पूर्व बीजों में 8 प्रतिशत से कम नमी होनी चाहये।
तिल की फसल से पैदावार (Yield from sesame crop)
तिल की खेती (Sesame Cultivation) उपरोक्त वैज्ञानिक विधियों से करने पर अच्छी फसल से 6-7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन असिंचित दशा में तथा 8-10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज सिंचित दशा में प्राप्त हो सकती हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
तिल की खेती (Sesame Cultivation) खरीफ मौसम में भी की जाती है। जिसका बुआई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक करनी चाहिए। बीज को कार्बेण्डाजीम 50 प्रतिशत डब्लूपी से 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके ही लगाना चाहिए । बुआई कतार से कतार 30 सेमी तथा पौधा से पौधा की दूरी 10 सेमी रखते हुए 3 सेमी तक गहराई पर बुआई करें।
तिल (Sesame) उपजाऊ और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी, जैसे गाद वाली दोमट मिट्टी पर सबसे अच्छा प्रदर्शन करेगा। यह रेतीली दोमट मिट्टी के लिए अनुकूल है, बशर्ते अंकुर स्थापना के दौरान पर्याप्त नमी हो।
तिल की बोनी मुख्यतः खरीफ मौसम में की जाती है, जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के मध्य तक करनी चाहिये। ग्रीष्मकालीन तिल (Sesame) की बोनी जनवरी माह के दूसरे पखवाडे से लेकर फरवरी माह के दूसरे पखवाडे तक करना चाहिए।
तिल की फसल (Sesame Crop) को जलभराव से बचाना चाहिए, इसलिए खेत में उचित जल निकास की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। खरीफ सीजन में लंबे समय तक सूखा पड़ने या बारिश न होने पर सिंचाई करनी चाहिए। बुआई के समय हल्की सिंचाई करनी चाहिए, ताकि अंकुरण बेहतर हो।
तिल (Sesame Crop) को बहुत ज़्यादा उर्वरक की ज़रूरत नहीं होती सिवाय उन जगहों के जहाँ मिट्टी बहुत खराब है। 50 किलोग्राम नाइट्रोजन + 60 किलोग्राम फॉस्फेट + 35 किलोग्राम पोटैशियम की अनुशंसित दर की जरूरत होती है। इसलिए, रोपण के समय 3 बैग एनपीके उर्वरक (15:15:15) और युवा अवस्था में 2 बैग यूरिया डालना चाहिए।
तिल की फसल (Sesame Crop) आम तौर पर 95 से 110 दिनों में परिपक्व हो जाती है। हालांकि, तिल की कुछ प्रजातियां और किस्में अलग-अलग समय में पकती हैं।
कृषि की उन्नत तकनीक अपनाकर तिल की फसल (Sesame Crop) से 8-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार हासिल की जा सकती है। तिल की उपज क्षमता और तेल की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि किस किस्म का तिल बोया गया है।
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