भारत में सोयाबीन की किस्मों (Soybean Varieties) की उपज क्षमता जलवायु, मिट्टी की गुणवत्ता और खेती के तरीकों सहित कई कारकों से प्रभावित होती है। किसान अपनी स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल किस्मों का चयन करके और सर्वोत्तम खेती के तरीकों को लागू करके अपनी फसल की पैदावार को अनुकूलित कर सकते हैं। कुछ किस्में पर्याप्त वर्षा वाले उष्णकटिबंधीय जलवायु में पनपती हैं, जबकि अन्य सीमित जल उपलब्धता वाले शुष्क क्षेत्रों के लिए बेहतर अनुकूल हैं।
यह लेख भारत में उगाई जाने वाली विविध सोयाबीन किस्मों (Soybean Varieties) का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करता है, उनकी विशेषताओं, लक्षणों और विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के लिए अनुकूलनशीलता की खोज करता है। उद्देश्य किसानों और हितधारकों को स्थायी कृषि सफलता के लिए सोयाबीन किस्म के चयन और प्रबंधन पद्धतियों के बारे में सूचित निर्णय लेने में मार्गदर्शन करना है।
सोयाबीन की उन्नत किस्में (Improved varieties of soybean)
भारतीय किसानों के पास चुनने के लिए सोयाबीन की असंख्य किस्में हैं, जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग विशेषताएँ और गुण हैं जो विभिन्न कृषि आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। ये किस्में विकास पैटर्न, रोग प्रतिरोधक क्षमता और विभिन्न जलवायु के अनुकूलता में भिन्न हैं। क्षेत्रवार अनुशंसित सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) इस प्रकार है, जैसे-
मध्य क्षेत्र: (मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश का बुन्देलखण्ड भाग, राजस्थान, गुजरात, उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट्र) के लिए सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties)-
एएनआरसी- 157 (मप्र), इंदौर सोया- 131, इंदौर सोया- 136 (मप्र), एमएयुएस- 725 (महाराष्ट्र), एनआरसी- 152, एनआरसी- 150, हिम पालम सोया- 1 (हिमसो 1689), फुले दूर्वा (केडीएस 992) महाराष्ट्र, जेएस- 21-72, आरवीएसएम-. 2011-35, एनआरसी- 138 (इंदौर सोया 138), एएमएस- 100-39 (पीडीकेवी अम्बा), आरवीएस- 76 (राज विजय सोयाबीन), एनआरसी- 142 (इंदौर सोया 142 ),
एमएसीएस- 1520, एनआरसी- 130 (इंदौर सोया 130), आरएससी- 10-46, आरएससी- 10-52, एएमएसएमबी- 5-18 (सुवर्ण सोया), एएमएस- 1001 (पीकेवी येलो गोल्ड), जेएस- 20-116, जेएस- 20-94, जेएस- 20-98, एनआरसी- 127, राज सोया- 18 (मप्र), राज सोया- 24, एनआरसी- 86, जेएस- 20-34, जेएस- 20-29 (मप्र), आरवीएस- 2001-4 (मप्र) और जेएस- 20-69 (मप्र) आदि प्रमुख है।
पूर्वी क्षेत्र: (छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार, उड़ीसा एवं पश्चिम बंगाल) और उत्तर पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र: असम, मेघालय, मणीपुर, नागालैण्ड व सिक्किम) के लिए सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties)-
शालीमार सोयाबीन- 2 (जम्मू एवं काश्मीर), उमियाम सोयाबीन – 1 (मेघालय), बिरसा सोया- 3 (झारखण्ड), छत्तीसगढ़ सोया, बिरसा सोया- 4 (झारखण्ड), एमएसीएस- 1407, एमएसीएस- 1460, एनआरसी- 132 ( इंदौर सोया 132 ), एनआरसी- 147 (इंदौर सोया 147),
एनआरसी- 128, एनआरसी- 136, एनआरसीएसएल- 1, आरएससी- 11-07, आरएससी- 10-46, एएमएस- 2014-1, डीएसबी- 32, जेएस- 20-116, केडीएस- 753, कोटा सोया- 1 और छत्तीसगढ़ सोया- 1 (छत्तीसगढ) आदि प्रमुख है।
उत्तरी मैदानी क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के पूर्वी मैदान, मैदानी – उत्तराखण्ड व पूर्वी बिहार के लिए सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties)-
एसएल- 1074, एसएल- 1028, एनआरसी- 128, उत्तराखंड काला सोयाबीन (उत्तराखंड), एसएल- 979, एसएल- 955, पन्त सोयाबीन- 26, पीएस- 1477, पीएस- 1521 (उत्तराखण्ड), पन्त सोयाबीन- 23 (उत्तराखण्ड), पन्त सोयाबीन- 21 (उत्तराखण्ड), एसएल- 958, पूसा 12 और पीएस- 1368 (उत्तराखण्ड) आदि प्रमुख है।
उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र: हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश व उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र के लिए सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties)-
वीएलसोया- 99, हिम पालम सोया- 1 (हिमाचल प्रदेश ), पन्त सोयाबीन- 25, शालीमार सोयाबीन- 1 (जम्मू व कश्मीर), वीएल सोया- 89, वीएल भट्ट- 201 (उत्तराखण्ड) और वीएल सोया- 77 (उत्तराखण्ड) आदि प्रमुख है।
दक्षिणी क्षेत्र: कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र का दक्षिणी भाग के लिए सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties)-
एएलएसबी- 50 (तेलंगाना), एमएयुएस- 725 (महाराष्ट्र ), फुले दूर्वा (महाराष्ट्र), एमएसीएस – एनआरसी- 1667, करुणे (केवीबीएस 1), एनआरसी- 142, एमएसीएस- 1460), एएमएस- 2014-1, आरएससी- 11-07, एनआरसी- 132, एनआरसी- 147, डीएसबी- 34,
केडीएस- 753, केबीएस- 23 (कर्नाटक), डीएसबी- 28, केडीएस- 726, एएमएस- 1001 (महाराष्ट्र ), केएस- 103, डीएसबी- 23, एमएयूएस- 612, बसार (तेलंगाना), एमएसीएस- 1281, केडीएस- 344, डीएसबी- 21, एमएयूएस- 162 और एमएसीएस- 1188 आदि प्रमुख है।
सोयाबीन की रोग प्रतिरोधी किस्में (Disease resistant varieties of soybean)
स्क्लेरोशियम ब्लाइट: एनआरसी- 37 प्रमुख है।
चारकोल सड़न: एनआरसी- 2, एनआरसी- 37, जेएस- 97-52, जेएस- 20-29 और जेएस- 20-34 प्रमुख है।
जीवाणु पश्चूल: जेएस- 95-60, एनआरसी- 7, एनआरसी- 37, जेएस- 97-52, जेएस- 20-29 और जेएस- 20-34 प्रमुख है।
पीला मोजेक: जेएस- 97 – 52 और जेएस- 20-29 प्रमुख है।
मायरोथीसियम दाग: एनआरसी- 7 प्रमुख है।
विभिन्न बीमारियां: जेएस- 20-29, जेएस- 20-34 और आरवीएस- 2001-4 प्रमुख है।
सोयाबीन की किस्मों की विशेषताएं (Characteristics of soybean varieties)
किसानों के लिए अपनी फसल की पैदावार को अधिकतम करने और विविध पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल होने के लिए विभिन्न सोयाबीन किस्मों सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) की आनुवंशिक और कृषि संबंधी विशेषताओं को समझना महत्वपूर्ण है। सोयाबीन की कुछ प्रचलित किस्मों की विशेषताएं और पैदावार क्षमता इस प्रकार है, जैसे-
प्रताप सोया: औसत उंचाई वाली यह सोयाबीन की किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) 95 से 90 दिन में पककर तैयार होती है। इसके पुष्प बैंगनी रंग के तथा बीज हल्के पीले रंग के गोलाकार होता है। फलिया नही चटकती है। यह किस्म अच्छी अंकुरण क्षमता वाली तथा गर्डल बिटलन के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी एवं तम्बाकू इली और अन्य रोगो से मध्यम प्रतिरोधी है। इसकी उपज 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टर तक प्राप्त होती है।
आरकेएस- 18 (प्रताप सोया 2): यह सोयाबीन की किस्म उचित परिस्थितियों में 90 से 95 दिनों में पककर 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टर उपज देती है। इसमें तेल की मात्रा 18 से 20 प्रतिशत पाई गई है। यह सोयाबीन किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) तम्बाकु ईली, गर्डल बीटल तथा अन्य पत्तियों खाने वाली कीटो से मध्यम प्रतिरोधी तथा पत्ति धब्बा रोग एवं अन्य बीमारियों से भी मध्यम प्रतिरोधी पाई गई है।
पीके- 472: यह पीले दाने वाली, मध्यम लम्बाई (35-45 सेमी) की सोयाबीन की किस्म है। यह 100 से 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है। असिंचित क्षेत्रों में इसकी औसत पैदावार 9 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टर तथा सिंचित क्षेत्रों में यह 20 से 25 क्विंटल तक पैदावार देती है। यह किस्म पीले मौजेक, पत्ती धब्बा एवं जीवाणु रोगो के लिए प्रतिरोधी है। गर्डल बीटल के प्रति कम सहिष्णु तथा कटाई के समय फलिया कम चटकती है।
