Soybean Cultivation in Hindi: सोयाबीन अपने देश की प्रमुख तिलहनी फसल है। इसके बीज में 18-20% खाद्य तेल और 38-40% प्रोटीन की मात्रा होती है, इसलिए यह फसल तिलहन और पोषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। सोयाबीन देश के कृषि परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो खाद्य सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि दोनों में योगदान देती है। समृद्ध इतिहास और कृषि क्षेत्र में बढ़ते महत्व के साथ, सोयाबीन की खेती भारत के कृषि विविधीकरण का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गई है।
जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताओं, प्रमुख बढ़ते क्षेत्रों, खेती के तरीकों, कीट और रोग प्रबंधन, साथ ही सोयाबीन की खेती में सरकार के समर्थन और भविष्य की संभावनाओं को समझना इस क्षेत्र में उत्पादकता और स्थिरता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। यह लेख भारत में सोयाबीन की खेती (Soybean Farming) का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करता है, जो देश भर में सोयाबीन किसानों की सफलता में योगदान देने वाले विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है।
सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for soybean cultivation)
सोयाबीन की फसल उष्ण तापमान के प्रति संवेदनशील होती है। इसके बी अंकुरण, पौध वृद्धि, फूल और फली भरने के लिए गर्म तापमान की आवश्यकता होती है। तापमान 25 – 30 डिग्री सेल्सियस हो तो बीजों का अंकुरण अच्छा होता है और पौधों की वृद्धि स्वस्थ होती है। तापमान 5 से कम और 35 डिग्री से अधिक होने पर बीज अंकुरित नहीं होता है।
उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता सोयाबीन (Soybean) के तेजी से वृद्धि में योगदान करते हैं। वार्षिक वर्षा 750 से 1000 मिमी, समान और अच्छी तरह से वितरित हो तो यह फसल अच्छी तरह से विकसित हो सकती है। अगर धूप साफ हो तो सोयाबीन फसल का विकास बेहतर होता है ।
सोयाबीन की खेती के लिए भूमि का चयन (Selection of land for soybean cultivation)
सोयाबीन की खेती (Soybean Farming) के लिए मध्यम से भारी, रेतिली से दोमट और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच 6.5 और 7.5 के बीच होना चाहिए। सोयाबीन फसल की अच्छी वृद्धि के लिए मिट्टी का रंग, बनावट, जल धारण क्षमता, कार्बनिक पदार्थ और अन्य पोषक तत्व संतुलित होने चाहिए। अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में वातन अच्छा होता है। मिट्टी में वातन से उपज बढ़ाने के लिए जड़ों की वृद्धि और विस्तार में मदद मिलती है।
सोयाबीन की खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparation of field for soya cultivation)
रबी फसल की कटाई के बाद गर्मियों (मार्च-अप्रैल) में दो साल में एक बार जमीन की गहरी जुताई कर देनी चाहिए, ताकि जमीन पलट जाए और धूप से गर्म हो जाए। जुताई के समय यदि मिट्टी में बड़े-बड़े ढेले हों तो उन्हें कुचल कर छोटा करना चाहिए। सोयाबीन (Soybean) के लिए पहली बारिश बाद खेत की दो जुताई कर के जमीन को अच्छी तरह से समतल कर लेना चाहिए। आखिरी जुताई से पहले 5 से 10 टन गोबर खाद या कम्पोस्ट मिट्टी में मिलाना चाहिए।
सोयाबीन की खेती के लिए उन्नत किस्में (Advanced varieties for soybean cultivation)
सोयाबीन की खेती के लिए उन्नत किस्मों का चयन वर्षा के समय तथा अपने क्षेत्र के अनुसार करना चाहिए। एकल किस्म के बजाय कई किस्मों को अपनाया जा सकता है। किस्मों का चयन और उपलब्धता बुवाई से पहले कर ले चाहिए। सोयाबीन (Soybean) की कुछ प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे-
