Varieties of Sesame in Hindi: तिल, जिसे “तिलहन की रानी” के रूप में जाना जाता है, भारत के कृषि परिदृश्य और सांस्कृतिक विरासत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भारतीय कृषि में गहराई से निहित इतिहास के साथ, तिल की खेती पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों के अनुरूप कई किस्मों को शामिल करने के लिए विकसित हुई है। जिनको सफेद, काले और लाल रंग की श्रेणियों में रखा गया है।
यह लेख भारत भर में उगाई जाने वाली तिल की किस्मों (Sesame Varieties) की समृद्ध टेपेस्ट्री पर चर्चा करता है, उनकी अनूठी विशेषताओं, उपयोगों और पारंपरिक प्रथाओं की खोज करता है जो पीढ़ियों से इस फसल को बनाए रखते हैं। भारत के तिल के खेतों की यात्रा पर हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम इस बहुमुखी फसल के महत्व, चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं को उजागर करते हैं।
तिल की किस्में की उन्नत किस्में (Advanced Varieties of Sesame Varieties)
तिल की किस्में (Sesame Varieties) हल्के से लेकर अखरोट जैसे कई तरह के स्वाद प्रदान करती हैं, जो अलग-अलग पाक प्राथमिकताओं को पूरा करती हैं। वे कैल्शियम, आयरन और मैग्नीशियम जैसे आवश्यक पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, जो उन्हें संतुलित आहार का एक मूल्यवान हिस्सा बनाते हैं। तिल की कुछ उन्नत किस्में राज्यवार इस प्रकार है, जैसे-
राज्य | तिल की किस्में |
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश | पंजाब तिल- 1, आर टी- 125, हरियाणा तिल- 1, शेखर, टी- 12, टी- 13, टी- 14 |
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड | बी- 67, तिलोथामा, रामा, उमा, माधवी गौरी, आर एस- 1 |
राजस्थान | प्रताप, टी सी- 25, टी- 13, आर टी- 46, आर टी- 54, आर टी- 103, आर टी- 125 |
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ | एन- 32, जे टी- 2, टी के जी- 21, टी के जी- 22, टी के जी- 55, उमा, बी- 67, रामा |
गुजरात | गुजरात तिल नं- 1, गुजरात तिल नं- 2, आर टी- 54, आर टी- 103, पूरवा- 1, आर टी- 103 |
महाराष्ट्र | फुले तिल नं- 1, ताप्ती, पदमा, आर टी- 54, आर टी- 103, एन- 8, डी एम- 1, ताप्ती पूरवा- 1, आर टी- 54, आर टी- 103 |
बिहार और उड़ीसा | कृष्ण, पटना- 64, कांके सफेद, विनायक, कालिका, कनक उमा, उषा, बी- 67 |
पश्चिम बंगाल और असम | उमा, पंजाब तिल- 1, आर टी- 125, टी के जी- 21, टी के जी- 22, टी के जी- 55 |
तमिलनाडु और केरल | टी एम वी- 4, टी एम वी- 5, टी एम वी- 6, वी आर आई- 1, प्यायूर- 1, सोमा, सूर्या, चिलक रामा, सूर्या, बी- 67, सूर्या, सी ओ- 1, सोमा |
आंध्र प्रदेश | गौरी, माधवी, टी- 85, आर टी- 54, आर टी- 103 गौरी, माधवी, राजेश्वरी, वर्षा राजेश्वरी |
तिल की किस्मों की विशेषताएं (Features of sesame varieties)
तिल की अधिक उपज के लिए उन्नतशील किस्मों का प्रयोग करना चाहिए। इनके प्रयोग करने से फसल में कीड़े और बीमारियों का प्रकोप कम होता है तथा उपज भी 20-30 प्रतिशत अधिक होती है। यहां पर यह पाया गया है कि लगभग 80-85 प्रतिशत किसान अभी भी स्थानीय तिल किस्मों (Sesame Varieties) को उपयोग में ले रहे है। तिल की कुछ उन्नत किस्मों की विशेषताएं और पैदावार क्षमता इस प्रकार है, जैसे-
टी सी- 25: यह जल्दी पकने वाली किस्म है, इसके पौधे 90 से 100 सेमी ऊँचाई के होते हैं। इसमें फूल 30 से 35 दिन में आते हैं। हर पौधे पर औसतन 4-6 शाखाएं निकलती हैं, जिसमें 65-75 कैप्सूल आते हैं तथा इनमें बीज की 4 कतार होती है। इस किस्म की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें कैप्सूल नीचे से ऊपर तक एक साथ पकते हैं। यह 90 से 100 दिन में पक जाती है। इसकी औसत उपज 4.25-4.50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसके बीजों का रंग सफेद होता है, इसमें तेल की मात्रा 48-49 प्रतिशत तथा प्रोटीन की मात्रा 26-27 प्रतिशत होती है।
आर टी- 127: यह किस्म 75 से 85 दिन में पक जाती है। इसके बीजों का रंग सफेद होता है। इसमें तेल की मात्रा 45-47 प्रतिशत, प्रोटीन 27 प्रतिशत होती है। इसकी औसत उपज 6-9 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। यह तिल किस्म (Sesame Varieties) जड़ व तना गलन रोग, फ्लोडी और जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के प्रति सहनशील है।