जेएस- 335: यह पीले दाने वाली वृहत अनुकूलता, उत्तम अंकुरण क्षमता वाली किस्म है। 95 से 100 दिनों में पकने वाली यह सोयाबीन किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टर पैदावार देती है। यह किस्म बैक्टीरियल पश्च्यूल ब्लाइट, विषाणु रोगो, अल्टरनेरिया प्रत्ति धब्बा के लिए प्रतिरोधी होती है। गर्डल बीटल व तना मक्खी के लिए सहनशील किस्म है।
एमएयुएस- 47 (परभनी सोना): यह पीले रंग के दानों वाली किस्म हैं। यह असिंचित क्षेत्रों में बोने के लिए उपयुक्त तथा 80 से 85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। झुलसना भूरे धब्बे, एन्थेकनोज, सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा, राइजोकटोनिया, ब्लाइट, कॉलर रोट, सेमीलुपर एवं तम्बाकु इल्ली के लिऐ प्रतिरोधी है तथा तना कीट व पत्ती मोड़क के लिए मध्यम प्रतिरोधी सोयाबीन किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) है।
मैक्स- 450: सोयाबीन की उन्नत किस्म, छोटे और पीले दानों वाली, मध्यम ऊँचाई की यह किस्म लगभग 105 दिन में पककर तैयार हो जाती है। बैंगनी पुष्प, अर्द्ध-सीमित वृद्धि, भूरे रोये, काली नाभिका वाली इस सोयाबीन किस्म की पैदावार 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। यह सोयाबीन की किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) जीवाणु पत्ती धब्बा एवं अन्य पत्ती रोगों से प्रतिरोधक और पत्ती खाने वाले कीड़ों से सहनशील होती है।
एनआरसी- 12 (अहिल्या 2): यह सोयाबीन की किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) 100 से 105 दिन में पकने वाली पीले दानों वाली इस सोयाबीन किस्म में बैंगनी फूल पाये जाते है। उत्तम अंकुरण क्षमता, दाना मध्यम पीला, नाभिका भूरी से काली होती है। इसकी पैदावार क्षमता 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। यह किस्म जीवाणु पत्ती धब्बा और अन्य पर्ण भक्षी कीड़ों से, मोजेक तथा तना मक्खी के लिये सहनशील हैं।
एनआरसी- 37 (अहिल्या 4): चौड़ी गहरी हरी पत्तियों वाली इस सोयाबीन की किस्म के किस्म के पौधे सीधे रहते है। 100 से 105 दिन में पकने वाली इस किस्म के फूल सफेद, उत्तम अंकुरण, दाना मध्यम मोटा और नाभिका गहरी भूरी होती है और पैदावार 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है। यह किस्म भी जीवाणु पत्ती धब्बा और तना गलन रोग से मध्य प्रतिरोधी, तना मक्खी तथा पर्ण भक्षी कीटों से सहनशील होती है।
जेएस- 9305: 90 से 95 दिनों में पकने वाली, इस सोयाबीन किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) की औसत पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हैक्टर है। बीज पीले रंग के होते है, फलिया पकने पर छिटकती नही है। बैक्टीरियल पश्च्यूल ब्लाइट, मौजेक वाइरस, जड़ गलन, पाउडरी मिल्ड्यू के प्रतिरोधी है।
जेएस- 97-52: यह मध्य अवधि एवं मध्यम दाने वाली प्रजाति है। यह प्रमुख रोगों जैसे पीला मोजेक जड़ सड़न, प्रमुख कीटों जैसे तना छेदक एवं पत्ती भक्षक कीटों एवं अधिक नमी के लिए सहनशील है। कुशल जल प्रबंधन में उत्पादन क्षमता 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टर है तथा 98 से 102 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
जेएस- 95-60: यह 85 से 88 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। अकुरण क्षमता 85 से 90 प्रतिशत होती है। इसका तना, पत्तियाँ व फली चिकनी होती है। यह सोयाबीन की किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) जड़ गलन व पर्णिय बीमारियों, पत्ती चुसक कीटो, पत्तियां काटने वाले कीटो के लिए प्रतिरोधी सहनशील क्षमता होती है।
जेएस- 22-12: अर्ध- सिमित वृधि, बैंगनी फूल, कली नाभिका, रोये रहित चिकनी फलिया, यह बहुप्रतिरोधी प्रजाति है। जो जैविक व्याधियाँ, जैसे पीला मोजैक, चारकोल सडन, पर्णीय झुलसान, एन्थ्रेक्नोस एवं फली झुलसन, तना मक्खी, चक्रभृंग एवं पत्ति भक्षकों के लिए मध्यम रोधी से उच्च रोधी है।