सामान्य किस्में: पीके- 416, पूसा- 20, पूसा- 16, मुनेटा, जेएस- 2172, एनआरसी- 2 (अहिल्या 1), एनआरसी- 12 (अहिल्या 2), एनआरसी- 7 (अहिल्या 3), एनआरसी- 37 (अहिल्या 4), जेएस- 80-21, जेएस- 335, जेएस- 95-60, जेएस- 93-05, पंजाब- 1 और पूसा- 12 आदि प्रमुख है।
संकर टाइप किस्में: जेएस- 2034, आरवीएस- 1135, एमएसीएस- 1407, एनआरसी- 181, बीएस- 6124, एमएसीएस- 1460, एमएसीएस- 1520, एमएसीएस- 1188, एमएसीएस- 1281, एमएयूएस- 612, केडीएस- 992 और केडीएस- 726 आदि प्रमुख है।
सोयाबीन की बुवाई का समय और बीज की मात्रा (Sowing time of soya and quantity of seeds)
बुवाई का समय: सोयाबीन (Soybean) की बुवाई का सबसे अच्छा समय जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह के बीच होता है।
बीज दर: बुवाई हेतु दानों के आकार के अनुसार बीज की मात्रा का निर्धारण करें। पौध संख्या 4 से 4.5 लाख प्रति हैक्टर रखें। छोटे दाने वाली किस्मों को 28 किलोग्राम प्रति एकड, मध्यम दाने वाली 32 किलोग्राम प्रति एकड़ और बड़े दाने वाली 40 किलोग्राम प्रति एकड़ की बीज दर पर्याप्त होती है।
सोयाबीन की खेती के लिए बीज उपचार (Seed treatment for soybean cultivation)
सोयाबीन (Soybean) के अंकुरण को बीज तथा मृदा जनित रोग प्रभावित करते हैं। इसकी रोकथाम के लिए बीज को उपचारित करने के लिए, 1 किलोग्राम बीज पर 3 ग्राम थायरम और कार्बेंडाजिम (2:1) का मिश्रण, या 2.5 ग्राम थायरम और कार्बोक्सीन, या 3 ग्राम थायोमिथाक्सेम 78 डब्लूएस, या 5 ग्राम ट्राईकोडर्मा विर्डी का इस्तेमाल करें।
बीजों को बोने से कुछ घंटे पहले 5 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर और 5 ग्राम पीएसबी (स्फुर घोलक) प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। खेत में 2.50 किलोग्राम पीएसबी प्रति एकड़ की दर से मिलाने से स्फुर को घुलनशील अवस्था में बदला जा सकता है। बीजों को उपचारित करने के बाद, उन्हें अच्छी तरह से सूखाकर बोना चाहिए।
सोयाबीन की खेती के लिए बुवाई का तरीका (Sowing method for soybean cultivation)
सोयाबीन की खेती (Soybean Farming) के लिए बुवाई के समय अच्छे अंकुरण हेतु भूमि में 10 सेंमी गहराई तक उपयुक्त नमी होनी चाहिये। जुलाई के प्रथम सप्ताह के पश्चात् बुवाई की बीज दर 5-10 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिये। कतार से कतार की दूरी 30 सेंमी (बोनी किस्मों के लिये ) तथा 45 सेंमी बड़ी किस्मों के लिये रखें।
पौधे से पौधे की दूरी 5 से 7 सेंमी होनी चाहिए। बीज 2.5 से 3 सेंमी गहरा बोयें। अधिक गहराई से अंकुरित बीज को ऊपर आने में अधिक समय लगता है तथा पौधों की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है। बुवाई के समय तापमान 25–38 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
सोयाबीन की फसल में खाद और उर्वरक (Manure and Fertilizer in Soybean Crop)
समेकित पोषण प्रबंधन के लिए सोयाबीन (Soybean) बोवाई से पहले 5 से 10 टन गोबर खाद या कम्पोस्ट आखिरी जुताई से पहले मिट्टी मिलाना चाहिए। 20 किलो नत्रजन, 60 से 80 किलो फॉस्फोरस, 20 किलो पोटाश अनुसंशित मात्रा विभिन्न खाद के द्वारा और 30 किलो सल्फर प्रति हेक्टेयर बोवाई के समय भूमि में बीज के साथ डालने की सलाह दी जाती है। सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने के लिए प्रति हेक्टेयर 25 किलो जिंक सल्फेट और 10 किलो बोरेक्स भूमि में डालना चाहिए।
सोयाबीन की फसल में जल प्रबंधन (Water Management in Soybean Crop)
यदि सोयाबीन बीज बुवाई के तुरंत बाद भारी वर्षा होती है, तो प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या कम हो जाती है और अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव के कारण उपज कम हो जाती है। अंकुरण के बाद यदि दो बारिश में अंतराल पड़ जाता है, तो फसल के लिए 10 से 15 दिनों के अंतराल से पानी देने का प्रबंध करना चाहिए।