आर टी- 46: इसके पौधे 100 से 125 सेमी ऊँचाई के होते हैं। पत्ती व फली छेदक कीट एवं गालमक्खी कम लगते है। इसमें गमेसिस रोग का प्रकोप कम होता है इसमें फूल 30-35 दिन में आते हैं तथा हर पौधे में 4-6 शाखाएं निकलती हैं। यह किस्म 73 से 90 दिन में पक जाती है। इसकी औसत उपज 6.00 से 8.00 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। इसके बीजों का रंग सफेद तथा तेल की मात्रा 49 प्रतिशत होती है।
आर टी- 125: यह किस्म 80-85 दिन में पक जाती है। इसके पौधे 100-120 सेमी ऊँचाई के होते है। इसमें सभी फलियां एक साथ पकती है, जिससे झड़ने से हानि कम होती है। इस तिल किस्म (Sesame Varieties) की औसत उपज 6-8 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
टी- 13: इस किस्म के पौधे लगभग 100-125 सेमी ऊँचाई के होते है। इसमें फूल 35-40 दिन में आ जाते है। यह 90 से 100 दिन में पक जाती है। इस किस्म के एक पौधे में लगभग 60 कैप्सूल आते हैं। इसके बीजों का रंग सफेद होता है। इसमें तेल की मात्रा 49 प्रतिशत तथा प्रोटीन 24 प्रतिशत होती है। इस तिल किस्म (Sesame Varieties) की औसत उपज 5 से 7 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है।
आर टी- 346 (चेतक): तिल की यह किस्म सूखा सहने की क्षमता वाली इस किस्म की पकाव अवधि 83-85 दिन है। पर्ण कुंचन, फिलोडी के लिए प्रतिरोधी और तना व जड़ गलन, अल्टरनेरिया व सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोगों और फलीछेदक कीड़े के लिये मध्यम प्रतिरोधी है। इसमें तेल की मात्रा 50 प्रतिशत और औसत उपज 7 से 9 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है। इस तिल किस्म के बीज चमकीले सफेद रंग के होते हैं।
आर टी- 351: सफेद चमकीले बीज वाली तिल की इस किस्म के पौधों पर फलियां चौगर्थी लगती है और फसल लगभग 85 दिन में पक जाती है। इसके बीजों में तेल की मात्रा 50 प्रतिशत और औसत उपज 7 से 10 क्विटल प्रति हैक्टर होती है। यह किस्म पर्ण कुंचन, फिलोडी और तना, जड़ गलन रोगों के लिए प्रतिरोधी एवं सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा व फली छेदक कीड़े के प्रति मध्यम प्रतिरोधी होती है।
हरियाणा तिल- 1: इस तिल किस्म (Sesame Varieties) की पकने की अवधि 85 से 90 दिन, तेल की मात्रा 48 से 50 प्रतिशत, औसत पैदावार 6 से 7 क्विंटल, असन्मुखी, एकल फलियाँ होती है।
पंजाब तिल- 1: इस किस्म की पकने की अवधि 75 से 85 दिन, तेल की मात्रा 50 से 53 प्रतिशत, औसत पैदावार 5 से 7 क्विंटल, सन्मुखी, एकल फलियाँ होती है।
शेखर: इस तिल किस्म (Sesame Varieties) की पकने की अवधि 80 से 85 दिन, तेल की मात्रा 45 से 48 प्रतिशत, औसत पैदावार 6 से 8 क्विंटल, सन्मुखी, एकल फलियाँ होती है।
टी- 78: तिल की इस किस्म की पकने की अवधि 80 से 85 दिन, तेल की मात्रा 45 से 48 प्रतिशत, औसत पैदावार 6 से 8 क्विंटल, सन्मुखी, एकल फलियाँ होती है।
गुजरात तिल- 4: इस तिल किस्म (Sesame Varieties) की पकने की अवधि 80 से 85 दिन, तेल की मात्रा 46 से 50 प्रतिशत, औसत पैदावार 7 से 9 क्विंटल, असन्मुखी, एकल फलियाँ होती है।
तरुण: तिल की इस किस्म की पकने की अवधि 80 से 85 दिन, तेल की मात्रा 50 से 52 प्रतिशत, औसत पैदावार 8 से 9 क्विंटल, असन्मुखी, एकल फलियाँ होती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
रंग में अंतर के अनुसार, तिल को सफेद तिल, काले तिल और पीले तिल के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिनमें से काले और सफेद तिल अधिक सामान्य और व्यापक रूप से उगाई जाने वाली प्रमुख प्रजातियां हैं।
काले तिल अपने उच्च पोषण तत्वों के कारण अधिक लाभकारी होते हैं। सफेद तिलों की तुलना में काले तिलों में कैल्शियम अधिक होता है और आयरन, पोटैशियम, कॉपर, मैंगनीज और अन्य खनिज भी अधिक होते हैं।
सारदा किस्म ने तिल के बीज की औसत उत्पादकता 1125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दर्ज की और तेल प्रतिशत 50.3 प्रतिशत रहा। सारदा किस्म का तिल (Sesame Varieties) उत्पादन पर बहुत प्रभाव है और यह 60 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर कब्जा करती है।
तिल की बुआई का सही समय, मौसम के हिसाब से अलग-अलग होता है। खरीफ सीजन में तिल की बुआई जून के आखिरी हफ़्ते से जुलाई के मध्य में करनी चाहिए। ग्रीष्मकालीन तिल की बुआई जनवरी के दूसरे पखवाड़े से लेकर फरवरी के दूसरे पखवाड़े तक करनी चाहिए।
तिल की खेती उन्नत विधियों द्वारा करने पर 700-1200 किग्रा उपज प्रति हैक्टेयर प्राप्त की जा सकती है।
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