जेएस- 22-16: अर्ध-सिमित वृधि, सफेद फूल, कली नाभिका, सुनहरे भूरे रोये, यह बहुप्रतिरोधी प्रजाति है। जो जैविक व्याधियाँ, जैसे पीला मोजैक, चारकोल सडन, पर्णीय झुलसान, एन्थ्रेक्नोस एवं फली झुलसन, आदि बीमारियों के लिए मध्यम रोधी से उच्च रोधी है तथा तना मक्खी, चक्रभृंग एवं पत्ति भक्षकों के लिए मध्यम रोधी है।
एनआरसी- 181: सिमित वृधि, सफेद फूल, गहरा भूरी नाभिका, भूरे रोये, कुनिट्ज ट्रिप्सिन इनहिबीटर मुक्त, पीला मोजैक एवं टारगेट लीफ स्पॉट के लिए प्रतिरोधी तथा रायजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट, चारकोल सडन एवं एन्थ्रेक्नोस के प्रति संवेदनशील सोयाबीन की किस्म है।
पन्त सोया- 1670 (पीएस 1670 ): सिमित वृधि, सफेद फूल, कली नाभिका, भूरे रोये, पीला मोजैक, बैक्टेरियल पष्चुल, बैक्टेरियल ब्लाईट, फली झुलसन के लिए प्रतिरोधी तथा रायजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट के लिए मध्यम रोधी सोयाबीन किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) है।
एनआरसी- 165: सिमित वृधि, बैंगनी फूल, भूरी नाभिका, रोये रहित चिकनी फलिया, टारगेट लीफ स्पॉट एवं अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट आदि बीमारियों के लिए प्रतिरोधी तथा तना मक्खी, चक्रभृंग एवं पत्ति भक्षकों के लिए भी प्रतिरोधी है। मध्य क्षेत्र में समय से बुवाई के लिए प्रस्तावित एक जल्दी पकने वाली सोयाबीन किस्म है।
आरएससी- 11-35: अर्धसिमित वृद्धि, बैंगनी फूल, बीना रोया वाली सोयाबीन किस्म सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties), काली नाभिका। बड ब्लाइट, बैक्टीरियल पुश्चल, के लिए प्रतिरोधी रायजोक्टोनिया एरियल ब्लाइट के लिए मध्यम प्रतिरोधी, पर्णभक्षी कीटों के लिए प्रतिरोधी एवं ताना मक्खी एवं चक्र भृंग हेतु मध्यम प्रतिरोधी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न? (FAQs)
सोयाबीन की 2500 से ज़्यादा किस्में हैं, जो कई आकार, आकृति और रंगों में आती हैं। सोयाबीन झाड़ीदार पौधों पर उगता है जो लगभग 2 ½ फ़ीट लंबे होते हैं। प्रत्येक सोयाबीन के पौधे में 60-80 रोएँदार फलियाँ उगती हैं।
उत्पादन मात्रा और किस्मों के मामले में पीला सोयाबीन सबसे आम है। अधिकांश प्रसंस्कृत सोया उत्पाद जैसे कि मिसो, टोफू और नट्टो मध्यम या छोटे पीले सोयाबीन से बनाए जाते हैं।
उत्तर मैदानी क्षेत्र में सोयाबीन की किस्में सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) जैसे पूसा 12, एनआरसी 130 अच्छी किस्म मानी जाती हैं। जबकि मध्य भारत जिसमें मध्य प्रदेश भी आता है वहाँ के लिए जेएस 2034, जेएस 116, जेएस 335, एनआरसी 128 जैसी किस्में उन्नत किस्में मानी जाती हैं।
सोयाबीन की जल्दी पकने वाली किस्मों में जेएस 2034, जेएस 9560, आरएसबी 18, एनआरसी 131, एनआरसी 152 आदि प्रमुख हैं। ये सभी किस्में 85 से 90 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं।
सोयाबीन की मध्यम पकने वाली किस्मों में जेएस 9560, जेएस 2303, जेएस 2034, बीएस 6124 और एमएसीएस 1407 आदि शामिल है। ये किस्में 90 से 95 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं।
सोयाबीन की देर से पकने वाली किस्मों में जेएस 76-205, पीके 472, अहिल्या-2 (एनआरसी 12), अहिल्या 3, जेएस-2069 और बीएस 6124 आदि शामिल है। ये सोयाबीनकिस्में सोयाबीन की किस्में (Soybean Varieties) 100 से 105 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं।
सोयाबीन की बहुत सी किस्में हैं, जो बेहतर पैदावार देती हैं। इन किस्मों में जेएस 335, एमएससी 252, जेएस 9308, जेएस 2095, जेएस 2036 आदि ऐसी किस्में हैं, जिनसे करीब 25 से 30 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
सोयाबीन की बुआई मैदानी और मध्य क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक, दक्षिणी क्षेत्रों में मध्य जून से जुलाई अंत तक तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में मध्य जून से मध्य जुलाई तक पूरी कर लेनी चाहिए।
Leave a Reply