सोयाबीन की फसल (Soybean Crop) को अंकुर अवस्था (15 से 20 दिन), फूलने की अवस्था (35 से 40 दिन) और फली भरने (55 से 60 दिन) की अवस्था यह महत्वपूर्ण वृद्धि के विकास चरणों के दौरान पानी की आवश्यकता होती है। इन चरणों के दौरान पानी की कमी से उपज में बड़ी कमी आती है।
सोयाबीन की फसल के साथ अंतर फसल पद्धती (Intercropping with soybean crop)
सोयाबीन अन्य फसलों के साथ अंतर फसल जैसा उगाने से न केवल किसानों को आर्थिक लाभ मिलता है, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल नष्ट होने पर विश्वसनीय उत्पादन भी सुनिश्चित होता है। सस्यविज्ज्ञान अनुसंधान से कुछ उपयोगी और लाभदायक सोयाबीन (Soybean) अंतरफसल पद्धतियों की पहचान और सिफारस की है। जैसे- सोयाबीन + अरहर (3:1); सोयाबीन + कपास (3:1); सोयाबीन + गन्ना (1:1) और सोयाबीन + ज्वार (3:1) आदि।
सोयाबीन की फसल में खरपतवार प्रबंधन (Weed Management in Soybean Crop)
सोयाबीन की फसल को बवाई के बाद 45 दिनों तक खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक होता है। इसके लिए निराई, कुलपे या खरपतवार नाशकों के उपयोग की आवश्यकता होती है। यदि खरपतवार नाशक का उपयोग फसल निकलने से पहले या फसल के शुरुआती समय में किया जाए, तो खरपतवार खेत में फसल के साथ नहीं उगते। 30 से 35 दिन बाद निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार का प्रभाव कम होता है, और फसल में सारी खाली जगह सोयाबीन के पौधों से ढक जाती है।
इससे फसल की वृद्धि के समय बाद में खरपतवार का प्रकोप अपने आप ही कम हो जाता है। सोयाबीन की फसल (Soybean Crop) में रासायनिक विधि से खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बुआई के पश्चात एवं अंकुरण के पूर्व डायक्लोसुलम 84 प्रतिशत डब्ल्यूडीजी 12.5 ग्राम प्रति एकड़ बुआई के 0 से 3 दिन के अंदर 200 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें।
सोयाबीन की फसल में कीट नियंत्रण (Pest control in soybean crop)
सोयाबीन की फसल (Soybean Crop) में कीटों को नियंत्रित करने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल कीटों की संख्या आर्थिक रूप से हानिकारक स्तर को पार करने के बाद ही करें। कीटनाशक का इस्तेमाल सही तरीके से करें। कीटनाशक का इस्तेमाल लेबल पर दी गई दर से करें। कीटनाशक का इस्तेमाल अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में करें।
कीटनाशक का इस्तेमाल करने के बाद, तीन से पांच दिन बाद फिर से खेतों की जांच करें। सोयाबीन की फसल को चक्रित करें, गैर-फलीदार फसल के साथ चक्रित करने से कीटों से बचने में मदद मिलती है। जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करें, ये कीटों को जहर नहीं देते, बल्कि बीमारी पैदा करके उन्हें मारते हैं।
सोयाबीन की फसल में रोग नियंत्रण (Disease control in soybean crop)
सोयाबीन की फसल (Soybean Crop) में रोग नियंत्रण के लिए, रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट करे। बीजों का कवकनाशी उपचार करें। प्रतिरोधक किस्मों का इस्तेमाल करें। रोग की नियमित निगरानी करें। यदि क्षेत्र में बारहमासी रोग समस्या होने पर, उस क्षेत्र की निगरानी करें।
पत्तों पर कई तरह के धब्बे वाले फफुंदजनित रोगों को नियंत्रित करने के लिये कार्बेडाजिम 50 डब्ल्यूपी या थायोफेनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी 0.05-0.1 प्रतिशत से 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिये। बैक्टीरियल पश्ट्यूल रोग के नियंत्रण के लिये स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या कासूगामाइसिन की 200 मिग्रा दवा प्रति लीटर पानी और कॉपर आक्सीक्लोराइड 0.2 (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) के घोल में मिश्रण करना चाहिये।
सोयाबीन फसल की कटाई और गहाई (Harvesting and threshing of soya crop)
सोयाबीन फसल (Soybean Crop) की पत्तीयाँ पीली होने पर, फलियाँ पीली-काली-भूरे रंग में बदल जाए और पक जाए तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। सही समय पर इसकी कटाई नहीं की जाये तो फलियाँ फुटने लगती है और फसल के दानें खेत में बिखर जाते है, जिससे बढ़ा नकसान होता है।
जब दनें की नमी 15 से 17 प्रतिशत तक हो तब फसल की कटाई करनी चाहिए। खेत में ही काटे हुए फसल के छोटे-छोटे ढेरों को 1 से 2 दिनों तक धूप में अच्छी तरह से सुखाना चाहिए । थ्रेसिंग करते समय मशीन की सिलिन्डर की गति 350 से 400 प्रति मिनट रहे ये निश्चित करे।
सोयाबीन की फसल से पैदावार (Yield from soybean crop)
सोयाबीन की पैदावार, कई कारकों पर निर्भर करती है। लेकिन उपरोक्त उन्नत तकनीकी अपनाने पर वर्षा आधारित फसल से सोयाबीन (Soybean) की पैदावार 16-25 कुंटल प्रति हैक्टर और सिंचित अवस्था में 25-35 कुंटल प्रति हैक्टर प्राप्त की जा सकती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
सोयाबीन की बुवाई करते समय एक कतार से दूसरे कतार की दूरी 30-45 सेमी, पौधों से पौधों की दूरी 4-5 सेमी और बीज की गहराई 3-4 सेमी होनी चाहिए। सोयाबीन (Soybean) की बुवाई के दौरान बीज दर प्रति हेक्टेयर 65-75 किलोग्राम होना चाहिए, क्योंकि बीज दर कम होने पर उत्पादकता कम हो सकती है।
22 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच का तापमान वृद्धि के लिए सबसे उपयुक्त है। यदि औसत तापमान इससे नीचे चला जाता है तो विकास में देरी होती है जिससे सोयाबीन फसल (Soybean Crop) के परिपक्व होने की संभावना कम हो जाती है।
सोयाबीन (Soybean) के अधिकतम उत्पादन के लिए आदर्श मिट्टी ढीली, अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी है। आजकल बहुत से खेतों में सख्त, पपड़ीदार मिट्टी होती है जो बारिश होने पर जलभराव से हो जाती है। सबसे अधिक संभावना है कि ऐसी मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा कम होती है और खनिज पोषक तत्वों में असंतुलन होता है।
आम तौर पर, सोयाबीन की फसल (Soybean Crop) बुआई के 95 से 110 दिनों बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। हालांकि, सोयाबीन की कुछ प्रजातियों का पकने का समय अलग-अलग होता है।
बुआई से 20-25 दिन पहले, खेत में 5-10 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद मिला देनी चाहिए। सोयाबीन (Soybean) की फसल में, प्रति हेक्टेयर 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-80 किलोग्राम फ़ॉस्फ़ोरस, 40-50 किलोग्राम पोटाश और 20-25 किलोग्राम गंधक की मात्रा देनी चाहिए।
फूल आने से लेकर फली में पूरा बीज बनने तक सोयाबीन (Soybean) का पौधा प्रतिदिन 0.20 से 0.30 इंच पानी का उपयोग करेगा। इसलिए, बारिश में किसी भी कमी को सिंचाई के जरिए पूरा करना जरूरी है।
सोयाबीन (Soybean) की बुआई का सही समय जून-जुलाई का होता है। हालांकि, मैदानी और मध्य क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक, दक्षिणी क्षेत्रों में मध्य जून से जुलाई अंत तक और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक बुआई का समय क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है।
सोयाबीन (Soybean) की उपज बढ़ाने के लिए गर्मी में गहरी जुताई करें, जिससे कीट के शंकु सतह पर आकर तापमान से नष्ट हो जाएं। जहां तक संभव हो तम्बाकू इल्ली विरोधी किस्मों की बुवाई करें। सिफारिशानुसार बीज दर का प्रयोग करें और उचित पौध संख्या हेतु कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी रखें।
प्रति हेक्टेयर सोयाबीन (Soybean) की अपेक्षित उपज कई कारकों पर निर्भर करती है, लेकिन सामान्यत: प्रति हेक्टेयर 250,000 से 500,000 पौधों की संख्या के साथ, प्रति हेक्टेयर लगभग दो से पांच टन सोयाबीन की उपज प्राप्त की जा सकती है।
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